UP Board and NCERT Solution of Class 9 Science [विज्ञान] ईकाई 2 सजीव जगत में संगठन – Chapter-5 The Fundamental Unit Of Life (जीवन की मौलिक इकाई) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Dirgh Uttareey Prashn
प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 9वीं विज्ञान ईकाई2 सजीव जगत में संगठन के अंतर्गत चैप्टर5 (जीवन की मौलिक इकाई) पाठ के दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं कि पोस्ट आपको पसंद आयेगी अगर पोस्ट आपको पसंद आई तो इसे अपने दोस्तों के साथ में जरुर शेयर करें
Class | 9th | Subject | Science (Vigyan) |
Pattern | NCERT | Chapter- | The Fundamental Unit Of Life |
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Dirgh Uttareey Prashn
प्रश्न 1. प्रोकैरियोटिक एवं यूकैरियोटिक कोशिकाओं में अन्तर बताइये।
उत्तर-प्रोकैरियोटिक तथा यूकैरियोटिक कोशिकाओं में अन्तर –
कोशिकांग (Organelles) | प्रोकैरियोटिक कोशिका (Prokaryotic cell) | यूकैरियोटिक कोशिका (Eukaryotic cell) |
1. कोशिका भित्ति | एमीनो अम्ल की बनी होती है। | पादप कोशिका में सेलुलोज की बनी होती है, किन्तु जन्तु कोशिका में अनुपस्थित होती है। |
2. प्लाज्मा कला | उपस्थित, सरल होती है। | उपस्थित, जटिल होती है। |
3. अन्तः प्रद्रव्यी जालिका | अनुपस्थित होती है। | उपस्थित होती है। |
4. गॉल्जीकाय | अनुपस्थित होती है। | उपस्थित होती है। |
5. राइबोसोम | 70 S प्रकार के होते हैं। | 80 S प्रकार के होते हैं। |
6. माइटोकॉण्ड्रिया | अनुपस्थित होती है। | उपस्थित होती है। |
7. लाइसोसोम | अनुपस्थित होती है। | उपस्थित होती है। |
8. रिक्तिकाएँ | अनुपस्थित होती है। | केवल पादप कोशिकाओं में उपस्थित होती हैं। |
9. केन्द्रक कला | अनुपस्थित होती है। | उपस्थित होती है। |
10. केन्द्रक रस | कोशिकाद्रव्य से भिन्न नहीं होता है। | कोशिकाद्रव्य से केन्द्रक कला द्वारा भिन्नित रहता है। |
11. आनुवंशिक पदार्थ | DNA या RNA उपस्थित रहता है। | केवल DNA उपस्थित रहता है। |
12. गुणसूत्र | केवल एकल संरचना होती है, जो DNA या RNA से बनती है। | यह एक से अधिक होते हैं, जो DNA तथा प्रोटीन के बनते हैं। |
13. केन्द्रिका | अनुपस्थित होती है। | उपस्थित होती है। |
14. सेन्ट्रिओल | अनुपस्थित होती है। | उपस्थित होती है। |
प्रश्नं 2. एक पादप कोशिका का नामांकित चित्र बनाइए तथा निम्नलिखित का संक्षिप्त विवरण दीजिए-
(i) केन्द्रक (ii) रिक्तिका (iii) माइटोकॉण्ड्रिया।
उत्तर- पादप कोशिका का नामांकित चित्र
(i) केन्द्रक (Nucleus)-यह अधिक, सघन कोशिकांग है। इसमें क्रोमैटिन (chromatin) नामक पदार्थ के सूत्र होते हैं जो सामान्य अवस्था में जल के रूप में रहते हैं। इसके चारों ओर दोहरी झिल्ली होती है जिसे केन्द्रक कला कहते हैं। क्रोमेटिन जाल के अतिरिक्त केन्द्रक में केन्द्रक रस तथा एक या एक से अधिक केन्द्रिका होती है। केन्द्रक पूरी कोशिका पर नियंत्रण रखता है। विभिन्न कार्य कोशिका में, इसके आदेशानुसार ही होते हैं। सन्तति कोशिकाओं में लक्षणों की आनुवंशिकी भी इसके द्वारा ही होती है।
(ii) रिक्तिका (Vacuole)- ये झिल्ली से घिरी ऐसी संरचनाएँ हैं जिनमें जल से घुले हुए अनेक पदार्थ जिनमें लवण तथा शर्कराएँ सम्मिलित हैं, रहते हैं। इस घोल को कोशिका रस कहा जाता है। इनकी उपस्थिति में जल का आदान-प्रदान होता रहता है और कोशिका में जल की मात्रा का नियमन होता है।
(iii) माइटोकॉण्ड्यिा (Mitochondria)- यह दोहरी इकाई झिल्ली से बना अण्डाकार या शलाका के आकार का कोशिकांग हैं। इनके अन्दर विभिन्न प्रकार के पदार्थ विशेषकर श्वसन सम्बन्धी- भोजन, एन्जाइम्स आदि होते हैं। भीतरी इकाई झिल्ली अत्यधिक मुड़ी होने से अनेक उभार बनाती है जिन्हें क्रिस्टी (cristae) कहते हैं। ये श्वसन के केन्द्र हैं। ऊर्जा के सिक्के, ATP यहीं पर बनते हैं। ऊर्जा मुक्त करने के लिए माइटोकॉण्ड्रिया को कोशिका का ऊर्जा-गृह (Power-house) भी कहते हैं।
प्रश्न 3. माइटोकॉण्ड्रिया का सचित्र वर्णन कीजिए। इन्हें कोशिका का ऊर्जा-गृह क्यों कहा जाता है?
उत्तर– माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria)- यूकैरियोटिक कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य में अनेक सूक्ष्म गोलाकार, शलाकावत् या सूत्री संरचनाएँ पायी जाती हैं, जिन्हें माइटोकॉण्ड्रिया कहते हैं। इनकी औसत लम्बाई 3-4 miju और औसत व्यास 0.2 mµ होता है।
प्रत्येक माइटोकॉण्ड्रिया के चारों तरफ जीवद्रव्य कला या प्लाज्मा झिल्ली के समान प्रोटीन और वसा की दोहरी झिल्ली की दीवार होती है। बाहरी दीवार चिकनी और लचीली होती है और फूलकर कई गुना बढ़ सकती है। भीतरी, परत. अन्दर धँसकर अँगुली सदृश क्रिस्टी (cristae) बनाती है। क्रिस्टी की सतह पर अन्दर की तरफ असंख्य छोटी-छोटी घुण्डियाँ होती हैं, जिन्हें ऑक्सीसोम (oxysomes) या ऐलिमेन्ट्री पार्टिकल्स (elementary particles) कहते है। माइटोकॉण्ड्रिया की अर्द्ध-तरल पदार्थ से भरी गुहा मैट्रिक्स कहलाती है। इसमें मुख्य रूप से एन्जाइम, न्यूक्लिक अम्ल और राइबोसोम होते हैं।
माइटोकॉण्डिया में अनेक एन्जाइम भरे रहते हैं जिनका सम्बन्ध श्वसन- क्रिया से होता है। इस प्रकार माइटोकॉण्ड्रिया श्वसन-क्रिया का केन्द्र है।
कार्य-कोशिका को जैविक कार्यों के लिए आवश्यक ऊर्जा माइटोकॉण्ड्रिया से प्राप्त होती है। माइटोकॉण्ड्रिया में ऑक्सीश्वसन होता है, जिसके फलस्वरूप उच्च ऊर्जा वाले ATP यौगिक का निर्माण होता है। ATP में गतिज ऊर्जा संचित रहती है। इस ऊर्जा का उपयोग कोशिका की विभिन्न जैविक क्रियाओं को सम्पन्न करने में होता है। ऊर्जा मुक्त करने के कारण माइटोकॉण्ड्रिया को कोशिका का ऊर्जा-गृह (Power-house) भी कहते हैं।
प्रश्न 4. हरित लवक की संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर-हरित लवक (Chloroplast)- ये पर्णहरिम युक्त हरे रंग के लवक हैं जो पौधों के सभी हरे भागों में पाये जाते हैं। इनका मुख्य कार्य प्रकाश- संश्लेषण (photosynthesis) द्वारा भोजन निर्माण करना है। अतः ये कोशिका की रसोई कहलाते हैं।
हरित लवक पत्तियों की मध्योतक (mesophyll) तथा तने की क्लोरेनकाइमेट्स ऊतकों में पाया जाता है। इनका आकार, परिमाण व संख्या विभिन्न पौधों में भिन्न होती हैं। जैसे-गोल, चपटे, दीर्घ, वृत्ताकार।
इनका व्यास 4 से 10 mµ तथा संख्या 10 से 80 तक प्रति कोशिका होती है। सूक्ष्मदर्शीय अध्ययन के अनुसार प्रत्येक हरित लवक के तीन निम्नलिखित भाग होते हैं-
- आवरण (Envelope)-हरित लवक दो यूनिट कलाओं के आवरण से घिरा रहता है जिसमें कोई छिद्र नहीं होता है। यह आवरण रंगहीन, प्रोटीनयुक्त मैट्रिक्स को घेरे रहता है।
- स्ट्रोमा (Stroma) या पीठिका– हरित लवक के मैट्रिक्स को स्ट्रोमा कहते हैं जो जैल के समान होता है। इसमें DNA, राइबोसोम्स व अनेक एन्जाइम्स पाये जाते हैं। इसी भाग में प्रकाश-संश्लेषण की अप्रकाशिक अभिकिया (dark reaction) होती है।
- थाइलेकॉएड (Thylakoids)- स्ट्रोमा में पायी जाने वाली झिल्लीनुमा चपटी पुटिकाओं को थाइलेकॉएड कहते हैं। ये एक- दूसरे पर एकत्र होकर (10-100 तक) सिक्कों के समान ढेरी बनाते हैं जिसे ग्रेनम कहते हैं। हरित लवक में ग्रेनम की संख्या 40-100 हो सकती है। ये एक-दूसरे से पीठिका पटलिकाओं (stroma lamellae) द्वारा जुड़े रहते है। थाइलेकॉएड के बीच में पर्णहरिम (chlorophyll) होता है।
कार्य (Functions)-पर्णहरिम की परतें ही सूर्य के प्रकाश को अवशोषित कर इसकी ऊर्जा को काम में लाती हैं। पंर्णहरिमें द्वारा बन्धित इस ऊर्जा का प्रमुख उपयोग जल के अणुओं को तोड़कर उनसे हाइड्रोजन व ऑक्सीजन अलग-अलग करने में किया जाता है। जल से प्राप्त यह हाइड्रोजन
ही कार्बन डाइऑक्साइड के साथ मिलकर भोजन बनाने का कार्य करती है।
प्रश्न 5. कोशिकाद्रव्य में पायी जाने वाली निर्जीव अन्तर्वस्तुओं का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर-कोशिकाद्रव्य की निर्जीव अन्तर्वस्तुएँ (Non-living Inclusions of Cytoplasm)-पादप कोशिकाओं में जैविक क्रियाओं के फलस्वरूप विभिन्न प्रकार के निर्जीव पदार्थ (अन्तर्वेश) उत्पन्न हो जाते. हैं जो कोशिकाद्रव्य में कणों या क्रिस्टलों, अविलेय पदार्थों तथा विलयन के रूप में उपस्थित रहते हैं। ये तीन प्रकार के होते हैं-
(क) संचित पदार्थ (Reserved or stored materials).
(ख) स्स्रावित पदार्थ (Secretory materials),
(ग) उत्सर्जी पदार्थ (Excretory materials)।
(क) संचित पदार्थ (Reserved or stored materials)- ये भोज्य पदार्थ होते हैं जिनसे पौधे अपनी वृद्धि के लिए पोषण प्राप्त करते हैं तथा ये विशेष कोशिकाओं में ही संचित रहते हैं। भूमिगत तने, जड़ें, कलियाँ तथा बीज इनके संग्रह-अंग हैं। इनमें मुख्यतः कार्बोहाइड्रेट, नाइट्रोजनी पदार्थ तथा वसा एवं तेल आते हैं।
(ख) स्त्रावित पदार्थ (Secretory materials)-पौधों में कुछ उपयोगी पदार्थ विशेष प्रकार की अन्थियों तथा कोशिकाओं द्वारा स्रावित होते हैं. जिन्हें स्स्रावित पदार्थ कहते हैं। ये निम्नलिखित हैं-
(i) रंजक पदार्थ (Colouring materials)-रंजक पदार्थों के कारण पौधों, पुष्पों, पत्तियों एवं फलों के रंग भिन्न-भिन्न होते हैं। जैसे क्लोरोप्लास्ट, कैरोटिन, जैन्थोफिल आदि।
(ii) एन्जाइम तथा हॉर्मोन (Enzymes and Hormones)- एन्जाइम पौधों की पाचन क्रिया में सहायक होते हैं तथा कार्बनिक उत्प्रेरक (organic catalysts) कहलाते हैं। जैसे डायस्टेस (diastase) एन्जाइम मण्ड को ग्लूकोस में बदलने का कार्य करता है।
हॉर्मोन पौधों की वृद्धि एवं फलों के पकने के लिए आवश्यक होते हैं, जैसे- ऑक्सिन (Auxin), जिबरेलिन्स (Gibberellins) आदि।
(iii) मकरन्द (Nectar)- मकरन्द पुष्प के पुष्पासन में स्थित विशेष अन्धियों द्वारा स्त्रावित मीठा पदार्थ होता है। इसमें ग्लूकोस, फ्रक्टोस एवं सुक्रोस शर्कराएँ होती हैं। ये कीटों को आकर्षित करके पौधों की परागण (Pollination) क्रिया में सहायक होते हैं।
(ग) उत्सर्जी पदार्थ (Excretory materials)-पौधों में जैव- क्रियाओं के फलस्वरूप कुछ ऐसे पदार्थ बनते हैं, जो पौधों के लिए उपयोगी नहीं होते। इन्हें उत्सर्जी पदार्थ कहते हैं। ये पदार्थ रिक्तिकाओं में संचित हो जाते हैं और अन्ततः पत्तियों, पुष्यों या छाल के गिरने के साथ उनके पादप शरीर से बाहर आ जाते हैं। ये पदार्थ निम्नवत् हैं-
- एल्केलाइड्स (Alkaloids)-ये प्रोटीन के विखण्डन (decomposition) से बनते हैं और पौधों के संग्रह करने वाले भागों जैसे बीज, छाल, पत्ती आदि में उपस्थित होते हैं, ये स्वाद में कड़वे तथा ऐल्कोहॉल में घुलनशील होते हैं। जैसे-कुनीन सिनकोना की छाल से, कैफीन कॉफी के बीज से, मॉरफीन पोस्ता से, निकोटिन तम्बाकू की पत्ती से, चॉकलेट पाउडर कोका के बीज से, गाँजा भाँग की पत्तियों से एवं थीन (theine) चाय से प्राप्त होते हैं।
- ग्लूकोसाइड (Glucosides)-ये कार्बोहाइड्रेट के नष्ट होने से बनते हैं तथा कुछ का प्रयोग दवाओं में होता है।
- टैनिन्स (Tannins)- ये पौधे की छाल, पत्तियों, कोशिका भित्ति आदि में पाये जाते हैं। ये स्वाद में कड़वे तथा कषाय (कसैले) होते हैं। कच्चे फलों, कत्था, पान, चाय आदि का स्वाद टैनिन के कारण ही होता है। इनका प्रयोग चर्मशोधन तथा स्याही (ink) बनाने में होता है।
- रबड़क्षीर अथवा लैटेक्स (Latex)-रवड़क्षीर श्वेत, पीला या भूरे रंग का दूध जैसा तरल पदार्थ है। यह शर्करा, मण्ड, वसा, एन्जाइम्स आदि का मिश्रण है। ये खड़ के पौधे, पीपल, मदार (Calotropis), यूफोर्बिया (Euphorbia), खसखस, सत्यानाशी (Argemone) आदि में काफी मात्रा में पाया जाता है। इसके निम्न उपयोग हैं-
(1) रवड़क्षीर विषैला होने से पौधों की हानिकारक जन्तुओं से रक्षा करता है और पौधों के घाव भरने में सहायक होता है।
(2) रवड़क्षीर रबड़ बनाने में उपयोग होता है।
(3) पपीने के लैटेक्स में पैपेन (papain) नाम का एन्जाइम होता है जो प्रोटीनयुक्त भोजन के पाचन में सहायक है।
- वाप्यशील सुगन्धित तेल (Essential Oils)-पौधों की छाल, पत्तियों, फूलों, फलों के छिलके व बीजों में उपस्थित विशेष प्रकार की अन्थियों से ये पदार्थ निकलते हैं। इन्हीं के कारण पौधों में सुगन्ध होती है। जैसे नीबू एवं संतरे, यूकेलिप्टस आदि की तेल ग्रन्थियाँ। ये कीटी को आकर्षित करके परागण में सहायक होती हैं व दवाइयों, साबुन इत्यादि के निर्माण में काम आती
- राल (Resin)-इनका निर्माण विशेष प्रकार की ग्रन्थियों व वाहिनियों में सुगन्धित तेलों के ऑक्सीकरण के उपरान्त होता है। इनका उपयोग पेन्ट, वार्निश व दवाइयों में होता है। उदाहरण हींग, फेरूला नाम के पौधे के दूध से मिलता है। राल चीड़ (Pinus) के तने को काष्टीय, पक्का तथा टिकाऊ बनाता है।
- गोंद (Gums)-ये कोशिकाभित्ति के नष्ट होने से बनता है। ऐकेशिया सेनीगल (Acasia senegal) से सबसे अच्छा गोंद मिलता है। बासवेलिया सरिटा (Boswelia serrata) से भंगल तथा स्टेरकुलेरिया (Stercularia lirens) से कतीरा नाम का गोंद मिलता है। गोंद पानी में घुलनशील होने के कारण चिपकाने, और दवाइयों में प्रयुक्त होता है।
प्रश्न 6. केन्द्रक की संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए तथा केन्द्रक के कार्य बताइए।
उत्तर- केन्द्रक (Nucleus)- कोशिका के भीतर कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) से घिरा हुआ यह प्रायः गोल आकृति का तथा गहरे रंग का विशेष भाग होता है। सामान्यतः एक कोशिका में एक ही केन्द्रक होता है परन्तु कुछ पौधों (जैसे क्लेंडोफोरा नामक शैवाल) की कोशिकाओं में एक से अधिक केन्द्रक पाये जाते हैं।
केन्द्रक के चार प्रमुख भाग होते हैं-
- केन्द्रक कला (Nuclear membrane)- यह एक दोहरी झिल्ली होती है जो केन्द्रक को चारों ओर से. घेरे रहती है। इसे केन्द्रक कला कहते हैं। इसकी दोनों परतें प्रोटीन एवं वसा की बनी होती हैं। बाहरी झिल्ली अनेक स्थानों पर अन्तर्द्रव्यी जालिका से जुड़ी रहती है। केन्द्रक आवरण में जगह-जगह पर सूक्ष्म छिद्र होते हैं जिनके द्वारा केन्द्रक के भीतरी पदार्थों का कोशिकाद्रव्य के विभिन्न पदार्थों से आदान-प्रदान होता है।
- केन्द्रकद्रव्य (Nucleoplasm)- केन्द्रक के अन्दर एक पारदर्शी, तरल पदार्थ मैट्रिक्स भरा रहता है जिसे केन्द्रकद्रव्य कहते हैं। यह न्यूक्लिोयोप्रोटीन से बना, पारदर्शी, कोलॉइडी तथा अर्द्धतरल पदार्थ होता है। यह केन्द्रक कला से घिरा होता है। इसमें केन्द्रिक और क्रोमैटिन धागे के अतिरिक्त एन्जाइम, खनिज लवण, RNA व राइबोसोम आदि पाये जाते हैं।
- केन्द्रिका (Nucleolus)- केन्द्रक में प्रायः 1-3 स्पष्ट गोलाकार सघन रचनाएँ होती हैं जिन्हें केन्द्रिका कहते हैं। केन्द्रिका में प्रोटीन, RNA तथा DNA लगभग 85: 10: 5 के अनुपात में पाये जाते हैं। ये किसी झिल्ली या आवरण से नहीं घिरे होते इसलिए ये सीधे केन्द्रक के सम्पर्क में रहते हैं। इसका मुख्य कार्य राइबोसोम बनाने हेतु RNA (राइबोसोमल RNA या rRNA) का संश्लेषण करना है जो कि प्रोटीन के साथ संयुक्त होकर राइबोसोम बनाती है। इसी कारण केन्द्रिका को ‘राइबोसोम के उत्पादन की मशीन‘ भी कहते हैं।
- क्रोमैटिन (Chromatin)- पदार्थ केन्द्रकद्रव्य में सूक्ष्मतन्तुओं का एक जाल फैला होता है। कोशिका विभाजन के समय ये तन्तु अपेक्षाकृत मोटे और स्पष्ट दिखाई देने लगते हैं। इन्हें गुणसूत्र अथवा क्रोमोसोम (chromosome) कहते हैं। ये मुख्यतः डी-ऑक्सीराइबोज न्यूक्लिक अम्ल (DNA) से बने होते हैं। क्रोमोसोम में मोतियों के समान फूली हुई संरचनाएँ दिखाई देती हैं। इन्हें जीन्स (genes) कहते हैं। जीन्स आनुवंशिक लक्षणों की वाहक होती हैं तथा जीव के लक्षणों को एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी को स्थानान्तरित करती हैं।
केन्द्रक के कार्य (Functions of Nucleus)
(1) केन्द्रक कोशिका का नियन्त्रण केन्द्र है, यह कोशिका की सभी जैव क्रियाओं को नियन्त्रित करता है।
(2) यह कोशिका विभाजन के लिए उत्तरदायी होता है, जिससे जीवधारी के शरीर में वृद्धि होती है।
(3) आनुवंशिक लक्षणों का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को स्थानान्तरण केन्द्रक में उपस्थित क्रोमोसोम द्वारा ही होता है।