UP Board Solution of Class 9 Hindi Chapter 4 Siddhi Mantra (Anivarya Sanskrit Khand) – हिंदी कक्षा 9 पाठ -4 सिद्धिमन्त्रः (अनिवार्य संस्कृत-खण्ड)

UP Board Solution of Class 9 Hindi Chapter 4 Siddhi Mantra (Anivarya Sanskrit Khand) – हिंदी कक्षा 9 पाठ -4 सिद्धिमन्त्रः (अनिवार्य संस्कृत-खण्ड)

Dear Students! यहाँ पर हम आपको कक्षा 9 हिंदी संस्कृत-खण्डके पाठ 4 सिद्धिमन्त्रः  का सम्पूर्ण हल प्रदान कर रहे हैं। यहाँ पर सिद्धिमन्त्रः सम्पूर्ण पाठ के साथ गद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर अर्थात गद्यांशो का हल, अभ्यास प्रश्न का हल दिया जा रहा है। 

UP Board Solution of Class 9 Hindi Chapter 4 Siddhi Mantra. (Anivarya Sanskrit Khand) – हिंदी कक्षा 9 पाठ-4 सिद्धिमन्त्रः  (अनिवार्य संस्कृत-खण्ड) – up board class 9th anivary sanskrit lesson 4 Siddhi Mantra based on new syllabus of uttar pradesh madhymik shiksha parishad prayagraj.

 

UP Board Solution of Class 9 Hindi Gadya Chapter 1 - Baat - बात (प्रतापनारायण मिश्र) Jivan Parichay, Gadyansh Adharit Prashn Uttar Summary

Chapter Name Siddhi Mantra-सिद्धिमन्त्रः  
Class 9th 
Board Name UP Board (UPMSP)
Topic Name गद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर,गद्यांशो का हल(Gadyansh Adharit Prashn Uttar Summary )

                           UP Board Solution of Anivarya    

                 Sanskrati

         class 9th chapter – 4

चतुर्थः पाठः                         सिद्धिमन्त्रः

  1. रामदासः नारायणपुरे निवसति। सः नित्य ब्राह्मे मुहूर्ते उत्थाय नित्यकर्माणि करोति, नारायणं स्मरति, ततः परं पशुभ्यः घासं ददाति। अनन्तरं पुत्रेण सह सः क्षेत्राणि गच्छति। तत्र सः कठिनं श्रमं करोति। तस्य श्रमेण निरीक्षणेन च कृषौ प्रभूतम् अन्नम् उत्पद्यते। तस्य पशवः हृष्ट-पुष्टाङ्गाः सन्ति, गृहं च धनधान्यादिपूर्णम् अस्ति।

शब्दार्थ ब्राह्मे मुहूर्ते = प्रातःकाल के समय । उत्थाय = उठकर | नित्यकर्माणि = दैनिक कार्य । श्रमम् = परिश्रम ! प्रभूतम् = अधिक । धनधान्यादिपूर्णम् = (धन + धान्य + आदि + पूर्णम्) धन-धान्य आदि से पूर्ण सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के अन्तर्गत संस्कृत खण्ड के सिद्धिमन्त्रः ‘ नामक पाठ से लिया गया है। इसमें श्रम के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है

हिन्दी अनुवाद रामदास नारायणपुर में रहता है । वह रोजाना बहुत सवेरे उठकर दैनिक कार्य करता है, भगवान् का स्मरण करता है, इसके बाद पशुओं को घास देता है । फिर वह पुत्र के साथ खेतों पर जाता है । वहाँ पर कठोर परिश्रम करता है। उसके परिश्रम और देखभाल से खेती में अधिक अन्न उत्पन्न होता है। उसके पशु हृष्ट-पुष्ट अंगों वाले हैं और घर धन धान्य से भरा हुआ है।

 

  1. अत्रैव ग्रामे पैतृकधनेन धनवान् धर्मदासः निवसति। तस्य सकलं कार्यं सेवकाः सम्पादयन्ति। सेवकानाम् उपेक्षया तस्य पशवः दुर्बलाः क्षेत्रेषु च बीजमात्रमपि अन्नं नोत्पद्यते। क्रमशः तस्य पैतृकं धनं समाप्तम् अभवत्। तस्य जीवनम् अभावग्रस्तं जातम्।

शब्दार्थ अत्रैव = (अत्र + एव यहाँ ही) यहीं! सकलम् = सम्पूर्ण सम्पादयन्ति करते हैं। उपेक्षया = लापरवाही से। नोत्पद्यते ( न + उत्पद्यते) = उत्पन्न नहीं होता है। पैतृकं धनम् = पूर्वजों से प्राप्त धन । अभावग्रस्तम् = अभावों से ग्रसित ।

हिन्दी अनुवाद इसी गाँव में पूर्वजों से प्राप्त धन से धनवान् बना हुआ धर्मदास रहता है। उसका सारा काम नौकर-चाकर करते हैं। नौकरों की उपेक्षा (लापरवाही) से उसके पशु कमजोर हो गये हैं और खेतों में बीजमात्र को भी अनाज नहीं होता है। धीरे-धीरे उसका सारा पैतृक धन समाप्त हो गया। उसका सारा जीवन अभावों से ग्रसित हो गया।

 

  1. एकदा वनात् प्रत्यागत्य रामदासः स्वद्वारि उपविष्टं धर्मदासं दुर्बलं खिन्नं च दृष्ट्वा अपृच्छत्, “मित्र धर्मदास! चिराद् दृष्टोऽसि। किं केनापि रोगेण ग्रस्तः, येन एवं दुर्बलः।” धर्मदासः प्रसन्नवदनं तम् अवदत् “मित्र! नाहं रुग्णः, परं क्षीणविभवः इदानीम् अन्य इव संजातः। इदमेव चिन्तयामि केनोपायेन मन्त्रेण वा सम्पन्नः भवेयम्।” रामदासः तस्य दारिद्रयस्य कारणं तस्यैव अकर्मण्यता इति विचार्य एवम् अकथयत्, “मित्र! पूर्व केनापि दयालुना साधुना महयम् एकः सम्पत्तिकारकः मन्त्रः दत्तः, यदि भवान् अपि तं मन्त्रम् इच्छति तर्हि तेन उपदिष्टम् अनुष्ठानम् आचरतु, मित्र। शीघ्रं कथय तदनुष्ठानं येनाहं पुनः सम्पन्नः भवेयम्।” रामदासः अवदत्, “मित्रः नित्यं सूर्योदयात् पूर्वम् उत्तिष्ठ, स्वपशूनां च उपचर्या स्वयमेव कुरु, प्रतिदिनं च क्षेत्रेषु कर्मकाराणां कार्याणि निरीक्षस्व। अनेन तव अनुष्ठानेन प्रसन्नः सः महात्मा वर्षान्ते अवश्यं तुभ्यं सिद्धिमन्त्रं दास्यति इति।”

शब्दार्थ एकदा = एक बार! प्रत्यागत्य = लौटकर । स्वद्वारि = अपने दरवाजे पर! खिन्नम् = दुःखी । चिराद् = बहुत समय से! प्रसन्नवदनम् = प्रसन्न मुख । क्षीणविभवः = धन से नष्ट। संजातः =  हो गया। सम्पन्न = धनवान् । अकर्मण्यता = निष्क्रियता। अनुष्ठानम् = विधिपूर्वक किया गया कार्य। उपचर्या = सेवा। कर्मकराणाम् = मजूदरों के । वर्षान्ते (वर्ष + अन्ते) = वर्ष के अन्त में।

हिन्दी अनुवाद एक दिन वन से लौटकर रामदास ने अपने दरवाजे पर बैठे हुए धर्मदास को कमजोर और दु:खी देखकर पूछा – ” मित्र धर्मदास ! बहुत समय के बाद दिखायी दिये हो। क्या किसी रोग से पीड़ित हो, जिससे इतने कमजोर हो गये हो?” धर्मदास ने प्रसन्न मुख वाले उस (मित्र) से कहा – ” मित्र ! मैं बीमार नहीं हूँ, परन्तु धन के नष्ट होने पर कुछ और सा हो गया हूँ। यही सोच रहा हूँ कि किस उपाय, मन्त्र अथवा तन्त्र से धनवान् हो जाऊँ।” उसकी गरीबी का कारण उसी का आलस्य है – ऐसा विचार कर रामदास ने इस प्रकार कहा – ” मित्र ! पहले, किसी दयालु महात्मा ने मुझे एक सम्पत्ति दिलाने वाला मन्त्र दिया था। यदि आप भी उस मन्त्र को चाहते हैं तो उसके द्वारा बताये गये अनुष्ठान (कार्य) को करो। इसके पश्चात् मन्त्र का उपदेश देनेवाले उसी महात्मा के पास चलेंगे।” (वह बोला ) – ” मित्र ! उस कार्यविधि को शीघ्र बताओ, जिससे मैं पुनः धनवान् हो जाऊँ।” रामदास बोला – ” मित्र ! सदा सूर्योदय से पहले उठो और अपने पशुओं की सेवा स्वयं ही करो। प्रतिदिन खेतों में श्रमिकों के कार्यों का निरीक्षण करो। तुम्हारे विधिपूर्वक किये गये इस कार्य से प्रसन्न होकर वह महात्मा एक वर्ष के अन्त में अवश्य तुम्हें सिद्धिमन्त्र देगा ।”

 

  1. विपन्नः धर्मदासः सम्पत्तिम् अभिलषन् वर्षम् एकं यथोक्तम् अनुष्ठानम् अकरोत्। नित्यं प्रातः जागरणेन तस्य स्वास्थ्यम् अवर्धत्। तेन नियमेन पोषिताः पशवः स्वस्थाः सबलाः च जाताः, गावः महिष्यः च प्रचुरं दुग्धम् अयच्छन्। तदानीं तस्य कर्मकराः अपि कृषिकार्ये सन्नद्धाः अभवन्। अतः तस्मिन् वर्षे तस्य क्षेत्रेषु प्रभूतम् अन्नम् उत्पन्नम्, गृहं च धनधान्यपूर्ण जातम्।

शब्दार्थ विपन्न: = दुःखी। अभिलषन् = इच्छा करता हुआ ! यथोक्तम् (यथा + उक्तम्) = कहे अनुसार ! महिष्य = भैंसे । प्रचुरम् = अधिक। सन्नद्धाः अभवन् = जुट गये । =

हिन्दी अनुवाद दुःखी धर्मदास ने सम्पत्ति की इच्छा करते हुए एक वर्ष तक जैसा कहा गया था, उसी के अनुसार अनुष्ठा (विधिपूर्वक कार्य किया। प्रतिदिन प्रातः जागने से उसका स्वास्थ्य बढ़ गया। उसके द्वारा नियमपूर्वक पालित पशु स्वस्थ और सबल हो गये। गायों और भैंसों ने अधिक दूध दिया। उस समय उसके मजदूर भी खेती के कार्य में जुट गये। अतः उस वर्ष उसके खेतों में अधिक अनाज उत्पन्न हुआ और घर धन-धान्य से भर गया।

 

  1. एकस्मिन् दिने प्रातः रामदासः क्षेत्राणि गच्छन् दुग्धपरिपूर्णपात्रं हस्ते दधानं प्रसन्नमुखं धर्मदासम् अवलोक्य अवदत्, “अपि कुशलं ते, वर्धते किं तव अनुष्ठानम्? किं महात्मानं मन्त्रार्थम् उपगच्छाव?” धर्मदासः प्रत्यवदत्, “मित्र! वर्षपर्यन्तं श्रमं कृत्वा मया इदं सम्यग् ज्ञातं यत् ‘कर्म’ एव स सिद्धिमन्त्रः। तस्यैव अनुष्ठानेन मनुष्यः सर्वम् अभीष्टं फलं लभते। तस्यैव अनुष्ठानस्य प्रभावेण सम्प्रति अहं पुनः सुखं समृद्धिं च अनुभवामि।” तत् श्रुत्वा प्रहृष्टः च रामदासः यथास्थानम् अगच्छत्।

शब्दार्थदुग्धपरिपूर्णपात्रम् = दूध से भरे हुए बर्तन को । हस्ते दधानम् = हाथ में लिये हुए। सम्यग् = अच्छी तरह। अभीष्टम् = इच्छित, मनचाहा। सम्प्रति = इस समय! प्रहृष्टः = प्रसन्न हुआ।

हिन्दी अनुवाद एक दिन प्रात: खेतों को जाते हुए रामदास ने दूध से भरा हुआ बर्तन हाथ में लिये हुए प्रसन्न मुख वाले धर्मदास को देखकर कहा-“तुम कुशल से तो हो। क्या तुम्हारा कार्य विधिपूर्वक चल रहा है? क्या उस महात्मा के पास मन्त्र के लिए चलें ? ” धर्मदास ने उत्तर दिया- ” मित्र! सालभर परिश्रम करके मैंने यह अच्छी तरह जान लिया है कि ‘कर्म’ ही वह सफलता देने वाला मन्त्र है। उसी को विधिपूर्वक करने से सब कुछ मनचाहा फल प्राप्त होता है। उसी अनुष्ठान के प्रभाव से मैं फिर से सख और सम्पन्नता का अनुभव कर रहा हूँ।” यह सुनकर प्रसन्न और सन्तुष्ट हुआ रामदास यथास्थान को चला गया ।

 

6 उत्साहसम्पन्त्रमदीर्घसूत्रं क्रियाविधिज्ञं व्यसनेष्वसक्तम्।

    शूरं कृतज्ञं दृढ़सीहृदं च लक्ष्मीः स्वयं याति निवासहेतोः।।

शब्दार्थ अदीर्घसूत्रम् = आलस्य से रहित (जो आज का काम कल पर नहीं टालता ) | क्रियाविधिज्ञम् (क्रिया + विधिज्ञम्) = कार्य करने की विधि को जानने वाला । व्यसनेष्वसक्तम् (व्यसनेषु + असक्तम् ) = बुरी आदतों से दूर रहनेवाला । कृतज्ञम् = किये हुए उपकार को माननेवाला । दृढसौहृद्रम् = दृढ़ मित्रता करनेवाला।

हिन्दी अनुवादउत्साह से युक्त, आलस्य से रहित, काम करने की विधि को जाननेवाले, बुरे कामों में न लगे हुए, शूरवीर,किये हुए उपकार को माननेवाले और पक्की मित्रता रखनेवाले पुरुष के पास लक्ष्मी ( धन-सम्पत्ति) स्वयं निवास के लिए जाती है।

 

पाठ पर आधारित प्रश्नोत्तर :-

प्रश्न 1. रामदासः कुत्र निवसति ?

उत्तर : रामदासः नारायणपुरे निवसति ।

प्रश्न 2. नारायणपुरे कौ निवसतः?

उत्तर : नारायणपुरे रामदासः धर्मदासः च निवसतः ।

प्रश्न 3. रामदासः प्रातःकाले उत्थाय किम् करोति ?

उत्तर : रामदासः प्रातःकाले उत्थाय नित्य कर्माणि करोति ।

प्रश्न 4. रामदासः कदा उत्तिष्ठति ?

उत्तर : रामदासः प्रातः काले उत्तिष्ठति ।

प्रश्न 5. रामदासः केन सह क्षेत्राणि गच्छति?

उत्तर : रामदासः पुत्रेण सह क्षेत्राणि गच्छति ।

प्रश्न 6. धर्मदासस्य दारिद्रस्य किम् कारणम् आसीत् ?

उत्तर : अकर्मण्यता एव धर्मदासस्य दारिद्रस्य कारणम् आसीत्

प्रश्न 7. सिद्धिमन्त्रः किम् अस्ति ?

उत्तर : कर्मेव सिद्धिमन्त्रः अस्ति ।

प्रश्न 8. रामदासः धर्मदासं किम् अपृच्छत् ?

उत्तर : रामदासः धर्मदासं अपृच्छत्, मित्र धर्मदास ! चिराद् दृष्टोऽसि ! किं केनापि रोगेणग्रस्तः येन एवं दुर्बलः

प्रश्न 9. केन कारणेन धर्मदासस्य स्वास्थ्यम् अवर्धयत् ?

उत्तर : नित्यं प्रातः जागरणेन धर्मदासस्य स्वास्थ्यम् अवर्धत ।

प्रश्न 10. धर्मदासः कथम् सम्पन्नम् अभवत्?

उत्तर : वर्ष पर्यन्तं श्रमं कृत्वा धर्मदासः सम्पन्नम् अभवत्

प्रश्न 11. लक्ष्मी निवास हेतोः कं स्वयं याति ?

उत्तर : लक्ष्मी उत्साहिनं कर्मण्यं शूरं पुरुषं निवास हेतो: याति ।

प्रश्न 12. किम् कृत्वा मनुष्यः सर्वम् अभीष्टं फलं लभते ?

उत्तर : श्रमं कृत्वामनुष्यः सर्वम् अभीष्टं फलं लभते ।

 

2.बहुविकल्पीय प्रश्न

 

  1. रामदासः कुत्र निवसति?

(अ) नारायणपुरे        (ब) गोविन्दपुरे

(स) रामपुरे              (द) कृष्णपुरे

  1. रामदासः कदा उत्तिष्ठति?

(अ) सायंकाले            (ब) प्रातःकाले

(स) अपराह्ने             (द) एतेषु न कश्चिदामपि

  1. नारायणपुरे कौ निवसतः?

(अ) रामदासः            (ब) धर्मदासः

(स) देवदासः             (द) ‘अ’ एव ‘ब’

  1. लक्ष्मी निवास हेतु स्वयं किसके पास जाती हैं?

(अ) उत्साही व्यक्ति     (ब) कर्मवीर पुरुष

(स) दृढ़ हृदय वाला     (द) उपर्युक्त सभी

  1. सिद्धि मन्त्रः किम् अस्ति?

(अ) कर्मः                (ब) धर्मः

(स) आलस्यः            (द) धनं

  1. धर्मदासः कथम् सम्पन्नम् अभवत्?

(अ) आलस्यं कृत्वा     (ब) श्रमं कृत्वा

(स) पूजां कृत्वां         (द) एतेषु न कश्चिदामपि

  1. रामदासः केन सह क्षेत्राणि गच्छति?

(अ) मित्रेण सह          (ब) पुत्रेण सह

(स) श्रमिकेण सह       (द) पित्रा सह

  1. धर्मदास की दरिद्रता का क्या कारण था?

(अ) अकर्मण्यता          (ब) परिश्रमशीलता

(स) लगनशीलता          (द) इनमें से कोई नहीं

 

 

UP Board Solution of Class 9 Hindi Chapter 3 Purushottam Ram (Anivarya Sanskrit Khand) – हिंदी कक्षा 9 पाठ -3 पुरुषोत्तमः रामः (अनिवार्य संस्कृत-खण्ड)

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