Hindi Kavyashastra – Bhartiy Kavyshastra – MCQ- Objective Questions With Answer PDF Notes हिंदी काव्यशास्त्र, हिंदी (वस्तुनिष्ठ प्रश्न) भारतीय काव्यशास्त्र बहुविकल्पीय प्रश्न.
Hindi Kavyashastra – Bhartiy Kavyshastra – MCQ- Objective Questions With Answer PDF Notes भारतीय काव्यशास्त्र बहुविकल्पीय प्रश्न- UP TGT/PGT,GIC,NET/ JRF, Assistent Professor UPPSC JPPSC- यूपी टीजीटी पीजीटी हिंदी सिलेबस | UP TGT PGT Hindi Syllabus · हिन्दी साहित्य.[हिन्दी] भारतीय काव्यशास्त्र MCQ [Free Hindi PDF].भारतीय काव्यशास्त्र MCQ Quiz in हिन्दी EMRS TGT EMRS PGT SSC MTS & Havaldar Bihar Secondary Teacher Bihar TGT PGT.
भारतीय काव्यशास्त्र बहुविकल्पीय प्रश्न (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
काव्य शास्त्र (बहुविकल्पीय प्रश्न)
- ‘विप्रलम्भ श्रृंगार’ की कितनी दशाएँ मानी गयी हैं?
(क) पाँच दशाएँ
(ख) दस दशाएँ✓
(ग) दो दशाएँ
(घ) नौ दशाएँ
- ‘वीर रस’ का भेद नहीं है
(क) युद्धवीर
(ख) धर्मवीर
(ग) दानवीर
(घ) कर्मवीर✓
- ‘श्रृंगार रस’ का मित्र रस माना जाता है –
(क) करुण
(ख) रौद्र
(ग) वीभत्स
(घ) हास्य✓
- रस निष्पत्ति की प्रक्रिया में ‘विभावन और व्यंजना’ नामक व्यापारों की परिकल्पना करने वाले आचार्य हैं –
(क) भट्टनायक
(ख) अभिनवगुप्त✓
(ग) धनंजय
(घ) आनन्दवर्धन
- ‘रस निष्पत्ति’ की प्रक्रिया में ‘सत्वोद्रेक’ की परिकल्पना करने वाले विद्वान् हैं –
(क) जयदेव
(ख) भट्टनायक✓
(ग) अभिनव गुप्त
(घ) जयदेव
- ‘रसनिष्पत्ति’ की प्रक्रिया में ‘चर्वणा व्यापार’ की परिकल्पना करने वाले आचार्य हैं –
(क) अभिनव गुप्त✓
(ख) भट्टनायक
(ग) भट्टलोल्लट
(घ) भट्टशंकुक
- ‘न हि रसादृते कश्चिदर्थः प्रवर्तते’ कथन है –
(क) रुद्रट
(ख) भामह
(ग) भरत✓
(घ) विश्वनाथ
- ‘वात्सल्य रस’ की परिकल्पना करने वाले विद्वान् हैं-
(क) जगन्नाथ
(ख) भोजराज
(ग) अप्पय दीक्षित
(घ) विश्वनाथ✓
- ‘अष्टौनाट्यरसाः ‘ परिकल्पना है –
(क) वामन
(ख) भरतमुनि✓
(ग) मम्मट
(घ) जगन्नाथ
- भक्ति रस की परिकल्पना करने वाले विद्वान् हैं –
(क) हेमचन्द्र
(ख) रामचन्द्र-गुणचन्द्र
(ग) रूपगोस्वामी✓
(घ) भोजराज
- ‘निर्वेदः स्थायिभावोऽस्ति शान्तोऽपि नवमो रसः’ परिकल्पना है –
(क) मम्मट✓
(ख) राजशेखर
(ग) हेमचन्द्र
(घ) रुय्यक
- ‘रससूत्र’ की सर्वाधिक प्रामाणिक व्याख्या मानी जाती है-
(क) भट्टनायक की
(ख) भट्टलोल्लट की
(ग) अभिनव गुप्त की✓
(घ) भट्टशंकुक की
- ‘शान्त रस’ का स्थायी वाले आचार्य हैं – भाव ‘तन्मयवाद’ को मानने
(क) अभिनव गुप्त✓
(ख) भट्टनायक
(ग) भरतमुनि
(घ) भामह
- ‘संयोगात्’ पद का अर्थ है ‘व्यंग्य-व्यंजक’ किस विद्वान् का कथन है?
(क) भोजराज
(ख) अभिनव गुप्त✓
(ग) मम्मट
(घ) विश्वनाथ
- ‘रस निष्पत्ति’ की प्रक्रिया में ‘अभिधा, भावकत्व और भोजकत्व’ नामक व्यापारों की परिकल्पना करने वाले आचार्य हैं –
(क) भट्टनायक✓
(ख) अप्पय दीक्षित
(ग) जगन्नाथ
(घ) मम्मट
- ‘रस सूत्र’ की व्याख्या में किस आचार्य ने ‘शैव दर्शन’ की मान्यताओं को अपनाया है?
(क) अभिनव गुप्त ✓
(ख) भट्टनायक
(ग) भट्टशंकुक
(घ) भट्टलोल्लट
- ‘न्याय दर्शन’ के माध्यम से रस सूत्र की व्याख्या करने वाले आचार्य हैं –
(क) मम्मट
(ख) भट्टनायक
(ग) भट्टशंकुक✓
(घ) भोजराज
- ‘रस निष्पत्ति’ की प्रक्रिया में ‘साधारणीकरण’ की परिकल्पना करने वाले प्रथम आचार्य हैं –
(क) रुद्रट
(ख) भामह
(ग) भरतमुनि
(घ) भट्टनायक✓
- ‘रस निष्पत्ति’ की प्रक्रिया में ‘ब्रह्मस्वादसंविद’ की
परिकल्पना करने वाले प्रथम आचार्य हैं
(क) रुद्रभट्ट
(ख) राजशेखर
(ग) जयदेव
(घ) भट्टनायक✓
- ‘मीमांसा दर्शन’ के माध्यम से रस सूत्र की व्याख्या करने वाले आचार्य हैं –
(क) भट्टशंकुक
(ख) भट्टनायक
(ग) भट्टलोल्लट✓
(घ) अभिनव गुप्त
- ‘संयोगात्’ पद का अर्थ है ‘भोज्य-भोजक’ किस आचार्य का कथन है?
(क) भट्टनायक✓
(ख) भट्टलोल्लट
(ग) अभिनव गुप्त
(घ) जगन्नाथ
- ‘चित्रतुरंगन्याय’ का दृष्टान्त देने वाले आचार्य हैं
(क) भट्टनायक
(ख) भट्टशंकुक✓
(ग) भट्टलोल्लट
(घ) अभिनव गुप्त
- ‘सांख्य दर्शन के माध्यम से रस सूत्र की व्याख्या करने वाले आचार्य हैं –
(क) भट्टलोल्लट
(ख) अभिनव गुप्त
(ग) भट्टनायक✓
(घ) भट्टशंकुक
- ‘रसनिष्पत्ति’ का अर्थ ‘अभिव्यक्ति है’ किस आचार्य का कथन है?
(क) मम्मट
(ख) विश्वनाथ
(ग) अभिनव गुप्त✓
(घ) भोजराज
- ‘रसनिष्पत्ति’ की प्रक्रिया में ‘निर्विघ्न संविद्विश्रान्ति’ का उल्लेख करने वाले आचार्य हैं –
(क) भट्टनायक✓
(ख) भट्टलोल्लट
(ग) अभिनव गुप्त
(घ) जगन्नाथ
- ‘सामाजिक या सहृदय’ को रस का प्रत्यक्ष भोक्ता किस आचार्य ने सर्वप्रथम माना?
(क) भट्टनायक✓
(ख) राजशेखर
(ग) विश्वनाथ
(घ) अभिनव गुप्त
- ‘संयोगात्’ पद का अर्थ है – ‘अनुमाप्य-अनुमापक’ किस आचार्य का कथन है?
(क) भट्टशंकुक✓
(ख) भट्टनायक
(ग) अभिनव गुप्त
(घ) भट्टलोल्लट
- ‘उत्पत्तिवाद या आरोपवाद’ सिद्धान्त के प्रवर्तक माने जाते हैं-
(क) भट्टशंकुक
(ख) भट्टनायक
(ग) भामह
(घ) भट्टलोल्लट✓
- ‘संयोगात्’ पद का अर्थ है – ‘उत्पाद्य-उत्पादक’ किस आचार्य का कथन है?
(क) भट्टलोल्लट✓
(ख) भट्टशंकुक
(ग) भट्टनायक
(घ) अभिनव गुप्त
- भरतमुनि के नाट्यशास्त्र में किस अलंकार का उल्लेख नहीं है?
(क) उपमा
(ख) रूपक
(ग) यमक
(घ) अनुप्रास✓
- ‘सौन्दर्यमलंकारः ‘ किस आचार्य का कथन है?
(क) वामन✓
(ख) भोजराज
(ग) जगन्नाथ
(घ) विश्वनाथ
- ‘यत्नोऽस्यां कविना कार्यः कोऽलंकारोऽनया बिना’ किस ग्रन्थ में उल्लिखित है?
(क) काव्यालंकार✓
(ख) काव्यादर्श
(ग) साहित्यसर्वस्व
(घ) काव्यमीमांसा
- ‘न कान्तामपि निभूषं विभाति वनिताननम्’ किस आचार्य का कथन है?
(क) भरतमुनि
(ख) वामन
(ग) जगन्नाथ
(घ) भामह✓
- ‘अंगाश्रितास्त्वलंकारा मन्तव्याः कट्कादिवत्’ कथन है –
(क) विश्वनाथ
(ख) मम्मट✓
(ग) जयदेव
(घ) आनन्दवर्धन
- भारतीय काव्यशास्त्र की परम्परा में श्रव्यकाव्य परम्परा के प्रथम आचार्य हैं –
(क) आचार्य भामह✓
(ख) आचार्य दण्डी
(ग) आचार्य रुद्रट
(घ) आचार्य वामन
- ‘अभिधान प्रकार विशेषा एव चालंकाराः’ किस ग्रन्थ में उल्लिखित है?
(क) काव्यादर्श
(ख) काव्यालंकारसूत्रवृत्ति
(ग) काव्यालंकार✓
(घ) रस गंगाधर
- ‘जदपि सुजात सुलच्छनी, सुबरन सरस सुवृत्त। भूषण बिनु न विराजई, कविता वनिता मित्त ।।’ का उल्लेख किस ग्रन्थ में है –
(क) रसिकप्रिया
(ख) रसमीमांसा
(ग) काव्यादर्श✓
(घ) कविप्रिया
- ‘काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते’ कथन किस ग्रन्थ में उल्लिखित है?
(क) साहित्यदर्पण
(ख) काव्यप्रकाश
(ग) काव्यादर्श
(घ) साहित्यसर्वस्व✓
प्रश्न संख्या 139-191 के लिए निर्देश निम्नलिखित पंक्तियों में अलंकार बताइए –
- “पलकि पीक अंजन अधर, धरे महावर भाल। आज मिले सुभली करी, भले बने हो लाल॥”
(क) प्रतीप
(ख) कारणमाला
(ग) एकावली✓
(घ) असंगति
- “सूर-सूर तुलसी ससी उडगन केशवदास अब के कवि खद्योत सम जहँ तहँ करत प्रकाश।”
(क) यमक✓
(ख) उत्प्रेक्षा
(ग) पुनरुक्ति प्रकाश
(घ) दीपक
- “पाँचन के रंग सो रंगि जाति सी, भाँति ही भाँति सरस्वती सेनी”
(क) तद्गुण✓
(ख) व्यतिरेक
(ग) उत्प्रेक्षा
(घ) निदर्शन
- “कुमुदिनी प्रमुदित भई, साँझ कलानिधि जोय” –
(क) समासोक्ति✓
(ख) अन्योक्ति
(ग) विभावना
(घ) वक्रोक्ति
- “नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास इहिकाल। अलि-कली ही सों बिंध्यो, आगे कौन हवाल॥”
(क) वक्रोक्ति
(ख) अन्योक्ति✓
(ग) समासोक्ति
(घ) व्यतिरेक
- “बहुरि विचार कीन्ह मन माहीं, सिय बदन सम हिमकर नाहीं।”
(क) प्रतिवस्तूपमा
(ख) प्रतीप✓
(ग) असंगति
(घ) रूपक
- “बड़े न हूजो गुनन बिन, बिरद बड़ाइ पाय।
कहत धतूरे सों कनक, गहनो गढ़ो न जाय।”
(क) समासोक्ति
(ख) अर्थान्तर✓
(ग) विशेषोक्ति
(घ) दृष्टान्त
- “तू रूप है किरण में, सौन्दर्य है सुमन में। तू प्राण है पवन में, विस्तार है गगन में।”
(क) यथाक्रमसंख्या
(ख) सादृश्यनिबंधना
(ग) उल्लेख✓
(घ) एकावली
- “तुलसी पावस के समय, धरी कोकिलन मौन। अब तौ दादुर बोलिहैं, हमैं पूछिहैं कौन।।”
(क) अन्योक्ति✓
(ख) समासोक्ति
(ग) व्यतिरेक
(घ) विशेषोक्ति
- “यह प्रेम को पंथ कराल महा, तलवार की धार पै धावनो है” –
(क) निदर्शना✓
(ख) अर्थान्तर
(ग) उत्प्रेक्षा
(घ) उपमा
- ‘तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये’
(क) अनुप्रास✓
(ख) यमक
(ग) अन्योक्ति
(घ) श्लेष
- “फूल हँसे कलियाँ मुसकाई, जगी वनस्पतियाँ अलसाई, मुख धोती शीतल जल से”-
(क) मानवीकरण✓
(ख) उन्मीलित
(ग) एकावली
(घ) कारणमाला
- ‘तिनहिं सुहाय न नगर बधावा। चोरहि चाँदनी रात न भावा’-
(क) निदर्शना
(ख) असंगति
(ग) प्रतिवस्तूपमा✓
(घ) उदाहरण
- “चंपक हरवा गर मिलि, अधिक सुहाय। जानि परै सिय हियरै, जब कुंभिलाय।”
(क) मीलित
(ख) उन्मीलित✓
(ग) परिसंख्या
(घ) एकावली
- “जिय बिनु देह-नदी बिनु वारि। तैसहि नाथ पुरुष बिनु नारि॥”
(क) परिसंख्या
(ख) उन्मीलित
(ग) विनोक्ति✓
(घ) व्याज स्तुति
- “रावण सिर सरोज वन चारी । चलि रघुवीर सिलीमुख धारी॥”
(क) अभंग श्लेष
(ख) सभंग श्लेष✓
(ग) अनुप्रास
(घ) उत्प्रेक्षा
- ‘फूलहिं फलहिं न बेंत, जदपि सुधा बरसहिं जलद’ (क) विशेषोक्ति✓
(ख) व्यतिरेक
(ग) विभावना
(घ) प्रतीप
- “कपि करि हृदय विचार, दीन्ह मुद्रिका डारि तब। जनु अशोक अंगार, दीन्ह हरषि उठि कर गहेड” –
(क) भ्रान्तिमान✓
(ख) रूपक
(ग) उपमा
(घ) श्लेष
- “घिर रहे थे घुंघराले बाल, अंस अवलम्बित मुख के पास, नीले घनशावक से सुकुमार, सुधा भरने विधु के पास “-
(क) गम्योत्प्रेक्षा✓
(ख) हेतूत्प्रेक्षा
(ग) फलोत्प्रेक्षा
(घ) वस्तूत्प्रेक्षा
- “जो रहीम गति दीप कै, कुल कपूत कै सोई। बारे ते उजियारों करै, बढ़ो अँधेरो होई।”
(क) अनुप्रास
(ख) श्लेष✓
(ग) यमक
(घ) उत्प्रेक्षा
- ‘चारू चन्द्र की चंचल किरणें खेल रही हैं जल थल में’ –
(क) छेकानुप्रास
(ख) अन्त्यानुप्रास
(ग) लाटानुप्रास
(घ) वृत्यानुप्रास✓
- “नील सरोरुह नीलमणि नील नीर घन श्याम” –
(क) रसनोपमा
(ख) पूर्णोपमा
(ग) मालोपमा✓
(घ) लुप्तोपमा
- ‘मनहुँ मकर सुधारस, कीड़त आपु अनुरागत’ –
(क) उपमा
(ख) रूपक
(ग) संदेह
(घ) उत्प्रेक्षा✓
- ‘उधो जोग-जोग हम नाहीं’ –
(क) एकावली
(ख) विरोधाभास
(ग) श्लेष
(घ) यमक✓
- “राम नाम सुंदर करतारी। संसय विहग उड़ावन हारी”
(क) मालारूप परम्परित रूपक
(ख) साँगरूपक
(ग) एक देशविवर्ती साँगरूपक
(घ) केवल परम्परित रूपक✓
- “बाँधा था विधु को किसने इन काली जंजीरों से। मणि वाले फणियों का मुख-क्यों भरा हुआ हीरों से॥”
(क) चपलातिशयोक्ति
(ख) गम्योत्प्रेक्षा
(ग) हेतुत्प्रेक्षा
(घ) रूपकातिशयोक्ति✓
- ‘सेज नागिन फिरि-फिरि डसी’ –
(क) रूपक✓
(ख) उपमा
(ग) उत्प्रेक्षा
(घ) दीपक
- ‘सजल नीरद सी-कल कान्ति थी’ –
(क) उत्प्रेक्षा
(ख) रूपक
(ग) यमक
(घ) उपमा✓
- “मेरे मन के मीत मनोहर। तुम हो प्रियवर मेरे सहचर।”
(क) यमक
(ख) उपमा
(ग) श्लेष
(घ) अन्त्यानुप्रास✓
- ‘तुलसीदास सीदत निसिदिन देखकर तुम्हार निठुराई’-
(क) छेकानुप्रास
(ख) लाटानुप्रास
(ग) श्रुत्यानुप्रास✓
(घ) वृत्यानुप्रास
- “आये हो मधुमास, के प्रियतम ऐ नाहि। आये हो मधुमास, के प्रियतम ऐ नाहिं।”-
(क) छेकानुप्रास
(ख) लाटानुप्रास✓
(ग) वृत्यानुप्रास
(घ) अन्त्यानुप्रास
- ‘कबीरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर’ –
(क) यमक✓
(ख) अनुप्रास
(ग) श्लेष
(घ) उपमा
- ‘बीती विभावरी जाग री’ –
(क) रूपक✓
(ख) यमक
(ग) दीपक
(घ) विशेषोक्ति
- ‘जननी तू जननी भई, विधि सन कछु लखाय’ –
(क) छेकानुप्रास
(ख) लाटानुप्रास✓
(ग) वृत्यनुप्रास
(घ) वक्रोक्ति
- ‘नदियाँ जिनकी यशधारा सी बहती हैं, अब भी निशिवासर’-
(क) विभावना
(ख) अर्थान्तर
(ग) व्यतिरेक
(घ) उपमा✓
- ‘परिपूरण सिंदूर पूर कैधों मंगलघट’ –
(क) भ्रान्तिमान
(ख) संदेह✓
(ग) विभावना
(घ) विशेषोक्ति
- “विस्मृति का नील नलिन, रस बरसों अपांग के घन से”-
(क) श्लेष
(ख) वक्रोक्ति
(ग) अनुप्रास✓
(घ) यमक
- गुन गयै न गुन कटै –
(क) यमक✓
(ख) रूपक
(ग) उत्प्रेक्षा
(घ) विरोधाभास
- “रनित भृंग घंटावली, झरित दान मधुनीर” – –
(क) साँगरूपक✓
(ख) निरंगरूपक
(ग) परम्परित रूपक
(घ) हेतूत्प्रेक्षा
- “सुबरन को खोजत फिरत कवि, व्यभिचारी, चोर”-
(क) उत्प्रेक्षा
(ख) विशेषोक्ति
(ग) यमक
(घ) श्लेष✓
- “पतझड़ था झाड़ खड़े थे, सूखी सी फुलवारी में।
किसलय नव कुसुमविछाकर, आये तुम इस क्यारी में॥”
(क) रूपकातिशयोक्ति✓
(ख) भेदकातिशयोक्ति
(ग) चपलातिशयोक्ति
(घ) असंबन्धातिशयोक्ति
- “मैंनन की करि कोठरी, पुतली पलंग बिछाय” –
(क) उत्प्रेक्षा
(ख) रूपक✓
(ग) संदेह
(घ) उपमा
- ‘संत हृदय नवनीत समाना’
(क) उत्प्रेक्षा
(ख) अतिशयोक्ति
(ग) व्यतिरेक
(घ) उपमा✓
- ‘सन्धानेउ प्रभु विशिख कराला । उठी उद्धि उर अंतर ज्वाला।।’
(क) चपलातिशयोक्ति
(ख) अक्रमातिशयोक्ति✓
(ग) उपमा
(घ) उत्प्रेक्षा
- ‘पायो जी मैंने राम रतन धन पायों’
(क) उपमा
(ख) रूपक✓
(ग) प्रतीप
(घ) अत्युक्ति
- “लाज भरी अँखिया बिहँसी, अलि बोल कहे बिनु
उत्तर दीन्हीं” –
(क) विशेषोक्ति
(ख) रूपक
(ग) विभावना✓
(घ) अत्युक्ति
- ‘शिव शंकर हर भव भय मेरे’-
(क) वीप्सा अलंकार
(ख) पुनरुक्तिवदाभास अलंकार✓
(ग) सभंग श्लेष अलंकार
(घ) आदि यमक अलंकार
- “राम सप्रेम पुलकि उर लावा। परम रंक जनु पारस पावा।”-
(क) वस्तूत्प्रेक्षा
(ख) फलोत्प्रेक्षा
(ग) गम्योत्प्रेक्षा
(घ) हेतूत्प्रेक्षा✓
- “ओ चिन्ता की पहली रेखा, अरे विश्ववन की व्याली। ज्वाला मुखी स्फोट सी भीषण, प्रथम कम्प सी मतवाली॥”
(क) माला निरंग रूपक✓
(ख) परम्परित रूपक
(ग) एकदेश विवर्ती रूपक
(घ) शुद्धनिरंग रूपक
- “तरी को ले जाओ मझधार, डूबकर हो जाओ पार”-
(क) विशेषोक्ति
(ख) विभावना
(ग) विरोधाभास✓
(घ) अत्युक्ति
- “मैं सुकुमारि नाथ बन जोगू तुमहि उचित तप मोहि कहँ भोगू”-
(क) वक्रोक्ति✓
(ख) यमक
(ग) श्लेष
(घ) रूपक
- ‘साधू ऊँचे सैल सम, किन्तु प्रकृति सुकुमार’ –
(क) संदेह
(ख) भ्रान्तिमान
(ग) विरोधाभास✓
(घ) व्यतिरेक
- ‘तरुण अरुण वारिज नयन’ –
(क) मालोपमा
(ख) पूर्णोपमा
(ग) लुप्तोपमा✓
(घ) रसनोपमा
- ‘मधुमय वसन्त जीवन वन के’ यहाँ वसंत किसका प्रतीक है?
(क) माधुर्य
(ख) सौन्दर्य
(ग) यौवन✓
(घ) वृद्धावस्था
- छन्दों का सर्वप्रथम उल्लेख मिलता है –
(क) ऋग्वेद✓
(ख) उपनिषद्
(ग) सामवेद
(घ) यजुर्वेद
- शिल्पगत आधार पर दोहे से उल्टा छन्द है
(क) रोला
(ख) चौपाई
(ग) सोरठा✓
(घ) बरवै
- ‘छन्द’ के भेद माने जाते हैं –
(क) चार भेद
(ख) तीन भेद
(ग) दो भेद✓
(घ) नौ भेद
196, दोहा किस प्रकार का मात्रिक छन्द है
(क) सम
(ख) विषमं
(ग) अर्द्धसम✓
(घ) इनमें से कोई नहीं
- ‘त्यक्षरी सूत्र’ के निर्माता माने जाते हैं –
(क) पिंगल
(ख) भरत✓
(ग) भामह
(घ) वामन
- छन्दों के आदि प्रणेता माने जाते हैं –
(क) व्याडि
(ख) पतंजलि
(ग) पिंगल✓
(घ) हेमचन्द्र
- हिन्दी कविता में मुक्त छन्द रचना का सूत्रपात किया-
(क) जयशंकर प्रसाद
(ख) सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’✓
(ग) मैथिलीशरण गुप्त
(घ) हरिऔध
- ‘मात्रिक छन्द’ के कितने भेद माने जाते हैं?
(क) तीन भेद✓
(ख) पाँच भेद
(ग) सात भेद
(घ) दो भेद
प्रश्न संख्या 1 से 100 तक | प्रश्न संख्या 101 से 200 तक |
प्रश्न संख्या 201 से 300 तक | प्रश्न संख्या 301 से 400+ तक |