Aachrya Mahaveer prsaad divedi ji ka jivan parichy, jivani, and Rachnaaye आचार्य महावीरप्रसाद दिवेदी का जीवन परिचय, जीवनी, एवम् रचनाएँ 

Aachrya Mahaveer prsaad divedi ji ka jivan parichy, jivani, and Rachnaaye आचार्य महावीरप्रसाद दिवेदी का जीवन परिचय, जीवनी, एवम् रचनाएँ 

मेरे प्यारे विद्यार्थियो हम यहाँ पर आपको हिंदी साहित्य के महान कवि आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का जीवन परिचय प्रदान कर रहे है और उनकी रचनाये एवम् जीवन का सार नीचे उलेखित किया गया है। Biography of Mahavir Prasad Dvivedi. Mahaveer Prsad divedi Ji ka Jeevan Parichay Sahityik Parichay of Mahabeerprsad dwivedi. important for UP Board Exam and all Competition Exam. 

Aachrya Mahaveer prsaad divedi ji ka jivan parichy, jivani, and Rachnaaye

आचार्य महावीरप्रसाद दिवेदी जी हिन्दी साहित्य में एक नवीन युग के प्रवर्तक थे जिससे उनके नाम पर ‘दिवेदी युगकी संज्ञा दी गई है। सरस्वती पत्रिका का सम्पादन करते हुए उन्होंने हिन्दी साहित्य की महान सेवा की और हिन्दी को अनेक नए कवि और निबंधकार प्रदान किए।

 जीवन परिचय (Jivan Parichay)

जन्म 1864 ई० में
पिता का नाम पण्डित रामसहाय दिवेदी
जन्म स्थान रायबरेली जिले   के दौलतपुर ग्राम में
पदों पर कार्यरत लेखक, आलोचक, प्राध्यापक
राष्ट्रीयता भारतीय
विधा हिन्दी निबन्धकार, आलोचक और उपन्यासकार
निधन 1938 ई०

 आचार्य महावीरप्रसाद दिवेदी का जन्म 1864 ई. में रायबरेली जिले के दौलतपुर ग्राम में एक कान्यकुब्त परिवार में हुआ था। आपके पिता का नाम पं. रामसहाय द्विवेदी था। परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण उनकी शिक्षा सुचारु रूप से न हो सकी, किन्तु उन्होंने स्वाध्याय के बल पर ही संस्कृत, अंग्रेजी, बंगला, मराठी, गुजराती, फारसी भाषाओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया। द्विवेदी जी ने रेल विभाग में नौकरी की, किन्तु किसी बात पर रुष्ट होकर उन्होंने रेलवे की अच्छे वेतन वाली नौकरी छोड़ दी और वहां से त्यागपत्र देकर सरस्वती’ पत्रिका के सम्पादन का भार सन् 1903 ई. में सम्भाल लिया। अपनी अद्भुत प्रतिभा, साहित्यिक सूझबूझ, परिश्रमशीलता एवं व्यावहारिक कुशलता से उन्होंने इस पत्रिका को हिन्दी की सर्वश्रेष्ठ पत्रिका बना दिया।

          दिवेदी जी ने एक ओर तो हिन्दी भाषा का संस्कार, परिमार्जन किया दूसरी ओर उसे व्याकरण सम्मत रूप प्रदान किया। कवियों और लेखकों की भूलों की ओर इंगित कर उन्हें शुद्ध हिन्दी से परिचित कराया। सन् 1931 ई० में काशी नागरी प्रचारिणी सभा ने उन्हें ‘आचार्य’ की उपाधि से विभूषित किया तथा हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग ने उन्हें ‘वाचस्पति’ की उपाधि प्रदान की। इस महान हिन्दी सेवी का निधन 1938 ई. में हुआ।

कृतियां (Kritiya or Rachanaye)

काव्य संग्रह- काव्य मन्जुसा, सुमन, कविता कलाप।

आलोचनारसज्ञ रंजन, हिन्दी नवरल, साहित्य सीकर, नाट्य विमर्श, साहित्य सन्दर्भ,          कालिदास की निरंकुशता।

अनूदित रचनाएंवेकन विचारमाला, मेघदूत, विचार रत्नावली।

निबन्ध- सरस्वती पत्रिका में तथा अन्य अनेक पत्रिकाओं में प्रकाशित।

सम्पादन- सस्स्वती पत्रिका का सम्पादन किया।

भाषा-शैली 

भाषा में शब्द प्रयोग- दिवेदी जी की भाषा में संस्कृत शब्दों की बहुलता है तथापि उर्दू एवं अंग्रेजी के प्रचलित शब्द भी उनकी भाषा में प्रयुक्त हुए हैं। उनकी भाषा में बोलचाल के शब्दों का भी प्रचुर प्रयोग हुआ है। वास्तव में वे व्यावहारिक भाषा के पक्षधर थे और ऐसी भाषा का प्रयोग करते थे जो नित्यप्रति के व्यवहार में आती हो तथा जिसे समझने में किसी को भी कठिनाई न हो।

 शैली- 

  1. भावात्मक शैली
  2. गवेषणात्मक शैली
  3. विचारात्मक शैली
  4. वर्णनात्मक शैली
  5. हास्य-व्यंग्य शैली

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