UP Board Solution of Class 9 Social Science [सामाजिक विज्ञान] Economics [अर्थशास्त्र] Chapter- 3 निर्धनता: एक चुनौती ( Nirdhanta Ek Chunauti) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Long Answer
प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 9वीं की सामाजिक विज्ञान इकाई-4: अर्थशास्त्र अर्थव्यवस्था खण्ड-2 के अंतर्गत चैप्टर 3 निर्धनता: एक चुनौती ( Nirdhanta Ek Chunauti) पाठ के दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। जो की UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करेंगे।
Subject | Social Science [Class- 9th] |
Chapter Name | निर्धनता: एक चुनौती ( Nirdhanta Ek Chunauti) |
Part 3 | Economics [अर्थशास्त्र ] |
Board Name | UP Board (UPMSP) |
Topic Name | निर्धनता: एक चुनौती ( Nirdhanta Ek Chunauti) |
निर्धनता: एक चुनौती ( Nirdhanta Ek Chunauti)
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. भारत में निर्धनता रेखा का आकलन कैसे किया जाता है?
उत्तर – भारत में निर्धनता रेखा का आकलन करने के लिए आय या उपभोग स्तरों पर आधारित एक सामान्य पद्धति का प्रयोग किया जाता है। भारत में गरीबी रेखा का निर्धारण करते समय जीवन निर्वाह हेतु खाद्य आवश्यकता, कपड़ों, जूतों, ईंधन और प्रकाश, शैक्षिक एवं चिकित्सा सम्बन्धी आवश्यकताओं को प्रमुख माना जाता है। निर्धनता रेखा का आकलन करते समय खाद्य आवश्यकता के लिए वर्तमान सूत्र वांछित कैलोरी आवश्यकताओं पर आधारित है। खाद्य वस्तुएँ जैसे अनाज, दालें आदि मिलकर इस आवश्यक कैलोरी की पूर्ति करती है। भारत में स्वीकृत कैलोरी आवश्यकता ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन एवं नगरीय क्षेत्रों में 2100 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन है। चूँकि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग अधिक शारीरिक श्रम करते हैं, अतः ग्रामीण क्षेत्रों में कैलोरी आवश्यकता शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक मानी गई है। अनाज आदि रूप में इन कैलोरी आवश्यकताओं को खरीदने के लिए प्रति व्यक्ति मौद्रिक व्यय को, कीमतों में वृद्धि को ध्यान में रखते हुए समय-समय पर संशोधित किया जाता है। इन परिकल्पनाओं के आधार पर वर्ष 2000 में किसी व्यक्ति के लिए निर्धनता रेखा का निर्धारण ग्रामीण क्षेत्रों में ₹ 328 प्रतिमाह और शहरी क्षेत्रों में ₹ 454 प्रतिमाह किया गया था।
प्रश्न 2. क्या आप समझते हैं कि निर्धनता आकलन का वर्तमान तरीका सही है?
उत्तर– वर्तमान निर्धनता अनुमान पद्धति पर्याप्त निर्वाह स्तर की बजाय न्यूनतम स्तर को महत्त्व देती है। सिंचाई और हरित क्रान्ति के फैलाव ने. कृषि के क्षेत्र में कई नौकरियों के अवसर दिए लेकिन भारत में इसका प्रभाव कुछ भागों तक ही सीमित रहा है। सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों के उद्योगों ने नौकरियों के अवसर दिए हैं। लेकिन ये नौकरी लेने वालों की अपेक्षा बहुत कम है। निर्धनता को विभिन्न संकेतकों के द्वारा जाना जा सकता है। जैसे-अशिक्षा का स्तर, कुपोषण के कारण सामान्य प्रतिरोधक क्षमता में कमी, स्वास्थ्य सेवाओं तक कम पहुँच, नौकरी के कम अवसर, पीने के पानी में कमी, सफाई व्यवस्था आदि। सामाजिक अपवर्जन और असुरक्षा के आधार पर निर्धनता का विश्लेषण अब सामान्य है। गरीबी का आकलन सामाजिक उपेक्षा एवं गरीबी का शिकार होने की प्रवृत्ति के आधार पर भी किया जा सकता है।
प्रश्न 3. भारत में 1973 से निर्धनता की प्रवृत्तियों की चर्चा करें।
उत्तर– भारत में 1973 से निर्धनता की प्रवृत्ति को निम्न तालिका द्वारा प्रदर्शित किया गया है-
गरीबी अनुपात | गरीबों की संख्या (मिलियन में) | ||||||
वर्ष |
ग्रामीण |
शहरी |
संयोजित/ कुल |
ग्रामीण |
शहरी | संयोजित/ कुल | |
1973-74 | 56.4 | 49.0 | 54.9 | 261 | 60 | 321 | |
1993-94 | 37.3 | 32.4 | 36.0 | 244 | 76 | 320 | |
1999-00 | 27.1 | 23.6 | 26.1 | 193 | 67 | 260 | |
तेंदुलकर समिति |
|||||||
2009-10 | 34 | 21 | 30 | 278 | 76 | 355 | |
2011-12 | 26 | 14 | 22 | 217 | 53 | 270 |
उपर्युक्त तालिका से यह प्रदर्शित होता है कि सन् 1973-74 में गरीबी का कुल अनुपात जनसंख्या का लगभग 55% था जो घटकर सन् 1993-94 में 36% हो गया एवं सन् 1999-2000 में 26%। इस प्रकार गरीबों की संख्या जो सन् 1973-74 में 321 लाख थी, सन् 1999-2000 में कम होकर 260 लाख हो गई। नवीनतम अनुमान के अनुसार निर्धनों की संख्या में लगभग 26 करोड़ की कमी उल्लेखनीय गिरावट का संकेत देती है।
प्रश्न 4. भारत में निर्धनता की अन्तर–राज्य असमानताओं का एक विवरण प्रस्तुत करें।
उत्तर– भारत में निर्धनता की अन्तर्राज्य असमानता का वितरण तालिका द्वारा स्पष्ट है-
राज्य | गरीबी अनुपात (%) (वर्ष 2011-12) |
ओडिशा | 32.6 |
बिहार | 33.7
|
मध्य प्रदेश
|
31.6
|
असम | 32.0
|
त्रिपुरा | 14.0
|
उत्तर प्रदेश | 29.4
|
पश्चिम बंगाल | 20.0 |
महाराष्ट्र | 17.4
|
तमिलनाडु | 11.3 |
कर्नाटक | 20.9 |
आन्ध्र प्रदेश | 9.2 |
राजस्थान | 14.7 |
गुजरात | 16.6 |
केरल | 7.1 |
हरियाणा | 11.2 |
दिल्ली | 9.9 |
हिमाचल प्रदेश | 8.1 |
पंजाब | 8.3 |
सम्पूर्ण भारत | 21.9 |
भारत के निश्चित क्षेत्रों के गरीबी अनुपात (2011-12) से यह स्पष्ट होता है कि बिहार भारत का सबसे गरीब राज्य है जिसकी 33.7% जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे रहती है। केरल में सबसे कम 7.1% लोग गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं। वर्ष 2011-12 में भारत में मोटे तौर पर 270 मिलियन या 27 करोड़ लोग निर्धनता की रेखा के नीचे जीवन यापन करते हैं। तेंदुलकर समिति के अनुसार, भारत की कुल आबादी के 21.9% लोग गरीबी की रेखा के नीचे जीवन-यापन करते हैं।
प्रश्न 5. उन सामाजिक और आर्थिक समूहों की पहचान करें जो भारत में निर्धनता के समक्ष निरुपाय हैं।
उत्तर– अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़े वर्ग के परिवार उन सामाजिक समूहों में शामिल हैं, जो निर्धनता के प्रति सर्वाधिक असुरक्षित हैं। इसी प्रकार, आर्थिक समूहों में सर्वाधिक असुरक्षित समूह, ग्रामीण कृषि श्रमिक परिवार और नगरीय अनियमित मजदूर परिवार हैं। इसके अतिरिक्त महिलाओं, वृद्ध लोगों और बच्चियों को अति निर्धन माना जाता है क्योंकि उन्हें सुव्यवस्थित ढंग से परिवार के उपलब्ध संसाधनों तक पहुँच से वंचित रखा जाता है।
प्रश्न 6. भारत में अन्तर्राज्यीय निर्धनता में विभिन्नता के कारण बताइए।
उत्तर–भारत अन्तर्राज्यीय निर्धनता में विभिन्नता के प्रमुख कारण इस प्रकार हैं-
- केन्द्रीय प्रादेशिक सरकार समान रूप से सभी क्षेत्रों में समान निवेश नहीं करती।
- दूर स्थित ग्रामीण क्षेत्रों, पहाड़ी एवं रेगिस्तानी क्षेत्रों की अवहेलना की जाती है।
- प्राकृतिक आपदा जैसे-बाढ़, तूफान, सुनामी का सभी राज्यों में न होना।
- प्रत्येक राज्य में निर्धन लोगों का अनुपात एकसमान नहीं है।
- प्रत्येक राज्य का प्राकृतिक वातावरण, जलवायु, मिट्टी, वर्षा आदि समान नहीं है।
- प्रत्येक राज्य समान रूप से मानव संसाधन अर्थात् शिक्षा और स्वास्थ्य का विकास नहीं कर पाए हैं।
- प्रत्येक राज्य में भूमि सुधार का कार्य समान नहीं हुआ है।
प्रश्न 7. वैश्विक निर्धनता की प्रवृत्तियों की चर्चा करें।
उत्तर– विश्व बैंक के अनुसार सार्वभौमिक निर्धनता जो 1990 में 28% थी, घटकर 2001 में 21% हो गई। निर्धनता में स्थिरता से चीन एवं दक्षिणी एशिया के देशों में मानवीय संसाधनों में वृद्धि के कारण कम है। भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, भूटान एवं बांग्लादेश में तेजी से निर्धनता में कमी नहीं हुई है।
विश्व के कुछ देशों की निर्धनता की तुलना
देश | प्रतिदिन $ 1.9 से कम पाने वालों की संख्या | |
1. | नाइजीरिया | 30.9 (2018) |
2. | बांग्लादेश | 9.6 (2022) |
3. | भारत | 11.6 (2021) |
4. | पाकिस्तान | 4.9 (2018) |
5. | चीन | 0.1(2020) |
6. | ब्राजील | 5.8 (2021) |
7. | इंडोनेशिया | 2.5 (2022) |
8. | श्रीलंका | 1.0 (2019) |
स्रोत : विश्व बैंक के आँकड़े (एक्सेड ऑन 01-10-2021)
देश | प्रतिदिन 1.9 से कम आय वाली जनसंख्या का प्रतिशत |
बांग्लादेश | 14.3 (2016) |
ब्राजील | 4.6 (2019) |
चीन | 0.5 (2016) |
भारत | 22.5 (2011) |
इंडोनेशिया | 2.7 (2019) |
नाइजीरिया | 39.1 (2018) |
पाकिस्तान | 4.4 (2015) |
श्रीलंका | 0.9 (2016) |
प्रश्न 8. निर्धनता उन्मूलन की वर्तमान सरकारी रणनीति की चर्च करें।
उत्तर–भारत से निर्धनता उन्मूलन करने हेतु निम्नलिखित उपाय अपनाए गए हैं-
- जनसंख्या पर नियन्त्रण– गरीबी को अधिक सीमा तक कम किया जा सकता है। यदि हम परिवार नियोजन पर जोर दें। जनसंख्या नियन्त्रण से प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होगी। यह जनसंख्या वृद्धि की दर में एवं आर्थिक संसाधनों के बीच अन्तर करने में सहायक होगा।
- आर्थिक विकास में वृद्धि – आर्थिक विकास की दर में वृद्धि करना निर्धनता उन्मूलन हेतु महत्त्वपूर्ण कदम है। राष्ट्रीय आय में जनसंख्या के अनुपात में वृद्धि तेजी से होनी चाहिए तभी आर्थिक विकास में वृद्धि हो सकती है।
- अत्यधिक रोज़गार के अवसर – ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में रोज़गार के अवसरों को बढ़ाकर भारत में बेरोज़गारी को कम किया जा सकता है। इस प्रकार सार्वजनिक कार्य विस्तृत पैमाने (extensive scale) पर प्रारम्भ किया जाना चाहिए। लघु एवं कुटीर उद्योग को प्रोत्साहित करना चाहिए। मानव शक्ति का कुशल उपयोग निःसन्देह अर्थव्यवस्था में आय उत्पन्न करेगा और इससे गरीबी को कुछ सीमा तक कम किया जा सकता है।
प्रश्न 9. निम्नलिखित प्रश्नों का संक्षेप में उत्तर दें–
(क) मानव निर्धनता से आप क्या समझते हैं?
(ख) निर्धनों में भी सबसे निर्धन कौन हैं?
(ग) राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, 2005 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर– (क) ‘मानव निर्धनता’ की अवधारणा मात्र आय की न्यूनता तक ही सीमित नहीं है। इसका अर्थ है किसी व्यक्ति को राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक अवसरों का उचित स्तर न मिलना। अशिक्षा, रोज़गार के अवसरों की कमी, स्वास्थ्य सेवा की सुविधाओं और सफाई व्यवस्था में कमी, जाति, लिंग-भेद आदि मानव निर्धनता के कारक हैं।
(ख) महिलाओं, वृद्ध लोगों और बच्चों को अति निर्धन माना जाता है क्योंकि उन्हें सुव्यवस्थित ढंग से परिवार के उपलब्ध संसाधनों तक पहुँच से वंचित रखा जाता है।
(ग) राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, 2005 (NREGA) की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(i) 200 जिलों में प्रत्येक वर्ष गृहस्थ को 100 दिन के रोज़गार का आश्वासन प्रदान करना। बाद में यह योजना 600 जिलों में कर दी गई।
(ii) 1/3 आरक्षित कार्य (jobs) महिलाओं के लिए होंगे।
(iii) केन्द्र सरकार राष्ट्रीय रोज़गार आश्वासन कोष का निर्माण करेगी।
(iv) यदि कार्य 15 दिन के भीतर प्रदान नहीं कराया गया तो प्रतिदिन रोज़गार भत्ता दिया जाएगा।
प्रश्न10. आर्थिक विकास की दर में वृद्धि के उपाय बताइए।
उत्तर–आर्थिक विकास की दर में वृद्धि गरीबी को दूर करने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है। इसके लिए अग्रलिखित कार्य किए जा सकते हैं-
- गरीब लोगों के लिए पूर्ण एवं अधिक उत्पादित रोज़गार।
- देश के पिछड़े हुए क्षेत्रों में कुटीर एवं लघु उद्योगों का निर्माण करना।
- गरीब श्रमिकों की श्रम उत्पादकता में वृद्धि के लिए शिक्षा, प्रशिक्षण एवं स्वास्थ्य की व्यवस्था करना।
- देश के प्राकृतिक, मानवीय एवं पूँजी संसाधनों का कुशलतम उपयोग करना।
- समाज के गरीब वर्गों के लिए स्वयं रोज़गार के अवसरों में वृद्धि करना।
- सार्वजनिक अनुत्पादित व्यय के स्थान पर सार्वजनिक उत्पादित व्यय को प्राथमिकता देना।
- गरीबों को न्यूनतम एवं उपयुक्त मजदूरी।
प्रश्न11. ग्रामीण गरीब की विशेषताएँ बताइए तथा शहरी गरीबी के कारण बताइए।
उत्तर– ग्रामीण गरीब की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
- भूमिहीन – ग्रामीण गरीबों के पास अपनी भूमि नहीं होती। यदि कोई भूमि का टुकड़ा होता है तो यह बहुत छोटा टुकड़ा होता है जो उसके परिवार की आवश्यकताओं को सन्तुष्ट नहीं कर सकता।
- गम्भीर ऋणग्रस्तता – एक ग्रामीण गरीब के पास सीमित साधन होते हैं। उसकी आय उसके परिवार की आधारभूत आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने में अपर्याप्त होती है। इस प्रकार वह ऊँची ब्याज दर पर ऋण प्राप्त करने के लिए मजबूर होता है।
- कच्चा घर– ग्रामीण मजदूरों का घर कच्चा होता है, जहाँ दीवारें मिट्टी की एवं छत सामान्य तौर पर घास-फूस एवं लकड़ियों से बनी होती है। यह घर तेज हवा, वर्षा एवं ठण्ड का सामना करने में असमर्थ होते हैं।
शहरी गरीबी के प्रमुख कारण इस प्रकार हैं-
- झुग्गी–झोंपड़ी के निवासी– शहरी गरीब आवासीय क्षेत्रों में घर का प्रबन्ध नहीं कर सकते। इसलिए वह अपने घर शहर के किनारे एवं झुग्गी-झोंपड़ी के क्षेत्रों में बनाते हैं जो गन्दे, अस्वच्छ कीचड़ एवं कूड़ा-करकट वाले होते हैं और मानवीय निवास के अनुपयुक्त हैं।
- बुरा स्वास्थ्य– गरीबी, भुखमरी, ऋणग्रस्तता एवं मानसिक परेशानी को पैदा करती है जो बुरे स्वास्थ्य को बढ़ावा देती है और जो कार्य की हानि करके गरीबी में दोबारा योगदान देती है।
- अनिरन्तर रोज़गार – शहरी गरीबों के पास सामान्य तौर पर निरन्तर कार्य नहीं होता। कुछ समय वह कार्यरत होते हैं और वर्ष के कई महीने तक वह बेरोज़गार होते हैं। वह मौसमी एवं वार्षिक बेरोज़गारी के शिकार होते हैं जो उनके जीवन को कठिन बनाती है।
- अस्वच्छता एवं बिजली की अनुपलब्धता – सफाई सुविधाओं का झुग्गी-झोंपड़ी के क्षेत्रों में अभाव है। सामान्य तौर पर बिजली उपलब्ध नहीं है।अस्वच्छता गम्भीर बीमारियों एवं बुरे स्वास्थ्य का कारण होती है।
- निरक्षरता – गरीबी एवं निरक्षरता दोनों एक-दूसरे पर निर्भर हैं। गरीबी, निरक्षरता को बढ़ाती है और निरक्षरता गरीबी को। सामान्य तौर पर गरीब बच्चों को अपने माता-पिता की कम आय में सहायता के लिए कार्य करना पड़ता है। स्कूल जाने के लिए उनके पास समय एवं पैसा नहीं होता।
- स्वच्छ पीने के पानी की अनुपलब्धता – यह बहुत दुख की बात है कि इन असहाय एवं दुर्भाग्य लोगों को पीने का स्वच्छ पानी भी उपलब्ध नहीं है।
प्रश्न12. विश्व में प्रत्येक व्यक्ति के लिए भोजन है फिर भी लोग भूख की वजह से क्यों मरते हैं?
उत्तर–निर्धनता का आशय है भोजन एवं आवास का अभाव। यह एक अवस्था है जहाँ व्यक्ति की मूलभूत सुविधाएँ जैसे-चिकित्सा सुविधा, शैक्षिक सुविधा, आधारभूत नागरिक सुविधाएँ प्राप्त नहीं कर पाता। यूनाइटेड नेशन के अनुसार लगभग 25000 लोग प्रतिदिन भूख या भूख सम्बन्धी बीमारियों के कारण मर जाते हैं; जिनमें अधिकतर बच्चे होते हैं। हालाँकि विश्व में प्रत्येक व्यक्ति के लिए भोजन है परन्तु उसे खरीदने के लिए पैसों की कमी के कारण लोग कुपोषित हैं, वे कमजोर और बीमार रहते हैं। इस कारण वे कम काम कर पाते हैं जिससे वे और निर्धन तथा भूखे होते जाते हैं। यह कुचक्र उनके और उनके परिवार वालों के लिए मृत्यु तक चलता रहता है। इस समस्या को सुलझाने के लिए कई कार्यक्रम भी चलाए गए। ‘खाने के लिए काम’ कार्यक्रम – जिसमें वयस्कों को स्कूल बनाने, कुएँ खोदने, सड़कें बनाने आदि के काम के लिए खाना दिया जाता है। इससे निर्धनों को पोषण मिलता है और निर्धनता को समाप्त करने के लिए संरचना तैयार होती है। ‘खाने के लिए शिक्षा’ कार्यक्रम – जिसमें बच्चों को भोजन दिया जाता है जब वे स्कूल में उपस्थित हों। उनकी शिक्षा उन्हें भूख और वैश्विक निर्धनता से बचा सकती है।
प्रश्न13. सरकार द्वारा संचालित निर्धनता निरोधी रणनीतियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर– सरकार द्वारा संचालित निर्धनता निरोधी रणनीतियों का विवरण इस प्रकार है-
ग्रामीण रोज़गार सृजन कार्यक्रम
▶ इस कार्यक्रम को 1995 में आरम्भ किया गया।
▶ इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में स्वरोज़गार के अवसर सृजित करना है।
▶ दसवीं पंचवर्षीय योजना में इस कार्यक्रम के अन्तर्गत 25 लाख नए रोज़गार के अवसर सृजित करने का लक्ष्य रखा गया है।
स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोज़गार योजना
▶ इस कार्यक्रम का आरम्भ 1999 में किया गया।
▶ इस कार्यक्रम का उद्देश्य सहायता प्राप्त निर्धन परिवारों को स्वसहायता समूहों में संगठित कर बैंक ऋण और सरकारी सहायिकी के संयोजन द्वारा निर्धनता रेखा से ऊपर लाना।
▶ वर्ष 2010-11 के बाद से इस योजना का पुनर्गठन कर राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन लागू किया गया है।
प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना
▶ यह योजना 2000 में आरम्भ की गई। इसके अन्तर्गत प्राथमिक स्वास्थ्य, प्राथमिक शिक्षा, ग्रामीण आश्रय, ग्रामीण पेयजल और ग्रामीण विद्युतीकरण जैसी मूल सुविधाओं के लिए राज्यों को अतिरिक्त केन्द्रीय सहायता प्रदान की जाती है।
राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम
▶ यह कार्यक्रम 2004 में देश के सबसे पिछड़े 150 जिलों में लागू किया गया था। यह कार्यक्रम उन सभी ग्रामीण निर्धनों के लिए है, जिन्हें मजदूरी पर रोज़गार की आवश्यकता है और जो अकुशल शारीरिक काम करने के इच्छुक हैं। इसके लिए राज्यों को खाद्यान्न निःशुल्क उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
प्रधानमन्त्री रोज़गार योजना
▶ इस योजना को 1993 में आरम्भ किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में शिक्षित बेरोज़गार युवाओं के लिए स्वरोज़गार के अवसर सृजित करना है।
▶ इस कार्यक्रम में लघु व्यवसाय और उद्योग स्थापित करने में उनकी सहायता की जाती है।
राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, 2005
▶ महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, 2005 (मनरेगा) को सितम्बर, 2005 में पारित किया गया। प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 100 दिन के सुनिश्चित रोज़गार का प्रावधान करता है। प्रारम्भ में यह विधेयक प्रत्येक वर्ष देश के 200 जिलों में और बाद में इस योजना का विस्तार 600 जिलों में किया गया। प्रस्तावित रोज़गारों का एक तिहाई रोज़गार महिलाओं के लिए आरक्षित है। केन्द्र सरकार राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी कोष भी स्थापित करेगी। इसी तरह राज्य सरकारें भी योजना के कार्यान्वयन के लिए राज्य स्वरोज़गार गारंटी कोष की स्थापना करेंगी। कार्यक्रम के अन्तर्गत अगर आवेदक को 15 दिन के अन्दर रोज़गार उपलब्ध नहीं कराया गया तो वह दैनिक बेरोज़गारी भत्ते का हकदार होगा।