UP Board and NCERT Solution of Class 9 Science Chapter- 6 Tissues (ऊतक) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Dirgh Uttareey Prashn

UP Board and NCERT Solution of Class 9 Science [विज्ञान] ईकाई 2 सजीव जगत में संगठन – Chapter-6 Tissues ( ऊतक) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Dirgh Uttareey Prashn

प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 9वीं विज्ञान ईकाई2 सजीव जगत में संगठन  के अंतर्गत चैप्टर6 ( ऊतक ) पाठ के दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं कि पोस्ट आपको पसंद आयेगी अगर पोस्ट आपको पसंद आई तो इसे अपने दोस्तों के साथ में जरुर शेयर करें

Class  9th  Subject  Science (Vigyan)
Pattern  NCERT  Chapter-  Tissues

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Dirgh Uttareey Prashn

प्रश्न 1. पौधों में पाये जाने वाले विभिन्न प्रकार के ऊतकों के नाम एवं उनके प्रमुख कार्य लिखिए।

उत्तर – पौधों में पाये जाने वाले विभिन्न ऊतक एवं उनके प्रमुख कार्य –

ऊतक का नाम ऊतक के प्रमुख कार्य
(A) विभज्योतक

1. शीर्षस्थ विभज्योतक

 

2. अन्तर्विष्ट विभज्योतक

 

3. पार्श्व विभज्योतक

कोशिकाओं में निरन्तर वृद्धि करके पौधों की लम्बाई एवं मोटाई में वृद्धि करना। जड़ एवं तने की लम्बाई में वृद्धि करना। पौधे की लम्बाई में वृद्धि करना, जड़ एवं तने की मोटाई में वृद्धि करना।

 (B) स्थायी ऊतक

1. सरल स्थायी ऊतक

(i) मृदूतक या पैरेन्काइमा

 

 

(i) भोजन एवं अन्य अकार्बनिक पदार्थों का संचय करना।

(ii) क्लोरोफिल की उपस्थिति होने पर प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोजन तैयार करना।

 

(ii) स्थूलकोण ऊतक या कॉलेन्काइमा

 

(i) पौधों में दृढ़ता प्रदान करना।

(ii) क्लोरोफिल की उपस्थिति होने पर प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोजन तैयार करना।

(iii) दृढ़ोतक या स्क्लेरेन्काइमा

 

पौधों को दृढ़ता प्रदान करना।

2.जटिल स्थायी ऊतक

(i) दारु ऊतक या जाइलम

 

(i) पानी एवं खनिज लवणों को जड़ से पौधे के विभिन्न भागों तक पहुँचाना।
(ii) अधोवाही ऊतक या फ्लोएम (ii) पौधों को दृढ़ता प्रदान करना, पत्तियों द्वारा बने भोजन को पौधों के विभिन्न भागों तक पहुँचाना।

3.विशिष्ट स्थायी ऊतक

(i) ग्रन्थिल स्रावी ऊतक गोंद, रेजिन, तेल, सुगन्धित तेल, मकरन्द आदि का स्त्रावण करना।
(ii) आक्षीरी स्त्रावी ऊतक दुग्ध जैसे पदार्थ का स्रावण करना।

 प्रश्न 2. उपकला ऊतक के प्रकारों का वर्णन कीजिए।

उत्तर- उपकला ऊतक के प्रकार उपकला ऊतक निम्नं प्रकार के होते हैं-

(1) सरल घनाकार उपकला ऊतक (Simple cuboidal epithelial tissue) – यह घनाकार होते हैं व लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई बराबर होती है। ये स्वेद ग्रन्थियों, थायरॉइड ग्रन्थियों, यकृत, वृक्क नलिकाओं व जनदों में पाया जाता है।

(2) सरल स्तम्भाकार ऊतक (Simple columnar epithelial tissue)- इस ऊतक की कोशिकाएँ एक-दूसरे से सटी हुई व स्तम्भ के समान दिखाई देती हैं। इनके स्वतन्त्र सिरों पर सूक्ष्मांकुर (microvilli) पाये जाते हैं। ये अवशोषण तल को बढ़ाते हैं व संवेदी अंगों से संवेदना ग्रहण करते हैं। पित्ताशय व पित्तवाहिनी की दीवार इसी ऊतक की बनी होती है।

(3) स्तरित उपकला ऊतक (Stratified epithelial tissue)- इसमें कोशिकाएँ कई स्तरों में व्यवस्थित रहती हैं एवं स्तम्भाकार एवं जीवित होती हैं। इसमें जीवनपर्यन्त विभाजन की क्षमता पाई जाती है। विभाजन की क्षमता होने के कारण इसे जनन स्तर कहते हैं। यह ऊतक घर्षण करने वाले स्थानों, मुखगुहा, त्वचा, एपिडर्मिस, इसोफेगस, नासागुहा की म्यूकोसा, योनि आदि में पाया जाता है।

(4) ग्रन्थिल उपकला ऊतक (Glandular epithelial tissue)- हमारे शरीर में कई प्रकार की ग्रन्थियाँ पाई जाती है। इन ग्रन्थियों की स्वतन्त्र आन्तरिक सतह पर पाये जाने वाले ऊतक को ग्रन्थिल उपकला ऊतक कहते हैं। ये ग्रन्थियाँ एककोशिकीय व बहुकोशिकीय होती हैं। ये ग्रन्थियाँ त्वचा, स्वेद ग्रन्थि, स्तन ग्रन्थि, तेल ग्रन्थि, लार ग्रन्थि, जठर ग्रन्थि, अग्न्याशयी ग्रन्थि में होती हैं।

(5) सरल पक्ष्माभी उपकला ऊतक (Simple ciliated epithe lial tissue) – इस ऊतक की कोशिकाएँ स्तम्भाकार या घनाकार होती हैं।इसके सिरों पर छोटी-छोटी महीन धागों के समान रचनाएँ पायी जाती हैं, जिन्हें सीलिया (cilia) कहते हैं। ये ऊतक अण्डवाहिनी (oviduct), मूत्रवाहिनी (ureter), मुखगुहा की श्लेष्मकला (mucous membrane), रिम्पैनिक गुह्य, मस्तिष्क एवं मेरुरज्जु की केन्द्रीय नाल (central canal) तथा श्वास नली की भीतरी सतह पर पाये जाते हैं।

(6) सरल शल्की उपकला ऊतक (Simple squamous epithe- lial tissue)- यह ऊतक शरीर की सतह का सुरक्षात्मक आवरण बनाता है। मूत्र नलिका, देहगुहा, हृदय के चारों ओर रक्षात्मक आवरण बनाता है।

(7) संवेदी उपकला ऊतक (Sensory epithelial tissue)- ये स्तम्भी उपकला ऊतक का रूपान्तरण है। इनके सिरे पर संवेदी रोम (sensory hair) पाये जाते हैं। ये रोम तन्त्रिका तन्तु से जुड़े रहते हैं। ये ऊतक घ्राण कोष, आँख की रेटिना तथा मुखगुहा की म्यूकस झिल्ली में पाया जाता है।

प्रश्न 3. तन्त्रिका ऊतक क्या है? इसकी संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए।

उत्तर-तन्त्रिका ऊतक (Nervous tissue)- यह ऊतक सोचने, समझने, संवेदनाओं, उद्दीपन या बाह्य परिवर्तनों को ग्रहण करने की क्षमता रखता है। यह दो विशिष्ट प्रकार की कोशिका का बना होता है

(1) तन्त्रिका कोशिका (Neurons) – ये तन्त्रिका तन्त्र का निर्माण करती हैं व 4 से 135 µ या अधिक व्यास की कोशिकाएँ हैं। ये दो भागों की बनी होती हैं-

 (अ) कोशिकाकाय या सायटन (Cell body or Cyton) – यह तन्त्रिका का मुख्य भाग है, इसके कोशिकाद्रव्य में छोटे-छोटे निसिल्स कण (nissils granules) पाये जाते हैं।

(ब) कोशिका प्रवर्ध (Cell processes)- कोशिकाकाय से एक या एक से अधिक छोटे-बड़े कोशिका द्रव्यीय प्रवर्ध निकले रहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं- (i) डेण्ड्राइट्स (dendrites) तथा (ii) एक्सॉन (axon)।

(2) न्यूरोग्लिया (Neurogloea)- ये एक्सॉन रहित कोशिकाएँ हैं जो तन्त्रिकाओं में आवरण बनाती हैं।

प्रश्न 4. जालिकावत् एवं रेशेदार संयोजी ऊतकों के नामांकित चित्र बनाइये।

उत्तर- जालिकावत् एवं रेशेदार संयोजी ऊतकों के नामांकित चित्र-

प्रश्न 5. स्थायी ऊतक क्या हैं? इनके विभिन्न प्रकारों का कार्यों सहित विवरण दीजिए।

उत्तर-स्थायी ऊतक (Permanent tissue)- स्थायी ऊतक विभज्योतक से बनते हैं तथा उनमें विभाजन की क्षमता समाप्त हो जाती है। इनमें धीरे-धीरे विभेदन (differentiation) हो जाता है तथा स्थायी ऊतक बन जाते हैं। स्थायी ऊतकों का निश्चित आकार होता है। इनकी कोशिकाएँ सजीव अथवा निर्जीव, पतली या मोटी भित्ति वाली हो सकती हैं। स्थायी ऊतक दो प्रकार के

होते है-1. सरल ऊतक, 2. जटिल ऊतक।

  1. सरल ऊतक (Simple Tissue)- ये तीन प्रकार के होते हैं-

(i) मृदूतक (Parenchyma)-यह पौधों के विभिन्न भागों जैसे जड़, तना, पत्तियों, फल, पुष्प आदि में प्रमुखता से पाया जाता है। इनका आकार प्रायः समान तथा आकृति अण्डाकार, गोल, लम्बी अथवा बहुकोणीय हो सकती है। इनकी भित्ति पतली होती है। कोशिकाओं के बीच अन्तराकोशिकीय स्थान (intercellular space) हो सकता है और नहीं भी। ये कोशिकाएँ प्रायः जीवित होती हैं तथा इनमें सघन कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) होता है। कोशिका में एक बड़ी रसधानी (vacuole) होती है।

इनके प्रमुख कार्य निम्नवत् हैं-

(क) भोजन का संचय तथा स्वांगीकरण।

(ख) दृढ़ता प्रदान करना

(ये कोशिकाओं की स्फीति को बनाये रखते हैं।)

(ग) रेजिन, टैनिन, गोंद-कण तथा अकार्बनिक पदार्थों का संचय।

(घ) भोजन बनाना-इनमें जब क्लोरोफिल होता है तो उन्हें क्लोरेन्काइमा (chlorenchyma) कहते हैं और ये कोशिकाएँ भोजन बनाती हैं।

(ii) स्थूलकोण ऊतक (collenchyma)-पौधों के प्रत्येक भाग में सबसे बाहरी पर्त एपीडर्मिस (epidermis) होती है। इसके ठीक नीचे कॉलेन्काइमा होता है। यह जीवित कोशिकाओं से बना ऊतक है। इसकी कोशिकाभित्ति पतली होती है, परन्तु कोशिका के कोनों पर सेलुलोज (cellulose) तथा पेक्टिन (pectin) जमा होने से इस ऊतक में अन्तराकोशिकीय स्थान नहीं होते। इसमें पायी जाने वाली कोशिकाओं की आकृति गोल अण्डाकार, अथवा बहुपृष्ठीय होती है। इनमें प्रायः कुछ हरित लवक (chloroplast) होते हैं।

इसके प्रमुख कार्य निम्नवत् हैं-

(क) यह ऊतक पौधों में लचीलापन तथा दृढ़ता प्रदान करता है।

(ख) हरित लवक वाली कोशिकाएँ शर्करा तथा मण्ड का निर्माण करती हैं।

(iii) दृढ़ोतक (Sclerenchyma)-इस ऊतक की कोशिकाएँ प्रायः पतली एवं लिग्निनयुत्क्त होती हैं। ये एक-दूसरे से सटी होती हैं अर्थात् इसमें अन्तराकोशिकीय स्थान नहीं होते। प्रायः ये कोशिकाएँ दोनों सिरों पर नुकीली होती हैं। कोशिका भित्ति के अधिक मोटे होने से कोशिका नगण्य हो जाती है। दो निकटवर्ती कोशिकाओं के बीच सुस्पष्ट पट्ट‌लिका होती है। जीवद्रव्य की अनुपस्थिति होने से ये कोशिकाएँ मृत हो जाती हैं। दृढ़ोतक का मुख्य कार्य पौधों में दृढ़ता प्रदान करना है।

(2) जटिल ऊतक (Complex Tissue)- जटिल ऊतक कोशिकाओं का ऐसा समूह होता है, जिसमें एक से अधिक प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं तथा ये सब मिलकर एक इकाई की भाँति कार्य करती हैं। जटिल ऊतक के प्रमुख उदाहरण दारु या जाइलम (Xylem) तथा फ्लोएम (Phloem) हैं। जटिल ऊतकों का कार्य जल, खनिज लवण तथा पौधों द्वारा निर्मित खाद्य पदार्थ को पौधे के अन्य भागों तक पहुँचाना है।

प्रश्न 6. जाइलम की रचना तथा कार्य का वर्णन कीजिए।

उत्तर- जाइलम (Xylem)- जाइलम जल-संवाहक ऊतक भी कहलाता है। इसका प्रमुख कार्य जड़ों द्वारा अवशोषित जल तथा खनिज लवणों को पौधे के विभिन्न भागों तक पहुँचाना है। इसका निर्माण चार प्रकार की कोशिकाओं द्वारा होता है-

(i) वाहिनिकाएँ (Tracheids)

(ii) वाहिकाएँ (Vessels)

(iii) काष्ठ मृदूतक (Wood parenchyma)

(iv) काष्ठ तन्तु (Wood fibres)

(i) वाहिनिकाएँ (Tracheids)-इस प्रकार की कोशिकाएँ लम्बी, नलिकाकार तथा दोनों सिरों पर पतली होती हैं। ये निर्जीव होती हैं-अर्थात् इनमें जीवद्रव्य नहीं होता। कोशिकाभित्ति कड़ी तथा लिग्निनयुक्त होती है। ये जल-संवहन के अतिरिक्त पौधे को सीधा खड़ा रखने में सहारा भी प्रदान करती हैं।

(ii) वाहिकाएँ (Vessels of Trachae)-वाहिकाएँ भी बेलनाकार (cylindrical) या नलिका सदृश होती हैं। ये अनेक नली के आकार की कोशिकाओं के परस्पर जुड़े रहने से बनती हैं। एक के ऊपर एक स्थित इन कोशिकाओं के बीच की अनुप्रस्थ भित्ति (transverse wall) जब पूर्ण या अपूर्ण रूप से घुल जाती है तो ये वाहिकाएँ (Vessels) कहलाने लगती हैं। वाहिकाओं का व्यास वाहिनियों (Tracheids) की अपेक्षा अधिक होता है।

(iii) काष्ठ मृदूतक (Wood Parenchyma)- ये पैरेन्काइमा कोशाएँ हैं जो जाइलम (Xylem) में पायी जाती हैं। इन कोशाओं की कोशा-भित्ति कुछ मोटी होती हैं। ये द्वितीयक दारु (secondary xylem) में अधिकता से मिलती हैं। कोशाएँ जीवित होती हैं। इनका प्रमुख कार्य भोज्य पदार्थों का संचय करना है परन्तु ये वाहिनियों द्वारा जल वाहन (water conduction) में भी सहायक होती हैं।

(iv) काष्ठ तन्तु (Wood Fibres)- इस प्रकार की कोशाएँ लम्बी, पतली तथा सिरों पर नुकीली होती हैं। ये तन्तु दृढ़ोतक (sclerenchy- matous) होते हैं। कोशा-भित्ति अत्यन्त मोटी तथा लिग्निनयुक्त (lignified) होती हैं। इन पर अनेक छोटे गर्त (pits) भी पाये जाते हैं। इनका प्रमुख कार्य पौधे को दृढ़ता व सहारा प्रदान करना है।

प्रश्न 7. फ्लोएम की रचना तथा कार्य का वर्णन कीजिए।

उत्तर-फ्लोएम (Phloem)-फ्लोएम का प्रमुख कार्य पौधे के हरे भागों में निर्मित भोज्य पदार्थों को पौधे के दूसरे भागों में वितरित करना है। इस ऊतक को बास्ट (Bast) भी कहते हैं।

फ्लोएम के निर्माण में चार प्रकार की कोशाएँ भाग लेती हैं-

(i) चालनी एलीमेण्ट (Sieve Elements) (ii) सखि (सहचर) कोशाएँ (Companion Cells)

(iii) फ्लोएम मृदूतक (Phloem Parenchyma)

(iv) फ्लोएम तन्तु (Phloem fibres or bast fibres)

(i) चालनी एलीमेण्ट (Sieve Elements)-पुष्पी पौधों में चालनी नलिकाएँ (Sieve tubes) होती हैं। चालनी नलिकाएँ लम्बी तथा नलिका के समान होती हैं। इनकी भित्ति पतली तथा सेलुसोस की बनी होती है। कोशिका के सिरे एक-दूसरे से सम्बन्धित रहते हैं। कोशिकाओं के बीच-बीच में स्थित अनुप्रस्य भित्तियों (transverse walls) में अनेक छिद्र होते हैं और इनकी रचना चलनी (sieve) के समान हो जाती है। इसी कारण इन्हें चालनी पट्टिकाएँ (sieve plates) कहते हैं।

(ii) सहचर कोशिकाएँ (Companion Cells)-प्रत्येक चालनी नलिका के साथ ही पार्श्व में एक अन्य कोशिका होती है, जिसे सहचर कोशिका कहते हैं। ये कोशिकाएँ पतली एवं लम्बी होती हैं तथा इनकी कोशिका भित्ति पतली होती है। इनके भीतर जीवद्रव्य तथा प्रत्येक कोशिका में बड़ा केन्द्रक होता है।

(iii) फ्लोएम मृदूतक (Phloem Parenchyma)-इस प्रकार की कोशिकाएँ लम्बी, चौड़ी अथवा कुछ गोल होती हैं। इनकी रचना अन्य साधारण मृदूतकों की भाँति ही होती हैं। ये जीवित होती हैं। ये चालनी-नलिकाओं से बीच- बीच में मिलती हैं। इन कोशिकाओं द्वारा भोजन का संचय होता है तथा ये भोजन के संवहन में भी सहायक होती हैं।

(iv) फ्लोएम तन्तु (Phloem Fibres)-ये दृढ़ोतक होते हैं परन्तु फ्लोएम में उपस्थित होने के कारण इन्हें फ्लोएम तन्तु कहते हैं। इनकी भित्ति मोटी होती है तथा इस पर अनेक साधारण गर्त (Pits) होते हैं। अत्यन्त दृढ़ होने के कारण इन तन्तुओं का आर्थिक दृष्टि से बड़ा महत्त्व है। ये कपड़ा तथा रस्सी बनाने के काम आते हैं। उदाहरणतः अलसी (Flax) एवं जूट (Jute)।

प्रश्न 8. पेशियों के प्रमुख कार्य क्या हैं। इनके प्रमुख प्रकारों की रचना तथा कार्य बताइए।

उत्तर-पेशियों के कार्य (Functions of Muscles)-शरीर में पेशियों के निम्नलिखित कार्य हैं-

(i) मांसपेशियाँ अस्थियों के साथ मिलकर शरीर को गतिशील व कार्यशील बनाती हैं। यदि शरीर में पेशियाँ न हों तो हम न तो चल-फिर सकते हैं और न ही खा-पी सकते हैं।

(ii) शरीर में मांसपेशियाँ अस्थियों के मध्य रिक्त स्थान को भरकर उसे भरा- पूरा बनाती हैं तथा शरीर को सौन्दर्य व सुडौलता प्रदान करती हैं।

(iii) यह शरीर के उन भागों को आकार प्रदान करती है जहाँ अस्थियाँ नहीं होतीं। जैसे-हृदय, फेफड़े, आमाशय, जिगर, गुर्दे व आँतें आदि। (iv) पेशियाँ एक प्रकार से शरीर का सुरक्षात्मक आवरण बनाती हैं तथा त्वचा द्वारा स्वयं भी सुरक्षित रहती हैं।

(v) मांसपेशियों में स्वयं संकुचन व प्रसारण की शक्ति होती है जिससे शरीर के आन्तरिक आवश्यक अंग स्वयं कार्यशील रहते हैं तथा मनुष्य को जीवित रखते हैं।

पेशियों के प्रकार (Type of Muscles)-कोशिकाओं की संरचना एवं कार्य के आधार पर पेशी ऊतक निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं-

  1. अरेखित पेशियाँ (Unstriated muscles) – अरेखित पेशियों का संचालन जीव की इच्छा के अनुसार नहीं होता है इसलिए इन्हें अनैच्छिक पेशियाँ (involuntary muscles) भी कहते हैं। ये पेशी- कोशिका-पतली, लम्बी तर्क (spindle) की आकृति के समान होती है।

इसमें कोशिका द्रव्य तथा एक बड़ा केन्द्रक होता है। कोशिका द्रव्य को सार्कोप्लाज्म/पेशी द्रव्य (sarcoplasm) कहते हैं। ये केन्द्रक के समीप होता है। शेष कोशिकाद्रव्य लम्बी महीन धारियों के रूप में परिवर्तित हो जाता है जिसे पेशी तन्तु (myofibrils) कहते हैं। ये तन्तु पेशियों में कुंचनशीलता

(contractility) उत्पन्न करते हैं।

उदाहरण- यह आहारनाल, पित्ताशय, जनन वाहिनियों, मूत्र वाहिनियों, श्वास नली, फेफड़े तथा रक्त वाहिनियों की भित्तियों में पायी जाती हैं।

  1. रेखित पेशियाँ (Striated muscles)- हमारे शरीर का लगभग 40 प्रतिशत भार रेखित पेशियों का ही होता है। प्रत्येक रेखित पेशी तन्तु एक पारदर्शक झिल्ली के द्वारा पिरा रहता है जिसे पेशीचोल अथवा सार्कीलेमा कहते हैं। एक रेखित पेशी तन्तु में अनेक केन्द्रक होते हैं। केन्द्र के चारों तरफ के जीवद्रव्य को सार्कर्वोप्लाज्म (Sarcoplasm) कहते हैं। इन पेशी तन्तुओं में पाये जाने वाले लम्बे, कुंचनशील तथा समानान्तर तन्तुक अथवा मायोफाइब्रिल्स (Myofibrils) पाये जाते हैं। ये पेशियाँ जीव की इच्छानुसार कार्य करती हैं। अतः इन्हें ऐच्छिक पेशियाँ (voluntary muscles) भी कहते हैं। उदाहरण-शरीर के समस्त हिलने-डुलने वाले भाग जैसे-अग्रपाद, पश्चपाद आदि में स्थित होती हैं।
  2. हृद पेशियाँ (Cardiac muscles) -ये पेशियाँ केवल हदय की मांसल भित्तियों में पायी जाती हैं और शाखान्वित होती हैं। ये शाखायें आपस में मिलकर एक जाल का निर्माण करती हैं। पेशियों में एक-एक केन्द्रक उपस्थित होता है एवं चारों तरफ से सार्कोलेमा द्वारा घिरी होती हैं। इन पेशियों में रेखित व अरेखित पेशियों के गुण पाये जाते हैं। एक केन्द्रक दूसरे केन्द्रक से अन्तर्विष्ट पट्टियों द्वारा अलग रहते हैं। इन पेशियों में स्वतः ही संकुचन निरन्तर एक ही लय (rhythm) में जीवन के आरम्भ से मृत्यु तक चलता रहता है। ये पेशियाँ अनैच्छिक एवं कभी न थकने वाली होती हैं।
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