UP Board Solution of Class 9 Social Science [सामाजिक विज्ञान] Economics [अर्थशास्त्र] Chapter-1 पालमपुर गाँव की कहानी (Palampur Ganv ki Kahani) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Long Answer
प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 9वीं की सामाजिक विज्ञान इकाई-4: अर्थशास्त्र अर्थव्यवस्था खण्ड-1 के अंतर्गत चैप्टर 1 पालमपुर गाँव की कहानी (Palampur Ganv ki Kahani) पाठ के दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। जो की UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करेंगे।
Subject | Social Science [Class- 9th] |
Chapter Name | पालमपुर गाँव की कहानी (Palampur Ganv ki Kahani) |
Part 3 | Economics [अर्थशास्त्र ] |
Board Name | UP Board (UPMSP) |
Topic Name | पालमपुर गाँव की कहानी (Palampur Ganv ki Kahani) |
पालमपुर गाँव की कहानी (Palampur Ganv ki Kahani)
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. भारत में जनगणना के दौरान दस वर्ष में एक बार प्रत्येक गाँव का सर्वेक्षण किया जाता है। पालमपुर से सम्बन्धित सूचनाओं के आधार पर निम्न तालिका को भरिए –
- अवस्थिति क्षेत्र, (ख) गाँव का कुल क्षेत्र, (ग) भूमि का उपयोग (हेक्टेयर में)
कृषि भूमि |
भूमि जो कृषि के लिए उपलब्ध नहीं है (निवास स्थानों, सड़कों, तालाबों, चरागाहों आदि के क्षेत्र) | |
सिंचित |
असिंचित |
|
26 हेक्टेयर |
(घ) सुविधाएँ
शैक्षिक |
चिकित्सा |
बाजार |
बिजली पूर्ति |
संचार |
निकटतम कस्बा |
उत्तर– (क) अवस्थिति क्षेत्र – पड़ोसी गाँवों व कस्बों से जुड़ा हुआ है। निकटतम छोटा कस्बा शाहपुर एवं निकटतम बड़ा गाँव रायगंज है।
(ख) गाँव का कुल क्षेत्रफल (हेक्टेयर में) –166 हेक्टेयर
(ग) भूमि का उपयोग (हेक्टेयर में) – 140 हेक्टेयर
कृषि भूमि |
भूमि जो कृषि के लिए उपलब्ध नहीं है (निवास स्थानों, सड़कों, तालाबों, चरागाहों आदि के क्षेत्र) | |
सिंचित |
असिंचित |
|
100 हेक्टेयर |
40 हेक्टेयर |
26 हेक्टेयर |
(घ) सुविधाएँ
शैक्षिक–दो प्राथमिक और एक उच्च माध्यमिक स्कूल।
चिकित्सा–एक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और एक निजी औषधालय।
बाजार–रायगंज (बड़ा गाँव) एवं शाहपुर (छोटा कस्बा)।
बिजली पूर्ति–अधिकतम घरों में बिजली की सुविधा उपलब्ध है।
संचार–पोस्ट एवं टेलीग्राफ, टेलीफोन, मोबाइल।
निकटतम कस्बा – शाहपुर।
प्रश्न 2. खेती की आधुनिक विधियों के लिए ऐसे अधिक आगतों की आवश्यकता होती है, जिन्हें उद्योगों में विनिर्मित किया जाता है, क्या आप सहमत हैं?
उत्तर– हाँ, हम सहमत हैं। क्योंकि आधुनिक कृषि तकनीकों को अधिक साधनों की आवश्यकता है जो उद्योगों में बनाए जाते हैं। एच.वाई.वी. (HYV) बीजों को अधिक पानी चाहिए और इसके साथ ही बेहतर परिणाम के लिए रासायनिक खाद, कीटनाशक भी चाहिए। किसान सिंचाई के लिए नलकूप लगाते हैं। ट्रैक्टर एवं थ्रेसर जैसी मशीनें भी प्रयोग की जाती हैं। एच.वाई.वी. बीजों की सहायता से गेहूँ की पैदावार 1300 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 3200
किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक हो गई और अब किसानों के पास बाजार में बेचने के लिए अधिक मात्रा में फालतू गेहूं है।
प्रश्न 3. पालमपुर में बिजली के प्रसार ने किसानों की किस तरह मदद की?’
उत्तर– पालमपुर में बिजली के प्रसार ने किसानों की विभिन्न रूप से सहायता की –
- सिंचाई की उपयुक्त विधि, नलकूपों एवं पंपिंग सेटों को बिजली द्वारा चलाया जाता है।
- कृषि उपकरण, जैसे हार्वेस्टर, थ्रेशर आदि ने किसानों की मदद की है।
- उन्हें मानसून की बरसात पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं है जो कि अनिश्चित एवं भ्रमणशील है।
- बिजली का उपयोग गाँव में प्रकाश के लिए भी किया गया।
- बिजली से सिंचाई प्रणाली में सुधार के कारण किसान पूरे वर्ष के दौरान विभिन्न फसलें उगा सकते हैं।
- विद्युत प्रकाश, पंखे, प्रेस एवं मशीनों ने किसानों के घरेलू कार्यों में मदद की है।
प्रश्न 4. क्या सिंचित क्षेत्र को बढ़ाना महत्त्वपूर्ण है? क्यों?
उत्तर– सिंचित क्षेत्र में वृद्धि करना निम्न दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है-
- यदि सिंचाई की असुविधा के कारण जल प्राप्त नहीं होता तो फसल सूख जाएगी, यदि लगातार जल की कमी हो तो अकाल का भय हो जाता है।
- सिंचाई की सुविधा प्राप्त भूमि के टुकड़े में कृषि उत्पादन असिंचित भूमि के टुकड़े के उत्पादन से अधिक होता है।
- सिंचित क्षेत्र की वृद्धि से भारत में व्याप्त मानसून की अनिश्चित बरसात से मुक्ति मिलेगी।
- पौधों का जन्म, उनका विकास, फलना और फूलना; मिट्टी, जुल और हवा के कुशल संयोग पर निर्भर करता है।
- कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए सिंचित क्षेत्र महत्त्वपूर्ण ही नहीं बल्कि आवश्यक भी है।
प्रश्न 5. पालमपुर के 450 परिवारों में भूमि के वितरण की एक सारणी बनाइए।
उत्तर– पालमपुर गाँव के 450 परिवारों में भूमि के वितरण की सारणी –
परिवार | भूमि का वितरण |
150 | भूमिहीन (अधिकतर दलित वर्ग) |
240 | 2 हेक्टेयर से कम भूमि के टुकड़े (छोटे किसान) |
60 | 2 हेक्टेयर से अधिक भूमि के टुकड़े (मध्यम और बड़े किसान) |
प्रश्न 6. पालमपुर में खेतिहर श्रमिकों की मजदूरी न्यूनतम मजदूरी से कम क्यों है?
उत्तर– पालमपुर में खेतिहर मजदूरों में काम के लिए आपस में प्रतिस्पर्द्धा है। इसलिए लोग कम दरों पर मजदूरी करने को तैयार हो जाते हैं। न्यूनतम मजदूरी अधिनियम का ग्रामीण क्षेत्रों में लागू न किया जाना भी एक प्रमुख कारण है। इसलिए गरीब मजदूरों को जो कुछ भी मजदूरी दी जाती है उसे वे अपना भाग्य समझकर स्वीकार कर लेते हैं।
‘प्रश्न 7. अपने क्षेत्र में दो श्रमिकों से बात कीजिए। खेतों में काम करने वाले या विनिर्माण कार्य में लगे मजदूरों में से किसी को चुनें। उन्हें कितनी मजदूरी मिलती है? क्या उन्हें नकद पैसा मिलता है या वस्तु–रूप में? क्या उन्हें नियमित रूप से काम मिलता है? क्या वे कर्ज में हैं?
उत्तर– हमारे क्षेत्र में रामचरण और कल्लू दो खेतिहर मजदूर हैं जो एक मकानं के निर्माण कार्य में काम करते हैं। इन दोनों को प्रति 90 से 100 रुपये मिलते हैं। यह सत्य है कि उन्हें नकद मजदूरी मिलती है। लेकिन इन्हें नियमित रूप से काम नहीं मिलता क्योंकि बहुत से लोग कम दरों पर काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं। क्योंकि उन्हें कम मजदूरी मिलती है इसलिए वे कर्ज में डूबे हुए हैं। कम मजदूरी के कारण वे बड़ी कठिनाई से परिवार का भरण-पोषण कर पाते हैं।
प्रश्न 8. एक ही भूमि पर उत्पादन बढ़ाने के अलग–अलग कौन–से तरीके हैं? समझाने के लिए उदाहरणों का प्रयोग कीजिए।
उत्तर–भूमि के एक ही टुकड़े पर उत्पादन में वृद्धि हेतु निम्नलिखित तरीकों को अपनाया जाता है-
- आधुनिक कृषि उपकरणों एवं तकनीक का उपयोग – पंजाब, हरियाणा एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान आधुनिक कृषि तरीकों को अपनाने वाले भारत के पहले किसान थे। इन क्षेत्रों के किसानों ने सिंचाई के लिए नलकूपों, एच.वाई.वी. (HYV) बीज, रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों का प्रयोग किया। ट्रैक्टर एवं थ्रेशर का भी प्रयोग किया गया जिससे जुताई एवं फसल की कटाई आसान हो गई। उन्हें अपने प्रयासों में सफलता मिली और उन्हें गेहूँ की अधिक पैदावार के रूप में इसका प्रतिफल मिला। एच.वाई.वी. बीजों की सहायता से पैदावार 1300 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 3200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक हो गई और अब किसानों के पास बहुत-सा अधिशेष गेहूँ बाजार में बेचने के लिए होता है।
- बहुविध फसल उगाना – भूमि के एक ही टुकड़े पर एक वर्ष में कई फसलों को उगाना बहुविध फसल प्रणाली कहलाता है। पालमपुर के सभी किसान वर्ष में कम-से-कम दो फसलें उगाते हैं। पिछले 15-20 वर्ष से अनेक किसान तीसरी फसल के रूप में आलू की खेती कर रहे हैं।
प्रश्न 9. एक हेक्टेयर भूमि के मालिक किसान के कार्य का ब्यौरा दीजिए।
उत्तर–भूमि को मापने की मानक इकाई हेक्टेयर है। एक हेक्टेयर 100 मीटर की भुजा वाले वर्गाकार भूमि के टुकड़े के क्षेत्रफल के बराबर होता है। एक हेक्टेयर भूमि की मात्रा एक परिवार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बहुत कम है। इसलिए उसके द्वारा अपने जीवनयापन के लिए किए गए कार्य का ब्यौरा निम्नलिखित हो सकता है-
- खेतिहर मजदूर के रूप में बड़े किसानों और जमींदारों के पास कार्य कर सकता है।
- गाँव के धनी लोगों के पास नौकरी कर सकता है।
- अपने परिवार के सदस्यों को रोजगार के लिए शहरों में भेज सकता है।
- गैर-कृषि कार्यों जैसे पशुपालन, मछलीपालन और मुर्गीपालन आदि का कार्य कर सकता है।
प्रश्न 10. मझोले और बड़े किसान कृषि से कैसे पूँजी प्राप्त करते हैं? वे छोटे किसानों से कैसे भिन्न हैं?
उत्तर-1. इनकी पूँजी छोटे किसानों से भिन्न होती है क्योंकि छोटे किसानों के पास भूमि कम होने के कारण उत्पादन उनके पालन-पोषण के लिए भी कम बैठता है। उन्हें आधिक्य प्राप्त न होने के कारण बचतें नहीं होती है इसलिए खेती के लिए उन्हें पूँजी बड़े किसानों या साहूकारों से उधार लेकर पूरी करनी पड़ती है जिस पर उन्हें काफी ब्याज चुकाना पड़ता है जो उन्हें ऋणग्रस्तता के चंगुल में फँसा देता है।
- अधिक उत्पादन होने से वे इसे बाजार में बेचकर धनलाभ प्राप्त करते हैं। इस धन का प्रयोग वे उत्पादन की आधुनिक विधियों के अपनाने में करते हैं।
- मझोले और बड़े किसानों के पास अधिक भूमि होती है अर्थात् उनकी जोतों का आकार बड़ा होता है जिससे वे अधिक उत्पादन करते हैं।
प्रश्न 11. सविता को किन शर्तों पर तेजपाल सिंह से ऋण मिला है? क्या ब्याज की कम दर पर बैंक से कर्ज मिलने पर सविता की स्थिति अलग होती?
उत्तर– सविता ने तेजपाल सिंह से 3000, 24 प्रतिशत की दर पर चार महीने के लिए उधार लिया, जो कि ऊँची ब्याज दर है। सविता एक कृषि मजदूर के रूप में कटाई के समय 100 रुपये प्रतिदिन की दर पर उसके खेतों में काम करने को भी सहमत होती है। तेजपाल सिंह द्वारा सविता से लिया जाने वाला ब्याज बैंक की अपेक्षा बहुत अधिक था। यदि सविता इसकी अपेक्षा बैंक से उचित ब्याज दर पर ऋण ले पाती तो उसकी हालत निश्चय ही इससे अच्छी होती।
प्रश्न 12. अपने क्षेत्र के कुछ पुराने निवासियों से बात कीजिए और पिछले 30 वर्षों में सिंचाई और उत्पादन के तरीकों में हुए परिवर्तनों पर एक संक्षिप्त रिपोर्ट लिखिए (वैकल्पिक)।
उत्तर–अपने क्षेत्र के कुछ वयोवृद्ध व्यक्तियों से बात करने के बाद पिछले 30 वर्षों में सिंचाई और उत्पादन के तरीकों में हुए परिवर्तनों से मुझे इस बात का पता चला कि 30 वर्ष पहले कृषि करने के पुराने तरीके कैसे थे। यह जानकारी इस प्रकार है-
- स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद सिंचाई की पद्धति में क्रान्तिकारी परिवर्तन किए गए और पम्पिंग सैट तथा नलकूपों का उपयोग पर्याप्त मात्रा में सिंचाई के लिए किया जाने लगा।
- प्राचीनकाल में सिंचाई के लिए कुओं का उपयोग किया जाता था। कुएँ से बैल के माध्यम से रहट का उपयोग करके पानी को ऊपर खींचकर सिंचाई की जाती थी।
- सिंचाई के लिए पानी की प्राप्ति रहट द्वारा की जाती थी।
- विशेष रूप से नदियों से नहरें निकालकर सिंचाई की व्यवस्था का जाल बुना गया।
- तालाब और नदी-नाले के पानी का उपयोग सिंचाई के लिए किया जाता था।
प्रश्न 13. आपके क्षेत्र में कौन–से गैर–कृषि उत्पादन कार्य हो रहे हैं? इनकी एक संक्षिप्त सूची बनाइए।
उत्तर– हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में किए जाने वाले गैर-कृषि उत्पादन कार्य इस प्रकार हैं-
- पशुपालन (Dairy), मुर्गीपालन (Poultry) और मछली पालन आदि।
- खेतों में उत्पादित सब्जी, फलों को शहरी बाजारों में बेचा जाना।
- गन्ने से गुड़ और चीनी का तैयार किया जाना।
- दूर गाँवों से एकत्र करके शहरों में आपूर्ति करना।
- कुछ शिक्षित लोगों द्वारा नर्सरी पाठशाला और प्राथमिक शिक्षा के लिए पाठशाला की स्थापना करना।
- सिलाई, कढ़ाई, प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना करना।
- परिवहन सम्बन्धित कार्य अर्थात् यातायात के लिए रिक्शा, ताँगा, टैम्पो, जीप, बस और ट्रक का उपयोग किया जाना।
- शिक्षित लोगों को कम्प्यूटर का प्रशिक्षण देना।
प्रश्न 14. गाँवों में और अधिक गैर–कृषि कार्य प्रारम्भ करने के लिए क्या किया जा सकता है?
उत्तर–गाँव में और अधिक गैर-कृषि कार्य प्रारम्भ करने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं—
- परिवहन का विकास करके गाँव और शहरों के बीच उत्तम सड़क बनवाकर गाँव से कृषि का अतिरिक्त उत्पादन शहरों में भेजा जा सकता है।
- गाँव में अच्छे पब्लिक स्कूल खोलकर गाँव वालों की शिक्षा के स्तर को ऊँचा किया जा सकता है।
- संचार के विकास द्वारा गाँव को देश और विदेश से जोड़ा जा सकता है।
- सरकार द्वारा गाँव में उद्योग-धन्धे स्थापित किए जा सकते हैं।
- इसी प्रकार शहरों से गाँव के लिए आवश्यक वस्तुएँ मँगाई जा सकती हैं।
- पालमपुर में आधारभूत विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर– पालमपुर गाँव में विजली, पानी, सड़क, स्कूल, स्वास्थ्य सेवा,सिंचाई की सुविधाओं से सम्पन्न एक विकसित गाँव है। बिजली से खेतों में स्थित नलकूपों एवं विभिन्न प्रकार के छोटे उद्योगों को विद्युत ऊर्जा मिलती है। बच्चों को शिक्षा देने के लिए सरकार द्वारा प्राथमिक व उच्च विद्यालय दोनों खोले गए हैं। लोगों का इलाज करने के लिए एक सरकारी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और एक निजी दवाखाना है। गाँव के लोगों द्वारा विभिन्न प्रकार की उत्पादन क्रियाएँ की जाती हैं जैसे कि खेती, लघु स्तरीय विनिर्माण, परिवहन, दुकानदारी आदि। पालमपुर का प्रमुख क्रियाकलाप कृषि है। 75 प्रतिशत लोग अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर हैं।
बरसात के मौसम (खरीफ) के दौरान किसान ज्वार एवं बाजरा उगाते हैं। इन फसलों को पशुओं के चारे में प्रयोग किया जाता है। इसके बाद अक्टूबर से दिसम्बर के बीच आलू की खेती की जाती है। सर्दी के मौसम (रवी) में खेतों में गेहूँ बोया जाता है। पैदा किया गया गेहूँ किसान के परिवार के लिए प्रयोग किया जाता है और जो बच जाता है उसे रायगंज के बाजार में बेच दिया जाता है। गन्ने की फसल की कटाई वर्ष में एक बार की जाती है। गन्ने को इसके मूल रूप या फिर गुड़ बनाकर इसे शाहपुर के व्यापारियों को बेच दिया जाता है। पालमपुर के किसान सुविकसित सिंचाई प्रणाली एवं बिजली की सुविधा के कारण वर्ष में तीन अलग-अलग फसलें उगा पाने में सफल हो पाते हैं।
बहुत-से लोग गैर-कृषि क्रियाओं से जुड़े हुए हैं जैसे कि डेयरी, विनिर्माण, दुकानदारी, परिवहन, मुर्गी पालन, सिलाई, शैक्षिक गतिविधियाँ आदि। किसान इन कार्यों को उस समय कर सकते हैं जब इन लोगों के पास खेतों में करने के लिए कोई काम न हो या वे बेरोजगार हों। यह उनकी आर्थिक दशा सुधारने में सहायता करेगा।
- क्या रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग हानिकारक है? क्या रसायन एवं उर्वरकों के निरन्तर प्रयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखा जा सकता है?
उत्तर– निःसन्देह, रासायनिक उर्वरकों का उपयोग वर्ष के दौरान अनाजों की उत्पादकता में वृद्धि करता है, लेकिन यह मिट्टी की प्राकृतिक उत्पादकता को कम करता है। अगले वर्ष उत्पादन को बनाए रखने के लिए अधिक रासायनिक उर्वरक की आवश्यकता होती है जो दोबारा मिट्टी की उपजाऊपन को कम करती है। रासायनिक उर्वरक उत्पादन की लागत में भी वृद्धि करते हैं, क्योंकि इसका उपयोग अच्छी सिंचाई सुविधा, कीटनाशक आदि के साथ किया जाता है। नलकूपों का अधिक उपयोग धरती के प्राकृतिक जल स्तर को कम कर देता है, जिसे वापस प्राप्त करना अत्यन्त कठिन है। रसायन एवं उर्वरक के प्रयोग से पैदावार में कमी हुई है। अब किसानों को समान उत्पादन प्राप्त करने के लिए अधिक-से-अधिक रासायनिक उर्वरक एवं अन्य साधनों के उपयोग के लिए बाध्य किया जा रहा है। यह उत्पादन लागत में भी वृद्धि करता है।
रासायनिक उर्वरक खनिज प्रदान करते हैं जो पानी में घुल जाता है और शीघ्र ही पेड़-पौधों को उपलब्ध होता है किन्तु यह भूमि में अधिक समय तक नहीं रहता। यह भूमि, जल, नदियों एवं झीलों को दूषित करता है।
रासायनिक उर्वरक मिट्टी में पाए जाने वाले कीड़े-मकोड़े एवं सूक्ष्म बैक्टीरिया को भी मार सकता है। इसका अर्थ है कि मिट्टी की उर्वरता पहले से कम हो गई है।
- पालमपुर में होने वाली गैर–कृषि क्रियाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर–उन क्रियाओं को गैर-कृषि क्रियाएँ कहते हैं जो कृषि के अतिरिक्त होती हैं जैसे-दुकानदारी, विनिर्माण, डेयरी, परिवहन, मुर्गीपालन, शैक्षिक गतिविधि आदि। पालमपुर में प्रचलित गैर-कृषि गतिविधियों का विवरण इस प्रकार है-
- दुकानदार – पालमपुर में बहुत कम लोग व्यापार (वस्तु विनिमय) करते हैं। पालमपुर के व्यापारी दुकानदार हैं जो शहरों के थोक बाजार से कई प्रकार की वस्तुएँ खरीदते हैं और उन्हें गाँव में बेच देते हैं। उदाहरणतः गाँव के छोटे जनरल स्टोर चावल, गेहूँ, चीनी, चाय, तेल, बिस्कुट, साबुन, टूथ पेस्ट, बैट्री, मोमबत्ती, कॉपी, पेन, पेन्सिल और यहाँ तक कि कपड़े भी बेचते हैं।
- परिवहन : तेजी से विकसित हो रहा क्षेत्र- पालमपुर और रायगंज के बीच की सड़क पर बहुत-से वाहन चलते हैं जिनमें रिक्शा वाले, ताँगे वाले, जीप, ट्रैक्टर, ट्रक चालक, पारम्परिक बैलगाड़ी एवं बुग्गी (भैंसागाड़ी) सम्मिलित हैं। इस काम में लगे हुए कई लोग अन्य लोगों को उनके गन्तव्य पर पहुँचाने और वहाँ से उन्हें वापस लाने का काम करते हैं जिसके लिए उन्हें पैसे मिलते हैं। वे लोगों और वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाते हैं।
- डेयरी – पालमपुर के कई परिवारों में डेयरी एक प्रचलित क्रिया है। लोग अपनी भैंसों को कई तरह की घास, बरसात के मौसम में उगने वाली ज्वार और बाजरा आदि खिलाते हैं। दूध को पास के बड़े गाँव रायगंज में बेच दिया जाता है।
- पालमपुर में लघु स्तरीय विनिर्माण का एक उदाहरण – इस समय पालमपुर में 50 से कम लोग विनिर्माण कार्य में लगे हुए हैं। इनमें बहुत साधारण उत्पादन क्रियाओं का प्रयोग किया जाता है और यह छोटे स्तर पर किया जाता है। ये कार्य पारिवारिक श्रम की सहायता से घर में या खेतों में किया जाता है। मजदूरों को कभी-कभार ही किराए पर लिया जाता है।