लिंग – स्त्रीलिंग पुल्लिंग भेद परिभाषा उदाहरण व नियम Ling in Hindi Vyakaran [Hindee Ling] Link ki Paribhasha Bhed Niyam Udaharan Streeling Pulling
Hindi Vyakran Ling – लिंग – स्त्रीलिंग पुल्लिंग भेद परिभाषा उदाहरण व नियम Ling in Hindi Vyakaran [Hindee Ling] Link ki Paribhasha Bhed Niyam Udaharan Streeling Pulling.
लिंग (Ling)
“शब्द की जाति को लिंग कहते हैं।” अथवा संज्ञा के जिस रूप से व्यक्ति या वस्तु की नर या मादा जाति का वोध हो, उसे व्याकरण में ‘लिंग’ कहते हैं।
‘लिंग’ संस्कृत भाषा का एक शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘चिह्न’ या ‘निशान’। ‘चिह्न’ या ‘निशान’ किसी संज्ञा का ही होता है। ‘संज्ञा’ किसी वस्तु के नाम को कहते हैं और वस्तु या तो पुरुषजाति की होगी या स्त्रीजाति की । तात्पर्य यह कि प्रत्येक संज्ञा पुंलिंग होगी या स्त्रीलिंग संज्ञा के भी दो रूप हैं। एक, अप्राणिवाचक संज्ञा; जैसे—लोटा, प्याली, पेड़, पत्ता इत्यादि और दूसरा, प्राणिवाचक संज्ञा; जैसे- घोड़ा घोड़ी, माता-पिता, लड़का-लड़की इत्यादि ।
लिंग के भेद (Ling Ke Bhed)
सारी सृष्टि की तीन मुख्य जातियाँ हैं— (१) पुरुष, (२) स्त्री और (३) जड़। अनेक भाषाओं में इन्हीं तीन जातियों के आधार पर लिंग के तीन भेद किए गए हैं- (१) पुंलिंग, (२) स्त्रीलिंग और (३) नपुंसकलिंग । अँगरेजी व्याकरण में लिंग का निर्णय इसी व्यवस्था के अनुसार होता है। मराठी, गुजराती आदि आधुनिक आर्यभाषाओं में भी यह व्यवस्था ज्यों-की-त्यों चली आ रही है।
इसके विपरीत, हिंदी में दो ही लिंग- पुंलिंग और स्त्रीलिंग – हैं। नपुंसकलिंग यहाँ नहीं है। अतः, हिंदी में सारे पदार्थवाचक शब्द, चाहे वे चेतन हों या जड़, स्त्रीलिंग और पुंलिंग, इन दो लिंगों में विभक्त हैं।
वाक्यों में लिंग-निर्णय
हिंदी में लिंगों की अभिव्यक्ति वाक्यों में होती है, तभी संज्ञाशब्दों का लिंगभेद स्पष्ट होता है । वाक्यों में लिंग विशेषण, सर्वनाम, क्रिया और विभक्तियों में विकार उत्पन्न करता है । जैसे-
विशेषण में
- मोटा-सा आदमी आया है। (‘आदमी’ पुंलिंग के अनुसार)
- यह बड़ा मकान है। (‘मकान’ पुंलिंग के अनुसार)
- यह बड़ी पुस्तक है। (‘पुस्तक’ स्त्रीलिंग के अनुसार )
- यह छोटा कमरा है। (‘कमरा’ पुंलिंग के अनुसार)
- यह छोटी लड़की है। (‘लड़की’ स्त्रीलिंग के अनुसार)
टिप्पणी- हिंदी में विशेषण का लिंगभेद निम्नांकित दो नियमों के अनुसार किया जा सकता है-
- (क) आकारांत विशेषण स्त्रीलिंग में ईकारांत हो जाता है; जैसे— अच्छा — अच्छी, काला — काली, उजला-उजली, भला-भली, पीला पीली ।
- (ख) आकारांत विशेषणों के रूप दोनों लिंगों में समान होते हैं; जैसे—मेरी टोपी गोल है । मेरा कोट सफेद है। उसकी पगड़ी लाल है। लड़की सुंदर है। उसका शरीर सुडौल है। यहाँ गोल, सफेद, लाल, सुंदर, सुडौल आदि विशेषण हैं।
सर्वनाम में
- मेरी पुस्तक अच्छी है। (‘पुस्तक’ स्त्रीलिंग के अनुसार)
- मेरा घर बड़ा है। (‘घर’ पुंलिंग के अनुसार)
- उसकी कलम खो गई है। (‘कलम’ स्त्रीलिंग के अनुसार)
- उसका स्कूल बंद है। (‘स्कूल’ पुंलिंग के अनुसार)
- तुम्हारी जेब खाली है। (‘जेब’ स्त्रीलिंग के अनुसार)
- तुम्हारा कोट अच्छा है। (‘कोट’ पुंलिंग के अनुसार)
क्रिया में
- बुढ़ापा आ गया। (‘बुढ़ापा’ पुंलिंग के अनुसार)
- सहायता मिली है। (‘सहायता’ स्त्रीलिंग के अनुसार)
- भात पका है। (‘भात’ पुंलिंग के अनुसार)
- दाल बनी है। (‘दाल’ स्त्रीलिंग के अनुसार)
विभक्ति में
- संबंध- गुलाब का रंग लाल है। (‘रंग’ पुंलिंग के अनुसार)
- आपका चरित्र अच्छा है। (‘चरित्र’ पुंलिंग के अनुसार)
- आपकी नाक कट गई है। (‘नाक’ स्त्रीलिंग के अनुसार)
- संबोधन — अयि देवी! तुम्हारी जय हो। (‘देवी’ स्त्रीलिंग के अनुसार)
तत्सम (संस्कृत) शब्दों का लिंगनिर्णय
संस्कृत पुंलिंग शब्द
पं. कामताप्रसाद गुरु ने संस्कृत के पुंलिंग शब्दों को पहचानने के निम्नलिखित नियम बताए हैं.
- (अ) जिन संज्ञाओं के अंत में ‘त्र’ होता है; जैसे- चित्र, क्षेत्र, पात्र, नेत्र, चरित्र, शस्त्र इत्यादि ।
- (आ) ‘नांत’ संज्ञाएँ; जैसे- – पालन, पोषण, दमन, वचन, नयन, गमन, हरण इत्यादि । अपवाद— ‘पवन’ उभयलिंग है।
- (इ) ‘ज’ प्रत्ययांत संज्ञाएँ हैं; जैसे- जलज, स्वेदज, पिंडज, सरोज इत्यादि ।
- (ई) जिन भाववाचक संज्ञाओं के अंत में त्व, त्य, व, य होता है; जैसे – सतीत्व, बहूत्व, नृत्य, कृत्य, लाघव, गौरव, माधुर्य इत्यादि ।
- (उ) जिन शब्दों के अंत में ‘आर’, ‘आय’, वा ‘आस’ हो; जैसे— विकार, विस्तार, संसार, अध्याय, उपाय, समुदाय, उल्लास, विकास, ह्रास इत्यादि ।
अपवाद- –सहाय (उभयलिंग), आय (स्त्रीलिंग) आदि
- (ऊ) ‘अ’ प्रत्ययांत संज्ञाएँ हैं; जैसे— क्रोध, मोह, पाक, त्याग, दोष, स्पर्श इत्यादि । अपवाद – जय (स्त्रीलिंग), विनय (उभयलिंग) आदि
- (ॠ) ‘त’ प्रत्ययांत संज्ञाएँ हैं; जैसे― चरित, गणित, फलित, मत, गीत, स्वागत इत्यादि ।
- (ए) जिनके अंत में ‘ख’ होता है; जैसे- नख, मुख, सुख, दुःख, लेख, मख, शंख इत्यादि ।
संस्कृत स्त्रीलिंग शब्द
पं. कामताप्रसाद गुरु ने संस्कृत के स्त्रीलिंग शब्दों को पहचानने के निम्नलिखित नियमों का उल्लेख अपने व्याकरण में किया है-
- (अ) आकारांत संज्ञाएँ; जैसे- दया, माया, कृपा, लज्जा, क्षमा, शोभा इत्यादि
- (आ) नाकरांत संज्ञाएँ; जैसे— प्रार्थना, वेदना, प्रस्तावना, रचना, घटना इत्यादि
- (इ) उकारांत संज्ञाएँ; जैसे—वायु, रेणु, रज्जु, जानु, मृत्यु, आयु, वस्तु, धातु, ऋतु इत्यादि
अपवाद – मधु, अश्रु, तालु, मेरु, हेतु, सेतु इत्यादि
- (ई) जिनके अंत में ‘ति’ वा ‘नि’ हो; जैसे- गति, मति, रीति, हानि, ग्लानि, योनि, बुद्धि, ऋद्धि सिद्धि (सिध् + ति = सिद्धि) इत्यादि
- (उ) ‘ता’ प्रत्यायांत भाववाचक संज्ञाएँ हैं; जैसे— नम्रता, लघुता, सुंदरता, प्रभुता, जड़ता इत्यादि ।
- (ऊ) इकारांत संज्ञाएँ; जैसे- निधि, विधि, परिधि, राशि, अग्नि, छवि, केलि, रुचि इत्यादि
अपवाद – वारि, जलधि, पाणि, गिरि, अद्रि, आदि, बलि इत्यादि
- (ऋ) ‘इमा’ प्रत्ययांत शब्द; जैसे – महिमा, गरिमा, कालिमा, लालिमा इत्यादि
तत्सम पुंलिंग शब्द
- चित्र, पत्र, पात्र, मित्र, गोत्र, दमन, गमन, गगन, श्रवण, पोषण, शोषण, पालन, लालन,
- परिमार्जन, संस्करण, संशोधन, परिवर्तन, परिवेष्टन, परिशोध, परिशीलन, प्रांगण, प्राणदान,
- वचन, मर्म, यवन, रविवार, सोमवार, मार्ग, राजयोग, रूप, रूपक, स्वदेश, राष्ट्र, प्रांत, नगर,
- देश, सर्प, सागर, साधन, सार, तत्त्व, स्वर्ग, दातव्य, दंड, दोष, धन, नियम, पक्ष, पृष्ठ, विधेयक,
- विनिमय, विनियोग, विभाग, विभाजन, विरोध, विवाद, वाणिज्य, शासन, प्रवेश, अनुच्छेद,
- शिविर, वाद, अवमान, अनुमान, आकलन, निमंत्रण, नियंत्रण, आमंत्रण, उद्भव, निबंध,
- नाटक, स्वास्थ्य, निगम, न्याय, समाज, विघटन, विसर्जन, विवाह, व्याख्यान, धर्म, वित्त,
- मलयज, जलज, उरोज, सतीत्व, कृत्य, स्त्रीत्व, लाघव, वीर्य, माधुर्य, कार्य, कर्म, प्रकार,
- प्रहार, विहार, प्रचार, सार, विस्तार, प्रसार, अध्याय, स्वाध्याय, उपहार, ह्रास, मास, लोभ,
- क्रोध, बोध, मोद, ग्रंथ, नख, मुख, शिख, दुःख, सुख, शंख, तुषार, तुहिन, उत्तर, प्रश्न,
- मस्तक, आश्चर्य, नृत्य, काष्ठ, छत्र, मेघ, कष्ट, प्रहर, सौभाग्य, अंकन, अंकुश, अंजन,
- अंचल, अंतर्धान, अंतस्तल, अंबुज, अंश, अकाल, अक्षर, कल्मष, कल्याण, कवच, कायाकल्प,
- कलश, काव्य, कास, गज, गण, ग्राम, गृह, चंद्र, चंदन, क्षण, छंद, अलंकार, सरोवर, परिमाण,
- उपादान, उपकरण, आक्रमण, पर्यवेक्षण, श्रम, विधान, बहुमत, निर्माण, संदेश, प्रस्ताव,
- ज्ञापक, आभार, आवास, छात्रावास, अपराध, प्रभाव, उत्पादन, लोक, विराम, परिहार,
- विक्रम, न्याय, संघ, परिवहन, प्रशिक्षण, प्रतिवेदन, संकल्प इत्यादि
तत्सम स्त्रीलिंग शब्द
- अक्षमता, इच्छा, अनुज्ञा, आज्ञा, आराधना, उपासना, याचना, रक्षा, संहिता, आजीविका,
- घोषणा, गणना, परीक्षा, गवेषणा, नगरपालिका, नागरिकता, योग्यता, सीमा, स्थापना,
- संस्था, सहायता, मंत्रणा, मान्यता, व्याख्या, शिक्षा, समता, संपदा, संविदा, सूचना, सेवा,
- सेना, अनुज्ञप्ति विज्ञप्ति, अनुमति, अभियुक्ति, अभिव्यक्ति, उपलब्धि, विधि, क्षति, पूर्ति,
- विकृति, चित्तवृत्ति, जाति, निधि, सिद्धि, समिति, नियुक्ति, निवृत्ति, रीति, शक्ति, प्रतिकृति,
- कृति, प्रतिभूति, प्रतिलिपि, अनुभूति, युक्ति, धृति, हानि, स्थिति, परिस्थिति, विमति, वृत्ति,
- दया, माया, कृपा, लज्जा, क्षमा, शोभा, सभा, प्रार्थना, वेदना, समवेदना, प्रस्तावना, रचना,
- घटना, अवस्था, नम्रता, सुंदरता, प्रभुता, जड़ता, महिमा, गरिमा, कालिमा, लालिमा,
- ईर्ष्या, भाषा, अभिलाषा, आशा, निराशा, पूर्णिमा, अरुणिमा, काया, कला, चपला,
- आवृत्ति, शांति, संधि, समिति, संपत्ति, सुसंगति, कटि, छवि, रुचि, अग्नि, केलि, नदी, नारी,
- मंडली, लक्ष्मी, शताब्दी, श्री, कुंडली, कुंडलिनी, कौमुदी, गोष्ठी, धात्री, मृत्यु, आयु, वस्तु,
- ऋतु, रज्जु, रेणु, वायु इत्यादि
अपवाद – शशि, रवि, पति, मुनि, गिरि इत्यादि
अब हम हिंदी के तद्भव शब्दों के लिंगविधान पर विचार करेंगे।
तद्भव (हिंदी) शब्दों का लिंगनिर्णय
तद्भव शब्दों के लिंगनिर्णय में अधिक कठिनाई होती है । तद्भव शब्दों का लिंगभेद, वह भी अप्राणिवाचक शब्दों का, कैसे किया जाए और इसके सामान्य नियम क्या हों, इसके बारे में विद्वानों में मतभेद है। पंडित कामताप्रसाद गुरु ने हिंदी के तद्भव शब्दों को परखने के लिए पुंलिंग के तीन और स्त्रीलिंग के दस नियमों का उल्लेख अपने ‘हिंदी व्याकरण’ में किया है। वे नियम इस प्रकार हैं-
तद्भव पुंलिंग शब्द
- (अ) ऊनवाचक संज्ञाओं को छोड़ शेष आकारांत संज्ञाएँ; जैसे- पैसा, पहिया, आटा, चमड़ा इत्यादि – कपड़ा, गन्ना,
- (आ) जिन भाववाचक संज्ञाओं के अंत में ना, आव, पन, वा, पा होता है; जैसे—आना, गाना, बहाव, चढ़ाव, बड़प्पन, बुढ़ापा इत्यादि ।
- (इ) कृदंत की आनांत संज्ञाएँ; जैसे—लगान, मिलान, खान, पान, नहान, उठान इत्यादि
अपवाद – उड़ान, चट्टान इत्यादि
तद्भव स्त्रीलिंग शब्द
(अ) ईकारांत संज्ञाएँ; जैसे—नदी, चिट्ठी, रोटी, टोपी, उदासी इत्यादि
अपवाद — घी, जी, मोती, दही इत्यादि
(आ) ऊनवाचक याकारांत संज्ञाएँ; जैसे— गुड़िया, खटिया, टिबिया, पुड़िया, ठिलिया इत्यादि
(इ) तकारांत संज्ञाएँ; जैसे- -रात, बात, लात, छत, भीत, पत इत्यादि
अपवाद – भात, खेत, सूत, गात, दाँत इत्यादि
(ई) ऊकारांत संज्ञाएँ; जैसे—बालू, लू, दारू, ब्यालू, झाडू इत्यादि
अपवाद – आँसू, आलू, रतालू, टेसू इत्यादि
(उ) अनुस्वारांत संज्ञाएँ; जैसे – सरसों, खड़ाऊँ, भौं, चूँ, जूँ इत्यादि
अपवाद – गेहूँ
(ऊ) सकारांत संज्ञाएँ; जैसे— प्यास, मिठास, निंदास, रास (लगाम), बाँस, साँस इत्यादि
अपवाद – निकास, काँस, रास (नृत्य)
(ऋ) कृदंत नकारांत संज्ञाएँ, जिनका उपांत्य वर्ण अकारांत हो अथवा जिनकी धातु नकारांत हो; जैसे अपवाद — चलन आदि रहन, सूजन, जलन, उलझन, पहचान इत्यादि ।
(ए) कृदंत की अकारांत संज्ञाएँ; जैसे— -लूट, मार, समझ, दौड़, सँभाल, रगड़, चमक, छाप, पुकार इत्यादि
अपवाद – नाच, मेल, बिगाड़, बोल, उतार इत्यादि
(ऐ) जिन भावाचक संज्ञाओं के अंत में ट, वट, हट, होता है; जैसे- सजावट, घबराहट, चिकनाहट, आहट, झंझट इत्यादि ।
(ओ) जिन संज्ञाओं के अंत में ‘ख’ होता है; जैसे – ईख, भूख, राख, चीख, काँख, कोख, साख, देखरेख इत्यादि
अपवाद – पंख, रूख
अर्थ के अनुसार लिंगनिर्णय
कुछ लोग अप्राणिवाचक शब्दों का लिंगभेद अर्थ के अनुसार करते हैं। पं० कामताप्रसाद् गुरु ने इस आधार और दृष्टिकोण को ‘अव्यापक और अपूर्ण’ कहा है; क्योंकि इसके जितने उदाहरण हैं, प्रायः उतने ही अपवाद हैं। इसके अलावा, इसके जो थोड़े-से नियम बने हैं, उनमें सभी तरह के शब्द सम्मिलित नहीं होते। गुरुजी ने इस संबंध में जो नियम और उदाहरण दिए हैं, उनमें भी अपवादों की भरमार है। उन्होंने जो भी नियम दिए हैं, वे बडे जटिल और अव्यावहारिक हैं। यहाँ इन नियमों का उल्लेख किया जा रहा है-
(क) अप्राणिवाचक पुंलिंग हिंदी शब्द
१. शरीर के अवयवों के नाम पुंलिंग होते हैं; जैसे—कान, मुँह, दाँत, ओठ, पाँव, हाथ, गाल, मस्तिष्क, तालु, बाल, अँगूठा, मुक्का, नाखून, नथना, गट्टा इत्यादि ।
अपवाद — कोहनी, कलाई, नाक, आँख, जीभ, ठोड़ी, खाल, बाँह, नस, हड्डी, इंद्रिय, – काँख इत्यादि
२. रत्नों के नाम पुंलिंग होते हैं; जैसे— मोती, माणिक, पन्ना, हीरा, जवाहर, मूँगा, नीलम, पुखराज, लाल इत्यादि ।
अपवाद – मणि, चुन्नी, लाड़ली इत्यादि
३. धातुओं के नाम पुंलिंग होते हैं; जैसे— ताँबा, लोहा, सोना, सीसा, काँसा, राँगा, पीतल, रूपा, टीन इत्यादि ।
अपवाद – चाँदी
४. अनाज के नाम पुंलिंग होते हैं; जैसे— जौ, गेहूँ, चावल, बाजरा, चना, मटर, तिल इत्यादि ।
अपवाद – मकई, जुआर, मूँग, खेसारी इत्यादि
५. पेड़ों के नाम पुंलिंग होते हैं; जैसे- पीपल, बड़, देवदारु, चीड़, आम, शीशम, सागौन, कटहल, अमरूद, शरीफा, नींबू, अशोक, तमाल, सेब, अखरोट इत्यादि ।
अपवाद – लीची, नाशपाती, नारंगी, खिरनी इत्यादि
६. द्रव पदार्थों के नाम पुंलिंग होते हैं; जैसे— पानी, घी, तेल, अर्क, शरबत, इत्र, सिरका, आसव, काढ़ा, रायता इत्यादि
अपवाद – चाय, स्याही, शराब
७. भौगोलिक जल और स्थल आदि अंशों के नाम प्रायः पुंलिंग होते हैं; जैसे – देश, नगर, रेगिस्तान, द्वीप, पर्वत, समुद्र, सरोवर, पाताल, वायुमंडल, नभोमंडल, प्रांत इत्यादि
अपवाद – पृथ्वी, झील, घाटी इत्यादि
(ख) अप्राणिवाचक स्त्रीलिंग हिंदी शब्द
१. नदियों के नाम स्त्रीलिंग होते हैं; जैसे— गंगा, यमुना, महानदी, गोदावरी, सतलज, रावी, ब्यास, झेलम इत्यादि अपवाद – शोण, सिंधु, ब्रह्मपुत्र नद हैं, अतः पुंलिंग हैं।
२. नक्षत्रों के नाम स्त्रीलिंग होते हैं; जैसे— भरणी, अश्विनी, रोहिणी इत्यादि ।
अपवाद – अभिजित, पुष्य आदि
३. बनिये की दूकान की चीजें स्त्रीलिंग हैं; जैसे- लौंग, इलायची, मिर्च, दालचीनी, चिरौंजी, हल्दी, जावित्री, सुपारी, हींग इत्यादि ।
अपवाद – धनिया, जीरा, गर्म मसाला, नमक, तेजपत्ता, केसर, कपूर इत्यादि
४. खाने-पीने की चीजें स्त्रीलिंग हैं; जैसे— कचौड़ी, पूरी, खीर, दाल, पकौड़ी, रोटी, चपाती, तरकारी, सब्जी, खिचड़ी इत्यादि ।
अपवाद – पराठा, हलुआ, भात, दही, रायता इत्यादि
प्रत्ययों के आधार पर तद्भव हिंदी शब्दों का लिंगनिर्णय
हिंदी के कृदंत और तद्धित प्रत्ययों में स्त्रीलिंग पुंलिंग बनानेवाले अलग-अलग प्रत्यय इस प्रकार हैं-
स्त्रीलिंग कृदंत प्रत्यय – अ, अंत, आई, आन, आवट, आस, आहट, ई, औती, आवनी, क, की, त, ती, नी इत्यादि हिंदी कृदंत प्रत्यय जिन धातु-शब्दों में लगे होते हैं, वे स्त्रीलिंग होते हैं; जैसे— लूट, चमक, देन, भिड़ंत, लड़ाई, लिखावट, प्यास, घबराहट, हँसी, मनौती, छावनी, बैठक, फुटकी, बचत, गिनती करनी, भरनी।
द्रष्टव्य – इन स्त्रीलिंग कृदंत प्रत्ययों में अ, क, और न प्रत्यय कहीं-कहीं पुंलिंग में भी आते हैं और कभी-कभी इनसे बने शब्द उभयलिंग भी होते हैं। जैसे— ‘सीवन’ (‘न’ प्रत्ययांत) क्षेत्रभेद से दोनों लिंगों में चलता है। शेष सभी प्रत्यय स्त्रीलिंग हैं।
पुंलिंग कृदंत प्रत्यय – अक्कड़, आ, आऊ, आक, आकू, आप, आपा, आव, आवना, आवा, इयल, इया, ऊ, एरा, ऐया, ऐत, औता, औना, औवल, क, का, न, वाला, वैया, सार, हा इत्यादि हिंदी कृदंत प्रत्यय जिन धातु-शब्दों में लगे हैं, वे पुंलिंग होते हैं; जैसे—पियक्कड़, घेरा, तैराक, लड़ाकू, मिलाप, पुजापा, घुमाव, छलावा, लुटेरा, कटैया, लड़ैत, समझौता, खिलौना, बुझौवल, घालक, छिलका, खान-पान, खानेवाला, गवैया ।
द्रष्टव्य – (१) क और न कृदंत प्रत्यय उभयलिंग हैं। इन दो प्रत्ययों और स्त्रीलिंग प्रत्ययों को छोड़ शेष सभी पुंलिंग हैं।
(२) ‘सार’ उर्दू का कृदंत प्रत्यय है, जो हिंदी में फारसी से आया है मगर काफी प्रयुक्त है।
स्त्रीलिंग तद्धित-प्रत्यय – आई, आवट, आस, आहट, इन, एली, औड़ी, औटी, औती, की, टी, ड़ी, त, ती, नी, री, ल, ली इत्यादि हिंदी तद्धित प्रत्यय जिन शब्दों में लगे होते हैं, वे स्त्रीलिंग होते हैं; जैसे- भलाई, जमावट, हथेली, टिकली, चमड़ी।
पुंलिंग तद्धित प्रत्यय – आ, आऊ, आका, आटा, आना, आर, इयल, आल, आड़ी, आरा, आलू, आसा, ईला, उआ, ऊ, एरा, एड़ी, ऐत, एला, ऐला, ओटा, ओट, औड़ा, ओला, का, जा, टा, ड़ा, ता, पना, पन, पा, ला, वंत, वान, वाला, वाँ, वा, सरा, सौं, हर, हरा, हा, हारा इत्यादि हिंदी तद्धित प्रत्यय जिन शब्दों में लगे होते हैं वे शब्द पुंलिंग होते हैं; जैसे – धमाका, खर्राटा, पैताना, भिखारी, हत्यारा, मुँहासा, मछुआ, सँपेरा, गॅजेड़ी, डकैत, अधेला, चमोटा, लँगोटा, हथौड़ा, चुपका, दुखड़ा, रायता, कालापन, बुढ़ापा, गाड़ीवान, टोपीवाला, छठा, दूसरा, खंडहर, पीहर, इकहरा, चुड़िहारा ।
द्रष्टव्य – १. इया, ई, एर, एल, क तद्धित प्रत्यय उभयलिंग हैं। जैसे—
प्रत्यय पद तद्धित पद
इया मुख मुखिया (पुंलिंग)
खाट खटिया (ऊनवाचक) (स्त्रीलिंग)
ई डोर डोरी (स्त्रीलिंग)
एर मूॅंड़ मुँडेर (स्त्रीलिंग)
अंध अँधेर (पुंलिंग)
एल फूल फुलेल (पुंलिंग)
नाक नकेल (स्त्रीलिंग)
क पंच पंचक (पुंलिंग)
ठंड ठंडक (स्त्रीलिंग)
२. विशेषण अपने विशेष्य के लिंग के अनुसार होता है। जैसे— ‘ल’ तद्धित प्रत्यय संज्ञा – शब्दों में लगने पर उन्हें स्त्रीलिंग कर देता है, मगर विशेषण में ‘घाव + ल = घायल’ – अपने विशेष्य के अनुसार होगा, अर्थात विशेष्य स्त्रीलिंग हुआ तो ‘घायल’ स्त्रीलिंग और पुंलिंग हुआ तो पुंलिंग।
३. ‘क’ तद्धित प्रत्यय स्त्रीलिंग है, किंतु संख्यावाचक के आगे लगने पर उसे पुंलिंग कर देता है; जैसे— चौक, पंचक (पुंलिंग) और ठंडक, धमक (स्त्रीलिंग) । ‘आन’ प्रत्यय भाववाचक होने पर शब्द को स्त्रीलिंग करता है, किंतु विशेषण में विशेष्य के अनुसार; जैसे – लंबा + आन = लंबान (स्त्रीलिंग) ।
४. अधिकतर भाववाचक और ऊनवाचक प्रत्यय स्त्रीलिंग होते हैं।
उर्दू शब्दों का लिंगनिर्णय
उर्दू से होते हुए हिंदी में अरबी-फारसी के बहुत-से शब्द आए हैं, जिनका व्यवहार हम प्रतिदिन करते हैं। इन शब्दों का लिंगभेद निम्नलिखित नियमों के अनुसार किया जाता है—
पुंलिंग उर्दू शब्द
१. जिनके अंत में ‘आब’ हो, वे पुंलिंग हैं; जैसे- गुलाब, जुलाब, हिसाब, जवाब, कबाब |
अपवाद – शराब, मिहराब, किताब, ताब, किमखाब इत्यादि
प्रयोग दोनों लिंगों में अर्थभेद के कारण होता है; जैसे— टीका, हार, पीठ इत्यादि। ऐसे शब्दों की सूची आगे दी गई है।
लिंगनिर्णय के साथ हिंदी में प्रयुक्त होनेवाली अँगरेजी शब्दों की सूची निम्नलिखित हैं-
अँगरेजी के पुंलिंग शब्द
अकारांत —
- बिल, बोनस, ब्रॉडकास्ट, बजट, बॉण्ड, बोल्डर, ब्रश, ब्रेक, बैंक, बल्ब, बम, मैच, मेल,
- मीटर, मनिआर्डर, रोड, रॉकेट, रबर, रूल, राशन, रिवेट, रिकार्ड, रिबन, लैंप, लौंगक्लॉथ,
- लेजर, लीज, लाइसेंस, वाउचर, वार्ड, स्टोर, स्टेशनर, स्कूल, स्टोव, स्टेज, स्लीपर, स्टील,
- स्विच, स्टैंडर्ड, सिगनल, सेक्रेटेरियट, सैलून, हॉल, होलडॉल, हैंगर,
- ऑर्डर, ऑयल, ऑपरेशन, इंजिन, इंजीनियर, इंजेक्शन, एडमिशन, एक्सप्रेस, एक्सरे,
- ओवरटाइम, क्लास, कमीशन, कोट, कोर्ट, कैलेंडर, कॉलेज, कैरेम, कॉलर, कॉलबेल,
- काउंटर, कॉरपोरेशन, कार्बन, कंटर’, केस, क्लिनिक, क्लिप, कार्ड, क्रिकेट, गैस, गजट,
- ग्लास, चेन, चॉकलेट, चार्टर, टॉर्च, टायर, ट्यूब, टाउनहाल, टेलिफोन, टाइम, टाइमटेबुल,
- टी-कप, ट्रांजिस्टर, टेलिग्राम, ट्रैक्टर, टेंडर, टैक्स, टूथपाउडर, टिकट, डिवीजन, डांस,
- ड्राइंग रूम, नोट, नंबर, नेकलेस, थर्मस, पार्क, पोस्ट, पोस्टर, पिंगपौंग, पेन, पासपोर्ट,
- पार्लियामेंट, पेटीकोट, पाउडर, पेंशन, परमिट, प्रोमोशन, प्रोविडेंट फंड, पेपर, प्रेस,
- प्लास्टर, प्लग, प्लेग, प्लेट, पार्सल, प्लैटफार्म, फुटपाथ, फुटबॉल, फार्म, फ्रॉक, फर्म,
- फैन फ्रेम, फुलपैंट, फ्लोर, फैशन, बोर्ड, बैडमिंटन, बॉर्डर, बाथरूम, बुशशर्ट, बॉक्स,
- हॉस्पिटल, हेयर, हैंडिल, लाइट, लेक्चर, लेटर
आकारांत — कोटा, कैमरा, वीसा, सिनेमा, ड्रामा, प्रोपैगैंडा, कॉलरा, फाइलेरिया, मलेरिया, कारवाँ ३
ओकारांत—रेडियो, स्टूडियो, फोटो, मोटो, मेमो, वीटो, स्त्री
अँगरेजी के स्त्रीलिंग शब्द
ईकारांत — एसेंबली, कंपनी, केतली, कॉपी, गैलरी, डायरी, डिग्री, टाई, ट्रेजेडी, ट्रेजरी, म्युनिसिपैलिटी, युनिवर्सिटी, बार्ली, पार्टी, लैबोरेटरी
हिंदी के उभयलिंगी शब्द
हिंदी के कुछ ऐसे अनेकार्थी शब्द प्रचलित हैं, जो एक अर्थ में पुंलिंग और दू अर्थ में स्त्रीलिंग होते हैं। ऐसे शब्द ‘उभयलिंगी’ कहलाते हैं। कुछ उदाहरण इस प्रकार है –
शब्द अर्थ वाक्य
कल (हिंदी पुं०) – आगामी दिन – तुम्हारा कल कब आएगा ?
(हि० स्त्री०) – चैन, आराम – रोगी को अभी कल पड़ी है।
टीका (हि० पुं०) – तिलक, भेंट – कल टीका लगेगा।
(संस्कृत स्त्री०) — टिप्पणी, अर्थ – आपकी टीका अच्छी है।
पीठ (सं० पुं०) – पीढ़ा, स्थान — यह विद्या का पीठ है।
(हि० स्त्री०) – पृष्ठभाग – हमारी पीठ में दर्द है ।
कोटि (पुं०) – करोड़ – मेरा चार कोटि लग चुका है।
(स्त्री०) — श्रेणी – मनुष्य की अनेक कोटियाँ हैं।
यति (पुं०) – संन्यासी – कुंभ के मेले में यतियों की भीड़ है।
(स्त्री०) – विराम – यहाँ यति लगनी चाहिए। (छंद का ठहराव)
विधि (पुं०) – ब्रह्मा – विधि अवश्य न्याय करेगा।
(स्त्री०) -प्रणाली, ढंग – काम करने की विधि अच्छी है।
बाट (पुं०) -बटखरा – तुम्हारा बाट ठीक नहीं।
(स्त्री०) -मार्ग, इंतजार – वह तुम्हारी बाट जोहता रहा ।
शान (हि० सं० पुं०) – हथियार – औजार तेज करने का पत्थर – मैं तुम्हारे शान का उपयोग करूँगा।
(अरबी स्त्री० ) – ठाट-बाट, प्रभुत्व- तुम्हारी शान के क्या कहने!
शाल (हि० सं० पुं०) – वृक्षविशेष – यह शाल बहुत पुराना है।
(फारसी स्त्री० ) – दुशाला – उसकी शाल कीमती है।
लिंगनिर्णय के कुछ सरल सूत्र
अप्राणिवाचक संज्ञाओं के लिंगभेद में हिंदी के सामान्य पाठकों को कठिनाई होती है। हिंदी के वैयाकरणों ने अबतक जो भी नियम बताए हैं, वे काफी उलझन पैदा करते हैं। पं० गुरु ने लिंगभेद के लगभग चालीस नियम बताए इनसे लिंग की कठिनाई दूर नहीं होती । नियमों के अपवाद कभी-कभी उनके उदाहरण से कहीं अधिक हैं। हमें कुछ ऐसे सरल सूत्रों की आवश्यकता है, जो तत्सम तद्भव, देशज और विदेशज सभी प्रकार की संज्ञाओं पर समानरूप से लागू हो सकें । यहाँ कुछ सूत्रों का उल्लेख किया जाता है। प्रयोग कर देखें कि ये सूत्र कहाँ तक उपयोगी और वैज्ञानिक हैं।
१. हिंदी ने संज्ञाओं के लिंगभेद में संस्कृत की लिंग व्यवस्था का काफी हद तक अनुसरण किया है। हिंदी तद्भवों पर संस्कृत के तत्समों का सीधा प्रभाव है। तत्सम यदि पुंलिंग अथवा नपुंसक है, तो उसका तद्भव पुंलिंग ही होगा। इस प्रकार संस्कृत का ज्ञान रखनेवालों को हिंदी-तद्भव के लिंगनिर्णय में विशेष कठिनाई नहीं होगी। सूत्र यह है कि तद्भव चाहे अकारांत हों या आकारांत, उनके तत्सम यदि अकारांत हैं, तो ऐसे शब्द पुंलिंग होंगे। जैसे-
तद्भव – तत्सम
(पुंलिंग) – (पुंलिंग)
आकारांत – आम – आम्र
हाथ – हस्त
अकारांत – कंधा – स्कंध
कोठा – कोष्ठ
कान – कर्ण
पारा – पारद
दूध – दुग्ध
कुआँ – कूप
पिंजड़ा – पिंजर
काठ – काष्ठ
करेला – कारवेल
२. तद्भव यदि अकारांत हों और उनके तत्सम आकारांत हों, तो ऐसे शब्द स्त्रीलिंग होंगे। दूसरे शब्दों में, तत्सम यदि स्त्रीलिंग हैं, तो उनके विकृत रूप तद्भव भी स्त्रीलिंग होंगे। जैसे-
तत्सम तद्भव
(स्त्रीलिंग) (स्त्रीलिंग)
आकारांत-
- संध्या – साँझ
- शय्या – सेज
- नासिका – नाक
- शिला – सिल
- भिक्षा – भीख
- जिह्वा – जीभ
३. यदि तत्सम और तद्भव दोनों अकारांत हैं, तो दोनों पुंलिंग होंगे। जैसे—
- तत्सम तद्भव
- (पुंलिंग) (पुंलिंग)
- ओष्ठ – ओठ
- पक्ष – पंख
- कर्पूर – कपूर
- वाष्प – भाप
- आम्र – आम
- मयूर – मोर
- निंब – नीम
- सूत्र – सूत
- प्रस्तर – पत्थर
- ज्येष्ठ – जेठ
४. तत्सम ऊकारांत और उकारांत शब्द पुंलिंग होते हैं। जैसे-
ऊकारांत – प्रसू, भ्रू
उकारांत – अश्रु, जंतु, राहु, केतु, तालु, त्रिशंकु, बंधु, मेरु
इसी तरह, ऊकारांत और ऊकारांत तद्भव पुंलिंग होते हैं; जैसे— जनेऊ, डाकू, पिल्लू, चुल्लू, घुँघरू, आँसू, गेहूँ ।
५. जिस अकारांत अथवा आकारांत संज्ञा का बहुवचन बनाने में कोई विकार नहीं होता, वह पुंलिंग और जिस संज्ञा का बहुवचन बनाने में विकार (एँ, याँ) होता हो, वह स्त्रीलिंग है। यह नियम सभी अप्राणिवाचक तत्सम तथा तद्भव संज्ञाओं पर लागू होता है। जैसे-
- राम के चार भवन हैं— पुंलिंग (अविकृत)
- राम की चार इमारतें हैं— स्त्रीलिंग (विकृत)
- राम की बातें हुई— स्त्रीलिंग (विकृत)
- राम के वचन सुने हैं— पुंलिंग (अविकृत)
- श्याम के चार पुत्र हैं — पुंलिंग (अविकृत)
- मैंने कोशिशें की— स्त्रीलिंग (विकृत)
- कमरे में चार खिड़कियाँ हैं— स्त्रीलिंग (विकृत)
यह एक महत्त्वपूर्ण सूत्र है। इसके परीक्षण से हमारी लिंग संबंधी समस्या दूर हो सकती है।
आकारांत संज्ञाएँ
कामना — कामनाएँ, इच्छा – इच्छाएँ, दिशा-दिशाएँ, वार्ता – वार्ताएँ, टीका- टीकाएँ, कविता – कविताएँ, भाषा–भाषाएँ, परीक्षा – परीक्षाएँ इत्यादि
६. आकारांत भाववाचक संज्ञाएँ स्त्रीलिंग होती हैं, जैसे—माया, लज्जा, दया, कृपा, छाया, करुणा, आभा, क्षमा इत्यादि ।
७. यदि बहुवचन बनाने पर संज्ञाओं का अंत ‘आ’ ‘ए’ हो जाए, तो ये संज्ञाएँ पुंलिंग होती हैं; जैसे— ताला— ताले, पहिया — पहिए, कपड़ा – कपड़े, गला – गले, छाता- छाते, जूता -जूते, कुत्ता – कुत्ते इत्यादि ।
८. द्रव्यवाचक संज्ञाएँ पुंलिंग होती हैं; जैसे- दही, मोती, पानी इत्यादि ।
९. क्रियार्थक संज्ञाएँ पुंलिंग होती हैं। जिस शब्द के अंत में ‘ना’ लगा हो, वे पुंलिंग होते हैं; जैसे – लिखना, पढ़ना, टहलना, गिरना, उठाना इत्यादि ।
१०. द्वंद्वसमास के शब्द पुंलिंग होते हैं; जैसे – सीता – राम, राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती, दाल-भात, लोटा-डोरी, नर-नारी, राजा-रानी, माँ-बाप इत्यादि ।