UP Board Solution of Class 9 Social Science [सामाजिक विज्ञान] Civics [नागरिक शास्त्र] Chapter-2 संविधान निर्माण (Samvidhan Nirman ) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Long Answer
प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 9वीं की सामाजिक विज्ञान इकाई-3: नागरिक शास्त्र लोकतांत्रिक राजनीति-1 खण्ड-1 के अंतर्गत चैप्टर-2 संविधान निर्माण (Samvidhan Nirman ) पाठ के दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। जो की UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करेंगे।
Subject | Social Science [Class- 9th] |
Chapter Name | संविधान निर्माण (Samvidhan Nirman ) |
Part 3 | Civics [नागरिक शास्त्र] |
Board Name | UP Board (UPMSP) |
Topic Name | लोकतांत्रिक राजनीति-1 |
संविधान निर्माण (Samvidhan Nirman )
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.. भारतीय संविधान की प्रस्तावना पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
उत्तर – भारतीय संविधान की शुरुआत प्रस्तावना से होती है जिसमें संविधान के मूल आदर्शों और उद्देश्यों का वर्णन किया गया है। प्रस्तावना किसी भी संविधान का प्रारम्भिक कथन होता है जिसमें उसके निर्माण के कारणों का उल्लेख किया जाता है तथा उन उद्देश्यों एवं आकांक्षाओं का संक्षिप्त वर्णन किया जाता है, जिन्हें वह प्राप्त करना चाहता है। संविधान की प्रस्तावना एक ऐसा झरोखा होती है जिसमें संविधान के निर्माताओं की भावनाओं तथा उनकी आशाओं का दृश्य देखा जा सकता है। इसी कारण से भारतीय संविधान की प्रस्तावना को संविधान निर्माताओं के दिलों की कुंजी कहा जाता है।
यद्यपि प्रस्तावना संविधान का भाग नहीं होता, क्योंकि संविधान का आरम्भ उसके बाद होता है, परन्तु कई देशों में संसद को प्रस्तावना में संशोधन करने का अधिकार प्राप्त होता है। भारतीय संसद को भी यह अधिकार प्राप्त है। सन् 1976 में भारतीय संसद ने प्रस्तावना में संशोधन करके इसमें ‘समाजवादी’ तथा ‘धर्म-निरपेक्ष’ शब्द जोड़ दिए थे। इसके अतिरिक्त जहाँ, ‘राष्ट्र की एकता’ के शब्द का प्रयोग किया गया, वहाँ ‘एकता तथा अखण्डता’ का भी प्रयोग किया गया।
संविधान की प्रस्तावना इसलिए महत्त्वपूर्ण होती है क्योंकि इसमें उन उद्देश्यों-आकांक्षाओं एवं आदर्शों का वर्णन किया जाता है जिन्हें वह प्राप्त करना चाहती है। इसमें संविधान के स्रोतों का उल्लेख किया गया होता है तथा उस तिथि का भी उल्लेख किया जाता है जब संविधान को स्वीकार और अधिनियमित किया जाता है।
प्रश्न 2. दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद नीति के विरुद्ध लोगों के संघर्ष का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर- दक्षिण अफ्रीका में यूरोपीय लोगों द्वारा अश्वेत लोगों के साथ रंगभेद की नीति अपनाई गई थी। यूरोप की दक्षिण अफ्रीका में व्यापार करने वाली कम्पनियों ने 17वीं एवं 18वीं शताब्दी में बलपूर्वक इस देश पर अधिकार कर लिया और वहाँ की शासक बन गई। रंगभेद की नीति के आधार पर दक्षिण अफ्रीका के लोगों को श्वेत और अश्वेत में बाँट दिया गया है। दक्षिण अफ्रीका के मूल निवासी काले रंग के हैं। ये पूरी आबादी का तीन-चौथाई हिस्सा थे और इन्हें अश्वेत कहा जाता था। इन दो समूहों के अतिरिक्त (श्वेत एवं अश्वेत) मिश्रित नस्ल वाले लोग भी थे जिन्हें रंगीन चमड़ी वाले कहा जाता था। गोरे (श्वेत) अल्पसंख्यक लोगों ने सरकार बनाई और रंगभेद की नीति अपनाई।
वे अश्वेतों को हीन समझते थे। अश्वेतों को वोट का अधिकार नहीं दिया गया था। रंगभेद नीति अश्वेतों के लिए विशेष रूप से दमनकारी थी। उन्हें गोरों के लिए आरक्षित क्षेत्रों में रहने का अधिकार नहीं था। ये गोरों के लिए आरक्षित क्षेत्रों में कभी काम कर सकते थे यदि उनके पास उसका अनुमति-पत्र हो। श्वेत एवं अश्चते लोगों के लिए रेलगाड़ियाँ, बसें, टैक्सियों, होटल, अस्पताल, स्कूल व कॉलेज, बस्तकालय, सिनेमा हाल, थियेटर, समुद्र तट, तरण ताल, जन-शौचालय आदि स्लग-अलग थे। यहाँ तक कि गिरजाघरों में भी उनका प्रवेश वर्जित था जहाँ पर वेत लोग पूजा करते थे। अश्वेतों को संगठन बनाने या इस भयानक बर्ताव का विरोध करने की अनुमति नहीं थी।
1950 से अश्वेत, रंगीन चमड़ी वाले लोग एवं भारतीय मूल के लोग रंगभेद नीति के विरुद्ध लड़ते रहे। उन्होंने विरोध यात्राएँ निकालीं एवं हड़ताले की। अफ्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस नामक दल ने इस संघर्ष का नेतृत्व किया जिसने जल्दी ही गति पकड़ ली।
बढ़ते हुए विरोधों एवं संघर्षों से सरकार को यह अहसास हो गया कि बे अश्वेतों को और अधिक समय तक दमन करके अपने शासन के अधीन नहीं रख सकते। अतः श्वेतों की हुकूमत अपनी नीतियाँ बदलने के लिए विवश हो गई। दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद वाले कानून को समाप्त कर दिया गया। राजनीतिक दलों एवं संचार माध्यमों पर लगे प्रतिबन्ध हटा लिए गए। अश्वेतों के मानवाधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले नेता नेल्सन मण्डेला को 28 वर्ष तक जेल में बन्द रखने के बाद मुक्त कर दिया गया। 26 अप्रैल, 1994 की अर्द्धरात्रि के बाद दक्षिण अफ्रीका गणराज्य में नया लाल ध्वज फहराया गया। इसने संसार में एक नए लोकतन्त्र के जन्म को इंगित किया। इस तरह दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की नीति अपनाने वाली सरकार का अन्त हो गया, जिससे वहाँ एक समान मानवाधिकार वाली लोकतान्त्रिक सरकार के गठन का मार्ग प्रशस्त हुआ।
प्रश्न 3. “संविधान सभा ने एक व्यवस्थित, खुले एवं सहमतिपूर्ण तरीके से कार्य किया।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- सर्वप्रथम कुछ मूलभूत सिद्धान्त निर्धारित किए गए और उन पर सहमति कायम हुई। तत्पश्चात् डॉ. भीमराव अम्बेडकर की अध्यक्षता वाली एक प्रारूप कमेटी ने परिचर्चा के लिए संविधान का मसौदा तैयार किया। संविधान के मसौदे की एक-एक धारा पर गहन चर्चा के कई दौर हुए। दो हजार से अधिक संशोधनों पर विचार किया गया।
सदस्यों ने 3 वर्षों के दौरान 114 दिन विचार-विमर्श किया। सभा में प्रस्तुत किए प्रत्येक दस्तावेज और संविधान सभा में बोले गए प्रत्येक शब्द को रिकार्ड रखा गया और सहेज कर रखा गया। इन्हें ‘कांस्टीट्यूएंट असेम्बली डीबेट्स’ कहा जाता है। मुद्रण के उपरान्त ये 12 विशाल खण्डों में समाहित हैं। इन अभिभाषणों (डीबेट्स) की सहायता से प्रत्येक प्रावधान के पीछे की सोच और तर्क को समझा जा सकता है। इनका प्रयोग संविधान के अर्थ की व्याख्या करने के लिए किया जाता है। उपर्युक्त के प्रकाश में हम कह सकते हैं कि भारत की संविधान सभा ने एक व्यवस्थित, खुले एवं सहमतिपूर्ण तरीके से कार्य किया।
प्रश्न 4. भारत के संविधान की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर- भारत के संविधान की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
- अंशतः कठोर तथा अंशतः लचीला संविधान- भारतीय संविधान कठोर तथा लचीले संविधान का मिला-जुला रूप है। एक ओर तो उसने राज्यों के नाम बदलने, उनकी सीमाओं में परिवर्तन करने, नए राज्यों का गठन करने, भारतीय नागरिकता के नियम निश्चित करने आदि के मामलों में संसद को साधारण बहुमत से ही संशोधन करने की शक्ति दी है। दूसरी ओर राष्ट्रपति के निर्वाचन के तरीके, केन्द्र तथा राज्यों के बीच अधिकार क्षेत्र के मामले, सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों की शक्तियों तथा अधिकार क्षेत्र आदि से सम्बन्धित मामले संसद के दो-तिहाई बहुमत से संशोधन होने पर कम-से-कम आधे राज्यों के विधानमण्डलों द्वारा उनका अनुमोदन होना जरूरी है। शेष मामलों में संसद के 2/3 बहुमत से संशोधन किया जा सकता है। संशोधन की यह प्रक्रिया ब्रिटेन के संविधान में संशोधन करने की प्रक्रिया की तरह सरल अथवा लचीला न होने पर भी संयुक्त राज्य अमेरिका के संविाधन जितनी कठोर नहीं है।
- लिखित एवं विस्तृत संविधान – भारत का संविधान एक लिखित एवं विस्तृत संविधान है। इसमें 395 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियाँ हैं, जिन्हें 25 भागों में विभक्त किया गया है। अब तक इसमें 100 से अधिक संशोधन हो चुके हैं। भारत के संविधान को विश्व का सबसे विस्तृत संविधान कहा जाता है क्योंकि संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में 7, चीन के संविधान में 138, जापान के संविधान में 103 तथा कनाडा के संविधान में 197 अनुच्छेद हैं। इस संविधान के अनुसार भारत को एक प्रभुसत्ता सम्पन्न, समाजवादी, धर्म निरपेक्ष, लोकतन्त्रात्मक गणराज्य घोषित किया गया है।
- धर्म-निरपेक्ष राज्य- संविधान के अनुसार भारत एक धर्म-निरपेक्ष राज्य है। राज्य की दृष्टि में सब धर्म समान हैं। नागरिकों को अपनी इच्छानुत्तार किसी भी धर्म को मानने और उसका प्रचार करने का अधिकार है। धर्म के नाम पर किसी भी व्यक्ति को किसी भी अधिकार से वंचित नहीं किया जाएगा। सरकार अपनी नीति के निर्धारण में किसी धर्म का अनुसरण नहीं करेगी। धर्म-निरपेक्षता का अर्थ धर्म-विरोध नहीं है। सरकार सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखती है, यही धर्म-निरपेक्षता है। संविधान के अनुच्छेद 25 में 28 तक धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान की गई है।
- इकहरी नागरिकता- अमेरिका जैसी संघात्मक शासन व्यवस्था में नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता है। एक ओर नागरिक अपने इकाई राज्य का नागरिक है और दूसरी ओर संघ का। परन्तु भारत में ऐसा नहीं है। भारत का नागरिक संघ या केन्द्र का ही नागरिक है। कश्मीरी, गुजराती, पंजाबी, बंगाली सभी भारतीय वं नागरिक हैं। यह इकहरी नागरिकता भारतीय संविधान की एकात्मक भावना का प्रमाण है।
- संसदीय शासन प्रणाली – भारतीय संविधान की एक मुख्य विशेषता यह भी है कि यह संसदीय सरकार की स्थापना करता है। भारत का राष्ट्रपति केवल नाममात्र का राज्य अध्यक्ष है। शासन उसके नाम पर चलता है, परन्तु शासन का कार्य वास्तव में प्रधानमन्त्री अपने मन्त्रिमण्डल की सहायता से करता है। प्रधानमन्त्री तथा उसका मन्त्रिमण्डल विधानमण्डल के प्रति उत्तरदायी होता है। यदि मन्त्रिमण्डल विधानमण्डल में बहुमत का समर्थन खो बैठे तो (प्रधानमन्त्री सहित सारे मन्त्रिमण्डल को) त्याग-पत्र देना पड़ता है।
- संयुक्त चुनाव प्रणाली तथा वयस्क मताधिकार – अंग्रेजी शासनकाल में भारत में साम्प्रदायिक चुनाव प्रणाली को लागू किया गया था। हिन्दू मतदाता हिन्दुओं को चुनते थे, मुसलमान मतदाता मुसलमानों को लेकिन नए संविधान ने यह साम्प्रदायिक चुनाव प्रणाली समाप्त कर दी है। अब किसी भी क्षेत्र में हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई कोई भी उम्मीदवार खड़ा हो सकता है। सभी सम्प्रदायों के लोग मतदान करते हैं। प्रत्येक मतदाता उस क्षेत्र में खड़े किसी भी उम्मीदवार को मत दे सकता है। वयस्क मताधिकार का अर्थ है कि एक निश्चित आयु पर पहुँचने पर हर नागरिक को मत देने का अधिकार दिया जाता है। भारत में 18 वर्ष की आयु का प्रत्येक नागरिक मत देने का अधिकार रखता है।
प्रश्न 5. भारत के लोकतन्त्र के स्वरूप में प्रमुख कारणों के बारे में कुछ अलग-अलग विचार इस प्रकार हैं। आप इनमें से हर कथन को भारत लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए कितना महत्त्वपूर्ण कारण मानते हैं?
(क) अंग्रेज शासकों ने भारत को उपहार के रूप में लोकतान्त्रिक व्यवस्था दी। हमने ब्रिटिश हुकूमत के समय बनी प्रान्तीय असेम्बलियों के जरिए लोकतान्त्रिक व्यवस्था में काम करने का प्रशिक्षण पाया।
(ख) हमारे स्वतन्त्रता संग्राम ने औपनिवेशिक शोषण और भारतीय लोगों को तरह-तरह की आज़ादी न दिए जाने का विरोध किया। ऐसे में स्वतन्त्र भारत को लोकतान्त्रिक होना ही था।
(ग) हमारे राष्ट्रवादी नेताओं की आस्था लोकतन्त्र में थी। अनेक नव स्वतन्त्र राष्ट्रों में लोकतन्त्र का न आना हमारे नेताओं की भूमिका को रेखांकित करता है।
उत्तर- (क) भारत में प्रतिनिधि संस्थाओं की स्थापना ब्रिटिश शासनकाल की ही देन है। केन्द्र और अब प्रान्तों में द्विसदनीय विधानमण्डल की स्थापना की थी। धीरे-धीरे अधिक लोगों को मतदान का अधिकार भी दिया गया। भारतीय नेताओं को इन संस्थाओं से प्रशिक्षण प्राप्त हुआ।
(ख) भारतीय नेताओं ने स्वतन्त्रता संग्राम में अनेक आन्दोलन चलाए और राजनीतिक स्वतन्त्रताओं की माँग की, अत्याचारी व शोषणकारी कानूनों का विरोध किया। अतः भारत के लिए लोकतन्त्र की स्थापना करनी ही थी।
(ग) भारत में लोकतन्त्र की स्थापना में निःसन्देह भारतीय नेताओं ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। सन् 1928 में ही मोतीलाल नेहरू तथा कई अन्य नेताओं ने भारत के लिए एक संविधान का मसौदा तैयार किया था। सन् 1931 में कांग्रेस के कराँची में हुए अधिवेशन में भी इस बात पर विचार किया गया था कि स्वतन्त्र भारत का नया संविधान कैसा होगा। यह दोनों दस्तावेजों में वयस्क मताधिकार, स्वतन्त्रता तथा समानता के अधिकारों के प्रति वचनबद्धता जाहिर की गई थी। भावी संविधान में अल्पसंख्यकों के अधिकारों को सुरक्षित करने की भी बात की गई थी।