UP Board and NCERT Solution of Class 9 Science [विज्ञान] ईकाई 3 गति, बल तथा कार्य – Chapter-11 Sound (ध्वनि) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Dirgh Uttareey Prashn
प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 9वीं विज्ञान ईकाई3 गति, बल तथा कार्य के अंतर्गत चैप्टर11 (ध्वनि) पाठ के दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं कि पोस्ट आपको पसंद आयेगी अगर पोस्ट आपको पसंद आई तो इसे अपने दोस्तों के साथ में जरुर शेयर करें
Class | 9th | Subject | Science (Vigyan) |
Pattern | NCERT | Chapter- | Sound |
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Dirgh Uttareey Prashn
प्रश्न 1. तरंग गति से क्या तात्पर्य है? स्पष्ट रूप से समझाइए तथा तरंग गति की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर– तरंग गति (Wave Motion) – यदि किसी तालाब के शान्त जल में एक पत्थर ऊपर से डाला जाय तो जिस स्थान पर पत्थर गिरता है, वहाँ पर जल के कण अपने स्थान से हट जाते हैं अर्थात् वहाँ पर जल में एक विक्षोभ (Disturbance) उत्पन्न होता है। इस विक्षोभ के कारण जल के कण ऊपर-नीचे दोलन करने लगते हैं।
जब जल का कोई कण, जो चारों ओर अन्य कणों से घिरा है, अपनी साम्यावस्था से हटता है तो जिन दूसरे कणों के निकट जाता है वे जल की (अंतर-आणविक बल से उत्पन्न) प्रत्यास्थता के कारण उसे प्रतिकर्षित करते हैं तथा ये कण जिन कणों से दूर हटत्ता है वे उसे आकर्षित करते हैं, इस प्रकार कण पर प्रत्यानयन बल उत्पन्न होता है जो कण की माध्य-स्थिति से उसके विस्थापन के अनुक्रमानुपाती तथा माध्य-स्थिति की दिशा में होता है। अतः कण अपनी माध्य-स्थिति के इधर-उधर सरल आवर्त गति करने लगता है। काक
अब इस कण पर लगे प्रत्यानयन बल की प्रतिक्रिया में इसके निकटवर्ती दूसरे कण पर भी ठीक इसी प्रकार का बल लगता है, जिसके कारण दूसरा कण भी अपने स्थान से विस्थापित होकर दोलन-गति करने लगता है। एक कण से दूसरे में दोलन-गति अथवा विक्षोभ के स्थानान्तरण की यह प्रक्रिया क्रमागत कणों में आगे बढ़ती जाती है तथा जल के तल पर एक स्थान पर उत्पन्न विक्षोभ चारों ओर फैलता जाता है। इसी प्रकार किसी भी माध्यम (ठोस, द्रव, या गैस) में किसी स्थान पर उत्पन्न विक्षोभ, माध्यम में सभी ओर को स्थानान्तरित होता हुआ फैलता जाता है। प्रारम्भ में जिस स्थान पर विक्षोभ उत्पन्न किया जाता है। वहाँ पर कणों की गति के कारण उनमें गतिज ऊर्जा होती है। जैसे-जैसे विक्षोभ आगे बढ़ता जाता है, दोलन करने वाले अन्य कणों को भी गतिज ऊर्जा मिलती जाती है अतः उपर्युक्त संपूर्ण प्रक्रिया में, माध्यम में ऊर्जा का भी स्थानान्तरण होता है। इस संपूर्ण प्रक्रिया को तरंग गति (Wave Motion) कहते हैं। अतः “तरंग गति ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी माध्यम में उत्पन्न विक्षोभ, माध्यम के क्रमागत कणों के दोलनों की सहायता से, माध्यम में एक निश्चित चाल से स्थानान्तरित होता है।“
उपर्युक्त उदाहरणों में तरंग गति की विशेषताओं को अग्रवत् दिया जा सकता है-
(i) तरंग गति की उत्पत्ति किसी माध्यम में किसी स्थान पर विक्षोभ उत्पन्न करने से होती है।
(ii) तरंग गति के कारण माध्यम में विक्षोभ एक निश्चित चाल से एक कण से दूसरे कण को स्थानान्तरित होते हुए आगे बढ़ता है।
(iii) तरंग गति के कारण माध्यम के कण विक्षोभ के साथ आगे गति नहीं करते वरन् अपनी माध्य स्थिति के इधर-उधर आवर्त गति करते हैं।
(iv) माध्यम के कणों के दोलनों के द्वारा विक्षोभ उत्पन्न होने के स्थान से गतिज ऊर्जा तथा स्थितिज ऊर्जा का सभी दिशाओं में एक कंण से अगले कण में स्थानान्तरण होता जाता है, अर्थात् यांत्रिक ऊर्जा (गतिज ऊर्जा + स्थितिज ऊर्जा) का संचरण होता है।
प्रश्न 2. तरंगें कितने प्रकार की होती हैं? उनके एक–एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर– किसी माध्यम में तरंग गति होने पर दो प्रकार की गतियाँ होती हैं- (i) माध्यम के कणों की अपनी माध्य स्थिति के इधर-उधर दोलन-गति तथा (ii) माध्यम में विक्षोभ अथवा तरंग की गति। इन गतियों के आधार पर तरंगें दो प्रकार की होती हैं-
(i) अनुप्रस्थ तरंगें (Transverse Wave)- जब माध्यम के कणों के दोलन करने की दिशा, तरंग की गति की दिशा के लम्बवत् होती है, तो ऐसी तरंग को अनुप्रस्थ तरंग कहते हैं। उदाहरण– (i) एक सिरे पर बँधी डोरी के दूसरे सिरे को ऊपर-नीचे या दाहिने-बाएँ हिलाने पर डोरी में उत्पन्न तरंगें अनुप्रस्थ होती हैं।
(ii) जल या किसी द्रव के ऊपरी तल पर पत्थर गिराने या द्रव के तल को ऊपर-नीचे हिलाने से उत्पन्न तरंगें।
(iii) किसी तनी हुई डोरी, तार या एक सिरे पर कसी हुई छड़ को लंबाई के लंबवत् हटाकर छोड़ने से उत्पन्न तरंगें।
(ii) अनुदैर्ध्य तरंग (Longitudinal Wave)- अनुदैर्ध्य तरंग में माध्यम के कणों के दोलन की दिशा, तरंग-गति की दिशा के समान्तर होती है।
उदाहरण– (i) वायु में ध्वनि करती या कंपन हुई वस्तु से वायु या किसी गैस में अनुदैर्ध्य तरंगें उत्पन्न होती हैं।
(ii) तने हुए तार, डोरी या छड़ को लम्बाई की दिशा में रगड़ने से अनुदैर्ध्य तरंग उत्पन्न होती है।
(iii) किसी स्प्रिंग के एक सिरे पर कोई भार बाँध कर लटकाने तथा भार को कुछ नीचे खींचकर छोड़ देने से स्प्रिंग में ऊपर-नीचे दोलन होता है तथा तरंग भी ऊपर-नीचे चलती है। यह अनुदैर्ध्य तरंग है।
इसके अतिरिक्त अनुप्रस्थ तथा अनुदैर्ध्य तरंगों में निम्न अन्तर होते हैं-
- अनुदैर्ध्य तरंगें सभी प्रकार के माध्यमों (ठोस, द्रव या गैस) में संचरित हो सकती हैं, जबकि अनुप्रस्थ तरंगें केवल ठोस माध्यम में तथा द्रवों के केवल बाहरी पृष्ठ पर संचरित होती हैं। अनुप्रस्थ तरंगें गैसों में नहीं चल सकीं।
- अनुदैर्ध्य तरंगों में माध्यम में सभी बिन्दुओं पर संपीडन (com- pression) तथा विरलन (Rarefaction), अर्थात् दाब का बढ़ना-घटना (आवर्त परिवर्तन) होता है, जबकि अनुप्रस्थ तरंगों द्वारा दाब का परिवर्तन नहीं होता।
प्रश्न 3. अल्ट्रासोनोग्राफी क्या है? इसकी कार्य–विधि एवं उपयोग का वर्णन कीजिए।
उत्तर– अल्ट्रासोनोग्राफी (Ultrasonography) – वह तकनीक जिसके द्वारा शरीर के किसी आंतरिक भाग या अंग का प्रतिबिम्ब, पराध्वनि तरंगों का प्रयोग कर मॉनीटर पर प्रदर्शित या फिल्म पर मुद्रित किया जा सके, अल्ट्रासोनोग्राफी कहलाता है।
कार्य–विधि – अल्ट्रासोनोग्राफी प्राप्त करने के लिए, पराध्वनि संसूचक का प्रयोग किया जाता है। इस तकनीक में, पराध्वनि तरंगें उस भाग या अंग से प्रवाहित की जाती हैं और उस भाग के अंतकों से परावर्तित हो जाती हैं। विभिन्न घनत्व वाले भागों से उनका परावर्तन भिन्न होता है। परावर्तित तरंगों को विद्युत संकेतों में बदलकर उस भाग या अंग का प्रतिबिम्ब प्राप्त कर लिया जाता है।
उपयोग– (i) अल्ट्रासोनोग्राफी का उपयोग आंतरिक अंगों जैसे यकृत, पित्ताशय, वृक्क, गर्भाशय आदि की संरचना के प्रतिबिम्ब प्राप्त करने में किया जाता है।
(ii) अल्ट्रासोनोग्राफी का उपयोग गर्भकाल में भ्रूण की जाँच तथा जन्मजात दोष या अनियमितताओं का पता लगाने में किया जाता है।
(iii) अल्ट्राध्वनि तरंगें वृक्क की पथरी को तोड़कर महीन कणों में बदलने में उपयोगी हैं जो मूत्र के साथ बाहर निकाल दिए जाते हैं।