UP Board Solution of Class 9 Social Science [सामाजिक विज्ञान] Economics [अर्थशास्त्र] Chapter-2 संसाधन के रूप मे लोग (Sansadhan Ke Roop Mein Log) लघु उत्तरीय प्रश्न Laghu Uttariy Prashn
प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 9वीं की सामाजिक विज्ञान इकाई-4: अर्थशास्त्र अर्थव्यवस्था खण्ड-1 के अंतर्गत चैप्टर 2 संसाधन के रूप मे लोग (Sansadhan Ke Roop Mein Log) पाठ के लघु उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। जो की UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करेंगे।
Subject | Social Science [Class- 9th] |
Chapter Name | संसाधन के रूप मे लोग (Sansadhan Ke Roop Mein Log) |
Part 3 | Economics [अर्थशास्त्र ] |
Board Name | UP Board (UPMSP) |
Topic Name | संसाधन के रूप मे लोग (Sansadhan Ke Roop Mein Log) |
संसाधन के रूप मे लोग (Sansadhan Ke Roop Mein Log)
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. जनसंख्या किसी अर्थव्यवस्था के लिए दायित्व नहीं अपितु एक परिसम्पत्ति है; इसे सिद्ध करने के लिए उदाहरण दीजिए।
उत्तर- कुछ लोग यह मानते हैं कि जनसंख्या एक दायित्व है न कि एक परिसम्पत्ति। किन्तु यह सच नहीं है। लोगों को एक परिसम्पत्ति बनाया जा सकता है। यदि हम उनमें शिक्षा, प्रशिक्षण एवं चिकित्सा सुविधाओं के द्वारा निवेश करें। जिस प्रकार भूमि, जल, वन, खनिज आदि हमारे बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन हैं उसी प्रकार मनुष्य भी एक बहुमूल्य संसाधन है। लोग राष्ट्रीय परिसम्पत्तियों के उपभोक्ता मात्र नहीं हैं अपितु वे राष्ट्रीय सम्पत्तियों के उत्पादक भी हैं। वास्तव में मानव संसाधन अन्य संसाधनों जैसे कि भूमि तथा पूँजी की अपेक्षाकृत श्रेष्ठ हैं क्योंकि वे भूमि एवं पूँजी का प्रयोग करते हैं। भूमि एवं पूँजी स्वयं उपयोगी नहीं हो सकते। हम जापान का उदाहरण दे सकते हैं। इस देश ने मानव संसाधन में ही निवेश किया है क्योंकि इसके पास कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं था। लोगों ने अन्य संसाधनों जैसे कि भूमि एवं पूँजी का दक्षतापूर्ण प्रयोग किया है। लोगों द्वारा विकसित दक्षता एवं तकनीक ने जापान को एक धनी एवं विकसित देश बना दिया।
प्रश्न 2. बाजार क्रियाएँ किस तरह गैर-बाजार क्रियाओं से भिन्न हैं?
उत्तर-
बाजार क्रियाएँ |
गैर-बाजार क्रियाएँ |
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(क)
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बाजार क्रियाओं में काम करने वाले सभी लोगों को पारिश्रमिक मिलता है। जैसे कि वेतन अथवा लाभ के लिए की गई क्रियाएँ। | गैर-बाजार क्रियाएँ स्वतः उपभोग के लिए की जाती हैं।
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(ख)
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इनमें सामान का विनिर्माण या सरकारी सेवाओं सहित सेवाएँ शामिल हैं। | इनमें प्राथमिक उत्पादों की खपत एवं प्रसंस्करण एवं अपने लिए स्थायी परिसम्पत्तियों का विनिर्माण शामिल हैं। |
प्रश्न 3. भारत में लोगों की जीवन प्रत्याशा बढ़ाने के लिए क्या प्रयास किए गए हैं?
उत्तर- भारत में लोगों की जीवन प्रत्याशा बढ़ाने के लिए अग्रलिखित प्रयास किए गए थे-
- जनसंख्या के अल्प-सुविधा प्राप्त वगों पर विशेष ध्यान देते हुए स्वास्थ्य सेवाओं, परिवार कल्याण एवं पोषण सेवाओं में सुधार। अशोधित जन्मदर जो 1951 में 40.8 दर्ज की गयी थी। वह 2019 में घटकर 19.7 हो गई।
- जीवन प्रत्याशा 2014-18 में बढ़कर 69.4 वर्ष हो गई है। आयु में वृद्धि होना आत्मविश्वास के साथ जीवन की उच्च गुणवत्ता का सूचक है।
- बच्चों की संक्रमण से रक्षा, जच्चा-बच्चा देख-रेख एवं पोषण के कारण शिशु मृत्यु दर में कमी आई है। शिशु मृत्यु दर जो सन् 1951 में 147 थी वह कम होकर 2019 में 30 रह गई।
प्रश्न 4. भौतिक पूँजी और मानव पूँजी में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
भौतिक पूँजी |
मानव पूँजी |
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1 | मनुष्य द्वारा निर्मित कोई भी गैर- मानवीय परिसम्पत्ति जो बाद में उत्पादन में प्रयोग की जाए उसे भौतिक पूँजी कहा जाता है। | जब विद्यमान ‘मानव संसाधन’ को और अधिक शिक्षित करके एवं स्वस्थ रूप से विकसित किया जाता है तो हम इसे ‘मानव पूँजी निर्माण’ कहते हैं जो देश की उत्पादन क्षमता में वृद्धि करता है। |
2 | भौतिक पूँजी मानव पूँजी से हीन है। | मानव पूँजी भूमि और भौतिक पूँजी जैसे अन्य संसाधनों की तुलना में श्रेष्ठ है। |
3 | भौतिक पूँजी स्वयं उपयोगी नहीं हो सकती। | मानव पूँजी भौतिक पूँजी का उपयोग कर सकती है। |
4 | भौतिक पूँजी को इसके मालिक से अलग किया जा सकता है। | मानव पूँजी को इसके स्वामी से अलग नहीं किया जा सकता। |
5 | भौतिक पूँजी केवल इसके स्वामी को लाभ पहुँचाती है। | मानव पूँजी न केवल इसके मालिक अपितु सामान्यतः समाज को भी लाभान्वित करती है। |
प्रश्न 5. बेरोज़गारी के प्रमुख परिणामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- बेरोज़गारी के प्रमुख परिणाम इस प्रकार हैं-
- किसी व्यक्ति के साथ-साथ समाज की जीवन गुणवत्ता पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ता है जो अन्ततः स्वास्थ्य स्तर में गिरावट एवं स्कूल प्रणाली में बढ़ती गिरावट का कारण बनती है।
- किसी अर्थव्यवस्था के समग्र विकास पर बेरोज़गारी का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। बेरोज़गारी में वृद्धि मंदीग्रस्त अर्थव्यवस्था की सूचक है।
- बेरोज़गारी आर्थिक बोझ में वृद्धि करने की कोशिश करती है। बेरोज़गारों की कार्यरत जनसंख्या पर निर्भरता बढ़ जाती है।
- बेरोज़गार युवा धोखेबाजी, चोरी, कत्ल एवं आतंकवाद जैसी समाजविरोधी गतिविधियों में लिप्त हो सकते हैं।
- बेरोज़गारी जनशक्ति संसाधन की बर्बादी का कारण बनती है। जो लोग देश के लिए एक परिसम्पत्ति होते हैं वे देश के लिए दायित्व बन जाते हैं।