UP Board Solution of Class 10 Social Science [सामाजिक विज्ञान] Economics [अर्थशास्त्र] Chapter- 4 वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था (Vaishvikaran aur Bhartiya Arthvyavastha) लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Notes
प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 10वीं की सामाजिक विज्ञान इकाई-4: अर्थशास्त्र आर्थिक विकास की समझ खण्ड-2 के अंतर्गत चैप्टर-4 वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था पाठ के लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। जो की UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करेंगे।
Subject | Social Science [Class- 10th] |
Chapter Name | वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था |
Part 3 | Economics [अर्थशास्त्र] |
Board Name | UP Board (UPMSP) |
Topic Name | वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था |
वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था (Vaishvikaran aur Bhartiya Arthvyavastha)
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अपने उत्पाद की उत्पादन लागत कम बनाए रखने में किस प्रकार प्रबंधन कर ती हैं? उदाहरणों सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अपने उत्पाद की उत्पादन लागत को कम करने के लिए निम्न प्रबंधन करती हैं-
(i) बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ काफी मात्रा में पूँजी निवेश करके अधिक मात्रा में उत्पादन करती हैं जिससे उत्पादन लागत में कमी हो।
(ii) बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ काफी मात्रा में कच्चे माल को खरीदती हैं जिससे कि उसे कम लागत में कच्चा माल प्राप्त हो सके।
(iii) बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ स्थानीय कंपनियों के साथ मिलकर बाजार पर नियंत्रण स्थापित करती हैं।
प्रश्न 2. विदेशी व्यापार संसार में विभिन्न देशों के बाजारों को किस प्रकार जोड़ता रहा है? उदाहरणों सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- लंबे समय से विदेशी व्यापार विभिन्न देशों को आपस में जोड़ने का मुख्य माध्यम रहा है। प्राचीनकाल से ही भारत का व्यापार अरब देशों, चीन, मिस्त्र की सभ्यता से होता था। मध्यकाल में भारत का व्यापार पूर्वी एशियाई देशों से भी काफी होने लगा। आधुनिक काल में यूरोपीय देशों से भारत का व्यापार होने लगा। सरल शब्दों में, विदेश व्यापार घरेलू बाजारों, अर्थात् अपने देश के बाजारों से बाहर के बाजारों में पहुँचने के लिए उत्पादकों का एक अवसर प्रदान करता है। उत्पादक केवल अपने देश के बाजारों में ही अपने उत्पाद नहीं बेच सकते हैं, बल्कि विश्व के अन्य देशों के बाजारों में भी प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं।
प्रश्न 3. “सूचना और संचार प्रौद्योगिकी ने विभिन्न देशों के बीच उत्पादों और सेवाओं के प्रसार में मुख्य भूमिका निभाई है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर- सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के विकास ने विभिन्न देशों के बीच उत्पादों और सेवाओं के प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वर्तमान समय में दूरसंचार, कंप्यूटर और इंटरनेट के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी द्रुत गति से परिवर्तित हो रही है। दूरसंचार सुविधाओं; जैसे- टेलीग्राफ, टेलीफोन, मोबाइल फोन एवं फैक्स का विश्व भर में एक-दूसरे से संवाद करने में प्रयोग किया जाता है। ये सुविधाएँ संचार उपग्रहों द्वारा सुगम हुई हैं। इससे व्यापार में तेजी से विकास हुआ है। इस तरह से विश्व के व्यापारी आसानी से एक-दूसरे से संपर्क करने में कामयाब हो रहे हैं।
प्रश्न 4. बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ किस प्रकार अपने उत्पादों का दूसरे देशों में प्रसार कर रही हैं? एक उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर– बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ कई तरह से अपने उत्पादन कार्य का प्रसार कर रही हैं और विश्व के कई देशों की स्थानीय कंपनियों के साथ पारस्परिक संबंध स्थापित कर रही हैं। स्थानीय कंपनियों के साथ साझेदारी द्वारा, आपूर्ति के लिए स्थानीय कंपनियों का इस्तेमाल करके और स्थानीय कंपनियों से निकट प्रतिस्पर्धा करके अथवा उन्हें खरीदकर बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ दूरस्थ स्थानों के उत्पादन पर अपना प्रभाव जमा रही हैं। परिणामस्वरूप दूर-दूर स्थानों पर फैला उत्पादन परस्पर संबंधित हो रहा है; जैसे- भारत में फोर्ड मोटर्स का कार संयंत्र, केवल भारत के लिए ही कारों का निर्माण नहीं करता, बल्कि वह अन्य विकासशील देशों को कारें और विश्व भर में अपने कारखानों के लिए कार-पुर्जों का भी निर्यात करता है।
प्रश्न 5. श्रम कानूनों में लचीलापन कंपनियों में कैसे मदद करेगा?
उत्तर- श्रम कानूनों में लचीलापन कंपनियों में निम्न प्रकार से मदद करेगा-
(i) कम्पनियाँ छोटी अवधि के लिए श्रमिकों को कार्य पर रख सकती हैं।
(ii) कम्पनियाँ मजदूरों को अनुबंध पर काम पर रख सकती हैं।
(iii) श्रम कानूनों में लचीलेपन के कारण कम्पनी के लिए मजदूरों की लागत में कमी आती है।
प्रश्न 6. भारत में विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए कोई तीन उपाय सुझाइए।
या विदेशी व्यापार को अनुकूल बनाने के कोई तीन सुझाव दीजिए।
उत्तर- विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम निम्नलिखित हैं-
(i) विदेशी निवेश के प्रतिबंध को हटाया गया।
(ii) तकनीकी तथा विदेशी कच्चे माल के आयात पर से प्रतिबंध हटाया गया।
(iii) उद्यमों को स्थापित करने के लिए लाइसेंसिंग प्रथा को हटाया गया।
प्रश्न 7. “विदेश व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों के एकीकरण में सहायक रहा है।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
या विदेशी व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों के एकीकरण में किस प्रकार सहायता करता है? संक्षेप में समझाइए।
या विदेशी व्यापार से आप क्या समझते हैं? इसके लाभों का वर्णन कीजिए।
या विदेशी व्यापार के लाभों का वर्णन कीजिए।
या विदेशी व्यापार से क्या आशय है? इसके किन्हीं तीन लाभों का वर्णन कीजिए।
या विदेशी व्यापार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर – दो या दो से अधिक देशों के बीच होने वाले व्यापार को विदेशी व्यापार कहते हैं। दूसरे शब्दों में, विदेशी व्यापार से तात्पर्य दो या दो से अधिक देशों में वस्तुओं तथा सेवाओं के विनिमय से है। इसमें आयात तथा निर्यात शामिल है।
विदेश व्यापार घरेलू बाजारों अर्थात् देश के बाजारों से बाहर के बाजारों में पहुँचने के लिए उत्पादकों को एक अवसर प्रदान करता है। उत्पादक केवल अपने देश के बाजारों में ही अपने उत्पाद नहीं बेचते हैं बल्कि विश्व के अन्य देशों के बाजारों में भी प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। इस प्रकार, दूसरे देशों में उत्पादित वस्तुओं के आयात से खरीददारों के समक्ष उन वस्तुओं के विकल्पों का विस्तार होता है जिनका घरेलू उत्पादन होता है। बाजार में वस्तुओं के विकल्प बढ़ जाते हैं। दो बाजारों में एक ही वस्तु का मूल्य एक-समान होता है। अब दो देशों के उत्पादक एक-दूसरे से हजारों मील दूर होकर भी एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। इस प्रकार, विदेश व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों को जोड़ने या एकीकरण में सहायक हुआ है।
प्रश्न 8. सन् 1991 में भारत सरकार द्वारा आर्थिक क्षेत्र में क्या परिवर्तन किए गए?
उत्तर- सन् 1991 के प्रारंभ में भारत सरकार द्वारा आर्थिक नीतियों में दूरगामी परिवर्तन किए गए। सरकार ने निश्चय किया कि भारतीय उत्पादकों को विश्व के उत्पादकों से प्रतिस्पर्धा करनी होगी। यह महसूस किया गया कि प्रतिस्पर्धा से देश के उत्पादकों के प्रदर्शन में सुधार होगा क्योंकि वे अपनी गुणवत्ता में सुधार करेंगे। इसलिए विदेश व्यापार एवं विदेशी निवेश पर से अवरोधकों को काफी हद तक हटा दिया गया। सरकार द्वारा अवरोधकों को हटाने की प्रक्रिया को उदारीकरण कहते हैं। आर्थिक क्षेत्र में उदारीकरण और निजीकरण की नीतियों को अपनाकर भारत की अर्थव्यवस्था को विश्व के अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं से जोड़ने का प्रयास किया गया।
प्रश्न 9. वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं? अपने शब्दों से स्पष्ट कीजिए।
या वैश्वीकरण क्या है? इसका कोई एक लाभ बताइए।
या वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- वैश्वीकरण का अर्थ एक ऐसी व्यवस्था से है जिसमें किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को विश्व की अन्य अर्थव्यवस्थाओं से विदेशी व्यापार एवं विदेशी निवेश द्वारा जोड़ा जाता है। वैश्वीकरण के कारण आज विश्व में विभिन्न देशों के बीच वस्तुओं, सेवाओं, तकनीकी तथा श्रम का आदान-प्रदान हो रहा है। इस कार्य में बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं जब वे अपनी इकाइयाँ संसार के विभिन्न देशों में स्थापित करती हैं।
प्रश्न 10. विश्व व्यापार संगठन से आप क्या समझते हैं? या विश्व व्यापार संगठन के क्रियाकलापों का वर्णन कीजिए।
उत्तर विश्व व्यापार संगठन एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है जो देशों के मध्य व्यापार के नियमों को विनियमित करता है। इसका मुख्यालय स्विट्जरलैण्ड के जेनेवा में स्थित है। 1995 में स्थापित इस संगठन के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार हेतु नियमों को निर्धारित करना और लागू करना, व्यापार उदारीकरण के विस्तार के लिए बातचीत और निगरानी हेतु एक मंच प्रदान करना, व्यापार-विवादों का समाधान करना, निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में पारदर्शिता को बढ़ाना, वैश्विक आर्थिक प्रबंधन में शामिल अन्य प्रमुख अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थानों के साथ सहयोग स्थापित करना तथा विकासशील देशों को वैश्विक प्रणाली में पूरी तरह से लाभान्वित होने में सहयोग करना।
प्रश्न 11. वैश्वीकरण ने किस प्रकार राष्ट्रीय कम्पनियों को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों (एम.एन.सी.) के रूप में उभरने योग्य बनाया?
उत्तर – भारत की कुछ बड़ी कम्पनियों को वैश्वीकरण ने बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के रूप में परिवर्तित किया है। इन्फोसिस, रिलायन्स, टाटा मोटर्स, एशियन पेण्ट्स, रैनबैक्सी तथा मैनकाइण्ड कुछ ऐसी भरतीय कम्पनियाँ हैं जो वैश्विक स्तर पर अपने उत्पादों का प्रचार-प्रसार कर रही हैं। वैश्वीकरण ने ही सेवा प्रदाता कम्पनियों (विशेषतः सूचना व संचार प्रौद्योगिकी वाली कम्पनियों) के लिए नवीनतम अवसरों को बढ़ाया है। भारत की एक कम्पनी द्वारा लंदन में स्थित कम्पनी हेतु पत्रिका प्रकाशित करना और कॉल सेण्टर्स इसके अच्छे उदाहरण हैं। इन सभी के बावजूद भारत में डाटा एण्ट्री, प्रशासनिक कार्य, लेखाकरण और इंजीनियरिंग आदि सेवाएँ सस्ते मूल्यों पर उपलब्ध हैं, जिनका विकसित देशों में निर्यात किया जाता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. भारतीय अर्थव्यवस्था पर वैश्वीकरण के सकारात्मक व नकारात्मक प्रभाव लिखिए।
अथवा विदेश व्यापार से आप क्या समझते हैं? इसके लाभों का वर्णन कीजिए।
उत्तर – विदेश व्यापार का अर्थ – भारत के विदेश व्यापार के अंतर्गत भारत से होने वाले सभी निर्यात एवं विदेशों से भारत में आयातित सभी सामानों से है। विदेश व्यापार, भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की देखरेख में होना है।
भारत पर वैश्वीकरण के सकारात्मक प्रभाव
- वैश्वीकरण के कारण नए उद्योग स्थापित होने से रोजगार के नए अवसरों का सृजन भी हुआ है।
- उद्योगों को कच्चे माल की आपूर्ति करने वाली स्थानीय कंपनियों का विस्तार भी हुआ है।
- वैश्वीकरण ने कुछ बड़ी कंपनियों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के रूप में उभरने में सक्षम बनाया है। टाटा मोटर्स, इंफोसिस, रैनबैक्सी. एशियन पेन्ट्स कुछ ऐसी भारतीय कंपनियाँ हैं जो विश्व स्तर पर अपने क्रिया-कलापों का प्रसार कर रही हैं।
- वैश्वीकरण से सेवा-प्रदाता कंपनियों से सूचना और संचार प्रौद्योगिकी वाली कंपनियों के लिए नए अवसरों का सृजन हुआ है। प्रशासनिक कार्य. इंजीनियरिंग इत्यादि जैसी कई सेवाएँ भारत जैसे देशों में अब सस्ते में उपलब्ध हैं और विकसित देशों को निर्यात की जाती हैं।
- वैश्वीकरण के कारण उपभोक्ताओं को लाभ हुआ है। इन उपभोक्ताओं के समक्ष पहले से अधिक विकल्प हैं और वे अनेक उत्पादों की उत्कृष्टता गुणवत्ता और कम कीमत से लाभान्वित हो रहे हैं। ये लोग पहले की तुलना में उच्चतर जीवन स्तर का प्रयोग कर रहे हैं।
- बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा भारत में माल और सेवाओं में किया जाने वाला निवेश भी उत्तरोत्तर बढ़ता जा रहा है। 1991 से अब तक यह निवेश बढ़ता ही जा रहा है।
- बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं में निवेश किया है। विदेशी निवेश भी इन्हीं उद्योगों और सेवाओं में हुआ है जिसमें निर्यात वृद्धि की संभावना है।
भारत पर वैश्वीकरण के नकारात्मक प्रभाव
वैश्वीकरण के बहुत से अच्छे प्रभावों के बावजूद इसके कुछ नकारात्मक प्रभाव भी रहे हैं। उत्पादकों और कर्मचारियों पर वैश्वीकरण का समान प्रभाव नहीं पड़ा है। इसके कुछ नकारात्मक पक्ष हैं-
- वैश्वीकरण और प्रतिस्पर्धा के दबाव ने श्रमिकों के जीवन को व्यापक रूप से प्रभावित किया है। बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण श्रमिकों का रोजगार लंबे समय के लिए सुनिश्चित नहीं है। जहाँ पहले. कारखाने श्रमिकों को स्थायी आधार पर रोजगार देते थे, वहीं वे अब अस्थायी रोजगार देते हैं, ताकि श्रमिकों को वर्षभर वेतन न देना पड़े।
- श्रमिकों से बहुत लंबे कार्य-घंटों तक काम लिया जाता है। मजदूरी काफी कम होती है। श्रमिकों को अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए अतिरिक्त समय में भी काम करना पड़ता है। इस प्रकार हमने देखा कि वैश्वीकरण के कारण मिले लाभों में श्रमिकों को न्यायसंगत हिस्सा नहीं मिला। इससे धनी उपभोक्ता, कुशल व शिक्षित लोग, धनी उत्पादक आदि ही लाभान्वित हुए हैं।
प्रश्न 2. उत्त्पादन को नियंत्रित करने के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ कौन से उपाय अपनाती हैं?
उत्तर – उत्पादन को नियंत्रित करने के लिए कंपनियाँ निम्नलिखित उपाय अपनाती हैं-
- संयुक्त उत्पादन – बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ विभिन्न देशों की स्थानीय कंपनियों के साथ संयुक्त उत्पादन करती हैं। संयुक्त उत्त्पादन से स्थानीय कंपनियों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों दोनों को फायदा होता है। बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ तीव्र उत्पादन के लिए अतिरिक्त निवेश करती हैं।
- स्थानीय कंपनियों को खरीदना – बहुराष्ट्रीय कंपनियों के निवेश का सामान्य तरीका है-स्थानीय कंपनियों को खरीदना और उसके बाद उत्पादन का प्रसार करना। अपार संपदा वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ आसानी से स्थानीय कंपनियों को खरीद सकती हैं; जैसे अमेरिकी कंपनी ‘कारगिल फूड्स’ ने भारतीय कंपनी ‘परख फूड्स’ को खरीद लिया।
- छोटे उत्पादकों पर नियंत्रण – बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ एक तरीके से उत्पादन नियंत्रित करती हैं। विकसित देशों में बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ छोटे उत्पादकों को उत्पादन का आदेश देती हैं। वस्त्र, जूते-चप्पल एवं खेल के सामान ऐसे उद्योग हैं जहाँ विश्वभर में बड़ी संख्या में छोटे उत्पादकों द्वारा उत्त्पादन किया जाता है। बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ इन उत्त्पादों की आपूर्ति के लिए स्थानीय कम्पनियों का इस्तेमाल करके और स्थानीय कंपनियों से प्रतिस्पर्धा करके उत्पादन पर अपना प्रभाव जमा रही हैं।
प्रश्न 3. वैश्वीकरण का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा वैश्वीकरण की प्रक्रिया में सहायक कारकों का वर्णन कीजिए।
अथवा वैश्वीकरण किसे कहते हैं? वैश्वीकरण को संभव बनाने वाले कारक बताइए।
उत्तर- अधिक विदेश व्यापार और अधिक विदेशी निवेश के कारण विभिन्न देशों के बाजारों एवं उत्पादनों में एकीकरण हो रहा है। विभिन्न देशों के बीच परस्पर संबंध और तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया ही वैश्वीकरण है। वैश्वीकरण की प्रक्रिया को बढ़ावा देने में निम्नलिखित कारकों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है-
- उदारीकरण – सरकार द्वारा व्यापार अवरोधकों को हटाने की प्रक्रिया को ही उदारीकरण कहते हैं। उदारीकरण के कारण अनेक देशों के बीच व्यापार तथा निवेश को बढ़ावा मिला है। व्यापार के उदारीकरण से व्यापारियों को मुक्त रूप से निर्णय लेने की अनुमति मिल जाती है। इससे आयात-निर्यात को बढ़ावा मिलता है।
- बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ – बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ वैश्वीकरण की प्रक्रिया में मुख्य भूमिका निभा रही हैं। विभिन्न देशों के बीच अधिक-से-अधिक वस्तुओं और सेवाओं, निवेश और प्रौद्योगिकी का आदान-प्रदान हो रहा है। इससे विश्व के अधिकांश भाग एक-दूसरे के अपेक्षाकृत अधिक पास आ रहे हैं।
- उन्नत प्रौद्योगिकी – वैश्वीकरण को उत्प्रेरित करने में प्रौद्योगिकी में तीव्र उन्नति का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। परिवहन में उन्नति से दो देशों के बीच दूरी कम हो गई है। सूचना एवं प्रौद्योगिकी के विकास से वैश्वीकरण को बढ़ावा मिला है। दूरसंचार, कंम्प्यूटर, इंटरनेट के क्षेत्र में प्रगति हुई है। दूरसंचार सुविधाओं का विश्वभर में एक-दूसरे से संपर्क करके, सूचनाओं को तत्काल प्राप्त करने और दूरवर्ती क्षेत्रों में संवाद करने में प्रयोग किया जाता है। जीवन के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में कम्प्यूटरों का प्रवेश हो गया है। इंटरनेट से हम इलेक्ट्रॉनिक डाक भेज सकते हैं और अत्यंत कम मूल्य पर विश्व भर में बात कर सकते हैं। संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी ने विभिन्न देशों के बीच सेवाओं के उत्पादन के प्रसार में मुख्य भूमिका निभाई है।
उपरोक्त विवेचन के आधार पर स्पष्ट है कि वैश्वीकरण की प्रक्रिया में बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ प्रमुख भूमिका का निर्वाह कर रही हैं। इसके साथ ही व्यापार एवं निवेश के उदारीकरण ने व्यापार एवं निवेश के अवरोधों को हटाकर वैश्वीकरण की प्रक्रिया को सुगम बनाने में सहायता की है।
प्रश्न 4. आर्थिक सुधारों की उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- आर्थिक सुधारों की प्रमुख उपलब्धियाँ इस प्रकार हैं-
- निर्यातों में वृद्धि – नई आर्थिक नीति का निर्यातों पर अनुकूल प्रभाव पड़ा।
- आवातों में उच्चावचन – हमारे आयातों पर नई आर्थिक नीति का प्रभाव मिला-जुला था। यहाँ इसकी वृद्धि दर में उत्तार-चढ़ाव थे।
- विदेशी मुद्रा कोष पर प्रभाव – नई आर्थिक नीति का विदेशी मुद्रा कोष पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा।
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर प्रभाव – हमारी उदार नई आर्थिक नीति के कारण प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में काफी वृद्धि हुई।
- राजकोषीय घाटे पर प्रभाव – राजस्व पर अधिकता है। राजकोषीय घाटा कुल व्यय की कुल
- कृषि उत्पादन में वृद्धि कृषि उत्पादन की वृद्धि – दर जो 1990- 91. में केवल 3% थी। 1996-97 में बढ़कर 9.3% हो गई। आठवीं योजना के दौरान कृषि उत्पादन बढ़कर 7.5% हो गया। इसमें कोई संदेह नहीं कि इसमें काफी उतार-चढ़ाव आए हैं। वृद्धि दर धनात्मक (+) वृद्धि दर को दर्शाती है। उत्पादन
- औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि – हमारी नई नीति का उद्देश्य में तीव्र गति से वृद्धि करना है परंतु हम अभी तक इसे प्राप्त नहीं कर सके हैं।
- कीमत स्तर पर प्रभाव – हमारी नई आर्थिक नीतियों को कीमतों में कनी लाने में सफलता मिली है। वृद्धि की दर कीमत स्तर में 1990-91 में 12% से बढ़कर 1991-92 में 13.6% हो गई। लेकिन काफी उतार-चढ़ाव के बाद ये 1998-99 में 7% हो गई।
- राष्ट्रीय उत्पाद में वृद्धि – नई आर्थिक नीति की इन सब आलोचनाओं के बावजूद, इस बात से पीछे हटा नहीं जा सकता कि राष्ट्रीय आय की वृद्धि जो 1990-91 में 4.7% थी 1996-97 में बढ़कर 7% हो गई। 1997-98 में यह फिर से गिरकर 4.9% हो गई। आठवीं योजना की वास्तविक वृद्धि दर 6.6% तक बढ़ी। 1998-99 में वृद्धि दर 6.8% थी।
प्रश्न 5. ‘सतत आर्थिक विकास’ से आप क्या समझते हैं? सतत आर्थिक विकास को आर्थिक वृद्धि के लिए क्यों आवश्यक माना जाता है?
उत्तर- सतत आर्थिक विकास का अर्थ – इसका अर्थ है- पर्यावरण को किसी तरह की क्षति पहुँचाए बिना आर्थिक विकास की प्रक्रिया को निरन्तर ज़ारी रखना। वर्तमान काल के विकास की कीमत पर भावी पीढ़ी की आवश्यकताओं के साथ किसी प्रकार का ऐसा समझौता नहीं करना चाहिए कि उनके हितों को नुकसान पहुँचे।
आर्थिक वृद्धि के लिए सतत आर्थिक विकास का महत्त्व
(i) जीवाश्म ईंधन और पेट्रोलियम जैसे विश्व को ऊर्जा प्रदान करने वाले संसाधनों के भण्डार बहुत ही सीमित हैं। दुनिया में पेट्रोल का सर्वाधिक उपभोग करने वाले राष्ट्र विकसित देश ही हैं। इन देशों की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है कि वे इसका प्रयोग करते हुए पर्यावरण को प्रदूषण से बचायें क्योंकि प्रदूषित पर्यावरण सारी मानव जाति और बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधनों के लिए बहुत बड़ा खतरा पैदा कर सकते हैं।
(ii) आज अनेक महत्त्वपूर्ण समझौतों पर अनेक देश मिलकर अपनी सहमति देते हैं और समझौतों पर हस्ताक्षर करते हैं। वे सभी वायदा करते हैं कि पर्यावरण का संरक्षण करने में वह योगदान देंगे और जलवायु में ऐसा परिवर्तन नहीं आने देंगे कि वह विश्व स्तर पर मानव अस्तित्व और भावी विकास के लिए नकारात्मक चेतावनी देने वाला हो जाए। वस्तुतः इन सभी समझौतों का एक ही उद्देश्य है कि वर्तमान काल में सभी देशों का यथासम्भव उचित आर्थिक विकास और वृद्धि हो लेकिन भावी पीढ़ी के हित भी सुरक्षित रहें।
(iii) तेजी से होने वाले आर्थिक विकास और औद्योगीकरण ने प्राकृतिक संसाधनों (जैसे वन, वन्य जीव-जन्तु, जल, खनिज सम्पत्ति इत्यादि) को अपूरणीय क्षति पहुँचाई है। यदि सीमित संसाधन पूर्णतया खत्म हो गए तो भविष्य में होने वाला देश का आर्थिक विकास खतरे में पड़ जाएगा।
(iv) आज की दुनिया अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण पहले की तुलना में अधिक नजदीक आ गई है। विश्व के एक हिस्से में होने वाली घटना विश्व के अन्य भागों पर अपना तुरन्त असर डालती है इसलिए विश्व स्तर पर आर्थिक विकास की रणनीति को अपनाना सभी देशों के हित में है अर्थात् हर देश को पर्यावरण के प्रति मित्रवत् दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
प्रश्न 6. वैश्वीकरण ने किस तरह भारतीय अर्थव्यवस्था की सहायता की है? उचित उदाहरणों की सहायता से समझायें।
उत्तर- वैश्वीकरण से भारतीय अर्थव्यवस्था को निम्नलिखित लाभ हुए हैं-
- सेवा क्षेत्रक पर प्रभाव – वैश्वीकरण से सेवा प्रदाता कम्पनियों, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी वाली कम्पनियों के लिए नए अवसरों का सृजन हुआ है। भारतीय कम्पनी द्वारा लन्दन स्थित कम्पनी की पत्रिका का प्रकाशन और कॉल-सेन्टर इसके उदाहरण हैं। इसके अतिरिक्त आँकड़ा प्रविष्टि (डाटा एन्ट्री), लेखांकन, प्रशासनिक कार्य, इन्जीनियरिंग जैसी कई सेवायें भारत जैसे विकासशील देशों में अब सस्ते में उपलब्ध हैं तथा विकसित देशों को निर्यात की जाती हैं।
- शीर्ष भारतीय कम्पनियों को लाभ – अनेक शीर्ष भारतीय कम्पनियाँ प्रतिस्पर्धा बढ़ने से लाभान्वित हुई हैं। इन कम्पनियों ने नवीनतम प्रौद्योगिकी और उत्पादन प्रणाली में निवेश किया और अपने उत्पादन-मानकों को ऊँचा उठाया। कुछ ने विदेशी कम्पनियों के साथ सफलतापूर्वक सहयोग का लाभ अर्जित किया। इससे भी आगे, वैश्वीकरण ने कुछ बड़ी कम्पनियों को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के रूप में उभरने में सक्षम बनाया। टाटा मोटर्स (मोटरगाड़ियाँ), इन्फोसिस (आई.टी.), रैनबैक्सी (दवा), एशियन पेन्ट्स (पेन्ट), सुन्दरम फास्टनर्स (नट और बोल्ट) कुछ ऐसी भारतीय कम्पनियाँ हैं जो विश्व स्तर पर अपने क्रियाकलापों का प्रसार कर रही हैं।
- उत्पादकों में वृद्धि – वैश्वीकरण के कारण स्थानीय एवं विदेशी दोनों उत्पादकों के बीच तीव्र प्रतिस्पर्धा से धनी वर्ग के उपभोक्ताओं को लाभ हुआ है। इन उपभोक्ताओं के समक्ष पहले से अधिक विकल्प हैं और वे अब अनेक उत्पादों की उत्कृष्टता, गुणवत्ता और कम कीमत से लाभान्वित हो रहे हैं। जहाँ तक समाज के निर्धन वर्ग का सवाल है, इस प्रतिस्पर्धा ने उनके उद्यम ही बन्द करा दिए हैं।
- निवेशकों पर प्रभाव – विगत वर्षों से बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने ‘भारत में अपने निवेश में वृद्धि की है, जिसका अर्थ है कि भारत में निवेश करना उनके लिए लाभप्रद रहा है। विगत 15 वर्षों में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं (जैसे- सेलफोन, मोटर-गाड़ियों, इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों, ठण्डे पेय पदार्थों और जंक खाद्य पदार्थों जैसी वस्तुओं एवं बैंकिंग जैसी सेवाओं) में निवास किया है। इन उत्पादों के अधिकांश खरीदार सम्पन्न वर्ग के लोग हैं। विदेशी निवेश भी उन्हीं उद्योगों और सेवाओं में हुआ, जिनमें निर्यात वृद्धि की सम्भावना है।
- नए उद्योगों की स्थापना – वैश्वीकरण के फलस्वरूप क्षेत्रकों में जहाँ नये उद्योग स्थापित हुए, वहाँ नये रोज़गारों का भी सृजन हुआ। साथ ही इन उद्योगों को कच्चे माल की आपूर्ति करने वाली स्थानीय कम्पनियों का विस्तार हुआ और कुछ ने तो अपनी उत्पादन-प्रक्रिया का आधुनिकीकरण भी किया।
प्रश्न 7. भारत में विदेशी व्यापार की किन्हीं तीन विशेषताओं की व्याख्या कीजिए।
अथवा विदेशी व्यापार के लाभों का वर्णन कीजिए। अथवा विदेशी व्यापार से क्या आशय है? इसके किन्हीं तीन लाभों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- (i) विभिन्न देशों को परस्पर जोड़ने में सहायक – विदेश व्यापार लम्बे समय से विभिन्न देशों को परस्पर जोड़ने का प्रमुख माध्यम रहा है। विदेश व्यापार घरेलू बाजारों अर्थात् अपने देश के बाजारों से बाहर के बाजारों में पहुँचने के लिए उत्पादकों को एक अवसर प्रदान करता है।
(ii) विदेशी व्यापार में उत्पादकों को अवसर प्रदान करना – विदेश व्यापार घरेलू बाजारों अर्थात् देश के बाजारों से बाहर के बाजारों में पहुँचने के लिए उत्पादकों को एक अवसर प्रदान करता है। उत्पादक केवल अपने देश के बाजारों में ही अपने उत्पाद नहीं बेचते हैं बल्कि विश्व के अन्य देशों के बाजारों में भी प्रतिस्पर्द्धा कर सकते हैं।
(iii) प्रतिस्पर्धा करने में सहायक – विश्व व्यापार के तहत दो देशों के उत्पादक एक-दूसरे से हजारों मील दूर होकर भी एक-दूसरे से प्रतिस्पर्द्धा कर सकते हैं।