UP Board Solution of Class 9 Social Science [सामाजिक विज्ञान] Economics [अर्थशास्त्र] Chapter-2 संसाधन के रूप मे लोग (Sansadhan Ke Roop Mein Log) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Long Answer
प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 9वीं की सामाजिक विज्ञान इकाई-4: अर्थशास्त्र अर्थव्यवस्था खण्ड-1 के अंतर्गत चैप्टर 2 संसाधन के रूप मे लोग (Sansadhan Ke Roop Mein Log) पाठ के दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। जो की UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करेंगे।
Subject | Social Science [Class- 9th] |
Chapter Name | संसाधन के रूप मे लोग (Sansadhan Ke Roop Mein Log) |
Part 3 | Economics [अर्थशास्त्र ] |
Board Name | UP Board (UPMSP) |
Topic Name | संसाधन के रूप मे लोग (Sansadhan Ke Roop Mein Log) |
संसाधन के रूप मे लोग (Sansadhan Ke Roop Mein Log)
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. ‘संसाधन के रूप में लोग’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- किसी देश के लोग उस देश के लिए बहुमूल्य संसाधन होते हैं, यदि वे स्वस्थ, शिक्षित एवं कुशल हों, क्योंकि मानवीय संसाधन के बिना आर्थिक क्रियाएँ सम्भव नहीं हैं। मानव, श्रमिक, प्रबन्धक एवं उद्यमी के रूप में समस्त आर्थिक क्रियाओं का सम्पादन करता है। इसे मानव संसाधन भी कहते हैं।
प्रश्न 2. मानव संसाधन भूमि और भौतिक पूँजी जैसे अन्य संसाधनों से कैसे भिन्न है?
उत्तर- मानवीय संसाधन अन्य संसाधनों से इस प्रकार भिन्न है-.
- मानवीय संसाधन उत्पादन का एक जीवित, क्रियाशील एवं भावुक साधन है।
- मानवीय संसाधन उत्पादन का एक अत्याज्य साधन है।
- मानवीय संसाधन कार्य कराता है और अन्य साधनों को कार्यशील करता है।
- मानवीय संसाधन श्रम, प्रबन्ध एवं उद्यमी के रूप में कार्य करता है।
प्रश्न 3. मानव पूँजी निर्माण में शिक्षा की क्या भूमिका है?
उत्तर- मानव पूँजी (मानव संसाधन) निर्माण में शिक्षा की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। शिक्षा एवं कौशल किसी व्यक्ति की आय को निर्धारित करने वाले प्रमुख कारक हैं। किसी बच्चे की शिक्षा और प्रशिक्षण पर किए गए निवेश के बदले में वह भविष्य में अपेक्षाकृत अधिक आय एवं समाज में बेहतर योगदान के रूप में उच्च प्रतिफल दे सकता है। शिक्षित लोग अपने बच्चों की शिक्षा पर अधिक निवेश करते पाए जाते हैं। इसका कारण यह है कि उन्होंने स्वयं के लिए शिक्षा का महत्त्व जान लिया है। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि यह शिक्षा ही है जो एक व्यक्ति को उसके सामने उपलब्ध आर्थिक अवसरों का बेहतर उपयोग करने में सहायता करती है। शिक्षा श्रम की गुणवत्ता में वृद्धि करती है और कुल उत्पादकता में वृद्धि करने में सहायता करती है। कुल उत्पादकता देश के विकास में योगदान देती है।
प्रश्न 4. मानव पूँजी निर्माण में स्वास्थ्य की क्या भूमिका है?
उत्तर- मानव पूँजी निर्माण अथवा मानव संसाधन में स्वास्थ्य की प्रमुख भूमिका है, जिसे हम निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं-
- एक अस्वस्थ व्यक्ति अपने परिवार, संगठन एवं देश के लिए दायित्व है। कोई भी संगठन ऐसे व्यक्ति को काम पर नहीं रखेगा जो खराब स्वास्थ्य के कारण पूरी दक्षता से काम न कर सके।
- किसी व्यक्ति का स्वास्थ्य अपनी क्षमता एवं बीमारी से लड़ने की योग्यता को पहचानने में सहायता करता है।
- स्वास्थ्य न केवल किसी व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाता है अपितु मानव संसाधन विकास में वर्धन करता है जिस पर देश के कई क्षेत्रक निर्भर करते हैं।
- केवल एक पूर्णतः स्वस्थ व्यक्ति ही अपने काम के साथ न्याय कर सकता है। इस प्रकार यह किसी व्यक्ति के कामकाजी जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
प्रश्न 5. किसी व्यक्ति के कामयाब जीवन में स्वास्थ्य की क्या भूमिका है?
उत्तर- स्वास्थ्य मानव को स्वस्थ, सक्रिय, शक्तिशाली एवं कार्य कुशल बनाता है। यह सही कहा गया है कि ‘एक स्वस्थ शरीर में एक स्वस्थ दिमाग होता है।’ अच्छा स्वास्थ्य एवं मानसिक जागरूकता एक मूल्यवान परिसम्पत्ति है जो मानवीय संसाधन को देश के लिए एक सम्पत्ति बनाती है। स्वास्थ्य जीवन का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है। स्वास्थ्य का अर्थ जीवित रहना मात्र ही नहीं है। स्वास्थ्य में शारीरिक, मानसिक, आर्थिक एवं सामाजिक सुदृढ़ता शामिल हैं। स्वास्थ्य में परिवार कल्याण, जनसंख्या नियन्त्रण, दवा नियन्त्रण, प्रतिरक्षण एवं खाद्य मिलावट निवारण आदि बहुत-से क्रियाकलाप शामिल हैं। यदि कोई व्यक्ति अस्वस्थ है तो वह ठीक से काम नहीं कर सकता। चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में एक अस्वस्थ मजदूर अपनी उत्पादकता और अपने देश की उत्पादकता को कम करता है। इसलिए किसी व्यक्ति के कामयाब जीवन में स्वास्थ्य महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
प्रश्न 6. प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रकों में किस तरह की विभिन्न आर्थिक क्रियाएँ संचालित की जाती हैं?
उत्तर- प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्र में पृथक् पृथक् संचालित की जाने वाली प्रमुख क्रियाएँ इस प्रकार हैं-
(i) प्राथमिक क्षेत्र- कृषि, वन एवं मत्स्य पालन, खनन तथा उत्खनन।
(ii) द्वितीयक क्षेत्र- उत्पादन, विद्युत-गैस एवं जल की आपूर्ति, निर्माण, व्यापार, होटल तथा जलपान गृह।
(iii) तृतीयक क्षेत्र- परिवहन, भण्डार, संचार, वित्तीय, बीमा, वास्तविक सम्पत्ति तथा व्यावसायिक सेवाएँ, सामाजिक एवं व्यक्तिगत सेवाएँ।
प्रश्न 7. आर्थिक और गैर-आर्थिक क्रियाओं में क्या अन्तर है?
उत्तर-आर्थिक क्रियाएँ-वह क्रियाएँ जो जीविका कमाने के लिए और आर्थिक उद्देश्य से की जाती हैं, आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं। यह क्रियाएँ उत्पादन, विनियम एवं वस्तुओं और सेवाओं के वितरण से सम्बन्धित होती हैं। लोगों का व्यवसाय, पेशे और रोज़गार में होना आर्थिक क्रियाएँ हैं। इन क्रियाओं का मूल्यांकन मुद्रा में किया जाता है।
गैर-आर्थिक क्रियाएँ – वह क्रियाएँ जो भावनात्मक एवं मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए की जाती हैं और जिनका कोई आर्थिक उद्दश्य नहीं होता, गैर-आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं। यह क्रियाएँ सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, शैक्षिक एवं सार्वजनिक हित से सम्बन्धित हो सकती हैं।
प्रश्न 8. महिलाएँ क्यों निम्न वेतन वाले कार्यों में नियोजित होती हैं?
उत्तर-महिलाएँ निम्नलिखित कारणों से निम्न वेतन वाले कार्यों में नियोजित होती हैं—
- महिलाएँ भौतिक एवं भावनात्मक रूप से कमजोर होती हैं।
- ज्ञान व जानकारी के अभाव में महिलाएँ असंगठित क्षेत्रों में कार्य करती हैं जो उन्हें कम मजदूरी देते हैं। उन्हें अपने कानूनी अधिकारों की जानकारी भी नहीं है।
- महिलाएँ दूर स्थित, पहाड़ी एवं मरुस्थलीय क्षेत्रों में कार्य नहीं कर सकतीं।
- महिलाओं को शारीरिक रूप से कमजोर माना जाता है इसलिए उन्हें प्रायः कम वेतन दिया जाता है।
- महिलाओं के कार्यों पर सामाजिक प्रतिबन्ध होता है।
- बाजार में किसी व्यक्ति की आय निर्धारण में शिक्षा महत्त्वपूर्ण कारकों में से एक है। भारत में महिलाएँ पुरुषों की अपेक्षा कम शिक्षित होती हैं। उनके पास बहुत कम शिक्षा एवं निम्न कौशल स्तर है। इसलिए उन्हें पुरुषों की तुलना में कम वेतन दिया जाता है।
- महिलाएँ खतरनाक कार्यों (hazardous work) के लिए उपयुक्त नहीं होती हैं।
प्रश्न 9. ‘बेरोज़गारी’ शब्द की आप कैसे व्याख्या करेंगे?
उत्तर- वह स्थिति जिसके अन्तर्गत कुशल व्यक्ति प्रचलित कीमतों पर कार्य करने के इच्छुक होते हैं किन्तु कार्य नहीं प्राप्त कर पाते, तो ऐसी स्थिति बेरोज़गारी कहलाती है, यह स्थिति विकसित देशों की अपेक्षा विकासशील देशों में अधिक देखने को मिलती है।
प्रश्न 10. प्रच्छन्न और मौसमी बेरोज़गारी में क्या अन्तर है?
उत्तर- प्रच्छन्न एवं मौसमी बेरोज़गारी में अन्तर इस प्रकार है-
प्रच्छन्न बेरोज़गारी- इस बेरोज़गारी में लोग नियोजित प्रतीत होते हैं जबकि वास्तव में वे उत्पादकता में कोई योगदान नहीं कर रहे होते हैं। ऐसा प्रायः किसी क्रिया से जुड़े परिवारों के सदस्यों के साथ होता है। जिस काम में पाँच लोगों की आवश्यकता होती है किन्तु उसमें आठ लोग लगे हुए हैं, जहाँ 3 लोग अतिरिक्त हैं। यदि इन 3 लोगों को हटा लिया जाए तो भी उत्पादकता कम नहीं होगी। यही बचे 3 लोग प्रच्छन्न बेरोज़गारी में शामिल हैं।
मौसमी बेरोज़गारी- वर्ष के कुछ महीनों के दौरान जब लोग रोज़गार नहीं खोज पाते, तो ऐसी स्थिति में मौसमी बेरोज़गारी कहलाती है। भारत में कृषि कोई पूर्णकालिक रोज़गार नहीं है। यह मौसमी है। इस प्रकार बेरोज़गारी कृषि में पायी जाती है। कुछ व्यस्त मौसम होते हैं जब बिजाई, कटाई, निराई और गहाई की जाती है। कुछ विशेष महीनों में कृषि पर आश्रित लोगों को अधिक काम नहीं मिल पाता।
प्रश्न 11. शिक्षित बेरोज़गारी भारत के लिए एक विशेष समस्या क्यों है?
उत्तर-शिक्षित बेरोज़गारी भारत के लिए एक कठिन चुनौती के रूप में उपस्थित हुई है। मैट्रिक, स्नातक, स्नातकोत्तर डिग्रीधारक अनेक युवा रोज़गार पाने में असमर्थ हैं। एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि मैट्रिक की अपेक्षा स्नातक एवं स्नातकोत्तर डिग्रीधारकों में बेरोज़गारी अधिक तेजी से बढ़ी है।
एक विरोधाभासी जनशक्ति स्थिति सामने आती है क्योंकि कुछ वर्गों में अतिशेष जनशक्ति अन्य क्षेत्रों में जनशक्ति की कमी के साथ-साथ विद्यमान है। एक ओर तकनीकी अर्हता प्राप्त लोगों में बेरोज़गारी व्याप्त है जबकि दूसरी ओर आर्थिक संवृद्धि के लिए जरूरी तकनीकी कौशल की कमी है। उपर्युक्त तथ्यों के प्रकाश में हम कह सकते हैं कि शिक्षित बेरोज़गारी भारत के लिए एक विशेष समस्या है।
अधिकांश शिक्षित बेरोज़गारी शिक्षित मानव शक्ति के विनाश को प्रदर्शित करती है। बेरोज़गारी सदैव बुरी है किन्तु यह हमारी शिक्षित युवाओं की स्थिति में एक अभिशाप है। हम अपने कुशल दिमाग का उपयोग करने योग्य नहीं होते।
प्रश्न 12. आपके विचार से भारत किस क्षेत्र में रोज़गार के सर्वाधिक अवसर सृजित कर सकता है?
उत्तर-सेवा क्षेत्र में भारत में सर्वाधिक रोज़गार के अवसर उपलब्ध करा सकता है। भूमि की अपनी एक निर्धारित सीमा है जिसे बदला नहीं जा सकता। अतः
कृषि क्षेत्र में हम अधिक रोज़गार के अवसर की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। कृषि में पहले से ही छिपी बेरोज़गारी विद्यमान है जबकि दूसरी ओर उद्योग स्थापित करने में बड़े पैमाने पर संसाधन की आवश्यकता होती है जिसकी पूर्ति हम सरलता से नहीं कर सकते हैं। भारत एक विशाल जनसंख्या वाला देश है और जिसे उचित शिक्षा,पेशेवर गुणवत्ता एवं कुशल श्रमशक्ति की आवश्यकता है। कुशल लोगों की अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर माँग होती है। अतः हम कह सकते हैं कि भारत में सेवा क्षेत्र में रोज़गार की असीम सम्भावनाएँ हैं।
प्रश्न 13. क्या आप शिक्षा प्रणाली में शिक्षित बेरोज़गारी की समस्या को दूर करने के लिए कुछ उपाय सुझा सकते हैं?
उत्तर-शिक्षा प्रणाली में निम्नलिखित सुधार करके हम शिक्षित बेरोज़गारी को दूर कर सकते हैं-
- रोज़गार के अधिक अवसर पैदा किए जाने चाहिए।
- शिक्षा द्वारा लोगों को स्वावलम्बी एवं उद्यमी बनाने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
- शिक्षा को अधिक कार्योन्मुखी बनाया जाना चाहिए। एक किसान के बेटे को साधारण स्नातक की शिक्षा देने की अपेक्षा इस बात का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए कि खेत में उत्पादन कैसे बढ़ाया जा सकता है।
- शिक्षा के लिए योजना बनाई जानी चाहिए एवं इसकी भावी सम्भावनाओं को ध्यान में रखकर इसे क्रियान्वित किया जाना चाहिए।
- हमारी शिक्षा प्रणाली को रोज़गारोन्मुख (Job oriented) एवं आवश्यकतानुसार होना चाहिए। उच्च स्तर तक सामान्य शिक्षा होनी चाहिए। इसके पश्चात् विभिन्न शैक्षिक शाखाएँ प्रशिक्षण के साथ प्रारम्भ करनी चाहिए।
- केवल किताबी ज्ञान देने की अपेक्षा अधिक तकनीकी शिक्षा दी जाए।
प्रश्न 14. क्या आप कुछ ऐसे गाँवों की कल्पना कर सकते हैं जहाँ पहले रोज़गार का कोई अवसर नहीं था, लेकिन बाद में बहुतायत में हो गया?
उत्तर- निश्चय ही हम ऐसे गाँवों की कल्पना कर सकते हैं, क्योंकि हमने अपने गाँव के वयोवृद्ध लोगों से आर्थिक रूप से पिछड़े गाँवों के बारे में काफी कुछ सुना है। लोगों ने बताया है कि देश की स्वतन्त्रता के समय गाँव में मूलभूत सुविधाओं; जैसे-अस्पताल, स्कूल, सड़क, बाजार, पानी, बिजली, यातायात का अभाव था। लेकिन स्वतन्त्रता के पश्चात् सरकार द्वारा संचालित योजनाओं के माध्यम से गाँवों में आवश्यक सेवाओं का विस्तार हुआ। गाँव के लोगों ने पंचायत का ध्यान इन सभी समस्याओं की ओर आकृष्ट किया। पंचायत ने एक स्कूल खोला जिसमें कई लोगों को रोज़गार मिला। जल्द ही गाँव के बच्चे यहाँ पढ़ने लगे और वहाँ कई प्रकार की तकनीकों का विकास हुआ। अब गाँव वालों के पास बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएँ एवं पानी, बिजली की भी उचित आपूर्ति उपलब्ध थी। सरकार ने भी जीवन स्तर को सुधारने के लिए विशेष प्रयास किए थे। कृषि एवं गैर-कृषि क्रियाएँ भी अब आधुनिक तरीकों से की जाती हैं।
प्रश्न 15. किस पूँजी को आप सबसे अच्छा मानते हैं-भूमि, श्रम, भौतिक पूँजी और मानव पूँजी? क्यों?
उत्तर- जिस तरह जल, भूमि, वन, खनिज आदि हमारे बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन है उसी प्रकार मानव संसाधन भी हमारे लिए महत्त्वपूर्ण है। मानव राष्ट्रीय उत्पादन का उपभोक्ता मात्र नहीं है बल्कि वे राष्ट्रीय सम्पत्तियों के उत्पादक भी हैं। वास्तव में मानव संसाधन प्राकृतिक संसाधनों; जैसे-भूमि, जल, वन, खनिज की तुलना में इसलिए श्रेष्ठ है। क्योंकि भूमि, पूँजी, जल एवं अन्य प्राकृतिक संसाधन स्वयं उपयोगी नहीं है, वह मानव ही है जो इसे उपयोग करता है या उपयोग के योग्य बनाता है। यदि हम लोगों में शिक्षा, प्रशिक्षण एवं चिकित्सा सुविधाओं के द्वारा निवेश करें तो जनसंख्या के बड़े भाग को परिसम्पत्ति में बदला जा सकता है। हम जापान का उदाहरण सामने रखते हैं। जापान के पास कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं थे। इस देश ने अपने लोगों पर निवेश किया विशेषकर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में। अन्ततः इन लोगों ने अपने संसाधनों का दक्षतापूर्ण उपयोग करने के बाद नई तकनीक विकसित करते हुए अपने देश को समृद्ध एवं विकसित बना दिया है। इस प्रकार मानव पूँजी अन्य सभी संसाधनों की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण है। मानवीय पूँजी को किसी भी सीमा तक बढ़ाया जा सकता है और इसके प्रतिफल को कई बार गुणा किया जा सकता है। भौतिक पूँजी का निर्माण, प्रबन्ध एवं नियन्त्रण मानवीय पूँजी द्वारा किया जाता है। मानव पूँजी केवल स्वयं के लिए ही कार्य नहीं करती बल्कि अन्य साधनों को भी क्रियाशील बनाती है। मानवीय पूँजी उत्पादन का एक अत्याज्य साधन है।
प्रश्न 16. स्पष्ट कीजिए कि लोग किस प्रकार सम्पत्ति के रूप में संसाधन होते हैं?
उत्तर-किसी देश के लोग उस देश के लिए वास्तविक एवं बहुमूल्य सम्पत्ति होते हैं। इसे निम्नलिखित आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है-
- मानवीय संसाधन सभी आर्थिक क्रियाओं का अत्याज्य साधन है।
- मानव साधन की गुणवत्ता लोगों की आर्थिक एवं सामाजिक स्तर का चिह्न या पहचान है। इस प्रकार मानव विकास को वृद्धि की आवश्यकता है।
- मानवीय साधन उत्पादन का केवल आवश्यक तत्त्व ही नहीं बल्कि यह अन्य उत्पादन के साधनों को भी कार्यशील बनाता है।
- स्वस्थ, शिक्षित, कुशल एवं अनुभवी लोग राष्ट्र की सम्पत्ति होते हैं जबकि अस्वस्थ, अकुशल एवं अनुभवहीन लोग एक बोझ हैं।
- सभी उत्पादित क्रियाओं को भूमि, श्रम, पूँजी, संगठन एवं उद्यम जो उत्पादन के साधन हैं और उसकी आवश्यकता होती है। इन साधनों में से श्रम, संगठन एवं उद्यम मानवीय संसाधन हैं। इसके बिना उत्पादित क्रियाएँ सम्भव नहीं हैं।
प्रश्न 17. संगठित क्षेत्र में महिला रोज़गार वृद्धि हेतु क्या उपाय किए जा सकते हैं?
उत्तर- संगठित क्षेत्र में महिला रोज़गार बढ़ाने के लिए किए जाने वाले प्रमुख प्रयास –
- महिलाओं को अधिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए।
- महिलाओं की शिक्षा, प्रशिक्षण एवं घर से बाहर कार्य करने के सम्बन्ध में पारम्परिक विचार को परिवर्तित करने के लिए समाज में सार्वजनिक चेतना का विकास किया जाना चाहिए।
- महिलाओं के कार्य के लिए आवासीय स्थान प्रदान करना चाहिए। कार्य करने वाली महिलाओं के लिए छात्रावास बनाए जाने चाहिए।
- महिलाओं के कार्य के दौरान उनके बच्चों की देख-रेख के लिए शिशुपालन केन्द्र (creches) की व्यवस्था होनी चाहिए।
- नियुक्तिकर्ताओं को बढ़ावा दिया जाना चाहिए कि महिलाओं को रोज़गार प्रदान करें।
प्रश्न 18. महिलाओं द्वारा किए जाने वाले गैर-भुगतान कार्ष को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर-महिलाओं द्वारा सम्पादिन गैर-भुगतान कार्य निम्नलिखित हैं-
- कल्याण क्रियाएँ- मानवीय रूप से कल्याण के लिए की गई सेवाएँ एवं पिछड़े लोगों को ऊपर उठाने के लिए किए गए कार्यों का भुगतान नहीं किया जाना।
- सांस्कृतिक क्रियाएँ- सांस्कृतिक क्रियाओं में महिलाओं के योगदान जैसे नृत्य, नाटक, गीत आदि से उनको कोई कमाई नहीं होती।
- धार्मिक क्रियाएँ- कीर्तन, भजन, धार्मिक गान, भगवती जागरण आदि सेवाएँ गैर-भुगतान होती हैं।
- मनोवैज्ञानिक एवं आवश्यकताओं की सन्तुष्टि की क्रियाएँ– उपर्युक्त क्रियाओं के अतिरिक्त अन्य सेवाएँ जो निजी, भावनात्मक एवं मनोवैज्ञानिक खुशी की सन्तुष्टि के उद्देश्य से की जाती हैं वह भी भुगतान प्राप्त नहीं करती।
- घरेलू क्रियाएँ- महिलाओं को घरेलू क्रियाएँ सेवाएँ प्रदान करने की आवश्यकता होती है; जैसे-खाना बनाना, सफाई, धुलाई, कपड़े धोना आदि। जिनके लिए उन्हें भुगतान नहीं किया जाता है। उन्हें सब कार्य उनके उत्तरदायित्व पर करने होते हैं।
- दान क्रियाएँ- पड़ोसियों, कमज़ोरों एवं गरीब लोगों को दान के रूप में सेवाएँ प्रदान करने का भी भुगतान नहीं किया जाता।
- सामाजिक सेवाएँ- समाज के लाभ के लिए प्रदान की गई सेवाएँ; जैसे-गरीबों को शिक्षा, स्वास्थ्य सुरक्षा एवं सफाई के लिए भी भुगतान प्राप्त नहीं होता।
प्रश्न 19. भारत में बच्चों में शिक्षा के प्रसार हेतु सरकार ने क्या कदम उठाए हैं?
उत्तर- भारत में बच्चों में शिक्षा के प्रसार हेतु सरकार ने निम्नलिखित कदम उठाए हैं-
- उपस्थिति को प्रोत्साहित करने व बच्चों को स्कूल में बनाए रखने और उनके पोषण स्तर को बनाए रखने के लिए दोपहर की भोजन योजना लागू की गई है।
- हमारे संविधान में प्रावधान है कि राज्य सरकारें 14 वर्ष तक की आयु के वच्चों को सार्वभौमिक निःशुल्क शिक्षा उपलब्ध कराएँगी। हमारी केन्द्र सरकार ने वर्ष 2010 तक 6 से 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा देने के लिए ‘सर्व शिक्षा अभियान’ के नाम से एक योजना प्रारम्भ की है।
- यह योजना दूरस्थ शिक्षा, अनौपचारिक, दूरस्थ एवं सूचना प्रौद्योगिकी शिक्षण संस्थानों के अभिसरण पर भी केन्द्रित है।
- लड़कियों की शिक्षा पर विशेष बल दिया गया है।
- दसवीं पंचवर्षीय योजना ने इस योजना के अन्त तक 18 से 23 वर्ष तक की आयु समूह के युवाओं में उच्चतर शिक्षा हेतु नामांकन वर्तमान 6 प्रतिशत से बढ़ाकर 9 प्रतिशत करने का प्रयास किया गया।
- प्रत्येक जिले में नवोदय विद्यालय जैसे विशेष स्कूल खोले गए हैं।
- स्कूल उपलब्ध कराने के साथ ही यह लोगों को उनके बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रोत्साहित करने एवं बीच में पढ़ाई छोड़ने को हतोत्साहित करने हेतु कुछ गैर-पारम्परिक उपाय कर रही है।
- कामकाजी वयस्कों एवं खानाबदोश परिवारों के बच्चों के लिए रात्रि स्कूल एवं मोबाइल स्कूल उपलब्ध कराए गए हैं।
- उच्च विद्यालय के छात्रों को व्यावसायिक प्रशिक्षण देने के उद्देश्य से व्यावसायिक पाठ्यक्रम विकसित किए गए हैं।