डॉक्टर श्याम सुंदर दास का जीवन परिचय, जीवनी, भाषा शैली, एवं उनकी रचनाएं, Doctor Shyam Sundar Das ka Jivan Parichay, jivani, Bhasha Shaili, avam Unki rachnaaye (Biography of Dr. Shyam Sundar Das)
प्यारे बच्चो हम यहां पर आपको हिंदी साहित्य के महान लेखक श्याम सुन्दर दास का जीवन परिचय एवं उनकी जीवन की विभिन्न घटनाओं का उल्लेख नीचे किया गया है उनकी जीवन सार को बताया गया है तथा उनकी रचनाओं आदि का लेख प्रदान किया गया है |
डॉ० श्याम सुन्दरदास
लेखक का संक्षिप्त जीवन परिचय (फ्लो चार्ट) |
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जीवन परिचय (Biography)
पूरा नाम | डॉ० श्यामसुन्दर दास |
जन्म | सन् 1875 ई० में हुआ |
जन्म स्थान | काशी (वाराणसी), उत्तर प्रदेश में |
पिता का नाम | श्री देवीदास खत्री |
शिक्षा | बी० ए० |
उपाधि | साहित्य वाचस्पति, और डी०-लिट० |
पेशा | लेखक, साहित्यकार, संपादक, अध्यापक |
साहित्य में स्थान | द्विवेदी युग के महान् गद्यकार के रूप में इनका हिंदी-साहित्य जगत् में विशेष स्थान है |
Board | UP Board and Competition Exam TGT PGT and other Hindi Examination |
Category | Jivan Parichay / Biography |
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द्विवेदी युग के महान् साहित्यकार डॉ० श्यामसुन्दरदास का जन्म काशी के प्रसिद्ध खत्री परिवार में सन् 1875 ई० में हुआ था। इनका बाल्यकाल बड़े सुख और आनन्द से बीता। सबसे पहले इन्हें संस्कृत भाषा की शिक्षा दी गयी, इसके बाद अन्य परीक्षाएँ उत्तीर्ण करते हुए सन् 1897 ई० में बी० ए० की परीक्षा पास किया। बाद में आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण चन्द्रप्रभा प्रेस में मात्र 40 रु० मासिक वेतन पर नौकरी की।
इसके बाद काशी के हिन्दू स्कूल में सन् 1899 ई० में कुछ दिनों तक अध्यापक के रूप में कार्य किया। तत्पश्चात लखनऊ के कालीचरण नामक हाईस्कूल में प्रधानाध्यापक हो गये। इस पद पर 9 वर्ष तक कार्य किया। इन्होंने 16 जुलाई, सन् 1893 ई० को विद्यार्थी-काल में ही अपने दो सहयोगियों रामनारायण मित्र और ठाकुर शिवकुमार सिंह की सहायता से ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ की स्थापना की।
अन्तत: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष हो गये और अवकाश ग्रहण करने तक इसी पद पर बने रहे। और लगातार कार्य करते रहने के कारण इनकी स्वास्थ्य गिरावट आ गयी और सन् 1945 ई० में इनकी मृत्यु हो गयी।
श्यामसुन्दर दास जी अपने जीवन में अनवरत रूप से हिन्दी साहित्य की सेवा करते हुए उसे कोश, इतिहास, काव्यशास्त्र, भाषा-विज्ञान, शोधकार्य, उपयोगी साहित्य, पाठ्य-पुस्तक और सम्पादित ग्रन्थ आदि से भर दिया। और उसके महत्त्व की प्रतिष्ठा की, और इसकी विशेषता को प्रति व्यक्ति तक पहुंचाया। और इन्हें खंण्डहरों से उठाकर विश्वविद्यालयों के भव्य-भवनों में प्रतिष्ठित किया। व अन्य भाषाओं के बराबर बनाया
उपाधियाँ
हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने इन्हें ‘साहित्य वाचस्पति’ और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने ‘डी० लिट्०’ की उपाधि देकर इनकी साहित्यिक सेवाओं की महत्ता को स्वीकार किया।
कृतियाँ
1. गोस्वामी तुलसीदास, 2. हिन्दी भाषा और साहित्य, 3. रूपक रहस्य, 4. भाषा- रहस्य, 5. रूपक रहस्य, 6. हिन्दी कोविद रत्नमाला, 7. साहित्यलोचन, 8. साहित्यिक लेख, 9. मेरी आत्म-कहानी-, 10. हिन्दी साहित्य-निर्माण आदि इनकी प्रमुख कृतियाँ है|
भाषा-शैली
शुद्ध, साहित्यिक हिन्दी और संस्कृत भाषा है तथा विचारात्मक, गवेषणात्मक तथा व्याख्यात्मक शैली प्रयुक्त कि गयी है|
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जीवन परिचय || जीवनी || रचनाएँ || व्यक्तित्व और कृतित्व
Post Overview
Post Name | Shyam Sundar Das ka Jivan Parichay, jivani |
Class | All |
Subject | Hindi |
Topic | Jivan Parichay/ Biography/ Jeevani |
Board | All Board and All Students |
State | Uttar Pradesh |
Session | All |
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