UP Board Solution of Class 9 Hindi Padya Chapter 7 – Dana – दान(सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’) Jivan Parichay, Padyansh Adharit Prashn Uttar Summary
Dear Students! यहाँ पर हम आपको कक्षा 9 हिंदी पद्य खण्ड के पाठ 7 दान का सम्पूर्ण हल प्रदान कर रहे हैं। यहाँ पर दान सम्पूर्ण पाठ के साथ सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का जीवन परिचय एवं कृतियाँ, पद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर अर्थात पद्यांशो का हल, अभ्यास प्रश्न का हल दिया जा रहा है।
Dear students! Here we are providing you complete solution of Class 9 Hindi Poetry Section Chapter Dana. Here the complete text, biography and works of Suryakant Tripathi Nirala along with solution of Poetry based quiz i.e. Poetry and practice questions are being given.
Chapter Name | Dana- दान(सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’) Suryakant Tripathi Nirala |
Class | 9th |
Board Nam | UP Board (UPMSP) |
Topic Name | जीवन परिचय,पद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर,पद्यांशो का हल (Jivan Parichay, Padyansh Adharit Prashn Uttar Summary) |
जीवन–परिचय
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला‘
स्मरणीय तथ्य
जन्म | सन् 1896 ई०, मेदनीपुर (बंगाल)। |
मृत्यु | सन् 1961 ई० । |
पिता | पं० रामसहाय त्रिपाठी। |
रचना | ‘राम को शक्ति-पूजा’, ‘तुलसीदास’, ‘अपरा’, ‘अनामिका’, ‘अणिमा’, ‘गीतिका’, ‘अर्चना’, ‘परिमल’, ‘अप्सरा’, ‘अलका’। |
काव्यगत विशेषताएँ
वर्ण्य–विषय | छायावाद, रहस्यवाद, प्रगतिवाद, प्रकृति के प्रति तादात्म्य का भाव। |
भाषा | खड़ीबोली जिसमें संस्कृत शब्दों की बहुलता है। उर्दू व अंग्रेजी के शब्दों तथा मुहावरों का प्रयोग। |
शैली | दुरूह शैली, सरल शैली। |
छन्द | तुकान्त, अतुकान्त, रबर छन्द। |
अलंकार | उपमा, रूपक, अतिशयोक्ति, मानवीकरण, विशेषण-विपर्यय आदि।
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जीवन–परिचय
हिन्दी के प्रमुख छायावादी कवि पं० सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म महिषा–दल, स्टेट मेदनीपुर (बंगाल) में सन् 1896 ई० की बसन्त पंचमी को हुआ था। वैसे ये उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़कोला गाँव के निवासी थे। इनके पिता पं० रामसहाय त्रिपाठी थे। ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। इनकी शिक्षा-दीक्षा बंगाल में हुई थी। 13 वर्ष की अल्पायु में इनका विवाह हो गया था। इनकी पत्नी बड़ी विदुषी और संगीतज्ञ थीं। उन्हीं के संसर्ग में रहकर इनकी रुचि हिन्दी साहित्य और संगीत की ओर हुई। निराला जी ने हिन्दी, बंगला और संस्कृत का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया था। 22 वर्ष की अवस्था में ही पत्नी का देहान्त हो जाने पर अत्यन्त ही खिन्न होकर इन्होंने महिषादल स्टेट की नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और स्वच्छन्द रूप से काव्य-साधना में लग गये। इन्होंने ‘समन्वय‘ और ‘मतवाला‘ नामक पत्रों का सम्पादन किया। इनका सम्पूर्ण जीवन संघर्षों में ही बीता और जीवन के अन्तिम दिनों तक ये आर्थिक संकट में घिरे रहे। सन् 1961 ई० में इनका देहान्त हो गया।
रचनाएँ
निराला जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। कविता के अतिरिक्त इन्होंने उपन्यास, कहानी, निबन्ध, आलोचना और संस्मरण आदि विभिन्न विधाओं में भी अपनी लेखनी चलायी। परिमल, गीतिका, अनामिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, अपरा, बेला, नये पत्ते, आराधना, अर्चना आदि इनकी प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं। इनकी अत्यन्त प्रसिद्ध काव्य-रचना ‘जुही की कली’ है। लिली, चतुरी चमार, सुकुल की बीबी (कहानी संग्रह) एवं अप्सरा, अलका, प्रभावती इनके महत्त्वपूर्ण उपन्यास हैं।
भाषा–शैली– इनकी भाषा खड़ी बोली जिसमें संस्कृत शब्दों की बहुलता है और इन्होंने उर्दू और अंग्रेजी के शब्दों तथा मुहावरों का प्रयोग किया है इन्होंने दुरूह शैली, सरल शैली का प्रयोग अपनी रचनाओं में किया है
दान
निकला पहिला अरविन्द आज,
देखता सौरभ अनिन्द्य रहस्य-साज;
वसना समीर बहती,
कानों में प्राणों की कहती;
गोमती क्षीण-कटि नटी नवल
नृत्यपर-मधुर आवेश-चपल।
सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित तथा सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित ‘अपरा’ नामक काव्य ग्रन्थ से ‘दान’ शीर्षक कविता से ली गयी हैं।
व्याख्या – प्रकृति के रहस्यमय सुन्दर श्रृंगार को देखने के लिए पौ फटते ही पहला कमल खिल गया अथवा प्रकृति के रहस्यों को निर्दोष भाव से देखने के लिए आज ज्ञान का प्रतीक सूर्य निकल आया है। आज ही पहली बार कवि को धर्म के बाह्य आडम्बर का स्वरूप देखकर वास्तविक ज्ञान प्राप्त हुआ है। सुगन्धिरूपी वस्त्र धारण कर वायु मन्द मन्द बह रही है। वह जब कानों के निकट से गुजरती है तो ऐसा मालूम पड़ता है कि वह प्राणों को पुलकित करनेवाला गतिशीलता का सन्देश दे रही हो। गोमतो नदी में कहीं-कहीं पानी कम होने से वह एक पतली कमरवाली नवेली नायिका-सी जान पड़ती है। उसमें उठती-गिरती लहरों के कारण वह धारा मधुर उमंग से भरकर नृत्य करती हुई-सी जान पड़ती है।
काव्यगत सौन्दर्य –
भाषा – संस्कृतनिष्ठ खड़ीबोली।
शैली – प्रतीकात्मक, वर्णन
रस – शान्त, श्रृंगार।
शब्द-शक्ति – ‘निकला पहिला अरविन्द आज’ में लक्षणा।
गुण – माधुर्य।
अलंकार – रूपक, मानवीकरण और अनुप्रास ।
मैं प्रातः पर्यटनार्थ चला
लौटा, आ पुल पर खड़ा हुआ,
सोचा “विश्व का नियम निश्चल”
जो जैसा, उसको वैसा फल
देती यह प्रकृति स्वयं सदया,
सोचने को न रहा कुछ नया,
सौन्दर्य, गीत, बहु वर्ण, गन्ध,
भाषा, भावों के छन्द-बन्ध,
और भी उच्चतर जो विलास,
प्राकृतिक दान ये, सप्रयास
या अनायास आते हैं सब,
सब में है श्रेष्ठ, धन्य, मानव।”
फिर देखा, उस पुल के ऊपर
बहु संख्यक बैठे हैं वानर।
एक ओर पन्थ के, कृष्णकाय
कंकाल शेष नर मृत्यु-प्राय
बैठा सशरीर दैन्य दुर्बल,
भिक्षा को उठी दृष्टि निश्चल,
अति क्षीण कण्ठ, है तीव्र श्वास,
जीता ज्यों जीवन से उदास।
ढोता जो वह, कौन-सा शाप?
भोगता कठिन, कौन-सा पाप?
यह प्रश्न सदा ही है पथ पर,
पर सदा मौन इसका उत्तर।
जो बड़ी दया का उदाहरण,
वह पैसा एक, उपायकरण!
सन्दर्भ- पूर्ववत्
व्याख्या- कवि कहता है कि मैं एक दिन सवेरे गोमती नदी के तट पर घूमने के लिए गया और
लौटकर पुल के समीप आकर खड़ा हो गया। वहाँ मैं सोचने लगा कि इस संसार के सभी नियम अटल हैं। प्रकृति दया-भाव से सब मनुष्यों को उनके कर्मों का फल प्रदान करती है अर्थात् मनुष्य अपने कर्मों के अनुसार ही फल पाते हैं। इस प्रकार उनके सोचने के लिए कुछ भी नवीन नहीं होता। सौन्दर्य, गीत, विविध रंग, गन्ध, भाषा, मनोभावों को छन्दों में बाँधना और मनुष्य को प्राप्त होनेवाले ऊँचे-ऊँचे भोग तथा और भी कई प्रकार के दान, जो मनुष्य को प्रकृति ने प्रदान किये हैं या उसने अपने परिश्रम से प्राप्त किये हैं, इन सबमें मनुष्य श्रेष्ठ और सौभाग्यशाली है।
फिर निराला जी ने देखा कि गोमती के पुल पर बहुत बड़ी संख्या में बन्दर बैठे हुए हैं तथा सड़क के एक ओर दुबला-पतला काले रंग का मृतप्राय, जो हड्डियों का ढाँचामात्र था, ऐसा एक भिखारी बैठा हुआ है। वह भिक्षा पाने के लिए अपलक नेत्रों से ऊपर की ओर देख रहा है। उसका कण्ठ भूख के कारण बहुत कमजोर पड़ गया था और उसकी श्वास भी तीव्र गति से चल रही थी। ऐसा लग रहा था, मानो वह जीवन से बिल्कुल उदास होकर शेष घड़ियाँ व्यतीत कर रहा हो। न जाने इस जीवन के के रूप में वह कौन-सा शाप ढो रहा था और किन पापों का फल भोग रहा था? मार्ग से गुजरनेवाले सभी लोग यही सोचते थे किन्तु कोई भी इसका उत्तर नहीं दे पाता था। कोई अधिक दया दिखाता तो एक ब पैसा उसकी ओर फेंक देता।
काव्यगत सौन्दर्य
भाषा- संस्कृतनिष्ठ खड़ीबोली।
शैली- वर्णनात्मक ।
रस- शान्त
अलंकार- ‘जीता ज्यों जीवन से उदास’ में अनुप्रास तथा उत्प्रेक्षा है।
मैंने झुक नीचे को देखा,
तो झलकी आशा की रेखा
विप्रवर स्नान कर चढ़ा सलिल
शिव पर दूर्वादल, तण्डुल, तिल,
लेकर झोली आए ऊपर,
देखकर चले तत्पर वानर।
द्विज राम-भक्त, भक्ति की आस
भजते शिव को बारहों मास;
कर रामायण का पारायण,
जपते हैं श्रीमत्रारायण,
दुख पाते जब होते अनाथ,
कहते कपियों के जोड़ हाथ,
मेरे पड़ोस के वे सज्जन,
करते प्रतिदिन सरिता-मज्जन,
झोली से पुए, निकाल लिये,
बढ़ते कपियों के हाथ दिये,
देखा भी नहीं उधर फिर कर
जिस ओर रहा वह भिक्षु इतर,
चिल्लाया किया दूर दानव,
बोला मैं “धन्य, श्रेष्ठ मानव!”
(‘अपरा’ से)
सन्दर्भ- पूर्ववत्
व्याख्या- कवि कहता है कि मैंने झुककर पुल के नीचे देखा तो मेरे मन में कुछ आशा जगी।
वहाँ एक ब्राह्मण स्नान करके शिव जी पर जल चढ़ाकर और दूब, चावल, तिल आदि भेंट करके अपनी झोली लिये हुए ऊपर आया। उसको देखकर बन्दर शीघ्रता से दौड़े। यह ब्राह्मण भगवान् राम का भक्त था। उसे भक्ति करने से कुछ मनोकामना पूरी होने की आशा थी। वह बारहों महीने भगवान् शिव की आराधना करता था। वे ब्राह्मण महाशय प्रतिदिन प्रातःकाल रामायण का पाठ करने के बाद ‘श्रीमन्नारायण’ मन्त्र का जाप करते हैं। वह अन्धविश्वासी ब्राह्मण जब कभी दुःखी होता या असहाय दशा का अनुभव करता, तब हाथ जोड़कर बन्दरों से कहता कि वे उसका दुःख दूर कर दें। कवि उस – ब्राह्मण का परिचय देते हुए कहता है कि वे सज्जन मेरे पड़ोस में रहते हैं और प्रतिदिन गोमती नदी में स्नान करते हैं। उसने पुल के ऊपर पहुँचकर अपनी झोली से पुए निकाल लिये और हाथ बढ़ाते = हुए बन्दरों के हाथ में रख दिये।
कवि को यह देखकर दुःख हुआ कि उसने बन्दरों को तो बड़े चाव से पुए खिलाये, परन्तु उधर घूमकर भी नहीं देखा, जिधर वह भिखारी कातर दृष्टि से देखता हुआ बैठा था। मानवीय करुणा की उपेक्षा और बन्दरों को पुए खिलाने के बाद वह अन्धविश्वासी ब्राह्मण बोला कि अब मैंने उन राक्षसी वृत्तियों से छुटकारा पा लिया है, जिनके कारण मैं दुःखी था, परन्तु निराला जी के मुख से निकला ‘धन्य हो श्रेष्ठ मानव’। भाव यह है कि जो मनुष्य ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना है, उसकी इतनी दुर्गति कि उसे बन्दरों से भी तुच्छ समझा गया। मरणासन्न दशा में देखकर भी उसे शिक्षा के योग्य भी न समझा गया। मानवता का इससे बढ़कर क्रूर उपहास और क्या हो सकता है?
काव्यगत सौन्दर्य
भाषा – साहित्यिक खड़ीबोली।
शैली- व्यंग्यात्मक।
रस – शान्त।
अलंकार – अनुप्रास।
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निम्नलिखित पद्यांशों पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
निकला पहिला अरविन्द आज,
देखता अनिन्द्य रहस्य-साज;
सौरभ-वसना समीर बहती,
कानों में प्राणों को कहती,
गोमती क्षीण-कटि नटी नवल,
नृत्य पर-मधुर आवेश-चपल।
प्रश्न- (i) उपर्युक्त काव्य-पंक्तियों का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर- उपर्युक्त काव्य-पंक्तियों के रचनाकार सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ हैं और कविता का नाम ‘दान’ है।
(ii) पहला कमल कब खिल गया?
उत्तर- पौ फटते ही (प्रातः का समय) पहला कमल खिल गया।
(iii) गोमती नदी में कहीं-कहीं पानी कम होने की वजह से उसकी तुलना किससे की गयी है?
उत्तर- गोमती नदी में कहीं-कहीं पानी कम होने की वजह से उसकी तुलना एक पतली कमर वाली नवेली नायिका से की गयी है।
(iv) कवि द्वारा नवयौवना नर्तकी की संज्ञा किसे दी गई है?
उत्तर- कवि द्वारा नवयौवना नर्तकी की संज्ञा गोमती नदी को दी गई है
- मैंने झुक नीचे को देखा,
तो झलकी आशा की रेखा-
विप्रवर स्नान कर चढ़ा सलिल
शिव पर दूर्वादल, तण्डुल तिल,
लेकर झोली आये ऊपर,
देखकर चले तत्पर वानर।
द्विज राम-भक्त, भक्ति की आस
भजते शिव को बारहों मास,
कर रामायण का पारायण,
जपते हैं श्रीमन्नारायण,
प्रश्न- (i) कवि ने नीचे झुककर क्या देखा?
उत्तर- कवि ने गोमती पुल के नीचे देखा तो एक ब्राह्मण स्नान करके पुल के ऊपर आ रहा है।
(ii) दान कविता में कवि द्वारा किये गये व्यंग्य को लिखिए।
उत्तर- कवि ने दान शीर्षक कविता में ढोंग करने वाले दिखावटी धार्मिक लोगों पर तीखा व्यंग्य किया है।
(iii) शिव पर किसने क्या चढ़ाया?
उत्तर- एक श्रेष्ठ ब्राह्मण ने स्नान करके शिवजी पर जल, दूध, चावल एवं तिल चढ़ाया।
- दुख पाते जब होते अनाथ,
कहते कपियों के जोड़ हाथ,
मेरे पड़ोस के वे सज्जन,
करते प्रतिदिन सरिता-मज्जन,
झोली से पुए, निकाल लिए,
बढ़ते कपियों के हाथ दिये,
देखा भी नहीं उधर फिर कर
जिस ओर रहा वह भिक्षु इतर,
चिल्लाया किया दूर दानव
बोला मैं- “धन्य श्रेष्ठ मानव!”
प्रश्न- (1) प्रस्तुत कविता का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर- कविता का नाम – दान एवं कवि-सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’।
(ii) बन्दरों को पुए कौन खिला रहा है?
उत्तर- अन्धविश्वासी ब्राह्मण बन्दरों को पुआ खिला रहा है।
(iii) बन्दरों को पुआ खिलाने के पश्चात् ब्राह्मण अपने आपको कैसा महसूस करता है।
उत्तर- बन्दरों को पुआ खिलाने के पश्चात् ब्राह्मण को अब महसूस हुआ कि मैं राक्षसी वृत्तियों से छुटकारा पा लिया हूँ।
(vi) ‘झोली से पुए, निकाल लिये,
बढ़ते कपियों के हाथ दिये।’
इन काव्य-पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- आशय- ब्राह्मणों ने पुल के ऊपर पहुँचकर अपनी झोली से पुए निकाल लिए और हाथ बढ़ाते हुए बन्दरों के हाथ में पुए रख दिए।