हिंदी के नए वर्ण- अनुस्वार और अनुनासिक, पंचमाक्षर और अनुस्वार- Hindi Ke Naye Varn Anuswar anunasij panchamkshar

Hindi Ke Naye Varn Anuswar anunasij panchamkshar – हिंदी के नए वर्ण-अनुस्वार और अनुनासिक, पंचमाक्षर और अनुस्वार

Hindi Ke Naye Varn Anuswar anunasij panchamkshar – हिंदी के नए वर्ण-अनुस्वार और अनुनासिक, पंचमाक्षर और अनुस्वार- Hindi Grammar Hindi Vyakaran. samanya hindi 

Hindi Ke Naye Varn Anuswar anunasij panchamkshar

हिंदी के नए वर्ण

हिंदी वर्णमाला में पाँच नए व्यंजन-क्ष, त्र, ज्ञ, ड़ और ढ़-जोड़े गए हैं। किंतु, इनमें प्रथम तीन स्वतंत्र न होकर संयुक्त व्यंजन हैं, जिनका खंड किया जा सकता है; जैसे— क् + ष = क्ष; त् + र = त्र; ज् + ञ = ज्ञ।

अतः, क्ष, त्र और ज्ञ की गिनती स्वतंत्र वर्णों में नहीं होती। ड और ढ के नीचे बिंदु लगाकर दो नए अक्षर ड़ और ढ़ बनाए गए हैं। ये संयुक्त व्यंजन हैं। यहाँ ड़ ढ़ में ‘र’ की ध्वनि मिली है। इनका उच्चारण साधारणतया मूर्द्धा से होता है। किंतु, कभी-कभी जीभ का अगला भाग उलटकर मूर्द्धा में लगाने से भी वे उच्चरित होते हैं। हिंदी में अरबी-फारसी की ध्वनियों को भी अपनाने की चेष्टा है।

व्यंजनों के नीचे बिंदु लगाकर इन नई विदेशी ध्वनियों को बनाए रखने की चेष्टा की गई है; जैसे-क़लम, खैर, ज़रूरत। किंतु, हिंदी के विद्वानों (पं॰ किशोरीदास वाजपेयी, पराड़करजी, टंडनजी), काशी नागरी प्रचारिणी सभा और हिंदी साहित्य सम्मेलन को यह स्वीकार नहीं है। इनका कहना है कि फारसी – अरबी से आए शब्दों के नीचे बिंदी लगाए बिना इन शब्दों को अपनी भाषा की प्रकृति के अनुरूप लिखा जाना चाहिए। बँगला और मराठी में भी ऐसा ही होता है।

अनुस्वार और अनुनासिक

अनुसार ( ं) और अनुनासिक ( ँ) हिंदी में अलग-अलग ध्वनियाँ हैं। इनके प्रयोग में सावधानी रखनी चाहिए।

अनुनासिक के उच्चारण में नाक से बहुत कम साँस निकलती है और मुँह से अधिक, जैसे—आँस, आँत, गाँव, चिड़ियाँ इत्यादि । पर, अनुस्वार के उच्चारण में नाक से अधिक साँस निकलती है और मुख से कम, जैसे- अंक, अंश, पंच, अंग इत्यादि ।

अनुनासिक स्वर की विशेषता है, अर्थात अनुनासिक स्वरों पर चंद्रबिंदु लगता है। लेकिन, अनुस्वार एक व्यंजन ध्वनि है। अनुस्वार की ध्वनि प्रकट करने के लिए वर्ण पर बिंदु लगाया जाता है। तत्सम शब्दों में अनुस्वार लगता है और उनके तद्भव रूपों में चंद्रबिंदु लगता है; जैसे – अंगुष्ठ से अँगूठा, दंत से दाँत, अंत्र से आँत ।

 पंचमाक्षर और अनुस्वार

हिंदी में अनुनासिक वर्णों की संख्या पाँच है—ङ, ञ, ण, न और म। ये पंचमाक्षर कहलाते हैं। संस्कृत के अनुसार शब्द का अंतिम अक्षर जिस वर्ग का हो, उसके पहले उसी वर्ग का पंचमाक्षर प्रयुक्त होता है। जैसे—

  • कवर्ग   –  अङ्क
  • चवर्ग  –    चञ्च
  • टवर्ग   –    खण्ड
  • तवर्ग   –    सन्धि
  • पवर्ग   –     दम्भ

किंतु, हिंदी के विद्वान उक्त नियम का पालन नहीं करते। डॉ॰ श्यामसुंदर दास और उनके सहयोगियों का कहना है कि सभी पंचमवर्णी व्यंजनों के स्थान पर अनुस्वार का ही प्रयोग होना चाहिए। लिखाई, छपाई और टंकन में अनुस्वार का प्रयोग सुविधाजनक है। इससे स्थान भी कम घिरेगा और लिखने में गति आएगी। हिंदी में उपर्युक्त पंचमाक्षरों का प्रयोग अब निम्नलिखित प्रकार से होता है— सन्धि- संधि, दम्भ – दंभ, अङ्ग –— अंग, खण्ड – खंड, चञ्च – चंचु ।

अनुस्वार पूर्ण अनुनासिक (nasal sound) ध्वनि है। इस ध्वनि के उच्चारण में मुँह बंद कर नाक से पूरी साँस ली जाती है; जैसे- कंबल, कंपन, खंडन, जंतु, हंस ।

आज स्थिति यह है कि शब्द चाहे तत्सम हो या तद्भव, देशज हो या विदेशज —- सभी स्थानों पर पंचमवर्णों तथा अनुनासिक ध्वनियों का प्रयोग वर्ण पर बिंदु ( ं) लगाकर किया जाता है; जैसे— पंप, कंकड़, रंगीन, संगीत। इस प्रकार, हिंदी ने पंचमवर्णी ध्वनियों के प्रयोग में संस्कृत से आजादी बरती है। इस दिशा में कहीं-कहीं अराजकता भी पाई जाती है। कहीं पंचमवर्णी का प्रयोग होता है, कहीं अनुस्वार का और कहीं दोनों का।

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