UP Board and NCERT Solution of Class 10 Science [विज्ञान] ईकाई 3 प्राकृतिक घटनाएँ ( संवृत्तियां)–Chapter- 10 The human eye and the colourful world ( मानव नेत्र तथा रंगबिरगा संसार) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 10वीं विज्ञान ईकाई 3 प्राकृतिक घटनाएँ ( संवृत्तियां) (Natural phenomena (phenomena) के अंतर्गत चैप्टर 10 The human eye and the colourful world ( मानव नेत्र तथा रंगबिरगा संसार) पाठ के दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं हमारी मेहनत की क़द्र करते हुए इसे अपने मित्रों में शेयर जरुर करेंगे।

मानव नेत्र, प्रिज्म से प्रकाश का अपवर्तन, दृष्टि दोष, प्रकाश का प्रकीर्णन
| Class | 10th | Subject | Science (Vigyan) |
| Pattern | NCERT | Chapter- | The human Eye and the Colourful world |
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. (a) काँच के किसी प्रिज्म पर आपतित एकवर्णी प्रकाश की किसी किरण AO के मार्ग को अपनी उत्तर–पुस्तिका पर दर्शाइए तथा विचलन–कोण को अंकित कीजिए।
(b) यदि AO श्वेत प्रकाश की किरण हो, तो–
(i) वर्णन कीजिए कि प्रिज्म के पास रखे पर्दे BC पर आप क्या प्रेक्षण करेंगे?
(ii) इस परिघटना का नाम लिखिए।
(iii) इस परिघटना का कारण लिखिए।
(iv) इससे श्वेत प्रकाश के घटकों के बारे में क्या सिद्ध होता है?

(i) पर्दे पर सात रंगों का स्पेक्ट्रम प्राप्त होगा।
(ii) इस परिघटना का नाम है, “विक्षेपण”
(iii) इस परिघटना अर्थात् विक्षेपण का कारण है-
- अलग-अलग रंगों के किरणों का तरंगदैर्ध्य एवं चाल भिन्न-भिन्न होना। जैसे-लाल प्रकाश का तरंगदैर्ध्य नीले प्रकाश की अपेक्षा 1.8 गुनी है।
- प्रकाश के विभिन्न वर्षों का आपतित किरण के सापेक्ष अलग- अलग कोणों पर मुड़ना (झुकना)
(iv) श्वेत प्रकाश सात अवयवी रंगों से बना है।
प्रश्न 2. प्रिज्म द्वारा वर्ण विक्षेपण से क्या तात्पर्य है? चित्र खींचकर समझाइये। इसका कारण स्पष्ट कीजिए। (2017) अथवा उचित चित्र द्वारा प्रकाश के वर्ण विक्षेपण को समझाइए।
अथवा प्रिज्म में से सफेद प्रकाश की किरणें गुजरने पर यह सात रंगों के स्पेक्ट्रम में क्यों विभाजित हो जाती है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर– वर्ण विक्षेपण– “प्रिज्म के भीतर से गुजरने पर श्वेत प्रकाश (सूर्य के प्रकाश) के अपने अवयवी रंगों में विभाजित होने की प्रक्रिया प्रकाश का वर्ण विक्षेपण कहलाती है।” इस घटना के सम्बन्ध में निम्नलिखित दो सम्भावनायें हो सकती हैं-
(क) प्रिज्म श्वेत प्रकाश को इन विभिल रंगों में रंग देता हो, अथवा
(ख) श्वेत प्रकाश स्वयं ही इन विभिन्न रंगों का सम्मिश्रण हो। वास्तव में इन सम्भावनाओं में से (ख) सम्भावना सत्य है तथा इसकी सत्यता की पुष्टि निम्न प्रयोग से होती है।

इस प्रयोग में एक पतली झिरी (रेखा-छिद्र) से सूर्य का प्रकाश गुजारकर एक बारीक किरण पुंज प्राप्त करते हैं तथा इसको उपरोक्त चित्र के अनुसार एक प्रिज्म (पहले प्रिज्म) से गुजारते हैं तथा इसके दूसरी ओर एक पर्दा रखकर उस पर विभिन्न रंगों की स्पेक्ट्रम प्राप्त कर लेते हैं। अब इस पर्दे में एक पतली झिरीं बनाकर उसमें से केवल कोई एक विशेष रंग (जैसे उक्त चित्र में हरा रंग) गुजारकर पर्दे के सामने रखे दूसरे प्रिज्म की सतह पर डालते हैं तथा दूसरे प्रिज्म के दूसरी ओर एक पर्दा रख देते हैं। इस पर्दे पर केवल हरा रंग ही प्राप्त होता है अन्य कोई नया रंग प्राप्त नहीं होता। इसी प्रकार पर्दे में बनी झिरीं से स्पेक्ट्रम का जो भी रंग गुजारते हैं दूसरे प्रिज्म से गुजरने के पश्चात् दूसरे पर्दे पर वही रंग प्राप्त होता है अन्य कोई नया रंग नहीं। यदि प्रिज्म प्रकाश को सात रंगों से रंगता होता तो दूसरे प्रिज्म से किसी भी रंग के गुजरने पर दूसरे पर्दे पर पुनः विभिन्न सात रंग प्राप्त होने चाहिए थे। परन्तु ऐसा नहीं होता है बल्कि जिस रंग का प्रकाश दूसरे प्रिज्म पर आकर गिरता है, इस प्रिज्म से अपवर्तन के फलस्वरूप वैसा ही रंग दूसरे पर्दे पर प्राप्त होता है। अतः निष्कर्ष निकलता है कि प्रिज्म सूर्य के प्रकाश को रंगता नहीं बल्कि “सूर्य का प्रकाश विभिन्न रंगों का सम्मिश्रण है, प्रिज्म उनको केवल अलग-अलग कर देता है।”
प्रश्न 3. मानव नेत्र का सचित्र वर्णन कीजिए तथा नेत्र द्वारा रेटिना पर प्रतिबिम्ब का बनना किरण आरेख द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर– मनुष्य की आँख लगभग गोलीय होती है। इसके प्रमुख भाग निम्न हैं-

(i) इद पटल– आँख बाहर से एक दृढ़ तथा अपारदर्शी श्वेत पर्त से बकी रहती है। इस वृढ़ पर्त को दृढ़ पटल कहते हैं।
(ii) कॉर्निया– दृढ़ पटल के सामने का भाग कुछ उभरा हुआ एवं पारवशीं होता है। इस भाग को कॉर्निया कहते हैं। कॉर्निया के पीछे एक पारदर्शी द्रव भरा रहता है, जिसे जलीय द्रव (Aqueous humour) कहते हैं।
(iii) आइरिस– कॉर्निया के ठीक पीछे एक रंगीन अपारदर्शी झिल्ली का पर्दा होता है जिसे आइरिस कहते हैं।
(iv) पुतली या नेत्र तारा– आइरिस के बीच में एक छोटा-सा छिद्र होता है। इस छिद्र को पुतली कहते हैं। पेशियों की सहायता से यह अपने आप छोटी-बड़ी होती रहती है।
(v) नेत्र–लेंस– पुतली के पीछे पारदर्शी पदार्थ का बना एक उत्तल लेंस होता है जो मांसपेशियों द्वारा लटका रहता है; इस लेंस को नेत्र-लेंस कहते हैं।
(vi) कांचाभ द्रव– नेत्र लेंस के पीछे की ओर एक पारदर्शी द्रव भरा रहता है जिसे कांचाभ द्रव कहते हैं।
(vii) रक्तक पटल या कोरोइड– दृढ़ पटल के नीचे एक काले रंग की झिल्ली होती है जिसे रक्तक पटल कहते हैं।
(viii) रेटिना– रक्तक पटल के नीचे आँख के सबसे अन्दर की ओर एक पारदर्शी झिल्ली होती है इसे रेटिना कहते हैं। यह तन्त्रिकाओं की बनी होती है।
(ix) पीत बिन्दु तथा अन्ध बिन्दु– रेटिना के लगभग बीच में एक पीला भाग होता है जिसे पीत बिन्दु कहते हैं। पीत बिन्दु पर बना प्रतिबिम्ब सबसे स्पष्ट दिखाई देता है। जिस स्थान से दृष्टि नाड़ियाँ मस्तिष्क को जाती हैं, उस बिन्दु को अन्ध बिन्दु कहते हैं। अन्ध बिन्दु पर बना प्रतिबिम्ब स्पष्ट दिखाई नहीं देता है।
आँख द्वारा प्रतिबिम्ब का बनना– आँख के सामने रखी वस्तु से चलने वाली प्रकाश किरणें, कॉर्निया तथा नेत्रोद से होती हुई नेत्र-लेंस पर आपतित होती हैं तथा नेत्र-लेंस से अपवर्तित होकर कांचाभ द्रव में होती हुई रेटिना पर पड़ती हैं, जहाँ वस्तु का वास्तविक व उल्टा प्रतिबिम्ब बन जाता है। दृक् तन्त्रिकाओं द्वारा प्रतिबिम्ब बनने का सन्देश मस्तिष्क में पहुँचता है जो अनुभव के आधार पर सीधा दिखाई देता है।

प्रश्न 4. निकट दृष्टि–दोष किसे कहते हैं? इस दोष का निवारण किस प्रकार किया जाता है? किरण आरेख खींचकर स्पष्ट कीजिए।
अथवा निकट दृष्टि–दोष किसे कहते हैं? इस दोष के क्या कारण हैं? एक किरण आरेख खींचकर वर्णन कीजिए कि उस दोष को कम कैसे किया जा सकता है?
उत्तर– निकट दृष्टि–दोष– यदि नेत्र पास की वस्तु को तो स्पष्ट देख लेता है परन्तु एक निश्चित दूरी से अधिक दूर की वस्तु को स्पष्ट नहीं देख पाता है तो उस नेत्र में निकट दृष्टि-दोष होता है। यह दोष निम्न दो कारणों से हो सकता है-
(i) नेत्र लेंस और रेटिना के बीच की दूरी बढ़ जाये अर्थात् आँख के गोलक का व्यास बढ़ जाये।
(ii) नेत्र लेंस के पृष्ठों की वक्रता त्रिज्या बढ़ जाये जिससे उसकी फोकस दूरी कम हो जाये

दोष का निवारण– इस दोष को दूर करने के लिए एक ऐसे अवतल लेंस (अपसारी) का प्रयोग करते हैं जिससे कि दूर स्थित (अनन्त) वस्तु से चलने वाली किरणें इस लेंस से निकलने पर नेत्र के दूर बिन्दु F’ से चली हुई प्रतीत हों तब ये किरणें नेत्र में अपवर्तित होकर रेटिना पर मिलती हैं जिससे दूर रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटिना पर बन जाता है तथा आँख को वस्तु स्पष्ट दिखाई देने लगती है। इस प्रकार इस दोष का निवारण हो जाता है। प्रयुक्त अवतल लेंस की फोकस दूरी, दोषयुक्त आँख के दूरस्थ बिन्दु की दूरी के बराबर होनी चाहिए।

प्रश्न 5. दूर (दीर्घ) दृष्टि–दोष किसे कहते हैं? इस दोष का निवारण किस प्रकार किया जाता है? किरण आरेख द्वारा समझाइए।
उत्तर– यदि नेत्र को दूर की वस्तु तो स्पष्ट दिखाई देती है लेकिन निकट (25 cm दूर) की वस्तु स्पष्ट दिखाई नहीं देती, तो नेत्र में दूर दृष्टि- दोष होता है। यह दोष निम्नलिखित दो कारणों से हो सकता है-
(i) नेत्र लेंस और रेटिना के बीच की दूरी कम हो जाये अर्थात् आँख के गोलक का व्यास कम हो जाये।
(ii) नेत्र लेंस की फोकस दूरी अधिक हो जाये।
दोष का निवारण– इस दोष को दूर करने के लिए उचित फोकस दूरी का उत्तल लेंस प्रयोग में लाया जाता है जिससे 25 cm दूर (बिन्दु N) स्थित वस्तु का प्रतिविम्ब दोषी आँख के निकट बिन्दु पर बन जाये। फलतः दोषी नेत्र उसे देख सकेगा।
प्रश्न 6. प्रिज्म द्वारा श्वेत प्रकाश के वर्ण विक्षेपण को सचित्र समझाइए।
अथवा प्रिज्म द्वारा श्वेत प्रकाश के वर्ण विक्षेपण का वर्णन कीजिए। इसका नामांकित चित्र बनाइए।
अथवा आवश्यक किरण आरेख खींचकर प्रिज्म की सहायता से पुष्टि कीजिए कि सूर्य का श्वेत प्रकाश विभिन्न रंगों का सम्मिश्रण है।
अथवा किसी प्रिज्म से श्वेत प्रकाश के विक्षेपण की क्रिया चित्र बनाकर समझाइए।
उत्तर– वर्ण विक्षेपण– यदि हम एक पतले छिद्र से आते हुए श्वेत प्रकाश (सूर्य के प्रकाश) को एक काँच के प्रिज्म से गुजारें तो श्वेत प्रकाश के अपने अवयवी रंगों में विभाजित होने की प्रक्रिया प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण (dispersion of light) कहलाती है। जब सूर्य के प्रकाश की कोई किरण किसी प्रिज्म में से गुजरती है तो यह प्रिज्म के आधार की ओर झुकने के साथ-साथ विभिन्न रंगों में विभाजित हो जाती है। इस प्रकार उत्पन्न विभिन्न रंगों के प्रकाश के समूह को वर्णक्रम (spectrum) कहते हैं।

इस वर्णक्रम में विभिन्न रंगों का क्रम प्रिज्म के आधार की ओर से क्रमशः बैंगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी व लाल होता है। इससे ज्ञात होता है कि सूर्य का प्रकाश विभिन्न रंगों के प्रकाश से मिलकर बना है। प्रिज्म इन रंगों के प्रकाश को अलग-अलग कर देता है क्योंकि प्रिज्म का अपवर्तनांक भिन्न-भिन्न रंगों के प्रकाश के लिए अलग-अलग होता है। अतः सूर्य के प्रकाश के वर्णक्रम में विभिन्न वर्ण दिखाई देते हैं। इस प्रयोग से सिद्ध होता है कि सूर्य का प्रकाश विभिन्न रंगों के प्रकाश का सम्मिश्रण है।