UP Board Solution of Class 9 Social Science इतिहास (History) Chapter- 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय (Natsivad aur Hitlar ka Uday) Long Answer

UP Board Solution of Class 9 Social Science [सामाजिक विज्ञान] History [इतिहास] Chapter- 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय (Natsivad aur Hitlar ka Uday) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Long Answer

प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 9वीं की सामाजिक विज्ञान  इकाई-1: इतिहास भारत और समकालीन विश्व-1  खण्ड-1 घटनायें और प्रक्रियायें  के अंतर्गत चैप्टर-3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय (Natsivad aur Hitlar ka Uday) पाठ के दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। जो की UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करेंगे।

Subject Social Science [Class- 9th]
Chapter Name नात्सीवाद और हिटलर का उदय (Natsivad aur Hitlar ka Uday)
Part 3  History [इतिहास]
Board Name UP Board (UPMSP)
Topic Name भारत और समकालीन विश्व-1

नात्सीवाद और हिटलर का उदय (Natsivad aur Hitlar ka Uday)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. वाइमर गणराज्य के सामने क्या समस्याएँ थीं?

उत्तर- प्रथम विश्व युद्ध के अंत में साम्राज्यवादी जर्मनी की पराजय के बाद सम्राट केसर विलियम द्वितीय अपनी जान बचाने के लिए हॉलैण्ड भाग गया। इस अवसर का लाभ उठाते हुए संसदीय दल वाइमर में मिले और नवम्बर, 1918 ई. में वाइमर गणराज्य नाम से प्रसिद्ध एक गणराज्य की स्थापना की। इस गणराज्य को जर्मनों द्वारा अच्छी तरह से स्वीकार नहीं किया गया क्योंकि प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनों की हार के बाद मित्र सेनाओं ने इसे जर्मनों पर थोपा था।

वाइमर गणराज्य की प्रमुख समस्याएँ इस प्रकार थीं-

प्रथम विश्वयुद्ध के उपरान्त जर्मनी पर थोपी गई वर्साय की कठोर एवं अपमानजनक संधि को वाइमर गणराज्य ने स्वीकार किया था। इसलिए बहुत से जर्मन न केवल प्रथम विश्वयुद्ध में हार के लिए अपितु वर्साय में हुए अपमान के लिए भी वाइमर गणराज्य को ही जिम्मेदार मानते थे। वर्साय की संधि द्वारा जर्मनी पर लगाए गए 6 अरब पौंड के जुर्माने को चुकाने में वाइमर गणराज्य असमर्थ था। जर्मनी के सार्वजनिक जीवन में आक्रामक फौजी प्रचार और राष्ट्रीय सम्मान व प्रतिष्ठा की चाह के सामने वाइमर गणराज्य का लोकतांत्रिक विचार गौण हो गया था। इसलिए वाइमर गणराज्य के समक्ष अस्तित्व को बचाए रखने का संकट उपस्थित हो गया था। रूसी क्रान्ति की कामयाबी से प्रोत्साहित होकर जर्मनी के कुछ भागों में साम्यवादी प्रभाव तेजी से बढ़ रहा था। वाइमर गणराज्य द्वारा 1923 ई. में हर्जाना चुकाने से इनकार करने पर फ्रांस ने जर्मनी के प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र ‘रूर’ पर कब्जा कर लिया। जिसके कारण वाइमर गणराज्य की प्रतिष्ठा को बहुत ठेस पहुँची। 1929 ई. की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी के कारण जर्मनी में महँगाई बहुत अधिक बढ़ गई। वाइमर सरकार मूल्य वृद्धि पर नियंत्रण करने में असफल रही। कारोबार ठप्प हो जाने से समाज में बेरोजगारी की समस्या अपने चरम पर पहुँच गई थी।

प्रश्न 2. इस बारे में चर्चा कीजिए कि 1930 ई. तक आते-आते जर्मनी में नात्सीवाद को लोकप्रियता क्यों मिलने लगी?

उत्तर- जर्मनी में नाजीवाद की लोकप्रियता के मुख्य कारण इस प्रकार थे-

  1. हिटलर का व्यक्तित्व – वास्तव में हिटलर का व्यक्तित्व आकर्षक एवं प्रभावशाली था। हिटलर एक उत्कृष्ट वक्ता था। उसके जोशवर्द्धक भाषण लोगों पर जादू जैसा प्रभाव डालते थे। लोग उसके भाषणों को सुनने के लिए दूर-दूर से आया करते थे। उसने अपने भाषणों में वादा किया कि “वह बेरोजगारों को रोजगार और नौजवानों को एक सुरक्षित भविष्य देगा और तमाम विदेशी साजिशों का मुँहतोड़ जवाब देगा।” लोगों ने उसके समर्थन में बड़ी-बड़ी रैलियाँ और जनसभाएँ आयोजित कीं। नात्सियों ने अपने प्रचार में हिटलर को एक ऐसे मसीहा के रूप में पेश किया जैसे उसका जन्म ही जर्मनों के उत्थान के लिए हुआ हो।
  2. जर्मनों की लोकतंत्र में आस्था नहीं थी- प्रथम विश्व युद्ध के अन्त में जर्मनी की हार के बाद जर्मनों का संसदीय संस्थाओं में कोई विश्वास नहीं था। उस समय जर्मनी में लोकतंत्र एक नया व भंगुर विचार था। लोग स्वाधीनता व आजादी की अपेक्षा प्रतिष्ठा और यश को प्राथमिकता देते थे। उन्होंने खुले दिल से हिटलर का साथ दिया क्योंकि उसमें उनके सपने पूरे करने की योग्यता थी।
  3. वाइमर गणराज्य की विफलता- वाइमर संविधान में कुछ ऐसी कमियाँ थीं जिनकी वजह से गणराज्य कभी भी अस्थिरता और तानाशाही का शिकार बन सकता था। इनमें से एक कमी आनुपातिक प्रतिनिधित्व से संबंधित थी। इस प्रावधान की वजह से किसी एक पार्टी को बहुमत मिलना लगभग नामुमकिन बन गया था। हर बार गठबंधन सरकार सत्ता में आ रही थी। दूसरी समस्या अनुच्छेद 48 की वजह से थीं जिसमें राष्ट्रपति को आपातकाल लागू करने, नागरिक अधिकार रद्द करने और अध्यादेशों के जरिए शासन चलाने का अधिकार दिया गया था। अपने छोटे से जीवन काल में बाइमर गणराज्य का शासन 20 मंत्रिमण्डलों के हाथों में रहा और उनकी औसत अवधि 239 दिन से अधिक नहीं रही। इस दौरान अनुच्छेद 48 का भी जमकर इस्तेमाल किया गया। पर इन सारे नुस्खों के बावजूद संकट दूर नहीं हो पाया। लोकतांत्रिक संसदीय व्यवस्था में लोगों का विश्वास समाप्त होने लगा क्योंकि वह उनके लिए कोई समाधान नहीं खोज पा रही थी।
  4. आर्थिक संकट- प्रथम विश्वयुद्ध चार वर्षों तक चलता रहा। इस लम्बे युद्ध में जर्मनों को अपार धन की हानि उठानी पड़ी। युद्ध के बाद देश में वस्तुओं के भाव बहुत बढ़ गए। जर्मन सरकार ने बड़े पैमाने पर मुद्रा को छापना शुरू कर दिया जिसके कारण उसकी मुद्रा मार्क का मूल्य तेजी से गिरने लगा। अप्रैल में एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 24,000 मार्क के बराबर थी जो जुलाई में 3,53,000 मार्क, अगस्त में 46,21,000 मार्क तथा दिसम्बर में 9,88,60,000 मार्क हो गई। इस तरह एक डॉलर में खरबों मार्क मिलने लगे। जैसे-जैसे मार्क की कीमत गिरती गई, जरूरी चीजों की कीमतें आसमान छूने लगीं। 1929 में अमेरिका तथा सम्पूर्ण विश्व में आए आर्थिक संकट ने जर्मनी की स्थिति को और भी भयावह बना दिया।
  5. राजनैतिक उथल-पुथल- यद्यपि जर्मनी में अनेक राजनैतिक दल थे जैसे राष्ट्रवादी, राजभक्त, कम्युनिस्ट, सामाजिक, लोकतंत्रवादी आदि। यद्यपि लोकतंत्रात्मक सरकार में इनमें से कोई भी बहुमत में नहीं था। दलों में मतभेद अपने चरम पर थे। इसने सरकार को कमजोर कर दिया और अंततः नाजियों को सत्ता हथियाने का अवसर दे दिया।
  6. वर्साय की सन्धि – जर्मनी को प्रथम विश्व युद्ध में पराजय के बाद वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए विवश किया गया। इस कठोर व अपमानजनक संधि को जर्मन कभी मन से स्वीकार न सके। इसी अपमान का प्रतिफल था कि जर्मनी में हिटलर के नाजीवाद का जन्म हुआ। जर्मन लोग हिटलर में अपने जर्मनी की खोई हुई प्रतिष्ठा के पुनरुद्धारक का प्रतिबिम्ब देखते थे।

प्रश्न 3. नात्सी सोच के खास पहलू कौन-से थे?

उत्तर- नात्सी सोच के खास पहलू इस प्रकार थे-

  1. नाजियों की दृष्टि में देश सर्वोपरि है। सभी शक्तियाँ देश में निहित होनी चाहिए। लोग देश के लिए हैं न कि देश लोगों के लिए।
  2. नाजी दल जर्मनी को अन्य सभी देशों से श्रेष्ठ मानता था और पूरे विश्व पर जर्मनी का प्रभाव जमाना चाहता था ।
  3. इसने यहूदियों के प्रति घृणा का प्रचार किया क्योंकि इनका मानना था कि जर्मनों की आर्थिक विपदा के लिए यही लोग जिम्मेदार थे।
  4. इसने युद्ध की सराहना की तथा बल प्रयोग का यशोगान किया।
  5. यह सभी प्रकार के दल निर्माण व विपक्ष के दमन और उदारवाद, समाजवाद एवं कम्युनिस्ट विचारधाराओं के उन्मूलन की पक्षधर थी।
  6. इसने जर्मनी के साम्राज्य विस्तार और उन सभी उपनिवेशों को जीतने पर ध्यान केन्द्रित किया जो उससे छीन लिए गए थे।
  7. नाजी सोच सभी प्रकार की संसदीय संस्थाओं को समाप्त करने के पक्ष में थी और एक महान नेता के शासन में विश्वास रखती थी।
  8. ये लोग ‘शुद्ध जर्मनों एवं स्वस्थ नॉर्डिक आर्यों’ के नस्लवादी राष्ट्र का सपना देखते थे और उन सभी का खात्मा चाहते थे जिन्हें वे अवांछित मानते थे।

प्रश्न 4. नात्सियों का प्रोपेगैंडा यहूदियों के खिलाफ नफरत पैदा करने में इतना असरदार कैसे रहा?

उत्तर- हिटलर ने 1933 ई. में तानाशाह बनने के बाद सभी शक्तियों पर नियंत्रण स्थापित कर लिया। हिटलर ने जर्मनी में एक शक्तिशाली केन्द्रीय सरकार का गठन किया। उसने लोकतांत्रिक व्यवस्था को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया। एक दल, एक नेता और पूरी तरह अनुशासन उसके शासन का आधार था। हिटलर ने यहूदियों के विरुद्ध विद्वेषपूर्ण प्रचार शुरू किया जो यहूदियों के प्रति जर्मनों में नफरत फैलाने में सहायक सिद्ध हुआ। यहूदियों के खिलाफ नाजियों के प्रोपेगेंडा के सफल होने के प्रमुख कारण इस प्रकार थे-

  1. नाजियों ने प्रारम्भ से उनके स्कूल के दिनों में ही बच्चों के दिमागों में भी यहूदियों के प्रति नफरत भर दी। जो अध्यापक यहूदी थे उन्हें बर्खास्त कर दिया गया और यहूदी बच्चों को स्कूलों से निकाल दिया गया। इस प्रकार के तरीकों एवं नई विचारधारा के प्रशिक्षण ने नई पीढ़ी के बच्चों में यहूदियों के प्रति नफरत फैलाने और नाजी प्रोपेगेंडा को सफल बनाने में पूर्णतः सफलता प्राप्त की।
  2. हिटलर ने जर्मन लोगों के दिलो-दिमाग में पहले ही अपना महत्त्वपूर्ण स्थान बना लिया था। जर्मन लोग हिटलर द्वारा कही गयी बातों पर आँख मूंदकर विश्वास करते थे। हिटलर के चमत्कारी व्यक्तित्व के कारण यहूदियों के विरुद्ध नाजी दुष्प्रचार सफल सिद्ध हुआ।
  3. ईसा की हत्या के अभियुक्त होने के कारण ईसाइयों की यहूदियों के प्रति पारम्परिक घृणा का नाजियों ने पूरा लाभ उठाया जिससे जर्मन यहूदियों के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो गए।
  4. नाजियों ने भाषा और मीडिया का बहुत सावधानी से प्रयोग किया। नाजियों ने एक नस्लवादी विचारधारा को जन्म दिया कि यहूदी निचले स्तर की नस्ल से संबंधित थे और इस प्रकार वे अवांछित थे।
  5. उन्हें केंचुआ, चूहा और कीड़ा कहकर संबोधित किया जाता था। उनकी चाल की तुलना कुतरने वाले छहुंदरी जीवों से की जाती थी।
  6. यहूदियों के प्रति नफरत फैलाने के लिए प्रोपेगेंडा फिल्मों का निर्माण किया गया। रूढ़िवादी यहूदियों की पहचान की गई एवं उन्हें चिह्नित किया गया। उन्हें उड़ती हुई दाढ़ी और काफ्तान पहने दिखाया जाता था।

प्रश्न 5. नात्सी समाज में औरतों की क्या भूमिका थी? फ्रांसीसी क्रान्ति और नात्सी शासन में औरतों की भूमिका के बीच क्या फर्क था? एक पैराग्राफ में बताएँ।

उत्तर- नात्सी समाज में औरतों की भूमिका निम्न थी-

  1. नात्सी मान्यता के अनुसार औरत-मर्द के लिए समान अधिकारों का संघर्ष गलत है।
  2. घरेलू दायित्वों की पूर्ति करना।
  3. आर्य नस्ल की शुद्धता को बनाए रखने के लिए यहूदियों से दूर रहना।
  4. बच्चों को नात्सी मूल्यों एवं मान्यताओं की शिक्षा देना।
  5. लड़कियों का फर्ज था अच्छी माँ बनना और शुद्ध आर्य रक्त वाले बच्चों को जन्म देना।
  6. शुद्ध आर्य नस्ल के बच्चों को जन्म देने वाली माताओं को अनेक सुविधाएँ प्रदान की जाती थीं।

फ्रांसीसी क्रान्ति और नात्सी शासन में औरतों की भूमिका के बीच अन्तर

  1. नात्सी शासन में औरतों की भूमिका- फ्रांस के विपरीत जर्मनी में महिलाओं को अपनी इच्छा से विवाह करने की अनुमति नहीं थी। महिलाओं के लिए नात्सी सरकार द्वारा निर्धारित आचार संहिता का उल्लंघन करने वाली महिलाओं को सार्वजनिक रूप से दण्डित किया जाता था। उन्हें न केवल कारागार में डाल दिया जाता था बल्कि उनके नागरिक अधिकार, पति और परिवार से भी उन्हें वंचित कर दिया जाता था।
  2. फ्रांसीसी क्रान्ति में महिलाओं की भूमिका– फ्रांसीसी समाज में महिलाएँ अपने हितों के प्रति जागरूक थीं। फ्रांस के विभिन्न राज्यों में 60 महिला राजनीतिक क्लब अस्तित्व में थे। वह पुरुषों के समान अधिकारों के लिए माँग कर रही थीं। लड़कियों के लिए स्कूली शिक्षा अनिवार्य थी। वह अपनी मर्जी से शादी करने के लिए स्वतंत्र थीं। महिलाओं को तलाक लेने का अधिकार प्रदान किया गया। महिलाएँ व्यावसायिक प्रशिक्षण ले सकती थीं, कलाकार बन सकती थीं और व्यवसाय कर सकती थीं।

प्रश्न 6. नात्सियों ने जनता पर पूरा नियंत्रण हासिल करने के लिए कौन-कौन से तरीके अपनाए?

उत्तर- हिटलर ने 1933 ई. में जर्मनी का तानाशाह बनने के बाद शासन की समस्त शक्तियों पर अधिकार कर लिया। उसने एक शक्तिशाली केन्द्रीय सरकार का गठन किया। उसने लोकतांत्रिक विचारों को हाशिये पर डाल दिया। उसने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगा दिया। नात्सियों ने जनता पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए निम्न तरीके अपनाए-

  1. विशेष निगरानी एवं सुरक्षा दस्तों का गठन- पूरे समाज को नात्सियों के हिसाब से नियंत्रित और व्यवस्थित करने के लिए विशेष निगरानी और सुरक्षा दस्ते गठित किए गए। पहले से मौजूद हरी वर्दीधारी पुलिस और स्टॉर्म दूपर्स (एस.ए.) के अलावा गेस्टापो (गुप्तचर राज्य पुलिस), एस.एस. (अपराध नियंत्रण पुलिस) और सुरक्षा सेवा (एस.डी.) का भी गठन किया गया। इन नवगठित दस्तों को बेहिसाब असंवैधानिक अधिकार दिए गए और इन्हीं की वजह से नात्सी राज्य को एक खूंखार आपराधिक राज्य की छवि प्राप्त हुई। गेस्टापो के यंत्रणा गृहों में किसी को भी बंद किया जा सकता था। ये नए दस्ते किसी को भी यातना गृहों में भेज सकते थे, किसी को भी बिना कानूनी कार्रवाई के देश निकाला दिया जा सकता था या गिरफ्तार किया जा सकता था। दण्ड की आशंका से मुक्त पुलिस बलों ने निरंकुश और निरपेक्ष शासन का अधिकार प्राप्त कर लिया था।
  2. जनसंचार माध्यमों का उपयोग– शासन के लिए समर्थन हासिल करने और नात्सी विश्व दृष्टिकोण को फैलाने के लिए मीडिया का बहुत सोच-समझ कर इस्तेमाल किया गया। नात्सी विचारों को फैलाने के लिए तस्वीरों, फिल्मों, रेडियो, पोस्टरों, आकर्षक नारों और इश्तहारी पर्चों का खूब सहारा लिया जाता था। नात्सीवाद ने लोगों के दिलोदिमाग पर गहरा असर डाला, उनकी भावनाओं को भड़का कर उनके गुस्से और नफरत को ‘अवांछितों’ पर केन्द्रित कर दिया। इसी अभियान से नात्सीवाद का सामाजिक आधार पैदा हुआ।
  3. अग्नि अध्यादेश- सत्ता प्राप्ति के पश्चात् अग्नि अध्यादेश के जरिए अभिव्यक्ति, प्रेस एवं सभा करने की आजादी जैसे नागरिक अधिकारों को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया।
  4. कम्युनिस्टों का दमन- अधिकांश कम्युनिस्टों को रातों-रात कंसन्ट्रेशन कैम्पों में बन्द कर दिया गया।
  5. राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध- नात्सी दल के अतिरिक्त अन्य सभी राजनीतिक दलों और ट्रेड यूनियनों को प्रतिबंधित कर दिया गया।
  6. युंगफोक युगफोक 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों का नात्सी युवा संगठन था। 10 साल की उम्र के बच्चों का युगफोक में दाखिला करा दिया जाता था। 14 साल की उम्र में सभी लड़कों को नात्सियों के युवा संगठन- हिटलर खूष की सदस्यता लेनी पड़ती थी। इस संगठन में वे युद्ध की उपासना, आक्रामकता व हिंसा, लोकतंत्र की निंदा और यहूदियों, कम्युनिस्टों, जिप्सियों व अन्य ‘अवांछितों से घृणा का सबक सीखते थे। गहन विचारधारात्मक और शारीरिक प्रशिक्षण के बाद लगभग 18 साल की उम्र में वे लेबर सर्विस (श्रम सेवा) में शामिल हो जाते थे। इसके बाद उन्हें सेना में काम करना पड़ता था और किसी नात्सी संगठन की सदस्यता लेनी पड़ती थी।
  7. रैलियाँ और जनसभाएँ- नात्सियों ने जनसमर्थन प्राप्त करने के लिए तथा जनता को मनोवैज्ञानिक रूप से नियंत्रित करने के लिए बड़ी-बड़ी रैलियाँ और जनसभाएँ आयोजित कीं।
  8. तानाशाही की स्थापना- 3 मार्च, 1933 ई. को प्रसिद्ध विशेषाधिकार अधिनियम की सहायता से जर्मनी में तानाशाही की स्थापना की गई। हिटलर के जर्मन साम्राज्य की वजह से नात्सी राज्य को इतिहास में सबसे खूंखार आपराधिक राज्य की छवि प्राप्त हुई। नाजियों ने जर्मनी की युद्ध में हार के लिए यहूदियों को उत्तरदायी ठहराया। यहूदी गतिविधियों पर कानूनी रूप से रोक लगा दी गई और उनमें से अधिकांश को या तो मार दिया गया या जर्मनी छोड़ने के लिए बाध्य किया गया।

प्रश्न 7. जर्मनी में नात्सीवाद का प्रसार किस प्रकार किया गया?

उत्तर- जर्मनी में नात्सीवाद का प्रसार इस प्रकार किया गया –

  1. हिटलर ने सन् 1921 में नात्सी दल का गठन किया था। उसने जर्मन राजधानी बर्लिन की ओर एक अभियान जारी कर सत्ता हासिल करने की योजना बनायी थी, किन्तु वह पकड़ा गया तथा उसे जेल में डाल दिया गया। लेकिन सजा की अवधि पूरी होने से पहले ही उसे छोड़ दिया गया।
  2. जेल में ही उसने एक पुस्तक ‘मेरा संघर्ष’ लिखी। इस पुस्तक में उसने नात्सी आन्दोलन के दर्शन और डरावने विचार व्यक्त किए। इस पुस्तक में उसने बल प्रयोग, बर्बरतापूर्ण व्यवहार, महान् नेता द्वारा शासन की महिमा का गुणगान करने के साथ-साथ अन्तर्राष्ट्रीयता, लोकतंत्र व शान्ति का मजाक उड़ाया। उसने जर्मन यूहदियों के प्रति बहुत ज्यादा घृणा का प्रचार किया और उन्हें न सिर्फ प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मनी की हार के लिए बल्कि उसकी अनेक आर्थिक समस्याओं के लिए पूरा उत्तरदायी ठहराया। उसने उग्र राष्ट्र‌वाद का प्रचार किया।
  3. हिटलर के सत्तारूढ़ होने से पूर्व जर्मनी में चुनाव हुए जिसमें नात्सी दल को समाजवादियों व कम्युनिस्टों को कुल मिलाकर जितने मत मिले थे, उससे भी कम मत मिले थे। वह और उसका दल 650 स्थानों में से केवल 196 स्थान ही ले सका। हिटलर राजनीतिक षड्यंत्रों के जरिए सत्ता में आया। चुनावों में विफलता के बावजूद जर्मनी के राष्ट्रपति हिंडेनबर्ग ने 30 जनवरी, 1933 को उसे जर्मनी का चांसलर नियुक्त किया। हिटलर के सत्ता में आने के कुछ ही सप्ताहों के भीतर जर्मनी में जनतंत्र का ढाँचा छिन्न-भिन्न हो गया।
  4. सत्ता में आते ही हिटलर ने चुनाव कराने के आदेश दिए तथा आतंक का राज्य स्थापित किया। नात्सी-विरोधी नेताओं की हत्या बड़े पैमाने पर कराई गई। नात्सी लोगों ने 27 फरवरी, 1933 को संसद भवन में आग लगा दी। अग्निकाण्ड के लिए जर्मनी की कम्युनिस्ट पार्टी पर दोषारोपण कर उसे कुचल दिया गया। नात्सी लोगों द्वारा आतंक फैलाने के बावजूद नात्सी दल को संसद में बहुसंख्यक स्थान नहीं मिल पाए। फिर भी, हिटलर ने तानाशाही से अधिकार ग्रहण कर लिए तथा वह राष्ट्रपति भी बन गया।
  5. श्रमिक संघों को प्रतिबन्धित कर दिया गया। हजारों समाजवादियों, कम्युनिस्टों और नात्सी-विरोधी राजनीतिक नेताओं को यंत्रणा शिविरों में भेज दिया गया। नात्सी लोगों ने पुस्तकों को जलाना शुरू कर दिया। उन्होंने जर्मनी एवं अन्य देशों के प्रतिष्ठित लेखकों की रचनाओं को आग के हवाले कर दिया। समाजवादियों, कम्युनिस्टों, यहूदियों को अपमानित एवं प्रताड़ित किया गया। देश में सैन्यीकरण का एक विशाल कार्यक्रम आरम्भ किया गया। नात्सीवाद की विजय न केवल जर्मन लोगों के लिए, बल्कि सम्पूर्ण यूरोप एवं विश्व के लिए विपत्ति सिद्ध हुई। द्वितीय विश्व युद्ध को आरम्भ करने में इसकी प्रमुख भूमिका थी।

प्रश्न 8. प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के पश्चात् के वर्षों में जर्मनी की स्थिति की चर्चा करें। नात्सियों के सत्ता में आने के लिए यह स्थिति कहाँ तक उत्तरदायी थी?

उत्तर-प्रथम महायुद्ध के पश्चात् जर्मनी में क्रांति हुई। इस क्रांति के फलस्वरूप जर्मनी का सम्राट् कैसर विलियम जर्मनी से भाग गया और वहाँ गणतंत्र की स्थापना हुई। परंतु गणतंत्र प्रणाली भी ज्यादा देर तक न चल सकी। इसका मुख्य कारण यह था कि गणतंत्र सरकार जर्मनी के पूँजीपतियों का दमन न कर सकी। ठीक इसी समय एडॉल्फ हिटलर ने राजनीति में प्रवेश किया। उसने नात्सी पार्टी की स्थापना की और इस पार्टी की सहायता से उसने जर्मनी को संकट से बचाने का बचन दिया। इस प्रकार जर्मनी में एक जबरदस्त आन्दोलन शुरू हो गया। नात्सी पार्टी के सदस्यों ने हिटलर के नेतृत्व में बर्लिन पर अधिकार करने का प्रयास किया परंतु उन्हें सफलता न मिली और हिटलर को गिरफ्तार कर लिया गया। उसी समय जेल में हिटलर ने एक पुस्तक लिखी उस पुस्तक का नाम था- मेन कैफ (Mein Kamph) अथवा ‘मेरा संघर्ष’। शीघ्र ही जर्मनी की जनता ने हिटलर को जनता के रक्षक के रूप में स्वीकार कर लिया। नात्सीवाद की यह बहुत बड़ी सफलता थी। संक्षेप में, जर्मनी की बदलती परिस्थितियों ने नात्सी शक्ति के उत्थान में निम्नलिखित ढंग से सहायता पहुँचाई-

वर्साय की सधि की शतों को पूरा करने के लिए जर्मनी में गंभीर आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया था। देश के लगभग एक करोड़ लोग बेरोजगार हो चुके थे। अतः नात्सी पार्टी ने जब उग्र राष्ट्रवाद और युद्धों द्वारा लोगों को रोजगार दिलाने का वचन दिया तो लोगों ने तुरंत नात्सीवाद का स्वागत किया।

नात्सीवादी पार्टी के साथ जर्मनी में कम्युनिस्ट और समाजवादी लोकतंत्रीय पार्टियाँ भी स्थापित हो चुकी थीं। ये दोनों पार्टियों मिलकर नात्सी पार्टी का विरोध न कर सकीं। चुनावों में इन पार्टियों के सदस्यों की मिली-जुली संख्या नात्सी पार्टी के सदस्यों से ज्यादा होते हुए भी यह नात्सी पार्टी के बढ़ते हुए प्रभाव को रोकने में असमर्थ रहीं।

जर्मनी का राष्ट्रपति भी नात्सी पार्टी के उदय से प्रभावित हुआ। अतः उसने सन् 1933 में हिटलर को जर्मनी का चांसलर नियुक्त कर दिया। इसः उसने घर-धीरे सत्ता पर हिटलर का अधिकार होता गया और देश में एक भयकार तानाशाही शासन शुरू हो गया।

हिटलर ने अपनी स्थिति को सुदृढ़ बनाने के लिए कुछ आंतकवादी कार्य भी किये। उसने जर्मन संसद में आग लगवा दी और इसका आरोप कम्युनिस्ट पार्टी पर तिलगा दिया। फलस्वरूप कम्युनिस्ट पार्टी पूरी तरह समाप्त हो गई। नात्सी पार्टी का विरोध करने वाले सभी नेताओं को बंदी बना लिया गया और उन्हें अनेक यातनाएँ दी गईं। देश में एक विशाल सेना संगठित करने का कार्यक्रम बनाया गया। बड़े पैमाने पर विनाशकारी शस्त्र बनाए जाने लगे। यहूदियों के साथ कठोरता का व्यवहार किया गया और कई यहूदियों का निर्ममतापूर्वक वध कर दिया गया।

प्रश्न 9. वर्साय संधि के प्रावधानों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर-वर्साय संधि के प्रमुख प्रावधानों का विवरण इस प्रकार हैं-

  1. सार की घाटी की कोयले की खानों का अधिकार फ्रांस को दिया गया। सार का शासन-प्रबन्ध 15 वर्ष के लिए लीग ऑफ नेशंस की अधीनता में एक अन्तर्राष्ट्रीय कमीशन को सौंपा गया। सन् 1935 में वहाँ जनमत हुआ और उसके आधार पर सार की घाटी को जर्मनी के साथ मिला दिया गया।
  2. जर्मनी भविष्य में आक्रमणकारी नीति का अनुकरण कर पुनः युद्ध न छेड़ दे, इसको रोकने के लिए जर्मनी की सैनिक शक्ति को घटा दिया गया। जर्मनी में लामबंदी और अनिवार्य सैनिक शिक्षा की मनाही कर दी। उसकी सेना की संख्या एक लाख निश्चित की गई। शस्त्र बनाने, उन्हें बाहर भेजने या बाहर से मँगवाने पर भी पाबंदी लगा दी गई। जर्मनी के सैनिक विभाग की शक्ति सीमित कर दी गई। राइनलैण्ड और कील के क्षेत्रों को सेना-रहित क्षेत्र करार दिया गया।
  3. जर्मनी से उसका औपनिवेशिक साम्राज्य छीन लिया गया और लीग ऑफ नेशन्स के अधीन इसका शासन विभिन्न मित्र-राष्ट्रों को सौंपा गया। पश्चिमी अफ्रीका में जर्मन-उपनिवेश इंग्लैण्ड को दिए गए। कैमरून और टोगोलैण्ड को फ्रांस और इंग्लैण्ड में बाँटा गया। सौमोया द्वीप न्यूजीलैण्ड को तथा शांतुग और क्याओ-चाओ जापान को प्राप्त हुए।
  4. जर्मनी की जल-शक्ति में भी भारी कमी कर दी गई। उसे पनडुब्बियाँ रखने की मनाही कर दी गई। उसे केवल 6 लड़ाई के जहाज, 6 हल्के और 12 टारपीडो किश्तियाँ रखने का अधिकार दिया गया।
  5. बेल्जियम, पोलैण्ड और चेकोस्लोवाकिया को स्वतंत्र राज्यों की मान्यता जर्मनी को देनी पड़ी। पोलैंड को समुद्र तक पहुँचने के लिए जर्मनी के प्रदेशों में से एक संकुचित रास्ता दिया गया।
  6. युद्ध की सारी जिम्मेदारी जर्मनी पर डाली गई। । उसे युद्ध क्षतिपूर्ति के रूप में 6 अरब 10 करोड़ पौंड की बड़ी धनराशि मित्र राष्ट्रों को देने के लिए विवश किया गया।
  7. हेलिगोलैंड और ड्यून की बंदरगाहों तथा उनकी किलेबंदी को समाप्त कर दिया गया।
  8. जर्मनी ने 10 लाख टन कोयला प्रतिवर्ष फ्रांस को और 80 लाख टन कोयला प्रतिवर्ष बेल्जियम और इटली को देना स्वीकार किया।
  9. डैंजिग को लीग ऑफ नेशंस के अधीन एक स्वतन्त्र नगर रखा गया। पोलैण्ड के विशेषाधिकारों को इसमें मान्यता दी गई।
  10. युद्ध के लिए जर्मनी के सम्राट् कैसर विलियम को जिम्मेदार ठहराया गया। उस पर मुकद्दमा चलाने का निर्णय किया गया परन्तु वह जर्मनी से ‘भागकर हालैण्ड चला गया। अतः इस दिशा में कोई कदम न उठाया जा सका। इस प्रकार जर्मनी के लिए यह संधि बड़ी अपमानजनक और घातक सिद्ध हुई और इसने जर्मनी को आर्थिक व सैनिक दृष्टि से असहाय बना दिया।
  11. राइनलैण्ड को सेना-रहित कर दिया गया। इस प्रदेश में किलेबंदी तोड़ दी गई और भविष्य में जर्मनी को इसकी किलेबंदी करने की मनाही कर दी गई।
  12. आल्सेस और लोरेन के प्रांत फ्रांस को, यूपेन, मोर्सनेट और माल्मेडी के तीन जिले बेल्जियम को, मेमल का तटवर्ती बंदरगाह लियूनिया को और संपूर्ण पश्चिमी प्रशिया के प्रदेश पोलैण्ड को दिए गए।

प्रश्न 10. नाजी जर्मनी की नीति तथा सफलताओं का उल्लेख कीजिए। इसके क्या परिणाम हुए?

उत्तर- नाजी जर्मनी नीति एवं सफलताओं का उल्लेख

सत्ता प्राप्त करते ही हिटलर ने लीग ऑफ नेशन्स और निरस्त्रीकरण का परित्याग कर दिया। 26 जनवरी, 1934 ई. को उसने पोलैण्ड से ‘अनाक्रमण समझौता’ करके विश्व को आश्चर्य में डाल दिया। 25 जुलाई, 1934 ई. को हिटलर ने ऑस्ट्रिया पर अधिकार करने का असफल प्रयास किया। 1 जनवरी, 1935 ई. को उसने सार घाटी में जनमत संग्रह करवाया और 10 प्रतिशत जनता के बहुमत के कारण हिटलर ने 1 मार्च, 1935 ई. को सार घाटी को जर्मन राज्य में मिला लिया। 16 मार्च, 1935 ई. को हिटलर ने जर्मनी का शस्त्रीकरण करने की घोषणा कर दी। 10 जून, 1935 ई. को हिटलर ने कूटनीति से काम लेते हुए ‘एंग्लो-जर्मन-नाविक समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए। 7 मार्च, 1936 ई. को हिटलर ने वर्साय की सन्धि की धाराओं का उल्लंघन करते हुए राइनलैण्ड की किलेवन्दी कर दी। हिटलर की इस कार्रवाई ने लगभग सभी यूरोपीय समझौतों को महत्त्वहीन बना दिया। 14 अक्टूबर, 1936 ई. को बेल्जियम ने अपनी तटस्थता की घोषणा कर दी। पोलैण्ड, एस्टोनिया, लाटविया, लिथुआनिया, यूगोस्लाविया, हंगरी, बुल्गारिया आदि छोटे राज्य जर्मनी के प्रभा में आ गए। डेनमार्क, नार्वे तथा स्वीडन ने भी अपनी तटस्थता घोषित कर दी।

अबीसीनिया युद्ध में हिटलर ने मुसोलिनी का समर्थन करके इटली के साथ 25 अक्टूबर, 1936 ई. को ‘रोम-बर्लिन समझौता’ कर लिया। इटली से सन्धि करने के पश्चात् हिटलर ने 25 नवम्बर, 1936 ई. को जापान के साथ रूस के खिलाफ ‘एण्टी कोमिन्टर्न पैक्ट’ किया। 26 नवम्बर, 1936 ई. को इटली भी इस समझौते में शामिल हो गया। इस प्रकार ‘रोम-बर्लिन-टोकियो धुरी’ का निर्माण हो गया। इस सन्धि के परिणामस्वरूप सम्पूर्ण यूरोप दो शक्तिशाली गुटों में बँट गया। एक गुट धुरी राष्ट्रों (जर्मनी, इटली और जापान) का था और दूसरा गुट मित्र राष्ट्रों (इंग्लैण्ड, फ्रांस और रूस) का था।

14 मार्च, 1938 ई: को वियना पर जर्मनी का अधिकार हो गया। 19 अप्रैल, 1938 ई. को हिटलर ने पूरी ऑस्ट्रिया को जर्मन साम्राज्य में मिला लिया। म्यूनिख समझौते के बाद हिटलर ने 15 मार्च, 1939 ई. को चेकोस्लोवाकिया पर भी अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया। हिटलर की साम्राज्यवादी भूख का अगला शिकार लिथुआनिया बना। 22 मार्च, 1939 ई. को जर्मन सेनाओं ने लिथुआनिया के मेमल प्रदेश पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया। 6 अप्रैल, 1939 ई. को उसने अल्बानिया पर भी अपना नियन्त्रण स्थापित कर लिया। अपनी स्थिति को अधिक सुदृढ़ करने के लिए हिटलर ने रूस के साथ 23 अगस्त, 1939 ई. को एक ‘अनाक्रमण समझौता’ कर लिया। उसका यह कार्य कूटनीतिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण था। इसके पश्चात् हिटलर ने पोलैण्ड से डेन्जिग बन्दरगाह तक जाने के लिए ‘पोलिश गलियारे’ की माँग की। 31 अगस्त, 1939 ई. को हिटलर ने पोलैण्ड सरकार के उत्तर को प्राप्त किए बिना ही, बगैर किसी सूचना के, जर्मन सेनाओं को पोलैण्ड पर आक्रमण करने का आदेश दे दिया। 1 सितम्बर, 1939 ई. की सुबह 5 बजे जर्मन सेनाएँ पोलैण्ड की सीमा के पार पहुँच गईं और द्वितीय विश्वयुद्ध का विस्फोट हो गया। पोलैण्ड की सुरक्षा के लिए 3 सितम्बर, 1939 ई. को इंग्लैण्ड तथा फ्रांस ने भी जर्मनी के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी।

 

UP Board Solution of Class 9 Social Science इतिहास (History) Chapter- 2 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रान्ति (Europe Me Samajwad aur Rusi Kranti)  Long Answer

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