Hindi Kavyashastra – Bhartiy Kavyshastra – MCQ- Objective Questions With Answer PDF Notes हिंदी काव्यशास्त्र, हिंदी (वस्तुनिष्ठ प्रश्न) भारतीय काव्यशास्त्र बहुविकल्पीय प्रश्न.
Hindi Kavyashastra – Bhartiy Kavyshastra – MCQ- Objective Questions With Answer PDF Notes भारतीय काव्यशास्त्र बहुविकल्पीय प्रश्न- UP TGT/PGT,GIC,NET/ JRF, Assistent Professor UPPSC JPPSC- यूपी टीजीटी पीजीटी हिंदी सिलेबस | UP TGT PGT Hindi Syllabus · हिन्दी साहित्य.[हिन्दी] भारतीय काव्यशास्त्र MCQ [Free Hindi PDF].भारतीय काव्यशास्त्र MCQ Quiz in हिन्दी EMRS TGT EMRS PGT SSC MTS & Havaldar Bihar Secondary Teacher Bihar TGT PGT.
भारतीय काव्यशास्त्र बहुविकल्पीय प्रश्न (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
काव्य शास्त्र (बहुविकल्पीय प्रश्न)
- ‘लक्षण-लक्षणा’ का दूसरा नाम है –
(क) जहस्त्वार्था✓
(ख) अजहस्त्वार्था
(ग) गौणी लक्षणा
(घ) शुद्धा लक्षणा
- आरोप एवं आरोप्यमाण कथनों द्वारा लक्ष्यार्थ की प्रतीति किस शब्द शक्ति द्वारा होती है?
(क) सारोपागौणी लक्षणा✓
(ख) रूढ़ि-लक्षणा
(ग) उपादान लक्षणा
(घ) प्रयोजनवती लक्षणा
- मुख्यार्थ सम्बन्ध की दृष्टि से लक्षणा के भेद माने जाते हैं-
(क) रूढ़ा-प्रयोजनवती
(ख) सारोपा साध्यावसाना
(ग) गौणी लक्षणा-शुद्ध लक्षणा✓
(घ) उपादान लक्षणा
- “मुख्यार्थ बाधे तद्योगे रूढ़ितोऽथ प्रयोजनात्। अन्योऽर्थो लक्ष्यते यत् सा लक्षणारोपिता क्रिया।” कथन किस ग्रन्थ से उद्भुत है?
(क) साहित्यदर्पण
(ख) काव्यालंकार
(ग) काव्यमीमांसा
(घ) काव्यप्रकाश✓
- लक्ष्यार्थ के वृत्त में मुख्यार्थ के ग्रहण और अग्रहण की दृष्टि से लक्षणा शब्द शक्ति के भेद हैं –
(क) रूढ़ा प्रयोजनवती✓
(ख) उपादान-लक्षण-लक्षणा
(ग) गौणी लक्षणा
(घ) शुद्धा लक्षणा
- “लाल तिहारे दृगन की, परी दृगन की छाँह।” में शब्द शक्ति है-
(क) अभिधा
(ख) लक्षणा
(ग) व्यंजना✓
(घ) तात्पर्या
- “मैं जो नया ग्रन्थ विलोकता हूँ” में शब्द शक्ति है-
(क) अभिधा✓
(ख) लक्षणा
(ग) व्यंजना
(घ) तात्पर्या
प्रश्न संख्या 308-314 के लिए निर्देश – निम्न में शब्द शक्ति बताइए–
- ‘अनियारे दीरघ नयनि किती न तरूनि समान’ –
(क) अभिधा
(ख) लक्षणा✓
(ग) व्यंजना
(घ) तात्पर्या
- “गिरा अलिनि मुख पंकज रोकी ” –
(क) अभिधा
(ख) लक्षणा✓
(ग) व्यंजना
(घ) तात्पर्या
- “सिंधु सेज पर धरा वधू, अब तनिक संकुचित बैठी सी”-
(क) अभिधा
(ख) लक्षणा✓
(ग) व्यंजना
(घ) तात्पर्या
- “उर में माखन चोर गड़े, अब कैसे निकसत सुन ऊधौ”-
(क) अभिधा
(ख) लक्षणा
(ग) व्यंजना✓
(घ) तात्पर्या
- ‘नारी तुम केवल श्रद्धा हो’ –
(क) अभिधा
(ख) लक्षणा
(ग) व्यंजना✓
(घ) तात्पर्या
- “आये जोग सिखावन पाँडे, परमारथी पुराननि लादे ज्यों वन जारे ठाढ़े”-
(क) अभिधा
(ख) लक्षणा
(ग) व्यंजना✓
(घ) तात्पर्या
- “बाड़व ज्वाला सोती थी, इस प्रणय सिन्धु के तल में” –
(क) अभिधा
(ख) लक्षणा✓
(ग) व्यंजना
(घ) तात्पर्या
- ‘वक्रोक्ति पद’ का प्रथम प्रयोग करने वाले आचार्य हैं-
(क) भरतमुनि
(ख) भामह✓
(ग) कुन्तक
(घ) रुद्रट
- “हाय! मिलेगा मिट्टी में वह सुवर्ण खरा। सूख जाएगा मेरा उपवन जो है आज हरा।।” उदाहरण है
(क) प्रबन्ध वक्रता का
(ख) वर्णविन्यास वक्रता का
(ग) पदपरार्द्धवक्रता का✓
(घ) वाक्यवक्रता का
- आधुनिक युग में वक्रोक्ति की ‘भारतीय साहित्यशास्त्र’ नामक ग्रन्थ में पुनः प्रतिष्ठा करने वाले विद्वान् हैं
(क) श्यामसुन्दर दास
(ख) निर्मला जैन
(ग) सत्यव्रत चौधरी
(घ) डॉ. बलदेव उपाध्याय✓
- “नया-नया उत्साह कार्य में उसे रहता था” उदाहरण है
(क) पर्याय वक्रता
(ख) वर्णविन्यास वक्रता✓
(ग) प्रकरण वक्रता
(घ) प्रबन्ध वक्रता
- “सादृश्य लक्षणा वक्रोक्तिः” कथन है –
(क) वामन✓
(ख) भामह
(ग) कुन्तक
(घ) जयदेव
- ‘हे लाज भरे सौन्दर्य क्यों?’ उदाहरण है – बता दो, मौन बने रहते हो
(क) पर्यायवक्रता
(ख) उपचार वक्रता✓
(ग) रूढ़िवक्रता
(घ) संवृत्तिवक्रता
- “क्रोचे’ का ‘अभिव्यंजनावाद’ कुन्तक के ‘वक्रोक्तिवाद’ का विलायती उत्थान है” कथन है-
(क) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल✓
(ख) डॉ. नगेन्द्र
(ग) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(घ) महावीर प्रसाद द्विवेदी
- वक्रोक्ति, रसोक्ति, स्वभावोक्ति भाव को तीन वर्गों में विभाजित करने वाले आचार्य हैं –
(क) दण्डी
(ख) राजशेखर
(ग) मम्मट
(घ) भोजराज✓
- “केशव सूधी बात में बरनत टेढ़ो भाव। वक्रोक्ति तासों कहत, सदा सबै कविराय॥” कथन है-
(क) चिन्तामणि
(ख) केशवदास✓
(ग) मतिराम
(घ) घनानन्द
- ‘वक्रोक्तिः वैदग्ध्यभंगी भणिति’ कथन है –
(क) कुन्तक✓
(ख) भोजराज
(ग) विश्वनाथ
(घ) जगन्नाथ
- “नैसर्गिकी च प्रतिभा श्रुतं च बहु निर्मलम्” किस आचार्य का कथन है?
(क) दण्डी✓
(ख) भामह
(ग) उद्भट
(घ) रुद्रट
- “सत्वोद्रेकादखण्डस्वप्रकाशानन्दचिन्मयः।
वेद्यान्तरस्पर्शशून्यो ब्रह्मस्वाद सहोदरः।” कथन किस
आचार्य का है?
(क) विश्वनाथ का✓
(ख) भट्टनायक का
(ग) अभिनवगुप्त का
(घ) मम्मट का
- “प्रेयः प्रियतराख्यानं रसवद् रसपेशलम्” किस ग्रन्थ में उल्लिखित है?
(क) काव्यादर्श✓
(ख) काव्यालंकारसूत्रवृत्ति
(ग) नाट्यचंद्रिका
(घ) काव्यालंकार
- “उद्दीपनविभावास्ते रसमुदीपयन्ति ये” – किस ग्रन्थ में उल्लिखित है?
(क) काव्यामीमांसा
(ख) काव्यालंकार
(ग) साहित्यदर्पण✓
(घ) काव्यादर्श
- “औचित्यं रससिद्धस्य स्थिरं काव्यस्य जीवितम्” कथन है –
(क) क्षेमेन्द्र का✓
(ख) भामह का
(ग) वामन का
(घ) भोजराज का
- “उचितस्य भावः औचित्यम्” का सम्बन्ध है –
(क) रस-सम्प्रदाय
(ख) वक्रोक्ति-सम्प्रदाय
(ग) ध्वनि-सम्प्रदाय
(घ) औचित्य-सम्प्रदाय✓
- ‘औचित्य’ शब्द का प्रथम काव्यशास्त्रीय प्रयोग करने वाले प्रथम आचार्य हैं –
(क) रुद्रट
(ख) आनन्दवर्धन
(ग) भट्टनायक
(घ) क्षेमेन्द्र✓
- समालोचना की विधा ‘काव्य शास्त्र’ का नामकरण किस विद्वान् द्वारा दिया गया?
(क) राजशेखर द्वारा
(ख) भोजराज द्वारा✓
(ग) रुय्यक द्वारा
(घ) विश्वनाथ द्वारा
- समालोचना की विधा काव्यशास्त्र के नामकरण का सही क्रम है –
(क) काव्यशास्त्र, अलंकारशास्त्र, क्रियाकल्प, साहित्यशास्त्र, सौन्दर्यशास्त्र
(ख) साहित्यशास्त्र, काव्यशास्त्र, अलंकारशास्त्र, क्रियाकल्प, सौन्दर्यशास्त्र
(ग) क्रियाकल्प, काव्यशास्त्र, अलंकारशास्त्र, साहित्यशास्त्र, सौन्दर्यशास्त्र
(घ) अलंकारशास्त्र, सौन्दर्यशास्त्र, क्रियाकल्प, साहित्यशास्त्र, काव्यशास्त्र✓
निम्नलिखित ( 334-339) सम्प्रदाय–प्रवर्तकों के नाम बताइए–
- ‘रस-सम्प्रदाय’ –
(क) भरतमुनि✓
(ख) भामह
(ग) वामन
(घ) दण्डी
- ‘अलंकार-सम्प्रदाय’ –
(क) दण्डी
(ख) जगन्नाथ
(ग) भामह✓
(घ) रुद्रट
- ‘रीति-सम्प्रदाय’ –
(क) भामह
(ख) वामन✓
(ग) रुद्रट
(घ) विश्वनाथ
- ‘ध्वनि-सम्प्रदाय’
(क) आनन्दवर्धन✓
(ख) जगन्नाथ
(ग) विश्वनाथ
(घ) अभिनवगुप्त
- ‘वक्रोक्ति-सम्प्रदाय’ –
(क) क्षेमेन्द्र
(ख) राजशेखर
(ग) मम्मट
(घ) कुन्तक✓
- ‘औचित्य-सम्प्रदाय’ –
(क) क्षेमेन्द्र✓
(ख) कुन्तक
(ग) भामह
(घ) भरत
प्रश्न संख्या 340 से 372 के लिए निर्देश अधोलिखित ग्रन्थों के प्रणेताओं का नाम बताइए
- ‘नाट्यशास्त्र‘ –
(क) भामह
(ख) भरत✓
(ग) राजशेखर
(घ) विश्वनाथ
- ‘अभिनवभारती‘
(क) आनन्दवर्धन
(ख) अभिनवगुप्त✓
(ग) रुद्रभट्ट
(घ) रुय्यक
- ‘ध्वन्यालोकलोचन’ –
(क) रुय्यक
(ख) महिम भट्ट
(ग) आनन्दवर्धन
(घ) अभिनवगुप्त✓
- ‘काव्यालंकार’ –
(क) भरत
(ख) रूपगोस्वामी
(ग) देव
(घ) भामह✓
- ‘काव्यालंकारसारसंग्रह’ –
(क) भामह
(ख) रुद्रट
(ग) उद्भट✓
(घ) वामन
- ‘काव्यालंकारसूत्रवृत्ति’
(क) वामन✓
(ख) रामचन्द्र-गुणचन्द्र
(ग) रुद्रट
(घ) रुय्यक
- ‘काव्यादर्श‘
(क) भामह
(ख) दण्डी✓
(ग) आनन्दवर्धन
(घ) राजशेखर
- ‘काव्यमीमांसा’ –
(क) राजशेखर✓
(ख) मम्मट
(ग) विश्वनाथ
(घ) जगन्नाथ
- ‘हृदयदर्पण‘
(क) भट्टलोल्लट
(ख) भट्टशंकुक
(ग) भट्टनायक✓
(घ) महिमभट्ट
- ‘काव्यकल्पलता’
(क) देवेश्वर
(ख) हेमचन्द्र
(ग) विश्वनाथ✓
(घ) अमरचन्द्र-आरिसिंह
- ‘काव्यप्रकाश’ –
(क) जगन्नाथ
(ख) रुय्यक
(ग) मम्मट✓
(घ) देव
- ‘सरस्वतीकण्ठाभरण’ –
(क) भट्टनायक
(ख) भरत
(ग) भोजराज✓
(घ) रुद्रभट्ट
- ‘दशरूपक‘
(क) अभिनवगुप्त
(ख) भरतमुनि
(ग) धनंजय✓
(घ) सागरनन्दी
- ‘व्यक्तिविवेक‘
(क) कुन्तक
(ख) महिमभट्ट✓
(ग) राजशेखर
(घ) जगन्नाथ
- ‘साहित्यमीमांसा’
(क) राजशेखर✓
(ख) विश्वनाथ
(ग) रूपगोस्वामी
(घ) रुय्यक
- ‘वक्रोक्तिजीवितम्’ –
(क) कुन्तक✓
(ख) महिमभट्ट
(ग) भट्टलोल्लट
(घ) भट्टशंकुक
- ‘औचित्यविचारचर्चा’
(क) क्षेमेन्द्र✓
(ख) राजशेखर
(ग) वामन
(घ) आनन्दवर्धन
- ‘चन्द्रालोक’.
(क) भोजराज
(ख) जयदेव✓
(ग) रुद्रभट्ट
(घ) वाग्भट्ट द्वितीय
- ‘अलंकारसर्वस्व‘
(क) विश्वनाथ
(ख) रुय्यक✓
(ग) विश्वेश्वर
(घ) रुद्रभट्ट
- ‘देशीनाममाला’ –
(क) हेमचन्द्र✓
(ख) देवेश्वर
(ग) विश्वेश्वर
(घ) राजशेखर
- ‘श्रृंगारप्रकाश’ –
(क) भोजराज✓
(ख) महिमभट्ट
(ग) कुन्तक
(घ) क्षेमेन्द्र
- ‘शब्दानुशासन’ –
(क) किशोरीदास वाजपेयी
(ख) हेमचन्द्र✓
(ग) वाग्भट्ट प्रथम
(घ) सागरनन्दी
- ‘उज्ज्वलनीलमणि’ –
(क) भानुदत्त मिश्र
(ख) रूपगोस्वामी✓
(ग) विश्वेश्वर
(घ) जगन्नाथ
- “रसगंगाधर” –
(क) आशानन्द
(ख) जगन्नाथ✓
(ग) मम्मट
(घ) रूपगोस्वामी
- ‘एकावली’
(क) विद्यानाथ
(ख) विद्याधर✓
(ग) विद्याभूषण
(घ) भिखारीदास
- छन्दोविरचिति’ –
(क) भामह
(ख) रुद्रट✓
(ग) वामन
(घ) दण्डी
- ‘नाट्यदर्पण’
(क) रूपगोस्वामी
(ख) रामचन्द्र-गुणचन्द्र✓
(ग) आरिसिंह-अमरचन्द्र
(घ) देवेश्वर
- ‘चित्रमीमांसा खण्डन’ –
(क) जगन्नाथ✓
(ख) भामह
(ग) भरत
(घ) अप्पय दीक्षित
- ‘साहित्यदर्पण’
(क) विश्वनाथ✓
(ख) मम्मट
(ग) जगन्नाथ
(घ) केशव मिश्र
- ‘नाट्यचन्द्रिका’
(क) रूप गोस्वामी
(ख) मम्मट✓
(ग) केशवमिश्र
(घ) जगन्नाथ
- ‘कुवलयानंद’
(क) विश्वनाथ
(ख) राजशेखर
(ग) जगन्नाथ
(घ) अप्पयदीक्षित✓
- ‘भक्तिरसामृतसिन्धु’ –
(क) रामचन्द्र-गुणचंद्र
(ख) आरिसिंह-अमरचन्द्र
(ग) देवेश्वर
(घ) रूपगोस्वामी✓
- ‘चित्रमीमांसा’ –
(क) अप्पयदीक्षित✓
(ख) कर्णपूर
(ग) कविचन्द्र
(घ) केशव मिश्र
- ‘रीतिपद’ के लिए ‘वर्म’ शब्द का प्रयोग करने वाले आचार्य हैं –
(क) दण्डी✓
(ख) राजशेखर
(ग) आनन्दवर्धन
(घ) मम्मट
- ‘पंचम वेद’ किस काव्यशास्त्रीय ग्रन्थ को माना जाता है?
(क) काव्यालंकार सूत्रवृत्ति
(ख) काव्यप्रकाश
(ग) काव्यमीमांसा
(घ) नाट्यशास्त्र✓
- सर्वप्रथम काव्य के शरीर का स्वरूप निर्धारित करने वाले आचार्य हैं –
(क) रुद्रट
(ख) विश्वनाथ
(ग) मम्मट
(घ) भामह✓
- भरत का रस सूत्र ‘नाट्यशास्त्र’ के किस अध्याय में उल्लिखित है?
(क) तीसरे अध्याय में
(ख) पाँचवें अध्याय में
(ग) छठें अध्याय में✓
(घ) सातवें अध्याय में
- भरतमुनि के नाट्य शास्त्र पर लिखी गई सर्वाधिक प्रामाणिक टीका मानी जाती है
(क) अभिनव भारती✓
(ख) शृंगारतिलक
(ग) श्रृंगार प्रकाश
(घ) दशरूपक
- ‘काव्यदोषों’ की सर्वप्रथम वैज्ञानिक व्याख्या मिलती है-
(क) नाट्यशास्त्र में✓
(ख) काव्यालंकार में
(ग) काव्यालंकारसूत्रवृत्ति
(घ) साहित्यसर्वस्व में
- श्रृंगार रस को रसराज मानने वाले विद्वान् माने जाते हैं –
(क) भोजराज✓
(ख) विश्वनाथ
(ग) मम्मट
(घ) जगन्नाथ
- ‘नाट्यशास्त्र’ कितने अध्यायों में विभाजित है ?
(क) छत्तीस अध्याय में✓
(ख) बीस अध्याय में
(ग) चालीस अध्याय में
(घ) पचीस अध्याय में
- ‘काव्यादर्शकार’ आचार्य दण्डी का जन्म स्थान है
(क) उत्तर भारत
(ख) दक्षिण भारत✓
(ग) मध्य भारत
(घ) पश्चिम भारत
- ‘नाट्यदर्पण’ के रचयिता रामचन्द्र-गुणचन्द्र किस प्रदेश के निवासी थे?
(क) गुजरात के✓
(ख) कश्मीर के
(ग) उत्कट प्रदेश के
(घ) मगध प्रदेश के
- ‘जयदेव’ निवासी माने जाते हैं –
(क) बंग देश के✓
(ख) उत्कल प्रदेश
(ग) मध्य प्रदेश के
(घ) कश्मीर के
- काव्यशास्त्र की परम्परा में ‘काव्य की आत्मा’ का सर्वप्रथम अनुसंधान करने वाले आचार्य हैं –
(क) वामन✓
(ख) भामह
(ग) भरत
(घ) उद्भट
- मम्मट द्वारा निर्दिष्ट काव्य प्रयोजन में कौन-सा काव्य 110 प्रयोजन सम्मिलित नहीं है?
(क) यश की प्राप्ति
(ख) लौकिक व्यवहार का ज्ञान
(ग) अनिष्ट का निवारण
(घ) स्नेह की प्राप्ति✓
- ‘सादृश्य लक्षणा वक्रोक्तिः’ किस विद्वान् का कथन है?
(क) रुद्रट
(ख) जयदेव
(ग) वामन✓
(घ) जगन्नाथ
- पंडितराज जगन्नाथ के आश्रयदाता थे
(क) बाबर
(ख) हुमायूँ
(ग) अकबर
(घ) शाहजहाँ✓
- अलंकारों का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सर्वप्रथम वर्गीकरण करने वाले आचार्य हैं –
(क) उद्भट
(ख) रुद्रट✓
(ग) भोजराज
(घ) राजशेखर
- ‘रसमंजरी’ ग्रन्थ के प्रणेता माने जाते हैं –
(क) अप्पय दीक्षित
(ख) विश्वनाथ
(ग) जगन्नाथ
(घ) भानुदत्त मिश्र✓
- ‘ध्वन्यालोक’ की प्राचीनतम टीका मानी जाती है
(क) लोचनटीका✓
(ख) अभिनवटीका
(ग) शृंगारतिलक
(घ) काव्यालंकार
- ‘कुवलयानन्द’ ग्रन्थ किस विषय से संबंधित है?
(क) अलंकारों से✓
(ख) रसों से
(ग) छन्दों से
(घ) काव्यदोषों से
- ‘अभिधानवृत्ति मात्रिका’ ग्रन्थ संबंधित है?
(क) अलंकारों से
(ख) काव्यदोषों से
(ग) रसों से
(घ) शब्दशक्तियों से✓
- ग्यारहवें रस ‘भक्ति रस’ की परिकल्पना किस ग्रन्थ से की गयी है?
(क) उज्ज्वलनीलमणि
(ख) भक्तिरसामृतसिन्धु
(ग) नाट्य चंद्रिका✓
(घ) उज्ज्वल नीलमणि एवं भक्तिरसामृतसिन्धु दोनों में
- अधोलिखित में कौन आचार्य ध्वनि विरोधी नहीं है?
(क) महिमभट्ट
(ख) कुन्तक
(ग) भट्टनायक
(घ) मम्मट✓
- श्रव्य काव्य एवं दृश्य काव्य दोनों की समवेत समालोचना किस ग्रन्थ में मिलती है?
(क) साहित्य दर्पण✓
(ख) काव्य प्रकाश
(ग) चित्र मीमांसा
(घ) रसगंगाधर
- किस काव्यशास्त्री ने अपने ग्रन्थों में दार्शनिक विषयों का प्रचुर समन्वय किया है?
(क) भामह
(ख) अभिनवगुप्त✓
(ग) उद्भट
(घ) भरत
- कौन-सा रस सुखात्मक नहीं माना जाता है?
(क) श्रृंगार
(ख) हास्य
(ग) शान्त
(घ) रौद्र✓
- कविशिक्षा परक ग्रन्थों के प्रवर्तन करने वाले आचार्य माने जाते हैं –
(क) केशव मिश्र
(ख) रुद्रभट
(ग) मुकुलभट्ट
(घ) राजशेखर✓
- ‘भट्टनायक’ निवासी माने जाते हैं –
(क) दक्षिण भारत के
(ख) कश्मीर के✓
(ग) मध्य प्रदेश के
(घ) धार नगरी के
- ‘केवल मनोरंजन न कवि का कर्म होना चाहिए, उसमें उचित उपदेश का भी मर्म होना चाहिए।’ किस विद्वान् का काव्य प्रयोजन है?
(क) देव
(ख) भिखारीदास
(ग) मैथिलीशरण गुप्त✓
(घ) पद्माकर
- ‘काव्यं सद्यःपरिनिर्वृत्तये’ से तात्पर्य है –
(क) रसोत्पत्ति✓
(ख) अलंकारोत्पत्ति
(ग) छन्दोत्पत्ति
(घ) यशोत्पत्ति
- “हृदय को मुक्तावस्था में लाना” काव्य का मुख्य प्रयोजन मानने वाले विद्वान् हैं –
(क) डॉ. नगेन्द्र
(ख) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल✓
(ग) विश्वनाथ
(घ) जयदेव
- ‘व्युत्पत्ति’ काव्य हेतु को ‘निपुणता’ नाम देने वाले विद्वान् हैं-
(क) मम्मट✓
(ख) राजशेखर
(ग) विश्वनाथ
(घ) जयदेव
- सहजा, आहार्या और औपदेशिकी भेद हैं –
(क) कारयित्री प्रतिभा के✓
(ख) भावयित्री प्रतिभा के
(ग) व्युत्पत्ति के
(घ) अभ्यास के
- अधोलिखित में कौन-सा ‘काव्य हेतु’ नहीं माना जाता है?
(क) आहार्या✓
(ख) प्रतिभा
(ग) व्युत्पत्ति
(घ) अभ्यास
- भावयित्री प्रतिभा का सम्बन्ध माना जाता है-
(क) कवि से
(ख) सहृदय या पाठक से✓
(ग) दोनों से
(घ) दोनों से नहीं
- काव्य हेतु ‘प्रतिभा’ को दो वर्गों ‘कारयित्री एवं भावयित्री’ में विभक्त करने वाले आचार्य हैं –
(क) मम्मट
(ख) जयदेव
(ग) अभिनवगुप्त
(घ) राजशेखर ✓
प्रश्न संख्या 408 से 419 के लिए निर्देश अधो लिखित काव्य लक्षण कर्ताओं के नाम बताइए–
- अर्थोक्रियापेतम् काव्यम्’
(क) रुद्रट
(ख) उद्भट
(ग) भरत✓
(घ) मम्मट
- ‘शब्दार्थों सहितौ काव्यम्’
(क) वामन
(ख) रुद्रट
(ग) भरत
(घ) भामह✓
- ‘शरीरंतावदिष्टार्थव्यवच्छिन्ना पदावली’ –
(क) भामह
(ख) दण्डी✓
(ग) भरत
(घ) वामन
- ‘तदोषौ शब्दार्थों सगुणावनलंकृति पुनः क्वापि’ –
(क) मम्मट✓
(ख) विश्वनाथ
(ग) उद्भट
(घ) राजशेखर
- ‘वाक्यं रसात्मकं काव्यम्’
(क) विश्वनाथ✓
(ख) जगन्नाथ
(ग) उद्भट
(घ) रुद्रट
- ‘रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्’ –
(क) राजशेखर
(ख) मम्मट
(ग) जगन्नाथ✓
(घ) विश्वनाथ
- ‘ननु शब्दार्थों काव्यम्’ –
(क) उद्भट
(ख) भामह
(ग) जगन्नाथ
(घ) रुद्रट✓
- ‘इह विशिष्ट शब्दार्थों काव्यम्’
(क) रुद्रट✓
(ख) भिखारीदास
(ग) जगन्नाथ
(घ) उद्भट
- अदोषो सगुणौ सालङ्कारौच शब्दार्थों काव्यम् – –
(क) मम्मट
(ख) जयदेव
(ग) भोजराज
(घ) हेमचन्द्र✓
- ‘इष्टार्थव्यवछिन्ना पदावली’ –
(क) मम्मट
(ख) जगन्नाथ
(ग) विश्वनाथ
(घ) अग्निपुराणकार✓
- सहृदयहृदयाह्लादि शब्दार्थमत्वमेव काव्यलक्षणम्-
(क) आनन्दवर्धन✓
(ख) अभिनवगुप्त
(ग) मम्मट
(घ) उद्भट
- निर्दोषालक्षणवती सरीतिर्गुणभूषिता –
(क) मम्मट
(ख) कुन्तक
(ग) भोजराज
(घ) जयदेव✓
- ‘काव्य आत्मा की संकल्पनात्मक अनुभूति है’ किस विद्वान् का कथन है?
(क) डॉ. नगेन्द्र
(ख) बाबू गुलाब राय
(ग) जयशंकर प्रसाद✓
(घ) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
प्रश्न संख्या 1 से 100 तक | प्रश्न संख्या 101 से 200 तक |
प्रश्न संख्या 201 से 300 तक | प्रश्न संख्या 301 से 400+ तक |