PRATYAY – प्रत्यय – हिंदी व्याकरण – Pratyay in Hindi Grammar – Bhed Prakar Paribhasha प्रत्यय – परिभाषा, भेद और उदाहरण : हिन्दी व्याकरण, Pratyay in Hindi Vyakaran
प्रत्यय – हिंदी व्याकरण – Pratyay in Hindi Grammar – Bhed Prakar Paribhasha प्रत्यय – परिभाषा, भेद और उदाहरण : हिन्दी व्याकरण, Pratyay in Hindi Vyakaran – Hindi me Pratyay kitne hote hai, Pratyaya ki Paribhasha Bhed.
प्रत्यय की परिभाषा
शब्दों के बाद जो अक्षर या अक्षरसमूह लगाया जाता है, उसे ‘प्रत्यय’ कहते हैं। ‘प्रत्यय’ दो शब्दों से बना है – प्रति + अय। ‘प्रति’ का अर्थ ‘साथ में’, ‘पर बाद में’ है और ‘अय’ का अर्थ ‘चलनेवाला’ है। अतएव, ‘प्रत्यय’ का अर्थ है ‘शब्दों के साथ, पर बाद में चलनेवाला या लगनेवाला’ ।
प्रत्यय उपसर्गों की तरह अविकारी शब्दांश हैं, जो शब्दों के बाद जोड़े जाते हैं। जैसे— -‘भला’ शब्द में ‘आई’ प्रत्यय लगाने से ‘भलाई’ शब्द बनता है। यहाँ प्रत्यय ‘आई’ है।
प्रत्यय के भेद
मूलतः प्रत्यय के दो प्रकार हैं— (क) कृत् और (ख) तद्धित । इनसे शब्दों की रचना होती है । कृत् और तद्धित प्रत्ययों से बने शब्दों को समझने के पहले ‘कृत्’ और ‘तद्धित’ को समझ लेना चाहिए।
(क) कृदंत
क्रिया या धातु के अंत में प्रयुक्त होनेवाले प्रत्ययों को ‘कृत्’ प्रत्यय कहते हैं और उनके मेल से बने शब्द को ‘कृदंत’। ये प्रत्यय क्रिया या धातु को नया रूप देते हैं। इनसे संज्ञा और विशेषण बनते हैं।
यहाँ द्रष्टव्य यह है कि हिंदी में क्रियाओं के अंत का ‘ना’ हटा देने पर जो अंश रह जाता है, वही धातु है। जैसे- कहना की कह, चलना की चल धातु में ही प्रत्यय लगते हैं। कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं-
(क) कृत्-प्रत्यय क्रिया शव्द
वाला गाना गानेवाला
हार होना होनहार
ऐया, वैया रखना, खेना रखैया, खेवैया
इया छलना, जड़ना छलिया, जड़िया
(ख) कृत्-प्रत्यय धातु शब्द
अक कृ कारक
अन नी नयन
ति शक् शक्ति
(ग) कृत्-प्रत्यय क्रिया शब्द
तव्य कृ कर्तव्य
यत् दा देय
(घ) कृत्-प्रत्यय धातु विशेषण
क्त भू भूत
क्त मद् मत्त
क्त (न) खिद् खिन्न
क्त (ण) जृ जीर्ण
मान विद् विद्यमान
ऊपर दिए गए उदाहरणों से स्पष्ट है कि क्रिया अथवा धातु के अंत में कृत् प्रत्यय लगाकर कृदंत बनाए जाते हैं। बने हुए नए शब्द संज्ञा और विशेषण दोनों हो सकते हैं।
कृदंत के भेद
हिंदी में रूप के अनुसार ‘कृदंत’ के दो भेद हैं- (१) विकारी, (२) अविकारी या अव्यय । विकारी कृदंतों का प्रयोग प्रायः संज्ञा या विशेषण के सदृश होता है और कृदंत अव्यय का प्रयोग क्रियाविशेषण या कभी-कभी संबंधसूचक के समान होता है।
विकारी कृदंत के चार भेद हैं—(१) क्रियार्थक संज्ञा, (२) कर्तृवाचक संज्ञा, (३) वर्तमानकालिक कृदंत, (४) भूतकालिक कृदंत ।
हिंदी क्रियापदों के अंत में कृत्-प्रत्ययों के योग से (१) कर्तृवाचक, (२) कर्मवाचक, (३) करणवाचक और (४) भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं। इनके साथ ही कर्तृवाचक और क्रियाद्योतक – दो प्रकार के विशेषण भी बनते हैं। आगे संस्कृत और हिंदी के कृत्-प्रत्ययों के उदाहरण दिए जाते हैं।
संस्कृत के कृत्-प्रत्यय और संज्ञाएँ
कृत्-प्रत्यय धातु भाववाचक संज्ञाएँ
अ कम् काम
अना विद् वेदना
अना वंद् वंदना
आ इष् इच्छा
आ पूज् पूजा
ञ् (ङि) यज् यज्ञ
ति शक् शक्ति
या मृग् मृगया
तृ भुज् भोक्तृ (भोक्ता)
उ तन् तनु
,, बंध् बंधु
उक भिक्षू भिक्षुक
ई त्यज् त्यागी
कृत्-प्रत्यय धातु कर्तृवाचक संज्ञाएँ
अक गै गायक
अ सृप् सर्प
अ दिव् देव
तृ दा दातृ (दाता)
कृत्-प्रत्यय धातु कर्मवाचक संज्ञाएँ
य कृ कृत्य
अ प्र + ह प्रहार
संस्कृत के कृत्-प्रत्यय और विशेषण
कृत्-प्रत्यय धातु विशेषण
क्त भू भूत
क्त मद् मत्त भूतकालिक
न (क्त) खिद् खिन्न कृदंत- विशेषण
ण (क्त) जृ जीर्ण
मान सेव् सेव्यमान वर्तमानकालिक
कृदंत- विशेषण
तव्य कृ कर्तव्य
” वच् वक्तव्य
अनीय दृश् दर्शनीय भविष्यत्कालिक
” श्रु श्रवणीय कृदंत-विशेषण
” पूज् पूजनीय
हिंदी के कृत्-प्रत्यय
हिंदी के कृत् या कृदंत प्रत्यय इस प्रकार हैं- अ, अंत, अक्कड़, आ, आई, आड़ी, आलू, आऊ, अंकू, आक, आका, आकू, आन, आनी, आप, आपा, आव, आवट, आवना, आवा, आस, आहट, इयल, ई, इया, ऊ, एरा, ऐया, ऐत, ओड़ा, ओड़, औता, औती, औना, औनी, औटी, आवनी, औवल, क, का, की, गी, त, ता, ती, न्ती, न, ना, नी, वन, वाँ, वाला, वैया, सार, हारा, हार, हा इत्यादि । हिंदी के कृत्-प्रत्ययों से भाववाचक, करणवाचक, कर्तृवाचक संज्ञाएँ और विशेषण बनते हैं। इनके उदाहरण, प्रत्यय-चिह्नों के साथ आगे दिए जाते हैं।
भाववाचक कृदंतीय संज्ञाएँ
भाववाचक कृदंत-संज्ञाओं की रचना धातु के मूल के अंत में अ, अंत, आ, आई, आन, आप, आपा, आव, आवा, आस, आवना, आवनी, आवट, आहट, ई, औता, औती, औवल, औनी, क, की, गी, त, ती, न्ती, न नी इत्यादि प्रत्ययों को जोड़ने से होती है। उदाहरणार्थ-
प्रत्यय धातु भाववाचक संज्ञाएँ
अ भर भार
अंत भिड़ भिड़ंत
आ फेर फेरा
आई लड़ लड़ाई
आन उठ उठना
आप मिल मिलाप
आपा पूज पुजापा
आव खिंच खिंचाव
आवा भूल भुलावा
आस निकस निकास
आवना पा पावना
आवनी पा पावनी
आवट सज सजावट
आहट चिल्ल चिल्लाहट
ई बोल बोली
औता समझ समझौता
औती मान मनौती
औवल भूल भुलौवल
औनी पीस पिसौनी
क बैठ बैठक
की बैठ बैठकी
गी देन देनगी
त खप खपत
ती चढ़ चढ़ती
न्ती कूट कूटंती
न दे देन
नी चाट चटनी
करणवाचक संज्ञाएँ
करणवाचक कृदंतीय संज्ञाएँ बनाने के लिए धातु के अंत में आ, आनी, ई, ऊ, औटी, न, ना, नी इत्यादि प्रत्यय लगते हैं। उदाहरणार्थ-
प्रत्यय धातु करणवाचक संज्ञाएँ
आ झूल झूला
आनी मथ मथानी
ई रेत रेती
ऊ झाड़ झाडू
औटी कस कसौटी
न बेल बेलन
ना बेल बेलना
नी बेल बेलनी
कर्तृवाचक कृदंत – विशेषण
कर्तृवाचक कृदंत – विशेषण बनाने के लिए धातु के अंत में अंकू, आऊ, आक, आका, आड़ी, आलू, इया, इयल, एरा, ऐत, ओड़, ओड़ा, आकू, अक्कड़, वन, वाला, वैया, सार, हार, हारा इत्यादि प्रत्यय लगाए जाते हैं। उदाहरणार्थ-
प्रत्यय धातु विशेषण
अंकू उड़ उड़कू
आऊ टिक टिकाऊ
आक तैर तैराक
आका लड़ लड़ाका
आड़ी खेल खिलाड़ी
आलू झगड़ झगड़ालू
इया बढ़ अड़ियल
इयल अड़ बढ़िया
इयल मर मरियल
ऐत लड़ लड़ैत
ऐया बच बचैया
ओड़ हँस हँसोड़
ओड़ा भाग भगोड़ा
अक्कड़ पी पिअक्कड़
वन सुहा सुहावन
वाला पढ़ पढ़नेवाला
वैया गा गवैया
सार मिल मिलनसार
हार रख राखनहार
हारा रो रोवनहारा
क्रियाद्योतक विशेषण
क्रियाद्योतक कृदंत-विशेषण बनाने में आ, ता आदि प्रत्ययों का प्रयोग होता है। ‘आ’ भूतकाल का और ‘ता’ वर्तमानकाल का प्रत्यय है। अतः, क्रियाद्योतक कृदंत – विशेषण के दो भेद हैं- (१) वर्तमानकालिक क्रियाद्योतक कृदंत – विशेषण, और (२) भूतकालिक क्रियाद्योतक कृदंत- विशेषण । इनके उदाहरण इस प्रकार हैं-
वर्तमानकालिक विशेषण-
प्रत्यय धातु वर्तमानकालिक विशेषण
ता बह बहता
ता मर मरता
ता गा गाता
भूतकालिक विशेषण-
प्रत्यय धातु भूतकालिक विशेषण
आ पढ़ पढ़ा
आ धो धोया
आ गा गाया
(ख) तद्धित
संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण के अंत में लगनेवाले प्रत्यय को ‘तद्वित’ कहा जाता है और उनके मेल से बने शब्द को ‘सद्धियांत’: जैसे मानव + ता अच्छा + आई अच्छाई, अपना + पन अपनापन, एक ता एकता।
कृत प्रत्यय क्रिया या धातु के अंत में लगता है, जबकि तद्धित प्रत्यय संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण के अंत में। तद्धित और कृत-प्रत्यय में यही मूल अंतर है। उपसर्ग की तरह तद्धित प्रत्यय भी तीन सोतों संस्कृत, हिंदी और उर्दू- -से आकर हिंदी शब्दों की रचना में सहायक हुए हैं। नीचे इनके उदाहरण दिए जाते हैं।
संस्कृत के तद्धित प्रत्यय
संस्कृत की तत्सम संज्ञाओं के अंत में तद्धित प्रत्यय लगाने से भाववाचक, अपत्यवाचक (नामवाचक) और गुणवाचक विशेषण बनते हैं।
संस्कृत के तद्धित प्रत्ययों से बने जो शब्द हिंदी में विशेषतया प्रचलित है, उनके आधार पर संस्कृत के ये तद्धित प्रत्यय हैं- -अ, अंक, आयन, इक इत इन, इम, इमा, इय, इल, इष्ठ, ई, ईन, ईय, उल, एय, क, बित, ट, तन, तः, त्य, त्र, ता, त्व, था, दा, धा, निष्ठ, म, मान्, मय, मी, य, र, ल, लु, बान, बत्, वी, व्य, श, शः सात् इत्यादि । शब्दांश भी तद्धित प्रत्ययों के रूप में प्रयुक्त होते हैं। ये शब्दांश समास के पद हैं; जैसे- -अतीत, अनुरूप, अनुसार, अर्थ, अर्थी, आतुर, आकुल, आढ्य जन्य, शाली, हीन इत्यादि । अर्थ के अनुसार इन प्रत्ययों के प्रयोग के उदाहरण इस प्रकार है –
प्रत्यय संज्ञा-विशेषण तद्धितांत वाचक
अ कुरु कौरव अपत्य
अ शिव शैव संबंध
अ निशा नैश गुण, संबंध
अ मुनि मौन भाव
अक शिक्षा शिक्षक कर्तृ
आयन काती(जुलाहागिरी) कात्यायन कर्तृ
आयन राम रामायण स्थान, संज्ञा
आयन बदर बादरायण अपत्य
इक तर्क तार्किक जाननेवाला, कर्तृ
इक वर्ष वार्षिक गुण
इत पुष्प पुष्पित गुण
इम अग्र अग्रिम गुण
इमा रक्त रक्तिमा भाव
इय क्षत्र क्षत्रिय गुण
इल तुंद तुंदिल गुण
इष्ठ गुरु गरिष्ठ गुण
ई पक्ष पक्षी गुण
ईन कुल कुलीन गुण
ईय पाणिनि पाणिनीय संबंध
उल मातृ मातुल संबंध
एय कुंती कौंतेय अपत्य
एय पुरुष पौरुषेय गुण, संबंध
क बाल बालक ऊन
क दर्श दर्शक समाहार
चित् कदा कदाचित् अनिश्चय
ठ कर्म कर्मठ कर्तृ
तन अद्य अद्यतन काल-संबंध
तः अंश अंशतः रीति
ता लघु लघुता भाव
ता जन जनता समाहार
त्य पश्चा पाश्चात्य संबंध
त्र अन्य अन्यत्र स्थान
त्व गुरु गुरुत्व भाव
था अन्य अन्यथा रीति
दा सर्व सर्वदा काल
निष्ठ कर्म कर्मनिष्ठ कर्तृ, संबंध
म मध्य मध्यम गुण
मान् बुद्धि बुद्धिमान् गुण
मय काष्ठ काष्ठमय विकार
मय जल जलमय व्याप्ति
मी वाक् वाग्मी कर्तृ
य मधुर माधुर्य भाव
य दिति दैत्य अपत्य
य ग्राम ग्राम्य संबंध
र मधु मधुर गुण
ल वत्स वत्सल गुण
लु निद्रा निद्रालु गुण, कर्तृ
वान् धन धनवान् गुण
वत् यत् यावत् अनिश्चय
वी माया मायावी गुण, कर्तृ
धा शत शतधा प्रकार
व्य भ्रातृ भ्रातृव्य संबंध
श रोम रोमश गुण
प्रत्यय संज्ञा – विशेषण तद्धितांत वाचक
श कर्क कर्कश स्वभाव, गुण
शः क्रम क्रमशः रीति
सात् भस्म भस्मसात् विकार
सात् आत्म आत्मसात् संबंध
अब इन प्रत्ययों द्वारा विभिन्न वाचक संज्ञाओं और विशेषणों से विभिन्न वाचक संज्ञाओं और विशेषणों के निर्माण के प्रकार देखें-
जातिवाचक से भावाचक संज्ञाएँ– संस्कृत की तत्सम जातिवाचक संज्ञाओं के अंत में तद्धित प्रत्यय लगाकर भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं। इसके उदाहरण इस प्रकार हैं-
तद्धित प्रत्यय संज्ञा भाववाचक संज्ञा
ता शत्रु शत्रुता
ता वीर वीरता
त्व गुरु गुरुत्व
त्व मनुष्य मनुष्यत्व
अ मुनि मौन
य पंडित पांडित्य
इमा रक्त रक्तिमा
व्यक्तिवाचक से अपत्यवाचक संज्ञाएँ – अपत्यवाचक संज्ञाएँ किसी नाम के अंत में तद्धित-प्रत्यय जोड़ने से बनती हैं। अपत्यवाचक संज्ञाओं के कुछ उदाहरण ये हैं-
तद्धित प्रत्यय व्यक्तिवाचक संज्ञाएँ अपत्यवाचक संज्ञाएँ
तद्धित प्रत्यय व्यक्तिवाचक संज्ञाएँ अपत्यवाचक संज्ञाएँ
अ वसुदेव वासुदेव
अ मनु मानव
अ कुरु कौरव
अ पृथा पार्थ
अ पांडु पांडव
य दिति दैत्य
आयन बदर बादरायण
एय राधा राधेय
एय कुंती कौंतेय
विशेषण से भाववाचक संज्ञाएँ – विशेषण के अंत में संस्कृत के निम्नलिखित तद्धित-प्रत्ययों के मेल से निम्नलिखित भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं—
तद्धित प्रत्यय विशेषण भाववाचक संज्ञाएँ
ता बुद्धिमान् बुद्धिमत्ता
ता मूर्ख मूर्खता
ता शिष्ट शिष्टता
इमा रक्त रक्तिमा
इमा शुक्ल शुक्रिया
त्व वीर वीरत्व
त्व लघु लघुत्व
अ गुरु गौरव
अ लघु लाघव
संज्ञा से विशेषण- संज्ञाओं के अंत में संस्कृत के गुण, भाव या संबंध के वाचक तद्धित प्रत्ययों को जोड़कर विशेषण भी बनते हैं। उदाहरणार्थ
प्रत्यय संज्ञा विशेषण
अ निशा नैश
य तालु तालव्य
य ग्राम ग्राम्य
इक मुख मौखिक
इक लोक लौकिक
मय आनंद आनंदमय
मय दया दयामय
इत फल फलित
इत आनंद आनंदित
इष्ठ बल बलिष्ठ
निष्ठ कर्म कर्मनिष्ठ
र मुख मुखर
र मधु मधुर
इम रक्त रक्तिम
ईन कुल कुलीन
ईन ग्राम ग्रामीण
ल मांस मांसल
वी मेधा मेधावी
इल तंद्रा तंद्रिल
ईय राष्ट्र राष्ट्रीय
उल पृथु पृथुल
लु तंद्रा तंद्रालु
वान् धन धनवान्
हिंदी के तद्धित प्रत्यय
ऊपर संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ तद्धित प्रत्यय लगाकर संज्ञा और विशेषण बनाए गए हैं। अब हम हिंदी के तद्भव शब्दों के अंत में तद्धित प्रत्यय लगाकर संज्ञा और विशेषण बनाएँगे। हिंदी के तद्धित-प्रत्यय ये हैं—आ, आयँध, आई, ताई, आऊ, आका, आटा, आन, आना, आनी, आयत, आर, आरी, आरा, आड़ी, आल, इयल, आलू, आवट, आस, आसा, आहट, इन, इया, ई, ईला, उआ, ऊ, ए, एर, एरा, एड़ी, एली, एल, ऐत, ऐल, एला, ऐला, ओं, ओट, ओटा, औटा, औटी, औड़ा, औड़ी, औती, औता, ओला, क, की, जा, टा, टी, ड़ा, ड़ी, त, ता, ती, नी, पन, पा, री, ला, ली, ल, वंत, वाल, वाला, वाँ, वा, स, सरा, सा, सों, हर, हरा, हा, हारा, हला, हाल इत्यादि । तद्धित प्रत्यांत शब्दों के अनेक रूप हैं। इन रूपों में (१) भाववाचक, (२) ऊनवाचक, (३) कर्तृवाचक, (४) संबंधवाचक और (५) विशेषण प्रमुख हैं । इनके उदाहरण इस प्रकार हैं-
भाववाचक तद्धितांत संज्ञाएँ
भाववाचक तद्धित-प्रत्यय हैं- -आ, आयँध, आई, आन, आयत, आरा, आवट, आस, आहट, ई, एरा, औती, त, ती, पन,पा, स इत्यादि । जैसे—
प्रत्यय संज्ञा – विशेषण भाववाचक संज्ञाएँ
आ चूर चूरा
आई चतुर चतुराई
आन, आई चौड़ा चौड़ान, चौड़ाई
आयत, पन अपना अपनायत, अपनापन
आयँध सड़ा सड़ायॅंध
आरा छूट छुटकारा
आवट आम अमावट
आस मीठा मिठास
आहट कड़वा कड़वाहट
ई खेत खेती
एरा अंध अँधेरा
औती बाप बपौती
त रंग रंगत
ती कम कमती
पन काला कालापन
पन लड़का लड़कपन
पा बूढ़ा बुढ़ापा
स घाम घमस
ऊनवाचक तद्धितांत संज्ञाएँ
ऊनवाचक संज्ञाओं से वस्तु की लघुता, प्रियता, हीनता इत्यादि के भाव व्यक्त होते हैं।
ऊनवाचक तद्धित प्रत्यय हैं— आ, इया, ओला, क, की, टा, टी, ड़ा, ड़ी, री, ली, वा, सा इत्यादि । प्रत्ययों के साथ उदाहरण इस प्रकार हैं-
प्रत्यय संज्ञा – विशेषण ऊनवाचक संज्ञाएँ
आ ठाकुर ठकुरा
इया खाट खटिया
ई ढोलक ढोलकी
ओला साँप सँपोला
क ढोल ढोलक
की कन कनकी
टा चोर चोट्टा
टी बहू बहूटी
ड़ा बाछा बछड़ा
ड़ी टाँग टॅंगड़ी
री कोठा कोठरी
ली टीका टिकली
वा बच्चा बचवा
सा मरा मरा-सा
संबंधवाचक तद्धितांत संज्ञाएँ
संबंधवाचक तद्धित प्रत्यय हैं- आल, हाल, ए, एरा, एल, औती, जा इत्यादि । संज्ञा के अंत में इन प्रत्ययों को लगाकर संबंधवाचक संज्ञाएँ बनाई जाती है। जैसे-
प्रत्यय संज्ञा संबंधवाचक संज्ञाएँ
आल ससुर ससुराल
हाल नाना ननिहाल
औती बाप बपौती
जा भाई(भातृ) भतीजा
ए लेखा लेखे
एरा मामा ममेरा
एल नाक नकेल
कर्तृवाचक तद्धितांत संज्ञाएँ
संज्ञा के अंत में आर, इया, ई, एरा, हारा, इत्यादि तद्धित प्रत्यय लगाकर कर्तृवाचक तद्धितांत संज्ञाएँ बनाई जाती हैं। जैसे—
प्रत्यय संज्ञा कर्तृवाचक संज्ञाएँ
आर सोना सुनार
आर लोहा लुहार
इया आढ़त अढ़तिया
ई तमोल (तांबूल) तमोली
ई तेल तेली
हारा लकड़ी लकड़हारा
एरा साँप सँपेरा
एरा काँसा कसेरा
तद्वितीय विशेषण
संज्ञा के अंत में आ, आना, आर, आल, ई, ईला, उआ, ऊ, एरा, एड़ी, ऐल, ओं, वाला, वी, वाँ, वंत, हर, हरा, हला, हा इत्यादि तद्धित-प्रत्यय लगाकर विशेषण बनते हैं। उदाहरण निम्नलिखित हैं-
प्रत्यय संज्ञा विशेषण
आ भूख भूखा
आना हिंदू हिंदुआना
आर दूध दुधार
आल दया दयाल
ई देहात देहाती
ईला रंग रँगीला
उआ गेरु गेरुआ
ऊ गरज गरजू
ऊ बाजार बाजारू
एरा चाचा चचेरा
एरा मामा ममेरा
एड़ी भाँग भँगेड़ी
ऐल खपरा खपरैल
वाला मेरठ मेरठ वाला
वी लखनऊ लखनवी
वंत धन धनवंत
हा भूत भुतहा
हर छूत छुतहर
हरा सोना सुनहरा
हला रूपा रूपहला
उर्दू के कृत् और तद्धित-प्रत्यय
बहुतेरे उर्दू शब्द भी हिंदी में प्रयुक्त होते हैं। ये शब्द अरबी, फारसी और कुछ तुर्की के हैं। इनके कृत्-तद्धित प्रत्यय भी इन्हीं भाषाओं के हैं।
कृदंत
फारसी कृत-प्रत्यय हैं – अ, आ, आन (आँ), इंदा, इश, ई इत्यादि । अरबी के सभी शब्द, संस्कृत के समान किसी-न-किसी धातु से बनते हैं। धातुएँ तीन, चार, पाँच वर्णों तक की होती हैं। धातुओं के वर्णों के मान (वजन) के अक्षर ‘मूलाक्षर’ हैं और वे सभी कृदंत-रूपों में पाए जाते हैं। इन मूलाक्षरों के अलावा, कृदंत-रूपों में अक्षर जोड़ दिए जाते हैं, जिन्हें अधिकाक्षर कहा जाता है। ये अधिकाक्षर सात हैं-अ, त स, म, न, ऊ, या अधिकाक्षरों को याद रखने का सूत्र है – अतसमनूय । ये अधिकारी अरवी के कृत्-प्रत्यय हैं। ये अधिकाक्षर धातु में आगे पीछे, बीच में या मात्रा के रूप धातु में कुछ और में कहीं भी लग सकते हैं। इन प्रत्ययों के आधार पर अरवी के (१) कृदंत-विशेषण, (२) कृदंत क्रियार्थक संज्ञा, (३) कृदंत क्रियार्थक विशेषण, (४) कृदंत स्थानवाचक और कालवाचक संज्ञाएँ बनती हैं। फारसी कृदंत प्रत्ययों से (१) भाववाचक, (२) कर्तृवाचक, (३) वर्तमानकालिक कृदंत और (४) भूतकालिक कृदंत – शब्द बनते हैं।
अरवी कृदंत- विशेषण
धातु प्रत्यय कृदंतरूप प्रकार
अलम (जानना) फाइल आलिम (विद्वान्) कर्तृवाचक संज्ञा
रहम (दया करना) फईल रहीम (दयालु) अधिकताबोधक
कबीर (बड़ा होना) अफअल अकबर (बहुत बड़ा)
अधिकताबोधक
अरबी कृत् क्रियार्थक संज्ञा
धातु प्रत्यय कृदंतरूप
कबल (सामने होना) मुफाअलत मुकाबला
नकर (न जानना) इफ्आल इनकार
अरज (आगे रखना) इफ्तिआल एतराज़
अरबी कृदंत क्रियार्थक विशेषणों के अन्य रूप
कर्तृवाचक प्रत्यय धातु कर्तृवाचक
मुफइल नफस मुंसिफ (न्यायाधीश)
मुफइल सरम मुंसरिम (शासक)
मुत्फाइल वतर मुत्वातिर (लगातार)
मुस्तफइल कबल मुस्तक्बिल (भविष्य)
कर्मवाचक प्रत्यय कर्मवाचक
मुफ्अल मुनसफ (न्याय पानेवाला)
मुंफअल मुंसरम (शासित)
मुत्फाअल मुत्वातर (निर्विघ्न)
मुस्तफ्अल मुस्तकबल (चित्र)
अरवी कृदंत स्थानवाचक- कालवाचक संज्ञाएँ
धातु प्रत्यय संज्ञारूप
कतब (लिखना) मफअल मकतब (जहाँ लिखना
सिखाया जाए)
जलस (बैठना) सफ्इल मजलिस
सजद (पूजा करना) मफइल मस्जिद
‘प्रत्यय’ का संस्कृत और हिंदी में अर्थ है ‘कोई शब्दांश या अक्षर, जो किसी संज्ञा या धातु के अंत में जुड़कर कोई पद बनाती हो’ । किंतु साधारणतया ‘प्रत्यय’ का शब्दार्थ है ‘चिह्न’, ‘पहचान’ या ‘प्रतीति’। अरबी के ये ‘प्रत्यय’ शब्द पर किसी मात्रा या अक्षर का अतिरिक्त ‘भार’ या ‘वजन’ देने के अर्थ में प्रयुक्त होते हैं। अतः ये प्रत्यय ‘प्रतीति’ के अर्थ में शब्दों पर एक विशेषण ‘वजन’ पैदा करते हैं। उपर्युक्त प्रत्ययों या वजनों के अलावा भी अन्य कृदंत प्रत्यय हैं जो आगे दिए गए हैं।
अरबी के मूल कृत्-प्रत्यय
प्रत्यय उदाहरण
फअ्ल कत्ल
फिआल कियाम (ठहरना)
फिअ्ल इल्म
फुआल सुवाल ( पूछना)
फुअ्ल हुक्म
फऊल जहूर (रूप)
फिअ्लत खिदमत
फआलत बगावत
ये सारे, कृत्-प्रत्यय अधिकाक्षर या वजन ही हैं और ये वजन ‘अतसमनूय’ सूत्र वर्णों के अंतर्गत हैं।
फारसी कृत्-प्रत्यय
प्रत्यय धातु कृदंत – शब्द वाचक
अ आमद आमद (अवाई) भाववाचक
अ खरीद खरीद (क्रय) भाववाचक
ई आमदन (आना) आमदनी भाववाचक
आ रिह (छूटना) रिहा कर्तृवाचक
इंदा जी (जीना) जिंदा कर्तृवाचक
इंदा बाश (रहना) बाशिंदा कर्तृवाचक
आँ (आन) चस्प (चिपकाना) चस्पाँ (चिपका हुआ)
वर्तमानकालिक
फारसी तद्धित प्रत्यय के तीन प्रकार होते हैं – (१) संज्ञात्मक, (२) विशेषणात्मक और (३) वे कृदंत पद जो संज्ञाओं में तद्धित प्रत्यय के समान जुड़ते हैं।
संज्ञात्मक फारसी तद्धित प्रत्यय हैं – (१) भाववाचक- -आ, आना (आनह), ई. नामा, गी; (२) कर्तृवाचक – कार, गर, गार, वान; (३) ऊनतावाचक —क, चा, अथवा ईचा; (४) स्थितिवाचक- -दान, आ (ह), आब ।
विशेषणात्मक फारसी तद्धित प्रत्यय हैं—आना, इंदा, आवर, नाक, ई, ईन, मंद, वार, वर, ईना, जादा (जादह), गीन इत्यादि ।
संज्ञाओं से तद्धित प्रत्यय समान जुटने वाले फारसी कृदंत पद के हैं- (१) कर्तृवाचक — अंदाज, दार, साज; (२) स्थितिवाचक- आवेज, माल; (३) संज्ञावाचक – कुन, खोर, गीर, दान, दार, नुमा, नवीस, नशीन, वंद, बीर, बर, बाज, पोश, साज, सार; (४) स्थानवाचक- -आबाद, खाना, गाह, इस्तान, शन, जार, बार इत्यादि ।
संज्ञात्मक फारसी तद्धित प्रत्यय
प्रत्यय मूलशब्द सप्रत्यय शब्द वाचक
आ सफेद सफेदा भाववाचक
आ खराब खराबा “
ई खुश खुशी “
नामा इकरार इकरारनामा “
गी मर्दाना मर्दानगी “
कार काश्त काश्तकार कर्तृवाचक
कार पेश पेशकार कर्तृवाचक
गार खिदमत खिदमतगार “
गार मदद मददगार “
बान मेज मेजबान “
ईचा बाग बगीचा स्थितिवाचक
दान कलम कलमदान “
आब गुल गुलाब “
आब गिल (मिट्टी) गिलाब (कीचड़) “
विशेषणात्मक फारसी तद्धित प्रत्यय
प्रत्यय मूलशब्द सप्रत्यय शब्द प्रत्ययार्थ
आना (आनह) मर्द मर्दाना स्वभाव
आना (आनह) जन जनाना स्वभाव
इंदा शर्म शर्मिंदा संज्ञा
इंदा कार कारिंदा संज्ञा
नाक दर्द दर्दनाक गुण
ई ईरान ईरानी विशेषण
ई आसमान आसमानी विशेषण
ईन शौक शौकीन स्वभाव
मंद अक्ल अक्लमंद स्वभाव
वार उम्मीद उम्मीदवार स्वभाव
ईना कम कमीना ऊनार्थ
ईना माह महीना संज्ञा
जादा (जादह) हराम हरामजादा अपत्य
जादा (जादह) शाह शाहजादा अपत्य
गीन गम गमगीन स्वभाव
तद्धित प्रत्ययों जैसे फारसी कृदंत पद
प्रत्यय मूलशब्द सप्रत्यय शब्द वाचक
अंदाज तीर तीरंदाज कर्तृ
दार दूकान दूकानदार “
साज घड़ी घड़ीसाज “
आवेज दस्त दस्तावेज स्थिति
खोर हराम हरामखोर विशेषण
गीर राह राहगीर “
नुमा कुतुब कुतुबनुमा “
दार फौज फौजदार “
नशीन परदा परदानशीन “
बर पैगाम पैगामबर संज्ञा
बाज नाश नशेबाज विशेषण
सार खाक खाकसार “
आबाद अहमद अहमदाबाद स्थान
गाह ईदगाह ईदगाह “
इस्तान तुर्क तुर्किस्तान “
जार अबा (भोजन) बाजार “
बार दर दरबार “
फारसी के उपर्युक्त तद्धित-पद प्रत्ययों द्वारा न बनकर कृदंत-पदों के लिए हुए सामासिक रूप हैं। अतः ये समस्तपद हैं, तद्धितांत नहीं। किंतु इनका तद्धितांत के समान प्रयोग होता है, अतः यहाँ इनकी भी गणना कर दी गई है।
अरबी तद्धित प्रत्यय हैं— आनी, इयत, ई, ची, म। ‘आनी’ से विशेषणवाचक, ‘इयत’ से भाववाचक और ‘ई’ से गुणवाचक तद्धितांत बनते हैं । ‘ची’ तुर्की व्यापारवाचकतद्धित प्रत्यय है, जिसे अरबी ने भी अपना लिया है। ‘म’ तुर्की स्त्रीलिंग प्रत्यय है, जो अरबी में भी ज्यों-का-त्यों व्यवहृत होता है । उदाहरण-
अरवी तद्धित प्रत्यय
प्रत्यय मूलशब्द सप्रत्यय शब्द वाचक
आनी जिस्म जिस्मानी विशेषण
आनी रूह रूहानी विशेषण
इयत इंसान इंसानियत भाव
इयत कैफ (कैसे) कैफियत भाव
ची बाबर (विश्वास) बाबरची व्यापार
म बेग बेगम (‘बेग’ जाति की स्त्री) स्त्री