UP Board and NCERT Solution of Class 9 Science [विज्ञान] ईकाई 1 द्रव्य- प्रकृति एवं व्यवहार – Chapter-2 Is Matter Around Us Pure ( क्या हमारे आस-पास के पदार्थ शुद्ध हैं ) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Dirgh Uttareey Prashn
प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 9वीं विज्ञान ईकाई 1 द्रव्य- प्रकृति एवं व्यवहार के अंतर्गत चैप्टर 2 (क्या हमारे आस-पास के पदार्थ शुद्ध हैं) पाठ के दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं कि पोस्ट आपको पसंद आयेगी अगर पोस्ट आपको पसंद आई तो इसे अपने दोस्तों के साथ में जरुर शेयर करें
Class | 9th | Subject | Science (Vigyan) |
Pattern | NCERT | Chapter- | Is Matter Around Us Pure |
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न / Dirgh Uttareey Prashn
प्रश्न 1. विलेय और विलायक की अवस्था के आधार पर विलयनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-विलेय व विलायक की अवस्था के आधार पर विलयन निम्न प्रकार के हैं:
(i) ठोस का द्रव में विलयन– जैसे चीनी का जल में विलयन (शर्बत), टिंचर आयोडीन। [आयोडीन (ठोस) का ऐल्कोहॉल (द्रव) में विलयन।]
(ii) गैस का द्रव में विलयन– जैसे ठंडे पेय जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड (गैस) जल द्रव में घुली होती है।
(iii) गैस का गैस में विलयन- जैसे वायु जिसमें ऑक्सीजन (21%) व नाइट्रोजन (78%) मिले होते हैं।
(iv) ठोस का ठोस में विलयन– जैसे मिश्र धातुएँ (Alloys)। पीतल में जिंक लगभग 30% व कॉपर लगभग 70% होता है।
प्रश्न 2. वास्तविक विलयन, कोलॉइडल विलयन व निलम्बन को उदाहरण देते हुए परिभाषित कीजिए।
उत्तर-वास्तविक विलयन– जब परिक्षिप्त माध्यम में परिक्षेपण कणों का व्यास 10-8 cm होता है तो परिक्षेपण कण परिक्षिप्त माध्यम में दिखाई नहीं देते। इस प्रकार का विलयन वास्तविक विलयन कहलाता है। उदाहरण-जल में नमक या चीनी का घोल। वास्तविक विलयन में परिक्षेपण कणों को सूक्ष्मदर्शी द्वारा नहीं देखा जा सकता
कोलॉइडल विलयन– जब परिक्षिप्त माध्यम में परिक्षेपण कणों का व्यास 10-7 cm से 10-5 cm होता है तो विलयन कोलाइडल विलयन कहलाता है। उदाहरण-दूध, रक्त, टूथपेस्ट।
कोलॉइडल विलयन में परिक्षेपण कणों को आँखों द्वारा नहीं देखा जा सकता, लेकिन सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखा जा सकता है।
निलम्बन : जब परिक्षिप्त माध्यम में परिक्षेपण कणों का व्यास 10-5 cm या उससे अधिक होता है तो इसे निलम्बन कहते हैं। निलम्बन में परिक्षेपण कणों को परिक्षिप्त माध्यम में तैरते हुए आँख द्वारा देखा जा सकता है। उदाहरण- जल में मिट्टी या बालू का घोल, जल में चॉक का घोल।
प्रश्न 3. (i) विलयन को परिभाषित कीजिए। जब 15 g NaCl को 200 g जल में घोलकर विलयन तैयार किया जाता है, तो NaCl की द्रव्यमान प्रतिशतता परिकलित कीजिए।
(ii) वास्तविक विलयन से विलेय के कणों को पृथक करना क्यों असम्भव है?
(iii) तापमान में परिवर्तन से लवण की घुलनशीलता पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर- (i) विलयन: दो या अधिक पदार्थों का समांगी मिश्रण विलयन कहलाता है।
दिया है: NaCl (विलेय) की मात्रा= 15 g
जल (विलायक) की मात्रा = 200 g
विलयन की मात्रा= विलेय की मात्रा = विलायक की मात्रा = 15+200 = 215 g
(ii) वास्तविक विलयन में विलेय के कणों को पृथक करना असंभव है, क्योंकि वे विलायक के साथ समांगी मिश्रण बनाते हैं।
(iii) तापमान बढ़ाने पर लवण की घुलनशीलता बढ़ जाती है और घटाने पर कम हो जाती है।
प्रश्ने 4. रासायनिक संघटन के आधार पर शुद्ध पदार्थों के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर – रासायनिक संघटन के आधार पर शुद्ध पदार्थ दो प्रकार के हैं :
(i) तत्त्व एवं
(ii) यौगिक।
(i) तत्त्व: रॉबर्ट बॉयल पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने सन् 1661 में ‘तत्त्व’ शब्द का प्रयोग किया। एंटोनी लॉरेंट लवाइजिए (Antoine Laurent Lavoisier) ने तत्त्व की परिभाषा सर्वप्रथम निम्न प्रकार दी:
“तत्त्व पदार्थ का वह मूल रूप है जिसे रासायनिक क्रिया द्वारा अन्य सरल पदार्थों में विभाजित नहीं किया जा सकता।” जैसे-लोहा, ताँबा, चाँदी ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन आदि।
(ii) यौगिक: “वह पदार्थ जो दो या अधिक तत्त्वों के किसी निश्चित अनुपात में रासायनिक संयोजन करने से बनता है।”
उदाहरणार्थ (i) जल एक यौगिक है जो हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन के 1:8 के द्रव्यमान-अनुपात में संयोजन करने पर बनता है।
(ii) उसी तरह कार्बन डाइऑक्साइड एक यौगिक है जो कार्बन व ऑक्सीजन के 3:8 के द्रव्यमान अनुपात में संयोजन करने से बनती है।
प्रश्न 5. निम्नलिखित मिश्रा के अवयवों को पृथक करने की विधि बताइये :
सल्फर + रेत + चीनी + आयरन रेतन।
उत्तर- इस मिश्रण के चार अवयव हैं-सल्फर, रेत, चीनी तथा आयरन रेतन।
मिश्रण के ऊपर से एक चुम्बक को कई बार चलाते हैं। आयरन रेतन, चुम्बक द्वारा आकर्षित हो जाती है। वह चुम्बक पर चिपक जाती है और पृथक हो जाती है।
चीनी, गंधक तथा रेत के शेष मिश्रण को पानी में डालकर विलोडन करते हैं। इससे जल में चीनी घुल जाती है। छानने पर छनित्र में चीनी का विलयन प्राप्त होता है। छनित्र को वाष्पित करके चीनी प्राप्त की जा सकती है। अवशेष में सल्फर तथा रेत होते हैं।
सल्फर तथा रेत के मिश्रण को कार्बन डाइसल्फाइड के साथ हिलाते हैं जिससे सल्फर, कार्बन डाइसल्फाइड में घुल जाता है और रेत बिना घुले रहता है। छानने पर, सल्फर विलयन के रूप में छनित्र में प्राप्त होती है। कार्बन डाइसल्फाइड के वाष्पन से सल्फर प्राप्त की जा सकती है। रेत, फिल्टर पेपर पर अवशेष के रूप में बच जाता है।
प्रश्न 6. धातुएँ किसे कहते हैं? इनके गुणधर्मों को समझाइये।
उत्तर-धातुएँ-धातु एक तत्त्व है जो आघातवर्ध्य तथा तन्य होता है और विद्युत संचालित करता है। धातुओं के कुछ उदाहरण हैं: आयरन, कॉपर, ऐलुमिनियम, जिंक, सिल्वर, गोल्ड, प्लैटिनम, क्रोमियम, सोडियम, पोटैशियम मैग्नीशियम, निकिल, कोबाल्ट, टिन, लेड, कैडमियम, मर्करी, ऐन्टीमनी। मर्करी को छोड़कर सभी धातुएँ ठोस हैं।
धातुओं के गुणधर्म-धातुओं के प्रमुख गुणधर्म निम्नलिखित हैं: 1. धातुएँ आघातवर्ध्य (malleable) हैं। इसका अर्थ है कि धातुओं को हथौड़े से पतली शीटों में (बिना टूटे) पीटा जा सकता है।
गोल्ड (सोना) तथा सिल्वर (चाँदी) धातुएँ उत्तम आघातवर्ध्य धातुओं में से कुछ हैं। ऐलुमिनियम और कॉपर (ताँबा) धातुएँ भी अत्यधिक आघातवर्ध्य धातुएँ हैं। इन सभी धातुओं की हथौड़े से अत्यंत पतली (महीन)
चादरों में कूटा जा सकता है जो पन्नी (foils) कहलाती हैं। अतः, आघातवर्ध्यता (malleability) धातुओं का एक प्रमुख अभिलाक्षणिक गुणधर्म है।
- धातुएँ तन्य (ductile) हैं। इसका अर्थ है कि धातुओं को महीन तारों में खींचा जा सकता है।
सभी धातुएँ समान रूप से तन्य नहीं होती हैं। दूसरों की अपेक्षा कुछ अधिक तन्य होती हैं। उत्तम तन्य धातुओं में गोल्ड (सोना) और सिल्वर (चाँदी) हैं। उदाहरणार्थ, सिल्वर जैसी अत्यधिक तन्य धातु के मात्र 100 mg को लगभग 200 m लम्बे महीन तार में र्खाचा जा सकता है। अतः, तन्यता (ductility) धातुओं का एक अन्य प्रमुख अभिलाक्षणिक गुणधर्म है।
- धातुएँ ऊष्मा तथा विद्युत की सुचालक हैं। इसका अर्थ है कि धातुएँ ऊष्मा और विद्युत को अपने में से आसानी से प्रवाहित होने देती हैं। धातुएँ सामान्यतः ऊष्मा की सुचालक होती हैं। सिल्वर (चाँदी) धातु ऊष्मा का उत्तम चालक है। इसकी सबसे अधिक ऊष्मा चालकता होती है। कॉपर और ऐलुमिनियम धातुएँ भी ऊष्मा की अत्यन्त सुचालक हैं।
- धातुएँ प्रायः दृढ़ होती हैं। उनमें उच्च तनन सामर्थ्य (high ten- ‘sile strength) होती है। इसका अर्थ है कि धातुएँ बिना टूटे भारी (बड़े) भारों को रोक सकती हैं।
उदाहरणार्थ, आयरन धातु (स्टील के रूप में) उच्च तनन सामर्थ्य वाली अत्यंत दृढ़ होती है। इसके कारण आयरन धातु को सेतुओं या पुलों, भवनों, रेल की पटरियों, गार्डरों, मशीनों, वाहनों और चेनों, इत्यादि के निर्माण में उपयोग किया जाता है। यद्यपि अधिकांश धातुएँ दृढ़ होती हैं। परन्तु कुछ धातुएँ दृढ़ नहीं होती हैं। उदाहरणार्थ, सोडियम और पोटैशियम धातुएँ दृढ़ नहीं हैं। उनमें निम्न तनन सामर्थ्य होती है।
- धातुएँ कमरे के ताप पर ठोस होती हैं (मर्करी के अतिरिक्त जो कि एक द्रव धातु है)।
आयरन, कॉपर, ऐलुमिनियम, सिल्वर तथा गोल्ड, इत्यादि, जैसी सभी धातुएँ कमरे के ताप पर ठोस होती हैं। कमरे के ताप पर केवल एक धातु, मर्करी, द्रव अवस्था में है।
- धातुओं का सामान्यतः उच्च गलनांक और क्वथनांक होता है। इसका अर्थ है कि अधिकांश धातुएँ उच्च तापों पर गलती और वाष्पित होती हैं। उदाहरणार्थ, आयरन 1535°C के उच्च गलनांक वाली धातु है। इसका अर्थ है कि 1535°C के उच्च ताप तक गर्म करने पर ठोस आयरन गलता है और द्रव आयरन (अथवा गलित आयरन) में परिवर्तित होता है। कॉपर धातु का भी 1083°C का उच्च गलनांक होता है।
- धातुओं के उच्च घनत्व होते हैं। इसका अर्थ है कि धातुएँ भारी पदार्थ हैं। उदाहरणार्थ, आयरन धातु का घनत्व 7.8 g/cm³ है जो पर्याप्त उच्च है। यद्यपि, कुछ अपवाद हैं। सोडियम और पोटैशियम के निम्न घनत्व होते हैं। वे अत्यंत हल्की धातुएँ हैं।
- धातुएँ ध्वानिक (sonorous) होती हैं। इसका अर्थ है कि धातुएँ, जब उन्हें मारते हैं, घण्टी की ध्वनि उत्पन्न करती हैं। धातुओं के ध्वानिकता के गुण के कारण ही उन्हें घण्टी, प्लेट के प्रकार के बाजा जैसे मंजीरा और तन्तु-वाद्य जैसे वॉयलिन, गिटार, सितार तथा तानपूरा, इत्यादि के लिए तारों (या तंतुओं) को बनाने के लिए उपयोग किया जाता है।
प्रश्न 7. अधातुएँ क्या होती हैं? उनके गुणधर्मों को समझाइये।
उत्तर- अधातुएँ– अधातु एक तत्त्व है जो न तो आघातवर्ध्य न तन्य होता है, और विद्युत चालित (प्रवाहित) नहीं करता है। अधातुओं के कुछ उदाहरण हैं: कार्बन, सल्फर, फॉस्फोरस, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, फ्लुओरीन, क्लोरीन, ब्रोमीन, आयोडीन, हीलियम, निऑन, ऑर्गन, क्रिप्टान और ज़ीनान। हीरा (diamond) तथा ग्रेफाइट (graphite) भी अधातुएँ हैं।
अधातुओं के गुणधर्म-अधातुओं के प्रमुख भौतिक गुणधर्म निम्नलिखित हैं:
- अधातुएँ आधातवर्ध्य नहीं हैं। अधातुएँ भंगुर (brittle) होती हैं। इसका अर्थ है कि अधातुओं को हथौड़े से पतली चादरों (thin sheets) में नहीं पीटा जा सकता है। जब हथौड़ा मारा जाता है, अधातुएँ छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट जाती हैं।
उदाहरणार्थ, सल्फर (गंधक) और फॉस्फोरस ठोस अधातुएँ हैं जो आघातवर्ध्य नहीं हैं, उन्हें हथौड़े से पतली चादरों में पीटा नहीं जा सकता है। अतः अधातुओं की हम पतली चादरें नहीं प्राप्त कर सकते हैं।
- अधातुएँ तन्य नहीं होती हैं। इसका अर्थ है कि अधातुओं को तारों में खींचा नहीं जा सकता है। खींचने पर वे आसानी से पड़ पड़ करके टूट जाती हैं। उदाहरणार्थ, सल्फर और फॉस्फोरस अधातुएँ हैं और वे तन्य नहीं हैं। जब खींचा जाता है, सल्फर और फॉस्फोरस टुकड़ों में टूट जाते हैं और तार नहीं बनाते हैं। अतः अधातुओं से हम तार नहीं प्राप्त कर सकते हैं। अतः अधातुएँ न तो आघातवर्ध्य हैं न तन्य, अधातुएँ भंगुर हैं।
- अधातुएँ ऊष्मा और विद्युत की कुचालक होती हैं। इसका अर्थ है कि अधातुएँ अपने में से ऊष्मा और विद्युत को प्रवाहित नहीं होने देती हैं। अधातुओं में से अनेक, वास्तव में, विद्युतरोधी हैं। यद्यपि, कुछ अपवाद हैं। कार्बन तत्त्व का एक रूप, हीरा अधातु है जो ऊष्मा का सुचालक है और कार्बन तत्त्वत्र का एक अन्य रूप, ग्रेफाइट अधातु है जो विद्युत का सुचालक है। विद्युत का सुचालक होने से, ग्रेफाइट इलेक्ट्रोड बनाने के लिए उपयोग किया जाता है (जैसे कि शुष्क सेलों में) ।
- अधातुएँ दीप्त (या चमकीली) नहीं होती हैं। वे देखने में धुंधली होती हैं। अधातुओं में चमक नहीं होती है जिसका मतलब है कि अधातुओं में चमकीली सतह नहीं होती है। ठोस अधातुएँ देखने में धुँधली होती है। उदाहरणार्थ, सल्फर और फॉस्फोरस अधातुएँ हैं जिनमें दीप्ति (चमक) नहीं है, अर्थात्, उनमें चमकीली सतह नहीं होती है। वे धुँधली (भद्दी) प्रतीत होती हैं। यद्यपि, एक अपवाद है। आयोडीन दीप्त (चमकीली) आकृति वाली अधातु होती है। उसमें चमकीली ऊपरी सतह होती है (धातुओं की भाँति) ।
- अधातुएँ आमतौर पर मृदु होती हैं (हीरे के अतिरिक्त क्योंकि यह अत्यंत कठोर अधातु है)। अधिकांश ठोस अधातुएँ काफी मृदु होती हैं। वे चाकू से आसानी से कट सकती है। उदाहरणार्थ, सल्फर और फॉस्फोरस ठोस अधातुएँ हैं जो काफी मृदु है और चाकू से आसानी से काटी जा सकती हैं। केवल एक अधातु कार्बन (हीरे के रूप में) अत्यंत कठोर है। वास्तव में, हीरा (जो कार्बन का एक अपररूप है) ज्ञात कठोरतम प्राकृतिक पदार्थ है।
- अधातुएँ दृढ़ नहीं होती हैं। उनमें निम्न तनन सामर्थ्य होती है। इसका अर्थ है कि अधातुएँ बड़े (भारी) भारों को (बिना टूटे) रोक नहीं सकती है। उदाहरणार्थ, ग्रेफाइट एक अधातु है जो दृढ़ नहीं है। उसमें निम्न तनन सामर्थ्य होती है। जब ग्रेफाइट चादर पर भारी भार रखा जाता है, वह टूट जाती है।
- अधातुएँ, कमरे के ताप पर, ठोस, द्रव अथवा गैसें हो सकती हैं। अधातुएँ सभी तीन अवस्थाओं ठोस, द्रव और गैस में हो सकती हैं। उदाहरणार्थ, कार्बन, सल्फर और फॉस्फोरस तोस अधातुएँ हैं; ब्रोमीन द्रव अधातु है; जबकि हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन और क्लोरीन गैसीय अधातुएँ हैं।
- अधातुओं के, तुलनात्मक रूप से, निम्न गलनांक और क्वथनांक होते हैं (ग्रेफाइट के अतिरिक्त जो अत्यंत उच्च गलनांक वाली अधातु है। इसका मतलब है यह कि अधातुएँ, तुलनात्मक रूप से निम्न तापों पर गलती और वाष्पित होती है।
उदाहरणार्थ, सल्फर 119°C के निम्न गलनांक वाली अधातु है। आयोडीन भी 113°C के निम्न गलनांक वाली अधातु है। केवल एक अधातु ग्रेफाइट का अत्यंत उच्च गलनांक (3700°C) होता है। अधिकतर अधातुओं के अत्यंत निम्न गलनांक होते हैं जिसके कारण वे कमरे के ताप पर गैसों के रूप में उपस्थित होते हैं।
- अधातुओं के निम्न घनत्व होते हैं। इसका अर्थ है कि अधातुएँ हल्के पदार्थ हैं। उदाहरणार्थ सल्फर 2 g/cm³ के निम्न घनत्व वाला ठोस अधातु है, जो काफी निम्न है। गैसीय अधातुओं का घनत्व अत्यंत निम्न होता है। एक अधातु आयोडीन का यद्यपि, उच्च घनत्व होता है।
- अधातुएँ ध्वानिक (sonorous) नहीं होती हैं। इसका अर्थ है कि ठोस अधातुएँ, जब उन्हें मारा जाता है, घण्टी की ध्वनि उत्पन्न नहीं करती हैं।
प्रश्न 8. कोलॉइडों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-कोलॉइडों को निम्नलिखित सात वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
(i) सोल (Sol)
(ii) ठोस सोल (Solid sol)
(iii) ऐरोसोल (Aerosol)
(iv) इमल्शन (Emulsion)
(v) फोम (Foam)
(vi) ठोस फोम (Solid Foam)
(vii) जेल (Gel) ।
(i) सोल-सोल एक कोलॉइड है जिसमें नन्हें ठोस कण, द्रव माध्यम में परिक्षिप्त होते हैं। सोलों के उदाहरण हैं: स्याही, साबुन विलयन, स्टार्च विलयन और अधिकांश पेण्ट (प्रलेप) ।
(ii) ठोस– सोल-ठोस सोल एक कोलॉइड है जिसमें ठोस कण, ठोस माध्यम में परिक्षिप्त होते हैं। ठोस सोल का उदाहरण है रंगीन रत्न पत्थर (माणिक्य काँच के समान) ।
(iii) ऐरोसोल-ऐरोसोल एक कोलॉइड है जिसमें ठोस अथवा द्रव, गैस (वायु सहित) में परिक्षिप्त होता है। कोलॉइडों जिनमें गैस में ठोस परिक्षिप्त होता है, के उदाहरण हैं: धुआँ या धूम्र (जो वायु में कालिख है) और स्वचालित वाहन निष्कास। ऐरोसोलों जिनमें गैस में द्रव परिक्षिप्त होता है, के उदाहरण हैं: केश स्प्रे, कोहरा, कुहासा और मेघ या बादल।
(iv) इमल्शन – इमल्शन (पायस) एक कोलॉइड है जिसमें एक द्रव की अत्यंत छोटी सूक्ष्म बूँदें, दूसरे द्रव जो उसके साथ मिश्रणीय नहीं हैं, में परिक्षिप्त होती हैं। इमल्शन के उदाहरण हैं दूध, मक्खन और फेस क्रीम ।
(v) फोम-फोम (फेन या झाग) एक कोलॉइड है जिसमें ठोस माध्यम में गैस परिक्षिप्त होती है। फोम के उदाहरण हैं अग्निशामक झाग; साबुन के बुलबुले, शेविंग क्रीम और बीअर झाग।
(vi) ठोस फोम– ठोस फोम एक कोलॉइड है जिसमें ठोस माध्यम में गैस परिक्षिप्त होती है। ठोस फोम के उदाहरण हैं: रोधी फोम, फोम रबड़ और स्पंज।
(vii) जेल-जेल एक अर्द्ध-ठोस कोलॉइड है जिसमें द्रव में परिक्षिप्त ठोस कणों का लगातार जलक होता है। जेल के उदाहरण हैं: जेलियाँ और जिलैटिन।