शब्द (Shabd) (शब्द-विचार) – परिभाषा, भेद और उदाहरण – Shabd Bhed Examples In Hindi Grammar – Hindi Vyakaran शब्द किसे कहते हैं इसके कितने भेद होते हैं || shabd kise kahate hai?
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यहां पर हम आपके शब्द एवं शब्द विचारों तथा शब्द क्या है? शब्द की परिभाषा भेद और शब्द के विभिन्न प्रकार तथा उदाहरण पर चर्चा करेंगे हिंदी व्याकरण सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
एक या एक से अधिक वर्णों के मेल से बनी हुई स्वतंत्र सार्थक इकाई शब्द कहलाती है। भारतीय संस्कृति में शब्द को ब्रह्म कहा गया है। वाक्य में प्रयुक्त शब्द पद कहलाते हैं।
भाषा कुछ शब्द स्वयं बनाती है, तो कुछ शब्द अन्य भाषाओं से ग्रहण करती है। शब्दों का वर्गीकरण पाँच आधारों पर किया जाता है:
व्युत्पत्ति/रचना के आधार पर, स्रोत/उत्पत्ति के आधार पर, अर्थ के आधार पर, व्याकरणिक प्रकार्य के आधार पर, प्रयोग के आधार पर.
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ध्वनियों के मेल से बने सार्थक वर्णसमुदाय को ‘शब्द’ कहते हैं। शब्द अकेले और कभी दूसरे शब्दों के साथ मिलकर अपना अर्थ प्रकट करते हैं। इन्हें हम दो रूपों में पाते हैं — एक तो इनका अपना बिना मिलावट का रूप है, जिसे संस्कृत में प्रकृति या प्रातिपदिक कहते हैं और दूसरा वह, जो कारक, लिंग, वचन, पुरुष और काल बतानेवाले अंश को आगे-पीछे लगाकर बनाया जाता है, जिसे पद कहते हैं। यह वाक्य में दूसरे शब्दों से मिलकर अपना रूप झट सँवार लेता है। शब्दों की रचना ( १ ) ध्वनि और (२) अर्थ के मेल से होती है। एक या अधिक वर्गों से बनी स्वतंत्र सार्थक ध्वनि को शब्द कहते हैं; जैसे— लड़की, आ, मैं, धीरे, परंतु इत्यादि । अतः, शब्द मूलतः ध्वन्यात्मक होंगे या वर्णात्मक। किंतु, व्याकरण में ध्वन्यात्मक शब्दों की अपेक्षा वर्णात्मक शब्दों का अधिक महत्त्व है। वर्णात्मक शब्दों में भी उन्हीं शब्दों का महत्त्व है, जो सार्थक हैं, जिनका अर्थ स्पष्ट और सुनिश्चित है। व्याकरण में निरर्थक शब्दों पर विचार नहीं होता।
सामान्यतः शब्द दो प्रकार के होते हैं— सार्थक और निरर्थक । सार्थक शब्दों के अर्थ होते हैं और निरर्थक शब्दों के अर्थ नहीं होते। जैसे— ‘पानी’ सार्थक शब्द है और ‘नीपा’ निरर्थक शब्द, क्योंकि इसका कोई अर्थ नहीं।
भाषा की परिवर्तनशीलता उसकी स्वाभाविक क्रिया है। समय के साथ संसार की सभी भाषाओं के रूप बदलते हैं। हिंदी इस नियम का अपवाद नहीं है। संस्कृत के अनेक शब्द पालि, प्राकृत और अपभ्रंश से होते हुए हिंदी में आए हैं। इनमें कुछ शब्द तो ज्यों-के-त्यों अपने मूलरूप में हैं और कुछ देश-काल के प्रभाव के कारण विकृत हो गए हैं।
व्युत्पत्ति की दृष्टि से शब्दों का वर्गीकरण
उत्पत्ति की दृष्टि से शब्दों के चार भेद हैं-
(१) तत्सम (२) तद्भव (३) देशज एवं (४) विदेशी शब्द |
तत्सम
किसी भाषा के मूलशब्द को ‘तत्सम’ कहते हैं। ‘तत्सम’ का अर्थ ही है- ‘उसके समान’ या ‘ज्यों-का-त्यों’ (तत्, तस्य उसके – संस्कृत के, सम-समान) । यहाँ संस्कृत के उन तत्समों की सूची है, जो संस्कृत से होते हुए हिंदी में आए हैं-
तत्सम हिंदी
आम्र आम
गोमल, गोमय गोबर
उष्ट्र ऊँट
घोटक घोड़ा
चुल्लि: चूल्हा
शत सौ
चतुष्पादिका चौकी
सपत्नी सौत
हरिद्रा हल्दी, हरदी
शलाका सलाई
चंचु चोंच
पर्यक पलंग
त्वरित तुरत, तुरंत
भक्त भात
उद्वर्तन उबटन
सूचि सुई
खर्पर खपरा, खप्पर
सक्तु सत्तू
तिक्त तीता
क्षीर खीर
तद्भव
ऐसे शब्द, जो संस्कृत और प्राकृत से विकृत होकर हिंदी में आए हैं, ‘तद्भव’ कहलाते हैं। तत् + भव का अर्थ है— उससे (संस्कृत से) उत्पन्न। ये शब्द संस्कृत से सीधे न आकर पालि, प्राकृत और अपभ्रंश से होते हुए हिंदी में आए हैं। इसके लिए इन्हें एक लंबी यात्रा तय करनी पड़ी है। सभी तद्भव शब्द संस्कृत से आए हैं, परंतु कुछ शब्द देश – काल के प्रभाव से ऐसे विकृत हो गए हैं कि उनके मूलरूप का पता नहीं चलता। फलतः, तद्भव शब्द दो प्रकार के हैं- – (१) संस्कृत से आनेवाले और (२) सीधे प्राकृत से आनेवाले। हिंदी भाषा में प्रयुक्त होनेवाले बहुसंख्य शब्द ऐसे तद्भव हैं, जो संस्कृत-प्राकृत से होते हुए हिंदी में आए हैं। हिंदी में शब्दों के सरलतम रूप बनाए रखने का पुराना अभ्यास है। निम्नलिखित उदाहरणों से तद्भव शब्दों के रूप स्पष्ट
हो जाएँगे – –
संस्कृत प्राकृत तद्भव हिंदी
अग्नि अग्गि आग
मया मई मैं
वत्स वच्छ बच्चा, बाछा
चतुर्दश चोदस, चउद्दह चौदह
पुष्प पुप्फ फूल
चतुर्थ चउट्ठ, चडत्थ चौथा
प्रिय पिय, पिया प्रिय
कृतः कओ किया
मध्य मज्झ में
मयूर मऊर मोर
वचन वअण बैन
नव नअ नौ
चत्वारि चत्तारि चार
अर्द्धतृतीय अड्ढतइअ अढ़ाई, ढाई
‘देशज’
‘देशज’ वे शव्द हैं, जिनकी व्युत्पत्ति का पता नहीं चलता। ये अपने ही देश में बोलचाल से बने हैं, इसलिए इन्हें देशज कहते हैं। हेमचंद्र ने उन शब्दों को ‘देशी’ कहा है, जिनकी व्युत्पत्ति किसी संस्कृत धातु या व्याकरण के नियमों से नहीं हुई। लोकभाषाओं में ऐसे शब्दों की अधिकता है; जैसे- तेंदुआ, चिड़िया, कटरा, अंटा, ठेठ, कटोरा, खिड़की, ठुमरी, खखरा, चसक, जूता, कलाई, फुनगी, खिचड़ी, पगड़ी, बियाना, लोटा, डिबिया, डोंगा, डाब इत्यादि । विदेशी विद्वान् जॉन बीम्स ने देशज शब्दों को मुख्यरूप से अनार्यस्रोत से संबद्ध माना है।
विदेशी शब्द
विदेशी भाषाओं से हिंदी भाषा में आए शब्दों को ‘विदेशी शब्द’ कहते हैं। इनमें फारसी, अरबी, तुर्की, अँगरेजी, पुर्तगाली और फ्रांसीसी भाषाएँ मुख्य हैं। अरबी, फारसी और तुर्की के शब्दों को हिंदी ने अपने उच्चारण के अनुरूप या अपभ्रंश रूप में ढाल लिया है। हिंदी में उनके कुछ हेर-फेर इस प्रकार हुए है!
१. क, ख, ग, फ़ जैसे नुक्तेदार उच्चारण और लिखावट को हिंदी में साधारणतया बेनुक्तेदार उच्चरित किया और लिखा जाता है; जैसे- क़ीमत (अरबी) = कीमत (हिंदी), ख़ूब (फारसी) = खूब (हिंदी), आग़ा (तुर्की) = आगा (हिंदी), फ़ैसला (अरबी) = फैसला (हिंदी)।
२. शब्दों के अंतिम विसर्ग की जगह हिंदी में आकार की मात्रा लगाकर लिखा या बोला जाता है; जैसे – आईनः और कमीन (फारसी) = आईना और कमीना (हिंदी) हैज: (अरबी) = हैजा (हिंदी), चम्चः (तुर्की) = चमचा (हिंदी)।
३. शब्दों के अंतिम हकार की जगह हिंदी में आकार की मात्रा कर दी जाती है; जैसे -अल्लाह (अरब) = अल्ला (हिंदी)।
४. शब्दों के अंतिम आकार की मात्रा को हिंदी में हकार कर दिया जाता है; जैसे-परवा (फारसी) = परवाह (हिंदी) ।
५. शब्दों के अंतिम अनुनासिक आकार को ‘आन’ कर दिया जाता है; जैसे – दुका (फारसी) = दुकान (हिंदी), ईमाँ (अरबी) = ईमान (हिंदी) ।
६. बीच के ‘इ’ को ‘य’ कर दिया जाता है; जैसे- काइदः (अरबी) = कायदा (हिंदी) ।
७. बीच के आधे अक्षर को लुप्त कर दिया जाता है; जैसे—नश्शः (अरबी) = नशा (हिंदी)।
८. बीच के आधे अक्षर को पूरा कर दिया जाता है; जैसे – अफसोस, गर्म, जह्न, किश्मिश, बेर्हम (फारसी) = अफसोस, गरम, जहर, किशमिश, बेरहम (हिंदी); तर्फ, नह, कस्रत (अरबी) तरफ, नहर, कसरत (हिंदी); चमूचः, तग्गा (तुर्की) = (हिंदी।
९. बीच की मात्रा लुप्त कर दी जाती है; जैसे- आबोदान (फारसी) = आबदाना = चमचा, तमगा (हिंदी); जवाहिर, मौसिम, वापिस (अरबी) = जवाहर, मौसम, वापस (हिंदी); चुगुल (तुर्की) = चुगल (हिंदी) । १०. बीच में कोई ह्रस्व मात्रा (खासकर ‘इ’ की मात्रा) दे दी जाती है; जैसे—आतशबाजी (फारसी) = आतिशबाजी (हिंदी); दुन्या, तक्यः (अरबी) = दुनिया, तकिया (हिंदी)
११. बीच की ह्रस्व मात्रा को दीर्घ में, दीर्घ मात्रा को ह्रस्व में या गुण में, गुण मात्रा को ह्रस्व में और ह्रस्व मात्रा को गुण में बदल देने की परंपरा है; जैसे – खुराक (फारसी) = खूराक (हिंदी) (ह्रस्व के स्थान में दीर्घ); आईनः (फारसी) = आइना (हिंदी) (दीर्घ के स्थान में ह्रस्व) ; उम्मीद (फारसी) = उम्मेद (हिंदी) (दीर्घ ‘ई’ के स्थान में गुण ‘ए’); देहात (फारसी) = दिहात (हिंदी) (गुण ‘ए’ के स्थान में ‘इ), मुग़ल (तुर्की) = मोगल (हिंदी) (‘उ’ के स्थान में गुण ‘ओ’) ।
१२. अक्षर में सवर्गी परिवर्तन भी कर दिया जाता है; जैसे— बालाई (फारसी) मलाई (हिंदी) (‘ब’ के स्थान में उसी वर्ग का वर्ण ‘म’) ।
हिंदी के उच्चारण और लेखन के अनुसार हिंदी भाषा में घुले-मिले कुछ विदेशज शब्द आगे दिए जाते हैं।
(अ) फारसी शब्द
अफसोस, आबदार, आबरू, आतिशबाजी, अदा, आराम, आमदनी, आवारा, आफत, आवाज, आईना, उम्मीद, कद्द, कबूतर, कमीना, कुश्ती, कुश्ता, किशमिश, कमरबंद, किनारा, कूचा, खाल, खुद, खामोश खरगोश, खुश, खुराक, खूब, गर्द, गज, गुम, गल्ला, गोला, गवाह, गिरफ्तार, गरम, गिरह, गुलूबंद, गुलाब, गुल, गोश्त, चाबुक, चादर, चिराग, चश्मा, चरखा, चूँकि, चेहरा, चाशनी, जंग, जहर, जीन, जोर, जबर, जिंदगी, जादू, जागीर, जान, जुरमाना, जिगर, जोश, तरकश, तमाशा, तेज, तीर, ताक, तबाह, तनख्वाह, ताजा, दीवार, देहात, दस्तूर, दुकान, दरबार, दंगल, दिलेर, दिल, दवा, नामर्द, नाव, नापसंद, पलंग, पैदावार, पलक, पुल, पारा, पेशा, पैमाना, बेवा, बहरा, बेहूदा, बीमार, बेरहम, मादा, माशा, मलाई, मुर्दा, मजा, मलीदा, मुफ्त, मोर्चा, मीना, मुर्गा, मरहम, याद, यार, रंग, रोगन, राह, लश्कर, लगाम, लेकिन, बर्ना,वापिस, शादी, शोर, सितारा, सितार, सरासर, सुर्ख, सरदार, सरकार, सूद,सौदागार, हफ्ता हजार इत्यादि
(आ) अरवी शब्द
ईमान, उम्र, एहसान, औसत, औरत, औलाद, कसूर, कदम, कब्र, कसर, कमाल, किस्त, किस्मत, किस्सा, किला, कसम, कीमत, कसरत, कुर्सी, किताब, कायदा,
अदा, अजब, अमीर, अजीब, अजायब, अदावत, अक्ल, असर, अहमक, अल्ला, आसार, आखिर, आदमी, आदत, इनाम, इजलास, इज्जत, इमारत, इस्तीफा, इलाज, कर्ज, कातिल, खबर, खत्म, खत, खिदमत खराब, खयाल, गरीब, गैर, जाहिल, जिस्म, जलसा, जनाब, जवाब, जहाज, जालिम, जिक्र, जिहन, तमाम तकाजा, तकदीर, तारीख, तकिया, तमाशा, तरफ, तै, तादाद, तरक्की, तजुरबा, दाखिल, दिमाग, दवा, दाबा, दावत, दफ्तर, दगा, दुआ, दफा, दल्लाल, दुकान, दिक, दुनिया, दौलत, दान, दीन, नतीजा, नशा, नाल, नकद, नकल, नहर, फकीर, फायदा, फैसला, बाज, बहस, बाकी, मुहावरा, मदद, मुद्दई, मरजी, माल, मिसाल, मजबूर, मुंसिफ, मालूम, मामूली, मुकदमा, मुल्क, मल्लाह, मवाद, मौसम, मौका, मौलवी, मुसाफिर, मशहूर, मजमून, मतलब, मानी, मात, यतीम, राय, लिहाज, लफ्ज, लहजा, लिफाफा, लियाकत, लायक, वारिस, वहम, वकील, शराब, हिम्मत, हैजा, हिसाब, हरामी, हद, हज्जाम, हक, हुक्म, हाजिर, हाल, हाशिया, हाकिम, हमला, हवालात हौसला इत्यादि
(इ) तुर्की शब्द
आगा, आका, उजबक, उर्दू, कालीन, काबू, कज्जाक, कैंची, कुली, कुर्की, चिक, चेचक, चमचा, चुगुल, चकमक, जाजिम, तमगा, तोप, तलाश, बेगम, बहादुर, मुगल, लफंगा, लाश, सौगात, सुराग इत्यादि
(ई) अँगरेजी शब्द
(अँगरेजी) तत्सम तद्भव
ऑफीसर अफसर
थियेटर थेटर, ठेठर
टरपेंटाइन तारपीन
एंजिन इंजन
डॉक्टर डाक्टर
लैटर्न लालटेन
माइल मील
स्लेट सिलेट
बॉटल बोतल
कैप्टेन कप्तान
हॉस्पिटल अस्पताल
टिकट टिकस
इनके अतिरिक्त, हिंदी में अँगरेजी के कुछ तत्सम शब्द ज्यों-के-त्यों प्रयुक्त होते हैं । इनके उच्चारण में प्रायः कोई भेद नहीं रह गया है; जैसे—अपील, ऑर्डर, इंच, इंटर, इयरिंग, एजेंसी, कंपनी, कमीशन, कमिश्नर, कैंप, क्लास, क्वार्टर, क्रिकेट, काउंसिल, गार्ड, गजट, जेल, चेयरमैन, ट्यूशन, डायरी, डिप्टी डिस्ट्रिक्ट बोर्ड, ड्राइवर, पेंसिल, फाउंटेन पेन, नंबर, नोटिस, नर्स, थर्मामीटर, दिसंबर, पार्टी, प्लेट, पार्सल, पेट्रोल, पाउडर, प्रेस, मीटिंग, कोर्ट, होल्डर, कॉलर इत्यादि ।
(3) पुर्तगाली शब्द
हिंदी पुर्तगाली
अलकतरा Alcatrao
अनन्नास Annanas
आलपीन Alfinete
आलमारी Almario
बाल्टी Balde
किरानी Carrane
चाबी Chave
फीता Fita
तंबाकू Tobacco
इसी तरह, आया, इस्पात, इस्तिरी, कमीज, कनस्टर, कमरा, काजू, क्रिस्तान, गमला, गोदाम, गोभी, तौलिया, नीलाम, परात, पादरी, पिस्तौल, फर्मा, बुताम, मस्तूल, मेज, लबादा, साया, सागू आदि पुर्तगाली तत्सम के तद्भव रूप भी हिंदी में प्रयुक्त होते हैं।
ऊपर जिन शब्दों की सूची दी गई है उनसे यह स्पष्ट है कि हिंदी भाषा में विदेशी शब्दों की कमी नहीं है। ये शब्द हमारी भाषा में दूध-पानी की तरह मिले इनसे हमारी भाषा समृद्ध हुई है। हुए हैं। निस्संदेह,
रचना अथवा बनावट के अनुसार शब्दों का वर्गीकरण
शब्दों अथवा वर्णों के मेल से नये शब्द बनाने की प्रक्रिया को ‘रचना या वनावट’ कहते हैं। कई वर्णों को मिलाने से शब्द बनता है और शब्द के खंड को ‘शब्दांश’ कहते हैं। जैसे— ‘राम’ में शब्द के दो खंड हैं- ‘रा’ और ‘म’। इन अलग-अलग शब्दांशों का कोई अर्थ नहीं है। इसके विपरीत, कुछ ऐसे भी शब्द हैं, जिनके दोनों खंड सार्थक होते हैं; जैसे – विद्यालय । इस शब्द के दो अंश हैं- ‘विद्या’ और ‘आलय’। दोनों के अलग-अलग अर्थ हैं। इस प्रकार, बनावट के विचार से शब्द के तीन प्रकार हैं- (१) रूढ़, (२) यौगिक और (३) योगरूढ़ |
रूढ़ शब्द
जिन शब्दों के खंड सार्थक न हों, उन्हें रूढ़ कहते हैं; जैसे- नाक, कान, पीला, झट, पर। यहाँ प्रत्येक शब्द के खंड – जैसे, ‘ना’ और ‘क’, ‘का’ और ‘न’- अर्थहीन हैं।
यौगिक शब्द
ऐसे शब्द, जो दो शब्दों के मेल से बनते हैं और जिनके खंड सार्थक होते हैं, यौगिक कहलाते हैं। दो या दो से अधिक रूढ़ शब्दों के योग से यौगिक शब्द बनते हैं; जैसे – आग-बबूला, पीला-पन, दूध वाला, छल-छंद, घुड़ सवार इत्यादि । यहाँ प्रत्येक शब्द के दो खंड हैं और दोनों खंड सार्थक हैं।
योगरूढ़ शव्द
ऐसे शब्द, जो यौगिक तो होते हैं, पर अर्थ के विचार से अपने सामान्य अर्थ को छोड़ किसी परंपरा से विशेष अर्थ के परिचायक हैं, योगरूढ़ कहलाते हैं। मतलब यह कि यौगिक शब्द जब अपने सामान्य अर्थ को छोड़ विशेष अर्थ बताने लगें, तब वे ‘योगरूढ़ कहलाते हैं; जैसे—लंबोदर, पंकज, चक्रपाणि, जलज इत्यादि । ‘पंक + ज’ का अर्थ है
कीचड़ से (में) उत्पन्न; पर इससे केवल ‘कमल’ का अर्थ लिया जाएगा, अतः ‘पंकज’ योगरूढ़ है। इसी तरह, अन्य शब्दों को भी समझना चाहिए।
२. शब्द रचना
मूलशब्द, उपसर्ग और प्रत्यय
रूढ़ शब्द दूसरे शब्दों के मेल से नहीं बनते; जैसे— नाक, कान, मुँह, पेट इत्यादि । इन शब्दों के खंड सार्थक नहीं होते। अतः, ये मूल है
यौगिक शब्दों की रचना दो प्रकार से होती है— शब्दांश के मेल से और शब्दों के मेल से। शब्दांश दो प्रकार के होते हैं-उपसर्ग और प्रत्यय । उपसर्ग वह शब्दांश है, जो किसी शब्द के पूर्व जोड़ा जाता है; जैसे— प्रसिद्ध, अभिमान, विनाश, उपकार। इनमें क्रमशः ‘प्र’, ‘अभि’, ‘वि’ और ‘उप’ उपसर्ग हैं।
प्रत्यय वह शब्दांश जो किसी शब्द के अंत में जोड़ा जाता है; जैसे—उठान, बनावट, टिकाऊ आदि। इनमें ‘आन’, ‘आवट’, ‘ऊ’ प्रत्यय लगे हैं। इसके अतिरिक्त शब्द-रचना तीन प्रकार से भी होती है— (क) संधि, (ख) समास और (ग) द्विरुक्ति ।