संज्ञा की परिभाषा – भेद – Sangya Ke Prakar, Sangya ke karya संज्ञा – कार्य और भेद
Sangya Ke Prakar, Sangya ke karya- संज्ञा – कार्य और भेद , व्यक्तिवाचक, जातिवाचक, समूहवाचक, द्रव्यवाचक – Jativachak Vyaktivachak samoohvachak drabyavachak bhav vachak sangya.
संज्ञा – कार्य और भेद
‘संज्ञा’ उस विकारी शब्द को कहते हैं, जिससे किसी विशेष वस्तु, भाव और जीव के नाम का बोध हो। यहाँ ‘वस्तु’ शब्द का प्रयोग व्यापक अर्थ में हुआ है, जो केवल वाणी और पदार्थ का वाचक नहीं, वरन उनके धर्मों का भी सूचक है। साधारण अर्थ में ‘वस्तु’ का प्रयोग इस अर्थ में नहीं होता। अतः, वस्तु के अंतर्गत प्राणी, पदार्थ और धर्म आते हैं। इन्हीं के आधार पर संज्ञा के भेद किए गए हैं।
संज्ञा के भेद [Sangya Ke Bhed]
संज्ञा के भेदों के संबंध में वैयाकरण एकमत नहीं हैं। पर, अधिकतर वैयाकरण संज्ञा के पाँच भेद मानते हैं—
(१) जातिवाचक, (२) व्यक्तिवाचक, (३) गुणवाचक, (४) भाववाचक, और (५) द्रव्यवाचक।
ये भेद अँगरेजी के आधार पर है; कुछ रूप के अनुसार और कुछ प्रयोग के अनुसार । संस्कृत व्याकरण में ‘प्रातिपदिक’ नामक शब्दभेद के अंतर्गत संज्ञा, सर्वनाम, गुणवाचक (विशेषण) आदि आते हैं, क्योंकि वहाँ इन तीन शब्दभेदों का रूपांतर प्रायः एक ही जैसे प्रत्ययों के प्रयोग से होता है। किंतु, हिंदी व्याकरण में सभी तरह की संज्ञाओं को दो भागों में बाँटा गया है— एक, वस्तु की दृष्टि से और दूसरा, धर्म की दृष्टि से—
इस प्रकार, हिंदी व्याकरण में संज्ञा के मुख्यतः पाँच भेद हैं- (१) व्यक्तिवाचक, (२) जातिवाचक, (३) भाववाचक, (४) समूहवाचक, और (५) द्रव्यवाचक
पं० कामता प्रसाद गुरु के अनुसार, “समूहवाचक का समावेश व्यक्तिवाचक तथा जातिवाचक में और द्रव्यवाचक का समावेश जातिवाचक में हो जाता है।”
व्यक्तिवाचक संज्ञा [Vyaktivachak Sangya]
जिस शब्द से किसी एक वस्तु या व्यक्ति का वोध हो, उसे ‘व्यक्तिवाचक संज्ञा’ कहते हैं; जैसे- राम, गाँधीजी, गंगा, काशी इत्यादि । ‘राम’, ‘गाँधीजी’ कहने से एक-एक व्यक्ति का, ‘गंगा’ कहने से एक नदी का और ‘काशी’ कहने से एक नगर का बोध होता है। व्यक्तिवाचक संज्ञाएँ जातिवाचक संज्ञाओं की तुलना में कम हैं।
दीमशित्स के अनुसार, व्यक्तिवाचक संज्ञाएँ निम्नलिखित रूपों में होती हैं? –
- १. व्यक्तियों के नाम – श्याम, हरि, सुरेश
- २. दिशाओं के नाम –-उत्तर, पश्चिम, दक्षिण, पूर्व
- ३. देशों के नाम – भारत, जापान, अमेरिका, पाकिस्तान, म्यांमार
- ४. राष्ट्रीय जातियों के नाम— भारतीय, रूसी, अमेरिकी
- ५. समुद्रों के नाम – काला सागर, भूमध्यसागर, हिंद महासागर, प्रशांत महासागर
- ६. नदियों के नाम — गंगा, ब्रह्मपुत्र, वोल्गा, कृष्णा, कावेरी, सिंधु
- ७. पर्वतों के नाम –– हिमालय, विंध्याचल, अलकनंदा, कराकोरम
- ८. नगरों, चौकों और सड़कों के नाम – वाराणसी, गया, चाँदनी चौक, हरिसन रोड, अशोक मार्ग
- ९. पुस्तकों तथा समाचारपत्रों के नाम- रामचरितमानस, ऋग्वेद, धर्मयुग, इंडियन नेशन, आर्यावर्त
- १०. ऐतिहासिक युद्धों और घटनाओं के नाम- पानीपत की पहली लड़ाई, सिपाही विद्रोह, अक्तूबर- क्रांति
- ११. दिनों, महीनों के नाम- मई, अक्तूबर, जुलाई, सोमवार, मंगलवार
- १२. त्योहारों, उत्सवों के नाम- होली, दीवाली, रक्षाबंधन, विजयादशमी
जातिवाचक संज्ञा [Jativachak Sangya]
जिन संज्ञाओं से एक ही प्रकार की वस्तुओं अथवा व्यक्तियों का वोध हो, उन्हें ‘जातिवाचक संज्ञा’ कहते हैं; जैसे मनुष्य, घर, पहाड़, नदी इत्यादि । ‘मनुष्य’ कहने से संसार की मनुष्य जाति का, ‘घर’ कहने से सभी तरह के घरों का, ‘पहाड़’ कहने से संसार के सभी पहाड़ों का और ‘नदी’ कहने से सभी प्रकार की नदियों का जातिगत बोध होता है।
जातिवाचक संज्ञाएँ निम्नलिखित स्थितियों की होती हैं-
- १. संबंधियों, व्यवसायों, पदों और कार्यों के नाम – बहन, मंत्री, जुलाहा, प्रोफेसर, ठग
- २. पशु-पक्षियों के नाम- घोड़ा, गाय, कौआ, तोता, मैना
- ३. वस्तुओं के नाम – मकान, कुर्सी, घड़ी, पुस्तक, कलम, टेबुल
- ४. प्राकृतिक तत्त्वों के नाम- तूफान, बिजली, वर्षा, भूकंप, ज्वालामुखी
भाववाचक संज्ञा [Bhav Vachak Sangya]
जिस संज्ञा- शव्द से व्यक्ति या वस्तु के गुण या धर्म, दशा अथवा व्यापार का वोध होता है, उसे ‘भाववाचक संज्ञा’ कहते हैं; जैसे- लंबाई, बुढ़ापा, नम्रता, मिठास, समझ, चाल इत्यादि। हर पदार्थ का धर्म होता है। पानी में शीतलता, आग में गर्मी, मनुष्य में देवत्व और पशुत्व इत्यादि का होना आवश्यक है। पदार्थ का गुण या धर्म पदार्थ से अलग नहीं रह सकता। घोड़ा है, तो उसमें बल है, वेग है और आकार भी है। व्यक्तिवाचक संज्ञा की तरह भावाचक संज्ञा से भी किसी एक ही भाव का बोध होता है। ‘धर्म’, ‘गुण’, ‘अर्थ’ और ‘भाव’ प्रायः पर्यायवाची शब्द हैं। इस संज्ञा का अनुभव हमारी इंद्रियों को होता है और प्रायः इसका बहुवचन नहीं होता ।
भाववाचक संज्ञाओं का निर्माण
भाववाचक संज्ञाओं का निर्माण जातिवाचक संज्ञा, विशेषण, क्रिया, सर्वनाम और अव्यय में प्रत्यय लगाकर होता है। उदाहरणार्थ-
- (क) जातिवाचक संज्ञा से – बूढ़ा – बुढ़ापा; लड़का – लड़कपन; मित्र – मित्रता; दास – दासत्व; पंडित – पंडिताई इत्यादि
- (ख) विशेषण से – गर्म – गर्मी; सर्द- सर्दी; कठोर — कठोरता; मीठा – मिठास; चतुर – चतुराई इत्यादि
- (ग) क्रिया से – घबराना — घबराहट; सजाना- सजावट; चढ़ना – चढ़ाई; बहना- बहाव; मारना – मार दौड़ना — दौड़ इत्यादि
- (घ) सर्वनाम से – अपना – अपनापन, अपनाव; मम – ममता, ममत्व; निज – निजत्व इत्यादि
- (ङ) अव्यय से — दूर-दूरी; परस्पर – पारस्पर्य; समीप — सामीप्य; निकट – नैकट्य; शाबाश- शाबाशी; वाहवाह— वाहवाही इत्यादि
भाववाचक संज्ञा में जिन शब्दों का प्रयोग होता है, उनके धर्म में या तो गुण होगा या अवस्था या व्यापार ऊपर दिए गए उदाहरण कथन की पुष्टि करते हैं।
समूहवाचक संज्ञा [Samuhvachak Sangya]
जिस संज्ञा से वस्तु अथवा व्यक्ति के समूह का वोध हो, उसे ‘समूहवाचक संज्ञा’ कहते हैं; जैसे – व्यक्तियों का समूह — सभा, दल, गिरोह; वस्तुओं का समूह – गुच्छा, कुंज, मंडल, घौद ।
द्रव्यवाचक संज्ञा [Dravyavachak Sangya]
जिस संज्ञा से नाप-तौल वाली वस्तु का वोध हो, उसे ‘द्रव्यवाचक संज्ञा’ कहते हैं। इस संज्ञा का सामान्यतः बहुवचन नहीं होता; जैसे—लोहा, सोना, चाँदी, दूध, पानी, तेल, तेजाब इत्यादि ।
संज्ञाओं का प्रयोग
संज्ञाओं के प्रयोग में कभी-कभी उलटफेर भी हो जाया करता है। कुछ उदाहरण यहाँ दिए जा रहे हैं-
(क) जातिवाचक : व्यक्तिवाचक- -कभी-कभी जातिवाचक संज्ञाओं का प्रयोग व्यक्तिवाचक संज्ञाओं में होता है। जैसे- ‘पुरी’ से जगन्नाथपुरी का ‘देवी’ से दुर्गा का, ‘दाऊ’ से कृष्ण के भाई बलदेव का ‘संवत्’ से विक्रमी संवत् का ‘भारतेंदु’ से बाबू हरिश्चंद्र का और ‘गोस्वामी’ से तुलसीदासजी का बोध होता है। इसी तरह, बहुत-सी योगरूढ़ संज्ञाएँ मूल रूप से जातिवाचक होते हुए भी प्रयोग में व्यक्तिवाचक के अर्थ में चली आती है; जैसे- गणेश, हनुमान, हिमालय, गोपाल इत्यादि ।
(ख) व्यक्तिवाचक : जातिवाचक – कभी-कभी व्यक्तिवाचक संज्ञा का प्रयोग जातिवाचक (अनेक व्यक्तियों के अर्थ ) में होता है। ऐसा किसी व्यक्ति का असाधारण गुण या धर्म दिखाने के लिए किया जाता है। ऐसी अवस्था में व्यक्तिवाचक संज्ञा जातिवाचक संज्ञा में बदल जाती है। जैसे— गाँधी अपने समय के कृष्ण थे; यशोदा हमारे घर की लक्ष्मी है; तुम कलियुग के भीम हो इत्यादि ।
(ग) भाववाचक : जातिवाचक – कभी-कभी भावाचक संज्ञा का प्रयोग जातिवाचक संज्ञा में होता है। उदाहरणार्थ- ये सब कैसे अच्छे पहरावे हैं। यहाँ ‘पहरावा’ भाववाचक संज्ञा है, किंतु प्रयोग जातिवाचक संज्ञा में हुआ । ‘पहरावे’ से ‘पहनने के वस्त्र’ का बोध होता है।
२. संज्ञा के रूपांतर (लिंग, वचन और कारक में संबंध)
संज्ञा विकारी शब्द है । विकार शब्दरूपों को परिवर्तित अथवा रूपांतरित करता है। संज्ञा के रूप लिंग, वचन और कारक चिह्नों (परसर्ग) के कारण बदलते हैं।
लिंग के अनुसार
- नर खाता है— नारी खाती है।
- लड़का खाता है— लड़की खाती है।
इन वाक्यों में ‘नर’ पुंलिंग है और ‘नारी’ स्त्रीलिंग। ‘लड़का’ पुंलिंग है और ‘लड़की’ स्त्रीलिंग। इस प्रकार, लिंग के आधार पर संज्ञाओं का रूपांतर होता हैं।
वचन के अनुसार
- लड़का खाता है— लड़के खाते हैं।
- लड़की खाती है – लड़कियाँ खाती हैं।
- एक लड़का जा रहा है— तीन लड़के जा रहे हैं।
इन वाक्यों में ‘लड़का’ शब्द एक के लिए आया है और ‘लड़के’ एक से अधिक के लिए । ‘लड़की’ एक के लिए और ‘लड़कियाँ’ एक से अधिक के लिए व्यवहृत हुआ है। यहाँ संज्ञा के रूपांतर का आधार ‘वचन’ है। ‘लड़का’ एकवचन और ‘लड़के’ बहुवचन में प्रयुक्त हुआ है।
कारक-चिह्नों के अनुसार
- लड़का खाना खाता है— लड़के ने खाना खाया।
- लड़की खाना खाती है-लड़कियों ने खाना खाया।
इन वाक्यों में ‘लड़का खाता है’ में ‘लड़का’ पुंलिंग एकवचन है और ‘लड़के ने खाना खाया’ में भी ‘लड़के’ पुंलिंग एकवचन है, पर दोनों के रूप में भेद है। इस रूपांतर का कारण कर्ता कारक का चिह्न ‘ने’ है, जिससे एकवचन होते हुए भी ‘लड़के’ रूप हो गया है। इसी तरह, लड़के को बुलाओ, लड़के से पूछो, लड़के का कमरा, लड़के के लिए च लाओ इत्यादि वाक्यों में संज्ञा (लड़का-लड़के) एकवचन में आई है।
इस प्रकार, संज्ञा बिना कारक-चिह्न के भी होती है और कारक-चिह्नों के साथ भी। दोनों स्थितियों में संज्ञाएँ एकवचन में अथवा बहुवचन में प्रयुक्त होती हैं। उदाहरणार्थ—
बिना कारक-चिह्न के – लड़के खाना खाते हैं। (बहुवचन) लड़कियाँ खाना खाती हैं। (बहुवचन)
कारक – चिह्नों के साथ – लड़कों ने खाना खाया। लड़कियों ने खाना खाया |लड़कों से पूछो। लड़कियों से पूछो।
इस प्रकार, संज्ञा का रूपांतर लिंग, वचन और कारक के कारण होता है।