Bihar Board (बिहार बोर्ड) Solution of Class-10 Hindi Padya Chapter- 8 Ek vriksh ki hatya (एक वृक्ष की हत्या) कुंवर नारायण
Dear Students! यहां पर हम आपको बिहार बोर्ड कक्षा 10वी के लिए हिन्दी गोधूलि भाग-2 का पाठ-8 एक वृक्ष की हत्या कुंवर नारायण Bihar Board (बिहार बोर्ड) Solution of Class-10 Hindi (हिन्दी) Padya Chapter-8 Ek vriksh ki hatya संपूर्ण पाठ हल के साथ प्रदान कर रहे हैं। आशा करते हैं कि पोस्ट आपको पसंद आयेगी और आप इसे अपने दोस्तों में शेयर जरुर करेंगे।
Chapter Name | |
Chapter Number | Chapter- 8 |
Board Name | Bihar Board (B.S.E.B.) |
Topic Name | संपूर्ण पाठ |
Part |
भाग-2 Padya Khand (पद्य खंड ) |
कुँवर नारायण
कुँवर नारायण का जन्म 19 सितंबर 1927 ई० में लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ था। कुँवर नारायण ने कविता लिखने की शुरुआत सन् 1950 के आस-पास की। उन्होंने कविता के अलावा चिंतनपरक लेख, कहानियाँ और सिनेमा तथा अन्य कलाओं पर समीक्षाएँ भी लिखीं हैं, किंतु कविता उनके सृजन-कर्म में हमेशा मुख्य रही। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं “चक्रव्यूह’, ‘परिवेश : हम तुम’, ‘अपने सामने’, ‘कोई दूसरा नहीं’, ‘इन दिनों’ (काव्य संग्रह); ‘आत्मजयी’ (प्रबंधकाव्य); ‘आकारों के आस-पास’ (कहानी संग्रह); ‘आज और आज से पहले’ (समीक्षा); ‘मेरे साक्षात्कार’ (साक्षात्कार) आदि। कुँवर नारायण जी को अनके पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं जो इस प्रकार हैं ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘कुमारन आशान पुरस्कार’, ‘व्यास सम्मान’, ‘प्रेगचंद पुरस्कार’, ‘लोहिया सम्मान’, ‘कबीर सम्मान’ जादि ।
कुँवर नारायण पूरी तरह नगर संवेदना के कवि हैं। विवरण उनके यहाँ नहीं के बराबर है, पर वैयक्तिक और सामाजिक ऊहापोह का तनाव पूरी व्यंजकता के साथ प्रकट होता है। आज का समय और उसकी यांत्रिकता जिस तरह हर सजीव के अस्तित्व को मिटाकर उसे अपने लपेटे में ले लेना चाहती है, कुँवर नारायण की कविता वहीं से आकार ग्रहण करती है और मनुष्यता और सजीवता के पक्ष में संभावनाओं के द्वार खोलती है। नयी कविता के दौर में, जब प्रबंधकाव्य का स्थान लंबी कविताएँ लेने लगीं, तब कुँवर नारायण ने ‘आत्मजयी’ जैसा प्रबंधकाव्य रचकर भरपूर प्रतिष्ठा प्राप्त की। उनकी कविताओं में व्यर्थ का उलझाव, अखबारी सतहीपन और वैचारिक धुंध के बजाय संयम, परिष्कार और साफ-सुथरापन है। भाषा और विषय की विविधता उनकी कविताओं के विशेष गुण माने जाते हैं। उनमें यथार्थ का खुरदुरापन भी मिलता है और उसका सहज सौंदर्य भी ।
तुरंत काटे गए एक वृक्ष के बहाने पर्यावरण, मनुष्य और सभ्यता के विनाश की अंतर्व्यथा को अभिव्यक्त करती यह कविता आज के समय की अपरिहार्य चिंताओं और संवेदनाओं का रचनात्मक अभिलेख है। यह कविता कुँवर नारायण के कविता संग्रह ‘इन दिनों’ से संकलित है ।
एक वृक्ष की हत्या
अबकी घर लौटा तो देखा वह नहीं था-
वही बूढ़ा चौकीदार वृक्ष जो हमेशा मिलता था घर के दरवाजे पर तैनात ।
पुराने चमड़े का बना उसका शरीर वही सख्त जान झुर्रियोंदार खुरदुरा तना मैलाकुचैला,
राइफिल-सी एक सूखी डाल, एक पगड़ी फूलपत्तीदार,
पाँवों में फटापुराना जूता, चरमराता लेकिन अक्खड़ बल-बूता
धूप में बारिश में गर्मी में सर्दी में हमेशा चौकन्ना अपनी खाकी वर्दी में दूर से ही ललकारता, “कौन?”
मैं जवाब देता, “दोस्त!”
और पल भर को बैठ जाता उसकी ठंढी छाँव में
दरअसल शुरू से ही था हमारे अन्देशों में कहीं एक जानी दुश्मन कि घर को बचाना है लुटेरों से शहर को बचाना है नादिरों से देश को बचाना है देश के दुश्मनों से बचाना है
नदियों को नाला हो जाने से हवा को धुआँ हो जाने से खाने को जहर हो जाने से:
बचाना है जंगल को मरुथल हो जाने से,’ बचाना है –
मनुष्य को जंगल हो जाने से ।
बोध और अभ्यास
कविता के साथ
- कवि को वृक्ष बूढ़ा चौकीदार क्यों लगता था?
उत्तर- कवि एक वृक्ष के बहाने प्राचीन सभ्यता, संस्कृति एवं पर्यावरण की रक्षा की चर्चा की है। वृक्ष मनुष्यता, पर्यावरण एवं सभ्यता की प्रहरी है। यह प्राचीन काल से मानव के लिए वरदान स्वरूप है, इसका पोषक है, रक्षक है। इन्हीं बातों का चिंतन करते हुए कवि को वृक्ष बूढा चौकीदार लगता था
- वृक्ष और कवि में क्या संवाद होता था?
उत्तर-कवि जब अपने घर कहीं बाहर से लौटता था तो सबसे पहले उसकी नजर घर के आगे स्थिर खड़ा एक पुराना वृक्ष पर पड़ती। उसे लगता मानो घर के आगे सुरक्षा प्रहरी खड़ा है। उसके निकट आने पर कवि को आभास होता मानो वृक्ष उससे पूछ रहा है कि तुम कौन हो?
कवि इसका उत्तर देता-मैं तुम्हारा दोस्त हूँ। इसी संवाद के साथ वह उसके निकट बैठकर भविष्य में आने वाले पर्यावरण संबंधी खतरों की अंदेशा करता है।
- कविता का समापन करते हुए कवि अपने किन अंदेशों का जिक्र करता है और क्यों?
उत्तर- कविता का समापन करते हुए कवि पर्यावरण एवं सभ्यता के प्रति संवेदनशील होकर चिंतन करता है। चिंतन करने में उसे मानवता, पर्यावरण एवं सभ्यता, राष्ट्रीयता के दुश्मन की झलक मिलती है। इसी का जिक्र करते हुए कवि कहते हैं कि हमें घर को विनाश करने वालों से सावधान रहना होगा, शहर में विनाश होते हुए सभ्यता की रक्षा के लिए आगे आना होगा। अर्थात् कवि को अंदेशा है कि आज पर्यावरण, हमारी प्राचीन सभ्यता, मानवता तट के जानी दुश्मन समाज में तैयार हैं। अंदेशा इसलिए करता है क्योंकि आज लोगों की प्रवृत्ति वृक्षों को काटने की हो गई। सभ्यता के विपरीत कार्य करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, मानवता का ह्रास हो रहा है। ऐसी स्थिति में वृक्षों के प्रति मानवता के प्रति संवेदनशील हो कम दिखाई पड़ रहे हैं। यह चिंता का विषय है। यही कवि की आशंका का विषय है।
- घर, शहर और देश के बाद कवि किन चीजों को बचाने की बात करता है और क्यों?
उत्तर- घर, शहर और देश के बाद कवि नदियों, हवा, भोजन, जंगल एवं मनुष्य को बचाने की बात करता है क्योंकि नदियाँ, हवा, अन्न, फल, फूल जीवनदायक हैं। इनकी रक्षा नहीं होगी तो मनुष्य के स्वास्थ्य की रक्षा नहीं हो सकती है। जंगल पर्यावरण का सुरक्षा कवच है। जंगल की रक्षा नहीं होने से प्राकृतिक असंतुलन की स्थिति उत्पन्न होगी। इन सबसे बढ़कर मनुष्य की रक्षा करनी होगी। मनुष्य में मनुष्यता कायम रहे, मानवता का गुण निहित हो, इसकी सभ्यता बनी रहे। इसे असभ्य होने से बचाने की महती आवश्यकता है। साथ ही जंगल की तरह मानवीयता का कत्ल नहीं हो इसके लिए रक्षार्थ आगे आने की महती आवश्यकता है।
- कविता की प्रासंगिकता पर विचार करते हुए एक टिप्पणी लिखें ।
उत्तर- प्रस्तुत कविता में कवि बदलते हुए परिवेश में दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु जिस तरह प्रकृति का दोहन हो रहा है उससे लगता है कि सारी दुनिया प्रकृति का स्वतः शिकार हो जायेगा। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई, बढ़ती हुई जनसंख्या, समुद्र का जलस्तर ऊपर उठना ये सब इसके सूचक हैं। वृक्ष हमारे मित्र हैं फिर भी इसको निष्ठुरता से काटते जा रहे हैं। अतिवृष्टि अनावृष्टि, मौसम का बदलता चक्र पर्यावरण संकट का संकेत कर रहे हैं। आज मानव आँख होते हुए भी अंधा हो गया है। कवि इस समस्या से बहुत चिन्तित है। उसे लगता है कि दुनिया जल्द ही समाप्त हो जायेगी। वृक्ष को काटना अपने आप को मृत्यु के गोद में झोंकना है। ठंडी छाव देने वाले वृक्ष मनुष्य की निष्ठुरता के कारण काटे जा रहे हैं। अंत में कवि कहना चाहता है कि यदि समय रहते इस समस्या से निजात पाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो जीव जगत समाप्त हो जायेंगे। मुडो प्रकृति की ओर का नारा मानव को समझना चाहिए।
- व्याख्या करें –
(क) दूर से ही ललकारता, ‘कौन?’ मैं जवाब देता, ‘दोस्त!”
(क) प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी पाठ्य-पुस्तक के कुँवर नारायण रचित ‘एक वृक्ष की हत्या, पाठ से उधृत है। इसमें कवि ने एक वृक्ष को कटने से आहत होता है और इस पर चिंतन करते हुए पूरी पर्यावरण एवं मानवता पर खतरा की आशंका से आशंकित हो जाता है। इसमें अपनी संवेदना को कवि ने अभिव्यक्त किया है। प्रस्तुत व्याख्येय में कवि कहता है कि जब मैं अपने घर लौटा तो पाया कि मेरे घर के आगे प्रहरी के खड़ा वृक्ष को काट दिया गया है। उसकी याद करते हुए कवि कहते हैं कि वह घर के सामने अहर्निश खड़ा रहता था मानो वह गृहरक्षक हो। जब मैं बाहर से लौटता था उसे दूर से देखता था और मुझे प्रतीत होता था कि वृक्ष मुझसे पूछ रहा हैं कि तुम कौन हो? तब मैं बोल पड़ता था कि मैं तुम्हारा मित्र हूँ। इसमें वृक्ष और कवि के संवाद की प्रस्तुति है।
(ख) बचाना है- जंगल को मरुस्थल हो जाने से बचाना है मनुष्य को जंगल हो जाने से ।
प्रस्तुत व्याख्येय में कवि ने कहा है कि अगर हम इस अंधाधुंध विकास क्रम में विवेक से काम नहीं लेंगे तो वृक्ष कटते रहेंगे और भविष्य में जंगल मरुस्थल का रूप ले लेगा। साथ ही मानवता की सभ्यता की रक्षा के प्रति सचेत नहीं होंगे तो मानव भी जंगल का रूप ले सकता है।
मानवीयता पशुता में परिवर्तित हो सकता है। मानव दानवी प्रवृत्ति अपनाता दिख रहा है और इस बढ़ते प्रवृत्ति को रोकना आवश्यक होगा। कवि मानवीयता स्थापित करने हेतु चिंतनशील है, सभ्यता की सुरक्षा हेतु प्रयत्नशील होने की प्रेरणा दे रहे हैं। साथ ही पर्यावरण संरक्षण हेतु सजग करने की शिक्षा दे रहे हैं।
- कविता के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- वस्तुतः किसी भी कहानी, कविता आदि का शीर्षक वह धुरी होता है जिसके इर्दगिर्द कथावस्तु घूमती रहती है। प्रस्तुत कविता का शीर्षक एक वृक्ष की हत्या के माध्यम से मानवीय संवेदनाओं को सीख देने के लिए रखा गया है। वृक्ष पुराना होने पर भी पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाता है। उसके फल, छाया अपने लिए नहीं औरों के लिए होता है। अपना दोस्त समझने वाला वृक्ष दूसरों के लिए सर्वस्व सुख समर्पण कर देता है। घर, शहर, राष्ट्र और दुनिया को बचाने से पहले वृक्ष को बचायें। बदलता हुआ मौसम चक्र विनाश का सूचक है। हमारा जीवन मरण, युवा-जरा आदि सभी प्रकृति के गोद में ही बीतता है फिर भी हम प्रकृति का दोहन करते जा रहे हैं। अतः उपयुक्त दृष्टान्तों से स्पष्ट होता है कि प्रस्तुत कहानी का शीर्षक सार्थक और समीचीन है।
- इस कविता में एक रूपक की रचना हुई है। रूपक क्या है और यहाँ उसका क्या स्वरूप है? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर-जहाँ रूप और गुण की अत्यधिक समानता के कारण उपमेय में उपमान का आरोप कर अभेद स्थापित किया जाता है वहाँ रूपक होता है। इसमें साधारण धर्म और वाचक शब्द नहीं होते हैं। इस कविता में वही बूढ़ा चौकीदार वृक्ष रूपक है। यहाँ चौकीदार वृक्ष है। उपमान का आरोप कर अभेद स्थापित किया गया है।
भाषा की बात
- निम्नलिखित अव्ययों का वाक्यों में प्रयोग करें
अबकी, हमेशा, लेकिन, दूर, दरअसल, कहीं
उत्तर- अबकी – अबकी समस्या गंभीर है।
हमेशा – हमेशा सत्य बोलना चाहिए।
लेकिन – वह आनेवाला था लेकिन नहीं आया।
दूरं – यहाँ से दूर नदी बहती है।
दरअसल – दरअसल ये बाते झूठी हैं।
कहीं – वह कहीं नहीं जायेगा।
- कविता से विशेषणों का चुनाव करते हुए उनके लिए स्वतंत्र विशेष्य पद दें ।
उत्तर- बूढा – चौकीदार
पुराने – चमड़े
खुरदरा – तना
सखी – डाल
फूल पत्तीदार – पगड़ी
फटा पुराना – जूता
ठंढी – छाँव
- निम्नांकित संज्ञा पदों का प्रकार बताते हुए वावय-प्रयोग करें
घर, चौकीदार, दरवाजा, डाल, चमड़ा, पगड़ी, जूता, बल-बूता, बारिश, वर्दी, दोस्त, पल, छाँव, अन्देशा, नादिरों, जहर, मरुस्थल, जंगल
उत्तर- घर – जातिवाचक – घर बड़ा है।
चौकीदार – जातिवाचक – चौकीदार ईमानदार है।
दरवाजा – जातिवाचक – दरवाजा खोल दो।
डाल – जातिवाचक – वृक्ष के डाल टूट गये।
चमड़ा – जातिवाचक – चमड़ा सड़ गया।
बल-बूता – भाववाचक–अपने बल-बूते पर कार्य करो।
बारिश – जातिवाचक – बारिश हो रही है।
वर्दी – जातिवाचक – वर्दी नयी है।
दोस्त – जातिवाचक – दोस्त पुराना है।
पल – भाववाचक – एक-एक पल का सदुपयोग करो।
छाँव – भाववाचक – छाँव ठंढी है।
अन्देशा – भाववाचक –अन्देशा समाप्त हो गया।
4.. कविता में प्रयुक्त निम्नांकित पदों के कारक स्पष्ट करें
चमड़ा, पाँव, धूप, सर्दी, वर्दी, अन्देशा, शहर, नदी, खाना, मनुष्य
उत्तर-चमड़ा – सबंध कारक
पाँव – अधिकरण कारक
धूप – अधिकारण कारक
सर्दी – अधिकरण कारक
वर्दी – अधिकरण कारक
अन्देशा – अधिकरण कारक
शहर – कर्म कारक
नदी – कर्म कारक
खाना – कर्म कारक
मनुष्य – कर्म कारक
शब्द निधि
अक्खड़: विपरीत परिस्थितियों में डटा रहने वाला
बल-बूता: शक्ति-सामर्थ्य
अन्देशा: आशंका
नादिरों: नादिरशाह नामक ऐतिहासिक लुटेरे और आक्रमणकारी की तरह के क्रूर व्यक्ति