UP Board Solution of Class 10 Social Science [सामाजिक विज्ञान] Economics [अर्थशास्त्र] Chapter- 3 मुद्रा और साख (Mudra Aur Sakh) लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Notes
प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 10वीं की सामाजिक विज्ञान इकाई-4: अर्थशास्त्र आर्थिक विकास की समझ खण्ड-1 विकास के अंतर्गत चैप्टर-3 मुद्रा और साख पाठ के लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। जो की UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करेंगे।
Subject | Social Science [Class- 10th] |
Chapter Name | मुद्रा और साख |
Part 3 | Economics [अर्थशास्त्र] |
Board Name | UP Board (UPMSP) |
Topic Name | विकास |
मुद्रा और साख (Mudra Aur Sakh)
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. साख किसे कहते हैं? इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर- लोगों को दिए जाने वाले कर्ज को साख कहते हैं। साख आर्थिक जीवन का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। साख गरीब और मध्यम वर्ग के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जरूरतमंद लोग साख के जरिए अपने रुके हुए कार्य करते हैं। किसान साख के जरिए अपनी फसलों के उत्पादन को बढ़ाते हैं। औद्योगिक विकास में साख काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। व्यापार के क्षेत्र में काफी मात्रा में साख लिए जाते हैं जिससे व्यापारी वर्ग अपने व्यापार को बढ़ा सके।
प्रश्न 2. मुद्रा क्या है? आधुनिक मुद्रा करेंसी को विनिमय का माध्यम क्यों स्वीकार किया जाता है?
उत्तर- मुद्रा मूल्य का माप और विनिमय का साधन है जो किसी देश के केंद्रीय बैंक द्वारा जारी की जाती है और सरकार द्वारा मान्यता प्रदान की जाती है।
मुद्रा एक सर्वमान्य वस्तु है जिसे लेने से कोई इंकार नहीं करता। इसलिए क्रेता और विक्रेता मुद्रा का इस्तेमाल विनिमय के साधन के रूप में करते हैं। हर कोई मुद्रा के रूप में भुगतान लेना पसंद करता है, फिर उस मुद्रा का इस्तेमाल अपनी जरूरत की चीजें खरीदने के लिए करता है।
प्रश्ठा 3. मुद्रा का उपयोग विनिमय के रूप में किस प्रकार किया जाता है? उदाहरणों सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- जिस व्यक्ति के पास मुद्रा है वह इसका विनिमय किसी भी वस्तु या सेवा खरीदने के लिए आसानी से कर सकता है। इसलिए हर कोई मुद्रा के रूप में भुगतान लेना पसंद करता है, फिर उस मुद्रा का इस्तेमाल अपनी जरूरत की चीजें खरीदने के लिए करता है। एक जूता निर्माता का उदाहरण ले सकते हैं। वह बाजार में जूता बेचकर गेहूँ खरीदना चाहता है। जूता बनाने वाला पहले जूतों के बदले मुद्रा प्राप्त करेगा और फिर इस मुद्रा का इस्तेमाल गेहूँ खरीदने के लिए करेगा। गेहूँ उत्पादक गेहूँ के बदले प्राप्त मुद्रा का इस्तेमाल दूसरी वस्तु खरीदने के लिए करेगा। इस तरह से मुद्रा का उपयोग विनिमय के रूप में किया जाता है।
प्रश्न 4. सस्ता और सामर्थ्य के अनुकूल कर्ज देश के विकास के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है? तीन कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- सस्ता और सामर्थ्य के अनुकूल कर्ज देश के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण होता है। व्यापारिक बैंकों से उद्यमी, किसान एवं आम जनता ऋण लेते हैं। इन सभी का मुख्य उद्देश्य ऋण के माध्यम से अपना विकास करना होता है। देश की अर्थव्यवस्था के विकास में ऋण एक महत्त्वपूर्ण सकारात्मक भूमिका निभाता है। उद्यमी बैंकों से ऋण उद्यम में लगाने के लिए लेता है, जिससे लोगों को रोजगार मिलता है, वस्तुओं का उत्पादन होता है। देश के विकास में भी यह महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। व्यापारी बैंकों से ऋण अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए लेता है। किसान फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए बैंकों से ऋण लेता है। कई लोग आय बढ़ाने के लिए ऋण का इस्तेमाल करते हैं।
प्रश्न 5. ग्रामीण क्षेत्रों में सस्ते ऋण का प्रमुख स्रोत क्या है?
उत्तर- ग्रामीण क्षेत्रों में सस्ते ऋण का प्रमुख स्रोत सहकारी समितियाँ हैं। सहकारी समितियों के सदस्य अपने संसाधनों को जोड़ लेते हैं। ये अपने सदस्यों से जमा वसूल करते हैं। इस जमा पूँजी को ऋणाधार मानते हुए ये सहकारी समितियाँ बैंक से बड़ा ऋण लेने में कामयाब होती हैं। इस पूँजी का प्रयोग सदस्यों को कर्ज देने के लिए किया जाता है। ये समितियाँ कृषि उपकरण खरीदने, खेती और कृषि व्यापार करने, मछली पकड़ने, घर बनाने और तमाम अन्य किस्म के खर्च के लिए कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराती हैं।
प्रश्न 6. आत्मनिर्भर गुटों के लाभ बताइए।
उत्तर- आत्मनिर्भर गुट कर्जदारों को ऋणाधार की कमी की समस्या से उबारने में मदद करते हैं। उन्हें समयानुसार विभिन्न प्रकार के लक्ष्यों के लिए • एक यथोचित ब्याज दर पर ऋण मिल जाता है। ये गुट ग्रामीण क्षेत्रों के गरीबों को संघबद्ध करने में मदद करते हैं। इससे न केवल महिलाएँ स्वावलंबी हो जाती हैं बल्कि गुट की नियमित बैठकों के जरिए लोगों को एक माध्यम मिलता है जहाँ वे तरह-तरह के सामाजिक विषयों; जैसे- स्वास्थ्य, पोषण और हिंसा इत्यादि पर आपस में चर्चा कर पाते हैं।
प्रश्न 7. जोखिम वाली परिस्थितियों में ऋण कर्जदार के लिए और समस्याएँ खड़ी कर सकता है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में बहुत – सी गति विधियों में ऐसे बहुत-से सौदे होते हैं जहाँ किसी न किसी रूप में ऋण का प्रयोग होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में कर्ज की मुख्य माँग फसल उगाने के लिए होती है। किसान ऋतु के आरंभ में फसल उगाने के लिए उधार लेते हैं और फसल तैयार हो जाने पर उधार चुका देते हैं। किंतु यदि किसी वजह से फसल बरबाद हो जाती है, तो कर्ज की अदायगी असंभव हो जाती है। ऐसी परिस्थिति में किसान अपनी जमीन का कुछ हिस्सा बेचने को मजबूर हो जाता है। इस प्रकार, इस जोखिम वाली परिस्थिति में कर्जदार के लिए ऋण लेने से कई समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं और उसकी कमाई बढ़ने की बजाय उसकी स्थिति और बदतर हो जाती है।
प्रश्न ४. अतिरिक्त मुद्रा वाले लोगों और ज़रूरतमंद लोगों के बीच बैंक किस तरह मध्यस्थता करते हैं?
उत्तर- अतिरिक्त मुद्रा वाले व्यक्ति अपनी मुद्रा को बैंकों में अपने नाम से खाता खोलकर जमा कर देते हैं। बैंक ये निक्षेप स्वीकार करते हैं और इस पर सूद भी देते हैं। इस तरह लोगों की मुद्रा बैंकों के पास सुरक्षित रहती है और इस पर सूद भी मिलता है। लोगों को इसमें से जब चाहे मुद्रा निकालने की सुविधा भी प्रदान की जाती है। बैंक इस जमाराशि का केवल 15% हिस्सा नकद के रूप में अपने पास रखते हैं। बैंक जमाराशि के प्रमुख भाग को कर्ज देने के लिए इस्तेमाल करते हैं। विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के लिए कर्ज की बहुत माँग रहती है। बैंक लोगों को कर्ज देता है और उन पर ब्याज लगाता है। इस प्रकार बैंक दो गुटों के बीच मध्यस्थता का काम करते हैं।
प्रश्न 9. भारतीय रिज़र्व बैंक अन्य बैंकों की गतिविधियों पर किस तरह नज़र रखता है? यह ज़रूरी क्यों है?
उत्तर – भारत में भारतीय रिज़र्व बैंक (आर.बी.आई.) केंद्रीय सरकार की तरफ से करेंसी नोट जारी करता है। इसके साथ-साथ यह अन्य बैंकों की गतिविधियों पर नज़र रखता है। भारतीय रिज़र्व बैंक यह देखता है कि बैंक वास्तव में नकद शेष बनाए हुए हैं। बैंक केवल लाभ बनाने वाली इकाइयों और व्यापारियों को ही ऋण मुहैया नहीं करा रहे, बल्कि छोटे किसानों, छोटे उद्योगों, छोटे कर्जदारों को भी ऋण दे रहे हैं। समय-समय पर बैंकों को (आर.बी.आई.) को यह जानकारी देनी पड़ती है कि वे कितना और किनको ऋण दे रहे हैं और उसकी ब्याज की दरें क्या हैं। यह इसलिए जरूरी है, ताकि ऋण की सुविधा सभी को मिलती रहे।
प्रश्न 10. विकास में ऋण की भूमिका का विश्लेषण कीजिए।
या विकास प्रक्रिया में ऋण की भूमिका का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर- हमारे जीवन की बहुत-सी गतिविधियों में ऐसे बहुत-से सौदे होते हैं जहाँ किसी-न-किसी रूप में ऋण का प्रयोग होता है। ऋण (उधार) से हमारा तात्पर्य एक सहमति से है, जहाँ उधारदाता कर्जदार को धन, वस्तुएँ या सेवाएँ मुहैया कराता है और बदले में कर्जदार से भुगतान करने का वादा लेता है। ऋण उत्पादक की कार्यशील पूँजी की जरूरत को पूरा करता है। उसे उत्पादन के कार्यशील खर्चों तथा उत्पादन को समय पर खत्म करने में मदद करता है। इसके जरिए वह अपनी कमाई बढ़ा पाता है। इस स्थिति में ऋण एक महत्त्वपूर्ण तथा सकारात्मक भूमिका अदा करता है।
प्रश्न 11. औपचारिक तथा अनौपचारिक ऋणों में कोई दो अंतर लिखिए।
उत्तर- औपचारिक ऋण – यह ऋण व्यापारिक बैंकों और सहकारी समितियों द्वारा सस्ती ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराया जाता है। यह ऋण निश्चित दरों पर उपलब्ध कराया जाता है। यह ऋण सस्ता होता है।
अनौपचारिक ऋण – यह ऋण साहूकार, व्यापारी, मालिक, रिश्तेदार, दोस्त इत्यादि लोगों से लिया जाता है। यह ऋण ऐच्छिक दरों पर उपलब्ध कराया जाता है। यह ऋण महँगा होता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. बैंकों की प्रमुख गतिविधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- बैंकों की प्रमुख गतिविधियाँ निम्न प्रकार हैं-
(i) लोग अपनी रोजमर्रा की आवश्यकताओं को पूरा करने के बाद बचे हुए धन को बैंकों में जमा करा देते हैं। बैंक ये निक्षेप स्वीकार करते हैं और इस पर सूद भी देते हैं। इस तरह लोगों का धन बैंकों के पास सुरक्षित रहता है।
(ii) लोगों को किसी भी समय धन निकालने की सुविधा भी उपलब्ध होती है।
(iii) बैंक जनता से जो धन जमा खातों में स्वीकार करते हैं उस रकम का एक छोटा हिस्सा अपने पास नकद के रूप में रखते हैं; जैसे- आजकल भारत में बैंक जमा का केवल 15 प्रतिशत हिस्सा नकद में अपने पास रखते हैं। इसे किसी एक दिन पर जमाकर्ताओं द्वारा धन निकालने की संभावना को देखते हुए रखा जाता है। बैंक का काम इस नकद से आराम से चल जाता है।
(iv) बैंक अपने पास जमाराशि को कर्ज के रूप में देता है। विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के लिए कर्ज की बहुत माँग रहती है।
(v) बैंक ऋण पर ब्याज लेता है। इस तरह बैंक दो गुटों के बीच मध्यस्थता का काम करते हैं। एक गुट जिसके पास अतिरिक्त राशि है और दूसरा जिसे उस राशि की जरूरत है। बैंक से दोनों गुटों की आवश्यकताएँ पूरी हो रही हैं।
(vi) जमाकर्ता अपने अतिरिक्त धन को सुरक्षित भी रख पाता है और ब्याज भी प्राप्त करता है और कर्जदार कुछ ब्याज देकर धन प्राप्त करके आवश्यकताएँ पूरी कर सकता है।
(vii) बैंक जमा पर जो ब्याज देता है, उससे ज्यादा ब्याज ऋण पर लेता है। कर्जदारों से लिए गए ब्याज और जमाकर्ताओं को दिए गए ब्याज के बीच का अंतर बैंकों की आय का प्रमुख स्रोत है।
(viii) इस प्रकार, किसी देश की अर्थव्यवस्था के विकास में बैंकों की गतिविधियाँ एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
प्रश्न 2. भारतीय रिजर्व बैंक की महत्ता का वर्णन कीजिए।
या भारतीय रिजर्व बैंक के कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर – भारत में भारतीय रिजर्व बैंक (आर.बी.आई.) केंद्रीय सरकार की तरफ से करेंसी नोट जारी करता है। भारतीय कानून के अनुसार किसी व्यक्ति या संस्था को मुद्रा जारी करने की इजाज़त नहीं है। भारत में कोई व्यक्ति कानूनी तौर पर रुपयों में अदायगी को अस्वीकार नहीं कर सकता। रुपये को व्यापक स्तर पर विनिमय का माध्यम स्वीकार किया गया है।
भारतीय रिजर्व बैंक कर्जों के औपचारिक स्रोतों की गतिविधियों पर नजर रखता है। आर.बी.आई. नजर रखता है कि सभी बैंक वास्तव में नकद शेष बनाए हुए हैं या नहीं। वह यह भी देखता है कि बैंक केवल लाभ कमाने वाली इकाइयों और व्यापारियों को ही तो ऋण मुहैया नहीं करा रहे बल्कि छोटे किसानों, छोटे उद्योगों, छोटे कर्जदारों इत्यादि को भी ऋण दे रहे हैं। समय-समय पर बैंकों को भारतीय रिज़र्व बैंक को यह जानकारी देनी पड़ती है कि वे कितना और किनको ऋण दे रहे हैं और उसकी ब्याज दरें क्या हैं।
भारतीय अर्थव्यवस्था में भारतीय रिजर्व बैंक की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। यह सभी अन्य बैंकों की कार्य-प्रणाली पर नजर रखता है। इसलिए इसे ‘बैंकों का बैंक’ भी कहा जाता है।
प्रश्न ३. ऋण के औपचारिक और अनौपचारिक स्रोतों का तुलनात्मक अध्ययन कीजिए।
उत्तर – विभिन्न प्रकार के ऋणों को दो भागों में बाँटा जा सकता है- औपचारिक तथा अनौपचारिक। औपचारिक ऋण में बैंक और सहकारी समितियाँ आती हैं, जो कम ब्याज पर ऋण देती हैं। अनौपचारिक ऋण में साहूकार, व्यापारी, मालिक, रिश्तेदार तथा दोस्त आदि आते हैं। अनौपचारिक खंड में ऋणदाताओं की गतिविधियों की देखरेख करने वाली कोई संस्था नहीं होती है। वे अधिक दरों पर ऋण दे सकते हैं। अनौपचारिक स्तर पर लिया गया ऋण कर्जदार को अधिक महँगा पड़ता है।
औपचारिक खंड ग्रामीण परिवारों की ऋण की जरूरतों को केवल 50 प्रतिशत ही पूरा कर पाता है, बाकी जरूरतें अनौपचारिक स्तर से पूरी होती हैं। शहरों में 90 प्रतिशत आवश्यकताएँ औपचारिक स्रोतों से ही पूरी होती हैं, केवल 10 प्रतिशत कर्जे अनौपचारिक स्रोतों से आते हैं। इस प्रकार अमीर परिवार औपचारिक ऋणदाताओं से सस्ता ऋण ले रहे हैं, जबकि गरीब परिवारों को कर्ज के लिए भारी-भरकम रकम चुकानी पड़ती है। इस प्रकार अनौपचारिक ऋण कर्जदाताओं की आय को कम ही कर देता है।
इस समस्या के समाधान के लिए बैंकों और सहकारी समितियों को अपनी गतिविधियाँ ग्रामीण इलाकों में बढ़ाने की जरूरत है ताकि कर्जदारों की अनौपचारिक खंड पर निर्भरता कम हो जाए। औपचारिक खंड के विस्तार के साथ यह भी जरूरी है कि यह ऋण सभी लोगों तक पहुँच सके। यह जरूरी है कि औपचारिक खंड से ऋण का वितरण अधिक बराबरी वाला हो जिससे कि गरीब परिवार भी सस्ते ऋण का फायदा उठा सके।
प्रश्न 4. मुद्रा आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या को किस तरह सुलझाती है?
या मुद्रा वस्तु विभाजन की समस्या को किस तरह सुलझाती है? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर – मुद्रा आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या का सरलता से समाधान कर देती है क्योंकि मुद्रा में सर्वग्राह्यता का गुण पाया जाता है। इस. कारण मुद्रा विनिमय के माध्यम का कार्य करती है तथा वस्तुओं एवं सेवाओं के बदले सभी के द्वारा स्वीकार की जाती है।
उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण – सर्वप्रथम यह समझना आवश्यक है कि ‘दोहरे संयोग की समस्या’ क्या है। माना एक गेहूँ विक्रेता गेहूँ के बदले जूता खरीदना चाहता है। सबसे पहले गेहूँ विक्रेता को ऐसे जूता निर्माता को ढूँढना होगा जो न केवल जूता बेचना चाहता हो बल्कि उसके बदले में गेहूँ भी खरीदना चाहता हो अर्थात् दोनों पक्ष एक-दूसरे से चीजें खरीदने और बेचने में सहमति रखते हों। इसे ही दोहरा संयोग कहा जाता है अर्थात् एक व्यक्ति जो वस्तु बेचने की इच्छा रखता है, वही वस्तु दूसरा व्यक्ति खरीदने की भी इच्छा रखता हो। वस्तु-विनिमय प्रणाली में जहाँ मुद्रा का उपयोग किए बिना वस्तुओं का विनिमय होता है, ‘आवश्यकताओं का दोहरा संयोग’ होना अनिवार्य विशिष्टता है, किन्तु साथ ही ‘दोहरे संयोग का मिलना’ एक महत्त्वपूर्ण कठिनाई भी।
मुद्रा इस कठिनाई का निराकरण करती है। मुद्रा महत्त्वपूर्ण मध्यवर्ती भूमिका अदा करके ‘आवश्यकताओं के दोहरे संयोग’ की आवश्यकता को समाप्त कर देती है। अतः अब गेहूँ विक्रेता के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह ऐसे जूता निर्माता को ढूँढे जो न केवल उसका गेहूँ खरीदे अपितु साथ-साथ वह उसको जूते भी बेचे। वह किसी भी क्रेता को मुद्रा के बदले गेहूँ बेच सकता है और प्राप्त मुद्रा से किसी भी जूता निर्माता से जूता खरीद सकता है।