Bihar Board (बिहार बोर्ड) Solution of Class-10 Hindi (हिन्दी) Gadya Chapter-10 Machhli (मछली) गोधूलि

Bihar Board (बिहार बोर्ड) Solution of Class-10 Hindi Gadya Chapter-10 Machhli (मछली) विनोद कुमार शुक्ल

Dear Students! यहां पर हम आपको बिहार बोर्ड  कक्षा 10वी के लिए हिन्दी गोधूलि  भाग-2 का पाठ-10 मछली विनोद कुमार शुक्ल Bihar Board (बिहार बोर्ड) Solution of Class-10 Hindi (हिन्दी) Gadya Chapter-10 Machhli संपूर्ण पाठ  हल के साथ  प्रदान कर रहे हैं। आशा करते हैं कि पोस्ट आपको पसंद आयेगी और आप इसे अपने दोस्तों में शेयर जरुर करेंगे।

Chapter Name Machhli (मछली)
Chapter Number Chapter- 10  
Board Name Bihar Board  (B.S.E.B.)
Topic Name संपूर्ण पाठ 
Part
भाग-2 Gadya Khand (गद्य खंड )

Machhli (मछली)

विनोद कुमार शुक्ल

विनोद कुमार शुक्ल का जन्म 1 जनवरी 1937 ई० में राजनांदगाँव, छत्तीसगढ़ में हुआ। उन्होंने वृत्ति के रूप में प्राध्यापन को अपनाया। वे इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर थे । वे दो वर्षों (1994-1996 ई०) तक निराला सृजनपीठ में अतिथि साहित्यकार भी रहे। उनका पहला कविता संग्रह ‘लगभग जयहिंद’ पहचान सीरीज के अंतर्गत 1971 में प्रकाशित हुआ। उनके अन्य कविता संग्रह हैं ‘वह आदमी नया गरम कोट पहिनकर चला गया विचार की तरह’, ‘सबकुछ होना बचा रहेगा’ और ‘अतिरिक्त नहीं। उनके तीन उपन्यास ‘नौकर की कमीज’, ‘खिलेगा तो देखेंगे’ और ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ तथा दो कहानी संग्रह ‘पेड़ पर कमरा’ और ‘महाविद्यालय’ भी प्रकाशित हो चुके हैं। उनके उपन्यासों का कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। इतालवी भाषा में उनकी कविताओं एवं एक कहानी संग्रह ‘पेड़ पर कमरा’ का अनुवाद हुआ है। ‘नौकर की कमीज’ उपन्यास पर मणि कौल द्वारा फिल्म का भी निर्माण हुआ है। विनोद कुमार शुक्ल को 1992 ई० में रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार, 1997 ई० में दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान और 1990 ई० में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं।

बीसवीं शती के सातवें-आठवें दशक में विनोद कुमार शुक्ल एक कवि के रूप में सामने आए थे। कुछ ही समय बाद उसी दौर में उनकी दो-एक कहानियाँ भी सामने आई थीं। धारा और प्रवाह से बिल्कुल अलग, देखने में सरल किंतु बनावट में जटिल अपने न्यारेपन के कारण उन्होंने सुधीजन का ध्यान आकृष्ट किया था। यह खूबी भाषा या तकनीक पर निर्भर नहीं थी। इसकी जड़ें संवेदना और अनुभूति में थीं और यह भीतर से पैदा हुई खासियत थी। तब से लेकर आज तक वह अद्वितीय मौलिकता अधिक स्फुट, विपुल और बहुमुखी होकर उनकी कविता, उपन्यास और कहानियों में उजागर होती आयी है।

प्रस्तुतं कहानी कहानियों के उनके संकलन ‘महाविद्यालय’ से ली गयी है। कहानी बचपन की स्मृति के भाषा-शिल्प में रची गयी है और इसमें एक किशोर की वयः संधिकालीन स्मृतियाँ, दृष्टिकोण और समस्याएँ हैं। कहानी एक छोटे शहर के निम्न मध्यवर्गीय परिवार के भीतर के वातावरण, जीवन यथार्थ और संबंधों को आलोकित करती हुई लिंग-भेद की समस्या को भी स्पर्श करती है। घटनाएँ, जीवन प्रसंग आदि के विवरण एक बच्चे की आँखों देखे हुए और उसी के मितकथन से उपजी सादी भाषा में हैं। कहानी का समन्वित प्रभाव गहरा और संवेदनात्मक है। कहानी अपनी प्रतीकात्मकता के कारण मन पर एक स्थायी प्रभाव छोड़ती है ।

मछली

दौड़ते हुए हम लोग एक पतली गली में घुस गए। इस गली से घर नजदीक पड़ता था। दूसरे रास्तों में बहुत भीड़ थी। बाज़ार का दिन था। लेकिन बूँदें पड़ने से भीड़ के बिखराव में तेजी आ गई थी । दौड़ इसलिए रहे थे कि डर लगता था कि मछलियाँ बिना पानी के झोले में ही न मर जाएँ । झोले में तीन मछलियाँ थीं। एक तो उसी वक्त मर गई थी जब पिताजी खरीद रहे थे । दो जिन्दा थीं । झोले में उनकी तड़प के झटके मैं जब तब महसूस करता था। मन ही मन सोच रहा था कि एक मछली पिताजी से जरूर माँग लेंगे। फिर उसे कुएँ में डालकर बहुत बड़ी करेंगे । जब मन होगा बाल्टी से निकालकर खेलेंगे। बाद में फिर कुएँ में डाल देंगे । अब जोर से पानी गिरने लगा था। बरसते पानी में खड़े होकर झोले का मुँह आकाश की. तरफ फैलाकर मैंने खोल दिया ताकि आकाश का पानी झोले के अन्दर पड़ी मछलियों पर पड़े।. उनमें थोड़ी जान आ जाए। संतू भीगने से बचने के लिए एक मकान के नीचे खड़ा हो गया था। हम दोनों बुरी तरह भीग गए थे। तभी कोई मछली पानी के छींटे पाकर, कहीं आसपास किसी तालाब, या नदी का अंदाजकर जोर से उछली। झोला मेरे हाथ से छूटते-छूटते बचा । नहानघर का दरवाजा अंदर से हम लोगों ने बंद कर लिया था। भरी हुई बाल्टी थी, उसे आधी खाली कर मैंने झोले की तीनों मछलियाँ उड़ेल दीं। अगर बाल्टी भरी होती तो मछली उछलकर नीचे आ जाती। एक बार एक छोटी सी मछली मेरे हाथ से फिसलकर नहानघर की नाली में घुस गई थी। हाथों से मैंने और सन्तू ने टटोल टटोलकर ढूँढ़ा था। जब दिखी नहीं तो हम घर के पीछे जाकर खड़े हो गए थे जहाँ घर की नाली एक बड़ी नाली से मिलती थी। गंदे पानी में मछली दिखी नहीं। दीदी ने बताया था कि वह मछली इस नाली से शहर की सबसे बड़ी नाली में जाएगी फिर शहर से तीन मील दूर मोहारा नदी में चली जाएगी ।

संतू ठंढ से काँप रहा था । माँ हम लोगों को भीगा देखेगी तो मार पड़ेगी। मैंने संतू से कहा कि वह कमीज उतारकर निजोड़ ले । कमीज उतारकर हम दोनों ने निचोड़ी। पेंट को मुट्ठियों से दबादबाकर निचोड़ा । फिर हम दोनों केवल पैंट पहिने, गोद में गीली कमीज दबाये बाल्टी को घेरकर बैठ गए । जो सबसे नीचे दबी हुई मछली थी वही शायद मर गई थी ।

संतू से मैंने कहा “अपन ये सबसे ऊपर वाली मछली पिताजी से माँग लेंगे ।” संतू ने सिर हिलाकर कहा “अच्छा ।” वह बड़े प्यार से मछलियों की तरफ देख रहा था। वह मछलियों को छूकर देखना चाहता था लेकिन डरता था। बाल्टी के थोड़ा और पास खिसककर एक मछली को पकड़ते हुए मैंने कहा, “संतू ! तू भी छूकर देख न ।”

“नहीं, काटेगी” संतू न इनकार करते हुए कहा ।

“मैं तो छू रहा हूँ। मुझे तो नहीं काटती। ये मछली नहीं काटती। ले छू !”

संतू ने डरते-डरते एक मछली को जो सबसे ऊपर थी उँगली से छुआ। फिर डरकर उसने अपना हाथ खींच लिया ।

“डरता क्यों है ?” कहकर एक मछली को मैंने उठा लिया। मछली मेरे हाथों से फिसली पड़ रही थी। मैंने उसे फिर बाल्टी में डाल दिया। बाल्टी में पड़ते ही वह उछली तो पानी के छींटे हम लोगों पर पड़े। तब संतू चौंककर थोड़ा पीछे हट गया था। नीचे दबी हुई मछली की आँखों में मैं अपनी छाया देखना चाहता था। दीदी कहती थी. जो मछली मर जाती है उसकी आँखों में झाँकने से अपनी परछाईं नहीं दिखती । बाल्टी में हाथ डालकर मैंने मुर्दा सी पड़ी उस मछली को बाहर निकाला। नहानघर के फर्श पर उसे धीरे से रख दिया। उसकी पूँछ को पकड़कर दो-तीन बार हिलाया तो भी. उस मछली में थोड़ी भी हरकत नहीं हुई। उसकी लंबी एक-एक बाल की मूछें छोर से छल्लेदार बन गई थीं । ‘संतू ! तू इसकी आँख में झाँक के देख तेरी परछाईं इसमें दिखती है क्या ?” मछली बाहर फर्श पर थी इसलिए संतू थोड़ी दूर हटकर बैठा था। मेरे यह कहने से कुछ पास आकर मछली की आँख में उत्सुकता से झाँकने लगा। “और पास से देख। परछाईं दिखती है ?” समझाते हुए मैंने उससे कहा “दीदी कहती है मरी मछली की आँख में आदमी की परछाईं नहीं दिखती।” दूर से सिर झुकाये मछली की आँखों में झाँकता हुआ संतू चुपचाप था। कुछ बोलता ही नहीं था कि परछाईं दिखती है या नहीं । “तुझसे कुछ भी नहीं बनता” कहकर दोनों हाथों से मैंने मछली को उठा लिया। फिर मछली को अपने चेहरे के बिल्कुल पास लाकर मैंने देखा तो मुझे उसकी आँख में धुँधली-धुँधली परछाईं दिखी । ठीक से समझ नहीं आ रहा था कि यह मेरी परछाईं थी या मछली की आँखों का रंग ही ऐसा हो गया था ।

“शायद थोड़ी जान है” “जाकर तू चुपके से दीदी को बुला ला ।”

मैंने संतू से कहा। और मैंने मछली फिर से बाल्टी में डाल दी। थोड़ी देर बाद संतू लौटकर आया तो कहा “दीदी तो सो रही है।”

“अभी दिन को सो रही है।” मुझे आश्चर्य हुआ ।

“माँ कहाँ है?”

“उस तरफ मसाला पीस रही है।”

मेरा दिल बैठ गया। “चः चः मछली के लिए मसाला होगा”

“आज ही बनेगी” दुःख से मैंने कहा ।

“भइया ! मछली अभी कट जायेगी।” भोलेपन से संतू ने पूछा ।

“हाँ।”

फिर संतू भी उदास हो गया ।

घर में मछली काटने के लिए एक अलग से पाटा था। उस पाटे के ऊपर ही मछली रखकर काटी जाती थी । पाटे में चक्कू के आड़े-तिरछे निशान बन गए थे। यह पाटा परछी में इम. के पीछे रखा रहता था। जिस रोज मछली बनती थी उसी रोज यह पाटा निकाला जाता था। घर का नौकर मछली काटा करता था। पानी का गिरना बिल्कुल बंद हो गया था। आँगन में आकर मैंने देखा जिस जगह मछली काटी जाती थी वहाँ वही पाटा धुला हुआ रखा था। पास में थोड़ी चूल्हे की राख थी। मैंने सोचा भग्गू कुआँ के पास चक्कू में धार कर रहा होगा । नहानघर का दरवाजा पूरा खुला था। मुझे बाल्टी दिख रही थी जिसमें मछलियाँ थीं। माँ वहाँ नहीं थी ! शायद ऊपर होगी। माँ को घर में मछली, गोश्त बनना अच्छा नहीं लगता था। पिताजी ने कई बार चाहा कि हम लोग भी मछली, गोश्त खाया करें लेकिन माँ ने सख्ती से मना कर दिया था। और किसी को अच्छा भी नहीं लगता था, केवल पिताजी खाते थे ।

भग्गू को जैसे मालूम था कि मछलियाँ नहानघर में हैं। आते ही वह अंगोछे में तीनों मछलियाँ निकाल लाया। कुएँ में मछली पालने का उत्साह बुझ-सा गया था। पिताजी शायद अभी तक आए नहीं थे। कमरे में जाकर देखा तो सच में दीदी करवट लिए लेटी थी। संतू को मैंने इशारे से बुलाया कि वह भी गीले कपड़े बदल ले। शायद कुछ आहट हुई होगी। दीदी ने पलटकर हमें देखा । गीले कपड़ों में देखकर दीदी बहुत नाराज हुई। फिर प्यार से समझाया । संतू को दीदी ने खुद अपने हाथों से जाने क्यों बहुत अच्छे-अच्छे कपड़े पहनाए। मैं घर के धोए कपड़े पहिन रहा था तो दीदी ने कहा कि धोबी के धुले कपड़े पहिन लूँ। फिर दीदी ने पेटी से मेरे लिए कपड़े निकाल दिए । संतू के बड़े-बड़े बाल थे इसलिए अभी तक गीले थे। दीदी ने संतू के बालों को टावेल से पोंछकर, उनमें तेल लगाया। बायें हाथ से संतू की ठुड्डी पकड़कर दीदी ने उसके बाल सँवार दिए। जब दीदी संतू के बाल सँवार रही थी तो संतू अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से दीदी को टकटकी बाँधे देख रहा था। सभी कहते थे कि दीदी बहुत सुन्दर है ।

दीदी रो मैंने कहा “दीदी! आज मछली आई है। तीन हैं। एक शायद मर गई है। उन्हें अभी भग्गू काटेगा ।” पहले तो दीदी चुप रही फिर कहा कि मैं कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर दूँ। वह कमरे में अकेले लेटेगी। उसकी तबीयत ठीक नहीं है। मैं और संतू दोनों चुपचाप कमरे से बाहर निकल आए। जब मैं दरवाजा बंद कर रहा था, तो दीदी लेटी हुई थी।

भग्गू के पीछे खंभे के पास टिककर हम दोनों मछली का कटना देखने लगे । भग्गू ने एक मछली उठाकर पहले उसे पत्थर पर कसकर दो-तीन बार पटका, फिर मुर्दा सी मछली के पूरे शरीर में अच्छी तरह राख मली। पाटे के ऊपर रखकर एक दम से उसकी गर्दन काट डाली। मछली थोड़ी भी नहीं तड़पी । तभी जाने क्यों मेरे देखते ही देखते संतू एक मछली अंगोछे से

उठाकर बाहर की तरफ सरपट भागा । भग्गू भी मछली काटना छोड़कर “अरे ! अरे ! अरे !” कहता हुआ उसके पीछे-पीछे भागा । मैं वहीं खड़ा रहा, पाटे में राख से लिपटी हुई सिर कटी हुई मछली पड़ी थी । अंगोछे में जो मछली लिपटी हुई सी थी उसका धीरे-धीरे लहरना मुझे साफ मालूम पड़ रहा था । मैंने सोचा संतू मुर्दा मछली लेकर भागा है ।

मुझे लगा कि दीदी के कमरे से दीदी की हल्की-हल्की सिसकियों की आवाज आ रही थीं । धीरे से दरवाजा खोलकर मैं अंदर गया तो देखा कि दीदी सच में अपनी पहनी हुई साड़ी को सर तक ओढ़े, करवट लिए सिसक-सिसक कर रो रही थी। हिचकी लेते ही दीदी का पूरा शरीर सिहर उठता था। अंगोछे में लिपटी मछली का लहरना मुझे याद आया। वैसे ही धीरे से दरवाजा बंद कर मैं बाहर आ गया । भग्गू और संतू अभी तक नहीं थे । बाड़े की तरफ आकर मैंने देखा कि कुएँ के पास जमीन पर संतू जानबूझकर पट पड़ा था। दोनों हाथों से मछली को अपने पेट के पास छुपाए हुए था । भग्गू मछली छीनने की कोशिश कर रहा था । शायद उसे डर था कि संतू मछली कुएँ में डाल देगा तो पिताजी से उसे डाँट पड़ेगी ! मैंने सुना कि अंदर की तरफ पिताजी के जोर-जोर से चिल्लाने की आवाज आ रही थी ।

तीनों मछलियों के कई टुकड़े हो गए थे। पाटे के पास मछलियों के गोल-गोल चमकीले पंख पड़े थे । दीदी जहाँ लेटी थी, उस कमरे का दरवाजा खुला था। शायद माँ अन्दर थी। पिताजी दरवाजे के पास गुस्से से टहल रहे थे। दीदी की सिसकियाँ बढ़ गई थीं। मुझे लगा कि पिताजी ने दीदी को मारा है।

भग्गू जैसे ही बाहर जा रहा था तो पिताजी ने दहाड़कर कहा “भग्गू ! अगर नरेन घर में घुसे तो साले के हाथ पैर तोड़ बाहर फेंक देना। बाद में जो होगा मैं भुगत लूँगा ।”

भग्गू चुपचाप सिर हिलाकर चला गया । संतू सहमा सहमा चुपचाप खड़ा था । कीचड़ से उसके साफ अच्छे कपड़े बिल्कुल खराब हो गए थे। बाल जिसे दीदी ने प्यार से सँवारा था उसमें भी बहुत मिट्टी लगी थी ।

नहानघर में जाकर मुझे लगा कि मछलियों की गंध आ रही है। बाल्टी के पास बैठकर मैंने पानी को हाथ से गोल-गोल खंगाला। फिर बाल्टी को उलट दिया तो नहानघर की नाली क्षणभर को पूरी भर गई, फिर बिल्कुल खाली हो गई। पूरे घर में मछलियों की जैसे गंध आ रही थी ।

बोध और अभ्यास

पाठ के साथ

  1. झोले में मछलियाँ लेकर बच्चे दौड़ते हुए पतली गली में क्यों घुस गए?

उत्तर- दौड़ते हुए बच्चे पतली गली में इसलिए घुस गये कि इस गली से घर नजदीक पड़ता था।

2 मछलियों को लेकर बच्चों की अभिलाषा क्या थी?

उत्तर- मछलियों को लेकर बच्चों की अभिलाषा थी कि एक मछली पिता जी से मांग कर कुँए में डालकर बहुत बड़ी करेंगे। जब मन होगा बाल्टी से निकालकर खेलेंगे। बाद में फिर कुँए में डाल देंगे।

  1. मछलियाँ लिए घर आने के बाद बच्चों ने क्या किया?

उत्तर- घर आने के बाद बच्चों ने नहानघर में प्रवेश किया। भरी हुई बाल्टी को आधा खाली कर झोले को तीनों मछलियाँ उड़ेल दी।

  1. मछली को छूते हुए संतू क्यों हिचक रहा था?

उत्तर- संतू को मछली छूते हुए डर लग रहा था। मछली छूने से कहीं काट न ले।

  1. मछली के बारे में दीदी ने क्या जानकारी दी थी? बच्चों ने उसकी परख कैसे की?

उत्तर- मछली के बारे में दीदी ने जानकारी दी थी कि मरी हुई मछली की आँख में अपनी परछाई नहीं दिखती है। बच्चों ने उसकी परख एक मृत मछली की आँख में अपनी परछाई देखकर की।

  1. संतू क्यों उदास हो गया?

उत्तर- संतू यह जानकर उदास हो गया था कि मछली कुछ देर बाद कट जायेगी। वह मछली को जीवित पालना चाहता था। मछली की बिछुड़ते हुए जानकर वह दुःखी हो गया।

  1. घर में मछली कौन खाता था और वह कैसे बनायी जाती थी?

उत्तर- घर में मछली केवल पिताजी खाते थे। मछली को उस घर का नौकर काटता था। उसे काटने के लिए अलग पाटा था। पहले मछली को पत्थर पर पटककर मार दिया जाता था, फिर राख से मलने के बाद पाटा पर रखकर चाकू से काटा जाता था। मछली बनाने का कार्य नहानघर में होता था।

  1. दीदी कहाँ थी और क्या कर रही थी?

उत्तर- दीदी कमरे में थी और सो रही थी।

  1. अरे-अरे कहता हुआ भग्गू किसके पीछे भागा और क्यों?

उत्तर- अरे अरे कहता हुआ भग्गू संतू के पीछे भागा क्योंकि संतू एक मछली को लेकर भाग रहा था। भागू को डर था कि संतू मछली को कुओं में डाल देगा जिसके चलते उसे डाँट पड़ेगी। संतू से मछली लेने के लिए वह उसके पीछे भागा।

  1. मछली और दीदी में क्या समानता दिखलाई पड़? स्पष्ट करें ।

उत्तर- आदमी के चंगुल में आकर मछली कटने को विवश थी। पानी के अभाव में अंगोछा में लिपटी मछली लहरा रही थी। दीदी कमरा में करवट लिए, पहनी हुई साड़ी को सर तक ओढे, सिसक- सिसक कर रो रही थी। हिचकी लेते ही दीदी का पूरा शरीर सिहर उठता था। दीदी का सिहरना एवं मछली का लहराना दोनों में समानता दिखलाई पड़ी।

  1. पिताजी किससे नाराज थे और क्यो?

उत्तर- पिताजी नरेन से नाराज थे। क्योंकि बच्चों ने मछलियों के चलते स्वयं परेशान रहे। साथ ही भग्गू को भी परेशान किया। बच्चे मछली को पालना चाहते थे, कोमल बालमन मछली को कटते देख विह्वल हो उठा और बच्चा एक मछली को लेकर भाग गया। पीछे-पीछे भग्गू को भागना पड़ा। छीना-झपटी की स्थिति आई। पिताजी इन हरकतों के कारण नाराज हुए।

  1. सप्रसंग व्याख्या करें –

(क) बरसते पानी में खड़े होकर झोले का मुँह आकाश की तरफ फैलाकर मैंने खोल दिया ताकि आकाश का पानी झोले के अंदर पड़ी मछलियों पर पड़े ।.

व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘मछली’ नामक कहानी से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का संबंध उस संदर्भ से है जब बच्चे पिताजी द्वारा खरीदी गयी तीन मछलियों को लेकर भीगते हुए घर जा रहे हैं। बच्चों को मछलियों के प्रति मोह था। वे उसे मरने देना नहीं चाहते थे। मछलियाँ बड़ी थीं। झोले में एक-दूसरे से दबी हुई थीं। झोला में तो पानी नहीं था। कहीं पानी के अभाव में ये मछलियाँ मर न जाएँ इसी डर से उन्होंने झोले का मुँह खोलकर आकाश की ओर फैला दिए ताकि आकाश का पानी झोले में पड़े और मछलियाँ जिन्दा रह सकें। इस प्रकार मछलियों के लिए पानी एवं जान की रक्षा करने के लिए बच्चों ने ऐसा किया। वे मछलियों को कुएं में डालकर पोसना चाहते थे। उन्हें मछलियों के प्राण बचाने की चिंता थी।

(ख) अगर बाल्टी भरी. होती तो मछली उछलकर नीचे आ जाती ।

व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘मछली’ शीर्षक कहानी से ली गयी हैं। इस वाक्य का संदर्भ उस समय से है जब बच्चे मछली लेकर घर आते हैं। नहानघर में पानी से भरी बाल्टी से आधा पानी को गिराकर उसमें तीन मछलियों को उड़ेल देते हैं। लेखक को लगा कि अगर भरी बाल्टी में मछलियों को रखा जाता तो वे उछलकर बाल्टी से निकल जाती और फर्श पर आ जाती। बच्चों का बालसुलभ मन मछलियों को खाना नहीं चाहता था। एक बार एक छोटी मछली उनके हाथ से छूटकर नहानघर की नाली में घुस गयी थी जिसे दोनों भाइयों ने काफी ढूँढा, लेकिन वह मछली नहीं मिली। दीदी ने कहा था कि घर की नाली शहर की नाली से तीन मील दूर मोहरा नदी में मिली है जिससे छोटी मछली नदी में बहकर चली गयी होगी। इसी आशंका से बच्चों ने आधी पानी भरी बाल्टी में मछलियों को रखा था ताकि वे मछलियों उछलकर बाहर आकर कहीं नाली-नाली होते हुए नदी में न चली जाएँ। मछली के खोने का भय आज भी बच्चों के दिमाग में बना हुआ है। अतः, आज वे सतर्क थे और तीनों मछलियों को बाल्टी में रखकर सुरक्षा कर रहे थे।

(ग) और पास से देख । परछाई दिखती है?

व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘मछली’ कहानी से ली गयी हैं। इसका संदर्भ दीदी द्वारा कही गयी बातों से जुड़ा हुआ है। दीदी अपने भाइयों से कहती थी कि जो मछली मर जाती है उसकी आँखों में झाँकने से आदमी की परछाई नहीं दिखती हैं।

लेखक ने जब बाल्टी से मछली को निकालकर फर्श पर रखा और पूंछ पकड़कर दो-तीन बार हिलाया तो मछली में थोड़ी-सी भी हरकत नहीं हुई। इस पर लेखक ने संतू से कहा कि तू इसकी आँख में झाँककर देख तेरी परछाई इसमें दिखती है कि नहीं। संतू थोड़ी दूरी पर बैठा था। बड़े भाई की बात सुनकर वह मछली के पास आया और उत्सुकतावश मछली को देखने लगा। इस पर लेखक ने संतू से कहा है कि-और पास से देखा परछाई दिखती है क्या? लेखक ने समझाते हुए दीदी की बातों को संतू से दुहरा दिया। संतू दूर से ही सिर झुकाए मछली की आँखों में झाँकता हुआ चुपचाप था। वह कुछ बोलता ही नहीं था कि परछाई दिखती है कि नहीं।

इस प्रकार उपर्युक्त पंक्तियों का संदर्भ और व्याख्या संतू, मछली और लेखक के बीच का है। मछली के जिन्दा होने के लिए लेखक ने संतू से उपर्युक्त वाक्य को कहा था ताकि दीदी ने जो बातें मछली के बारे में बताया था, वह सच था कि नहीं। वह इसकी परीक्षा ले रहा था। संतू चुपचाप मछली की आँखों में अपनी परछाई देखने का प्रयत्न कर रहा था और निरूत्तर था।

(घ) नहानघर की नाली क्षणभर के लिए पूरी भर गई, फिर बिल्कुल खाली हो गयी ।

व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक की कहानी ‘मछली’ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का संदर्भ नहानघर से है जहाँ लेखक मछलियों को देखने के लिए गया है। नहानघर में पहुंचने पर लेखक ने महसूस किया कि पूरा नहानघर मछलियों की गंध से भरा हुआ है। वहाँ भग्गू द्वारा गोल-गोल काटी गयी मछलियों के टुकड़े पड़े हुए थे। उसे लेखक ने हाथों से बाल्टी में धोया और पानी भरी बाल्टी को उड़ेल दिया। इससे नहानघर की नाली क्षणभर में पूरी भर गयी और तुरंत पानी के बह जाने पर खाली भी हो गयी। पूरे घर में मछलियों की गंध आ रही थी। जिसे लेखक ने महसूस किया। नहानघर में ही भग्गू मछलियों को धोकर, काटकर साफ-सुथरा कर रहा था ताकि उसे पकाया जा सके।

इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक कहना चाहता है कि नहानघर ही नहीं पूरा घर मछली की गंध से पट गया था। कारण मछली के कारण पूरे घर में हंगामा हो गया था। दीदी से लेकर पिताजी और संतू सभी मछली वाली घटना में शरीक थे।

  1. संतू के विरोध का क्या अभिप्राय है?

उत्तर- संतू मानवीय गुणों को उजागर करता है। मानव में सेवा, परमार्थ, ममता जैसे गुण विद्यमान होते हैं। परन्तु आज मानव अपने आदर्श को भूलकर, इन गुणों को त्यागकर, स्वार्थ में अंधा होकर विवश और लाचार की मदद में नहीं बल्कि शोषण में लिप्त है। मूक मछलियों को निर्ममतापूर्वक काटते देख संतू उसकी रक्षा को आतुर हो उठता है और उसे बचाने हेतु झपट कर भग्गू के सामने से मछली को लेकर भाग जाता है। इस विरोध का मतलब है कि आज निःस्वार्थ भाव से बेबस, लाचार, शोषित, पीड़ित जनों की रक्षा, उत्थान एवं कल्याण के लिए अग्रसर होना परमावश्यक है। ममत्व में धैर्य टूट जाता है। सभी प्राणी में अपनी परछाई देखनी चाहिए।

  1. दीदी का चरित्र चित्रण करें ।

उत्तर- प्रस्तुत कहानी में मध्यम वर्गीय परिवार की यथार्थ झलक है। दीदी घर, के चहारदीवारी के बीच कठपुतली बनकर रहने वाली एक बाला है। लिंग भेद परिवार में निहित है। पिता की ओर से स्वतंत्रता नहीं है जिसके चलते घर में ही रहकर समय व्यतीत करती है। वह ममता की मूर्ति है। अपने भाइयों के प्रति अटूट श्रद्धा रखती है। उन्हें प्रत्येक जीवों में अपनी परछाई देखने की शिक्षा देती है। मछली को विवश होकर कट-जाना उसके लिए पीड़ादायक है। वह समाज की रूढ़िवादिता के बीच मूक रहकर लाचार, बेबस एवं निर्ममतापूर्वक प्रहार को सहन करने वाले की आत्मा की पुकार को अनुभव करके सिसकियाँ एवं आह भर कर रह जाने वाली कन्या है।

  1. कहानी के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट करें ।

उत्तर- ‘मछली’ शीर्षक कहानी में एक किशोर की स्मृतियाँ, दृष्टिकोण और समस्याएँ हैं। मछलियों के माध्यम से, मूक रहकर प्राणांत को स्वीकार लेना ही लाचार, शोषित, पीड़ित जनों की नियति है, बताया गया है। जीवन क्षणभंगुर है। कल्पनाएँ क्षणिक हैं एवं स्वप्न कभी भी बिखर सकते हैं। बाल सुलभ मनोभाव मछलियों के इर्द-गिर्द घूमते हैं। पूरी कहानी मछली पर ही आधारित है। मछली की दशा का जीवन्त चित्रण है। अंततः दीदी की तुलना भी बालक मछली से करता है। इस कहानी का ‘मछली’ शीर्षक पूर्णरूपेण सार्थक कहा जा सकता है।

भाषा की बात
  1. निम्नांकित विशेष्य पदों में उपयुक्त विशेषण या क्रियाविशेषण लगाएँ –

गली, मछली, उछली, कमीज, मूँछें, परछाईं, नहानघर, बँगाला

उत्तर-गली – पतली गली

मछली – तीन मछलियाँ, कोई मछली।

उछली – जोर से उछली।

कमीज – गीली कमीज। –

मूंछे – छल्लेदार मूंछे।

परछाई – अपनी परछाई।

नहानघर – मछलियाँ नहानघर।

खंगाला – गोल-गोल खंगाला।

  1. पाठ में प्रयुक्त विभिन्न क्रियारूपों को एकत्र कीजिए ।

उत्तर- घुस गए, पड़ता था, छूटते-घूटते बचा। उछलकर, आदि।

  1. निम्नांकित वाक्यों के बव-विग्रह करें –

(क) मुर्दा सी मछली के पूरे शरीर में अच्छी तरह राख मली ।

उत्तर- मुर्दा – गुणवाचक विशेषण, स्त्रीलिंग, एकवचन

मछली – जातिवाचक संज्ञा, स्त्रीलिंग, एकवचन, कर्त्ताकारक।

अच्छी – गुणवाचक विशेषण स्त्रीलिंग, एकवचन।

मली – सकर्मक क्रिया, स्त्रीलिंग, एकवचन, भूतकाल।

(ख) पाटे के पास मछलियों के गोल-गोल चमकीले पंख पड़े थे ।

उत्तर- मछलियों – जातिवाचक संज्ञा, स्त्रीलिंग, बहुवचन संबंध कारक।

चमकीले – गुणवाचक विशेषण, बहुवचन, पुल्लिंग।

शब्द निधि

टटोला :अनुमान किया, थाह लिया

फर्श :पक्की जमीन

उत्सुकता :कुतूहल, जानने की इच्छा

छोर :किनारा

पाटा : वह लकड़ी जिस पर रखकर मछली काटी गई

आहट : ध्वनि, आवाज, संकेत

पेटी :बक्सा

टावेल : तौलिया

टकटकी :अपलक देखना

अंगोछा:गमछा

सरपट :तेजी

लहरना : तड़पना

सिसकियों : रुदन की अस्पष्ट ध्वनि, धीमे-धीमे रोना

बाड़ा : अहाता.

निचोड़ना : निथारना, गारना

Bihar Board (बिहार बोर्ड) Solution of Class-10 Hindi (हिन्दी) Gadya Chapter-11 Naubatkhane mein Ibadat (नौबतखाने में इबादत) गोधूलि

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