Banbhatta Ki Atmakatha -Upanyas Summary Written By Hazari Prasad Dwivedi, Pramukh Patra and Ssaransh बाणभट्ट की आत्मकथा-उपन्यास सारांश आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, द्वारा लिखित प्रमुख पात्र और सारांश
Dear Students! यहाँ पर हम आपको Banbhatta Ki Atmakatha बाणभट्ट की आत्मकथा हिंदी का सम्पूर्ण हल प्रदान कर रहे हैं। यहाँ पर बाणभट्ट की आत्मकथा के साथ प्रमुख पात्र, सारांश, अज्ञेय के कथन, महत्वपूर्ण बिंदु व कथन भी प्रदान कर रहे हैं। आशा करते हैं आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करेंगे।
बाणभट्ट की आत्मकथा
उपन्यास – हजारी प्रसाद द्विवेदी –
बाणभट्ट की आत्मकथा (1946),
चारु चंद्रलेख (1963),
पुनर्नवा (1973),
अनामदास का पोथा (1976)
वर्ण्न विषय – 1. मैला आँचल – 1954 – पूर्णिया जिले के मेरीगंज अंचल के (1945-48 ई. के मध्य) के सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और शैक्षिक जीवन इत्यादि का अंकन। (आंचलिक उपन्यास)
उपन्यास – मैला आँचल (1954) – डॉ. प्रशान्त, तहसीलदार विश्वनाथ प्रसाद, कालीचरण, खलासी, जोतखी, नागा, पारबती की माँ, प्यारू, बालदेव, मार्टिन, सुमिरतदास, कमली, लक्ष्मी, बावनदास इत्यादि कुल 296 पात्र ।
शैली – मैला आँचल – 1954 – फणीश्वरनाथ रेणु – किस्सागो, दृश्यात्मक, परिदृश्यात्मक, आंचलिक शैली
महत्वपूर्ण तथ्य –
० बाणभट्ट की आत्मकथा में सामंती मूल्यों की अस्वीकृति के साथ-साथ सामान्य मानवीय विशिष्टताओं की प्रतिष्ठापना है। यह उपन्यास जितना ऐतिहासिक है
उतना ही सामाजिक भी। – (डॉ. लक्ष्मीसागर वार्णेय, हिंदी उपन्यास सं. सुषमा प्रियदर्शिनी, पृ. 252)
० बाणभट्ट की आत्मकथा की मूल आत्मा कविता की है।.. ललित इतिहास की मानवतावादी भूमिका बाणभट्ट की आत्मकथा है। – (बाबूलाल आछा, हे.प्र. द्विवेदी के उपन्यास, पृ. 49)
० उपन्यासों में इतिहास की समाजवादी व्याख्या का दृष्टिकोण भी इधर आया है। हमारा सारा इतिहास मानव के सारे विकासक्रम पर विश्वास को लेकर चल रहा है। सारे संघर्षों, युद्धों और द्वन्द्वों के बीच मनुष्यता ही अपने पथ पर आगे बढ़ रही है। यह उपन्यास ला मिझराइल, हेनरी ऐस्वाक तथा वार एंड पीस मानवतावादी परंपरा में आ सकता है। – (डॉ. रघुवंश, ऐतिहासिक उपन्यास प्रकृति एवं स्वल्प-सं. गोविंद, पृ. 72)
० बाणभट्ट की आत्मकथा में द्विवेदी जी के 2 उद्देश्य हो सकते हैं-एक प्रसिद्ध बाणभट्ट की लेखन-शैली की विडंबना प्रस्तुत करना और दूसरे हिंदी पाठको को संस्कृत साहित्य के विशेषतः बाणभट्ट के उज्ज्वल सौंदर्य बोध की समृद्ध अवगत देना। – (डॉ. देवराज उपाध्याय, प्रतिक्रियाएँ, पृ. 119)
० हमारे विचार से ‘आत्मकथा उनकी कारयित्री प्रतिभा एवं गद्य लड़ाने की प्रकृति का स्वाभाविक परिणाम है। – (डॉ. हरदयाल, आधुनिक हिंदी उपन्यास-सं नरेन्द्र मोहन, पृ. 113)
बाणभट्ट – उपन्यास का नायक।
मट्टिनी (चंद्रदधीति) – उपन्यास की महत्त्वपूर्ण पात्रा। बाणभट्ट के प्रति लौकिक प्रेम परंतु बाण के सामीप्य के कारण भावनात्मक प्रेम में रूपान्तरण।
निउनिया (निपुणिका) – उपन्यास की नायिका, बाणभट्ट की प्रेमिका, बाण का निपुणिका के प्रति उदात्त प्रेम परंतु निपुणिका का प्रेम मांसल भावभूमि पर प्रतिष्ठित ।
तुवर मिलिन्द
सुचरिता – विरतिवज्र के प्रति इसका प्रेम भावात्मक है।
विरतिवज – योगी, साधनात्मक प्रेम, मानव कल्याण की भावना ।
अघोर भैरव – अदृप्त प्रेम का साधक।
महामाया – गृहवर्मा की पत्नी। असफल प्रेम और अनमेल विवाह के कारण अपने गृहस्थ धर्म का पूर्ण निर्वाह नहीं कर पाती है। उपेक्षा के कारण पूर्ण प्रेम की प्राप्ति नहीं।