UP Board Solution of Class 9 Social Science [सामाजिक विज्ञान] Civics [नागरिक शास्त्र] Chapter-4 संस्थाओं का कामकाज (Working Of Institutions) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Long Answer
प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 9वीं की सामाजिक विज्ञान इकाई-3: नागरिक शास्त्र लोकतांत्रिक राजनीति-1 खण्ड-2 के अंतर्गत चैप्टर4 संस्थाओं का कामकाज (Working Of Institutions) पाठ के दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। जो की UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करेंगे।
Subject | Social Science [Class- 9th] |
Chapter Name | संस्थाओं का कामकाज (Working Of Institutions) |
Part 3 | Civics [नागरिक शास्त्र ] |
Board Name | UP Board (UPMSP) |
Topic Name | लोकतांत्रिक राजनीति-1 |
संस्थाओं का कामकाज (Working Of Institutions)
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. लोकसभा अध्यक्ष की स्थिति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- लोकसभा के अध्यक्ष का चुनाव लोकसभा द्वारा अपने सदस्यों में से किया जाता है। लोकसभा अध्यक्ष के प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं-
- सदन में जब किसी बिल पर वाद-विवाद समाप्त हो जाता है, तो वह उस पर मतदान करवाता है, मतों की गिनती करवाता है तथा परिणाम घोषित करता है।
- वह लोकसभा की बैठकों की अध्यक्षता करता है तथा सदन में शान्ति और व्यवस्था बनाए रखने का कार्य करता है।
- स्पीकर ही इस बात का निर्णय करता है कि सदन की गणपूर्ति के लिए आवश्यक सदस्य उपस्थित हैं अथवा नहीं।
- यदि कोई सदस्य सदन की कार्यवाही में बाधा उत्पन्न करता है अथवा सदन में अनुचित शब्दों का प्रयोग करता है तो स्पीकर उसके विरुद्ध कार्यवाही कर सकता है। वह उसे सदन से बाहर जाने के लिए कह सकता है।
- दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता भी स्पीकर करता है।
- वह सदस्यों के लिए निवास तथा अन्य सुविधाओं की व्यवस्था करता है।
- वह राष्ट्रपति तथा सदन के बीच कड़ी का काम करता है।
- लोकसभा जब किसी बिल को पास कर देती है, तो वह स्पीकर के हस्ताक्षरों के बाद ही राज्यसभा अथवा राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है।
- वह लोकसभा के सदस्यों के अधिकारों की रक्षा करता है।
- सदन की बैठक में गड़बड़ होने की स्थिति में वह सदन की बैठक स्थगित कर सकता है।
- स्पीकर सदन के नेता की सलाह से सदन का कार्यक्रम निर्धारित करता है।
- सदन की विभिन्न समितियों की नियुक्तियों में स्पीकर का महत्त्वपूर्ण हाथ होता है।
- वह सदन में सदस्यों को बोलने की आज्ञा देता है।
- साधारणतः स्पीकर सदन में मतदान में भाग नहीं लेता, परन्तु किसी बिल पर समान मत पड़ने की स्थिति में वह निर्णायक मत दे सकता है।
- यदि किसी बिल के बारे में यह मतभेद उत्पन्न हो जाए कि वह बिल वित्त-बिल है अथवा नहीं, तो उस सम्बन्ध में स्पीकर द्वारा किया गया निर्णय ही अन्तिम माना जाएगा।
प्रश्न 2. संसद तथा इसके दोनों सदनों के बारे में संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर- प्रायः सभी लोकतान्त्रिक देशों में निर्वाचित प्रतिनिधियों की सभा जनता की ओर से सर्वोच्च राजनीतिक सत्ता का प्रयोग करती है। भारत में इस तरह की निर्वाचित राष्ट्रीय सभा को संसद कहते हैं। इसके दो सदन हैं- लोकसभा (निम्न सदन) और राज्यसभा (उच्च सदन)।
देश में कानून बनाने वाली सर्वोच्च सत्ता संसद है। संसद वर्तमान कानूनों को परिवर्तित या समाप्त कर सकती है अथवा पुराने कानूनों के स्थान पर नए कानून बना सकती है। संसद का सरकार को चलाने वाले लोगों पर नियन्त्रण होता है। संसद के समर्थन के बिना कोई भी निर्णय नहीं लिया जा सकता। संसद सरकार के पास उपलब्ध धन को भी नियन्त्रित करती है। संस्रद देश में सार्वजनिक मुद्दों तथा राष्ट्रीय नीतियों पर परिचर्चा का सर्वोच्च मंच है। यह किसी भी मामले में सूचना की माँग कर सकती है। हमारे देश में संसद दो सदनों में मिलकर बनी है- राज्यसभा तथा लोकसभा। हमारा संविधान राज्यसभा को राज्यों पर कुछ विशेष शक्तियाँ प्रदान करता है। किन्तु अधिकतम मामलों में लोकसभा के पास सर्वोच्च शक्ति है।
लोकसभा- यह लोगों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुनी जाती है तथा लोगों की ओर से लोकसभा वास्तविक शक्ति का प्रयोग करती है। लोकसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 552 है जिनमें से 530 सदस्य विभिन्न राज्यों से तथा 20 सदस्य संघ शासित क्षेत्रों से चुने जाते हैं। राष्ट्रपति लोकसभा में 2 सदस्य आंग्ल-भारतीय समुदाय से मनोनीत करते थे जिसे 25 जनवरी, 2020 को समाप्त कर दिया गया। लोकसभा सदस्यों की वर्तमान संख्या 545 है। लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्ष होता है। आपात स्थिति में लोकसभा के कार्यकाल को एक बार में एक वर्ष में लिए बढ़ाया जा सकता है।
राज्यसभा- राज्यसभा के सदस्य परोक्ष रूप से विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं द्वारा चुने जाते हैं। दूसरे सदन का सर्वाधिक सामान्य काम विभिन्न राज्यों, क्षेत्रों और संघीय इकाइयों के हितों की निगरानी करना होता है। इसके सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 होती है। राज्यसभा में 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा साहित्य, कला, विज्ञान एवं समाज सेवा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में विशेष उपलब्धि प्राप्त करने वाले लोगों में से नामित किए जाते हैं। राज्यसभा स्थायी सदन है। यह कभी भंग नहीं होती अपितु इसके एक तिहाई सदस्य प्रत्येक 2 वर्ष के बाद सेवानिवृत्त हो जाते हैं। वर्तमान में राज्यसभा के 245 सदस्य हैं जो विभिन्न राज्यों तथा संघ शासित क्षेत्रों से चुने गए हैं।
प्रश्न 3. राष्ट्रपति की शक्तियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-राष्ट्रपति की प्रमुख शक्तियों का विवरण इस प्रकार हैं-
- वह केवल नाममात्र की शक्तियों का प्रयोग करता है। वह ब्रिटेन की महारानी के समान है जिसके कार्य अधिकांशतः आलंकारिक होते हैं।
- सभी प्रमुख नियुक्तियाँ राष्ट्रपति के नाम से की जाती है। इनमें भारत के मुख्य न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों तथा राज्यों के उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों, राज्यों के राज्यपालों, चुनाव आयुक्तों और अन्य देशों में राजदूतों की नियुक्तियाँ शामिल हैं किन्तु राष्ट्रपति इन शक्तियों का प्रयोग केवल मन्त्रीमण्डल की सलाह से करता है।
- सरकार के सभी कानून तथा प्रमुख नीतिगत निर्णय राष्ट्रपति के नाम जारी किए जाते हैं।
- सभी अन्तर्राष्ट्रीय समझौते तथा सन्धियाँ उसी के नाम पर किए जाते हैं।
- सरकार के सभी क्रियाकलाप राष्ट्रपति के नाम पर किए जाते हैं।
- वह भारत के रक्षा बलों का सुप्रीम कमाण्डर होता है।
- वह देश की सभी राजनीतिक संस्थाओं के कार्य की निगरानी करता है।
- राष्ट्रपति देश का मुखिया होता है।
प्रश्न 4. न्यायपालिका की स्वतन्त्रता एवं शक्तियों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर- देश में विद्यमान विभिन्न स्तरों के समस्त न्यायालयों को सामूहिक रूप से न्यायपालिका कहते हैं। न्यायपालिका की स्वतन्त्रता से आशय यह है कि यह विधायिका एवं कार्यपालिका के नियन्त्रण से मुक्त है। इसीलिए न्यायपालिका को सभी लोकतान्त्रिक देशों में विशेष महत्त्व दिया गया है। भारतीय न्यायपालिका पूरे देश के लिए सर्वोच्च न्यायालय, राज्यों में उच्च न्यायालयों, जिला न्यायालयों तथा स्थानीय न्यायालयों से मिलंकर बनी है। भारतीय न्यायपालिका पूरे विश्व में सबसे ज्यादा शक्तिशाली है।
भारत की न्यायपालिका एकीकृत है। इसका अर्थ है सर्वोच्च न्यायालय पूरे देश में न्यायिक प्रशासन को नियन्त्रित करता है। वह इनमें से किसी भी विवाद की सुनवाई कर सकता है।
(i) देश के नागरिकों के बीच; (ii) नागरिकों एवं सरकार के बीच, (iii) दो या इससे अधिक राज्य सरकारों के बीच; (iv) केन्द्र और राज्य सरकार के बीच।
न्यायपालिका की स्वतन्त्रता का अर्थ है कि यह विधायिका अथवा कार्यपालिका के नियन्त्रण से मुक्त है। न्यायाधीश सरकार के निर्देशों या सत्ताधारी दलों की इच्छा के अनुसार काम नहीं करते। यही कारण है कि सभी आधुनिक लोकतन्त्रों में अदालतें, विधायिका और कार्यपालिका के नियन्त्रण से मुक्त होती हैं। सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों को देश के संविधान की व्याख्या करने का अधिकार है। अगर उसे लगता है कि विधायिका का कोई कानून अथवा कार्यपालिका की कोई कार्रवाई संविधान के विरुद्ध है तो यह उसे केन्द्र अथवा राज्य स्तर पर अमान्य घोषित कर सकती है। इस प्रकार जब इसके सामने किसी कानून या कार्यपालिका की कार्रवाई को चुनौती मिलती है तो वह उसकी संवैधानिक वैधता तय करती है। इसे न्यायिक समीक्षा के नाम से जाना जाता है। न्यायिक समीक्षा सर्वोच्च न्यायालय की वह शक्ति है जिसके द्वारा वह विधायिका द्वारा पारित कानून अथवा कार्यपालिका द्वारा की गई कार्रवाई को यह जानने के लिए प्रयोग कर सकती है कि उक्त कानून या कार्रवाई संविधान द्वारा निषिद्ध है अथवा नहीं। यदि न्यायालय यह पाता है कि कोई कानून अथवा आदेश संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन करता है तो यह ऐसे कानून या आदेश को अमान्य घोषित कर सकता है।