Hindi Kavyashastra – Bhartiy Kavyshastra – MCQ- Objective Questions With Answer PDF Notes भारतीय काव्यशास्त्र बहुविकल्पीय प्रश्न- UP TGT/PGT,GIC,NET/ JRF, Assistent Professor UPPSC JPPSC

Hindi Kavyashastra – Bhartiy Kavyshastra – MCQ- Objective Questions With Answer PDF Notes  हिंदी काव्यशास्त्र, हिंदी (वस्तुनिष्ठ प्रश्न) भारतीय काव्यशास्त्र बहुविकल्पीय प्रश्न.

Hindi Kavyashastra – Bhartiy Kavyshastra – MCQ- Objective Questions With Answer PDF Notes भारतीय काव्यशास्त्र बहुविकल्पीय प्रश्न- UP TGT/PGT,GIC,NET/ JRF, Assistent Professor UPPSC JPPSC- यूपी टीजीटी पीजीटी हिंदी सिलेबस | UP TGT PGT Hindi Syllabus · हिन्दी साहित्य.[हिन्दी] भारतीय काव्यशास्त्र MCQ [Free Hindi PDF].भारतीय काव्यशास्त्र MCQ Quiz in हिन्दी EMRS TGT EMRS PGT SSC MTS & Havaldar Bihar Secondary Teacher Bihar TGT PGT. 

हिंदी काव्यशास्त्र, हिंदी (वस्तुनिष्ठ प्रश्न) भारतीय काव्यशास्त्र बहुविकल्पीय प्रश्न.

भारतीय काव्यशास्त्र बहुविकल्पीय प्रश्न (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)

काव्य शास्त्र (बहुविकल्पीय प्रश्न)

 

  1. ‘विप्रलम्भ श्रृंगार’ की कितनी दशाएँ मानी गयी हैं?

(क) पाँच दशाएँ

(ख) दस दशाएँ✓

(ग) दो दशाएँ

(घ) नौ दशाएँ

  1. ‘वीर रस’ का भेद नहीं है

(क) युद्धवीर

(ख) धर्मवीर

(ग) दानवीर

(घ) कर्मवीर✓

  1. ‘श्रृंगार रस’ का मित्र रस माना जाता है –

(क) करुण

(ख) रौद्र

(ग) वीभत्स

(घ) हास्य✓

  1. रस निष्पत्ति की प्रक्रिया में ‘विभावन और व्यंजना’ नामक व्यापारों की परिकल्पना करने वाले आचार्य हैं –

(क) भट्टनायक

(ख) अभिनवगुप्त✓

(ग) धनंजय

(घ) आनन्दवर्धन

  1. ‘रस निष्पत्ति’ की प्रक्रिया में ‘सत्वोद्रेक’ की परिकल्पना करने वाले विद्वान् हैं –

(क) जयदेव

(ख) भट्टनायक✓

(ग) अभिनव गुप्त

(घ) जयदेव

  1. ‘रसनिष्पत्ति’ की प्रक्रिया में ‘चर्वणा व्यापार’ की परिकल्पना करने वाले आचार्य हैं –

(क) अभिनव गुप्त✓

(ख) भट्टनायक

(ग) भट्टलोल्लट

(घ) भट्टशंकुक

  1. ‘न हि रसादृते कश्चिदर्थः प्रवर्तते’ कथन है –

(क) रुद्रट

(ख) भामह

(ग) भरत✓

(घ) विश्वनाथ

  1. ‘वात्सल्य रस’ की परिकल्पना करने वाले विद्वान् हैं-

(क) जगन्नाथ

(ख) भोजराज

(ग) अप्पय दीक्षित

(घ) विश्वनाथ✓

  1. ‘अष्टौनाट्यरसाः ‘ परिकल्पना है –

(क) वामन

(ख) भरतमुनि✓

(ग) मम्मट

(घ) जगन्नाथ

  1. भक्ति रस की परिकल्पना करने वाले विद्वान् हैं –

(क) हेमचन्द्र

(ख) रामचन्द्र-गुणचन्द्र

(ग) रूपगोस्वामी✓

(घ) भोजराज

  1. ‘निर्वेदः स्थायिभावोऽस्ति शान्तोऽपि नवमो रसः’ परिकल्पना है –

(क) मम्मट✓

(ख) राजशेखर

(ग) हेमचन्द्र

(घ) रुय्यक

  1. ‘रससूत्र’ की सर्वाधिक प्रामाणिक व्याख्या मानी जाती है-

(क) भट्टनायक की

(ख) भट्टलोल्लट की

(ग) अभिनव गुप्त की✓

(घ) भट्टशंकुक की

  1. ‘शान्त रस’ का स्थायी वाले आचार्य हैं – भाव ‘तन्मयवाद’ को मानने

(क) अभिनव गुप्त✓

(ख) भट्टनायक

(ग) भरतमुनि

(घ) भामह

  1. ‘संयोगात्’ पद का अर्थ है ‘व्यंग्य-व्यंजक’ किस विद्वान् का कथन है?

(क) भोजराज

(ख) अभिनव गुप्त✓

(ग) मम्मट

(घ) विश्वनाथ

  1. ‘रस निष्पत्ति’ की प्रक्रिया में ‘अभिधा, भावकत्व और भोजकत्व’ नामक व्यापारों की परिकल्पना करने वाले आचार्य हैं –

(क) भट्टनायक✓

(ख) अप्पय दीक्षित

(ग) जगन्नाथ

(घ) मम्मट

  1. ‘रस सूत्र’ की व्याख्या में किस आचार्य ने ‘शैव दर्शन’ की मान्यताओं को अपनाया है?

(क) अभिनव गुप्त ✓

(ख) भट्टनायक

(ग) भट्टशंकुक

(घ) भट्टलोल्लट

  1. ‘न्याय दर्शन’ के माध्यम से रस सूत्र की व्याख्या करने वाले आचार्य हैं –

(क) मम्मट

(ख) भट्टनायक

(ग) भट्टशंकुक✓

(घ) भोजराज

  1. ‘रस निष्पत्ति’ की प्रक्रिया में ‘साधारणीकरण’ की परिकल्पना करने वाले प्रथम आचार्य हैं –

(क) रुद्रट

(ख) भामह

(ग) भरतमुनि

(घ) भट्टनायक✓

  1. ‘रस निष्पत्ति’ की प्रक्रिया में ‘ब्रह्मस्वादसंविद’ की

परिकल्पना करने वाले प्रथम आचार्य हैं

(क) रुद्रभट्ट

(ख) राजशेखर

(ग) जयदेव

(घ) भट्टनायक✓

  1. ‘मीमांसा दर्शन’ के माध्यम से रस सूत्र की व्याख्या करने वाले आचार्य हैं –

(क) भट्टशंकुक

(ख) भट्टनायक

(ग) भट्टलोल्लट✓

(घ) अभिनव गुप्त

  1. ‘संयोगात्’ पद का अर्थ है ‘भोज्य-भोजक’ किस आचार्य का कथन है?

(क) भट्टनायक✓

(ख) भट्टलोल्लट

(ग) अभिनव गुप्त

(घ) जगन्नाथ

  1. ‘चित्रतुरंगन्याय’ का दृष्टान्त देने वाले आचार्य हैं

(क) भट्टनायक

(ख) भट्टशंकुक✓

(ग) भट्टलोल्लट

(घ) अभिनव गुप्त

  1. ‘सांख्य दर्शन के माध्यम से रस सूत्र की व्याख्या करने वाले आचार्य हैं –

(क) भट्टलोल्लट

(ख) अभिनव गुप्त

(ग) भट्टनायक✓

(घ) भट्टशंकुक

  1. ‘रसनिष्पत्ति’ का अर्थ ‘अभिव्यक्ति है’ किस आचार्य का कथन है?

(क) मम्मट

(ख) विश्वनाथ

(ग) अभिनव गुप्त✓

(घ) भोजराज

  1. ‘रसनिष्पत्ति’ की प्रक्रिया में ‘निर्विघ्न संविद्विश्रान्ति’ का उल्लेख करने वाले आचार्य हैं –

(क) भट्टनायक✓

(ख) भट्टलोल्लट

(ग) अभिनव गुप्त

(घ) जगन्नाथ

  1. ‘सामाजिक या सहृदय’ को रस का प्रत्यक्ष भोक्ता किस आचार्य ने सर्वप्रथम माना?

(क) भट्टनायक✓

(ख) राजशेखर

(ग) विश्वनाथ

(घ) अभिनव गुप्त

  1. ‘संयोगात्’ पद का अर्थ है – ‘अनुमाप्य-अनुमापक’ किस आचार्य का कथन है?

(क) भट्टशंकुक✓

(ख) भट्टनायक

(ग) अभिनव गुप्त

(घ) भट्टलोल्लट

  1. ‘उत्पत्तिवाद या आरोपवाद’ सिद्धान्त के प्रवर्तक माने जाते हैं-

(क) भट्टशंकुक

(ख) भट्टनायक

(ग) भामह

(घ) भट्टलोल्लट✓

  1. ‘संयोगात्’ पद का अर्थ है – ‘उत्पाद्य-उत्पादक’ किस आचार्य का कथन है?

(क) भट्टलोल्लट✓

(ख) भट्टशंकुक

(ग) भट्टनायक

(घ) अभिनव गुप्त

  1. भरतमुनि के नाट्यशास्त्र में किस अलंकार का उल्लेख नहीं है?

(क) उपमा

(ख) रूपक

(ग) यमक

(घ) अनुप्रास✓

  1. ‘सौन्दर्यमलंकारः ‘ किस आचार्य का कथन है?

(क) वामन✓

(ख) भोजराज

(ग) जगन्नाथ

(घ) विश्वनाथ

  1. ‘यत्नोऽस्यां कविना कार्यः कोऽलंकारोऽनया बिना’ किस ग्रन्थ में उल्लिखित है?

(क) काव्यालंकार✓

(ख) काव्यादर्श

(ग) साहित्यसर्वस्व

(घ) काव्यमीमांसा

  1. ‘न कान्तामपि निभूषं विभाति वनिताननम्’ किस आचार्य का कथन है?

(क) भरतमुनि

(ख) वामन

(ग) जगन्नाथ

(घ) भामह✓

  1. ‘अंगाश्रितास्त्वलंकारा मन्तव्याः कट्कादिवत्’ कथन है –

(क) विश्वनाथ

(ख) मम्मट✓

(ग) जयदेव

(घ) आनन्दवर्धन

  1. भारतीय काव्यशास्त्र की परम्परा में श्रव्यकाव्य परम्परा के प्रथम आचार्य हैं –

(क) आचार्य भामह✓

(ख) आचार्य दण्डी

(ग) आचार्य रुद्रट

(घ) आचार्य वामन

  1. ‘अभिधान प्रकार विशेषा एव चालंकाराः’ किस ग्रन्थ में उल्लिखित है?

(क) काव्यादर्श

(ख) काव्यालंकारसूत्रवृत्ति

(ग) काव्यालंकार✓

(घ) रस गंगाधर

  1. ‘जदपि सुजात सुलच्छनी, सुबरन सरस सुवृत्त। भूषण बिनु न विराजई, कविता वनिता मित्त ।।’ का उल्लेख किस ग्रन्थ में है –

(क) रसिकप्रिया

(ख) रसमीमांसा

(ग) काव्यादर्श✓

(घ) कविप्रिया

  1. ‘काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते’ कथन किस ग्रन्थ में उल्लिखित है?

(क) साहित्यदर्पण

(ख) काव्यप्रकाश

(ग) काव्यादर्श

(घ) साहित्यसर्वस्व✓

प्रश्न संख्या 139-191 के लिए निर्देश निम्नलिखित पंक्तियों में अलंकार बताइए

  1. “पलकि पीक अंजन अधर, धरे महावर भाल। आज मिले सुभली करी, भले बने हो लाल॥”

(क) प्रतीप

(ख) कारणमाला

(ग) एकावली✓

(घ) असंगति

  1. “सूर-सूर तुलसी ससी उडगन केशवदास अब के कवि खद्योत सम जहँ तहँ करत प्रकाश।”

(क) यमक✓

(ख) उत्प्रेक्षा

(ग) पुनरुक्ति प्रकाश

(घ) दीपक

  1. “पाँचन के रंग सो रंगि जाति सी, भाँति ही भाँति सरस्वती सेनी”

(क) तद्गुण✓

(ख) व्यतिरेक

(ग) उत्प्रेक्षा

(घ) निदर्शन

  1. “कुमुदिनी प्रमुदित भई, साँझ कलानिधि जोय” –

(क) समासोक्ति✓

(ख) अन्योक्ति

(ग) विभावना

(घ) वक्रोक्ति

  1. “नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास इहिकाल। अलि-कली ही सों बिंध्यो, आगे कौन हवाल॥”

(क) वक्रोक्ति

(ख) अन्योक्ति✓

(ग) समासोक्ति

(घ) व्यतिरेक

  1. “बहुरि विचार कीन्ह मन माहीं, सिय बदन सम हिमकर नाहीं।”

(क) प्रतिवस्तूपमा

(ख) प्रतीप✓

(ग) असंगति

(घ) रूपक

  1. “बड़े न हूजो गुनन बिन, बिरद बड़ाइ पाय।

कहत धतूरे सों कनक, गहनो गढ़ो न जाय।”

(क) समासोक्ति

(ख) अर्थान्तर✓

(ग) विशेषोक्ति

(घ) दृष्टान्त

  1. “तू रूप है किरण में, सौन्दर्य है सुमन में। तू प्राण है पवन में, विस्तार है गगन में।”

(क) यथाक्रमसंख्या

(ख) सादृश्यनिबंधना

(ग) उल्लेख✓

(घ) एकावली

  1. “तुलसी पावस के समय, धरी कोकिलन मौन। अब तौ दादुर बोलिहैं, हमैं पूछिहैं कौन।।”

(क) अन्योक्ति✓

(ख) समासोक्ति

(ग) व्यतिरेक

(घ) विशेषोक्ति

  1. “यह प्रेम को पंथ कराल महा, तलवार की धार पै धावनो है” –

(क) निदर्शना✓

(ख) अर्थान्तर

(ग) उत्प्रेक्षा

(घ) उपमा

  1. ‘तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये’

(क) अनुप्रास✓

(ख) यमक

(ग) अन्योक्ति

(घ) श्लेष

  1. “फूल हँसे कलियाँ मुसकाई, जगी वनस्पतियाँ अलसाई, मुख धोती शीतल जल से”-

(क) मानवीकरण✓

(ख) उन्मीलित

(ग) एकावली

(घ) कारणमाला

  1. ‘तिनहिं सुहाय न नगर बधावा। चोरहि चाँदनी रात न भावा’-

(क) निदर्शना

(ख) असंगति

(ग) प्रतिवस्तूपमा✓

(घ) उदाहरण

  1. “चंपक हरवा गर मिलि, अधिक सुहाय। जानि परै सिय हियरै, जब कुंभिलाय।”

(क) मीलित

(ख) उन्मीलित✓

(ग) परिसंख्या

(घ) एकावली

  1. “जिय बिनु देह-नदी बिनु वारि। तैसहि नाथ पुरुष बिनु नारि॥”

(क) परिसंख्या

(ख) उन्मीलित

(ग) विनोक्ति✓

(घ) व्याज स्तुति

  1. “रावण सिर सरोज वन चारी । चलि रघुवीर सिलीमुख धारी॥”

(क) अभंग श्लेष

(ख) सभंग श्लेष✓

(ग) अनुप्रास

(घ) उत्प्रेक्षा

  1. ‘फूलहिं फलहिं न बेंत, जदपि सुधा बरसहिं जलद’ (क) विशेषोक्ति✓

(ख) व्यतिरेक

(ग) विभावना

(घ) प्रतीप

  1. “कपि करि हृदय विचार, दीन्ह मुद्रिका डारि तब। जनु अशोक अंगार, दीन्ह हरषि उठि कर गहेड” –

(क) भ्रान्तिमान✓

(ख) रूपक

(ग) उपमा

(घ) श्लेष

  1. “घिर रहे थे घुंघराले बाल, अंस अवलम्बित मुख के पास, नीले घनशावक से सुकुमार, सुधा भरने विधु के पास “-

(क) गम्योत्प्रेक्षा✓

(ख) हेतूत्प्रेक्षा

(ग) फलोत्प्रेक्षा

(घ) वस्तूत्प्रेक्षा

  1. “जो रहीम गति दीप कै, कुल कपूत कै सोई। बारे ते उजियारों करै, बढ़ो अँधेरो होई।”

(क) अनुप्रास

(ख) श्लेष✓

(ग) यमक

(घ) उत्प्रेक्षा

  1. ‘चारू चन्द्र की चंचल किरणें खेल रही हैं जल थल में’ –

(क) छेकानुप्रास

(ख) अन्त्यानुप्रास

(ग) लाटानुप्रास

(घ) वृत्यानुप्रास✓

  1. “नील सरोरुह नीलमणि नील नीर घन श्याम” –

(क) रसनोपमा

(ख) पूर्णोपमा

(ग) मालोपमा✓

(घ) लुप्तोपमा

  1. ‘मनहुँ मकर सुधारस, कीड़त आपु अनुरागत’ –

(क) उपमा

(ख) रूपक

(ग) संदेह

(घ) उत्प्रेक्षा✓

  1. ‘उधो जोग-जोग हम नाहीं’ –

(क) एकावली

(ख) विरोधाभास

(ग) श्लेष

(घ) यमक✓

  1. “राम नाम सुंदर करतारी। संसय विहग उड़ावन हारी”

(क) मालारूप परम्परित रूपक

(ख) साँगरूपक

(ग) एक देशविवर्ती साँगरूपक

(घ) केवल परम्परित रूपक✓

  1. “बाँधा था विधु को किसने इन काली जंजीरों से। मणि वाले फणियों का मुख-क्यों भरा हुआ हीरों से॥”

(क) चपलातिशयोक्ति

(ख) गम्योत्प्रेक्षा

(ग) हेतुत्प्रेक्षा

(घ) रूपकातिशयोक्ति✓

  1. ‘सेज नागिन फिरि-फिरि डसी’ –

(क) रूपक✓

(ख) उपमा

(ग) उत्प्रेक्षा

(घ) दीपक

  1. ‘सजल नीरद सी-कल कान्ति थी’ –

(क) उत्प्रेक्षा

(ख) रूपक

(ग) यमक

(घ) उपमा✓

  1. “मेरे मन के मीत मनोहर। तुम हो प्रियवर मेरे सहचर।”

(क) यमक

(ख) उपमा

(ग) श्लेष

(घ) अन्त्यानुप्रास✓

  1. ‘तुलसीदास सीदत निसिदिन देखकर तुम्हार निठुराई’-

(क) छेकानुप्रास

(ख) लाटानुप्रास

(ग) श्रुत्यानुप्रास✓

(घ) वृत्यानुप्रास

  1. “आये हो मधुमास, के प्रियतम ऐ नाहि। आये हो मधुमास, के प्रियतम ऐ नाहिं।”-

(क) छेकानुप्रास

(ख) लाटानुप्रास✓

(ग) वृत्यानुप्रास

(घ) अन्त्यानुप्रास

  1. ‘कबीरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर’ –

(क) यमक✓

(ख) अनुप्रास

(ग) श्लेष

(घ) उपमा

  1. ‘बीती विभावरी जाग री’ –

(क) रूपक✓

(ख) यमक

(ग) दीपक

(घ) विशेषोक्ति

  1. ‘जननी तू जननी भई, विधि सन कछु लखाय’ –

(क) छेकानुप्रास

(ख) लाटानुप्रास✓

(ग) वृत्यनुप्रास

(घ) वक्रोक्ति

  1. ‘नदियाँ जिनकी यशधारा सी बहती हैं, अब भी निशिवासर’-

(क) विभावना

(ख) अर्थान्तर

(ग) व्यतिरेक

(घ) उपमा✓

  1. ‘परिपूरण सिंदूर पूर कैधों मंगलघट’ –

(क) भ्रान्तिमान

(ख) संदेह✓

(ग) विभावना

(घ) विशेषोक्ति

  1. “विस्मृति का नील नलिन, रस बरसों अपांग के घन से”-

(क) श्लेष

(ख) वक्रोक्ति

(ग) अनुप्रास✓

(घ) यमक

  1. गुन गयै न गुन कटै –

(क) यमक✓

(ख) रूपक

(ग) उत्प्रेक्षा

(घ) विरोधाभास

  1. “रनित भृंग घंटावली, झरित दान मधुनीर” – –

(क) साँगरूपक✓

(ख) निरंगरूपक

(ग) परम्परित रूपक

(घ) हेतूत्प्रेक्षा

  1. “सुबरन को खोजत फिरत कवि, व्यभिचारी, चोर”-

(क) उत्प्रेक्षा

(ख) विशेषोक्ति

(ग) यमक

(घ) श्लेष✓

  1. “पतझड़ था झाड़ खड़े थे, सूखी सी फुलवारी में।

किसलय नव कुसुमविछाकर, आये तुम इस क्यारी में॥”

(क) रूपकातिशयोक्ति✓

(ख) भेदकातिशयोक्ति

(ग) चपलातिशयोक्ति

(घ) असंबन्धातिशयोक्ति

  1. “मैंनन की करि कोठरी, पुतली पलंग बिछाय” –

(क) उत्प्रेक्षा

(ख) रूपक✓

(ग) संदेह

(घ) उपमा

  1. ‘संत हृदय नवनीत समाना’

(क) उत्प्रेक्षा

(ख) अतिशयोक्ति

(ग) व्यतिरेक

(घ) उपमा✓

  1. ‘सन्धानेउ प्रभु विशिख कराला । उठी उ‌द्धि उर अंतर ज्वाला।।’

(क) चपलातिशयोक्ति

(ख) अक्रमातिशयोक्ति✓

(ग) उपमा

(घ) उत्प्रेक्षा

  1. ‘पायो जी मैंने राम रतन धन पायों’

(क) उपमा

(ख) रूपक✓

(ग) प्रतीप

(घ) अत्युक्ति

  1. “लाज भरी अँखिया बिहँसी, अलि बोल कहे बिनु

उत्तर दीन्हीं” –

(क) विशेषोक्ति

(ख) रूपक

(ग) विभावना✓

(घ) अत्युक्ति

  1. ‘शिव शंकर हर भव भय मेरे’-

(क) वीप्सा अलंकार

(ख) पुनरुक्तिवदाभास अलंकार✓

(ग) सभंग श्लेष अलंकार

(घ) आदि यमक अलंकार

  1. “राम सप्रेम पुलकि उर लावा। परम रंक जनु पारस पावा।”-

(क) वस्तूत्प्रेक्षा

(ख) फलोत्प्रेक्षा

(ग) गम्योत्प्रेक्षा

(घ) हेतूत्प्रेक्षा✓

  1. “ओ चिन्ता की पहली रेखा, अरे विश्ववन की व्याली। ज्वाला मुखी स्फोट सी भीषण, प्रथम कम्प सी मतवाली॥”

(क) माला निरंग रूपक✓

(ख) परम्परित रूपक

(ग) एकदेश विवर्ती रूपक

(घ) शुद्धनिरंग रूपक

  1. “तरी को ले जाओ मझधार, डूबकर हो जाओ पार”-

(क) विशेषोक्ति

(ख) विभावना

(ग) विरोधाभास✓

(घ) अत्युक्ति

  1. “मैं सुकुमारि नाथ बन जोगू तुमहि उचित तप मोहि कहँ भोगू”-

(क) वक्रोक्ति✓

(ख) यमक

(ग) श्लेष

(घ) रूपक

  1. ‘साधू ऊँचे सैल सम, किन्तु प्रकृति सुकुमार’ –

(क) संदेह

(ख) भ्रान्तिमान

(ग) विरोधाभास✓

(घ) व्यतिरेक

  1. ‘तरुण अरुण वारिज नयन’ –

(क) मालोपमा

(ख) पूर्णोपमा

(ग) लुप्तोपमा✓

(घ) रसनोपमा

  1. ‘मधुमय वसन्त जीवन वन के’ यहाँ वसंत किसका प्रतीक है?

(क) माधुर्य

(ख) सौन्दर्य

(ग) यौवन✓

(घ) वृद्धावस्था

  1. छन्दों का सर्वप्रथम उल्लेख मिलता है –

(क) ऋग्वेद✓

(ख) उपनिषद्

(ग) सामवेद

(घ) यजुर्वेद

  1. शिल्पगत आधार पर दोहे से उल्टा छन्द है

(क) रोला

(ख) चौपाई

(ग) सोरठा✓

(घ) बरवै

  1. ‘छन्द’ के भेद माने जाते हैं –

(क) चार भेद

(ख) तीन भेद

(ग) दो भेद✓

(घ) नौ भेद

196, दोहा किस प्रकार का मात्रिक छन्द है

(क) सम

(ख) विषमं

(ग) अर्द्धसम✓

(घ) इनमें से कोई नहीं

  1. ‘त्यक्षरी सूत्र’ के निर्माता माने जाते हैं –

(क) पिंगल

(ख) भरत✓

(ग) भामह

(घ) वामन

  1. छन्दों के आदि प्रणेता माने जाते हैं –

(क) व्याडि

(ख) पतंजलि

(ग) पिंगल✓

(घ) हेमचन्द्र

  1. हिन्दी कविता में मुक्त छन्द रचना का सूत्रपात किया-

(क) जयशंकर प्रसाद

(ख) सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’✓

(ग) मैथिलीशरण गुप्त

(घ) हरिऔध

  1. ‘मात्रिक छन्द’ के कितने भेद माने जाते हैं?

(क) तीन भेद✓

(ख) पाँच भेद

(ग) सात भेद

(घ) दो भेद

प्रश्न संख्या 1 से 100 तक  प्रश्न संख्या 101 से 200 तक 
प्रश्न संख्या 201 से 300 तक  प्रश्न संख्या 301 से 400+ तक 
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