डॉ० सम्पूर्णानन्द का जीवन परिचय, जीवनी, भाषा शैली, एवं उनकी रचनाएं, Dr. Sampurdanand(dr. sampudanand) ka Jivan Parichay, jivani, Bhasha Shaili, avam Unki rachnaaye (Biography of Dr. Sampurdanand)
मेरे प्यारे विद्यार्थियो हम यहाँ पर आपको हिंदी साहित्य के महान निबन्धकार डॉ० सम्पूर्णानन्द जी का जीवन परिचय प्रदान कर रहे है और उनकी रचनाये एवम् जीवन का सार नीचे दिया गया है। Biography of Dr. Sampurdanand, Dr. Sampudanand Ji ka Jeevan Parichay Sahityik Parichay of Dr. Sampurdanand. Important for UP Board Exam and all Competition.
लेखक का संक्षिप्त जीवन परिचय (फ्लो चार्ट) |
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जन्म | 1 जनवरी सन् 1890 ई० |
जन्म स्थान | काशी (उ०प्र०) |
पिता | विजयानन्द |
भाषा | भाषा सबल, सजीव, साहित्यिक |
उपाधि | साहित्य वाचस्पति |
पुरस्कार | मंगलाप्रसाद पारितोषिक |
भाषा | इनकी भाषा सबल, सजीव, साहित्यिक |
शैली | इनकी शैली शुद्ध, परिष्कृत एवं साहित्यिक है। |
मृत्यु | 10 जनवरी सन् 1969 ई० |
जीवन परिचय (Jivan Parichay)
हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री, कुशल राजनितिक, उद्घर विद्वान् डॉ० सम्पूर्णानन्द जी का जन्म 1 जनवरी,1809 ई० को काशी में हुआ था। इन्होने बचपन में ही हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, उर्दू, और पारसी आदि भाषाओं का गहन अध्ययन कर लिया था। इनके प्रिय विषय विज्ञान दर्शन और बोग थे। इन्होंने क्वीन्स कालेज, वाराणसी से बी०एस-सी० की परीक्षा पास करने के बाद ट्रेनिंग कालेज, इलाहाबाद से एल० टी० किया। इन्होंने एक अध्यापक के रूप में जीवन-क्षेत्र में प्रवेश किया और सबसे पहले प्रेम महाविद्यालय, वृन्दावन में अध्यापक हुए। कुछ दिनों बाद इनकी नियुक्ति डूंगर कालेज, बीकानेर में प्रिंसिपल के पद पर हुई। सन् 1921 में महात्मा गांधी के राष्ट्रीय आन्दोलन से प्रेरित होकर काशी लौट आये और ‘ज्ञान मंडल’ में काम करने लगे। इन्हीं दिनों इन्होंने मासिक और ‘टुडे’ का सम्पादन किया। इन्होंने राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में प्रथम पंक्ति के सेनानी के रूप में कार्य किया और सन् 1936 में प्रथम बार कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा के सदस्य चुने गये। सन् 1937 में कांग्रेस मंत्रिमंदल गठित होने पर ये उत्तर प्रदेश के शिक्षामंत्री नियुक्त हुए। सन् 1940 में ये अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभापति निर्वाचित हुए थे। सन् 1955 में थे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। सन् 1960 में इन्होंने मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। सन् 1962 में में राजस्थान के राज्यपाल नियुक्त हुए। सन् 1967 में राज्यपाल पद से मुक्त होने पर में काशी लौट आये काशी नागरी प्रचारिणी सभा के भी ये अध्यक्ष और संरक्षक थे। वाराणसी संस्कृत विश्वविद्यालय इनकी ही देन है। और 10 जनवरी, 1969 ई० को काशी में ही इस साहित्य-तपस्वी का निधन हो गया।
उपाधियाँ
इनको सम्मेलन की सर्वोच्च उपाधि साहित्य वाचस्पति की उपाधि प्राप्त हुई।
पुरस्कार
हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने इनकी ‘समाजवाद’ कृति पर इनको मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्रदान किया था।
कृतियाँ
- समाजवाद, 2. आर्यों का आदि देश, 3. चिद्विलास, 4. गणेश, 5. जीवन और दर्शन, 6. अन्तर्राष्ट्रीय विधान, 7. पुरुषसूक्त, 8. जात्यकाण्ड, 9. पृथिवी से सप्तर्षि मण्डल, 10.भारतीय सृष्टि क्रम विचार, 11. हिन्दू देव परिवार का विकास, 12. बेदार्थ प्रवेशिका, 13. चीन की राज्यक्रान्ति, 14. भाषा की शक्ति तथा अन्य निबंध, 15. अन्तरिक्ष यात्रा, 16. स्फुट विचार, 17. ब्राह्मण सावधान, 18. ज्योतिर्विनोद, 19. अधूरी क्रान्ति, 20. भारत के देशी राज्य, 21.सम्राट अशोक, 22. सम्राट हर्षवर्धन, 23. महादजी सिंधिया, 24. चेतसिंह आदि इतिहास-प्रसिद्ध व्यक्तियों तथा महात्मा गाँधी, 25. देशबन्धु चितरंजनवास जैसे आधुनिक महापुरुषों की जीवनियाँ तथा अनेक महत्त्वपूर्ण निबंध भी लिखे।
भाषा-शैली
इनकी भाषा सबल, सजीव, साहित्यिक, एवं प्रौढ़ है।
इनकी शैली शुद्ध, परिष्कृत एवं साहित्यिक है।
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- विचारात्मक
- व्याख्यात्मक
- ओजपूर्ण
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जीवन परिचय || जीवनी || रचनाएँ || व्यक्तित्व और कृतित्व
Post Overview
Post Name | Dr. Sampurdanand ji ka Jivan Parichay, jivani |
Class | All |
Subject | Hindi |
Topic | Jivan Parichay/ Biography/ Jeevani |
Board | All Board and All Students |
State | Uttar Pradesh |
Session | All |
Downloadable File | PDF File Download |
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