UP board Class- 10th Drawing (चित्रकला) अजिण्ठा ( अजन्ता) की चित्रकला Ajanta ki Chitrakala

UP board Class- 10th Drawing (चित्रकला) अजिण्ठा ( अजन्ता) की चित्रकला Ajanta ki Chitrakala, निर्माण की तकनीक Nirman ki taknik ,प्रारंभिक काल एवं परवर्ती काल की चित्रकला 

प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 10वीं की चित्रकला के अंतर्गत अजिण्ठा ( अजन्ता) की चित्रकला Ajanta ki Chitrakala, निर्माण की तकनीक Nirman ki taknik ,प्रारंभिक काल एवं परवर्ती काल की चित्रकला के बारे मे बताएंगे जो की UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करेंगे।

Class  10th
Subject Drawing (चित्रकला)
Board Name UP Board (UPMSP)
Topic Name अजिण्ठा ( अजन्ता) की चित्रकला Ajanta ki Chitrakala

अजिण्ठा (अजन्ता) की चित्रकला

अजिण्ठा महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में जिला मुख्यालय से उत्तर दिशा में लगभग 100 किमी की दूरी पर स्थित है। अंग्रेजी भाषा के उच्चारण के कारण अजिण्ठा को अजन्ता के सुप्रचलित नाम से लोग प्रायः जानते हैं।

अजिण्ठा की गुफाओं की खोज सर्वप्रथम जनरल सर जेम्स ने सन् 1824 में किया था। उन्होंने यहाँ के चित्रों का विवरण रॉयल एशियाटिक सोसाइटी, लन्दन में प्रकाशित किया था। इसके पश्चात् जेम्स फर्गुसन, ग्रिफिथ्स, लेडी हरिंघम,नन्दलाल बोस, असितकुमार हाल्दार आदि ने यहाँ की कलाकृतियों का अध्ययन किया।

अजिण्ठा में 29 पूर्ण निर्मित और अर्द्ध-निर्मित शैलकृत गुफाएँ बघोरा नामक क्षीणकाया नदी के तट पर स्थित अर्द्ध-वृत्ताकार पहाड़ी चट्टानों को तराश कर बनायी गयी हैं। इस स्थान का चयन इसकी प्राकृतिक सुषमा के कारण किया गया रहा होगा। इन गुफाओं को अध्ययन की सुविधा के लिए 1 से लेकर 29 तक क्रमवार संख्याएँ दी गयी हैं जो एक ओर से दूसरी ओर तक क्रमबद्ध ढंग से हैं। यहाँ पर यह बात उल्लेखनीय है कि गुफाओं की क्रम संख्या का उनके कालक्रम से कोई सम्बन्ध नहीं है। इनमें पाँच गुफाएँ 9, 10, 19, 26 और 29 चैत्यगृह हैं। चैत्यगृह पूजार्थक स्तूप से युक्त गुफाएँ हैं। शेष पचीस भिक्षुओं के रहने के लिए निर्मित संघाराम या विहार हैं। विहारों में भिक्षुओं के निवास के लिए छोटी-छोटी कोठरियाँ मिलती हैं।

पहले अजिण्ठा की अधिकांश गुफाओं में भित्ति-चित्र थे किन्तु जब सन् 1824 ईसवी में जनरल सर जेम्स अलेक्जेण्डर ने इनका पता लगाया तब से अब तक में हवा और रोशनी के प्रभाव से अधिकांश चित्र विनष्ट हो चुके हैं, अथवा उनके रंग उड़ रहे हैं। उनसे यहाँ की कला के वैभव का पता चलता है। अजिण्ठा की गुफा क्रमांक 1, 2, 9, 10, 16 तथा 17 में चित्रकला के साक्ष्य मिलते हैं। इनमें से गुफा क्रमांक 9 तथा 10 के चित्र शुंग-सातवाहन काल के हैं। अजिण्ठा के चित्रों में ये सबसे प्राचीन हैं। इन चैत्यगृहों के अधिकांश चित्र नष्ट हो गये किन्तु जो शेष हैं उनको शैलीगत विशेषता के आधार पर द्वितीय-प्रथम शताब्दी ई०पू० में रखा जा सकता है। गुफा क्रमांक 10 प्राचीनतम है। इसमें एक लेख उत्कीर्ण है जिसके अनुसार वासिष्ठीपुत्र कटहादि के द्वारा भिक्षुओं को गुफा दान देने का उल्लेख है।

दूसरे काल के चित्र गुफा क्रमांक 1, 2, 16 तथा 17 में मिलते हैं। ये चित्र अधिक सुरक्षित स्थिति में हैं तथा तकनीक और शैली की दृष्टि से उत्कृष्ट हैं। इन चित्रों का निर्माण काल पाँचवीं छठवीं शताब्दी ईसवी (450-525 ई०) के बीच वाकाटक काल में माना जाता है।

 

निर्माण की तकनीक

चित्र निर्माण की ‘फ्रेस्को’, ‘टेम्पेरा’ तथा ‘एन्कास्टिक’ ये तीन प्रमुख तकनीक हैं। फ्रेस्को तकनीक में चित्रों का निर्माण गीली सतह पर किया जाता है। टेम्पेरा में सूखी सतह पर चित्र बनाये जाते हैं। एन्कास्टिक विधि में चित्र बनाने के पूर्व मोम का लेप किया जाता है। अजिण्ठा के चित्रों की अपनी एक विशिष्ट तकनीक है। अजिण्ठा के चित्रों को फ्रेस्को कहा जाता है जो पूर्ण रूप से सही नहीं है। अजिण्ठा में लेप लगाने के पूर्व गुफाओं की भीतरी दीवालों को तराश कर खुरदुरा छोड़ दिया जाता था। तत्पश्चात् मिट्टी, लौहमय मिट्टी, भूसी, महीन बालू, गोबर तथा गोंद मिलाकर तैयार किया गया पतला लेप करके गुफाओं की भीतरी दीवालों एवं छतों को समतल बनाया जाता था। इसके बाद मिट्टी, महीन बालू, लौहमय मिट्टी (Ferruginous earth) तथा भूसी को मिलाकर तैयार किया गए प्रलेप की दूसरी परत (Coat) लगायी जाती थी। इस लेप को ही संभवतः विष्णुधर्मोत्तर पुराण में ‘वज्रलेप’ कहा गया है। दीवाल के पलस्तर (प्लास्टर) के गीला रहने पर ही उस पर चूने का पतला घोल पोत दिया जाता था। लेप तथा घोल के सूखने के बाद इस प्रकार चित्र बनाने के लिए भूमि तैयार हो जाने पर चित्रों का निर्माण आचार्यों या कुशल-चितेरों द्वारा किया जाता था। गैरिक रंग से खाका खींचा जाता था। जहाँ पर जरूरत होती थी वहाँ पर काले रंग से उसमें आवश्यक संशोधन किया जाता था। तत्पश्चात् चित्रों का निर्माण किया जाता था और तूलिका से रंग भरे जाते थे।

 रंगअजिण्ठा के चित्रों के निर्माण में प्रयुक्त अधिकांश रंग आस-पास की पहाड़ियों में ही मिल जाते हैं। रंगों का निर्माण पीली मिट्टी, नील के पौधों, खड़िया तथा काजल आदि से किया जाता था। अजिण्ठा की चित्रकला में रंगों की संख्या कम है। परवर्ती काल के चित्रों में प्रयुक्त अधिकांश रंग चटख और चमकदार हैं। अजिण्ठा के चित्रों में गैरिक, लाल, पीला, नीला, सफेद और हरा रंग मुख्यतः प्रयुक्त किये गए थे। इसमें से लाल और नीले रंगों का प्रधान रूप से प्रयोग किया गया है। लाजावर्द (Lapis Lazuli) को घिसकर बनाया गया गहरा नीला रंग अभी तक चटख है। इस रंग का प्रयोग प्रारम्भिक काल के चित्रों में नहीं मिलता है। लाजावर्द स्थानीय क्षेत्र में प्राप्त नहीं था बल्कि इसको अफगानिस्तान के बदक्क्षाँ क्षेत्र से आयात किया जाता था।

 

1. प्रारम्भिक काल की चित्रकला,

प्रारम्भिक काल की चित्रकला के जो कतिपय उदाहरण शेष हैं वे चैत्य गृह गुफा क्रमांक 9 तथा 10 की भित्तियों में मिलते हैं।

प्रारम्भिक काल के चित्रों में घटनाओं का अंकन क्षैतिज रूप (Horizontal Frieze) में मिलता है। इन चित्रों की वेशभूषा विशेषकर पगड़ी एवं आभूषण- भरहुत और साँची के समकालीन शिल्प में उत्कीर्ण मूर्तियों की वेशभूषा से काफी मिलती-जुलती हैं। पुरुष शुंग काल वाला उष्णीष पहने हुए हैं। यद्यपि गुफा क्रमांक 9 तथा 10 में वाकाटक-गुप्त काल के चित्रण भी हैं फिर भी निःसंदेह कतिपय चित्र प्रथम-द्वितीय शताब्दी ई०पू० के हैं। इन चित्रों के साक्ष्यों से यह इंगित होता है कि वाकाटक-गुप्तकाल के बहुत पहले शुंग-सातवाहन काल में ही अजिण्ठा में चित्रांकन की पद्धति प्रारम्भ हो गयी थी। अजिण्ठा में परवर्ती काल के चित्र गुफा क्रमांक 1, 2, 16 तथा 17 में मिलते हैं। इन चित्रों का निर्माण वाकाटक- गुप्त काल में पाँचवीं-छठवीं शताब्दियों में हुआ। इन गुफाओं के चित्र भी सर्वथा सुरक्षित नहीं हैं। एक समय था कि इस काल की सभी पूर्ण-निर्मित ही नहीं बल्कि अर्द्ध-निर्मित गुफाओं में भी चित्र बने हुए थे। इन गुफाओं की दीवारों पर फिर भी इतने चित्र बच रहे हैं कि उनके आधार पर इस काल की कला के विषय में बहुत कुछ जानकारी मिल जाती है। इस काल के चित्रों में भाव-भंगिमाओं का स्वाभाविक अंकन, रंगों का उपयुक्त संयोजन, दृश्यों में सादृश्यता तथा आकृतियों के निर्माण में सुघरता मिलती है। इस काल की अजिण्ठा की कला में भारतीय चित्रकला का चरमोत्कर्ष दिखलाई पड़ता है।

 

परवर्ती काल की चित्रकला।

 

परवर्ती काल के चित्रों में बुद्ध का ‘रूपकाय’ के माध्यम से अंकन मिलता है। बुद्ध के जीवन की प्रमुख घटनाओं के माध्यम से कलाकारों ने जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त मानव-जीवन के सभी पक्षों का अत्यन्त कुशलता के साथ अंकन किया है। बुद्ध के जीवन की प्रमुख घटनाओं में मायादेवी का स्वप्न, महाभिनिष्क्रमण, मारविजय, सम्बोधि, धर्मचक्र प्रवर्तन एवं महापरिनिर्वाण के दृश्यों का अंकन मिलता है। इनके अलावा नलगिरि-दमन, त्रयस्त्रिंग स्वर्ग से बुद्ध का अवतरण वानरों द्वारा मधु-प्रदान, बुद्ध का कपिलवस्तु में आगमन और यशोधरा द्वारा राहुल को भिक्षा में दान, नन्द तथा सुन्दरी के कथानक आदि का अत्यन्त सुन्दर अंकन हुआ है। बोधिसत्वों में अवलोकितेश्वर, वज्रपाणि, मैत्रेय आदि के बहुत सुन्दर चित्र मिलते हैं। गुफा क्रमांक 1 में प्राप्त पद्मपाणि अवलोकितेश्वर का चित्र अपनी सुन्दरता तथा स्वाभाविकता के लिए सम्पूर्ण संसार में प्रसिद्ध है।

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