Bihar Board (बिहार बोर्ड) Solution of Class-10 Hindi (हिन्दी) Padya Chapter-2 Prem Ayani Shri Radhika (प्रेम-अयनि श्री राधिका) गोधूलि

Bihar Board (बिहार बोर्ड) Solution of Class-10 Hindi Padya Chapter- 2 Prem Ayani Shri Radhika (प्रेम-अयनि श्री राधिका) रसखान

Dear Students! यहां पर हम आपको बिहार बोर्ड  कक्षा 10वी के लिए हिन्दी गोधूलि  भाग-2 का पाठ-2 प्रेम-अयनि श्री राधिका रसखान Bihar Board (बिहार बोर्ड) Solution of Class-10 Hindi (हिन्दी) Padya Chapter-2 Prem Ayani Shri Radhika संपूर्ण पाठ  हल के साथ  प्रदान कर रहे हैं। आशा करते हैं कि पोस्ट आपको पसंद आयेगी और आप इसे अपने दोस्तों में शेयर जरुर करेंगे।

Chapter Name
Chapter Number Chapter- 2
Board Name Bihar Board  (B.S.E.B.)
Topic Name संपूर्ण पाठ 
Part
भाग-2 Padya Khand (पद्य खंड )

रसखान

रसखान के जीवन के संबंध में सही सूचनाएँ प्राप्त नहीं होतीं, परंतु इनके ग्रंथ ‘प्रेमवाटिका’ (1610 ई०) में यह संकेत मिलता है कि ये दिल्ली के ठान राजवंश में उत्पन्न हुए थे और इनका रचनाकाल जंहाँगीर का राज्यकाल था । जब दिल्ली पर मुगलों का आधिपत्य हुआ और पठान वंश पराजित हुआ, तब ये दिल्ली से भाग खड़े हुए और ब्रजभूमि में आकर कृष्णभक्ति में तल्लीन हो गए। इनकी रचना से पता चलता है कि वैष्णव धर्म के बड़े गहन संस्कार इनमें थे। यह भी अनुमान किया जाता है कि ये पहले रसिक प्रेमी रहे होंगे, बाद में अलौकिक प्रेम की ओर आकृष्ट होकर भक्त हो गए। ‘दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता’ से यह पता चलता है कि गोस्वामी विट्ठलनाथ ने इन्हें ‘पुष्टिमार्ग’ में दीक्षा दी। इनके दो ग्रंथ मिलते हैं ‘प्रेमवाटिका’ और ‘सुजान रसखान’। ‘प्रेमवाटिका’ में प्रेम-निरूपण संबंधी रचनाएँ हैं और ‘सुजान रसखान’ में कृष्ण की भक्ति संबंधी रचनाएँ ।

रसखान ने कृष्ण का लीलागान पदों में नहीं, सवैयों में किया है। रसखान सवैया छंद में सिद्ध थे। जितने सरस, सहज, प्रवाहमय सवैये रसखान के हैं, उतने शायद ही किसी अन्य हिंदी कवि के हों। रसखान का कोई सवैया ऐसा नहीं मिलता जो उच्च स्तर का न हो। उनके सवैयों की मार्मिकता का आधार दृश्यों और ला‌ह्यांतर स्थितियों की योजना में है। वहीं रसखान के सवैयों के ध्वनि प्रवाह भी अपूर्व माधुरी में है। द्रजभाषा का ऐसा सहज प्रवाह अन्यत्र दुर्लभ है। रसखान सूफियों का हृदय लेकर कृष्ण की लीला पर काव्य रचते हैं। उनमें उल्लास, मादकता और उत्कटता तीनों का संयोग है। इनकी रचनाओं से मुग्ध होकर भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने कहा था- “इन मुसलमान हरिजनन पै, कोटिन हिन्दू वारिये ।”

सम्प्रदायमुक्त कृष्ण भक्त कवि रसखान हिंदी के लोकप्रिय जातीय कवि हैं। यहाँ ‘रसखान रचनावली’ रो कुछ छन्द संकलित हैं दोहे, सोरठा और सवैया। दोहे और सोरठा में राधा-कृष्ण के प्रेममय युगल रूप पर कवि के रसिक हृदय की रीझ व्यक्त होती है और सवैया में कृष्ण और उनके ब्रज पर अपना जीवन सर्वस्व न्योछावर कर देने की भावमयी विदग्धता मुखरित है ।

प्रेम-अयनि श्री राधिका

प्रेम-अयनि श्री राधिका, प्रेम-बरन नंदनंद ।

प्रेम-बाटिका के दोऊं, माली-मालिन-द्वन्द्व ।।

मोहन छबि रसखानि लखि अब दृग अपने नाहिं ।

अँचे आवत धनुस से छूटे सर से जाहिं ।।

मो मन मानिक लै गयो चितै चोर नंदनंद ।

अब बेमन मैं का करूँ परी फेर के फंद ।।

प्रीतम नन्दकिशोर, जा दिन तें नैननि लग्यौ ।

मन पावन चितचोर, पलक ओट नहिं करि सकौं ।।

करील के कुंजन ऊपर वारौं

या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर की तजि डारौं ।

आठहुँ सिद्धि नवोनिधि को सुख नन्द की गाइ चराइ बिसारौं ।॥

रसखानि कबौं इन आँखिन सौं ब्रज के बनबाग तड़ाग निहारौं ।

कोटिक रौ, कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं ।॥

कविता के साथ

  1. कवि ने माली-मालिन किन्हें और क्यों कहा है?

उत्तर- कवि ने माली-मालिन कृष्ण और राधा को कहा है। क्योंकि कवि राधा-कृष्ण के प्रेममय युग को प्रेम भरे नेत्र से देखा है। यहाँ प्रेम को वाटिका मानते हैं और उस प्रेम-वाटिका के माली-मालिन कृष्ण-राधा को मानते हैं। वाटिका का विकास माली-मालिन की कृपा पर निर्भर है। अतः कवि के प्रेम वाटिका को पुष्पित पल्लवित कृष्ण और राधा के दर्शन ही कर सकते हैं।

  1. द्वितीय दोहे का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें ।

उत्तर- प्रस्तुत दोहे में सवैया छन्द में भाव के अनुसार भाषा का प्रयोग अत्यन्त मार्मिक है। सम्पूर्ण छन्द में ब्रजभाषा की सरलता, सहजता और मोहकता देखी जा रही है। कहीं-कहीं तद्भव और तत्सम के सामासिक रूप भी मिल रहे हैं। कविता में संगीतमयता की धारा फूट पड़ी है। अलंकार योजना से दृष्टांत अलंकार के साथ अनुप्रास एवं रूपक का समागम प्रशंसनीय है। माधुर्यगुण के साथ वैराग्य रस का मनोभावन चित्रण हुआ है।

  1. कृष्ण को चोर क्यों कहा गया है? कवि का अभिप्राय स्पष्ट करें ।

उत्तर-कवि कृष्ण और राधा के प्रेम में मनमुग्ध हो गये हैं। उनके मनमोहक छवि को देखकर मन पूर्णतः उस युगल में रम जाता है। इन्हें लगता है कि इस देह से मन रूपी मणि को कृष्ण ने चुरा लिये हैं। चित्त राधा-कृष्ण के युगल जोड़ी में लग चुका है। अब लगता है कि यह शरीर मन एवं चित्त रहित हो गया है। इसलिए चित्त हरने वाले कृष्ण को चोर कहा गया है। उनकी मोहनी मूरत मन को इस प्रकार चुराती है कि कवि अपनी सुध खो बैठते हैं। केवल कृष्ण ही स्मृति पटल पर अंकित रहते हैं और कुछ भी दिखाई नहीं देता है।

  1. सवैये में कवि की कैसी आकांक्षा प्रकट होती है? भावार्थ बताते हुए स्पष्ट करें ।

उत्तर-प्रेम-रसिक कवि रसखान द्वारा रचित सवैये में कवि की आकांक्षा प्रकट हुई है। इसके माध्यम से कवि कहते हैं कि कृष्ण लीला की छवि के सामने अन्यान्य दृश्य बेकार हैं। कवि कृष्ण की लकुटी और कामरिया पर तीनों लोकों का राज न्योछावर करने देने की इच्छा प्रकट करते हैं। नन्द की गाय चराने की कृष्ण लीला का स्मरण करते हुए कहते हैं कि उनके चराने में आठों सिद्धियों और नवों निधियों का सुख भुला जाना स्वाभाविक है। ब्रज के वनों के ऊपर करोड़ों इन्द्र के धाम को न्योछावर कर देने की आकांक्षा कवि प्रकट करते हैं।

  1. व्याख्या करें:

(क) मन पावन चितचोर, पलक ओट नहिं करि सकौं ।

उत्तर-(क) प्रस्तुत दोहे में कवि राधिका के माध्यम से श्रीकृष्ण के चरणों में समर्पित हो जाना चाहता है। जिस दिन से श्रीकृष्ण से आँखें चार हुई उसी दिन से सुध-बुध समाप्त हो गई। पवित्र चित्त को चुराने वाले श्रीकृष्ण से पलक हटाने के बाद भी अनायास उस मुख छवि को देखने के लिए विवश हो जाती है। वस्तुतः यहाँ कवि बताना चाहता है कि प्रेमिका अपने प्रियतम को सदा अपने आँखों में बसाना चाहती है।

(ख) रसखानि कबौं इन आँखिन सौं ब्रज के बनबाग तड़ाग निहारौं ।

उत्तर-प्रस्तुत व्याख्येय पंक्ति के माध्यम से कवि कहते हैं कि ब्रज की बागीचा एवं तालाब अति सुशोभित एवं अनुपम हैं। इन आँखों से उसकी शोभा देखते बनती है। कवि कहते हैं कि ब्रज के वनों के ऊपर, अति रमनीय, सुशोभित मनोहारी मधुवन के ऊपर इन्द्रलोक को भी न्योछावर कर दूँ तो कम है। ब्रज के मनमोहक तालाब एवं बाग की शोभा देखते हुए कवि की आँखें नहीं थकती, इसकी शोभा निरंतर निहारते रहने की भावना को कवि ने इस पंक्ति के द्वारा बड़े ही सहजशैली में अभिव्यक्त किया है। कवि को कृष्ण लीला स्थल के कण-कण से प्रेम है। कृष्ण की सभी चीजें उन्हें मनोहारी लगती हैं

भाषा की बात

  1. समास-निर्देश करते हुए निम्नलिखित पदों के विग्रह करें

प्रेम-अयनि, प्रेमबरन, नंदनंद, प्रेमबाटिक, माली-मालिन, रसखानि, चितचोर, मनमानिक, बेमन, नवोनिधि, आठहुँसिद्धि, बनबाग, तिहुँपुर

उत्तर-प्रेमआयनि– प्रेम की आयनि तत्पुरुष समास

प्रेम-बरन – प्रेम का वरन – तत्पुरुष समास

नंदनंद नंद का है जो नंद कर्मधारय समास

प्रेमवाटिका – प्रेम की वाटिका – तत्पुरुष समास

माली-मालिन – माली और मालिन द्वन्द्व समास

रसखानि – रस की खान – तत्पुरुष समास

चित्तचोर – चित्त है चोर जिसका अर्थात कृष्ण बहुव्रीहि समास

मनमानिक मन है जो मानिक कर्मधारय समास

बेमन – बिना मन का अव्ययीभाव समास

नवोनिधि – नौ निधियों का समूह – द्विगु समास

आठसिद्धि – आठों सिद्धियों का समूह द्विगु समास

बनबाग – बन और बाग – द्वन्द्व समास

तिहपुर – तीनों लोकों का समूह – द्विगु समास

  1. निम्नलिखित के तीन-तीन पर्यायवाची शब्द लिखें

राधिका, नंदनंद, नैन, सर, आँख, कुंज, कलधौत

उत्तर-राधिका – कमला, श्री, प्रेम, अयनि ।

नदनंद – कृष्ण, नंदसुत, नंदतनय।

नैन – आँख, लोचन, विलोचन ।

सर – वाण, सरासर, तीर।

आँख – नयन, अश्नि, नेत्रा

कुंग – बाग, वाटिका, उपवन

शब्द निधि

अयनि: गृह, खजाना

कामरिया : कंबल, कंबली

बरनः: वर्ण, रंग

तिहुँपुर : तीनों लोक

दग:आँख

बिंसारौं : विस्मृत कर दूँ, भुला दूँ

अँचे: खिंचे

तड़ाग : तालाब

सर:वाण

कोटिक : करोड़ों

मानिक : (माणिक्य) रत्न विशेष

कलधौत : इन्द्र

चितै : देखकर

वारौं : न्योछावर कर दूँ

लकुटी : छोटी लाठी

कुंजन : बगीचा (कुंज का बहुवचन)

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