UP Board and NCERT Solution of Class 9 Science [विज्ञान] ईकाई 4 खाद्य उत्पादन – Chapter-12 Improvement in Food Resources(खाद्य संसाधनों में सुधार विज्ञान ) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Dirgh Uttareey Prashn
प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 9वीं विज्ञान ईकाई4 खाद्य उत्पादन के अंतर्गत चैप्टर12(खाद्य संसाधनों में सुधार विज्ञान) पाठ के दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं कि पोस्ट आपको पसंद आयेगी अगर पोस्ट आपको पसंद आई तो इसे अपने दोस्तों के साथ में जरुर शेयर करें
Class | 9th | Subject | Science (Vigyan) |
Pattern | NCERT | Chapter- | Improvement in Food Resources |
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Dirgh Uttareey Prashn
प्रश्न 1. मिश्रित फसली खेती में फसलों का चयन किस आधार पर करते हैं?
उत्तर– मिश्रित फसली या बहुफसली खेती में फसलों का चयन निम्न बातों को ध्यान में रखकर करते हैं-
(i) फसल की अवधि–एक फसल लम्बी अवधि की व दूसरी फसल छोटी अवधि की होती है।
(ii) वृद्धि की आदत–एक फसल के पौधे लम्बे व दूसरी फसल के छोटे होते हैं।
(iii) जड़ों का प्रकार– एक की जड़ें गहराई तक जाने वाली हों।
(iv) पानी की आवश्यकता–एक को कम व दूसरी को अधिक पानी की आवश्यकता हो।
(v) पोषक तत्त्वों की आवश्यकता–एक को कम व दूसरी को अधिक पोषक तत्त्वों की आवश्यकता हो।
प्रश्न 2. अंतराफसलीकरण (इन्टरक्रोपिंग) क्या है? मिश्रित खेती व अन्तराफसलीकरण में समानता व असमानता बताइये ।
उत्तर– एक ही खेत पर दो या अधिक फसलें पंक्तिबद्ध रूप या निर्दिष्ट पैटर्न में उगाना अंतराफसलीकरण कहलाता है।
मिश्रित खेती व अन्तराफसलीकरण की तुलना
मिश्रित खेती | अंतराफसलीकरण |
1. फसल असफलता को कम करना इसका उद्देश्य है।
2. दो फसलों के बीज बोने से पहले मिला दिये जाते हैं। 3. पंक्तियाँ नहीं बनायी जातीं। 4.फसल विशेष में उर्वरक लगाना कठिन है। 5.कीटनाशक का स्प्रे फसल विशेष के लिए कठिन है। 6. फसलें अलग काटना व विनाना संभव नहीं है। 7. फसलों की अलग-अलग बिक्री असंभव है। |
1. प्रति इकाई क्षेत्रफल में पैदावा. बढ़ाना, इसका उद्देश्य है।
2. बीज मिलाये नहीं जाते। 3. पंक्तियाँ बनायी जाती हैं या निर्दिष्ट पैटर्न प्रयोग किया जाता है। 4. उर्वरक आवश्यकतानुसार पंक्ति में लगाया जाता है। 5. कीटनाशक का स्प्रे फसल विशेष के लिए किया जा सकत है। 6. फसलों की कटाई व विनाई अलग-अलग संभव है। 7. प्रत्येक फसल की बिक्री अलग- अलग होती है।
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प्रश्न 3. शस्यावर्तन (फसल चक्र) से आप क्या समझते हो ? यह उपयोगी क्यों है? इससे फसल को होने वाला एक लाभ लिखिए।
उत्तर–फसल–चक्र या शस्यावर्तन– किसी भूमि पर फसलों को पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार अदल-बदल कर उगाना, फसल चक्र या शस्यावर्तन कहलाता है। इस विधि में दो अनाज वाली फसलों के मध्य एक फलीदार (लेग्यूम) फसल जैसे मटर, सोयाबीन, चना, मूँगफली आदि लगायी जाती है।
फसल भूमि से नाइट्रोजन यौगिक अधिकता से ग्रहण करती है जो भूमि की उर्वरता बढ़ाने के लिए अत्यन्त आवश्यक है। अनाज वाली फसल भूमि से नाइट्रोजन यौगिक अधिकता से ग्रहण करती है जिससे भूमि में नाइट्रोजन की कमी हो जाती है। दाल वाली फसलों के पौधों की जड़ों में एक प्रकार के जीवाणु रहते हैं जो वायुमण्डल की नाइट्रोजन को नाइट्रोजन यौगिकों में बदलकर भूमि को प्रदान करते हैं। इस प्रकार भूमि को आवश्यक पोषक तत्त्व नाइट्रोजन की आपूर्ति से हो जाती है।
इस प्रकार मृदा की उर्वरता बढ़ जाती है तथा यदि फसल चक्र उचित ढंग से अपनाया जाए तो वर्ष में तीन तक फसलें उगायी जा सकती हैं।
प्रश्न 4. (a) लेयर किसे कहते हैं?
(b) कुक्कुट के जीवन में अंडे देने की अवधि का वर्णन कीजिए।
(c) दो बाह्य कारकों के नाम बताइए जो मुर्गी के अंडे के उत्पादन पर अनुकूलित प्रभाव डालते हैं।
(d) ब्रौलर किसे कहते हैं? इनकी पोषण की आवश्यकता का वर्णन कीजिए।
(e) कुक्कुट के जीवन में विभिन्न अवस्था के नाम लिखिए।
उत्तर– (a) मुर्गी की उस अवस्था को जिसमें वह अंडों का उत्पादन करती है लेयिंग (Laying) अवस्था कहते हैं तथा उसे लेयर (Layer) कहते हैं। एक लेयर 20 सप्ताह की अवस्था में अंडे देना आरंभ करती है।
(b) लैंगिक परिपक्वता से अंडे देने तक की अवधि अण्डे देने की अवधि कहलाती है। इस अवधि में चूजों को लेयर्स कहते हैं। लेयर्स को पर्याप्त स्थान तथा उचित प्रकाश की आवश्यकता होती है।
(c) दो बाह्य कारक जो अंडे के उत्पादन पर अनुकूलित प्रभाव डालते हैं-
(i) प्रकाश की तीव्रता, (ii) प्रकाश की अवधि।
(d) मुर्गी मांस उत्पादित नस्ल है। ब्रौलर के भोजन में-
(i) प्रोटीन अधिक होनी चाहिए, (ii) पर्याप्त वसा होनी चाहिए। (iii) विटामिन A तथा K की अधिक मात्रा होनी चाहिए।
(e) कुक्कुट के जीवन में दो अवस्थाएँ है-
(i) विकास अवधि।
(ii) अंडा देने की अवधि।
प्रश्न 5. खाद की परिभाषा लिखिए। विभिन्न खाद कौन–कौन–सी होती हैं और ये मिट्टी को किस प्रकार प्रभावित करती हैं?
उत्तर–खाद (Manures)- खाद प्राकृतिक पदार्थ है। यह गाय है गोबर, मल-मूत्र, रेशे, पत्तियों आदि से बनती है। इन्हें प्राकृतिक उत्र (Natural fertilizers) कहते है। मृदा में कार्बनिक पदार्थों का होना अन्र्गत आवश्यक है। इसमे मृदा में ह्यूमस (humus) ऊपन्न होना है। धूमय से, जी कार्बनिक पदार्थों, जैसे पौधों के विभिन्न भागों, मृन पदाथर्थी, जीव-जंतुओं आदिধ के विभिन्न उत्सर्जी अथवा मृदा भागों के जीवाणुओं आदि की प्रक्रियाओं से बनता है, पौधों को अनेक आवश्यक पदार्थों की प्राप्ति होती है।
हरी खाद के लिए दलहनी फसलें (Legume crops) अधिक उपयोगी होती हैं। दलहनी पौधों की जड़ों में पाई जाने वाली ग्रन्थिकाओं (nodules) में नाइट्रोजन स्थिरीकरण जीवाणु रहता है। इन फसलों के खेत में जीतकर दया देने से भूमि में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ जाती है तथा साथ-साथ जैविक पदार्थ भी मिल जाता है जिसके कारण भूमि के गठन में सुधार होता है।
खादों के प्रकार – ये गोबर की खाद, एफवाईएम (FYM), कंपोस्ट व वर्मी कंपोस्ट, हरी खाद होती हैं।
प्रश्न 6. उर्वरक क्या हैं? परम्परागत खाद व रायायनिक उर्वरकों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
उर्वरक एवं खाद में चार भिन्नताएँ लिखिए।
उत्तर–वे पदार्थ जो मृदा की उर्वरक क्षमता को बढ़ाने के लिए बाहर से दिये जाते हैं, उर्वरक कहलाते हैं। उर्वरक दो प्रकार के होते हैं- (a) परम्परागत खाद, (b) रासायनिक उर्वरक ।
(a) परम्परागत खाद– वह खाद जो वनस्पतिये, कृषि एवं पशु अपशिष्ट के अपस्टन तैयार की जाती है, परम्परागत खाद कहलाती है। जैसे-कम्पोस्ट खाद, हरी खाद। से
(b) रासायनिक उर्वरक– वे रासायनिक यौगिक जो आवश्यक पोषक तत्त्वों की पूर्ति करते हैं रासायनिक उर्वरक कहलाते हैं। जैसे-
(i) नाइट्रोजन उर्वरक– जो भूमि को नाइट्रोजन की आपूर्ति करते हैं उदाहरणार्थ, यूरिया, अमोनियम नाइट्रेट।
(ii) पोटाश उर्वरक– जो भूमि को पोटैशियम की आपूर्ति करते हैं उदाहरणार्थ, पोटाश राख, पौटेशियम क्लोराइड।
(iii) फॉस्फेट उर्वरक– जो भूमि को फॉस्फेट की आपूर्ति करते हैं उदाहरणार्थ, NPK, सुपर फॉस्फेट।
मृदा की प्रकृति और फसल की आवश्यकता के अनुसार किसी उर्वरक का चयन किया जाता है।
परम्परागत खाद व रासायनिक उर्वरकों में अन्तर
परम्परागत खाद
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रासायनिक उर्वरक
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1. ये वनस्पति एवं जन्तुओं के अपशिष्ट पदार्थों के सुक्ष्म जीवों द्वारा अपघटन से प्राप्त कार्बनिक पदार्थ हैं।
2.ये सूक्ष्म जीवों द्वारा जैव-रासायनिक क्रिया के परिणामस्वरूप उत्पन्न होते हैं।
3. इनमें विभिन्न पोपकों के मिश्रित यौगिक होते हैं।
4. ये मृदा का गठन बनाये रखते हैं व उसे वातित बनाते हैं।
5.ये मृदा की जल रोकने की क्षमता को बढ़ाते हैं।
6. इनका परिवहन तथा भंडारण आसान नहीं है, क्योंकि इनका आयतन बहुत अधिक है।
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1. ये रासार्यानक यौगिक हैं जो रासायनिक अभिकर्मिकों द्वारा उत्पन्न किये जाते हैं।
2. ये रासायनिक अभिक्रिया के परिणामस्वरूप उत्पन्न होते हैं।
3. इनमें कोई पोषक विशेष ही पाया जाता है।
4. इनमें ऐसा नहीं होता।
5. इनमें ऐसा नहीं होता।
6. इनका परिवहन तथा भंडारण आसान है क्योंकि सांद्र होने के कारण इनका आयतन कम होता है।
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प्रश्न 7. पशु–पक्षियों के पोषण के लिए आहार की क्या–क्या विशेषताएँ होनी चाहिए?
अथवा
पशु–पक्षियों के आहार निर्धारण हेतु किन–किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
उत्तर–पशु–पक्षियों के आहार की विशेषताएँ– पशु पक्षियों के पोषण के लिए आहार की निम्न विशेषताएँ होनी चाहिए अर्थात् उनके आहार निर्धारण हेतु निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए-
- गर्भावस्था के दौरान पशु-पक्षियों को भ्रूणीय विकास हेतु अधिक पौष्टिक आहार देना चाहिए।
- युवा पशु-पक्षियों को अधिक प्रोटीन युक्त आहार देना चाहिए।
- अधिक परिश्रम करने वाले पशुओं को ऊर्जा प्रदान करने वाले अर्थात् अधिक कार्बोज की मात्रा वाले आहार देने चाहिए।
- जो पशु-पक्षी उत्पादन कार्य नहीं कर रहे हों उन्हें केवल निर्वाह आहार देना चाहिए।
- पशु-पक्षियों के आहार का निर्धारण उनकी स्वास्थ्य दशा एवं मौसम को ध्यान में रखकर करना चाहिए।
- पशु-पक्षियों के आहार ग्रहण न करने की स्थिति में उन जीवों के स्वास्थ्य का परीक्षण करवाना चाहिए।
प्रश्न 8. पशु आहार के विभिन्न घटकों के कार्य एवं स्त्रोत लिखिए।
उत्तर– पशु आहार के विभिन्न घटकों के कार्य एवं स्रोत–
आहार के घटक | कार्य | स्रोत |
1. कार्बोहाइड्रेट | ऊर्जा प्रदान करना | गेहूँ, चावल, ज्वार,मक्का एवं बाजरा आदि। |
2. प्रोटीन | वृद्धि एवं कोशिकाओं की टूट-फूट की मरम्मत | मूँगफली, कपास, सोयाबीन की खली एवं दालें। |
3. वसा
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ऊर्जा प्रदान करना | तिल, मूंगफली, सोयाबीन के बीज का तेल, खल। |
4. खनिज लवण | निरोग रखना | नमक, हरा चारा, खनिज मिश्रण। |
5. रेशे | ऊर्जा प्रदान करते हैं तथा पाचन शक्ति बढ़ाते हैं | बरसीम, कड़बी, चरी, हरा चारा,
भुस, कुटी। |
6. पानी | सभी जैव क्रियाओं के लिए आवश्यक | तालाब, पोखर, कुआँ, नदी। |
प्रश्न 9. पशु–पक्षियों को रोगों से बचाने के लिए क्या–क्या प्रयास करने चाहिए?
अथवा
पशु–पक्षियों को रोगों से बचाने के लिए मुख्य उपाय लिखिए।
उत्तर–पशु-पक्षियों को विभिन्न बीमारियों (रोगो) से बचाने के उपाय-पशु-पक्षियों को विभिन्न बीमारियों (रोगों) से बचाने के लिए निम्न उपाय (प्रयास) करने चाहिए-
- रोगी पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए-
- पशुशाला एवं कुक्कुटशाला को साफ-सुथरा एवं जीवाणुरहित (संक्रमण रहित) रखना चाहिए।
- बिछावन एवं अन्य दूषित पदार्थों को नष्ट कर देना चाहिए।
- रोग फैलने की सूचना तुरन्त पशु चिकित्सक को देनी चाहिए।
- पशु चिकित्सक द्वारा समय-समय पर परीक्षण करवाते रहना चाहिए।
- पशुओं की देखभाल करने वाले व्यक्ति को अपनी साफ-सफाई का ध्यान रखना चाहिए।
- नवीन पशुओं को परीक्षण के उपरान्त ही समूह में शामिल करना चाहिए।
- चरागाहों को बदलते रहना चाहिए।
- पशुओं को पौष्टिक सन्तुलित आहार देना चाहिए।
- उचित समय पर विभिन्न रोगों के टीके पशुओं को अवश्य ही लगवाने चाहिए।
प्रश्न 10. एक उत्तम पशु आवास कैसा होना चाहिए?
अथवा
एक उत्तम पशु आवास में कौन–कौन–सी सुविधाएँ होनी चाहिए।
उत्तर–एक उत्तम पशु आवास की विशेषताएँ एवं उसमें मिलने वाली सुविधाएँ– एक उत्तम पशु आवास में निम्नलिखित विशेषताएँ एवं उसमें मिलने वाली सुविधाएँ होनी चाहिए-
- पशु आवास ऊँचाई पर स्थित होना चाहिए जिससे वहाँ जल भराव न हो सके।
- आवास स्वच्छ एवं जीवाणु रहित होना चाहिए।
- आवास में प्रतिदिन साफ-सफाई की व्यवस्था होनी चाहिए।
- आवास हवादार होना चाहिए जहाँ स्वच्छ हवा के आवागमन की व्यवस्था हो।
- आवास में सूर्य के प्रकाश को आने की व्यवस्था होनी चाहिए।
- आवास में पशुओं के लिए स्वच्छ पेयजल की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।
- आवास में मलमूत्र एकत्रित नहीं होना चाहिए तथा पशुओं को रहने के लिए सूखा स्थान प्राप्त होना चाहिए।
- पशु आवास का फर्श पक्का एवं ढालू होना चाहिए।
प्रश्न 11. मछली उत्पादन के स्त्रोत कितने प्रकार के हैं? इन स्त्रोतों का वर्णन विस्तार से कीजिए।
उत्तर : मछली उत्पादन के स्रोत दो प्रकार के हैं :
(i) लवणीय या खारे जल के स्रोत, (ii) अलवणीय या ताजे जल के स्रोत
(i) लवणीय या खारे जल के स्त्रोत– समुद्र मछली उत्पादन के लवणीय जल स्रोत हैं। लवणीय जल में मछलियों की कुछ विशेष प्रजातियाँ मिलती हैं, जैसे-पॉमफ्रेट (Pomphret), टुना (Tuna), मेकर्ल (Mackerel), सारडाइन (Sardine) और बॉम्बे डक (Bombay duck)। भारत में लगभग 7500 km समुद्री तट है जहाँ से ये प्रजातियाँ पकड़ी जाती हैं। ये मछली उत्पादन के प्राकृतिक स्रोत हैं।
(ii) अलवणीय या ताजे जल के स्त्रोत– नदियाँ, नाले, तालाब और पोखर मछली उत्पादन के अलवणीय या ताजे जल के स्रोत हैं। ताजे जल की कुछ प्रमुख प्रजातियाँ हैं कटला, मृगल, रोहू, सिल्वर कार्प, ग्रास कार्प एवं कॉमन कार्प। इन स्त्रोतों में मछलियों का संवर्धन (पालन) किया जाता है।
प्रश्न 12. निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए–
(a) मिश्रित खेती (b) अंतराफसलीकरण (c) फसल चक्र
उत्तर : (a) मिश्रित खेती–मिश्रित खेती में फार्म पर पशुपालन, भेड़- पालन, मुर्गीपालन तथा अन्य कृषि कार्य किये जाते हैं। यह अत्यंत लाभदायक है। इसमें नुकसान कम होता है तथा आय वर्षभर होती है। दो या अधिक फसलें एक साथ उगाने पर हानि की संभावना कम हो जाती है।
मिश्रित खेती से निम्नलिखित लाभ हैं-
(i) भूमि की उर्वरता को बढ़ाते हैं।
(ii) अनिश्चित मानसून के कारण सम्पूर्ण फसल के नष्ट होने की संभावना को कम करता है।
(iii) इससे हानि होने की संभावना कम रहती है, क्योंकि एक फसल के नष्ट हो जाने पर भी दूसरी फसल के उत्पादन की आशा बनी रहती है।
(b) अंतराफसलीकरण– अंतराफसलीकरण में दो या दो से अधिक फसलों को एक साथ एक ही खेत में निर्दिष्ट पैटर्न पर उगाते हैं। कुछ पंक्तियों में एक प्रकार की फसल तथा उनके एकांतर में स्थित दूसरी पंक्तियों में दूसरी प्रकार की फसल उगाते हैं। इसके उदाहरण हैं सोयाबीन + मक्का अथवा बाजरा + लोबिया। फसल का चुनाव इस प्रकार करते हैं कि उनकी पोषक तत्त्वों की आवश्यकताएँ भिन्न-भिन्न हों जिनसे पोषकों का अधिकतम उपयोग हो सके। इस विधि द्वारा पीड़क व रोगों को एक प्रकार की फसल के सभी पौधों में फैलने से रोका जा सकता है।
(c) फसल चक्र–किसी खेत में क्रमवार पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार विभिन्न फसलों के उगाने को फसल चक्र कहते हैं। परिपक्वन काल के आधार पर विभिन्न फसल सम्मिश्रण के लिए फसल चक्र अपनाया जाता है। एक कटाई के बाद कौन-सी फसल उगानी चाहिए, यह नमी तथा सिंचाई की उपलब्धता पर निर्भर करता है। यदि फसल चक्र उचित ढंग से अपनाया जाए तो एक वर्ष में दो अथवा तीन फसलों से अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।