Bihar Board (बिहार बोर्ड) Solution of Class-10 Hindi (हिन्दी) Padya Chapter-11 Laut Kar Aaunga Fir (लौटकर आऊँगा फिर) गोधूलि

Bihar Board (बिहार बोर्ड) Solution of Class-10 Hindi Padya Chapter- 11 Laut Kar Aaunga Fir (लौटकर आऊँगा फिर) जीवनानंद दास

Dear Students! यहां पर हम आपको बिहार बोर्ड  कक्षा 10वी के लिए हिन्दी गोधूलि  भाग-2 का पाठ-11 लौटकर आऊँगा फिर जीवनानंद दास  Bihar Board (बिहार बोर्ड) Solution of Class-10 Hindi (हिन्दी) Padya Chapter-11 Laut Kar Aaunga Firसंपूर्ण पाठ  हल के साथ  प्रदान कर रहे हैं। आशा करते हैं कि पोस्ट आपको पसंद आयेगी और आप इसे अपने दोस्तों में शेयर जरुर करेंगे।

Chapter Name
Chapter Number Chapter- 11
Board Name Bihar Board  (B.S.E.B.)
Topic Name संपूर्ण पाठ 
Part
भाग-2 Padya Khand (पद्य खंड )

जीवनानंद दास

बाँग्ला के सर्वाधिक सम्मानित एवं चर्चित कवियों में से एक जीवनानंद दास का जन्म 1899 ई० में हुआ था। रवीन्द्रनाथ के बाद बाँग्ला साहित्य में आधुनिक काव्यांदोलन को जिन लोगों ने योग्य नेतृत्व प्रदान किया था, उनमें सबसे अधिक प्रभावशाली एवं मौलिक कवि जीवनानंद दास ही हैं। इन कवियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती के रूप में था रवीन्द्रनाथ का स्वच्छंदतावादी काव्य । स्वच्छंदतावाद से अलग हटकर कविता की नई यथार्थवादी भूमि तलाश करना सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य था । इस कार्य में अग्रणी भूमिका जीवनानंद दास की रही। उन्होंने बंगाल के जीवन में रच-बसकर उसकी जड़ों को पहचाना और उसे अपनी कविता में स्वर दिया। उन्होंने भाषा, भाव एवं दृष्टिकोण में नई शैली, सोच एवं जीवनदृष्टि को प्रतिष्ठित किया ।

सिर्फ पचपन साल की उम्र में जीवनानंद दास का निधन एक मर्मांतक दुर्घटना में हुआ, सन् 1954 में । तब तक उनके सिर्फ छह काव्य संकलन प्रकाशित हुए थे ‘झरा पालक’, ‘धूसर पांडुलिपि’, ‘वनलता सेन’, ‘महापृथिवी’, ‘सातटि तारार तिमिर’ और ‘जीवनानंद दासेर श्रेष्ठ कविता’। उनके अन्य काव्य संकलन ‘रूपसी बाँग्ला’, ‘देला अबेला कालबेला’, “मनविहंगम’ और ‘आलोक पृथिवी’ निधन के बाद प्रकाशित हुए। उनके निधन के बाद लगभग एक सौ कहानियों ओर तेरह उपन्यास भी प्रकाशित किए गये ।

‘वनलता सेन’ काव्यग्रंथ की ‘वनलता सेन’ शीर्षक कविता को प्रबुद्ध आलोचकों द्वारा रवींद्रोत्तर युग की श्रेष्ठतम प्रेम कविता की संज्ञा दी गयी है। वस्तुतः यह कविता बहुआयामी भाव व्यंजना का उत्कृष्ट उदाहरण है। निखिल बंग रवींद्र साहित्य सम्मेलन के द्वारा ‘वनलता सेन’ को 1952 ई० में श्रेष्ठ काव्यग्रंथ का पुरस्कार दिया गया था ।

यहाँ समकालीन हिंदी कवि प्रयाग शुक्ल द्वारा भाषांतरित जीवनानंद दास की कविता प्रस्तुत है। यह कवि की अत्यंत लोकप्रिय और बहुप्रचारित कविता है। कविता में कवि का अपनी मातृभूमि तथा परिवेश से उत्कट प्रेम अभिव्यक्त होता है। बंगाल अपने नैसर्गिक सम्मोहन के साथ चुनिंदा चित्रों में सांकेतिक रूप से कविता में विन्यस्त है। इस नश्वर जीवन के बाद भी इसी बंगाल में एक बार फिर आने की लालसा मातृभूमि के प्रति कवि के प्रेम की एक मोहक भंगिमा के रूप में सामने आती है।

लौटकर आऊँगा फिर

खेत हैं जहाँ धान के, बहती नदी

के किनारे फिर आऊँगा लौट कर

एक दिन-बंगाल में; नहीं शायद

होऊँगा मनुष्य तब, होऊँगा अबाबील

या फिर कौवा उस भोर का फूटेगा नयी

धान की फसल पर जो

कुहरे के पालने से कटहल की छाया तक

भरता पेंग, आऊँगा एक दिन !

बन कर शायद हंस मैं किसी किशोरी का;

घुँघरू लाल पैरों में;

तैरता रहूँगा बस दिन-दिन भर पानी में

गंध जहाँ होगी ही भरी, घास की ।

आऊँगा मैं। नदियाँ, मैदान बंगाल के बुलायेंगे-

मैं आऊँगा। जिसे नदी धोती ही रहती है पानी

से-इसी हरे सजल किनारे पर ।

शायद तुम देखोगे शाम की हवा के साथ उड़ते एक उल्लू को

शायद तुम सुनोगे कपास के पेड़ पर उसकी बोली

‘घासीली जमीन पर फेंकेगा मुट्ठी भर-भर चावल

शायद कोई बच्चा – उबले हुए!

देखोगे, रूपसा के गंदले-से पानी में

नाव लिए जाते एक लड़के को-उड़ते फटे

पाल की नाव !

लौटते होंगे रंगीन बादलों के बीच, सारस

अँधेरे में होऊँगा मैं उन्हीं के बीच में

देखना !

बोध और अभ्यास

कविता के साथ

  1. कवि किस तरह के जंगाल में एक दिन लौटकर आने की बात करता है?

उत्तर- कवि प्राकृतिक छटा को बिखेरते हुए बंगाल में पुनः आने की बात करता है। जिस बंगाल में धान के खेत हैं, नदियाँ हैं, धान के फसल पर छाये हुए कोहरे एवं कटहल की छाया सुखद वातावरण उपस्थित करते। हैं उस बंगाल में पुनः लौटकर आने की कवि की बलवती इच्छा है। बंगाल की घास के मैदान, कपास के पेड़, वनों में पक्षियों की चहचहाहट एवं सारस की शोभा अनुपम छवि निर्मित करते हैं। बंगाल की इस अनुपम, सुशोभित एवं रमणीय धरती पर कवि पुनर्जन्म लेने की बात करते हैं।

  1. कवि अगले जीवन में क्या-क्या बनने की संभावना व्यक्त करता है और क्यों?

उत्तर-कवि को अपनी मातृभूमि से उत्कट प्रेम है। बंगाल की धरती से इतना स्नेह है कि वह अगले जन्म में किसी भी रूप में इस धरती पर आने के लिए तैयार हैं। प्रेम में विह्वल होकर वे चिड़ियाँ, कौवा, हंस, उल्लू, सारस बनकर पुनः बंगाल की धरती पर अवतरित होना चाहते हैं। क्योंकि उनका मानना है कि भले ही मेरा स्वरूप बदला हुआ रहेगा किन्तु मातृभूमि की प्राकृतिक सौंदर्य से युक्त रहने का अवसर उस बदले हुए रूप में भी मिलेगा।

  1. अगले जन्मों में बंगाल में आने की क्या सिर्फ कवि की इच्छा है? स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर-अगले जन्मों में बंगाल में आने की प्रबल इच्छा तो कवि की ही है। लेकिन इसकी अपेक्षा जो बंगाल प्रेमी हैं, जिन्हें बंगाल की धरती के प्रति आस्था और विश्वास है कवि उन लोगों का भी प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। इस कविता के माध्यम से कवि बंगाल की धरती के प्रति अपना उत्कट प्रेम प्रकट करने के बहाने बंगाल प्रेमियों की भावना को भी अभिव्यक्त किया है।

  1. कवि किनके बीच अँधेरे में होने की बात करता है? आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-कवि सारस के बीच अंधेरे में होने की बात करता है। बंगाल के प्राकृतिक वातावरण में सारस खूबसूरत पक्षी है जो अनायास ही अपनी सुन्दरता के प्रति लोगों को आकर्षित करता है। विशेषकर संध्याकालीन जब ब्रह्मांड में अंधेरा का वातावरण उपस्थित होने लगता है उस समय जब सारस के झुंड अपने घोंसलों की ओर लौटते हैं तो उनकी सुन्दरता मन को मोह लेती है। यह सुन्दरतम दृश्य कवि को भाता है और यह मनोरम छवि को वह अगले जन्म में भी देखते रहने की बात कहता है।

  1. कायता की चित्रात्मकता पर प्रकाश डालिए ।

उत्तर-प्रस्तुत कविता की भाषा शैली भी चित्रमयी हो गयी है, प्राकृतिक वर्णन में कहीं-कहीं अनायास ही चित्रात्मकता का प्रभाव देखा जा रहा है। खेतों में हरे-भरे, लहलहाते धान, कटहल की छाया, हवा के चलने से झमती हुई वृक्षों की टहनियाँ, झले के चित्र की रूपरेखा चित्रित है। आकाश में उड़ते हुए उल्लू और संध्याकालीन लौटते हुए सारस के झुंड के चित्र हमारे मन को। आकर्षित कर लेते हैं।

  1. कविता में आए बिंबों का सौंदर्य स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर-कवि प्राकृतिक सौंदर्य के वातावरण में बिम्बों को सौंदर्यपूर्ण चित्रमयी शैली में किये हैं। बंगाल की नवयुवतियों के रूप में अपने पैरों में घुघरू बाँधने का बिम्ब उपस्थित किये हैं। हवा का झोंका, वृक्षों की डाली को झूला के रूप में प्रदर्शित किया है। आकाश में हंसों का झुण्ड अनुपम सौंदर्य लक्षित किया है।

  1. कविता के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर-यह स्पष्ट है कि साहित्य की चाहे जो भी विधा हो उस विधा के अंतर्गत जो भी रूप रेखा तैयार होती है उसके शीर्षक ही महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। शीर्षक साहित्य। विधा के सिर होते हैं। किसी भी कहानी, कविता, नाटक, उपन्यास आदि के शीर्षक में तीन बातें मुख्य रूप से बाती हैं। शीर्षक सार्थक समीचीन और लघु होना चाहिए। इस आधार पर ‘लौटकर आऊँगा फिर’ कविता का यह शीर्षक भी पूर्ण सार्थक है। शीर्षक विषय-वस्तु, जीवनी, घटना या उद्देश्य के आधार पर रखा जाता है। यहाँ उद्देश्य के आधार पर शीर्षक रखा गया है। कवि की उत्कट इच्छा मातृभूमि पर पुनर्जन्म की है। इससे कवि के हृदय में मातृभूमि के प्रति प्रेम दिखाई पड़ता है। शीर्षक कविता के चतुर्दिक घूमती है। शीर्षक को केन्द्र में रखकर ही कविता की रचना हुई है। अतः इन तथ्यों के आधार पर शीर्षक पूर्ण सार्थक है।

  1. कवि अगले जन्म में अपने मनुष्य होने में क्यों संदेह करता है? क्या कारण हो सकता है ?

उत्तर-कवि को पुनर्जन्म में ‘मनुष्य’ होने में संशय होता है। मनुष्य जीवन ईर्ष्या, कटुता, आदि से पूर्ण होता है। लोगों की मानवता मर गई है। आपसी विद्वेष से जीवन अधोगति की ओर चला जाता है। पराधीन भारत की दुर्दशा से विक्षुब्ध स्वच्छंदतावाद को ही स्थान देता है। अतः वह पक्षिकुल को उत्तम मानता है।

  1. व्याख्या करें –

(क) “बनकर शायद हंस मैं किसी किशोरी का; घुँघरू लाल पैरों में; तैरता रहूँगा बस दिन-दिन भर पानी में – गंध जहाँ होगी ही भरी, घास की।”

उत्तर- यहाँ कवि बंगाल में एक दिन लौटकर आने की बात कहता है। वह अगले जन्म में भी अपनी मातृभूमि बंगाल में ही जन्म लेने का विचार प्रकट करता है। वह हंस, किशोरी और धुंघरू के बिम्ब शैली में अपने आपको उपस्थित करता है। वह कहता है कि जहाँ की किशोरियाँ पैरों में घुघरू बाँधकर हंस के समान मधुर चाल में अपनी नाच से लोगों को आकर्षित करती हैं, वही रूप मैं भी धारण करना चाहता हूँ! यहाँ तक कि बंगाल की नदियों में तैरने का एक अलग आनंद की अनुभूति मिलती है। यहाँ के क्यारियों में उगने वाली घास के गंध कितनी मनमोहक होती है यह तो बंग प्रांतीय ही समझ सकते हैं। इस प्रकार पूर्ण अपनत्व की भावना में प्रवाहित होकर हार्दिक इच्छा को प्रकट करता है।

(ख) “खेत हैं जहाँ धान के, बहती नदी के किनारे फिर आऊँगा लौट कर एक दिन बंगाल में;”

उत्तर- प्रस्तुत पद्यांश में कवि की मातृभूमि के प्रति उसका प्रेम दिखाई पड़ता है। कवि बंगाल के प्राकृतिक सौंदर्य के साथ वहाँ के खेतों में उगने वाली धान की फसलों का मनोहर चित्र खींचा है। कवि कहता है कि जिस बंगाल के खेतों में लहलहाती हुई धान की फसलें हैं वहाँ मैं फिर लौटकर आना चाहता हूँ। जहाँ कल-कल करती हुई नदी की धारा अनायास ही लोगों को आकर्षित कर लेती हैं वहाँ ही मैं जन्म लेना चाहता हूँ। यहाँ स्पष्ट है कि कवि अपनी भावना को स्वच्छंद स्वरूप प्रदान करता है।

भाषा की बात

निम्नांकित शब्दों के लिंग परिवर्तन करें। लिंग परिवर्तन में आवश्यकता पड़ने पर समानार्थी शब्दों के भी प्रयोग करें –

नदी, कौआ, भोर, नयी, हंस, किशोरी, हवा, बच्चा, बादल सारस

उत्तर- नदी – नद

कौआ – कौओ

भोर – सबह

नयी – नया

हँस – हँसी

किशोरी – किशोर

हवा – पवन

बच्चा – बच्ची

बादल – वर्षा

सारस – मादा सार

2.कविता से विशेषण चुनें और उनके लिए स्वतंत्र विशेष्य पद दें ।

उत्तर- बहती – नदी

नयी – फसल

गंदा – पानी

फटे – पाल

रंगीन – बादल

  1. कविता में प्रयुक्त सर्वनाम चुनें और उनका प्रकार भी बताएँ ।

उत्तर- जो – संबंधवाचक

मैं – पुरूष वाचक

तुम – पुरूष वाचक

कोई – अनिश्चय वाचक उसकी

शब्द निधि

अबाबील : एक प्रसिद्ध काली छोटी चिड़िया जो उजाड़ मकानों में रहती है, भांडकी

रूपसा: बंगाल की नदी विशेष

सारस : पक्षी विशेष, क्रौंच

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