ध्वनि और लिपि – Hindi Dhwani Hindi Lipi Hindi Vyakaran Dhvani in Hindi

ध्वनि और लिपि – Hindi Dhvani Hindi Lipi Hindi Vyakaran Varn, Dhwani, Lipi and Akshar in Hindi Vyakaran

ध्वनि और लिपि – Hindi Dhwani Hindi Lipi Hindi Vyakaran Dhvani in Hindi- Important For TGT PGT DSSSB KVS NVS etc.

ध्वनि और लिपि - Hindi Dhvani Hindi Lipi Hindi Vyakaran Varn, Dhwani, Lipi and Akshar in Hindi Vyakaran

ध्वनि और लिपि

ध्वनियाँ मनुष्य और पशु दोनों की होती हैं। कुत्ते का भूँकना और बिल्ली का म्याऊँ म्याऊँ करना पशुओं के मुँह से निकली ध्वनियाँ हैं । ध्वनि निर्जीव वस्तुओं की भी होती है; जैसे- — जल का वेग, वस्तु का कंपन आदि । व्याकरण में केवल मनुष्य के मुँह से निकली – या उच्चरित ध्वनियों पर विचार किया जाता है। मनुष्यों द्वारा उच्चरित ध्वनियाँ कई प्रकार की होती हैं। एक तो वे, जो मनुष्य के किसी क्रियाविशेष से निकलती हैं; जैसे― चलने की ध्वनि । दूसरी वे ध्वनियाँ हैं, जो मनुष्य की अनिच्छित क्रियाओं से उत्पन्न होती हैं; जैसे – खर्राटे लेना या जँभाई लेना।

तीसरी वे हैं, जिनका उत्पादन मनुष्य के स्वाभाविक – कार्यों द्वारा होता है; जैसे कराहना । चौथी वे ध्वनियाँ हैं, जिन्हें मनुष्य अपनी इच्छा से अपने मुँह से उच्चरित करता है। इन्हें हम वाणी या आवाज कहते हैं। पहली तीन प्रकार की ध्वनियाँ निरर्थक हैं। वाणी सार्थक और निरर्थक दोनों हो सकती है। निरर्थक वाणी का प्रयोग सीटी बजाने या निरर्थक गाना गाने में हो सकता है। सार्थक वाणी को भाषा या शैली कहा जाता है। इसके द्वारा हम अपनी इच्छाओं, धारणाओं अथवा अनुभवों को व्यक्त करते हैं। बोली शब्दों से बनती है और शब्द ध्वनियों के संयोग से ।

यद्यपि मनुष्य की शरीर रचना में समानता है, तथापि उनकी बोलियों या भाषाओं में विभिन्नता है। इतना ही नहीं, एक भाषा के स्थानीय रूपों में भी अंतर पाया जाता है। पर, पशुओं की बोलियों में इतना अंतर नहीं पाया जाता। मनुष्य की भाषा की उत्पत्ति मौखिक रूप से हुई। भाषाओं के लिखने की परिपाटी उनके निर्माण के बहुत बाद आरंभ हुई। यह तब हुआ, जब मनुष्य को अपनी भावनाओं, विचारों और विश्वासों को सुरक्षित रखने की प्रबल इच्छा महसूस हुई।

आरंभ में लिखने के लिए वाक्यसूचक चिह्नों से काम लिया गया और क्रमशः शब्दचिह्न और ध्वनिचिह्न बनने के बाद लिपियों का निर्माण हुआ । चिह्नों में परिवर्तन होते रहे। वर्तमान लिपियाँ चिह्नों के अंतिम रूप हैं। पर, यह कार्य अभी समाप्त नहीं हुआ है। उदाहरण के लिए, वर्तमान काल में हिंदी लिपि में कुछ परिवर्तन करने का प्रयत्न किया जा रहा है। हिंदी भाषा देवनागरी लिपि में लिखी जाती है। इसके अपने लिपि – चिह्न हैं।

हिंदी के लिपि चिह्न (Hindi Ke Lipi Chinh)

देवनागरी के वर्णों का उल्लेख किया जा चुका है,  जिसमें ग्यारह स्वर और इकतालीस व्यंजन हैं। व्यंजन के साथ स्वर का संयोग होने पर स्वर का जो रूप होता है, उसे मात्रा कहते हैं। जैसे-

अ आ   इ   ई   उ     ऊ    ॠ   ए   ऐ     ओ     औ

T   f  ऻ     ॖ     ॗ     ॄ    ॆ   ॏ     ॊ     ॏ

क  का  कि  की  कु   कू    कृ    के   कै    को    कौ

देवनागरी लिपि की निम्नांकित विशेषताएँ हैं-

  • १. ‘अ’ के लिए कोई मात्रा निश्चित नहीं है। जब यह व्यंजन के साथ मिल जाता है। तब व्यंजन के नीचे का चिह्न (() नहीं लिखा जाता; जैसे – क् + अ = क. ख् + अ = ख, ग् + अ = ग।
  • २. आ (T ), ई (), ओ () और औ () की मात्राएँ व्यंजन के बाद जोडी जाती हैं (जैसे—का, की, को, कौ); इ (f) की मात्रा व्यंजन के पहले, ए () और ऐ (‘) की मात्राएँ व्यंजन के ऊपर तथा उ ( ), ऊ ( ू ), ऋ (c) मात्राएँ नीचे लगाई जाती हैं।
  • ३. ‘र’ व्यंजन में ‘उ’ और ‘ऊ’ मात्राएँ अन्य व्यंजनों की तरह न लगाई जाकर इस तरह लगाई जाती हैं र् + उ = रु, र् + ऊ = रू ।
  • ४. अनुस्वार ( ं) और विसर्ग ( : ) क्रमशः स्वर के ऊपर या बाद में जोड़े जाते हैं; जैसे—अ + = अं, क् + अं= कं, अ + अः, क् + अ = कः आदि ।
  • ५. स्वरों की मात्राओं तथा अनुस्वार एवं विसर्गसहित एक व्यंजन वर्ण में बारह रूप होते हैं। इन्हें परंपरा के अनुसार ‘बारहखड़ी’ कहते हैं; जैसे—क का कि की कु कू के कै को कौ कं कः ।
  • व्यंजन दो तरह से लिखे जाते हैं-खड़ी पाई के साथ और बिना खड़ी पाई के
  • ६. ङ छ ट ठ ड ढ द र बिना खड़ी पाई वाले व्यंजन हैं और शेष व्यंजन (जैसे—क, ख, ग, घ, च इत्यादि) खड़ी पाई वाले व्यंजन हैं। सामान्यतः सभी वर्णों के सिरे पर एक-एक आड़ी रेखा रहती है, जो ध, झ और भ में कुछ तोड़ दी गई है।
  • ७. जब दो या दो से अधिक व्यंजनों के बीच कोई स्वर नहीं रहता, तब दोनों के मेल से संयुक्त व्यंजन बन जाते हैं; जैसे— क् + त् = क्त, त् + य् = त्य, क् + ल् = क्ला ८. जब एक व्यंजन अपने समान अन्य व्यंजन से मिलता है, तब उसे ‘द्वित्व व्यंजन’ कहते हैं; जैसे—क्क (चक्का), त्त (पत्ता), न (गन्ना), म्म (सम्मान) आदि।

हिंदी के एकाधिक रूपवाले चिह्न

हिंदी में निम्नलिखित वर्णों के दो-दो रूप प्रचलित हैं-

अ-म छ क्ष, झ-झ, ण-रण, ल-ल, त्र-व्र ।

‘र’ व्यंजन का प्रयोग अनेक प्रकार से होता है-

१. श के साथ ‘र’ इस तरह आता है— श् + र = श्र।

२. ङ्, छ्, ञ्, ट् ठ् ड् ढ् ण् व्यंजनों को छोड़कर अन्य व्यंजनों के साथ जब ‘र’ आता है तब वे व्यंजन आधे रूप में आते हैं। ऐसी स्थिति में ‘र’ का यह (-) रूप हो जाता है; जैसे- – प्रभात, क्रय, ग्राह्य।

छ, ट, ठ, ड, ढ व्यंजन जब आधे या स्वरविहीन हों और उसके बाद ‘र’ आए, तब इन व्यंजनों के पूर्ण रूप के साथ ‘र’ का इस तरह ( ) रूप होता है, जैसे – ड्राम, ट्रेन। – आधे ‘र’ के लिए ऊर्ध्व रेफ ( ) चिह्न का प्रयोग होता है; जैसे – दर्द, गर्म, धर्म ।

error: Copyright Content !!
Scroll to Top