Bihar Board (बिहार बोर्ड) Solution of Class-10 Hindi Padya Chapter-1 Ram Naam Binu Birthe Jagi Janma (राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा) गुरु नानक
Dear Students! यहां पर हम आपको बिहार बोर्ड कक्षा 10वी के लिए हिन्दी गोधूलि भाग-2 का पाठ-1 राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा गुरु नानक Bihar Board (बिहार बोर्ड) Solution of Class-10 Hindi (हिन्दी) Padya Chapter-1 Ram Naam Binu Birthe Jagi Janma संपूर्ण पाठ हल के साथ प्रदान कर रहे हैं। आशा करते हैं कि पोस्ट आपको पसंद आयेगी और आप इसे अपने दोस्तों में शेयर जरुर करेंगे।
Chapter Name | |
Chapter Number | Chapter- 1 |
Board Name | Bihar Board (B.S.E.B.) |
Topic Name | संपूर्ण पाठ |
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भाग-2 Padya Khand (पद्य खंड ) |
गुरु नानक
गुरु नानक का जन्म 1469 ई० में तलंबंडी ग्राम, जिला लाहौर में हुआ था । इनका जन्म स्थान ‘नानकाना साहब’ कहलाता है जो अब पाकिस्तान में है। इनके पिता का नाम कालूचंद खत्री, माँ का नाम तृप्ता और पत्नी का नाम सुलक्षणी था। इनके पिता ने इन्हें व्यवसाय में लगाने का बहुत उद्यम किया, किन्तु इनका मन भक्ति की ओर अधिकाधिक झुकता गया । इन्होंने हिन्दू-मुसलमान दोनों की समान धार्मिक उपासना पर बल दिया । वर्णाश्रम व्यवस्था और कर्मकांड का विरोध करके निर्गुण ब्रह्म की भक्ति का प्रचार किया। गुरुनानक ने व्यापक देशाटन किया और मक्का-मदीना तक की यात्रा की। मुगल सम्राट बाबर से भी इनकी भेंट हुई थी। गुरु नानक ने ‘सिख धर्म’ का प्रवर्तन किया। गुरुनानक ने पंजाबी के साथ हिंदी में भी कविताएँ कीं। इनकी हिंदी में ब्रजभाषा और खड़ी बोली दोनों का मेल है। इनके भक्ति और विनय के पद बहुत मार्मिक हैं। इनके दोहों में जीवन के अनुभव उसी प्रकार गुँथे हैं जैसे कबीर की रचनाओं में, लेकिन इन्होंने उलटबाँसी शैली नहीं अपनाई । इनके उपदेशों के अंतर्गत गुरु की महत्ता, संसार की क्षणभंगुरता, ब्रह्म की सर्वशक्तिमत्ता, नाम जप की महिमा, ईश्वर की सर्वव्यापकता आदि बातें मिलती हैं। इनकी रचनाओं का संग्रह सिखों के पाँचवें गुरु अर्जुनदेव ने सन् 1604 ई० में किया जो ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। गुरु नानक की रचनाएँ हैं – ‘जपुजी’, ‘आसादीवार’, ‘रहिरास’ और सोहिला। कहते हैं कि सन् 1539 में इन्होंने ‘वाह गुरु’ कहते हुए अपने प्राण त्याग दिए ।
निर्गुण निराकार ईश्वर के उपासक गुरुनानक हिंदी की निर्गुण भक्तिधारा के एक प्रमुख कवि हैं। पंजाबी मिश्रित ब्रजभाषा में रचित इनके पद सरल सच्चे हृदय की भक्तिभावना में डूबे उद्गार हैं। इन पदों में कबीर की तरह प्रखर सामाजिक विद्रोह-भावना भले ही न दिखाई पड़ती हो, किन्तु धर्म-उपासना के कर्मकांडमूलक सांप्रदायिक स्वरूप की आलोचना तथा सामाजिक भेदभाव के स्थान पर प्रेम के आधार पर सहज सद्भाव की प्रतिष्ठा दिखलाई पड़ती है। नानक के पद वास्तव में प्रेम एवं भक्ति के प्रभावशाली मधुर गीत हैं। यहाँ नानक के ऐसे दो महत्त्वपूर्ण पद प्रस्तुत हैं। प्रथम पद बाहरी वेश-भूषा, पूजा-पाठ और कर्मकांड के स्थान पर सरल सच्चे हृदय से राम-नाम के कीर्तन पर बल देता है, क्योंकि नाम-कीर्तन ही सच्ची स्थायी शांति देकर व्यक्ति को इस दुखमय जीवन के पार पहुँचा पाता है। द्वितीयः पद में सुख-दुख में एक समान उदासीन रहते हुए मानसिक दुर्गुणों से ऊपर उठकर अंतःकरण की निर्मलता हासिल करने पर जोर दिया गया है। संत कवि गुरु की कृपा प्राप्त कर इस पद में गोविंद से एकाकार होने की प्रेरणा देता है।
राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा
राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा ।
बिखु खावै बिखु बोलै बिनु नावै निहफलु मटि भ्रमना ।।
पुसतक पाठ व्याकरण बखाणें संधिआ करम निकाल करै ।
बिनु गुरसबंद मुकति कहा प्राणी राम नाम बिनु अरुझि मरै ।।
डंड कमंडल सिखा सूत धोती तीरथ गवनु अति भ्रमनु करै ।
रामनाम बिनु सांति न आवै जपि हरि हरि नाम सु पारि परै ।।
जटा मुकुट तन भसम लगाई वसन छोड़ि तन नगन भया ।
जेते जीअ जंत जल थल महीअल जत्र तत्र तू सरब जीआ ।।
गुरु परसादि राखिले जन कोउ हरिरस नानक झोलि पीआ ।
जो नर दुख में दुख नहिं मानै
जो नर दुख में दुख नहिं मानै ।
सुख सनेह अरु भय नहिं जाके, कंचन माटी जानै ।।
नहिं निंदा नहिं अस्तुति जाके, लोभ मोह अभिमाना ।
हरष सोक तें रहै नियारो, नाहि मान अपमाना ।।
आसा मनसा सकल त्यागि कै जग तें रहै निरासा ।
काम क्रोध जेहि परसे नाहिन तेहिं घट ब्रह्म निवासा ।।
गुरु किरपा जेहि नर पै कीन्हीं तिन्ह यह जुगति पिछानी ।
नानक लीन भयो गोबिंद सो ज्यों पानी सँग पानी ।।
बोध और अभ्यास
कविता के साथ
- कवि किसके बिना जगत् में यह जन्म व्यर्थ मानता है?
उत्तर-कवि राम-नाम के बिना जगत में यह जन्म व्यर्थ मानता है। राम नाम के बिना व्यतीत होने वाला जीवन केवल विष का भोग करता है।
- वाणी कब विष के समान हो जाती है?
उत्तर-जब वाणी वाह्य आडंबर से सम्पन्न होकर राम-नाम को त्याग देती है तब वह विष हो जाती है। राम-नाम के अतिरिक्त उच्चरित ध्वनि काम-क्रोध, मद सेवन आदि से परिपूर्ण होती है।
- जाग-कीर्तन के आगे कवि किन कर्मों की व्यर्थता सिद्ध करता है?
उत्तर-पुस्तक पाठ, व्याकरण के ज्ञान की बखान, दंड कमण्डल धारण करना, सिखा बढ़ाना, तीर्थ भ्रमण, जटा बढ़ाना, तन में भस्म लगाना, वस्त्रहीन होकर नग्न रूप में घूमना इत्यादि कर्म ईश्वर प्राप्ति के साधन माने जाते हैं। लेकिन कवि कहते हैं कि भगवत् नाम-कीर्तन के आगे ये सब कर्म व्यर्थ हैं।
- प्रथम पद के आधार पर बताएँ कि कवि ने अपने युग में धर्म-साधना के कैसे-कैसे रूप देखे थे?
उत्तर-प्रथम पद में कवि ने धर्म साधना के अनेक लोक प्रचलित रूप की चर्चा करते हैं। सिखा बढ़ाना, ग्रंथों का पाठ करना, व्याकरण वाचना इत्यादि धर्म साधना माने जाते हैं। इसी तरह तन में भस्म रमाकर साधु वेश धारण करना, तीर्थ करना, डंड कमण्डल धारी होना, वस्त्र त्याग करके नग्न रूप में घूमना भी कवि के युग में धर्म-साधना के रूप रहे हैं। पद में इन्हीं रूपों का बखान कवि ने दिये हैं।
- हरिरस से कवि का अभिप्राय क्या है?
उत्तर-कवि राम नाम की महिमा का बखान करते हुए कहते हैं कि भगवान के नाम से बढ़कर अन्य कोई धर्म साधना नहीं है। भगवत् कीर्तन से प्राप्त परमानंद को हरि रस कहा गया है। भगवान् के नाम कीर्तन, नाम स्मरण में डूब जाना, हरि कीर्तन में रम जाना और कीर्तन में उत्साह, परमानंद की अनुभूति करना ही हरि रस है। इसी रस पान से जीव धन्य हो सकता है।
- कवि की दृष्टि में ब्रह्म का निवास कहाँ है?
उत्तर-जो प्राणी सांसारिक विषयों की आसक्ति से रहित है, जो मान-अपमान से परे है, हर्ष-शोक दोनों से जो दूर है, उन प्राणियों में ही ब्रह्म का निवास बताया गया है। काम, क्रोध, लोभ, मोह जिसे नहीं छूते वैसे प्राणियों में निश्चित ही ब्रह्म का निवास है।
- गुरु की कृपा से किस युक्ति की पहचान हो पाती है?
उत्तर-कवि कहते हैं कि ब्रह्म से साक्षात्कार करने हेतु लोभ, मोह, ईर्ष्या, द्वेष, निंदा आदि से दूर होना आवश्यक है। ब्रह्म के सानिध्य प्राप्ति के लिए सांसारिक विषयों से रहित होना अत्यन्त जरूरी है। जो प्राणी माया, मोह, काम, क्रोध लोभ, हर्ष-शोक से रहित है उसमें ब्रह्म का अंश विद्यमान हो जाता है। वह ब्रह्म को प्राप्त कर लेता है। ब्रह्म प्राप्ति की यही युक्ति की पहचान गुरु कृपा से ही हो पाती है। गुरु बिना ब्रह्म को पाने की युक्ति का ज्ञान नहीं मिल सकता। अर्थात् ब्रह्म को पाने के लिए गुरु का कृपा पात्र होना परमावश्यक है।
- व्याख्या करें:
(क) राम नाम बिनु अरुझि मरै ।
प्रस्तुत व्याख्य पंक्ति में निर्गुणवादी विचारधारा के कवि गुरुनानक राम नाम की गरिमा मानवीय जीवन में कितनी है इसका उजागर सच्चे हृदय से किये हैं। कवि कहते हैं कि राम-नाम का अध्ययन, संध्या वंदन तीर्थाटन रंगीन वस्त्र धारण यहाँ तक की जरा जूट बढ़ाकर इधर-उधर घूमना ये सभी भक्ति-भाव के बाह्याडम्बर है। इससे जीवन सार्थक कभी भी नहीं हो सकता है। राम नाम की सत्ता को स्वीकार नहीं करते हैं तब तक मानवीय मूल चेतना का उजागर नहीं हो सकता है। राम-नाम के बिना बहुत-से सांसारिक कार्यों में उलझकर व्यक्ति जीवन लीला समाप्त कर लेता है।
(ख) कंचन माटी जानै ।
प्रस्तुत व्याख्येय पंक्ति में कवि ब्रह्म को पाने के लिए सुख-दुःख से परे होना परमावश्यक बताते हैं। वे कहते हैं कि ब्रह्म को वही प्राप्त कर सकता है जो लोक मोह ईर्ष्या-द्वेष, काम-क्रोध से परे हो। जो व्यक्ति सोना को अर्थात् धन को मिट्टी के समान समझकर परब्रह्म की सच्चे हृदय से उपासना करता है वह ब्रह्ममय हो जाता है। जो प्राणि सांसारिक विषयों में आसक्ति नहीं रखता है। उस प्राणि में ब्रह्म निवास करता है।
(ग) हरष सोक तें रहै नियारो, नाहि मान अपमानाः ।
प्रस्तुत पंक्ति में कवि कहते हैं ब्रह्म निर्गुण एवं निराकार है। वैराग्य भाव रखकर ही हम उसे पा सकते हैं। झूठी मान, बड़ाई या निंदा शिकायत की उलझन मनुष्य को ब्रह्म से दूर ले जाता है। ब्रह्म को पाने के लिए, सच्ची मुक्ति के लिए हर्ष-शोक, मान-अपमान से दूर रहकर, उदासीन रहते हुए ब्रह्म की उपासना करना चाहिए।
(घ) नानक लीन भयो गोविंद सो, ज्यों पानी संग पानी ।
प्रस्तुत व्याख्येय पंक्ति के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं। इस मानवीय जीवन में ब्रह्म को पानी की सच्ची युक्ति, यथार्थ उपाय करना आवश्यक है। पर ब्रह्म को पाना प्राणि का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए। जिस प्रकार पानी के साथ पानी मिलकर एकसमान हो जाता है उसी प्रकार जीव जब ब्रह्म के सानिध्य में जाता है तब ब्रह्ममय हो जाता है। जीवात्मा एवं परमात्मा में जब मिलन होता है तब जीवात्मा भी परमात्मा बन जाता है। दोनों का भेद मिट जाता है। कवि कहते हैं कि यह जीव ब्रह्म का ही अंश है। । जब हम विषयों की आसक्ति से सदूर रहकर गुरु की प्रेरणा से ब्रह्म को पाने की साधना करते हैं। तब ब्रह्म का साक्षात्कार होता है और ऐसा होने से जीव ब्रह्ममय हो जाता है।
- आधुनिक जीवन में उपासना के प्रचलित रूपों को देखते हुए नानक के इन पदों की क्या प्रासंगिकता है? अपने शब्दों में विचार करें।
उत्तर-आधुनिक जीवन में उपासना के विभिन्न स्वरूप दिखाई पड़ते हैं। ईश्वरीय उपासना में लोग तीर्थाटन करते हैं, जटा- बढ़ाकर, भस्म रमाकर साधु वेश धारण करते हैं। गंगा स्नान दान पुण्य करते हैं। मंदिर मस्जिद जाकर परमात्मा की पुकार करते हैं। साथ ही आज धर्म के नाम पर विभेद भी किया जाता है। धर्म को प्रतिष्ठा प्राप्ति के साधन मानकर धार्मिक बाह्याडम्बर अपनाया जा रहा है। बड़े-बड़े धार्मिक आयोजन किये जाते हैं जिसमें अत्यधिक धन का व्यय भी किया जाता है। फिर भी लोगों को सुख-शांति नहीं मिलती है। आज लोग भटकाव के पथ पर अग्रसर है। समयाभाव में ईश्वर के सानिध्य में जाने हेतु कठिनतम उपासना के मार्ग को अपनाने में लगे अभिरुचि नहीं रख रहे हैं। इसलिए धार्मिक क्षेत्र में भटकाव आ गया है। हम कह सकते हैं कि नानक के पद में वर्णित राम-नाम की महिमा आधुनिक जीवन में सप्रासंगिक है। हरि-कीर्तन सरल मार्ग है जिसमें न अत्यधिक धन की आवश्यकता है नहीं कोई बाह्याडम्बर की। आज भगवत् नाम रूपी रस का पान किया जाये तो जीवन में उल्लास, शांति, परमानन्द, सुख, ईश्वरीय अनुभूति को प्राप्त किया जा सकता है। हरि रस पान से जीवन को धन्य बनाया जा सकता है। नानक के उपदेश को अपनाकर यथार्थ से युक्त होकर हम जीवन में ब्रह्म का साक्षात्कार आज भी कर सकते हैं।
भाषा की बात
- पद में प्रयुक्त निम्नांकित शब्दों के मानक आधुनिक रूप लिखें
बिरथे, विखु, निहफलु, मटि, संधिआ, करम, गुरसबद, तीरथभगवनु, महीअल, सरब, माटी, अस्तुति, नियारो, जुगति, पिछानी
बिरथे–व्यर्थ
बिरक–विष
निहफल–निष्फल
मटि–बुद्धि
संधिआ–संध्या
करण–कर्म
गुरसबद–गुरू का उपदेश
तीरथगवनु–तीर्थ पर जाना
महीअल–धरती पर
सरब–सब कुछ
माटी-मिट्टी
नियारो-अलग, पृथक
जुगति-उपाय
पिछानी-पहचानी
- दोनों पदों में प्रयुक्त सर्वनामों को चिह्नित करें और उनके भेद बताएँ।
उत्तर- कहाँ – प्रश्नवाचक सर्वनाम
कोई – अनिश्चयवाचक सर्वनाम
तें – पुरूषवाचक सर्वनाम
यह – निश्चयवाचक सर्वनाम
सो – संबंधवाचक सर्वनाम
3.निम्नलिखित शब्दों के वाक्य-प्रयोग करते हुए लिंग-निर्णय करें –
जग, मुक्ति, धोती, जल, भस्म, कंचन, जुगति, स्तुति
उत्तर-जग – जग बड़ा है।
मुक्ति – उसे मुक्ति मिल गई।
धोती-धोती नई है। जल गंदा है।
जुगति – उसकी जुगटी अनूठी है।
स्तुति – ईश्वर की स्तुति करनी चाहिए।
भस्म – लग गया।
4.निम्नलिखित विशेषण्णों का स्वतंत्रत वाक्य प्रयोग करें
व्यर्थ, निष्फल, नग्न, सर्व, न्यारा, सकल
उत्तर- व्यर्थ – राम नाम के बिना जीवन व्यर्थ है।
निष्फल – प्रयोग निष्फल हो गया।
नग्न – वह नग्न बैठा है।
सर्व – सर्व नष्ट हो गया।
न्यारा – संसार न्यारा है। –
सकल – आतंकवाद पर सकल विश्व एक हों।
शब्द निधि
बिरथे: व्यर्थ ही
जगि: संसार में
बिखु: विष
नावै: नाम
निहफलु: निष्फल
मति: बुद्धि
संध्या: संध्याकालीन उपासना
गुरसबद: गुरु का उपदेश
अरुझि: उलझकर
सिखा: चोटी
सूत: जनेऊ
जीअ: जीव
जंत: जंतु, प्राणी
महीअल: महीतल, धरती पर
कंचन: सोना
अस्तुति: स्तुति, प्रार्थना
नियारो: न्यारा, अलग, पृथक
परसे: स्पर्श
घट: घड़ा (प्रतीकार्थ – देह, शरीर)
जुगति: युक्ति, उपाय
पिछानी: पहचानी