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कक्षा -12 हिंदी
(साहित्यिक एवं सामान्य)
गद्यांश पहचानने की ट्रिक
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1-राष्ट्र का स्वरूप~ वासुदेवशरण अग्रवाल
यदि गद्यांश में निम्नलिखित शब्दावली दिखाई पड़े तो समझ जाइए यह गद्यांश चैप्टर राष्ट्र का स्वरूप – वासुदेव शरण अग्रवाल द्वारा रचित है। जैसे –
राष्ट्र, धरती, भूमि, वसुंधरा , माता भूमि, मातृभूमि, धरती माता, पृथ्वी, जन, संस्कृति, राष्ट्रीय जन, राष्ट्र संवर्धन, राष्ट्रीयता, साहित्य कला, नृत्य गीत।
2-रॉबर्ट नर्सिंग होम में – कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’
यदि गद्यांश में नीचे दी गई हुई शब्दावली प्रयोग हो तो समझ जाना कि यह गद्यांश रॉबर्ट नर्सिंग होम में पाठ से है , जैसे-
नश्तर, हिटलर, मदर, मदर मार्गरेट, मदर टेरेसा, कामरूप का जादू, मैंने बहुतों को रूप से पाते देखा है, बूढ़ी मुस्कानमयी प्रफुल्ल मदर।
3–अशोक के फूल – हजारी प्रसाद द्विवेदी
यदि नीचे दी हुई शब्दावली गद्यांश में प्रयोग हो तो समझ जाना यह पाठ अशोक के फूल है , जैसे—
अशोक , अशोक का फूल, अशोक, कालिदास, गंधर्व, संतानकामिनिया, मनोहर पुष्प, विक्रमादित्य, मानव जाति की दुर्गम निर्मम धारा, जिजीविषा, आर्य हूण, कुषाण, शक, महामानवसमुद्र, रवींद्रनाथ टैगोर, दुनिया बड़ी भुलक्कड़ है।
4-प्रगति के मानदंड- पंडित दीनदयाल उपाध्याय
निम्न शब्दावली प्रयोग हो तो समझ जाना प्रगति के मानदंड पाठ से यह गद्यांश है-
यत पिंडे तथा ब्रह्मांडे, बलमुपास्य, आर्थिक, सामाजिक, समाज, भरण-पोषण, जीविकोपार्जन,
समाज के विषय में बात हो,
भारतीय संस्कृति के साथ समाज शब्द जरूर मिलेगा।
5- भाषा और आधुनिकता – प्रो. जी सुंदर रेड्डी
जब नीचे दिए गए वाक्यांश शब्दावली प्रयोग हो तो भाषा और आधुनिकता पाठ लिखना है- जैसे =
भाषा की बात अवश्य होगी,
संस्कृति + भाषा की बात होगी।
नए शब्द को गढ़ना, आविष्कार करना,
नए मुहावरे, पंडितों की दिमागी कसरत, आदि।
6- हम और हमारा आदर्श – डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम
नीचे दिए गए वाक्यांशों एवं शब्दावली का प्रयोग होगा तो समझ जाना यह अब्दुल कलाम जी वाला पाठ है-
जैसे-
अध्यात्म और समृद्धि का विरोध, युवा शक्ति , युवाओं से मिलना, महत्वाकांक्षा, विकसित भारत, जिम्मेदार नागरिक, समृद्धि और अध्यात्म, प्रकृति अधूरे मन से काम नहीं करती, संसार ऊर्जा का रूप है, भौतिक पदार्थों की इच्छा रखना , आदि।
निंदा रस – हरिशंकर परसाई
निंदा शब्द बार बार आयेगा,
धृतराष्ट्र, भीम, मित्र, झूठ
भाग्य और पुरुषार्थ – जैनेन्द्र कुमार
भाग्य , पुरुषार्थ, भाग्योदय,
– शब्द बार बार आयेगा.
इच्छाएँ नाना हैं, दुःख भगवान का वरदान.
अब पहचानो??????
हमारी सम्पूर्ण व्यवस्था का केन्द्र मानव होना चाहिए जो ‘ यत् पिण्डे तद्ब्रह्मांडे ‘ के न्याय के अनुसार समष्टि का जीवमान प्रतिनिधि एवं उसका उपकरण है । भौतिक उपकरण मानव के सुख के साधन हैं, साध्य नहीं । जिस व्यवस्था में भिन्नरुचिलोक का विचार केवल एक औसत मानव से अथवा शरीर–मन – बुद्धि – आत्मायुक्त अनेक एषणाओं से प्रेरित पुरुषार्थचतुष्टयशील , पूर्ण मानव के स्थान पर एकांगी मानव का ही विचार किया जाय , वह अधूरी है ।
धरती माता की कोख में जो अमूल्य निधियाँ भरी हैं , जिनके कारण वह वसुन्धरा कहलाती है उससे कौन परिचित न होना चाहेगा ? लाखों – करोड़ों वर्षों से अनेक प्रकार की धातुओं को पृथिवी के गर्भ में पोषण मिला है । दिन – रात बहनेवाली नदियों ने पहाड़ों को पीस – पीसकर अगणित प्रकार की मिट्टियों से पृथिवी की देह को सजाया है । हमारे भावी आर्थिक अभ्युदय के लिए इन सबकी जाँच – पड़ताल अत्यन्त आवश्यक है ।
मैं यह नहीं मानता कि समृद्धि और अध्यात्म एक – दूसरे के विरोधी हैं या भौतिक वस्तुओं की इच्छा रखना कोई गलत सोच है । उदाहरण के तौर पर , मैं खुद न्यूनतम वस्तुओं का भोग करते हुए जीवन बिता रहा हूँ , लेकिन मैं – सर्वत्र समृद्धि की कद्र करता हूँ , क्योंकि समृद्धि अपने साथ सुरक्षा तथा विश्वास लाती है , जो अन्ततः हमारी आजादी को बनाए रखने में सहायक हैं ।
पुरानी रीतियों और शैलियों की परम्परागत लीक पर चलने वाली भाषा भी जन चेतना को गति देने में प्रायः असमर्थ ही रह जाती है । भाषा समूची युग – चेतना की अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है और ऐसी सशक्ता तभी वह अर्जित कर सकती है जब वह अपने युगानुकूल सही मुहावरों को ग्रहण कर सके । भाषा सामाजिक भाव .प्रकटीकरण की सुबोधता के लिए ही अतिरिक्त उसकी जरूरत ही सोची नहीं जाती ।
इच्छाएँ नाना हैं और नाना विधि हैं और उसे प्रवृत्त रखती हैं। उस प्रवृत्ति से वह रह-रहकर थक जाता है और निवृत्ति चाहता है। यह प्रवृत्ति और निवृत्ति का चक्र उसको द्वन्द्व से थका मारता है। इस संसार को अभी राग-भाव से वह चाहता है कि अगले क्षण उतने ही विराग-भाव से वह उसका विनाश चाहता है। पर राग-द्वेष की वासनाओं से अन्त में झुंझलाहट और छटपटाहट ही उसे हाथ आती है। ऐसी अवस्था में उसका सच्चा भाग्योदय कहलाएगा अगर वह नत-नम्र होकर भाग्य को सिर आँखों लेगा और प्राप्त कर्तव्य में ही अपने पुरुषार्थ की इति मानेगा।