Bihar Board (बिहार बोर्ड) Solution of Class-10 Hindi (हिन्दी) Padya Chapter-6 Jantantra Ka Janm (जनतंत्र का जन्म) गोधूलि

Bihar Board (बिहार बोर्ड) Solution of Class-10 Hindi Padya Chapter-6 Jantantra Ka Janm (जनतंत्र का जन्म) रामधारी सिंह दिनकर

Dear Students! यहां पर हम आपको बिहार बोर्ड  कक्षा 10वी के लिए हिन्दी गोधूलि  भाग-2 का पाठ-6 जनतंत्र का जन्म रामधारी सिंह दिनकर Bihar Board (बिहार बोर्ड) Solution of Class-10 Hindi (हिन्दी) Padya Chapter-6 Jantantra Ka Janm संपूर्ण पाठ  हल के साथ  प्रदान कर रहे हैं। आशा करते हैं कि पोस्ट आपको पसंद आयेगी और आप इसे अपने दोस्तों में शेयर जरुर करेंगे।

Chapter Name
Chapter Number Chapter- 6
Board Name Bihar Board  (B.S.E.B.)
Topic Name संपूर्ण पाठ 
Part
भाग-2 Padya Khand (पद्य खंड )

रामधारी सिंह दिनकर

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 ई० में सिमरिया, बेगूसराय (बिहार) में हुआ और निधन 24 अप्रैल 1974 ई० में। उनकी माँ का नाम मनरूप देवी और पिता का नाम रवि सिंह था । दिनकर जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव और उसके आस-पास हुई । 1928 ई० में उन्होंने मोकामा घाट रेलवे हाई स्कूल से मैट्रिक और 1932 ई० में पटना कॉलेज से इतिहास में बी० ए० ऑनर्स किया। वे एच० ई० स्कूल, बरबीघा में प्रधानाध्यापक, जनसंपर्क विभाग में सब-रजिस्ट्रार और सब-डायरेक्टर, बिहार, विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर एवं भागलपुर विश्वविद्यालय में उपकुलपति के पद पर रहे ।

दिनकर जी जितने बड़े कवि थे, उतने ही समर्थ गद्यकार भी। उनकी भाषा कुछ भी छिपाती नहीं, सबकुछ उजागर कर देती है। उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं ‘प्रणभंग’, ‘रेणुका’, ‘हुंकार’, ‘रसवंती’, ‘कुरुक्षेत्र’, रश्मिरथी’, ‘नीलकुसुम’, ‘उर्वशी’, ‘परशुराम की प्रतीक्षा’, ‘हारे को हरिनाम’ आदि। (काव्य-कृतियाँ) एवं ‘मिट्टी की ओर’, ‘अर्धनारीश्वर’, ‘संस्कृति के चार अध्याय’, ‘काव्य की भूमिका’, ‘वट पीपल’, ‘शुद्ध कविता की खोज’, ‘दिनकर की डायरी’ आदि (गद्य कृतियाँ)। दिनकर जी को ‘संस्कृति के चार अध्याय पर. साहित्य अकादमी एवं ‘उर्वशी’ पर ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुए। उन्हें भारत सरकार की ओर से ‘पद्मविभूषण’ से भी सम्मानित किया गया था। वे राज्यसभा के सांसद भी रहे ।

दिनकर जी उत्तर छायावाद के प्रमुख कवि हैं। वे भारतेन्दु युग से प्रवहमान राष्ट्रीय भावधारा के एक महत्त्वपूर्ण आधुनिक कवि हैं। कविता लिखने की शुरुआत उन्होंने तीस के दशक में ही कर दी थी, किंतु अपनी संवेदना और भावबोध से वे चौथे दशक के प्रमुख कवि के रूप में ही पहचाने गये । उन्होंने प्रबंध, मुक्तक, गीत-प्रगीत, काव्यनाटक आदि अनेक काव्यशैलियों में सफलतापूर्वक उत्कृष्ट रचनायें प्रस्तुत की हैं। प्रबंधकाव्य के क्षेत्र में छायावाद के बाद के कवियों में उनकी उपलब्धियाँ सबसे अधिक और उत्कृष्ट हैं। भारतीय और पाश्चात्य साहित्य का उनका अध्ययन-अनुशीलन विस्तृतं एवं गंभीर है। उनमें इतिहास और सांस्कृतिक परंपरा की गहरी चेतना है और समाज, राजनीति, दर्शन का वैश्विक परिप्रेक्ष्य-बोध है जो उनके साहित्य में अनेक स्तरों पर व्यक्त होता है ।

राष्ट्रकवि दिनकर की प्रस्तुत कविता आधुनिक भारत में जनतंत्र के उदय का जयघोष है। सदियों की देशी-विदेशी पराधीनताओं के बाद स्वतंत्रता प्राप्ति हुई और भारत में जनतंत्र की प्राण-प्रतिष्ट.. हुई। जनः के. ऐतिहासिक और राजनीतिक अभिप्रायों को कविता में उजागर करते हुए कवि यहाँ एक नवीन भारत क शिलान्यास सा करता है जिसमें जनता ही स्वयं सिंहासन पर आरूढ़ होने को है। इस कविता का ऐतिहासिक महत्त्व है।

जनतंत्र का जन्म

सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी,

मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है;

दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

जनता ? हाँ, मिट्टी की अबोध मूरतें वही,

जाड़े-पाले की कसक सदा सहनेवाली,

जब अंग-अंग में लगे साँप हो चूस रहे,

तब भी न कभी मुँह खोल दर्द कहने वाली ।

जनता? हाँ, लम्बी-बड़ी जीभ की वही कसम,

“जनता, सचमुच ही, बड़ी वेदना सहती है।”

“सो ठीक, मगर, आखिर, इस पर जनमत क्या है ?”

“है प्रश्न गूढ़; जनता इस पर क्या कहती है?”

मानो, जनता हो फूल जिसे एहसास नहीं,

जब चाहो तभी उतार सजा लो दोनों में;

अथवा कोई दुधमुँही जिसे बहलाने के

जन्तर-मन्तर सीमित हों चार खिलौनों में।

लेकिन, होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,

जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढ़ाती है;

दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती,

साँसों के बल से ताज हवा में उड़ता है;

जनता की रोके राह, समय में ताव कहाँ ?

वह जिधर चाहती, कांल उधर ही मुड़ता है।

अब्दों, शताब्दियों, सहस्त्राब्द का अन्धकार

बीता; गवाक्ष अम्बर के दहके जाते हैं;

यह और नहीं कोई, जनता के स्वप्न अजय

चीरते तिमिर का वक्ष उमड़ते आते हैं ।

सबसे विराट जनतंत्र जगत का आ पहुँचा,

तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तैयार करो;

अभिषेक आज राजा का नहीं, प्रजा का है,

तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो ।

आरती लिए तू किसे ढूँढ़ता है मूरख,

मन्दिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में ?

देवता कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे,

देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में ।

फावड़े और हल राजदंड बनने को हैं,

धूसरता सोने से श्रृंगार सजाती है;

दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है ।

बोध और अभ्यास

कविता के साथ

  1. कवि की दृष्टि में समय के रथ का घर्घर-नाद क्या है? स्पष्ट करें ।

उत्तर- कवि स्वाधीन भारत की पराकाष्ठता को मजबूत बनाना चाहता। है। बदलते समय में भारत का स्वरूप भी बदल रहा है। आज राजा नहीं प्रजा सिंहासन पर आरूढ़ हो रही है। असीम वेदना सहनेवाली जनता आज जयघोष कर रही है। देश का बागडोर राजा के हाथ में नहीं जनता के हाथ में हो रही है। आज उसका हुंकार सर्वत्र सुनाई पड़ती है। राजनेताओं के सिर पर राजमुकुट नहीं है।

  1. कविता के आरंभ में कवि भारतीय जनता का वर्णन किस रूप में करता है?

उत्तर- वर्षों की पराधीनता की बेड़ी को तोड़कर आज जनता जयघोष करती है। । वह हुँकार भरती हुई सिंहासन खाली करने को कहती है। मूर्तिमान रहने वाली जनता आज मुँह खोल चुकी है। पैरों के तले रौंदी जाने वाली, जाड़े-पाले की कसक सहनेवाली आज अपनी वेदना को सुना रही है। पराधीन भारत में जनता त्रस्त थीं। मुंह बंद रखने के लिए विवश थीं। किन्तु आज हुँकार कर रही है।

  1. कवि के अनुसार किन लोगों की दृष्टि में जनता जनता फूल या दुधमुँही बच्ची की तरह है और क्यों? कवि क्या कहकर उनका प्रतिवाद करता है?

उत्तर- सिंहासन पर आरूढ रहनेवाले राजनेताओं की दृष्टि में जनता फूल या दुधमुंही बच्ची की तरह है। रोती हुई दुधमुंही बच्ची को शान्त रखने के लिए उसके सामने खिलौने कर दी जाती है। उसी प्रकार रोती हुई जनता को खुश करने के लिए कुछ प्रलोभन दिये जाते हैं। कवि यहाँ कहना चाहता है कि जनता जब क्रोध से आकुल हो जाती है तब सिंहासन की बात कौन कहें धरती भी काँप उठती है। सिंहासन खाली कराकर एक नये प्रतिनिधि को बिठा देती है। देश का बागडोर प्रतिनिधि में नहीं जनता के हाथ में है।

  1. कवि जनता के स्वप्न का किस तरह चित्र खींचता है?

उत्तर- स्वाधीन भारत की नींव जनता है। गणतंत्र जनतंत्र पर निर्भर है। जनता का स्वप्न अजेय है। सालों सदियों अंधकार युग में रहनेवाली जनता आज प्रकाश युग में जी रही है। वर्षों से स्वप्न को संजोये रखने वाली जनता निर्भय होकर एक नये युग का शुरू उक्त कर रही है। आज अंधकार ‘युग का अंत हो चुका है। विश्व का विशाल जनतंत्र उदय हुआ है। अभिषेक राजा का कहीं प्रजा का होने वाला है।

  1. विराट जनतंत्र का स्वरूप क्या है? कवि किनके सिर पर मुकुट धरने की बात करता है और क्यों ?

उत्तर- भारत विश्व का विशाल गणतंत्रात्मक देश है। यहाँ देश का बागडोर राजनेताओं को न देकर जनता को दिया गया है। जनता ही सर्वोपरि है। अपने मनपसंद प्रतिनिधि को ही सिंहासन पर आरूढ़ करती है। कवि जनता के सिर पर मुकुट धरने की बात करता है। कवि का मत है कि गणतंत्र भारत का स्वरूप जनता के अनुरूप हो। जनता को पक्ष में लेकर ही देश की रूपरेखा तैयार की जाये। मनमानी करने वाले राजनेताओं को सिंहासन से उतारकर नये राजनेता को जनता ही आरूढ करती है।

  1. कवि की दृष्टि में आज के देवता कौन हैं और वे कहाँ मिलेंगे?

उत्तर- कवि की दृष्टि में आप के देवता कठोर परिश्रम करने वाले मजदूर और कृषक हैं। वे पत्थर तोड़ते हुए या खेत- खलिहानों में काम करते हुए मिलेंगे। भारत की आत्मा गाँवों में बसती है। किसान ही भारत के मेरूदंड हैं। जेठं की दुपहरी हो गया ठंडा के सर्दी या फिर मुसलाधार वर्षा सभी में वे बिना थके हुए खेत-खलिहानों में डटे हुए मिलते हैं।

  1. कविता का मूल भाव क्या है? संक्षेप में स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर- प्रस्तुत कविता में स्वाधीनता भारत का सजीवात्मक चित्रण किया है। सदियों बाद जनतंत्र का उदय हुआ है। पराधीन भारत की स्थितिः अत्यन्त दयनीय थीं। चारों तरफ शोषण, कुसरेकार, अत्याचार आदि का साम्राज्य क्या भारतवासी मुंह बंद कर सबकुछ सहने के लिए विवश थे। पराधीनता की बेड़ी से मुक्त होते ही भारतीय जनता सुख से अभिप्रेत हो गई। जनता सिंहासन पर आरूढ़ होने के लिए आतुर हो गई। मिट्टी की मूर्तिमान रहनेवाली जनता मुँह खोलने लगी है। कभी असीम वेदना को सहनेवाली जनता आज हुंकार भर रही है। गणतंत्र का बागडोर जनता के हाथ में है। मिट्टी तोड़ने वाले, खेत-खलिहानों में काम करने वाले जयघोष कर रहे हैं। आज फावड़ा और हल राजदंड बना हुआ है। आज परिस्थिति बंदल चुकी है। राजनेंता नहीं जनता सिंहासन पर आरूढ़ होनेवाली है।

  1. व्याख्या

(क) सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी, मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है;

(क) प्रस्तुत पंक्तियाँ रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित जनतंत्र का जन्म शीर्षक कविता से संकलित है। इसमें कवि स्वाधीन भारत की रूपरेखा को सजीवात्मक रूप से प्रदर्शित किया है। कवि की अभिव्यक्ति है कि स्वाधीनता मिलते ही भारत में जनतंत्र का उदय हो गया है। बुझी हुई राख धीरे-धीरे सुलगने लगी है। सोने का ताज पहनकर भारत आज इठला रहा है। वर्षों से त्रस्त जनता हुँकार भर रही है।

(ख) हुँकारों से महलों की नींव उखड़ जाती, साँसों के बल से ताज हवा में उड़ता है; जनता की रोके राह, समय में ताव कहाँ? वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुड़ता है।

(ख) प्रस्तुत पंक्तियाँ उत्तर छायावाद के प्रखर कवि रामधारी सिंह दिनकर ‘द्वारा रचित जनतंत्र का जन्म’ शीर्षक कविता से संकलित है। पराधीन भारत की दयनीय स्थिति को देखकर कवि हृदय विचलित हो उठा था। स्वाधीनता मिलते ही उसका मुखमंडल दीप्त हो उठा है। जनता की हुँकार प्रबल बेग से उठती है। सिंहासन की बात कौंन कहें धरती भी काँप उठती है। उसके साँसों से ताप हवा में उठने लगते हैं। जनता की रूख जिधर उठती है उधर ही समय भी अपना मुख कर देता है। वस्तुतः यहाँ कवि कहना चाहता है कि जनता ही सर्वोपरि है। वह जिसे चाहती है उसे राजसिंहासन पर आरूढ़ करती है।

भाषा की बात
  1. निम्नांकित शब्दों के पर्यायवाची लिखें –

सदी, राख, ताज, सिंहासन, कसक, दर्द, कसम, जनमत, फूल, भूडोल, भृकुटी, काल, तिमिर, नाद, राजप्रासाद, मंदिर

उत्तर- सर्दी – साल संवंत

भूडोल – भूकम्प

राख – बुझा हुआ आग

भृकुटी – भकटी – मोह

ताज – मुकुट

काल – समय

सिंहासन – गद्दी

तिमिर – अंधकार

कसक – क्षोभ

नाद – ध्वनि

दर्द – पीड़ा

राजप्रसाद – राजमहल

करूण – सौगन्ध

मंदिर – घर

जनमत – लोगों का मत

2.निम्नांकित के लिंग-निर्णय करें –

ताव, दर्द, वेदना, कसम, हुँकार, बवंडर, गवाक्ष, जगत, अभिषेक, श्रृंगार, प्रजा 3. कविता से सामासिक पद चुनें एवं उनके समास निर्दिष्ट करें ।

उत्तर- ताव – पु०

वेदना – स्त्री०

हुंकार – पु०

गवाक्ष – पु०

अभिषेक – पु०

प्रजा – स्त्री०

दर्द – पु०

कसम – स्त्री०

बवंडर – पु०

जगत – पु०

श्रृंगार – स्त्री

प्रश्न 3. कविता से सामासिक पद चुनें एवं उनके समास निर्दिष्ट करें।

उत्तर- सिंहासन‘ – सिंह चिह्नित आसन मध्यमपदलोपी समास

अबोध – न बोध – नञ् समास

जनमत – जनों का मत – तत्पुरूष समास

भूडोल – भूमि का डोलना – तत्पुरुष समास

को पाकुल- कोप से आकुल – तत्पुरूष समास

शताब्दियों – शत आष्दियों का समूह – द्विगु समास –

अजय न जय नञ् समास – राजप्रासादों – राजा का प्रसादों – तत्पुरूष समास

शब्द निधि

नाद: स्वर, ध्वनि

गूढ़: रहस्यपूर्ण

भूडोल: धरती का हिलना-डोलना, भूकंप

कोपाकुल: क्रोध से बेचैन

ताज: मुकुट

अब्द: वर्ष, साल

गवाक्ष: बड़ी खिड़की, दरीचा

तिमिर: अंधकार

राजदंड: राज्याधिकार, शासन करने का अधिकार

धूसरता: मटमैलापन

error: Copyright Content !!
Scroll to Top