Keshavdas ji ka jivan parichy, jivani, and Rachnaaye केशवदास जी का जीवन परिचय, जीवनी,भाषा-शैली एवम् रचनाएँ (Biography of Keshavdas).
हेलो दोस्तों आज हम इस आर्टिकल में आप लोगों को हिंदी साहित्य के महान कवि केशवदास जी के जीवन परिचय और साहित्यिक परिचय के बारे में बतायेंगे और उनकी रचनाओं और भाषा शैली का ज्ञान प्राप्त करवायेंगे।Biography of, Keshavdas.kesavdas ji ka Jeevan Parichay (Biography) Sahityik Parichay of keshavdas.
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लेखक का संक्षिप्त जीवन परिचय (फ्लो चार्ट) |
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नाम | केशवदास। |
जन्म | संवत् 1612 वि० (सन् 1555 ई०)। |
जाति | ब्राह्मण। |
जन्म-स्थान | ओरछा (बुन्देलखण्ड)। |
पिता | काशीनाथ मिश्र। |
पितामह | कृष्णदत्त मित्र। |
प्रमुख भाषा | अज। |
मृत्यु | संवत् 1674 वि0 (सन् 1617 ई०)। |
जीवन परिचय
हिन्दी काव्य-जगत् में रीतिवादी परम्परा के संस्थापक, प्रचारक महाकवि केशवदास का जन्म मध्य भारत के ओरछा (बुन्देलखण्ड) राज्य में संवत् 1612 वि० (सन् 1555 ई०) में हुआ था। ये ब्राह्मण कृष्णदत्त के पोते तथा काशीनाथ के पुत्र थे। ‘विज्ञान गीता’ में वंश के मूल पुरुष का नाम वेदव्यास उल्लिखित है। ये भारद्वाज गोत्रीय मार्दनी शाखा के यजुर्वेदी मित्र उपाधि धारी ब्राह्मण थे। तत्कालीन जिन विशिष्ट जनों से इनका घनिष्ठ परिचय था उनके नाम हैं अकबर, बीरबल, टोडरमल और उदयपुर के राणा अमरसिंह। तुलसीदास जी से इनका साक्षात्कार महाराज इन्द्रजीत के साथ काशी-यात्रा के समय हुआ था।
ओरछाधिपति महाराज इन्द्रजीत सिंह इनके प्रधान आश्रयदाता थे, जिन्होंने 21 गाँव इन्हें भेंट में दिये थे। वीरसिंह देव का आश्रय भी इन्हें प्राप्त था। उच्चकोटि के रसिक होने पर भी ये पूरे आस्तिक थे। व्यवहारकुशल, वाग्विदग्ध, विनोदी, नीति-निपुण, निर्भीक एवं स्पष्टवादी केशव की प्रतिभा सर्वतोमुखी थी। साहित्य और संगीत, धर्मशास्त्र व राजनीति, ज्योतिष और वैद्यक सभी विषयों का इन्होंने गम्भीर अध्ययन किया था। ये संस्कृत के विद्वान् तथा अलंकारशास्त्री थे और इसी कारण हिन्दी काव्यक्षेत्र में अवतीर्ण होने पर स्वभावतः इन्होंने शास्वानुमोदित प्रथा पर ही साहित्य का प्रचार करना उचित समझा। हिन्दी साहित्य में ये प्रथम महाकवि हुए हैं जिन्होंने संस्कृत के आचर्यो की परम्परा का हिन्दी में सूत्रपात किया था।
संवत् 1674 वि० (सन् 1617 ई०) के लगभग इनका स्वर्गवास हुआ था।
साहित्यिक परिचय
केशवदास लगभग 16 ग्रंथो के रचयिता माने जाते हैं। उनमें से आठ ग्रन्थ असन्दिग्ध एवं प्रामाणिक हैं। इन आठ प्रामाणिक ग्रन्थों में से ‘रामचन्द्रिका’ भक्ति सम्बन्धी ग्रन्थ है, जिसमें केशव ने राम और सीता को अपना इष्टदेव माना है और राम-नाम की महिमा का गुणगान किया है। यह ग्रन्थ पण्डितों के पाण्डित्य को परखने की कसौटी है। छन्द-विधान की दृष्टि से भी यह अन्य महत्वपूर्ण है। संस्कृत के अनेक छन्दों को भाषा में ढालने में केशव को अपूर्व सफलता मिली है। विज्ञानगीता’ में केशव ने ज्ञान की महिमा गाते हुए जीव को माया से छुटकारा पाकर ब्रह्म से मिलने का उपाय बतलाया है।
ये दोनों ग्रन्थ धार्मिक प्रबन्ध काव्य हैं। ‘वीरसिंहदेव चरित’, ‘जहाँगीर जसचन्द्रिका’ और ‘रतन बावनी’ ये तीनों ही प्रन्य चारणकाल की स्मृति दिलाते हैं। ये ग्रन्थ ऐतिहासिक प्रबन्ध काष्य की कोटि में आते हैं। काव्यशास्त्र सम्बन्धी ग्रन्थ ‘रसिकप्रिया’ में रस विवेचन तथा नायिका भेद, ‘कविप्रिया’ में कवि-कर्तव्य तथा अलंकार और ‘नख-शिख’ में नख-शिख वर्णन किया गया है। इनके द्वारा कवि ने रीति-साहित्य का शिलान्यास किया है।
भाषा
ब्रजभाषा को ही अपनी काव्य-भाषा के रूप में अपनाया।
रचनाएं
- रतनबावनी
- रसिकप्रिया
- रखशिख
- बारहमासा
- रामचंद्रिका
- कविप्रिया
- छन्दमाला
- बीरदेव सिंह चरित
- विज्ञानगीता
- जहाँगीर जस चन्द्रिका आदि इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं।
यह भी देखे-
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Jeevan Parichay || Jivan Parichaya || Biography || Jeevani || Jivani || Vyaktitva and Krititva
जीवन परिचय || जीवनी || रचनाएँ || व्यक्तित्व और कृतित्व
Post Overview
Post Name | keshavdas ji ka Jivan Parichay, jivani |
Class | All |
Subject | Hindi |
Topic | Jivan Parichay/ Biography/ Jeevani |
Board | All Board and All Students |
State | Uttar Pradesh |
Session | All |
Downloadable File | PDF File Download |
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