UP Board Solution of Class 10 Social Science [सामाजिक विज्ञान] History [इतिहास] Chapter 2 भारत में राष्ट्रवाद (Bharat Me Rashtravaad) लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Notes
प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 10वीं की सामाजिक विज्ञान ईकाई 1 इतिहास भारत और समकालीन विश्व-2 खण्ड-1 घटनायें और प्रक्रियायें के अंतर्गत चैप्टर 2 भारत में राष्ट्रवाद पाठ के लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। जो की UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करेंगे।
Subject | Social Science [Class- 10th] |
Chapter Name | भारत में राष्ट्रवाद |
Part 3 | इतिहास (History) |
Board Name | UP Board (UPMSP) |
Topic Name | घटनायें और प्रक्रियायें |
भारत में राष्ट्रवाद Bharat Me Rashtravaad
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. गाँधी जी ने प्रस्तावित रौलट एक्ट के विरुद्ध एक राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह आंदोलन क्यों आरंभ किया?
उत्तर- महात्मा गाँधी ने अपनी पुस्तक हिन्द स्वराज (1909 ई.) में कहा था कि ब्रिटिश शासन भारतीयों के सहयोग से स्थापित हुआ था और यह शासन इसी सहयोग के कारण चल पा रहा है। अगर भारत के लोग अपना सहयोग वापस ले लें तो सालभर के भीतर ब्रिटिश सरकार ढह जाएगी और स्वराज की स्थापना हो जाएगी। गाँधी जी ने 1919 ई. में प्रस्तावित रौलट एक्ट के विरुद्ध एक राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह आंदोलन चलाने का निर्णय लिया। भारतीय सदस्यों के भारी विरोध के बावजूद इस कानून को लेजिस्लेटिव असेम्बली में जल्दबाजी में पारित कर दिया गया। इस कानून के माध्यम से सरकार को राजनीतिक गतिविधियों को कुचलने और राजनीतिक कैदियों को दो वर्ष तक बिना मुकदमा चलाए जेल में बंद रखने का अधिकार मिल गया था। महात्मा गाँधी ऐसे अन्यायपूर्ण कानूनों के विरुद्ध अहिंसक ढंग से नागरिक अवज्ञा चाहते थे। इससे 6 अप्रैल को एक हड़ताल शुरू हो गयी।
प्रश्न 2. सम्पन्न किसान समुदायों के सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय भाग लेने के लिए तीन कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- सम्पन्न किसान समुदायों के सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय भाग लेने के निम्नलिखित कारण थे-
- गाँवों में सम्पन्न किसान समुदाय जैसे गुजरात के पाटीदार और उत्तर प्रदेश के जाट सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय थे। व्यावसायिक फसलों की खेती करने के कारण व्यापार में मंदी और गिरती कीमतों से वे परेशान थे। जब उनकी नकद आय खत्म होने लगी तो उनके लिए सरकारी लगान चुकाना मुश्किल हो गया। अतः संपन्न किसान वर्ग आंदोलन में सक्रिय हो गया।
- ब्रिटिश सरकार ने लगान की दरें बढ़ा दीं जिसके कारण किसानों में असन्तोष फैल गया। ऐसे में किसान सविनय अवज्ञा आंदोलन में शामिल हुए। उनके लिए स्वराज की लड़ाई भारी लगान के खिलाफ लड़ाई थी।
- सम्पन्न किसान समुदाय ने अपने समुदाय को एकजुट किया और कई बार अनिच्छुक सदस्यों को बहिष्कार के लिए विवश किया।
प्रश्न 3. महात्मा गाँधी की ‘नमक यात्रा’ का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर – अपने 78 विश्वस्त क्रांतिकारियों के साथ महात्मा गाँधी ने नमक यात्रा शुरू कर दी। यह यात्रा साबरमती में महात्मा गाँधी के आश्रम से 240 किमी दूर दांडी नामक गुजराती तटीय कस्बे में जाकर खत्म होनी थी। गाँधी जी की टोली ने 24 दिन तक प्रतिदिन लगभग 10 मील का सफर तय किया। गाँधी जी जहाँ भी रुकते हजारों लोग उन्हें सुनने आते। इन सभाओं में गाँधी जी ने स्वराज का अर्थ स्पष्ट किया तथा संदेश दिया कि लोग अंग्रेजों की शांतिपूर्वक अवज्ञा करें अर्थात् अंग्रेजों का कहा न मानें। 6 अप्रैल, 1930 ई. को गाँधी जी दाण्डी पहुँचे। वहाँ उन्होंने समुद्र का पानी उबालकर नमक बनाया। इस प्रकार गाँधी जी और उन 78 सहयोगियों ने अंग्रेजों के नमक कानून को तोड़कर सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ किया।
प्रश्न 4. बागान मजदूरों के असहयोग आंदोलन में भाग लेने के क्या कारण थे?
उत्तर- बागान मजदूरों ने निम्न कारणों से असहयोग आंदोलन में भाग लिया-
- काम अधिक लिए जाने से – बागान मजदूरों से काम अधिक लिया जाता था और वेतन बहुत कम दिया जाता था, इससे मजदूरों में असंतोष था।
- मजदूरों को बंधुआ मजदूरों की तरह रखे जाने के कारण – बागान मजदूरों को बंधुआ मजदूर की तरह रखा जाता था। उनसे सिर्फ काम लिया जाता था, उन्हें बागान से बाहर जाने की स्वतंत्रता नहीं थी, यदि मजदूर बागान से बाहर जाने की कोशिश करते थे, तो उन्हें दण्ड दिया जाता था।
- बागान से बाहर जाने पर रोकने के कारण – 1859 ई. के इंग्लैण्ड एमिग्रेशन एक्ट के तहत बागान में कार्यरत मजदूरों को बागान से बाहर जाने से रोक दिया गया था।
प्रश्न 5. अल्लूरी सीताराम राजू ने उपनिवेशवादी शासन के विरोधियों को प्रेरित करने में क्या भूमिका निभाई?
उत्तर- आंध्रप्रदेश के आदिवासी क्षेत्र में रहने वाले अल्लूरी सीताराम राजू ने गुंडेम विद्रोहियों को नेतृत्व प्रदान किया। बहुमुखी प्रतिमा के धनी राजू खगोलीय घटनाओं का सटीक अनुमान लगाने में सक्षम थे, साथ ही बीमार लोगों का उपचार करते थे। महात्मा गाँधी के विचार और असहयोग आंदोलन ने उन्हें प्रभावित किया। उन्होंने लोगों को खादी कपड़े प्रयोग में लाने और शराब को छोड़ने की प्रेरणा दी। लेकिन देश की स्वतंत्रता के लिए अहिंसा के बजाय बल प्रयोग को आवश्यक मानते थे।
प्रश्न 6. गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया एक्ट, 1919 के दो मुख्य दोष बताइए।
अथवा मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार की विफलता के कारण बताइए।
उत्तर- इस एक्ट के दो प्रमुख दोष (त्रुटियाँ) इस प्रकार हैं-
(ⅰ) शासकीय विषयों का विभाजन अवैज्ञानिक ढंग से किया जाना – इस एक्ट में शासकीय विषयों का विभाजन अवैज्ञानिक ढंग से किया गया था। कृषि विभाग को हस्तांतरित विषय की श्रेणी में आवंटित करके एक मंत्री के सुपुर्द किया गया था जबकि सिंचाई, बिजली एवं राजस्व प्रबन्ध आदि विषय, जिनका कृषि से घनिष्ठ सम्बन्ध था, सरकार के आरक्षित भाग में रखे गए थे। ऐसी स्थिति में कृषि मंत्री कृषि संबंधी योजनाओं एवं नीतियों को भला कैसे क्रियान्वित कर सकता था।
(ii) औपनिवेशिक शासन को दो भागों में बाँटा जाना – 1919 के एक्ट द्वारा भारत के औपनिवेशिक शासन को दो भागों में बाँटा गया था जिसमें एक उत्तरदायी था तथा दूसरा अनुत्तरदायी। इस अनुचित कार्य विभाजन से सरकार किस प्रकार ठीक ढंग से काम कर सकती थी।
प्रश्न 7. मुस्लिम साम्प्रदायिकता के विकास में अंग्रेजों की भूमिका स्पष्ट कीजिए। मुस्लिम साम्प्रदायिकता का जन्म किस प्रकार हुआ? अथवा
उत्तर- (i) औपनिवेशिक शासन के दौरान अंग्रेज सरकार ने राष्ट्रीय आंदोलन को दबाने के लिए साम्प्रदायिक आधार पर देश को बाँटने का प्रयास किया।
(ii) अंग्रेजों द्वारा भारत में साम्प्रदायिकता का बीज बोने के प्रयास स्वरूप मुस्लिम समाज में एक ऐसा वर्ग उत्पन्न हुआ जो राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय काँग्रेस से पृथक रहने लगा और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को हिन्दुओं का आंदोलन बताने लगा।
(iii) मुसलमानों को राष्ट्रीय आंदोलन से पृथक रखने का सर सैय्यद अहमद खाँ ने विशेष प्रयास किया। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए ‘पैट्रियट्स एसोसिएशन’, ‘अवर इण्डिया मुहम्मडन एसोसिएशन’ आदि की स्थापना की। अलीगढ़ में ‘मुहम्मडन ओरियंटल कॉलेज’ की स्थापना की गयी, यही आगे चलकर ‘अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी’ बना।
(iv) अंग्रेज सरकार हिन्दुओं और मुसलमानों को सांप्रदायिक आधार पर बाँटकर राष्ट्रवाद की भावना और राष्ट्रीय आंदोलन को कमजोर करना चाहती थी। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ‘मुस्लिम लीग’ की स्थापना की गयी। मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के राजनीतिक हितों की रक्षा करने के उद्देश्य से पृथक निर्वाचन क्षेत्र की माँग की।
प्रश्न 8. पूना पैक्ट पर किसके हस्ताक्षर हुए? उसकी दो शर्तें लिखिए।
उत्तर – डॉ. अम्बेडकर ने 1930 में दलितों को दलित वर्ग एसोसिएशन में संगठित किया। दलितों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों के प्रश्न पर दूसरे गोलमेज सम्मेलन में महात्मा गाँधी के साथ उनका काफी विवाद हुआ। जब ब्रिटिश सरकार ने अम्बेडकर की माँग मान ली तो गाँधीजी आमरण अनशन पर बैठ गए। उनका मत था कि दलितों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों की व्यवस्था से समाज में उनके एकीकरण की प्रक्रिया धीमी पड़ जाएगी। अंततः अम्बेडकर ने गाँधीजी की राय मान ली और सितम्बर 1932 में एक पैक्ट पर हस्ताक्षर कर दिए जिसको हम पूना पैक्ट के नाम से जानते हैं।
पूना पैक्ट की दो शर्तें इस प्रकार हैं-
(i) प्रांतीय एवं केन्द्रीय विधायी परिषदों में दलितों के लिए आरक्षित सीटें – इस पैक्ट के तहत प्रान्तीय एवं केन्द्रीय विधायी परिषदों में आरक्षित सीटें मिल गयीं यद्यपि उनके लिए मतदान सामान्य निर्वाचन क्षेत्रों में ही होता था।
(ii) आरक्षित सीदों का बढ़ाना – इसके तहत् दलितों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या प्रांतीय विधानमण्डलों में 71 से बढ़ाकर 147 और केन्द्रीय विधायिका में कुल सीटों का 18 प्रतिशत कर दी गयी।
प्रश्न 9. भारतीय राष्ट्रवाद के उदय के तीन कारणों को लिखिए।
उत्तर – वियतनाम और दूसरे उपनिवेशों की तरह भारत में भी आधुनिक राष्ट्रवाद के उदय की घटना उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से भी घनिष्ठ रूप से जुड़ी हुई थी। भारतीय लोग औपनिवेशिक शासकों के विरुद्ध संघर्ष के दौरान आपसी एकता को भलीभाँति जानने लगे थे। भारतीय राष्ट्रवाद के उदय के तीन प्रमुख कारण इस प्रकार हैं-
(i) देश में सामाजिक तथा धार्मिक आन्दोलन।
(ii) भारत की राजनीतिक एकता के प्रति लोगों की भावना।
(iii) पश्चिमी शिक्षा का भारतीयों पर प्रभाव।
प्रश्न 10. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने वाले किन्हीं तीन नेताओं के नाम लिखिए।
उत्तर – भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने वाले प्रमुख नेता हैं- मोहनदास करमचंद गाँधी, लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, विपिन चन्द्र पाल,
सुभाष चन्द्र बोस, गोपाल कृष्ण गोखले आदि।
प्रश्न 11. प्रथमः स्वतंत्रता संग्राम की असफलता के लिए उत्तरदायी कोई तीन कारण लिखिए।
उत्तर- प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की असफलता के लिए उत्तरदायी कारण हैं- (i) क्रांति का देशव्यापी न होना, (ii) प्रभावी नेतृत्व का न होना, (iii) ब्रिटिश और आंदोलनकारियों की संख्या में अन्तर, (iv) आंदोलनकारियों के पास संसाधनों का अभाव, (v) आंदोलनकारियों में सामंजस्य का अभाव और बहादुरशाह के प्रति द्वेष।
प्रश्न 12. महात्मा गाँधी द्वारा चलाए गए किन्हीं तीन आंदोलनों के नाम लिखिए।
उत्तर – गाँधी जी द्वारा भारत में संचालित प्रमुख आंदोलन इस प्रकार हैं- (i) चंपारण सत्याग्रह, (ii) खेड़ा आंदोलन, (iii) रॉलट एक्ट का विरोध, (iv) असहयोग आंदोलन, (v) नमक सत्याग्रह, (vi) अस्पृश्यता विरोधी आंदोलन, (vii) भारत छोड़ो आंदोलन।
प्रश्न 13. भारत छोड़ो आंदोलन के किन्हीं तीन कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- (i) आंदोलन का तात्कालिक कारण क्रिप्स मिशन की समाप्ति / मिशन के किसी अंतिम निर्णय पर न पहुँचना था।
(ii) द्वितीय विश्व युद्ध में भारत का बिना शर्त समर्थन करने की मंशा को भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस द्वारा ठीक ढंग से न समझा जाना।
(iii) ब्रिटिश विरोधी भावना तथा पूर्ण स्वतंत्रता की माँग ने भारतीय जनमानस में लोकप्रियता प्राप्त कर ली थी।
(iv) द्वितीय विश्व युद्ध के परिणामस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति खराब हो गयी थी।.
प्रश्न 14. असहयोग आंदोलन के मुख्य कारण क्या थे?
उत्तर- (i) विश्व युद्ध के दौरान भारतीय सैनिक ब्रिटिश. पक्ष से लड़े और भारतीय समर्थन के प्रतिफल में ब्रिटिश सरकार भारत को आजादी दे सकती थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया।
(ii) प्रथम विश्व युद्ध के बाद, देश में उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि हुई। किसानों को अपने कृषि उत्पादों के लिए आवश्यक मजदूरी नहीं मिल पा रही थी, जिसके परिणामस्वरूप लोगों में ब्रिटिश सरकार के प्रति नाराजगी थी।
(iii) रॉलट एक्ट, जलियाँवाला बाग हत्याकांड और खिलाफत आंदोलन के प्रभाव ने असहयोग आंदोलन के लिए प्रेरित किया।
प्रश्न 15. महात्मा गाँधी ने राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम में सत्याग्रह एवं अहिंसा का किस प्रकार प्रयोग किया? कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर- देश की स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने देशवासियों को सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखाकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ मुहिम चलाई। राजनीतिक और सामाजिक उन्नति के उनके अहिंसक विरोधी सिद्धान्त के लिए उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त हुई। गांधीजी सत्य को ही अपना परमेश्वर मानते थे। उनके अहिंसा का अभिप्राय किसी को भी मन, कर्म, वचन से कष्ट न पहुँचाना है। उनका मानना था कि अहिंसा के बिना सत्य की खोज करना संभव नहीं है। सत्य साध्य है तो अहिंसा साधन है। गाँधी जी ने अपने सभी आंदोलनों यथा असहयोग, सत्याग्रह, सविनय अवज्ञा आदि में सत्य व अहिंसा के मार्ग का अवलम्बन किया। अंग्रेजों से देश को आजाद कराने के लिए उन्होंने किसी भी तरह की हिंसा का सहारा नहीं लिया।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में सविनय अवज्ञा आंदोलन के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर- 1929 ई. के अपने लाहौर अधिवेशन में कांग्रेस ने पूर्ण स्वतंत्रता की माँग को अपना आदर्श घोषित किया, परंतु यह आदर्श तब तक पूरा नहीं हो सकता था जब तक ब्रिटिश सरकार का जोर-शोर से विरोध न किया जाए। इस तरह महात्मा गांधी के नेतृत्व में 1930 ई. में कांग्रेस ने सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया। इस आंदोलन का श्रीगणेश महात्मा गांधी की दांडी यात्रा और नमक कानूनों को तोड़कर शुरू किया गया। कई उतार-चढ़ाव के साथ यह आंदोलन 1934 ई. तक चलता रहा। इस आंदोलन को 1934 ई. में वापस ले लिया गया फिर भी इसने राष्ट्रीय आंदोलन पर अपने गहरे प्रभाव छोड़े-
(i) सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान लोगों का ब्रिटिश शासन से विश्वास जाता रहा और वे ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध लड़ने के लिए एकजुट होने लगे।
(ii) सविनय अवज्ञा आंदोलन के चलाए जाने के साथ भारत में क्रांतिकारी आंदोलन फिर से जागृत हो गए। इसी काल में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त आदि क्रांतिकारी देशभक्तों ने दिल्ली में असेंबली में दो बम फेंके।
(iii) इस आंदोलन के दौरान भारतीयों को ब्रिटिश सरकार की कठोर यातनाओं को सहना पड़ा परंतु अपने संघर्ष से जो अनुभव उन्हें मिला वह अमूल्य था। इस अनुभव ने आगे आने वाले स्वतंत्रता संघर्ष में उनका बड़ा मार्गदर्शन किया और एक सफल संघर्ष के दाँव-पेंच समझा दिए।
प्रश्न 2. गांधीजी की नमक यात्रा का वर्णन कीजिए।
या नमक सत्याग्रह क्यों प्रारम्भ किया गया था? उसका संक्षिप्त विवरण दीजिए।
या 1930 में महात्मा गांधी ने नमक को अपने आन्दोलन का आधार क्यों बनाया? इस आन्दोलन का क्या प्रभाव पड़ा?
या सविनय अवज्ञा आन्दोलन कब चलाया गया था? इसके प्रमुख तीन कारणों का उल्लेख कीजिए।
या नमक सत्याग्रह से आप क्या समझते हैं?
या सविनय अवज्ञा आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? या सविनय अवज्ञा आन्दोलन का क्या अर्थ है? इसे क्यों चलाया गया? इसका क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर – 31 जनवरी, 1930 को गांधीजी ने वायसराय इरविन को एक पत्र लिखा। इस पत्र में उन्होंने 11 माँगों का उल्लेख किया था। इन माँगों के जरिए वे समाज के सभी वर्गों को जोड़ना चाहते थे। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण माँग नमक कर को खत्म करने के बारे में थी। नमक का अमीर-गरीब सभी इस्तेमाल करते थे। यह भोजन का एक अभिन्न हिस्सा था। इसलिए नमक पर कर और उसके उत्पादन पर सरकारी इजारेदारी को महात्मा गांधी ने ब्रिटिश सरकार का सबसे दमनात्मक पहलू बताया था।
महात्मा गांधी का यह पत्र एक चेतावनी की तरह था। उन्होंने लिखा था कि यदि 11 मार्च तक इन माँगों को नहीं माना गया तो कांग्रेस सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू कर देगी। इरविन झुकने को तैयार नहीं थे। महात्मा गांधी ने अपने 78 विश्वस्त वॉलंटियरों के साथ नमक यात्रा शुरू कर दी। यह यात्रा साबरमती में गांधी जी के आश्रम से 240 किलोमीटर दूर दांडी नामक गुजराती तटीय कस्बे में जाकर खत्म होनी थी। गांधीजी की टोली ने 24 दिन तक हर रोज लगभग 10 मील का सफर तय किया। गांधीजी जहाँ भी रुकते हजारों लोग उन्हें सुनने आते। इन सभाओं में गांधीजी ने स्वराज का अर्थ स्पष्ट किया और आह्वान किया कि लोग शांतिपूर्वकं अंग्रेजों की अवज्ञा करें। 6 अप्रैल को वे दांडी पहुँचे और उन्होंने समुद्र का पानी उबालकर नमक बनाना शुरू कर दिया। यह कानून का उल्लंघन था।
हज़ारों लोगों ने नमक कानून तोड़ा और सरकारी नमक कारखाने के सामने प्रदर्शन किए। आंदोलन फैला तो विदेशी कपड़ों का बहिष्कार किया जाने लगा। शराब की दुकानों की पिकेटिंग होने लगी। किसानों ने लगान और चौकीदारी कर चुकाने से इनकार कर दिया। गाँवों में तैनात कर्मचारी इस्तीफे देने लगे।
इन घटनाओं से चिंतित औपनिवेशिक सरकार कांग्रेसी नेताओं को गिरफ्तार करने लगी। सरकार ने दमन चक्र चलाया तो गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन वापस ले लिया।
प्रश्न 3. भारत में ‘राष्ट्रवाद’ की भावना पनपने में किन-किन कारकों का योगदान था?
‘या भारतीय ‘राष्ट्रवाद’ के उदय के तीन कारणों को लिखिए।
या भारत में ‘राष्ट्रवाद’ के उदय के प्रमुख कारण क्या थे?
या भारत में राष्ट्रवाद के उदय के कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – राष्ट्रवाद की भावना तब पनपती है जब लोग ये महसूस करने लगते हैं कि वे एक ही राष्ट्र के अंग हैं। तब वे एक-दूसरे को एकता के सूत्र में बाँधने वाली कोई साझा बात ढूँढ़ लेते हैं। सामूहिक अपनेपन की यह भावना आंशिक रूप से संयुक्त संघर्षों से पैदा हुई थी। इतिहास व साहित्य, लोक कथाएँ व गीत, चित्र व प्रतीक सभी ने राष्ट्रवाद को साकार करने में अपना योगदान दिया था। भारत में राष्ट्रवाद की भावना पनपने में योगदान देने वाले कुछ प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं-
(i) 20वीं सदी में राष्ट्रवाद के विकास के साथ भारत की पहचान भी भारत माता की छवि का रूप लेने लगी। यह तस्वीर पहली बार बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने बनाई थी। 1870 के दशक में उन्होंने मातृभूमि की स्तुति के रूप में ‘वंदे मातरम्’ गीत लिखा था। बाद में इसे उन्होंने अपने उपन्यास ‘आनंदमठ’ में शामिल कर लिया। यह गीत बंगाल में स्वदेशी आंदोलन में खूब गाया गया। स्वदेशी आंदोलन की प्रेरणा से अबनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत माता की विख्यात छवि को चित्रित किया। इस पेंटिंग में भारत माता को एक संन्यासिनी के रूप में दर्शाया गया है। इस मातृछवि के प्रति श्रद्धा को राष्ट्रवाद में आस्था का प्रतीक माना जाने लगा।
(ii) राष्ट्रवाद का विचार भारतीय लोक कथाओं को पुनर्जीवित करने के आंदोलन से भी मज़बूत हुआ। 19वीं सदी के अंत में राष्ट्रवादियों ने भाटों व चारणों द्वारा गाई-सुनाई जाने वाली लोक कथाओं को दर्ज करना शुरू कर दिया। उनका मानना था कि यहीं कहानियाँ हमारी परंपरागत संस्कृति की तस्वीर पेश करती हैं जो बाहरी ताकतों के प्रभाव से भ्रष्ट और दूषित हो चुकी हैं। अपनी राष्ट्रीय पहचान को ढूँढ़ने और अपने अतीत में गौरव का भाव पैदा करने के लिए लोक परंपरा को बचाकर रखना जरूरी था।
(iii) राष्ट्रवादी नेता लोगों में राष्ट्रवाद की भावना भरने के लिए चिह्नों और प्रतीकों के बारे में जागरूक होते गए। 1921 ई. तक गांधीजी ने भी स्वराज का झंडा तैयार कर लिया था। यह तिरंगा था (सफेद, हरा और लाल)। इसके मध्य में गांधीवाद प्रतीक चरखे को जगह दी गई जो आत्म-सहायता का प्रतीक था। जुलूसों में यह झंडा थामे चलना शासन के प्रति अवज्ञा का संकेत था।
(iv) इतिहास की पुनर्व्याख्या राष्ट्रवाद की भावना पैदा करने का एक और साधन था। अंग्रेज़ों की नज़र में भारतीय पिछड़े हुए और आदिम लोग थे जो अपना शासन खुद नहीं सँभाल सकते। इसके जवाब में भारत के लोग अपनी महान उपलब्धियों की खोज में अतीत की ओर देखने लगे। उन्होंने इस गौरवमयी प्राचीन युग के बारे में लिखना शुरू किया जब कला और वास्तुशिल्प, विज्ञान और गणित, धर्म और संस्कृति, कानून और दर्शन, हस्तकला और व्यापार फल-फूल रहे थे। इस राष्ट्रवादी इतिहास में पाठकों को अतीत में भारत की महानता व उपलब्धियों पर गर्व करने और ब्रिटिश शासन के तहत दुर्दशा से मुक्ति के लिए संघर्ष का मार्ग अपनाने का आह्वान किया जाता था। इस प्रकार राष्ट्रवाद की भावना फैलाने में विभिन्न तत्त्वों ने योगदान दिया।
प्रश्न 4. गांधीजी ने असहयोग आन्दोलन क्यों प्रारम्भ किया? उनके द्वारा यह आन्दोलन वापस लेने के प्रमुख कारण क्या थे?
या असहयोग आन्दोलन क्यों प्रारम्भ किया गया? आन्दोलनकारियों के चार कार्य लिखिए।
या महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए असहयोग आन्दोलन का क्या अर्थ है? इसके कारण क्या थे?
या असहयोग आन्दोलन किसने चलाया था? इसके किन्हीं तीन कारणों का उल्लेख कीजिए।
या असहयोग आन्दोलन के मुख्य कारण क्या थे?
या भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने वाले किन्हीं तीन नेताओं के नाम बताइए।
या असहयोग आन्दोलन कब चलाया गया? इस आन्दोलन के किन्हीं दो कारणों की विवेचना कीजिए।
या असहयोग आन्दोलन के कारण तथा उसके प्रभावों का उल्लेख करें।
उत्तर. कांग्रेस ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में 1920 ई. में असहयोग आन्दोलन शुरू करने का निर्णय लिया। यह एक क्रान्तिकारी कदम था। कांग्रेस ने पहली बार सक्रिय कार्यवाही अपनाने का निश्चय किया। इस क्रान्तिकारी
परिवर्तन के अनेक कारण थे। अब तक महात्मा गांधी ब्रिटिश सरकार को न्यायप्रियता में विश्वास करते थे और उन्होंने प्रथम विश्वयुद्ध में ब्रिटिश सरकार को पूरा सहयोग दिया था, किन्तु जलियाँवाला बाग नरसंहार, पंजाब में मार्शल लॉ और हण्टर कमेटी की जाँच ने उनका अंग्रेजों के न्याय से विश्वास उठा दिया। उन्होंने अनुभव किया कि अब पुराने तरीके छोड़ने होंगे। कांग्रेस से उदारवादियों के अलग हो जाने के बाद कांग्रेस पर पूरी तरह से गरमपन्थियों का नियन्त्रण हो गया। उधर तुर्की और मित्रराष्ट्रों में सेवर्स की सन्धि की कठोर शक्तों
से मुसलमान भी रुष्ट थे। देश में अंग्रेजों के प्रति बड़ा असन्तोष था। महात्मा गांधी ने मुसलमानों के खिलाफत आन्दोलन में उनका साथ दिया तथा असहयोग आन्दोलन छेड़ने का विचार किया।
सितम्बर, 1920 ई. में कलकत्ता में लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में महात्मा गांधी ने असहयोग आन्दोलन का प्रस्ताव रखा। सी.आर. दास, बी.सी. पाल, ऐनी बेसेण्ट, जिन्ना और मालवीय जी ने इसका विरोध किया, लेकिन दिसम्बर, 1920 ई. में कांग्रेस के नियमित अधिवेशन में असहयोग का प्रस्ताव बहुमत से पारित हो गया तथा विरोधियों ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया।
इस आन्दोलन के मुख्य बिन्दु थे- खिताबों तथा मानव पदों का त्याग, स्थानीय निकायों में नामजदगी वाले पदों से इस्तीफा, सरकारी दरबारों या सरकारी अफसरों के सम्मान में आयोजित उत्सवों में भाग न लेना, बच्चों को स्कूलों से हटा लेना, अदालतों का बहिष्कार, फौज में भरती का बहिष्कार आदि। असहयोगियों के लिए अहिंसा तथा सत्य का पालन करना आवश्यक था। गांधी जी को विश्वास था कि इस आन्दोलन से एक वर्ष में ‘स्वराज’ की प्राप्ति हो जाएगी।
इस आन्दोलन का भारतीय जनता पर गहरा प्रभाव पड़ा। विदेशी वस्तुओं की होली जलाई गई। बहुत-से छात्रों ने स्कूल तथा कॉलेजों का बहिष्कार किया। महात्मा गांधी ने ‘केसर-ए-हिन्द’ का खिताब छोड़ दिया। 13 नवम्बर, 1921 को प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत आगमन के समय बम्बई (मुम्बई) में हड़ताल रखी गई। दिसम्बर, 1921 में प्रिंस के कोलकाता आगमन पर भी हड़ताल रखी गई। ब्रिटिश सरकार ने इस आन्दोलन को कुचलने के लिए व्यापक दमन चक्र चलाया। महात्मा गांधी के अलावा सभी कांग्रेसी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। चौरी-चौरा की एक अप्रिय घटना के कारण महात्मा गांधी ने यह आन्दोलन 1922 ई. में वापस ले लिया।
प्रश्न 5. महात्मा गांधीजी के सत्याग्रह पर एक निबन्ध लिखिए।
या भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में गांधी जी के योगदान का मूल्यांकन कीजिए।
या भारत छोड़ो आन्दोलन पर एक संक्षिप्त निबंध लिखिए।
या महात्मा गांधी ने राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम में सत्याग्रह एवं अहिंसा का किस प्रकार प्रयोग किया? कोई दो उदाहरण दीजिए।
या महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए किन्हीं तीन आन्दोलनों के नाम लिखिए।
उत्तर – महात्मा गांधी अप्रैल, 1893 में दक्षिण अफ्रीका गये थे तथा जनवरी, 1915 में वे भारत लौटे। उन्होंने एक नए तरह के जनांदोलन के रास्ते पर चलते हुए वहाँ की नस्लभेदी सरकार से सफलतापूर्वक लोहा लिया था। इस पद्धति को वे सत्याग्रह कहते थे। भारत आने के बाद गांधीजी ने कई स्थानों पर सत्याग्रह आन्दोलन चलाया। 1917 ई. में उन्होंने बिहार के चम्पारण इलाके का दौरा किया और दमनकारी बागान व्यवस्था के खिलाफ किसानों को संघर्ष के लिए प्रेरित किया। 1918 ई. में उन्होंने गुजरात के खेड़ा जिले के किसानों की मदद के लिए सत्याग्रह का आयोजन किया। फसल खराब हो जाने और प्लेग की महामारी के कारण खेड़ा जिले के किसान लगान चुकाने की हालत में नहीं थे। वे चाहते थे कि लगान वसूली में ढील दी जाए। 1918 ई. में ही गांधीजी सूती कपड़ा कारखानों के मजदूरों के बीच सत्याग्रह आन्दोलन चलाने अहमदाबाद जा पहुँचे।
इस कामयाबी से उत्साहित गांधीजी ने 1919 ई. में प्रस्तावित रॉलेट ऐक्ट के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह आन्दोलन चलाने का फैसला लिया। भारतीय सदस्यों के भारी विरोध के बावजूद इस कानून को इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल ने बहुत जल्दबाजी में पारित कर दिया था। इस कानून के जरिए सरकार को राजनीतिक गतिविधियों को कुचलने और राजनीतिक कैदियों को दो साल तक बिना मुकदमा चलाए जेल में बंद रखने को अधिकार मिल गया था। महात्मा गांधी ऐसे अन्यायपूर्ण कानूनों के खिलाफ अहिंसक ढंग से नागरिक अवज्ञा चाहते थे।
रॉलेट सत्याग्रह में सफलता मिलने के बाद उन्होंने असहयोग आन्दोलन शुरु किया। यह आन्दोलन 1 अगस्त, 1920 को शुरु हुआ था और इसके तहत ब्रिटिश सरकार के खिलाफ असहयोग जताने के लिए लोगों से अपील की थी। इस आन्दोलन में स्कूल, कॉलेज, न्यायालय न जाएँ और न ही कर चुकाएँ, ये सारी चीजें लोगों को करने के लिए कहा गया था। तत्पश्चात् इस आन्दोलन का स्वरूप सविनय अवज्ञा आन्दोलन में परिवर्तित हो गया।
इसके बाद गांधीजी ने नमक सत्याग्रह (जिसे दांडी सत्याग्रह या दांडी आन्दोलन के नाम से भी जाना जाता है।) शुरु किया। ब्रिटिश सरकार ने नमक पर एकाधिकार कर दिया था जिसके बाद 12 मार्च, 1930 को गांधीजी ने अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से दांडी गाँव तक 24 दिनों का पैदल मार्च निकाला था। गांधीजी ने फिर ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारत छोड़ो आन्दोलन शुरु किया। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का 8 अगस्त, 1942 को बंबई में सत्र हुआ था जिसमें गांधीजी ने ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का नारा दिया था। इस आन्दोलन के बाद गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया था लेकिन उसके बाद भी युवा कार्यकर्ता हड़ताल और तोड़फोड़ करते रहे और आन्दोलन को जारी रखा। अंततः 15 अगस्त, 1947 को भारत एक अलग देश बना। इस प्रकार सविनय अवज्ञा आन्दोलन, दांडी सत्याग्रह और भारत छोड़ो आन्दोलन ऐसे प्रमुख उदाहरण थे जिनमें गांधीजी ने आत्मबल को सत्याग्रह के हथियार के रूप में प्रयोग किया।
प्रश्न 6. सविनय अवज्ञा आन्दोलन की सीमाओं पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर – सविनय अवज्ञा आन्दोलन की सीमाएँ निम्नवत् हैं-
- जब सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू हुआ उस समय समुदायों के बीच संदेह और अविश्वास का माहौल बना हुआ था।
- कांग्रेस से कटे हुए मुसलमानों का एक तबका किसी संयुक्त संघर्ष के लिए तैयार नहीं था।
- भारत के विभिन्न धार्मिक नेताओं और जाति समूहों के नेताओं ने अपनी- अपनी माँगें शुरू कर दीं जिससे सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रति इन्होंने कोई खास रुचि नहीं दिखाई।
- धीरे-धीरे हिन्दू और मुसलमानों के बीच सम्बन्ध खराब होते गये, कई शहरों में सांप्रदायिक टकराव और दंगे हुए जिससे दोनों समुदायों के बीच फासले बढ़ते गये।
- कांग्रेस ने रूढ़िवादी सवर्ण हिन्दू सनातनपंथियों के डर से दलितों पर ध्यान नहीं दिया। लेकिन गांधीजी ने ऐलान किया कि अस्पृश्यता (छुआछूत) को खत्म किए बिना सौ साल तक भी स्वराज की स्थापना नहीं की जा सकती।
- गांधीजी ने अछूतों को ‘हरिजन’ यानी ‘ईश्वर की सन्तान’ बताया। उन्होंने मंदिरों, सार्वजनिक तालाबों, सड़कों और कुंओं पर समान अधिकार दिलाने के लिए सत्याग्रह किया।
- कई दलित नेता अपने समुदाय की समस्याओं का अलग राजनीतिक हल ढूँढ़ना चाहते थे। उन्होंने शिक्षा संस्थानों में आरक्षण के लिए आवाज उठाई और अलग निर्वाचन क्षेत्रों की बात कही ताकि वहाँ से विधायी परिषदों के लिए केवल दलितों को ही चुनकर भेजा जा सके, क्योंकि इनकी भागीदारी काफी सीमित थी।