UP Board and NCERT Solution of Class 9 Science [विज्ञान] ईकाई 4 खाद्य उत्पादन – Chapter-12 Improvement in Food Resources(खाद्य संसाधनों में सुधार विज्ञान ) NCERT Based Important Question Answer
प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 9वीं विज्ञान ईकाई4 खाद्य उत्पादन के अंतर्गत चैप्टर12(खाद्य संसाधनों में सुधार विज्ञान) पाठ के NCERT के कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर सहित प्रदान किया जा रहे हैं । UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं कि पोस्ट आपको पसंद आयेगी अगर पोस्ट आपको पसंद आई तो इसे अपने दोस्तों के साथ में जरुर शेयर करें
Class | 9th | Subject | Science (Vigyan) |
Pattern | NCERT | Chapter- | Improvement in Food Resources |
NCERT Based Important Question Answer
प्रश्न 1. अनाज, दाल, फल तथा सब्जियों से हमें क्या प्राप्त होता है?
उत्तर– (1)अनाज-जैसे गेहूँ, चावल, मक्का, बाजरा तथा ज्वार से कार्बोहाइड्रेट प्राप्त होता है जो हमें ऊर्जा प्रदान करता है।
(2) दालें- जैसे चना, मटर, मूंग, उड़द, अरहर और मसूर इत्यादि सभी दालें हैं जो हमें प्रोटीन प्रदान करती हैं जो हमारे शरीर की टूट-फूट की मरम्मत में मुख्य भूमिका निभाते हैं।
(3) फल तथा सब्जियाँ – जैसे घीया, तोरी, गोभी, मटर, आलू, अंगूर, आम, अनार, अनन्नास इत्यादि हमें विटामिन, खनिज व कुछ मात्रा में प्रोटीन इत्यादि प्रदान करते हैं।
प्रश्न 2. जैविक तथा अजैविक कारक किस प्रकार फसल उत्पादन को प्रभावित करते हैं?
उत्तर–जैविक कारक – जैसे कीट, निमैटोड, केंचुआ व अन्य जीवाणु इत्यादि सभी जैविक कारक में आते हैं। ये फसलों के उत्पादन में भी सहायता करते हैं, जैसे-फलीदार पौधों की जड़ों में पाए जाने वाले जीवाणु जो वायुमण्डल की नाइट्रोजन से यौगिक बनाते हैं, केंचुआ भी मिट्टी को पोली (सरन्ध्र व नरम) बनाकर उपजाऊ बनाता है जिससे फसल उत्पादन बढ़ता है परन्तु कुछ कीट व निमैटोड फसल उत्पादन को कम करते हैं। अतः हमें इन परिस्थितियों को सहन करने वाली किस्में प्रयोग करनी चाहिए जैसे कम परिपक्व काल वाली फसलें आर्थिक दृष्टि से अच्छी होती हैं।
अजैविक कारक–जैसे वायु, तापमान, मिट्टी, जल इत्यादि अजैविक कारक में गिने जाते हैं। भूमि की अम्लीयता या क्षारकता, गर्मी, ठण्ड तथा पाला इत्यादि फसल उत्पादन को कम करते हैं। अतः हमें ऐसी फसलों का उपयोग करना चाहिए जो इन सभी परिस्थितियों को अच्छी प्रकार सहन् कर सकें। इसके लिए मिश्रित फसलें व अन्तर-फसली विधियाँ अपनानी चाहिए।
प्रश्न 3. फसल सुधार के लिए ऐच्छिक सस्य विज्ञान गुण क्या हैं?
उत्तर–पशुओं के लिए चारा प्राप्त करने के लिए ऐसी फसलें अधिक उपयुक्त होती हैं जिनमें पौधे लंबे तथा सघन शाखाओं वाले हों, अर्थात् यह फसल का ऐच्छिक सस्य विज्ञान गुण है। इसी प्रकार अनाज उत्पादन के लिए बौने पौधे उपयुक्त ऐच्छिक सस्य विज्ञान गुण है, क्योंकि इनको उगाने के लिए ‘ कम पोषक तत्त्वों की आवश्यकता होगी। इनके गिरने की संभावनाएँ भी कम होंगी। फसलों के उगने से लेकर कटाई तक कम समय लगना आदि उपयुक्त ऐच्छिक सस्य विज्ञान गुण कहलाते हैं। ऐच्छिक सस्य विज्ञान गुणों वाली किस्में अधिक उत्पादन करने में सहायक होती हैं।
प्रश्न 4. वृहत् पोषक क्या हैं और इन्हें वृहत् पोषक क्यों कहते हैं?
उत्तर–वे तत्त्व जो पौधों की वृद्धि के लिए अत्यन्त आवश्यक होते हैं उन्हें वृहत् पोषक तत्त्व कहते हैं। ये पोषक तत्त्व बहुत अधिक मात्रा में आवश्यक होते हैं अतः इन्हें पोषक तत्त्व कहते हैं।
प्रश्न 5. पौधे अपना पोषक कैसे प्राप्त करते हैं?
उत्तर–पौधे पोषक तत्त्वों को खाद तथा उर्वरकों से प्राप्त करते हैं।
प्रश्न 6. मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने के लिए खाद तथा उर्वरक के उपयोग की तुलना कीजिए।
उत्तर–मिट्टी की उर्वरता की दृष्टि से खाद तथा उर्वरक के उपयोग की तुलना –
खाद व उर्वरक दोनों के प्रयोग में निम्नलिखित अन्तर हैं-
खाद | उर्वरक |
1. खाद में कार्बनिक पदार्थ ‘अधिक होता है।
2. ये सब्जियों, पेड़-पौधे, जन्तुओं के अवशेष के जैव अवशेष के जैव निम्नीकरण द्वारा तैयार की जाती है। 3. इनमें पोषक तत्त्व की मात्रा कम होती है। 4. खाद का भण्डारण एवं स्थानांतरण असुविधा-जनक है। 5. खाद का प्रयोग अधिक मात्रा में किया जाता है। 6. इसमें कोई पोषक तत्त्व विशिष्ट नहीं होता। 7. लगातार प्रयोग से भी भूमि की दशा ठीक बनी रहती है। |
1. उर्वरक अकार्बनिक पदार्थों से बने होते हैं।
2. ये रासायनिक पदार्थों से ही निर्मित होते हैं। 3. इनमें पोषक तत्त्व की मात्रा अधिक होती है। 4. इनका भण्डारण एवं स्थानांतरण सुविधाजनक व सरल होता है। 5. इनका प्रयोग कम मात्रा में किया जाता है। 6. उर्वरक सदैव पोषक विशिष्ट होते हैं। 7. इनके सतत प्रयोग से मिट्टी की उर्वरता घट जाती है। |
प्रश्न 7. निम्नलिखित में से कौन–सी परिस्थिति में सबसे अधिक लाभ होगा ? क्यों ?
(a) किसान उच्चकोटि के बीज का उपयोग करें, सिंचाई ना करें अथवा उर्वरक का उपयोग ना करें।
(b) किसान सामान्य बीजों का उपयोग करें, सिंचाई करें तथा उर्वरक का उपयोग करें।
(c) किसान अच्छी किस्म के बीज का प्रयोग करें, सिंचाई करें, उर्वरक का उपयोग करें तथा फसल सुरक्षा की विधियाँ अपनाएँ।
उत्तर–परिस्थिति (c) में सबसे अधिक लाभ होगा। अच्छी किस्म के बीजों का चयन परिस्थितियों के अनुसार, उनकी रोगों के प्रति प्रतिरोधकता, उत्पादन की गुणवत्ता एवं उच्च उत्पादन क्षमता के अनुसार करने से उत्पादन अच्छा होता है। गुणवत्ता के कारण फसल का अच्छा मूल्य मिलता है। समय-समय पर सिंचाई करने और उर्वरकों का उपयोग करने से फसल अच्छी होती है। फसल को कीटों, पीड़कों तथा खरपतवार से बचाने के लिए कीटनाशकों, पीड़कनाशकों, खरपतवारनाशकों का उपयोग करना चाहिए। उचित फसल चक्र अपनाकर भी खरपतवार और पीड़कों से फसल की सुरक्षा की जा सकती है।
प्रश्न 8. फसल की सुरक्षा के लिए निरोधक विधियाँ तथा जैव नियंत्रण क्यों अच्छा समझा जाता है?
उत्तर–फसलों की सुरक्षा के लिए बचाव की विधियों तथा जैविक विधियों का प्रयोग किया जाता है क्योंकि ये न तो फसलों को न ही वातावरण को हानि पहुँचाती हैं। पीड़कनाशी व अन्य रासायनिक पदार्थ फसलों को हानि पहुँचाते हैं तथा वातावरण को प्रदूषित करते हैं।
प्रश्न 9. भंडारण की प्रक्रिया में कौन–से कारक अनाज की हानि के लिए उत्तरदायी हैं?
उत्तर–अनाज के भण्डारण में बहुत हानि हो सकती है। इस हानि के लिए जैविक तथा अजैविक दोनों कारक उत्तरदायी हैं।
जैविक कारक–जैविक कारकों में कीट, कृंतक, कवक, चिंचड़ी तथा जीवाणु आते हैं।
अजैविक कारक–अजैविक कारकों में भण्डारण के स्थान पर उपयुक्त नमी व ताप का अभाव है। ये दोनों प्रकार के कारक फसल की गुणवत्ता को कम करते हैं और वजन भी कम करते हैं। बीजों के अंकुरण की क्षमता कम हो जाती है और उत्पाद बदरंग हो जाते हैं। अतः इन कारकों पर नियंत्रण पाने के लिए अनाज को धूप व छाया में सुखाना चाहिए और फिर धूमक का प्रयोग करना चाहिए ताकि उसमें पीड़क उत्पन्न न हो सकें।
प्रश्न 10. पशुओं की नस्ल सुधार के लिए प्रायः कौन–सी विधि का उपयोग किया जाता है और क्यों?
उत्तर– विदेशज नस्लों (Foreign or Exotic Breeds) में दुग्ध स्रवणकाल देशज नस्लों (desi breeds) की अपेक्षा अधिक लंबा होता है। देशज एवं विदेशज नस्लों के बीच संकरण कराने पर संकर नस्लें उत्पन्न होती हैं। इन्हें प्राकृतिक (Natural) क्रॉस (Cross) अथवा कृत्रिम वीर्यसेचन (Artificial Insemination) द्वारा उत्पन्न किया जाता है। कृत्रिम वीर्यसेचन से अनेक लाभ हैं, जैसे:
(i) एक बैल से प्राप्त शुक्राणु द्वारा 3000 तक गायों को निषेचित कर सकते हैं।
(ii) हिमशीतित वीर्य को लंबे काल तक संचित रखा जा सकता है।
(iii) इसे देश के सुदूर भागों तक पहुँचाया जा सकता है।
(iv) सफल निषेचन एवं आर्थिक दृष्टि से यह उपयोगी तथा लाभकारी है।
प्रश्न 11. निम्नलिखित कथन की विवेचना कीजिए–
“यह रुचिकर है कि भारत में कुक्कुट, अल्प रेशे के खाद्य पदार्थों को उच्च पोषकता वाले पशु प्रोटीन आहार में परिवर्तन करने के लिए सबसे अधिक सक्षम है। अल्प रेशे के खाद्य पदार्थ मनुष्यों के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं।“
उत्तर – कुक्कुट विशेषकर किसान पालता है या मुर्गीपालन घरों में किया जाता है जहाँ खाली स्थान ज्यादा हो और पशु भी पाले जा रहे होते हैं। मुर्गी को मांस (ब्रौलर) व अण्डे प्राप्त करने के लिए पाला जाता है। ये अण्डे देने वाले पक्षी (कुक्कुट) कृषि के उपोत्पाद से प्राप्त सस्ते रेशेदार पदार्थों को भोजन के रूप में उपयोग करते हैं और उसे प्रोटीन आहार के रूप में परिवर्तित करते हैं अर्थात् इनके अण्डों में व मांस में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है। अतः यह ठीक है कि कुक्कुट कम रेशेदार को उच्चकोटि के पशु प्रोटीन आहार में परिवर्तित कर देते हैं।
प्रश्न 12. पशुपालन तथा कुक्कुट पालन के प्रबंधन प्रणाली में क्या समानता है?
उत्तर–दोनों के पालन के लिए निम्नलिखित बातें आवश्यक हैं- (i) उचित आवास व्यवस्था (ii) उचित प्रकाश की व्यवस्था
(iii) उचित पोषण व्यवस्था
(iv) समय पर टीकाकरण
(v) विकसित नस्लों का उपयोग
(vi) सफाई तथा स्वच्छता का प्रबन्ध ।
प्रश्न 13. ब्रौलर तथा अंडे देने वाली लेयर में क्या अंतर है? इनके प्रबंधन के अन्तर को भी स्पष्ट कीजिए।
उत्तर–अंडों के उत्पादन के लिए पाली गयी कुक्कुट लेयर व मांस उत्पादन के लिए पाले गये कुक्कट ब्रौलर कहलाते हैं। कुक्कुट अनाज, कीड़े-मकोड़े, सब्जियों के अपशिष्ट तथा कुछ कंकड़ आदि पर पोषित किये जाते हैं। ब्रौलर के आहार में प्रोटीन तथा वसा प्रचुर मात्रा में होनी चाहिए। इनके आवास में उचित ताप तथा स्वच्छता रखनी भी आवश्यक है। स्वच्छता के साथ नियमित रूप से रोगाणुनाशक का छिड़काव करना चाहिए। इनमें जीवाणु, विषाणु, कवक, परजीवी आदि से कई प्रकार के रोग हो सकते हैं अतः रोगों से बचाने के लिए टीका लगवाना चाहिए।
प्रश्न 14. मछलियाँ कैसे प्राप्त करते हैं?
उत्तर– मछली को समुद्र से या अलवणीय जल में से जाल द्वारा पकड़कर प्राप्त किया जाता है। मछली को पकड़ने के लिए विभिन्न प्रकार के जालों का उपयोग नाव से किया जाता है। सैटेलाइट तथा प्रतिध्वनि गंभीरतामापी से खुले समुद्र में मछलियों के बड़े समूह का पता लगाया जाता है जिससे मछली का उत्पादन बढ़ जाता है। अधिक आर्थिक महत्त्व वाली समुद्री मछलियों का समुद्री जल में संवर्धन भी किया जाता है। समुद्र में मछली संवर्धन को मैरीकल्चर कहते हैं।
प्रश्न 15. मिश्रित मछली संवर्धन के क्या लाभ हैं?
उत्तर– मिश्रित मछली संवर्धन, अधिक मछली संवर्धन की विधि है इसमें देशी तथा विदेशी प्रकार की मछलियों का उपयोग किया जाता है। ऐसे तंत्र में अकेले तालाब में 5 या 6 मछली स्पीशीज का उपयोग किया जाता है। इनमें ऐसी मछलियों को चुना जाता है जिनमें आहार के लिए प्रतिस्पर्धा न हो और उनके आहार की आदत अलग-अलग हों। इसके फलस्वरूप तालाब के हर भाग में स्थित प्राप्त आहार का उपयोग हो जाता है, जैसे-कटला मछली पानी की सतह से अपना भोजन लेती है। मृगल तथा कॉमन कार्प तालाब की तली से भोजन लेती है। रोहू मछली तालाब के मध्य क्षेत्र से अपना भोजन लेती है। ग्रास कार्प खरपतवार खाती है। इस प्रकार ये सभी मछलियाँ साथ-साथ रहते हुए भी बिना स्पर्धा से अपना-अपना आहार लेती हैं, जिससे मछली के उत्पादन में वृद्धि होती है।
प्रश्न 16. मधु उत्पादन के लिए प्रयुक्त मधुमक्खी में कौन–कौन से ऐच्छिक गुण होने चाहिए?
उत्तर–मधु उत्पादन के लिए प्रयुक्त मधुमक्खी में निम्नलिखित ऐच्छिक गुण होने चाहिए-
- इनमें मधु इकट्ठा करने की क्षमता अधिक होनी चाहिए।
- डंक कम मारने का स्वभाव ।
- छत्ते में काफी समय तक रहे।
- प्रजनन तीव्रता से करें।
इन सब गुणों के लिए इटेलियन मधुमक्खी का उपयोग किया जाता है।
प्रश्न 17. चरागाह क्या है और ये मधु उत्पादन से कैसे सम्बन्धित है?
उत्तर– वह वनस्पति क्षेत्र जहाँ से मधुमक्खियाँ मकरन्द तथा परागकण एकत्रित करती हैं, चरागाह कहलाता है। ये क्षेत्र भौगोलिक स्थिति व क्षेत्र के आधार पर भिन्न-भिन्न होते हैं इसी कारण शहद (मधु) की गुणवत्ता व स्वाद चरागाह में मधुमक्खी को उपलब्ध फूलों की किस्मों पर आधारित होता है। क्योंकि ये मधुमक्खियाँ मकरंद तथा पराग को फूलों से एकत्रित करती हैं। कश्मीर का बादामी शहद स्वाद में उत्तम होता है। मधुमक्खियाँ चरागाह में बादाम, महुआ, आम, नारियल, इमली, लीची, सेब, अमरूद, सूरजमुखी व बेर इत्यादि के फूलों का मकरन्द व परागकण इकट्ठा करती हैं और भिन्न-भिन्न प्रकार का शहद उत्पन्न करती हैं।
प्रश्न 18. फसल उत्पादन की एक विधि का वर्णन कीजिए जिससे अधिक पैदावार प्राप्त हो सके।
उत्तर – फसल उत्पादन की ‘फसल किस्मों में सुधार विधि’ एक ऐसी विधि है जिससे अधिक पैदावार प्राप्त होती है।
फसल किस्मों में सुधार– इसमें किसान को विभिन्न गुणों, जैसे रोग प्रतिरोधिता, उर्वरक के प्रति अनुरूपता, उत्पादन की गुणवत्ता तथा उच्च उत्पादन क्षमता के लिए फसलों की किस्मों का चुनाव प्रजनन द्वारा करना चाहिए। फसलों में ऐच्छिक गुण संकरण द्वारा भी डाले जा सकते हैं। संकरण की यह विधि अन्तराकिस्मीय (विभिन्न किस्मों), अन्तरास्पीशीज (विभिन्न स्पीशीज) और अन्तरावंशीय (विभिन्न जैनरा) भी हो सकता है। फसल सुधार की दूसरी विधि है, ऐच्छिक गुणों वाले जीन का डालना। इससे आनुवंशकीय रूपांतरित फसल प्राप्त होती है। इस कार्य के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले विशेष बीज अपनाने चाहिए, और बीज उसी किस्म के होने चाहिए जो अनुकूल परिस्थिति में उग सकें। कृषि प्रणाली व फसल उत्पादन मौसम, पानी तथा मिट्टी की गुणवत्ता पर निर्भर होती है। फसलें ऐसी हों जो प्रत्येक प्रकार की मिट्टी व जलवायु की विभिन्न परिस्थितियों में भी उग सकें।
प्रश्न 19. खेतों में खाद तथा उर्वरक का उपयोग क्यों करते हैं?
उत्तर– खेतों में खाद तथा उर्वरक का उपयोग भूमि की उपजाऊ शक्ति बनाए रखने के लिए किया जाता है। फसल के उगने में अर्थात् बीज बोने से परिपक्वन काल तक पौधे भूमि से 13 प्रकार के पोषक तत्त्व ग्रहण करते हैं जिससे ये तत्त्व भूमि में कम हो जाते हैं। भूमि में खाद मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाती है और मिट्टी की रचना व पानी धारण करने की क्षमता बढ़ जाती है। उर्वरक पौधे की कायिक वृद्धि में सहायक होते हैं और पौधों को स्वस्थ रखने में सहायक होते हैं।
प्रश्न 20. अन्तराफसलीकरण तथा फसल चक्र के क्या लाभ हैं?
उत्तर – अन्तराफसलीकरण तथा फसल चक्र खरपतवार को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं। इन विधियों द्वारा पीड़कों पर भी नियंत्रण किया जा सकता है, फसलों की उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है और भूमि की उपजाऊ शक्ति भी बनी रहती है।
प्रश्न 21. आनुवंशिक फेरबदल क्या हैं? कृषि प्रणालियों में यह कैसे उपयोगी हैं?
उत्तर– आनुवंशिक फेरबदल फसल सुधार की एक नई विधि हैं जिसमें ऐच्छिक गुणों वाले जीन का डालना, इसके परिणामस्वरूप, आनुवंशिक रूपांतरित फसल प्राप्त होती है। इसमें उच्च तापमान, विशेष विकिरण या रासायनिक पदार्थों द्वारा पौधे के जीन में ऐसे उत्प्रेरित परिवर्तन लाए जाते हैं ताकि उत्पन्न होने वाली जीनों में इच्छित गुण आ जायें।
उपयोग– इस प्रणाली द्वारा ऐच्छिक गुणों वाली फसलें तैयार कर सकते हैं।
प्रश्न 22. भण्डारगृहों (गोदामों) में अनाज की हानि कैसे होती है?
उत्तर– भण्डारगृह में अनाज की हानि के दो प्रकार के कारक उत्तरदायी हैं, जैसे- (1) जैविक (2) अजैविक ।
(1) जैविक कारक – कीट, कृंतक, कवक, चिंचडी तथा जीवाणु जैविक कारक हैं।
(2) अजैविक कारक – उपयुक्त नमी व ताप का अभाव अजैविक कारक हैं। ये दोनों कारक अनाज की गुणवत्ता को खराब कर देते हैं, उनका वजन कम कर देते हैं, अंकुरण करने की क्षमता कम करते हैं, उत्पाद बदरंग हो जाती हैं। जैविक कारक अनाज को कुतर देते हैं या भीतर घुस जाते हैं। ये कीट कभी-कभी पौधों की वृद्धि के समय प्रवेश कर जाते हैं।
प्रश्न 23. किसानों के लिए पशुपालन प्रणालियाँ कैसे लाभदायक हैं?
उत्तर– किसानों के लिए पशुपालन प्रणाली लाभदायक है, क्योंकि पशुपालन के दो उद्देश्य हैं- (1) दूध देने वाले (2) कृषि कार्य के लिए जैसे-हल चलाना, सिंचाई तथा माल ढोने के लिए इन पशुओं को ड्राफ्ट पशु कहते हैं। किसानों के कृषि उत्पाद ही पशुओं के भोजन, जैसे- रुक्षांश व सान्द्र भोजन के रूप में प्रयोग होते हैं। पशुपालन में इनके अतिरिक्त मुर्गी पालन और मधुमक्खी पालन भी किया जा सकता है। ये सभी पशुपालन प्रणाली किसानों को आय के साधनों में वृद्धि करने में सहायक है।
प्रश्न 24. पशुपालन के क्या लाभ हैं?
उत्तर–पशुपालन के लाभ– (i) दुधारू पशुओं जैसे गाय, भैंस, भेड़,
बकरी आदि से दूध प्राप्त होता है। इसमें सभी पोषक तत्त्व पाए जाते हैं। दूध में विटामिन ‘A’ तथा ‘D’, कैल्सियम तथा फॉस्फोरस आदि खनिज पाए जाते हैं।
(ii) पशुओं से मांस प्राप्त होता है। मांस उच्च प्रोटीन का स्रोत है।
(iii) बैल, भैंसा, ऊँट, घोड़ा खच्चर आदि पशु बोझ ढोने के काम में लाए जाते हैं।
(iv) पशुओं का उपयोग कृषि कार्यों (हल चलाना, सिंचाई कार्य, अनाज की थ्रेसिंग आदि) में किया जाता है।
(v) भेड़ बकरी, ऊँट से हमें ऊन प्राप्त होती है। इसका विविध उपयोग किया जाता है।
(vi) जंतु अपशिष्ट से खाद तैयार की जाती है।
प्रश्न 25. उत्पादन बढ़ाने के लिए कुक्कुट पालन, मत्स्य पालन तथा मधुमक्खी पालन में क्या समानताएँ हैं?
उत्तर– कुक्कुट पालन, मत्स्य पालन तथा मधुमक्खी पालन में उत्पादन बढ़ाने के लिए अच्छी प्रबंधन प्रणालियाँ आवश्यक हैं, जैसे-
(i) उपयुक्त आवास, आवास की स्वच्छता, उपयुक्त ताप एवं स्वच्छता ।
(ii) उचित आहार, आहार की गुणवत्ता।
(iii) रोगों तथा पीड़कों पर नियंत्रण तथा उनसे बचाव ।
प्रश्न 26. प्रग्रहण मत्स्यन, मैरीकल्चर तथा जल संवर्धन में क्या अंतर है?
उत्तर – प्रग्रहण मत्स्यन, मैरीकल्चर तथा जल संवर्धन में प्रमुख अन्तर निम्नलिखित हैं-
प्रग्रहण मत्स्यन | मैरीकल्चर | जल संवर्धन |
प्राकृतिक स्रोतों से मछलियों के पकड़ने को प्रग्रहण मत्स्यन (कैप्चर फिशरी) कहते हैं।
जैसे-नदी या समुद्र से। |
व्यावसायिक उपयोग के समुद्री जीवों जैसे पर्लस्पॉट (पंखयुक्त मछलियों) मुलेट, प्रॉन, ऑएस्टर और समुद्री खरपतवार का समुद्री जल में संवर्धन को मेरीकल्चर कहते हैं। | यह ताजा जल तथा समुद्री जल (लवणीय जल) दोनों में किया जा सकता है। मेरी- कल्चर जल संवर्धन का ही एक प्रकार है। |