UP Board and NCERT Solution of Class 9 Science [विज्ञान] ईकाई 3 गति, बल तथा कार्य – Chapter-10 Work and Energy (कार्य तथा ऊर्जा) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Dirgh Uttareey Prashn
प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 9वीं विज्ञान ईकाई3 गति, बल तथा कार्य के अंतर्गत चैप्टर10 (कार्य तथा ऊर्जा) पाठ के दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं कि पोस्ट आपको पसंद आयेगी अगर पोस्ट आपको पसंद आई तो इसे अपने दोस्तों के साथ में जरुर शेयर करें
Class | 9th | Subject | Science (Vigyan) |
Pattern | NCERT | Chapter- | Work and Energy |
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Dirgh Uttareey Prashn
प्रश्न 1. कार्य’ से क्या तात्पर्य है? इसे किस प्रकार मापा जाता है? आवश्यक सूत्र का निगमन कीजिए तथा कार्य का SI मात्रक प्राप्त कीजिए।
उत्तर-कार्य की परिभाषा (Definition of work) – बल लगाकर किसी वस्तु को बल की दिशा में विस्थापित करने की क्रिया को ही कार्य कहते हैं।
अर्थात् कार्य होने के लिए (i) बल तथा (ii) बल की दिशा में विस्थापन दोनों आवश्यक हैं।
कार्य की माप (Measurement of work) – यदि किसी वस्तु पर कोई बल आरोपित करने से वस्तु बल की दिशा में विस्थापित हो जाती है, तो बल द्वारा किए गए कार्य की माप बल के परिमाण तथा बल की दिशा में उत्पन्न विस्थापन के गुणनफल के बराबर होता है, अर्थात्
कार्य = बल × बल की दिशा में विस्थापन
कार्य का मात्रक (Unit of work) :
कार्य = बल × विस्थापन
कार्य का मात्रक = बल का मात्रक × विस्थापन का मात्रक
SI पद्धति में बल का मात्रक N तथा विस्थापन का मात्रक m है।
अतः कार्य का मात्रक = 1 N×m = 1 N-m
SI पद्धति में कार्य के मात्रक N-m को जूल (joule) भी कहते हैं। जूल को संकेताक्षर J से प्रदर्शित करते हैं।
प्रश्न 2. ऊर्जा’ का क्या अर्थ है? ऊर्जा तथा कार्य में सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-ऊर्जा-जब किसी वस्तु में कार्य करने की क्षमता होती है तो कहा जाता है कि वस्तु में ऊर्जा है।
उदाहरणतः गिरते हुए हथौड़े, चलती हुई बन्दूक की गोली, उच्च दाब पर अथवा तेज बहती हुई वायु, ऊँचाई पर रखा अथवा तेज गति से बहते झरने का जल, ऊष्मा इंजन में जलवाष्प, विद्युत सेल आदि ऐसी वस्तुयें हैं जो कार्य कर सकती हैं अर्थात् वस्तुओं पर बल लगाकर उनका विस्थापन कर सकती हैं।
अतः इनमें ऊर्जा है। स्पष्ट है कि ऊर्जा का मात्रक वही होगा जो कार्य का मात्रक है तथा कार्य की भाँति यह भी एक अदिश (scalar) राशि है।
कार्य तथा ऊर्जा स्थानान्तरण (Work and Energy Trans- formation)- हम जानते हैं कि बल लगाने में सदा दो वस्तुयें भाग लेती हैं-एक, जो बल लगा रही है तथा दूसरी, जिस पर बल लग रहा है जब किसी पत्थर के टुकड़े को हाथ से पकड़कर ऊपर उठाते हैं तो पत्थर पर बल हाथ द्वारा लगाया जा रहा है। पत्थर को उठाने का कार्य हाथ द्वारा किया गया है इस क्रिया में कार्य करने वाली वस्तु (हाथ) की ऊर्जा व्यय हुई और पत्थर, जिस पर कार्य किया गया उसको ऊर्जा प्राप्त हुई और उसकी ऊर्जा में वृद्धि हुई।
कार्य तथा ऊर्जा में सम्बन्ध-जब एक वस्तु दूसरी पर कार्य करती है तो कार्य करने वाली वस्तु की ऊर्जा का व्यय होता है तथा जिस पर कार्य किया जाता है उसकी ऊर्जा बढ़ जाती है। निकाय की सम्पूर्ण ऊर्जा में कोई परिवर्तन नहीं होता। एक की जितनी ऊर्जा व्यय होती है उतनी ही ऊर्जा की वृद्धि दूसरे की हो जाती है। ऊर्जा स्थानान्तरण की माप किये गये कार्य से की जा सकती है।
स्थानान्तरित ऊर्जा = किया गया कार्य
प्रश्न 3. गतिज ऊर्जा की परिभाषा लिखिए तथा किसी गतिमान वस्तु की गतिज ऊर्जा का सूत्र निगमित कीजिए।
अथवा
किसी पिण्ड का द्रव्यमान m एवं इसका वेग v है। सिद्ध कीजिए कि उसकी गतिज ऊर्जा 1/2 mv 2 होगी।
उत्तर-गतिज ऊर्जा (Kinetic Energy)- किसी वस्तु में उसकी गति के कारण कार्य करने की जो क्षमता होती है उसे उस वस्तु की गतिज ऊर्जा कहते है।
उदाहरणार्थ- पैडल चलाना बंद करने पर भी साइकिल, उस पर लगने वाले घर्षण बल के विरुद्ध कुछ दूरी तय कर सकती है। इस क्रिया में साइकिल घर्षण बल के विरुद्ध कार्य करती है। उसकी यह गतिज ऊर्जा उसके द्वारा किये गये इस कार्य के बराबर होगी।
गतिज ऊर्जा का सूत्र (Formula of Kinetic Energy) – माना कि m द्रव्यमान की कोई वस्तु v वेग से गतिशील है और एक मंदक बल F लगाने पर वह s दूरी चलकर विरामावस्था में आ जाती है। इस क्रिया में वस्तु द्वारा जितना कार्य किया जायगा वही उसकी गतिज ऊर्जा होगी। चूँकि F बल के विरुद्ध s दूरी चलने में किया गया कार्य F.s होता है अतः उसकी गतिज ऊर्जा का मान F.s होगा।
यदि मंदक बल F के कारण वस्तु में उत्पन्न मंदन α हो तो गति के तृतीय समीकरण के लिए वस्तु का प्रारंभिक वेग v अंतिम वेग शून्य, त्वरण -a तथा चली गयी दूरी s है। अतः
प्रश्न 4. ‘ऊर्जा संरक्षण’ का क्या अर्थ है? उदाहरण देकर समझाइए।
अथवा
यांत्रिक ऊर्जा संरक्षण का नियम लिखिए। सिद्ध कीजिए कि स्वतन्त्रतापूर्वक गिरते हुए किसी भी पिण्ड में गतिज ऊर्जा तथा स्थितिज ऊर्जा का योग सदैव नियत रहता है।
उत्तर-ऊर्जा का संरक्षण– ऊर्जा का एक रूप से दूसरे रूप में केवल परिवर्तन ही किया जा सकता है, ऊर्जा न तो उत्पन्न की जा सकती है न ही नष्ट। इसे ऊर्जा के संरक्षण का सिद्धान्त कहते हैं। इसके परिणामस्वरूप विश्व की समस्त प्रकार की ऊर्जा का कुल परिमाण स्थिर रहता है। इसका तात्पर्य यह है कि यदि किसी क्रिया में किसी प्रकार की कुछ ऊर्जा लुप्त हो जाती है तो उतनी ही ऊर्जा किसी दूसरे रूप में उत्पन्न हो जाती है।
गुरुत्व के अन्तर्गत स्वतन्त्र रूप से गिरती वस्तु-पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण मुक्त रूप से नीचे गिरती हुई वस्तु में दो प्रकार की ऊर्जाएँ हो सकती हैं-स्थितिज ऊर्जा व गतिज ऊर्जा।
मान लीजिए m द्रव्यमान की एक वस्तु पृथ्वी तल से h ऊँचाई पर स्थित बिन्दु A पर विरामावस्था में है। क्योंकि A पर वस्तु का वेग शून्य है, इसलिए यहाँ इसकी गतिज ऊर्जा का मान शून्य होगा। अतः इस अवस्था में वस्तु की कुल ऊर्जा = गतिज ऊर्जा + स्थितिज ऊर्जा
=0+mgh = mgh … (i)
अब मान लें वस्तु को उसकी प्रारम्भिक स्थिति A से x दूरी नीचे बिन्दु B तक गिराया जाता है। गति के तीसरे समीकरण से B पर वस्तु में उत्पन्न वेग निम्न समीकरण से दिया जायेगा-