Hindi Kavyashastra – Bhartiy Kavyshastra – MCQ- Objective Questions With Answer PDF Notes हिंदी काव्यशास्त्र, हिंदी (वस्तुनिष्ठ प्रश्न) भारतीय काव्यशास्त्र बहुविकल्पीय प्रश्न.
Hindi Kavyashastra – Bhartiy Kavyshastra – MCQ- Objective Questions With Answer PDF Notes भारतीय काव्यशास्त्र बहुविकल्पीय प्रश्न- UP TGT/PGT,GIC,NET/ JRF, Assistent Professor UPPSC JPPSC- यूपी टीजीटी पीजीटी हिंदी सिलेबस | UP TGT PGT Hindi Syllabus · हिन्दी साहित्य.[हिन्दी] भारतीय काव्यशास्त्र MCQ [Free Hindi PDF].भारतीय काव्यशास्त्र MCQ Quiz in हिन्दी EMRS TGT EMRS PGT SSC MTS & Havaldar Bihar Secondary Teacher Bihar TGT PGT.
भारतीय काव्यशास्त्र बहुविकल्पीय प्रश्न (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
काव्य शास्त्र (बहुविकल्पीय प्रश्न)
- मैथिलीशरण गुप्त जी के काव्य में उन्हें कौन से छन्द सर्वाधिक प्रिय होने का प्रमाण मिलता है?
(क) हरिगीतिका✓
(ख) सम एवं विषम
(ग) मात्रिक एवं सम
(घ) वर्णिक एवं सम
- छन्दों के लयात्त्मक प्रवाह का नाम है –
(क) गति✓
(ख) यति
(ग) तुक
(घ) पाद
- छन्द के अंग माने जाते हैं –
(क) चरण/पद/पाद
(ख) वर्ण और मात्रा
(ग) गण, तुक
(घ) तीनों माने जाते हैं✓
- ‘वर्णिक छन्दों’ की गणना का आधार है –
(क) मात्रा
(ख) पद
(ग) वर्ण✓
(घ) गति
- ‘गण’ में वर्णों की संख्या मानी जाती है
(क) चार वर्ण
(ख) सात वर्ण
(ग) आठ वर्ण
(घ) तीन वर्ण✓
- ‘मात्रिक छन्दों’ की गणना का आधार है –
(क) मात्रा✓
(ख) पद
(ग) वर्ण
(घ) गति
- किस छन्द में द्वितीय व चतुर्थ चरण के अंत में तुक नहीं मिलता?
(क) चौपाई✓
(ख) दोहा
(ग) सोरठा
(घ) रोला
- ‘दशाक्षर’ में कौन से वर्ण आते हैं?
(क) य, म
(ख) र, ज
(ग) स, त
(घ) ल, गा✓
- ‘कुण्डलिया’ छः चरण वाले छन्द को कहते हैं, इसके प्रत्येक चरण में कितनी मात्राएँ होती हैं?
(क) 11 मात्राएँ
(ख) 22 मात्राएँ
(ग) 24 मात्राएँ✓
(घ) 26 मात्राएँ
- ‘अक्षर या स्वर मैत्री’ का दूसरा नाम है –
(क) गण
(ख) यति
(ग) लय
(घ) तुक✓
- छन्द में ‘गणों’ की कितनी संख्या मानी जाती है?
(क) आठ✓
(ख) नौ
(ग) ग्यारह
(घ) बारह
- ‘छन्द’ की प्रत्येक पंक्ति को क्या कहते हैं?
(क) यदि
(ख) चौपाई
(ग) चरण✓
(घ) वाक्य
- ‘निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति कौ मूल।। बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटे न हिय कौ शूल।’ मैं कौन-सा छन्द है?
(क) सोरठा
(ख) दोहा✓
(ग) रोला
(घ) हरिगीतिका
- 22 से लेकर 26 वर्णों तक के चार चरणों वाले वर्णिक छन्द कहलाते हैं –
(क) सवैया वर्णिक छन्द ✓
(ख) दण्डक वर्णिक छन्द
(ग) मालिनी वर्णिक छन्द
(घ) स्रग्धरा वर्णिक छन्द
- अधोलिखित में कौन-सा ग्यारह वर्ण वाला वर्णिक छन्द नहीं है?
(क) इन्द्रवज्रा
(ख) उपेन्द्रवज्रा
(ग) भुजंगी
(घ) भुजंगी प्रयात✓
- 26 वर्णों से अधिक चार चरणों वाले छन्द कहलाते हैं-
(क) इन्द्रवज्रा
(ख) दण्डक वर्णिक छन्द✓
(ग) सवैया वर्णिक छन्द
(घ) सुमुखी सवैया वर्णिक छन्द
- गीतिका छन्द में ‘यति’ के साथ कितनी मात्राएँ होती हैं?
(क) 15-12 की यति से 27 मात्राएँ
(ख) 14, 13 की यति से 27 मात्राएँ
(ग) 13, 13 की यति से 26 मात्राएँ
(घ) 14, 12 की यति से 26 मात्राएँ✓
- ‘रोला’ माना जाता है –
(क) विषम मात्रिक छन्द
(ख) सममात्रिक छन्द✓
(ग) वर्णिक छन्द
(घ) वर्णिक वृत्त छन्द
- ‘तोमर’ छन्द माना जाता है –
(क) सममात्रिक छन्द✓
(ख) विषम मात्रिक छन्द
(ग) अर्द्ध सममात्रिक छन्द
(घ) वर्णिक छन्द
- दोहा एवं रोला के योग से बनता है –
(क) कुण्डलिया✓
(ख) उल्लाला
(ग) आल्हा
(घ) चौपाई
- ‘विषम मात्रिक छन्द माना जाता है’ –
(क) कुंडलिया✓
(ख) उल्लाला
(ग) दोहा
(घ) सोरठा
- ‘रोला एवं उल्लाला’ के योग से बनता है –
(क) छप्पय✓
(ख) कुंडलिया
(ग) सोरठा
(घ) रोला
अधोलिखित छन्दों में वर्णों की संख्या बताइए –
- दुर्मिल सवैया –
(क) 20 वर्ण
(ख) 22 वर्ण
(ग) 24 वर्ण✓
(घ) 30 वर्ण
- मालिनी –
(क) 15 वर्ण✓
(ख) 20 वर्ण
(ग) 27 वर्ण
(घ) 30 वर्ण
- वसन्ततिलका –
(क) 14 वर्ण✓
(ख) 15 वर्ण
(ग) 20 वर्ण
(घ) 22 वर्ण
- द्रुतविलम्बित –
(क) 12 वर्ण✓
(ख) 13 वर्ण
(ग) 15 वर्ण
(घ) 20 वर्ण
- शार्दूलविक्रीडित –
(क) 11 वर्ण
(ख) 12 वर्ण
(ग) 17 वर्ण
(घ) 19 वर्ण✓
- शिखरिणी –
(क) 9 वर्ण
(ख) 12 वर्ण
(ग) 18 वर्ण
(घ) 17 वर्ण✓
प्रश्न संख्या 229-237 के लिए निर्देश अधोलिखित पंक्तियों में मात्रिक छन्द बताइए –
- “अन्याय सहकर चुप बैठ रहना, यह महा दुष्कर्म है न्यायार्थ अपने बन्धु को भी, दण्ड देना धर्म है।”
(क) आल्हा
(ख) हरिगीतिका✓
(ग) सार
(घ) उल्लाला
- “मूर्छा लौटा तब नाहर कौ, आगे बढ़े पिथौराराय। नौ सै हाथिन के हलका में, इकले घिरे कनौजी राय।”
(क) उल्लाला
(ख) चौपाई
(ग) आल्हा✓
(घ) गीतिका
- “साधु भक्तों से सुयोगी, संयमी बढ़ने लगे। सभ्यता की सीढ़ियों पर, सूरमा चढ़ने लगे।”
(क) गीतिका✓
(ख) हरिगीतिका
(ग) दिगपाल
(घ) ताटंक
- “हम जिधर कान देते उधर, सुन पड़ता हम को यही। जय जय भारतवासी कृती, जय-जय भारत के मही॥”
(क) गीतिका
(ख) उल्लाला✓
(ग) हरिगीतिका
(घ) रूप माला
- “चंपक हरवा अंग मिलि, अधिक सुहाय। जानि परै सिय हियरे, जब कुंभिलाय।”
(क) उल्लाला
(ख) सोरठा
(ग) दोहा
(घ) बरवै✓
- “नव उज्ज्वल जलधार, हार हीरक सी सोहति ।
बिच-बिच छहरति बूंद, मध्य मुक्ता मनि मोहति ॥”
(क) अरिल्ल
(ख) हरिगीतिका
(ग) रोला✓
(घ) लावनी
- “रहिमन पुतरी स्याम, मनहुँ जलज मधुकर लसै। कैंधो सालिक ग्राम, रूपे के अरघा धरै ॥”
(क) बरवै
(ख) चौपाई
(ग) सोरठा✓
(घ) दोहा
- “कुमुदबंधु कर निंदक हाँसा । भृकुटी विकट मनोहर नासा।।”
(क) सोरठा
(ख) रोला
(ग) दिगपाल
(घ) चौपाई✓
- “मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागर सोड़। जा तन की झाई परै, स्याम हरित दुति होइ।।”
(क) सोरठा
(ख) बरवै
(ग) उल्लाला
(घ) दोहा✓
- काव्य दोषों का सर्वप्रथम विवेचन किस ग्रन्थ में मिलता है?
(क) नाट्यशास्त्र✓
(ख) काव्यालंकार
(ग) काव्यालंकार सूत्रवृत्ति
(घ) काव्यप्रकाश
- काव्य रचना के अंतर्गत भावों की अभिव्यक्ति में अवरोध उत्पन्न करने वाले तत्त्व कहलाते हैं –
(क) शब्दशक्ति
(ख) शब्दगुण
(ग) रीतितत्त्व
(घ) काव्यदोष✓
- “मुख्यार्थहतिर्दोषः रसश्चमुख्यः तदाश्रयाद्वाच्य” कथन है-
(क) आनन्दवर्धन
(ख) रुद्रट
(ग) भोजराज
(घ) मम्मट✓
- “एत एव विपर्यस्ता गुणाः काव्येषु कीर्तिताः” कथन है-
(क) भामह
(ख) भरत✓
(ग) वामन
(घ) रुद्रट
- “दोषः रसापकर्षकाः” कथन है –
(क) विश्वनाथ✓
(ख) जगन्नाथ
(ग) अप्पयदीक्षित
(घ) राजशेखर
- “गुणः विपर्ययात्मानो दोषाः” कथन है –
(क) रुय्यक
(ख) दण्डी
(ग) विश्वनाथ
(घ) वामन✓
- ‘मम्मट’ ने काव्य प्रकाश में कितने प्रकार के दोष माने हैं?
(क) तीन प्रकार के✓
(ख) पाँच प्रकार के
(ग) चार प्रकार के
(घ) दो प्रकार के
- अधोलिखित में कौन सा शब्द दोष नहीं माना जाता है ?
(क) ग्राम्यत्वदोष
(ख) च्युतसंस्कृति दोष
(ग) क्लिष्टत्व दोष
(घ) संदिग्ध दोष✓
- अधोलिखित में कौन ‘वाक्य दोष’ नहीं माना जाता?
(क) न्यूनपदत्व दोष
(ख) अधिकपदत्व दोष
(ग) अक्रमत्व दोष
(घ) श्रुतिकटुत्व दोष✓
प्रश्न संख्या 247 से 256 के लिए निर्देश – अधोलिखित पंक्तियों में काव्य दोष बताइए –
- “केहि कारन कामिनि लिख्यौ शिवमूर्ति निज गेह”-
(क) संदिग्ध दोष✓
(ख) स्वशब्द वाच्य दोष
(ग) अश्लीलत्व दोष
(घ) ग्राम्यत्व दोष
- “मार से बचाओ नाथ आई हूँ शरण में” –
(क) संदिग्ध दोष✓
(ख) अक्रमत्व दोष
(ग) ग्राम्यत्व दोष
(घ) पुनरुक्त दोष
- “अली पास पौढ़ी भले, मोहि किन पौढ़न देति” –
(क) अश्लीलत्व दोष
(ख) पुनरुक्त दोष
(ग) संदिग्ध दोष
(घ) ग्राम्यत्व दोष✓
- “कैसे कहते हो इस दुआर पर अब से कभी न आऊँ”-
(क) अश्लीलत्व दोष
(ख) ग्राम्यत्व दोष✓
(ग) पुनरुक्त दोष
(घ) संदिग्ध दोष
- “मृदुल मधुर निद्रा चाहता चित मेरा। तव पिक करती तू शब्द प्रारम्भ तेरा।।”
(क) श्रुतिकटुत्व दोष
(ख) ग्राम्यत्व दोष
(ग) च्युत्संस्कृति दोष✓
(घ) क्लिष्टत्व दोष
- “फूलों में लावण्यता देती सा आनन्द “-
(क) अक्रमत्व दोष
(ख) च्युतसंस्कृति दोष✓
(ग) संदिग्ध दोष
(घ) श्रुति कटुत्व दोष
- “लिपटी पुहुप पराग पट, सनी स्वेद मकरन्द” – –
(क) अक्रमत्व दोष
(ख) रस दोष
(ग) स्वशब्दवाच्य दोष
(घ) अधिक पदत्व दोष✓
- “वेद नखत ग्रह जोरि अरध करि सोइ बनत अब खात”-
(क) क्लिष्टत्व दोष✓
(ख) च्युतसंस्कृति दोष
(ग) न्यूनपदत्व दोष
(घ) अधिकपदत्व दोष
- “मृदुबानी मीठी लगे, बात कविन की उक्ति” –
(क) व्यवहृत दोष
(ख) अनवीकत दोष
(ग) पुनरुक्त दोष✓
(घ) संदिग्ध दोष
- “यदि मुझे बाँधना चाहें मन पहले लो बाँध अनंत गगन” –
(क) न्यूनपदत्व दोष✓
(ख) अधिकपदत्व दोष
(ग) अश्लीलत्व दोष
(घ) ग्राम्यत्व दोष
- ‘स्फोटवाद’ के प्रवर्तक माने जाते हैं –
(क) पाणिनी
(ख) पतंजलि
(ग) नागेश भट्ट
(घ) स्फोटायन✓
- ‘ध्वनि प्रतिष्ठापक परमाचार्य’ की उपाधि से विभूषित आचार्य हैं
(क) अभिनवगुप्त
(ख) विश्वनाथ
(ग) मम्मट✓
(घ) रुद्रट
- ‘ध्वनि’ शब्द का आदि स्त्रोत माना जाता है
(क) संस्कृत व्याकरण✓
(ख) ध्वन्यालोक
(ग) नाट्यशास्त्र
(घ) काव्यालंकार
- ‘ध्वनि सिद्धान्त’ को स्थिर करने वाले आचार्य हैं –
(क) विश्वनाथ
(ख) जगन्नाथ
(ग) अभिनवगुप्त✓
(घ) अप्पयदीक्षित
- व्याकरण में ‘ध्वनि’ शब्द व्यंजक माना जाता है –
(क) व्यंजना का
(ख) स्फोट का✓
(ग) व्यंग्य का
(घ) भावित का
- ‘यत्रार्थः शब्दो वा तमर्थमुपसर्जनीकृतस्वार्थोः। व्यक्तः काव्य विशेषः स ध्वनिरिति सूरिभि कथितः ।।’ कथन है –
(क) जयदेव का
(ख) मम्मट का
(ग) जगन्नाथ का
(घ) आनन्दवर्धन का✓
- काव्यशास्त्र में ‘ध्वनि’ शब्द माना जाता है –
(क) व्यंजक
(ख) व्यंग्य
(ग) भावना
(घ) व्यंग्य-व्यंजक✓
- ‘भक्ति’ और ‘भावना’ शब्द क्रमशः व्यंजित और
व्यंजना का पर्याय हैं – किस आचार्य का कथन है?
(क) आनन्दवर्धन
(ख) विश्वनाथ
(ग) भरतमुनि✓
(घ) रुद्रट
- ‘आनन्दवर्धन’ ने किस शब्द के पर्याय के रूप में ‘ध्वनि’ को काव्य की आत्मा माना है?
(क) ध्वनति इति ध्वनि
(ख) ध्वन्येयः असौ ध्वनि
(ग) ध्वन्यते अस्मिन् इति ध्वनिः
(घ) ध्वन्यते यः असौ ध्वनिः✓
- “अभिधा उत्तम काव्य है, मध्य लक्षणा हीन। अधम व्यंजना रस विरस, उलटी कहत नवीन।” कथन है-
(क) मतिराम
(ख) चिन्तामणि
(ग) देव का✓
(घ) कुमारमणि
- ध्वनि के भेदों के आधार पर पंडितराज जगन्नाथ ने कितने प्रकार के काव्य माने हैं?
(क) तीन प्रकार के
(ख) सात प्रकार के
(ग) चार प्रकार के✓
(घ) नौ प्रकार के
- ध्वनि तत्त्व ‘अनुमान-प्रमाण’ के अंतर्गत अन्तर्भुक्त है, इस प्रकार का उल्लेख किस ग्रन्थ में मिलता है?
(क) काव्यप्रकाश
(ख) हृदय दर्पण
(ग) व्यक्तिविवेक✓
(घ) लोचनटीका
- ‘ध्वनि और उसकी विधायिका वृत्ति’ के प्रतिष्ठापक आचार्य माने जाते हैं –
(क) मम्मट✓
(ख) जगन्नाथ
(ग) अभिनव गुप्त
(घ) भोजराज
प्रश्न 270 से 273 के लिए निर्देश – अधोलिखित में ध्वनि विरोधी आचार्य कौन हैं –
- (क) रामचन्द्र-गुणचन्द्र
(ख) जगन्नाथ
(ग) महिमभट्ट✓
(घ) राजशेखर
- (क) रुय्यक
(ख) विश्वनाथ
(ग) भट्टशंकुक
(घ) कुन्तक✓
- (क) भट्टलोल्लट
(ख) भट्टनायक✓
(ग) अभिनवगुप्त
(घ) भामह
- (क) प्रतिहारेन्दुराज
(ख) भोजराज✓
(ग) विश्वनाथ
(घ) वामन
- ‘व्यंग्यार्थ’ वाच्यार्थ एवं लक्ष्यार्थ से भिन्न होता है, कथन है –
(क) ध्वनिवादियों का✓
(ख) रीतिवादियों का
(ग) रसवादियों का
(घ) वक्रोक्तिवादियों का
- “व्यंजित भावों के साथ पाठकों की सहजानुभूति या साधारणीकरण रस की पूर्ण अनुभूति के लिए आवश्यक है।” कथन है
(क) डॉ. नगेन्द्र
(ख) रामचन्द्र शुक्ल✓
(ग) जयशंकर प्रसाद
(घ) नन्ददुलारे वाजपेयी
- “प्रसिद्ध एवं परम्परा से प्राप्त काव्य प्रकार से भिन्न किसी नवीन मार्ग की अवतारणा से काव्यत्व की हानि होती है” मत है –
(क) अभाववादियों का
(ख) व्यंजनावादियों का✓
(ग) लक्षणावादियों का
(घ) ध्वनिवादियों का
- काव्यशास्त्रीय दृष्टि से ‘ध्वनि तत्त्व’ के प्रमुख भेद होते हैं-
(क) पाँच भेद
(ख) तीन भेद
(ग) दो भेद✓
(घ) सात भेद
- अधोलिखित में आनन्दवर्धन से पूर्व ध्वनि विरोधी मत कौन नहीं था?
(क) अभाववादी
(ख) व्यंजनावादी✓
(ग) लक्षणावादी
(घ) अनिर्वचनीयतावादी
- ‘संलक्ष्य ध्वनि’ का भेद कौन है?
(क) वस्तुध्वनि✓
(ख) रस ध्वनि
(ग) अर्थान्तर संक्रमित वाच्य ध्वनि
(घ) अत्यन्त तिरस्कृत वाच्य ध्वनि
- ‘असंलक्ष्य क्रम ध्वनि’ का भेद नहीं है
(क) वस्तुध्वनि✓
(ख) रसाभास
(ग) भावशान्ति
(घ) भावसबलता
- “सेना छिन्न प्रयत्न भिन्न कर, या मुराद मन चाही।
कैसे पूँजूँ गुमराही को, मैं हूँ एक सिपाही।” उदाहरण है-
(क) अर्थान्तरसंक्रमितवाच्य ध्वनि✓
(ख) अत्यन्ततिरस्कृत वाच्य ध्वनि
(ग) संलक्ष्यक्रमव्यंग्य ध्वनि
(घ) असंलक्ष्यक्रमव्यंग्य ध्वनि
- “दियो अरघ नीचे चलो, संकट भानै जाइ।
सुचती हैं और सबै, सहिहिं विलोकै आइ॥”
उदाहरण है –
(क) वस्तुध्वनि
(ख) अलंकार ध्वनि✓
(ग) रसध्वनि
(घ) भावाभास
- “उदित उदय गिरि मंच पर, रघुवर बाल पतंग।
विकसे संत सरोज सब, हरषै लोचन श्रृंग।।”
उदाहरण है –
(क) उत्तम काव्य✓
(ख) चित्रकाव्य
(ग) मध्यम काव्य
(घ) भावसंधि
- “एक पल मेरी प्रिया के दृग-पलक, थे उठे ऊपर सहज नीचे गिरे। चपलता ने इस विकम्पित पुलक से, दृढ़ किया मानो प्रणय-संबंध था।” उदाहरण है –
(क) रसध्वनि✓
(ख) भावोदय
(ग) अलंकार ध्वनि
(घ) वस्तु ध्वनि
- “थके नयन रघुपति छवि देखी। पलकनिहूँ परिहरि निमेखी। अधिक सनेह देह भई भोरी। सरद ससिहिं जनु चितव चकोरी।” उदाहरण है –
(क) अस्फुट व्यंग्य
(ख) तुल्यप्रधान व्यंग्यध्वनि
(ग) असुंदर व्यंग्य
(घ) संदिग्धप्रधान व्यंग्य ध्वनि✓
- “सपनों है संसार यह – रहस न जाने कोय। जिन पिय मनमानी करौ, काल कहाँ धौ होय।” उदाहरण है –
(क) उत्तम काव्य
(ख) गुणीभूत व्यंग्यकाव्य✓
(ग) अधमकाव्य
(घ) चित्रकाव्य
- “आह! कितना सकरुण मुख था आर्द्र, सरोज अरुण मुख था” उदाहरण है –
(क) भावशांति✓
(ख) भावोदय
(ग) भावशबलता
(घ) भावसंधि
- अधोलिखित उदाहरणों में ‘असंलक्ष्य व्यंग्य ध्वनि’ बताइए “काग के भाग बड़ो सजनी हरि-हाथ लै गयो माखन रोटी”-
(क) ध्वनिकाव्य✓
(ख) अधमकाव्य
(ग) मध्यमकाव्य
(घ) दृश्य काव्य
- “नदी उमगि अंबुधि कहुँधाई। संगम करे तलाब तलाई।”
(क) रसाभास✓
(ख) भावाभास
(ग) भावसन्धि
(घ) भावोदय
- ‘पर्वत सुता न चली न ठहरी, हुई चित्र लेखा सी भ्रान्त’-
(क) भावसन्धि✓
(ख) भावशबलता
(ग) रसाभास
(घ) भावोदय
- ‘हुमकि लात ताकि कूबर मारा’ –
(क) भावोदय
(ख) रसाभास
(ग) भावशांति
(घ) भावाभास✓
- “विहग समान यदि अम्ब पंख पाता मैं, एक ही उड़ान में तो ऊँचे चढ़ जाता मैं। किन्तु बिना पंखों के विचार सब रीते हैं, हाय! पक्षियों से भी मनुष्य गये बीते हैं।”
(क) भावसन्धि
(ख) भावशबलता
(ग) भावोदय✓
(घ) भावाभाव
- “भामिनि अजहूँ न तजसि तै, रिस उनई धनँपति गयो सुतनु-दृग कोन रंग सुनि प्रिय बच इति भाँति ॥”
(क) भावोदय
(ख) भावशबलता
(ग) भावसंधि
(घ) भावशान्ति✓
- शब्द या समूह में अकथित अर्थ को प्रकट करने वाली शक्ति है –
(क) अलंकारशक्ति
(ख) रसशक्ति
(ग) शब्दशक्ति✓
(घ) ध्वनिशक्ति
- अभिधापुच्छभूता नाम है-
(क) रूढ़ि-लक्षणा✓
(ख) प्रयोजनवती-लक्षणा
(ग) शुद्धा-लक्षणा
(घ) गौणी-लक्षणा
- ‘लक्ष्यार्थ’ पर आधारित ‘शब्दशक्ति’ का नाम है –
(क) लक्षणा✓
(ख) अभिधा
(ग) व्यंजना
(घ) तात्पर्या
- मुख्यार्थ और लक्ष्यार्थ के तादात्म्य की दृष्टि से लक्षणा शब्द शक्ति के भेद माने जाते हैं –
(क) सारोपा-साध्यावसाना ✓
(ख) उपादान लक्षणा
(ग) लक्षण लक्षणा
(घ) गौणी लक्षणा
- आर्थी व्यंजना के कितने भेद होते हैं?
(क) पाँच भेद
(ख) चार भेद
(ग) छः भेद
(घ) तीन भेद✓
- “साक्षात् संकेतितमयोऽर्थम् अभिधत्ते स वाचकः”
कथन है-
(क) भरत
(ख) भामह
(ग) वामन
(घ) मम्मट✓
- ‘शब्द एवं अर्थ’ दोनों पर आधारित ‘शब्द शक्ति’
कहलाती है
(क) अभिधा
(ख) लक्षणा
(ग) व्यंजना✓
(घ) तात्पर्या
प्रश्न संख्या 1 से 100 तक | प्रश्न संख्या 101 से 200 तक |
प्रश्न संख्या 201 से 300 तक | प्रश्न संख्या 301 से 400+ तक |