Bihar Board Solution of Class- 10 Hindi Gadya Chapter 2 – Vish ke Dant (विष के दांत) गोधूलि नलिन विलोचन शर्मा
Dear Students! यहां पर हम आपको बिहार बोर्ड कक्षा 10वी के लिए हिन्दी गोधूलि भाग-2 का पाठ-2 विष के दांत नलिन विलोचन शर्मा Bihar Board (बिहार बोर्ड) Solution of Class- 10 Hindi (हिन्दी) Gadya Chapter 2 – Vish ke Dant संपूर्ण पाठ हल के साथ प्रदान कर रहे हैं। आशा करते हैं कि पोस्ट आपको पसंद आयेगी और आप इसे अपने दोस्तों में शेयर जरुर करेंगे।
Chapter Name | Vish ke Dant (विष के दांत) |
Chapter Number | Chapter- 2 |
Board Name | Bihar Board (B.S.E.B.) |
Topic Name | संपूर्ण पाठ |
Part |
भाग-2 Gadya Khand (गद्य खंड ) |
Vish ke Dant (विष के दांत)
नलिन विलोचन शर्मा
नलिन विलाचन शर्मा का जन्म 18 फरवरी 1916 ई० में पटना के बदरघाट में हुआ। वे जन्मना भोजपुरी भाषी थे। वे दर्शन और संस्कृत के प्रख्यात विद्वान महामहोपाध्याय पं० रामावतार शर्मा के ज्येष्ठ पुत्र थे। माता का नाम रत्नावती शर्मा था। उनके व्यक्तित्व निर्माण में पिता के पांडित्य के साथ उनकी प्रगतिशील दृष्टि की भी बड़ी भूमिका थी। उनकी स्कूल की पढ़ाई पटना कॉलेजिएट स्कूल से हुई और पटना विश्वविद्यालय से उन्होंने संस्कृत और हिंदी में एम० ए० किया। वे हरप्रसाद दास जैन कॉलेज, आरा, राँची विश्वविद्यालय और अंत में पटना विश्वविद्यालय में प्राध्यापक रहे। सन् 1959 में वे पटना विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष हुए और मृत्युपर्यंत (12 सितंबर 1961 ई०) इस पद पर बने रहे।
हिंदी कविता में. प्रपद्यवाद के प्रवर्तक और नई शैली के आलोचक नलिन जी की रचनाएँ इस प्रकार हैं – ‘दृष्टिकोण’, ‘साहित्य का इतिहास दर्शन’, ‘मानदंड’, ‘हिंदी उपन्यास विशेषतः प्रेमचंद’, ‘साहित्य तत्त्व और आलोचना’ आलोचनात्मक ग्रंथ; ‘विष के दाँत’ और सत्रह असंगृहीत पूर्व छोटी कहानियाँ – कहानी संग्रह; केसरी कुमार तथा नरेश के साथ काव्य संग्रह ‘नकेन के प्रपद्य’ और ‘नकेन दो’, ‘सदल मिश्र ग्रंथावली’, ‘अयोध्या प्रसाद खत्री स्मारक ग्रंथ’, ‘संत परंपरा और साहित्य’ आदि संपादित ग्रंथ हैं ।
आलोचकों के अनुसार, प्रयोगवाद का वास्तविक प्रारंभ नलिन विलोचन शर्मा की कविताओं से हुआ और उनकी कहानियों में मनोवैज्ञानिकता के तत्त्व समग्रता से उभरकर आए। आलोचना में वे आधुनिक शैली के समर्थक थे। वे कथ्य, शिल्प, भाषा आदि सभी स्तरों पर नवीनता के आग्रही लेखक थे। उनमें प्रायः परंपरागत दृष्टि एवं शैली का निषेध तथा आधुनिक दृष्टि का समर्थन है। आलोचना की उनकी भाषा गठी हुई और संकेतात्मक है। उन्होंने अनेक पुराने शब्दों को नया जीवन दिया, जो आधुनिक साहित्य में पुनः प्रतिष्ठित हुए ।
यह कहानी ‘विष के दाँत तथा अन्य कहानियाँ’ नामक कहानी संग्रह से ली गई है। यह कहानी मध्यवर्ग के अनेक अंतर्विरोधों को उजागर करती है। कहानी का जैसा ठोस सामाजिक संदर्भ है, वैसा ही स्पष्ट मनोवैज्ञानिक आशय भी। आर्थिक कारणों से मध्यवर्ग के भीतर ही एक ओर सेन साहब जैसों की एक श्रेणी उभरती है जो अपनी महत्वाकांक्षा और सफेदपोशी के भीतर लिंग भेद जैसे कुसंस्कार छिपाये हुए हैं तो दूसरी ओर गिरधर जैसे नौकरीपेशा निम्न मध्यवर्गीय व्यक्ति की श्रेणी है जो अनेक तरह की थोपी गयी बंदिशों के बीच भी अपने अस्तित्व को बहादुरी एवं साहस के साथ बचाये रखने के लिए संघर्षरत है। यह कहानी सामाजिदा भेद-भाव, लिंग-भेद, आक्रामक स्वार्थ की छाया में पलते हुए प्यार-दुलार के कुपरिणामों को उभारती हुई सामाजिक समानता एवं मानवाधिकार की महत्त्वपूर्ण बानगी पेश करती है।
विष के दाँत
सेन साहब की नई मोटरकार बँगले के सामने बरसाती में खड़ी है काली चमकती हुई, स्ट्रीमल इंड; जैसे कोयल घोंसले में कि कब उड़ जाए। सेन साहब को इस कार पर नाज है बिलकुल नई मॉडल, साढ़े सात हजार में आई है। काला रंग, चमक ऐसी कि अपना मुँह देख लो। कहीं पर एक धब्बा दिख जाए तो क्लीनर और शोफर की शामत ही समझो। मेम साहब की सख्त ताकीद है कि खोखा-खोखी गाड़ी के पास फटकने न पाएँ ।
लड़कियाँ तो पाँचों बड़ी सुशील हैं, पाँच-पाँच ठहरों और सो भी लड़कियाँ, तहजीब और तमीज की तो जीती-जागती मूरत ही हैं। मिस्टर और मिसेज़ सेन ने उन्हें क्या करना चाहिए, यह सिखाया हो या नहीं, क्या-क्या नहीं करना चाहिए, इसकी उन्हें ऐसी तालीम दी है कि बस । लड़कियाँ क्या हैं, कठपुतलियाँ हैं और उनके माता-पिता को इस बात का गर्व है। वे कभी किसी चीज को तोड़ती-फोड़तीं नहीं। वे दौड़ती हैं, और खेलती भी हैं, लेकिन सिर्फ शाम के वक्त, और चूँकि उन्हें सिखाया गया है कि ये बातें उनकी सेहत के लिए जरूरी हैं। वे ऐसी मुस्कुराहट अपने होठों पर ला सकती हैं कि सोसाइटी की तारिकाएँ भी उनसे कुछ सीखना चाहें, तो सीख लें, पर उन्हें खिलखिलाकर किलकारी मारते हुए किसी ने सुना नहीं। सेन परिवार के मुलाकाती रश्क के साथ अपने शरारती बच्चों से खीझकर कहते हैं “एक तुम लोग हो, और मिसेज सेन की लड़कियाँ हैं। अबे, फूल का गमला तोड़ने के लिए बना है ? तुम लोगों के मारे घर में कुछ भी तो नहीं रह सकता ।”
सो जहाँ तक सेन परिवार की लड़कियों का सवाल है, उनसे मोटर की चमक-दमक को कोई खास खतरा नहीं था। लेकिन खोखा भी तो है। खोखा जो एक ही है, सबसे छोटा है। खोखा नाउम्मीद बुढ़ापे की आँखों का तारा है यह नहीं कि मिसेज सेन अपना और बुढ़ापे का कोई ताल्लुक किसी हालत में मानने को तैयार हों और सेन साहब तो सचमुच बूढ़े नहीं लगते । लेकिन मानने लगने की बात छोड़िए । हकीकत तो यह है कि खोखा का आविर्भाव तब जाकर हुआ था, जब उसकी कोई उम्मीद दोनों को बाकी नहीं रह गई थी। खोखा जीवन के नियम का अपवाद था और यह अस्वाभाविक नहीं था कि वह घर के नियमों का भी अपवाद हो। इस तरह मोटर को कोई खतरा हो सकता था तो खोखा से ही ।
बात ऐसी थी कि सीमा, रजनी, आलो, शेफाली, आरती पाँचों हुईं तो ।… उनके लिए घर में अलग नियम थे, दूसरी तरह की शिक्षा थी, और खोखा के लिए अलग, दूसरी । कहने के लिए तो सेनों का कहना था कि खोखा आखिर अपने बाप का बेटा ठहरा, उसे तो इंजीनियर होना है, अभी से उसमें इसके लक्षण दिखाई पड़ते थे, इसलिए ट्रेनिंग भी उसे वैसी ही दी जा रही थी। बात यह है कि खोखा के दुर्ललित स्वभावं के अनुसार ही सेनों ने सिद्धान्तों को भी बदल लिया था । अक्सर ऐसा होता है कि सेन परिवार के दोस्त आते हैं, भड़कीले ड्राइंग रूम में बैठते हैं और बातचीत के लिए विषय का अभाव होने पर चर्चा निकल पड़ती है कि किसका लड़का क्या करेगा। तब सेन साहब बड़ी मौलिकता और दूरंदेशी के साथ फरमाते हैं कि वह तो अपने लड़के को अपने ढंग से ट्रेंड करेंगे, करेंगे क्या, कर रहे हैं। आजकल की पढ़ाई-लिखाई तो फिजूल है, वह तो उसे अपनी तरह बिजनेसमैन, इंजीनियर बनाना चाहते हैं। “अब देखिए न”, सेन साहब कहते हैं, “खोखा पाँच साल का हो रहा है। लोग कहते हैं, उसे किंडरगार्टन स्कूल में भेज दो, लेकिन मैंने अभी यही इन्तजाम किया है कि कारखाने का बढ़ई मिस्त्री दो-एक घंटे के लिए आकर उसके साथ कुछ ठोंक-पीट किया करे। इससे बच्चे की उँगलियाँ अभी से औजारों से वाकिफ हो जाएँगी, हिन्दुस्तानी लोग यही नहीं समझते ।”
एक दिन का वाकया है कि ड्राइंग रूम में सेन साहब के कुछ दोस्त बैठे गपशप कर रहे थे । उनमें एक साहब साधारण हैसियत के अखबारनवीस थे और सेनों के दूर के रिश्तेदार भी होते थे। साथ में उनका लड़का भी था, जो था तो खोखा से भी छोटा, पर बड़ा समझदार और होनहार मालूम पड़ता था। किसी ने उसकी कोई हरकत देखकर उसकी कुछ तारीफ कर दी और उन साहब से पूछा कि बच्चा स्कूल तो जाता ही होगा? इसके पहले कि पत्रकार महोदय कुछ जवाब देते, सेन साहब ने शुरू किया मैं तो खोखा को इंजीनियर बनाने जा रहा हूँ, और वे ही बातें दुहराकर वे थकते नहीं थे। पत्रकार महोदय चुप मुस्कुराते रहे। जब उनसे फिर पूछा गया कि अपने बच्चे के विषय में उनका क्या ख्याल है, तब उन्होंने कहा, “मैं चाहता हूँ कि वह जेंटिलमैन जरूर बने और जो कुछ बने, उसका काम है, उसे पूरी आजादी रहेगी ।” सेन साहब इस उत्तर के शिष्ट और प्रच्छन्न व्यंग्य पर ऐंठकर रह गए ।
तभी बाहर शोर-गुल सुनकर सेन साहब उठने लगे, तो उनके मित्रों ने भी जाने की इच्छा प्रकट की और उन्हीं के साथ बाहर आए। बाहर सेन साहब का शोफर एक औरत से उलझ रहा था । औरत के पास एक पाँच-छह साल का बच्चा खड़ा था, जिसे वह रोकने की कोशिश कर रही थी, क्योंकि बच्चा बार-बार शोफर की ओर झपटता था ।
सेन साहब को देखकर औरत सहम गई। शोफर ने साहब की ओर बढ़कर अदब के साथ कहा, “देखिए साहब, मदन गाड़ी को छू रहा था, गाड़ी गन्दी हो जाती, मैंने मना किया तो लगा कहने- ‘जा-जा’ तो मैंने उसे पकड़कर अलग कर दिया, इस पर मुझको मारने दौड़ा। अब उसकी माँ भी आकर खामखाह मुझसे उलझ रही है।” मदन की माँ कुछ कहना चाहती थी, लेकिन सेन साहब के सटे होठों को देखकर चुप रह गई। सेन साहब ने बड़े संयत पर कठोर स्वर में कहा- “मदन की माँ, मदन को ले जाओ और देखना, वह फिर ऐसी हरकत न करे! मदन की माँ अपने बच्चे के बाएँ घुटने से निकलते हुए खून को पोंछती हुई चली गई। ड्राइवर ने शायद धकेल दिया था और वह गिर पड़ा था। लेकिन एक मामूली किरानी के बेटे को सेन साहब के ड्राइवर ने धक्का दे दिया और उसे चोट आ गई, तो आखिर ऐसी कौन-सी बात हो गई !
ठीक इसी वक्त मोटर के पीछे खट्-खट् की आवाज सुनकर सेन साहब लपके, शोफर भी दौड़ा । और लोग सीढ़ियों से उतरकर अपनी-अपनी गाड़ियों की ओर चले। सभी ने देखा, सेन साहब खोखा को गोद में लेकर उसे हल्की मुस्कुराहट के साथ डाँट रहे हैं और मोटर की पिछली बत्ती का लाल शीशा चकनाचूर हो गया है। सेन साहब ने मित्रों को सम्बोधित करते हुए कहा, “देखा आपलोगों ने? बड़ा शरारती हो गया, काशू। मोटर के पीछे हरदम पड़ा रहता है। उसके कल-पुर्जों में इसको अभी से इतनी दिलचस्पी है कि क्या बताऊँ !… शायद देखना चाह रहा था कि आखिर इस बत्ती के अन्दर है क्या ?”
सेन साहब खोखा को जमीन पर रखकर अपने दोस्तों के साथ उनकी कार की ओर चले। उन्होंने अपने मित्रों की भाव-भंगिमा देखी नहीं, देखते भी तो कुछ समझ पाते इसमें शक ही था। मिस्टर सिंह अपनी कार के पास पहुँचे और सेन साहब को नमस्कार कर दरवाजा खोलने के लिए बढ़े और फिर रुक गए । उनकी निगाह अचानक ही अगले चक्के पर गई थी। उन्होंने नजदीक जाकर देखा और परेशानी की हालत में खड़े हो गए। टायर बिलकुल बैठ गया था। शायद ‘पंक्चर’ हो गया था। सेन साहब भी आगे बढ़ आए और कुछ झिझकते हुए बोले, “कहीं ऐसा तो नहीं है कि काशू ने हवा निकाल दी हो! ड्राइवर, जरा दूसरे चक्कों को भी देख लो और पंप ले आकर हवा भर दो; और हाँ कुर्सियाँ लॉन में लगवा दो, तब तक हम यहाँ बैठते हैं।”
ड्राइवर ने एक कार का चक्का लगाकर सूचना दी कि दूसरी ओर के पिछले चक्के की भी हवा निकाली हुई थी। ‘काम तो काशू बाबू का ही मालूम पड़ता है, इधर ही खेल रहे थे’ शोफर ने बताया और पंप लाने चला गया ।
मुकर्जी साहब की गाड़ी सकुशल थी और वह अपने और पत्रकार महोदय के परिवार के साथ चलते बने । सेन साहब और मिस्टर सिंह लॉन की कुर्सियों पर बैठकर बातें करते रहे। बातों के सिलसिले में ही सेन साहब ने बतलाया कि काशू ने इधर चक्कों से हवा निकालने की हिकमत जान ली थी और मौका मिलते ही शरारत कर गुजरता था। उनका अपना ख्याल था, उसकी इन हरकतों को देखकर तो यह साफ मालूम होता था कि इंजीनियरिंग में उसकी दिलचस्पी है। इसी तरह की दूसरी बेमतलब की बातें होती रहीं, जब तक कि चक्कों में पंप नहीं हो गया और मिस्टर सिंह रुखसत नहीं हो गए ।
सेन साहब अन्दर लौटे तो बेयरा को, मदन के पिता गिरधरलाल को, जो उनकी फैक्टरी में किरानी था और अहाते के एक कोने में…. आउटहाउस में रहता था, बुला लाने का हुक्म दिया । गिरधरलाल आया और सेन साहब के सामने सिर झुकाकर खड़ा हो गया, जैसे खून के जुर्म में कैदी जज के सामने खड़ा हो । सेन साहब ने ठंढी बेलौस आवाज में कहना शुरू किया, “देखो गिरधर, मदन आजकल बहुत शोख हो गया है। मैं तुम्हारी और उसकी भलाई चाहता हूँ। गाड़ी को गन्दा किया वह अलग, मना करने पर ड्राइवर को मारने दौड़ा और मेरे सामने भी डरने के बदले उसकी ओर झपटता रहा । ऐसे ही लड़के आगे चलकर गुण्डे, चोर और डाकू बनते हैं !” गिरधरलाल कभी-कभी ‘जी’ कह देता था। सेन साहब का भाषण जारी था, “उसकी हालत क्या होती है तुम जानते ही हो । उसे सँभालने की कोशिश करो। फिर ऐसी बात हुई, तो अच्छा नहीं होगा ! तुम जा सकते हो ।”
उस रात गिरधरलाल के क्वार्टर से आते हुए मदन के चीत्कार से सेनों का आरामदेह शयनागार गूँज गया। आराम में खलल पड़ने से कुछ झुंझलाकर पिता सेन ने धर्मपत्नी से बड़ी समझदारी की बात कही, “गिरधर खुद समझदार आदमी है। उसकी बीवी ने ही लड़के को बिगाड़ दिया है। मदन की यही दवा है। मेरी तो तबीयत हुई थी कि कमबख्त की खाल उधेड़ दूँ। गिरधर ने ऐसी ही कड़ाई जारी रखी तो शायद ठीक हो जाए। ‘स्पेयर द रॉड ऐण्ड स्प्वायल द चाइल्ड’ 1”
माता सेन की नींद उचट गई थी। उन्हें मदन की कातर चिल्लाहट से ज्यादा अपने पति की बकबक पर खीझ आ रही थी लेकिन उन्होंने भी अपनी खीझ मदन पर ही उतारी, “कमबख्त कैसा कौए की तरह चिल्ला रहा है! भिखमंगा कहीं का! खोखा की बराबरी करता फिरता है।”
मदन का आर्त्त रुदन रुक गया था। खैरियत थी, उसकी सिसकियाँ सेनों के शयनागार तक नहीं पहुँच सकती थीं ।
लेकिन दूसरे दिन तो बिलकुल बेढब मामला हो गया। शाम के वक्त खेलता-कूदता ‘ ‘खोखा बँगले के अहाते की बगलवाली गली में जा निकला। वहाँ धूल में मदन पड़ोसियों के आवारागर्द छोकरों के साथ लट्टू नचा रहा था। खोखा ने देखा तो उसकी तबीयत मचल गई । हंस कौओं की जमात में शामिल होने के लिए ललक गया। लेकिन आदत से लाचार उसने बड़े रोब के साथ मदन से कहा, ‘हमको लट्टू दो, हम भी खेलेगा।’ दूसरे लड़कों को कोई खास उज्ज नहीं थी, वे खोखा को अपनी जमात में ले लेने के फायदों को नजरअन्दाज नहीं कर सकते थे। पर उनके अपमानित, प्रताड़ित लीडर मदन को यह बात कब मंजूर हो सकती थी ? उसने छूटते ही जवाब दिया-‘अबे भाग जा यहाँ से! बड़ा आया है लट्टू खेलनेवाला ! है भी लट्टू तेरे ! जा, अपने बाबा की मोटर पर बैठ ।’
काशू तैश में आ गया। वह इसी उम्र में नौकरों पर, अपनी बहनों पर हाथ चला देता था और क्या मजाल कि उसे कोई कुछ कर दे ! उसने आव देखा न ताव, मदन को एक घूँसा रसीद कर दिया ।
चोर-गुंडा-डाकू होनेवाला मदन भी कब माननेवाला था ! वह झट काशू पर टूट पड़ा । दूसरे लड़के जरा हटकर इस द्वन्द्व युद्ध का मजा लेने लगे। लेकिन यह लड़ाई हड्डी और मांस की, बँगले के पिल्ले और गली के कुत्ते की लड़ाई थी। अहाते में यही लड़ाई हुई रहती, तो काशू शेर हो जाता । वहाँ से तो एक मिनट बाद ही वह रोता हुआ जान लेकर भाग निकला । महल और झोपड़ीवालों की लड़ाई में अक्सर महलवाले ही जीतते हैं, पर उसी हालत में, जब दूसरे झोपड़ीवाले उनकी मदद अपने ही खिलाफ करते हैं। लेकिन बच्चों को इतनी अक्ल कहाँ ? उन्होंने न तो अपने दुर्दमनीय लीडर की मदद की, न अपने माता-पिता के मालिक के लाडले की ही । हाँ, लड़ाई खत्म हो जाने पर तुरन्त ही सहमते हुए तितर-बितर हो गए ।
मदन घर नहीं लौटा। लेकिन जाता ही कहाँ ? आठ-नौ बजे तक इधर-उधर मारा-मारा फिरता रहा। फिर भूख लगी, तो गली के दरवाजे से आहिस्ता आहिस्ता घर में घुसा। उसके लिए मार खाना मामूली बात थी। डर था तो यही कि आज मार और दिनों से भी बुरी होगी। लेकिन उपाय ही क्या था ! वह पहले रसोईघर में घुसा। माँ नहीं थी। बगल के सोनेवाले कमरे से बातचीत की आवाज आ रही थी। उसने इत्मीनान के साथ भर पेट खाना खाया फिर प्ट्रवाजे के पास जाकर अन्दर की बातचीत सुनने की कोशिश करने लगा। उसे बड़ा ताज्जुब हुआ उसके बाबू गरज-तरज नहीं रहे थे ! उसकी अम्मा ने कोई बात पूछी, जिसे वह ठीक से सुन नहीं सका, तो उसके बाबू ने झल्लाकर कहा, “अरे भाई बतलाया तो, साहब ने सिर्फ यही कहा आज से तुम्हारी कोई जरूरत नहीं; कल से मकान छोड़ देना और अपनी तनख्वाह ऑफिस से ले लेना ।” … मदन के काम की कोई बात नहीं हो रही थी, उसकी सजा की तजबीज होती रहती, तो सुनने की कोशिश भी करता वह ।
वह दबे पाँव बरामदे में रखी चारपाई की तरफ सोने के लिए चला, तो अँधेरे में उसका पैर लोटे से लग गया! लोटे की. ठन्-ठन् की आवाज सुनकर गिरधर बाहर निकल आया। मदन की अम्मा भी उसके साथ थी। मदन चौंककर घूमा और मार खाने की तैयारी में आ छाती को अपने हाथों से बाँधकर खड़ा हो गया। मदन अक्सर अपने पिता के हाथों पिटता था, बहुत पिटने पर रोता भी था, मगर बहादुरी के साथ ।
गिरधर निस्सहाय निष्ठुरता के साथ मदन की ओर बढ़ा। मदन ने अपने दाँत भींच लिए। गिरधर मदन के बिलकुल पास आ गया था कि अचानक वह ठिठक गया। उसके चेहरे से नाराजगी का बादल हट गया। उसने लपककर मदन को हाथों से उठा लिया। मदन हक्का-बक्का अपने पिता को देख रहा था। उसे याद नहीं, उसके पिता ने कब उसे इस तरह प्यार किया था, अगर कभी किया था तो गिरधर उसी बेपरवाही, उल्लास और गर्व के साथ बोल उठा, जो किसी के लिए भी नौकरी से निकाले जाने पर ही मुमकिन हो सकता है, ‘शाबाश बेटा’ ! एक तेरा बाप है; और तूने तो, बे, खोखा के दो-दो दाँत तोड़ डाले। हा हा हा हा !
बोध और अभ्यास
पाठ के साथ
- कहानी के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर-प्रस्तुत कहानी में कहानीकार ने अमीरों की तथाकथित मर्यादा पर व्यंग्य किया है। इसमें गरीबों पर अमीरों के शोषण एवं अत्याचार पर प्रकाश डाला गया है। ‘विष के दाँत‘ शीर्षक कहानी महल और झोपड़ी की लड़ाई की कहानी है। इस लड़ाई में महल की जीत में भी हार दिखाई गई है। मदन द्वारा पिटे जाने पर खोखा के जो दो दाँत टूट जाते हैं वह अमीरों की प्रदर्शन-प्रियता और गरीबों पर उनके अत्याचार का प्रतीक है। मदन अमीरों की प्रदर्शन-प्रियता और गरीबों पर उनके अत्याचार के विरुद्ध एक चेतावनी है, सशक्त विद्रोह है। यही इस कहानी का लक्ष्य है। अतः निसंदेह कहा जा सकता है कि ‘विष के दाँत‘ इस दृष्टि से बड़ा ही सार्थक शीर्षक है। अमीरों के विष के दाँत तोड़कर मदन ने जिस उत्साह, ओज और आग का परिचय दिया है वह समाज के जाने कितने गिरधर लालों के लिए गर्वोल्लास की बात है। इसमें लेखक द्वारा दिया गया संदेश मार्मिक बन पड़ा है।
- सेन साहब के परिवार में बच्चों के पालन-पोषण में किए जा रहे लिंग आधारित भेद-भाव का अपने शब्दों में वर्णन कीजिए ।
उत्तर-सेन साहब के परिवार में उनकी पाँच लड़की थी। सीमा, रजनी, आलो, शेफाली, आरती सबसे छोटा लड़का था काशू बाबू, प्यार से खोखा कहते थे।। सेन साहब के परिवार में पाँचों लड़कियों के ऊपर काफी अनुशासन था। लड़का सबसे छोटा था और उसका बहुत बाद में था। इसी कारण से लड़के प्रति मोह होना स्वभाविक था। लड़का के ऊपर अनुशासन का बंधन बहुत ढीला था।
- खोखा किन मामलों में अपवाद था ?
उत्तर- सेन साहब एक अमीर आदमी थे। अभी हाल में उन्होंने एक नयी कार खरीदी थी। वे किसी को गाड़ी के पास फटकने नहीं देते थे। कहीं पर एक धब्बा दिख जाए तो क्लीनर और शोफर पर शामत आ जाती थी। उनके लड़कियों से मोटर की चमक-दमक का कोई खास खतरा नहीं था। लेकिन खोखा सबसे छोटा लड़का था। वह बुढ़ापे की आँखों का तारा था। इसीलिए मिसेज सेन ने उसे काफी छूट दे रखी थी। दरअसल बात यह थी कि खोखा का जन्म तब हुआ था जब उसकी कोई उम्मीद दोनों को बाकी नहीं रह गई थी। खोखा जीवन के नियम का जैसे अपवाद था और इसलिए यह भी स्वाभाविक था कि वह घर के नियमों का भी अपवाद था। इसलिए मोटर को कोई खतरा था तो केवल खोखा से ही। घर में मोटर-संबंधी नियम हो या अन्य कोई मामला खोखा के लिए सिद्धान्त बदल जाते थे।
- सेन दंपती खोखा में कैसी संभावनाएँ देखते थे और उन संभावनाओं के लिए उन्होंने उसकी कैसी शिक्षा तय की थी ?
उत्तर-सेन दंपति खोखा में अपने पिता की तरह इंजीनियर बनने की पूरी संभावना देखते थे। उन्होंने उसके शिक्षा के लिए कारखाने से बढ़ई मिस्त्री घर पर आकर एक-दो घंटे तक उसके साथ कुछ ठोंक-ठाक किया करे। इससे बच्चे की उँगलियाँ अभी से औजारों से वाकिफ हो जाएंगी।
- सप्रसंग व्याख्या कीजिए –
(क) लड़कियाँ क्या हैं, कठपुतलियाँ हैं और उनके माता-पिता को इस बात का गर्व है।
उत्तर- ‘व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियाँ नलिने विलोचन शर्मा द्वारा लिखित ‘विष के दाँत‘ शीर्षक कहानी से ली गयी हैं। यह संदर्भ सेन परिवार में पाली-पोसी जानेवाली लडकियों की चारित्रिक विशेषताओं से जुड़ा हुआ है। सेन परिवार मध्यमवर्गीय परिवार है जहाँ की जीवन-शैली कृत्रिमताओं से भरी हुई है।
सेन परिवार में लड़कियों को तहजीब और तमीज के साथ जीना सिखाया जाता है। उन्हें शरारत करने की छूट नहीं थी। वे स्वच्छंद विचरण नहीं कर सकतीं थी। जबकि खोखा के लिए कोई पाबंदी नहीं है। सेन दंपत्ति ने लड़कियों को यह नहीं सिखाया है कि उन्हें क्या करना चाहिए। उन्हें ऐसी तालीम दी गयी है कि उन्हें क्या-क्या नहीं करना है, इसकी सीख दी गयी है। इस प्रकार सेन परिवार में लड़कियों के प्रति दोहरी मानसिकता काम कर रही है। जहाँ लड़कियाँ अनुशासन, तहजीब और तमीज के बीच जी रही हैं वहाँ खोखा सर्वत्र स्वतंत्र है। लड़का-लड़की के साथ दोहरा व्यवहार विकास, परिवार और समाज के लिए घातक है। अतः लड़का-लड़की के बीच नस्लीय भेदभाव न पैदा कर उनमें समानता का विस्तार करना चाहिए।
(ख) खोखा के दुर्ललित स्वभाव के अनुसार ही सेनों ने सिद्धांतों को भी बदल लिया था ।
उत्तर- व्याख्या– प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘विष के दाँत‘ नामक कहानी से ली गयी हैं। इस कहानी के रचयिता ‘आचार्य नलिन विलोचन शर्माजी‘ हैं। यह पंक्ति सेन परिवार के लाडले बेटे के जीवन-प्रसंग से संबंधित है।
कहानीकार ने इन पंक्तियों के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया है कि सेन परिवार एक मध्यमवर्गीय सफेदपोश परिवार है। यहाँ कृत्रिमता का ही बोलबाला है। नकली जीवन के बीच जीते हुए सेन परिवार अपने बच्चों के प्रति भी दोहरा भाव रखता है।
सेन परिवार का बेटा शरारती स्वभाव का है। वह बुढ़ापे में पैदा हुआ है, इसी कारण सबका लाडला है। उसके लालन-पालन, शिक्षा-दीक्षा में कोई पाबंदी अनुशासन नहीं है। वह बेफिक्री के साथ जीने के लिए स्वतंत्र है। उसके लिए सारे नीति-नियम शिथिल कर दिए गए थे। वह इतना उच्छृंखल था कि उसके द्वारा किये गए बुरे कर्मों को भी सेन दंपत्ति विपरीत भाव से देखते थे और उसकी तारीफ करते थकते नहीं थे।
सेन दंपत्ति बेटे को इंजीनियर बनाना चाहते थे, इसी कारण ट्रेनिंग भी वैसी ही दिलवा रहे थे। उसे किंडरगार्टन स्कूल की शिक्षा न देकर कारखाने में बढ़ई मिस्त्री के साथ लोहा पीटने, ठोंकने आदि से संबंधित काम सिखाया जाता था। औजारों से परिचित कराया जाता था। इस प्रकार सेन परिवार अपने शरारती बेटे के स्वभाव के अनुरूप ही शिक्षा की व्यवस्था कर दी थी और अपने सिद्धांतों को बदल लिया था।
(ग) ऐसे ही लड़के आगे चलकर गुंडे, चोर और डाकू बनते हैं।
उत्तर- व्याख्या – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘विष के दाँत‘ शीर्षक कहानी से ली गयी है। इसके रचयिता हैं- नलिन विलोचन शर्मा। इस पंक्ति का प्रसंग गिरधर के बेटे मदन के साथ जुड़ा हुआ है।
एक बार की बात है कि सेन की गाड़ी के पास मदन खड़ा होकर गाड़ी को छू रहा था। जब शोफर ने उसे ऐसा करने से मना किया तो वह शोफर को मारने दौड़ा, लेकिन गिरधर की पत्नी ने बेटे को संभाल लिया। ड्राइवर ने मदन को धक्के देकर नीचे गिरा दिया था, जिससे मदन का घुटना फूट गया था. शरारत की चर्चा ड्राइवर ने सेन साहब से की थी। इसी बात पर सेन साहब काफी क्रोधित हुए थे और गिरधर को अपनी फेक्टरी से बुलवाकर डाँटते हुए कहा था कि देखो गिरधर, आजकल मदन बहुत शोख हो गया है। मैं तो तुम्हारी भलाई ही चाहता हूँ। गाड़ी गंदा करने से मना करने पर वह ड्राइवर को मारने दौड़ पड़ा था और मेरे सामने भी वह डरने के बदले ड्राइवर की ओर मारने के लिए झपटता रहा। देखो, यह लक्षण अच्छा नहीं है, ऐसे ही लड़के आगे चलकर गुण्डे, चोर और डाकू बनते हैं। गिरधर लाल तो जी हाँ, जी हाँ कहने में ही लगा हुआ था। ऐसी सीख देते हुए सेन साहब गिरधरी लाल को बच्चे को सँभालने और शरारत छोड़ने की सीख देते हुए चले गए। यह प्रसंग उसी वक्त का है। इन पंक्तियों में सेन के चरित्र के दोगलेपन की झलक साफ-साफ दिखती है एक तरफ अपने अनुशासनहीन बेटे को इंजीनियर बनाने का सपना पालनेवाले सेन को उसकी बुराई नजर नहीं आती लेकिन दूसरी ओर गिरधर लाल के बेटे में उइंडता और शरारत दिखाई पड़ती है। यह उस मध्यवर्गीय परिवार के जीवन चरित्र की सही तस्वीर है। अपने बेटे की प्रशंसा करते हैं, भले ही वह कुलनाशक है लेकिन निर्धन, निर्बल गिरधर लाल के बेटे में कुलक्षण ही उन्हें दिखायी पड़ते हैं।
(घ) हंस कौओं की जमात में शामिल होने के लिए ललक गया ।
उत्तर-व्याख्या – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘विष के दाँत‘ नामक कहानी से ली गयी हैं जिसके रचियता हैं नलिन विलोचन शर्मा। यह प्रसंग उस समय का है जब सेन दंपत्ति का बेटा दूसरे दिन शाम के वक्त बंगले के अहाते के बगलवाली गली में जा निकला। वहाँ धूल में मदन (गिरधर लाल का बेटा) आवारागर्द लड़कों के साथ लट्टू नचा रहा था। खोखा ने जब यह दृश्य देखा तो उसकी भी तबीयत लट्टू नचाने के लिए ललच गयी। खोखा तो बड़े घर का था यानि वह हंसों की जमात का था, जबकि मदन और वे लड़के निम्न मध्यमवर्गीय दलित, शोषित थे। इन्हें कोओं से संबोधित किया गया। इसी सामाजिक भेदभाव के कारण कहा गया कि हंस कोओं की जमात में शामिल होने के लिए ललक गया। कहने का भाव यह है कि खोखा जो अमीर सेन परिवार का वंशज है, गरीबों के खेल में शामिल होकर खेलने के लिए ललक गया किन्तु यह संभव न हो सका क्योंकि पहले दिन उसके पिता ने उसे और उसकी माँ के साथ पिता को भी प्रताड़ित किया था, उसने अपने अपमान को यादकर छूटते ही खोखा से कहा- अबे, भाग जा यहाँ से। बड़ा आया है लट्टू खेलनेवाला। यहाँ तेरा लट्टू नहीं है। जा, जा, अपने बाबा की मोटर में बैठ। इन पंक्तियों के द्वारा कहानीकार सामाजिक असमानता, भेदभाव, गैरबराबरी को दर्शाना चाहता है।
- सेनं साहब के और उनके मित्रों के बीच क्या बातचीत हुई और पत्रकार मित्र ने उन्हें किस तरह उत्तर दिया?
उत्तर- एक दिन का वाकया है कि ड्राइंग रूम में सेन साहब के कुछ दोस्त बैठे गपशप कर रहे थे। उनमें एक साहब साधारण हैसियत के अखबारनवीस थे और सेन के दूर के रिश्तेदार भी होते थे। साथ में उनका लड़का भी था, जो था तो खोखा से भी छोटा, पर बड़ा समझदार और होनहार मालूम पड़ता था। किसी ने उसकी कोई हरकत देखकर उसकी कुछ तारीफ कर दी और उन साहब से पूछा कि बच्चा स्कूल तो जाता ही होगा? इसके पहले कि पत्रकार महोदय कुछ जवाब देते, सेन साहब ने शुरू किया- मैं तो खोखा को इंजीनियर बनाने जा रहा हूँ, और वे ही बातें दुहराकर थकते नहीं थे। पत्रकार महोदय चुप मुस्कुराते रहे। जब उनसे फिर पूछा गया कि अपने बच्चे के विषय में उनका क्या ख्याल है, तब उन्होंने कहा, “मैं चाहता हूँ कि वह जेटिलमैन जरूर बने और जो कुछ बने, उसका काम है, उसे पूरी आजादी रहेगी।” सेन साहब इस उत्तर के शिष्ट और प्रच्छन्न व्यंग्य पर ऐंठकर रह गए।
- मदन और ड्राइवर के बीच के विवाद के द्वारा कहानीकार क्या बताना चाहता है ?
उत्तर- कहानीकार ने ड्राइवर के रूप में सामन्ती मानसिकता को दिखाया है। मदन एक गरीब का बच्चा है उसके सिर्फ मोटर को स्पर्श करने पर उसे धकेल दिया गया है। जिस कारण उसे चोट आ गया। सामन्ती मानसिकता और एक गरीब के व्यवहार की ओर कहानीकार इशारा कर रहे हैं।
- काशू और मदन के बीच झगड़े का कारण क्या था ? इस प्रसंग के द्वारा लेखक क्या दिखाना चाहता है?
उत्तर- काशू और मदन के बीच झगड़े का कारण था काशू द्वारा मदन से लट्टू माँगना। मदन देने से इंकार करता है। काशू मारता है फिर मदन भी मारता है। लेखक इस प्रसंग के द्वारा दिखाने चाहते हैं कि बच्चे में सामन्ती मानसिकता का भय नहीं होता बाद में चाहे जो हो जाए।
- ‘महल और झोपड़ी वालों की लड़ाई में अक्सर महल वाले ही जीतते हैं, पर उसी हालत में जब दूसरे झोपड़ी वाले उनकी मदद अपने ही खिलाफ करते हैं।’ लेखक के इस कथन को कहानी से एक उदाहरण देकर पुष्ट कीजिए।
उत्तर- सेन साहब की नयी चमकती काली गाड़ी को छूने भर के अपराध के लिए मदन न केवल शोफर द्वारा घसीटा जाता है, अपितु बाप गिरधर द्वारा भी बेरहमी से पीटा जाता है। दूसरे दिन खोखा जब मदन की मंडली में लट्टू खेलने चला जाता है तो मदन का स्वाभिमान जाग उठता है। दोनों की लड़ाई वृहत् रूप ले लेती है। खोखा और मदन की लड़ाई महल और झोपड़ी की लड़ाई का प्रतीक है। खोखा को मुँह की खानी पड़ती है। इस स्वाभिमान की लड़ाई में झोपड़ी वाले की जीत होती है।
- रोज-रोज अपने बेटे मदन की पिटाई करने वाला गिरधर मदन द्वारा काशू की पिटाई करने पर उसे दंडित करने की बजाय अपनी छाती से क्यों लगा लेता है?
उत्तर- गिरधर लाल सेन साहब की फैक्ट्री में एक किरानी था और उनके ही बंगले के अहाते के एक कोने में आउट-हाउस में रहता था। सेन साहब द्वारा जब मदन की शिकायत की जाती, तब गिरधर मदन की पिटाई करता था। गिरधर सेन साहब की हर बात को मानने के लिए विवश था। लेकिन एक दिन जब मदन काशू के अहंकार का जवाब देते हुए उस पर प्रहार करके उसके दाँत तोड़ दिये तब उसके पिता उल्लास और गर्व के साथ उसे शाबासी देते हैं। जो काम वह स्वयं नहीं कर पाया, उसके पुत्र ने करके दिखा दिया। इसलिए वह गौरवान्वित था। मदन शोषण, अत्याचार और अन्याय के विरुद्ध प्रज्वलित प्रतिशोध का प्रतीक है। उसके निर्भीकता से प्रभावित होकर गिरधर ने उसे छाती से लगा लिया।
- सेन साहब, मदन, काशू और गिरधर का चरित्र-चित्रण करें।
उत्तर-सेन साहब – कहानी में सेन साहब प्रमुख पात्र हैं। नई-नई उन्होंने गाड़ी खरीदी है। इसीलिए गाड़ी छाया से सब दूर रहे। खासकर खोखा-खोखी। सेन साहब में दिखावा बहुत अधिक है। अपने पुत्र के संबंध में बहुत बढ़ा-चढ़ाकार ढ़ाकार बातें करते हैं। अपने बेटे के सामने किसी दूसरे लड़के का प्रशंसा पसंद नहीं करते हैं। सेन साहब सामंती मानसिकता के आदमी है।. मदन – सेन साहब का एक कर्मचारी गिरधर है जो उन्हीं के आहाते में रहता है। मदन उसी का लड़का है। लड़का साहसी और निर्भीक है। बाल सुलभ शरारत भी उसमें विद्यमान है। इसी कारण जब काशू उससे झगड़ता है तो मदन भी उसी के भाषा में जवाब देता है। काशू- काशू बाबू सेन साहब का एकमात्र सुपुत्र है। बहुत लाड़-प्यार के बहुत बिगड़ गया है। शरारत करने में माहिर हो गया है। कहानी का नायक काशू ही है। गिरधर- गिरधर सेन साहब के फैक्ट्री में काम करने वाला एक कर्मचारी हैं। उन्हीं के अहाते में रहता है। गिरधर बेहद सीधा और सरल कर्मचारी। यदा-कदा इसे सेन साहब का गुस्सा झेलना पड़ता है। गिरधर मदन का पिता है।
- आपकी दृष्टि में कहानी का नायक कौन है? तर्कपूर्ण उत्तर दें।
उत्तर- हमारी दृष्टि में ‘विष के दाँत‘ शीर्षक कहानी का नायक मदन है। नायक के संबंध में पुरानी कसौटी अब बदल चुकी है। पहले यह धारणा थी कि नायक वही हो सकता है, जो उच्च कुलोत्पन्न हो, सुसंस्कृत, सुशिक्षित, युवा तथा ललित कला प्रेमी हो। परन्तु नायक के संबंध में ये शर्ते अब मान्य नहीं। कोई भी पात्र नायक पद का अधिकारी है यदि वह घटनाओं का संचालक है, सारे पात्रों में सर्वाधिक प्रभावशाली है और कथावस्तु में उसका ही महत्व सर्वोपरि है। इस दृष्टि से विचार करने पर स्पष्ट ज्ञात होता है कि इस कहानी का नायक मदन ही है। इसमें मदन का ही चरित्र है जो सबसे अधिक प्रभावशाली है। पूरे कथावस्तु में इसी के चरित्र का महत्त्व है। खोखे के विष के दाँत उखाड़ने की महत्त्वपूर्ण घटना का भी वही संचालक है। अतः निर्विवाद रूप से मदन ही कहानी का नायक है।
- आरंभ से ही कहानीकार का स्वर व्यंग्यपूर्ण है। ऐसे कुछ प्रमाण उपस्थित करें ।
उत्तर- पाँचो लड़कियाँ तो तहजीब और तमीज की जीती-जागती मूरत ही हैं।
जैसे कोयल घोंसले में से कब उड़ जाय। चमक ऐसी कि अपना मुँह देख लो।
भाषा की बात
- कहानी से मुहावरे चुनकर उनके स्वतंत्र वाक्य प्रयोग करें ।.
उत्तर- आखों का तारा-मोहन अपने माता-पिता के आखों का तारा है।
जीती-जागती मूरत- सेन साहब पुत्री तहजीब और तमीज में जीती जागती मूरत है।
किलकारी मारना- मोहन अपने मित्र के बातों पर किलकारी मारता है।
2 कहानी से विदेशज शब्द चुनें और उनका स्रोत निर्देश करें ।
उत्तर- लॉन – अंग्रेजी
ट्रेड – अंग्रेजी
सोसायटी – अंग्रेजी
तहजीब – उर्दू, फारसी
वाकिफ – उर्दू, फारसी
हैसियत – उर्दू, फारसी
अदब – उर्दू, फारसी
रुखसत- उर्दू, फारसी
- कहानी से पाँच मिश्र वाक्य चुनें ।
उत्तर-(i) उन्हें सिखाया गया है कि ये बातें उनकी सेहत के लिए जरूरी है।
(ii) सेनों का कहना था कि खोखा आखिर अपने बाप का बेटा ठहरा।
(iii) औरत के पास एक बच्चा खड़ा था, जिसे वह रोकने की कोशिश कर रही थी।
(iv) मैंने मना किया तो लगा कहने जा-जा।
(v) कुर्सियाँ लॉन में लगवा दो, जब तक हम यहाँ बैठते हैं।
- वाक्य-भेद स्पष्ट कीजिए
(क) इसके पहले कि पत्रकार महोदय कुछ जवाब देते, सेन साहब ने शुरू किया- मैं तो खोखा को इंजीनियर बनाने जा रहा हूँ।
मिश्र वाक्य
(ख) पत्रकार महोदय चुप मुस्कुराते रहे।
साधारण वाक्य
(ग) ठीक इसी वक्त मोटर के पीछे खट-खट की आवाज सुनकर सेन साहब लपके, शोफर भी दौड़ा।
साधारण वाक्य
(घ) ड्राइवर, जरा दूसरे चक्कों को भी देख लो और पंप ले आकर हवा भर दो ।
संयुक्त वाक्य।
शब्द निधि
बरसाती: पोर्टिको
नाज: गर्व, गुमान
तहजीब: सभ्यता
शोफर; ड्राइवर
शामत: दुर्भाग्य
सख्त: कड़ा, कठोर
ताकीद: कोई बात जोर देकर कहना, हिकमत चेतावनी
खोखा-खोखी: बच्चा-बच्ची (बाँग्ला)
फटकना: निकट आना
तमीज: विवेक, बुद्धि, शिष्टता
तालीम: शिक्षा
सोसाइटी: शिष्ट समाज, भद्रलोक
रश्क: इर्ष्या
ताल्लुक: संबंध
हकीकत: सच्चाई, वास्तविकता
आविर्भाव: उत्पत्ति, प्रकट होना
दुर्ललित: लाड़-प्यार में बिगड़ा हुआ
ट्रेंड: प्रशिक्षित
दूरंदेशी: दूरदर्शिता, समझदारी
फरमाना: आग्रहपूर्वक कहना
फिजूल: फालतू, व्यर्थ
वाकिफ: परिचित
वाकया: घटना
हैसियत: स्तर, प्रतिष्ठा, सामर्थ्य, औकात
अखबारनवीस: पत्रकार
प्रच्छन्न: छिपा हुआ, गुप्त, अप्रकट
अदब: शिष्टता, सभ्यता
हिकमत: कौशल, योग्यता
रुखसत: विदाई
बेलौस: निःस्वार्थ
बेयरा: खाना खिलाने वाला सेवक
चीत्कार: क्रंदन, आर्त्त होकर चीखना
शेयनागार: शयनकक्ष, सोने का कमरा
खलल: विघ्न, बाधा, व्यवधान
कातर: आर्त्त
खैरियत: कुशलक्षेम
बेढब: बेतरीका, अनगढ़
उज्र: आपत्ति
मजाल: ताकत, हिम्मत, साहस
अक्ल: बुद्धि
दुर्दमनीय: मुश्किल से जिसका दमन किया जा सके
निष्ठुरता: क्रूर निर्ममता