UP board Class- 10th Drawing (चित्रकला) जोगिमारा गुफाओं के चित्र (Jogimara Caves Chitra) भारतीय चित्रकला (Bhartiya Chitrakala) कला से आप क्या समझते हैं
प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 10वीं की चित्रकला के अंतर्गत जोगिमारा गुफाओं के चित्र (Jogimara Caves Chitra) भारतीय चित्रकला (Bhartiya Chitrakala) कला से आप क्या समझते हैं के बारे मे बताएंगे जो की UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करेंगे।
Class | 10th |
Subject | Drawing (चित्रकला) |
Board Name | UP Board (UPMSP) |
Topic Name | जोगिमारा गुफाओं के चित्र, भारतीय चित्रकला, कला से आप क्या समझते हैं |
जोगिमारा गुफाओं के चित्र
उत्तर- प्राचीनकाल के कला-अवशेषों के कारण जोगिमारा गुफाओं का बहुत बड़ा महत्त्व है। रायगढ़ की पहाड़ियों पर अमरनाथ नामक स्थान पर यह गुफा सरगुजा (छत्तीसगढ़) में स्थित है। इन चित्रों का अनुमानित समय ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी है। इन चित्रों में लाल, सफेद, काले और पीले रंगों का प्रयोग हुआ है। साथ ही स्त्री-पुरुष, पशु-पक्षी और फूल-पत्तों का भी सुन्दर चित्रण हुआ है।
जोगिमारा गुफाओं के चित्रों के विषय
सन् 1914 ई० में कलागुरु असितकुमार हालदार और क्षेमेन्द्रनाथ गुप्त ने इन चित्रों की प्रतिलिपि तैयार की थी। उनके अनुसार गुफा की छत में सात चित्र हैं, जो निम्नवत् हैं-
1.एक चित्र में पेड़ के नीचे बैठी कुछ मानव आकृतियों का चित्रण है।
2.दूसरा चित्र एक बाग का है जिसमें फूल पर नृत्य करते युगल का चित्र है।
3.तीसरे चित्र में मानव-आकृतियों के साथ हाथी का चित्र है और काले रंग से पानी की लहरों को दर्शाकर एक मकर की आकृति बनी हुई है।
4.चौथे चित्र में एक व्यक्ति के सिर पर पक्षी की चोंच बनायी गयी है।
5. पाँचवें चित्र में लेटी हुई एक स्त्री चित्रित है और कुछ अन्य आकृतियाँ वाद्य-यन्त्रों को बजा रही हैं।
जोगिमारा गुफाओं के चित्रों की विशेषताएँ
1. श्री रायकृष्ण दास ने इस गुफा के चित्रों का विषय जैन धर्म से सम्बन्धित माना है। श्री असितकुमार हालदार ने इन चित्रों का सम्बन्ध रायगढ़ के मन्दिरों की देव-दासियों से जोड़ा है।
2. ये सभी चित्र ऐसे धरातल पर बने हैं जिसे चूने से पोतकर सफेद बनाया गया है।
3. सभी चित्र प्राकृतिक रूप से प्राप्त लाल, पीले, काले और सफेद रंगों से चित्रित हैं।
4.सभी चित्रों की सीमा रेखाएँ लाल रंग से बनायी गयी हैं।
5. इन चित्रों का सन्दर्भ और विषय स्पष्ट और निश्चित नहीं है।
भारतीय चित्रकला में रेखाओं का प्रयोग
भारतीय चित्रकला में रेखाओं का प्रयोग और महत्त्व–प्रागैतिहासिक काल का चित्रकार वास्तव में जादूगर था, जिसकी रेखाओं में जुदाई, भावनाओं का आनन्द और मंत्रमुग्ध कर देने के समस्त गुण थे। रेखाओं में गति है। ऐसा लगता है कि चित्रकार किसी जनजाति के आखेटीय जीवन के काजल व गेरू से रेखांकन कर रहा हो। आकृति के रेखीय प्रभाव को उतारने में आदिम कलाकार ने अविश्वसनीय दक्षता दिखलाया है।
कैमूर की पहाड़ियों के शिलाचित्रों पर पशु-आकृतियों के साथ-साथ स्वास्तिक, सूर्य, चक्र आदि का चित्रण देखने को मिलता है।
भारत आदिम युग से धार्मिक सम्पन्नता का आधार रहा है। अतः प्रागैतिहासिक चित्र भी आदिमानव के प्रारम्भिक धार्मिक कृत्यों के भाग रहे होंगे। जब वे युद्ध व शिकार के लिए निकलते थे, उसके पूर्व वे अपने आदि-देवता को प्रसन्न करने के लिए विविध आभूषणों, पशुओं की खाली, हड्डियों की मालाओं से सुसज्जित कर नृत्य करते थे। उनको ऐसा विश्वास था कि इस कर्म से कोई अनिष्ट नहीं होगा और उन्हें शिकार आसानी से सुलभ हो जायेगा। जादू-टोना उनके धार्मिक विश्वास का दूसरा रूप था। सभी धार्मिक कृतियों में स्त्री-पुरुष समान रूप से भाग लेते थे, किन्तु शक्ति-उपासना में स्त्रियों की उपस्थिति वर्जित थी। अनेक गुफाओं में तीर से बिंधे हुए पशुओं तथा पूँछ वाले और सींग वाले मानव चित्र देखने को मिलते हैं। ‘फ्रेंड’ के अनुसार ये जादुई प्रतिमाएँ हैं, जो शिकारियों के लिये शिकार की सफलता के प्रतीक हैं। ऐसे चित्रों में आदिवासियों की धार्मिक भावनाओं का पता चलता है। प्रागैतिहासिक दरी चित्रों को आज के युग में भी चित्रों के अध्ययन के लिए अत्यधिक महत्त्व है।
‘कला‘ से आप क्या समझते हैं
कला शब्द कोई नयी खोज का परिणाम नहीं है, बल्कि यह सृष्टि में आदिकाल से ही विद्यमान है। हमारे धर्मग्रन्थ वेद, उपनिषद्, सबमें कला-विषय की विस्तृत विवेचना की गयी है। यहाँ तक कहा गया है कि यह समस्त सृष्टि ही कलामय है। सृष्टि का निर्माता सर्वोच्च कलाकार है।
अनेक विद्वानों ने कला की परिभाषा अलग-अलग ढंग से किया है, जो निम्न हैं-
- प्लेटो– “कला प्रकृति का प्रतिबिम्ब है।”
- अरस्तू – “अनुकरण करना ही कला है।”
- दाँते – “प्रकृति का अनुकरण ही कला है।”
- क्रोचे– “मन से ज्ञान व क्रिया का उद्दीपन होता है। क्रिया से आन्तरिक भावना व तर्क जन्म लेते हैं, जो कला का सृजन करते हैं।”
- पारकर – “इच्छा का काल्पनिक वैयक्तीकरण ही कला है।”
- प्रो. रामचन्द्र शुक्ल – “एक ही अनुभूति को दूसरे तक पहुँचाना ही कला है।”
- गाँधी – “कला आत्मा का ईश्वरीय संगीत है।”
विद्वानों के अलग-अलग दृष्टिकोण हैं, किन्तु यह सर्वथा सत्य है कि कला एक व्यापक अर्थ का प्रतिपादन करता है। वास्तव में यह ईश्वरीय देन है, जिसका मूल रूप ब्रह्म है, जिसकी असीम छाया में पलकर सबको उसी में किसी दिन मिल जाना है। कला में स्वयं की अनुभूति होती है, यही कारण है कि उसका सम्बन्ध आत्मा से जुड़ जाता है। यह जीवन को प्राणयुक्त बना देता है, अन्धकार को प्रकाशमान कर देती है।