UP Board Solution of Class 9 Hindi Padya Chapter 6 – Punarmilana – पुनर्मिलन (जयशंकर प्रसाद) Jivan Parichay, Padyansh Adharit Prashn Uttar Summary

UP Board Solution of Class 9 Hindi Padya Chapter 6 – Punarmilana – पुनर्मिलन (जयशंकर प्रसाद) Jivan Parichay, Padyansh Adharit Prashn Uttar Summary

Dear Students! यहाँ पर हम आपको कक्षा 9 हिंदी पद्य खण्ड के पाठ 6  पुनर्मिलन का सम्पूर्ण हल प्रदान कर रहे हैं। यहाँ पर पुनर्मिलन सम्पूर्ण पाठ के साथ  जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय एवं कृतियाँ,द्यांश आधारित प्रश्नोत्तर अर्थात पद्यांशो का हल, अभ्यास प्रश्न का हल दिया जा रहा है।

Dear students! Here we are providing you complete solution of Class 9 Hindi  Poetry Section Chapter Punarmilana. Here the complete text, biography and works of Jaishankar Prasad along with solution of Poetry based quiz i.e. Poetry and practice questions are being given.

UP Board Solution of Class 9 Hindi Gadya Chapter 1 - Baat - बात (प्रतापनारायण मिश्र) Jivan Parichay, Gadyansh Adharit Prashn Uttar Summary

Chapter Name Punarmilana – पुनर्मिलन (जयशंकर प्रसाद) Jaishankar Prasad
Class 9th
Board Nam UP Board (UPMSP)
Topic Name जीवन परिचय,पद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर,पद्यांशो का हल (Jivan Parichay, Padyansh Adharit Prashn Uttar Summary)

जीवन-परिचय

जयशंकर प्रसाद

स्मरणीय तथ्य

जन्म सन् 1889 ई०, काशी।
मृत्यु सन् 1937 ई० ।
पिता बाबू देवीप्रसाद ।
रचनाएँ ‘झरना’, ‘लहर’, ‘आँसू’, ‘कामायनी’, ‘प्रेम पथिक’ आदि।

 काव्यगत विशेषताएँ

वर्ण्य-विषय छायावाद, रहस्यवाद, ईश्वरोन्मुख लौकिक प्रेम, प्रकृति-प्रेम तथा भारतीय संस्कृति से प्रेम।
रस प्रायः सभी ।
भाषा आरम्भ में ब्रजभाषा, बाद में खड़ीबोली, संस्कृत शब्दों की प्रचुरता, मुहावरों का अभाव।
शैली कथात्मक, दुरूह तथा गहन और भावात्मक ।
अलंकार सभी प्राचीन, नवीन (मानवीकरण आदि) अलंकार।
छन्द हिन्दी के प्राचीन छन्द ।

 जीवन-परिचय

बाबू जयशंकर प्रसाद का जन्म काशी के प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में सन् 1889 ई० में हुआ था। इनके पिता बाबू देवीप्रसाद सुँघनी साहू’ के नाम से प्रसिद्ध एक धनी व्यवसायी थे। बचपन में ही पिता की मृत्यु के बाद इनकी शिक्षा का प्रबन्ध घर पर ही हुआ। यहाँ इन्होंने हिन्दी, संस्कृत, उर्दू, फारसी तथा अंग्रेजी का गम्भीर अध्ययन किया और अपने व्यापार की देखभाल के साथ हिन्दी की सेवा में भी लगे रहे। प्रसाद जी स्वभाव से बड़े उदार, मृदुभाषी, स्पष्ट वक्ता, साहसी और हँसमुख प्रकृति के व्यक्ति थे। इनकी मनोवृत्ति धार्मिक थी। ये भारतीय संस्कृति के सच्चे उपासक और शिव के परम भक्त थे। इनकी मृत्यु सन् 1937 ई० में क्षय रोग के कारण हो गयी।

रचनाएँ

प्रसाद जी ने साहित्य के विविध क्षेत्रों में अपना स्वतन्त्र मार्ग बनाया। इन्होंने काव्य, नाटक, उपन्यास और निबन्ध सभी विषयों को स्पर्श किया है।

काव्य – चित्राधार, कानन कुसुम, करुणालय, प्रेम पथिक, झरना, आँसू, लहर और कामायनी।

भाषा शैलीआरम्भ में ब्रजभाषा, बाद में खड़ीबोली, संस्कृत शब्दों की प्रचुरता, मुहावरों का अभाव। और इनकी शैली कथात्मक, दुरूह तथा गहन और भावात्मक है।

 

पुनर्मिलन

चौंक उठी अपने विचार से

कुछ दूरागत ध्वनि सुनती,

इस निस्तब्ध निशा में कोई

चली आ रही है कहती-

“अरे बता दो मुझे दया कर

कहाँ प्रवासी है मेरा?

उसी बावले से मिलने को

डाल रही हूँ मैं फेरा।

सन्दर्भ- यह पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ के पुनर्मिलन’ कविता से लिया गया है। यह कविता जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित कामायनी’  महाकाव्य से संकलित है।

व्याख्या – श्रद्धा मनु को खोजती हुई जा रही है। रात का समय एकान्त निर्जन वन, विचारों में डूबी वह चली जा रही है। इड़ा अपने विचारों में डूबी हुई बैठी है, अचानक दूर से आयी आवाज सुनकर वह चौंक पड़ी। इड़ा सोचने लगी, इस शान्त शब्दविहीन सुनसान रात्रि में यह इस प्रकार कहती कौन आ रही है! आवाज इस प्रकार थी-“अरे मुझे कोई दया करके बता दो कि वह मेरा प्रवासी (विदेश में गया हुआ) प्रियतम कहाँ चला गया है? उसी पगले से मिलने के लिए मैं चक्कर काट रही हूँ।”

काव्यगत सौन्दर्य

भाषा-खड़ी बोली।

रस-वियोग श्रृंगार।

गुण-प्रसाद।

अलंकार– रूप, अनुप्रास।

 

रूठ गया था अपनेपन से

अपना सकी न उसको मैं,

वह तो मेरा अपना ही था

भला मनाती किसको मैं !

यही भूल अब शूल सदृश हो,

साल रही उर में मेरे,

कैसे पाऊँगी उसको मैं

कोई आकर कह दे रे!”

इड़ा उठी, दिख पड़ा राज-पथ

धुँधली-सी छाया चलती,

वाणी में थी करुण वेदना

वह पुकार जैसी जलती।

सन्दर्भ- पूर्ववत्

व्याख्या- इड़ा ने दूर से आती हुई ध्वनि सुनी। यह ध्वनि श्रद्धा की थी। श्रद्धा कह रही थी कि मैं अपने बिछुड़े प्रियतम से मिलने के लिए ही, फेरा लगा रही हूँ। वह आगे कहती है- मेरा प्रियतम मनु मुझसे क्या रूठ गया था, मानो अपने-आपसे ही रूठ गया था। उसके रूठने का कारण यह था कि मैं उसे उस रूप में नहीं अपना सकी थी, जिस रूप में वह चाहता था। वह मुझ पर पूर्ण अधिकार चाहता था। मेरे मन में मेरी भावी सन्तति के प्रति पनपते प्रेम से उसे ऐसा लगा, जैसे वह उपेक्षित हो रहा हो और इसीलिए वह मुझे छोड़कर चला गया। उसमें और मुझमें कोई अन्तर तो था नहीं- यह सोचकर ही मैं रूठे हुए प्रियतम को मना भी नहीं सकी थी। भला कोई स्वयं को मनाता थोड़े ही है।

किन्तु वस्तुतः यह एक भूल ही हुई थी। मुझे उसे मनाना चाहिए था। मेरी वह भूल अब काँटे की तरह मेरे मन में चुभ रही है। कोई मुझे यह तो बताये कि मैं उसे किस प्रकार पा सकती हूँ? पता नहीं वह कहाँ- कहाँ भटकता फिर रहा होगा।

काव्यगत सौन्दर्य

भाषा – खड़ीबोली, ‘उर को सालता’ मुहावरा।

गुण- प्रसाद।

रस-विप्रलंभ श्रृंगार

शब्द-शक्ति’ अपनेपन से रूठना’, ‘धुँधली-सी छाया चलती’, ‘जलती’ आदि लाक्षणिक प्रयोग है।

अलंकार-रूपक, अनुप्रास।

 

इड़ा उठी, दिख पड़ा राज-पथ

धुँधली-सी छाया चलती,

वाणी में थी करुण वेदना

वह पुकार जैसी जलती।

शिथिल शरीर वसन विश्रृंखल

कबरी अधिक अधीर खुली,

छिन्त्र पत्र मकरन्द लुटी-सी

ज्यों मुरझायी हुई कली।

नव कोमल अवलम्ब साथ में

वय किशोर उँगली पकड़े,

चला आ रहा मौन धैर्य-सा

अपनी माता को जकड़े।

थके हुए थे दुखी बटोही,

वे दोनों ही माँ-बेटे,

खोज रहे थे भूले मनु को

जो घायल हो कर लेटे।

सन्दर्भ- पूर्ववत्

व्याख्या- इड़ा ने जब उठकर देखा तो उसे राजपथ पर एक धुँधली-सी छाया आती दिखायी दी। उसके स्वर में करुण वेदना थी और उसकी पुकार दुःख की आग में जलती हुई-सी प्रतीत हो रही थी। श्रद्धा का शरीर निरन्तर चलने के कारण थक गया था। उसके वस्त्र अस्त-व्यस्त हो गये थे। उसकी चोटी खुल गयी थी, जो उसकी अधीरता को प्रकट कर रही थी। वह ऐसी मुरझाई कली के समान मालूम पड़ रही थी, जिसकी पंखुड़ियाँ टूटकर बिखर गयी हों, जिसका पराग लुट गया हो। श्रद्धा की अस्त-व्यस्तता उसकी मानसिक परेशानी को प्रकट कर रही थी, जिससे उसे अपने शरीर की सुध नहीं थी।

इड़ा कहती है कि उस स्त्री के साथ एक नवीन किशोर आयु का कोमल और सुन्दर बालक था। वह अपनी माँ की उँगली पकड़कर चल रहा था। वह शान्त और धैर्य की मूर्ति के समान था। वह अपनी माँ का एकमात्र आधार था और अपनी माँ को कसकर पकड़े हुए धीरे-धीरे चल रहा था। वे दोनों ही पथिक जो माँ- बेटे थे, अत्यन्त थके हुए और दुःखी लग रहे थे। वे दोनों उस भूले हुए मनु की खोज कर रहे थे जो घायल रोकर लेटा हुआ था।

काव्यगत सौन्दर्य

भाषा – साहित्यिक खड़ीबोली

शैली – चित्रात्मक।

 रस – विप्रलम्भ श्रृंगार एवं करुण ।

शब्द- शक्ति – लक्षणा।

गुण- माधुर्य

अलंकार – अनुप्रास, उपमा।

 

इड़ा आज कुछ द्रवित हो रही

दुखियों को देखा उसने,

पहुँची पास और फिर पूछा

“तुमको बिसराया किसने ?

इस रजनी में कहाँ भटकती

जाओगी तुम बोलो तो,

बैठो आज अधिक चंचल हूँ

व्यथा-गाँठ निज खोलो तो।

जीवन की लम्बी यात्रा में

खोए भी हैं मिल जाते,

जीवन है तो कभी मिलन है

कट जाती दुख की रातें।”

सन्दर्भ- पूर्ववत्

व्याख्या- इड़ा श्रद्धा की करुण वाणी को सुनकर उसके पास जाती है और उसका परिचय पूछते हुए यह प्रश्न करती है कि तुमको किसने भुला दिया है? तुम किसे यहाँ खोज रही हो? इस रात में तुम कहाँ भटकती फिरोगी? मेरे पास बैठकर थोड़ी देर विश्राम करो, आज मैं भी अत्यधिक व्यथित हूँ। तुम अपने दुःख को मुझे बताओ। यह जीवन एक लम्बी यात्रा के सदृश है जिसमें खोये हुए पुनः मिलते हैं। इस जीवन में मिलने और बिछुड़ने का क्रम दिन और रात के क्रम के समान चलता रहता है। दुःख की रातें कितनी ही लम्बी हों पर समाप्त हो जाती हैं।

काव्यगत सौन्दर्य

(1) भाग्यवादी विचारधारा का संकेत है।

(2) भाषा शुद्ध एवं परिमार्जित है।

(3) शैली लाक्षणिक तथा प्रसाद गुण दृष्टिगोचर हो रहा है।

(4) अनुप्रास, उपमा, दृष्टान्त अलंकार है।

 

श्रद्धा रुकी कुमार श्रान्त था

मिलता है विश्राम यहीं,

चली इड़ा के साथ जहाँ पर

वह्नि शिखा-प्रज्वलित रही।

सहसा धधकी वेदी-ज्वाला

मण्डप आलोकित करती,

कामायनी देख पायी कुछ

पहुँची उस तक डग भरती।

और वही मनु ! घायल सचमुच

तो क्या सच्चा स्वप्न रहा?

‘आह प्राण प्रिय! यह क्या? तुम यों?”

घुला हृदय, बन नीर बहा।

इड़ा चकित, श्रद्धा आ बैठी

वह थी मनु को सहलाती,

अनुलेपन-सा मधुर स्पर्श था

व्यथा भला क्यों रह जाती?

सन्दर्भ- पूर्ववत्

व्याख्या – इड़ा की सहानुभूतिपूर्ण बातों को सुनकर श्रद्धा वहीं रुक गयी। उसका बेटा भी बहुत धक गया था और वहाँ आश्रय भी मिल रहा था। श्रद्धा तब इड़ा के साथ उस स्थान की ओर चल दी, जहाँ पर आग की लपटें उठ रही थीं। सहसा यज्ञवेदी की अग्नि धधक उठी, जिससे मण्डप में प्रकाश फैल गया। श्रद्धा ने वहाँ कुछ देखा और कदम बढ़ाती हुई वहाँ तक जा पहुँची। उसने वहाँ मनु को घायल अवस्था में देखा। श्रद्धा सोचने लगी कि क्या मेरा स्वप्न सच्चा निकला? वह चीख उठी-” आह प्राणप्रिय ! यह क्या हो गया? तुम इस दशा में क्यों हो?” ऐसा कहते हुए उसका मन भर आया और उसके नेत्रों से आँसू बहने लगे। यह देखकर इड़ा चकित रह गयी। श्रद्धा अपने पति मनु के पास बैठकर उनके शरीर पर हाथ फेरने लगी। उसका वह स्पर्श मरहम के समान कोमल एवं कष्ट हरनेवाला था; तब मनु के हृदय में पीड़ा क्यों शेष रहती?

काव्यगत सौन्दर्य

भाषा – साहित्यिक खड़ीबोली

शैली- चित्रात्मक।

रस- करुण ।

अलंकार – ‘घुला हृदय बन नीर बहा’ में रूपक है।

 

उस मूच्छित नीरवता में कुछ

हलके से स्पन्दन आये,

आँखें खुलीं चार कोनों में

चार विन्दु आकर छाये।

उधर कुमार देखता ऊँचे,

मन्दिर, मण्डप, वेदी को,

यह सब क्या है नया मनोहर

कैसे ये लगते जी को ?

सन्दर्भ- पूर्ववत्

व्याख्या – श्रद्धा अपने पति मनु को घायल और मूच्छित देखकर ‘प्राणप्रिय’ कहकर उनके पास बैठ गयी और उनको सहलाने लगी। श्रद्धा का सुखद एवं मधुर स्पर्श पाकर शब्दहीन, चुपचाप मूच्छित पड़े मनु के शरीर में हल्की-सी हलचल उत्पन्न हो गयी। मनु ने आँखें खोलीं और एक-दूसरे को प्रेमपूर्वक देखते रहे, तब दोनों की आँखों से पश्चात्ताप के आँसू बहने लगे।

उधर श्रद्धा का पुत्र मानव यज्ञभूमि के ऊँचे मन्दिर, यज्ञ-मण्डप और यज्ञ की वेदी को देख रहा था, वह सोचने लगा कि यह सब कितना मोहक, सुन्दर और नवीन है, जो मेरे मन को आकर्षित कर रहा है।

काव्यगत सौन्दर्य

रस – श्रृंगार।

भाषा – साहित्यिक खड़ीबोली।

छन्द – माधुर्य।

शैली – भावात्मक, चित्रात्मक।

 

माँ ने कहा ‘अरे आ तू भी

देख पिता हैं पड़े हुए’

‘पिता! आ गया लो’ यह कहते

उसके रोएँ खड़े हुए।

‘माँ जल दे, कुछ प्यासे होंगे

क्या बैठी कर रही यहाँ?’

मुखर हो गया सूना मण्डप

यह सजीवता रही कहाँ?

आत्मीयता घुली उस घर में

छोटा-सा परिवार बना,

छाया एक मधुर स्वर उस पर

श्रद्धा का संगीत बना।

(कामायनी के निर्वेदसर्ग से)

सन्दर्भ- पूर्ववत्

व्याख्या – मनु के होश में आने पर श्रद्धा ने अपने पुत्र से कहा कि तू भी आकर अपने पिता के दर्शन कर ले। ये भूमि पर लेटे हुए हैं। माँ का कथन सुनते ही उसने पिता के पास जाकर कहा- “पिताजी ! देखो मैं आपके पास आ गया।” पिता से बात कर पुत्र को अति प्रसन्नता हुई। दोनों ही रोमांचित हो गये।

पुत्र अपनी माँ (श्रद्धा) से बोला कि माताजी आप यहाँ बैठी क्या कर रही हो? पिताजी प्यासे होंगे, इन्हें जल लाकर दो। बालक की मधुर ध्वनि से मण्डप में ऐसी सजीवता छा गयी, जो पहले नहीं थी।

इस प्रकार उस घर में पुनः अपनेपन का भाव भर गया। श्रद्धा, मनु और कुमार के मिलन से वहाँ एक छोटा-सा परिवार बन गया। उस परिवार में श्रद्धा का मधुर स्वर संगीत बनकर छा गया।

काव्यगत सौन्दर्य

(1) प्रस्तुत पंक्तियों में श्रद्धा, कुमार और मनु के सुखद मिलन का मार्मिक चित्रण हुआ है।

भाषा – शुद्ध साहित्यिक खड़ीबोली।

शैली – चित्रात्मक, संलाप ।

 

  • निम्नलिखित पद्यांशों पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

(क)       इड़ा उठी, दिख पड़ा राज-पथ

धुंधली-सी छाया चलती,

वाणी में भी करुण वेदना

वह पुकार जैसी जलती।

शिथिल शरीर वसन विशृंखल

कबरी अधिक अधीर खुली,

छिन्न पत्र मकरन्द लुटी-सी

ज्यों मुरझायी हुई कली।

प्रश्न- (i) अपने पति मनु को खोजते हुए श्रद्धा कहाँ पहुँचती है?

उत्तर- अपने पति मनु को खोजते हुए श्रद्धा इड़ा के पास पहुँचती है।

(ii) श्रद्धा की वाणी में किस प्रकार की पुकार थी?

उत्तर- श्रद्धा की वाणी में करुण वेदना से भरी पुकार की जलन थी।

 

(iii) इड़ा ने जब श्रद्धा को देखा तो उसकौं दशा कैसी थी?

उत्तर- श्रद्धा का शरीर थका हुआ था और वस्त्र अव्यवस्थित थे, उसकी चोटी खुलकर अधीरता का संकेत कर रही थी।

 

(ख)         श्रद्धा रुकी कुमार श्रान्त था

मिलता है विश्राम यहीं,

चली इड़ा के साथ जहाँ पर

वहिन-शिखा प्रज्वलित रही।

सहसा धधकी वेदी-ज्वाला

मण्डप आलोकित करती,

कामायनी देख पायी कुछ

पहुँची उस तक डग भरती।

और वही मनु ! घायल सचमुच

तो क्या सच्चा स्वप्न रहा?

“आह प्राण प्रिय! यह क्या ? तुम यों ?”

घुला हृदय, बन नीर बहा।

प्रश्न- (i) श्रद्धा को आश्रय कहाँ मिला?

उत्तर- श्रद्धा को इड़ा के पास आश्रय मिला।

(ii) श्रद्धा ने मनु को किस अवस्था में देखा?

उत्तर- श्रद्धा ने मनु को घायल अवस्था में देखा।

(iii) श्रद्धा का स्पर्श किसके समान था?

उत्तर-श्रद्धा का स्पर्श मनु के लिए मरहम के समान कोमल एवं कष्ट हरने वाला था।

 

(ग)         ‘माँ जल दे, कुछ प्यासे होंगे

क्या बैठी कर रही यहाँ ?’

मुखर हो गया सूना मण्डप

यह सजीवता रही कहाँ?

आत्मीयता घुली उस घर में

छोटा-सा परिवार बना,

छाया एक मधुर स्वर उस पर

श्रद्धा का संगीत बना।

प्रश्न- (i)उपर्युक्त पद्यांश के कवि एवं कविता का नाम लिखिए।

उत्तर- उपर्युक्त पद्यांश के कवि जयशंकर प्रसाद जी हैं एवं कविता का नाम ‘पुनर्मिलन’ है।

(ii) पद्यांश के अन्त में किसका मिलन होता है।

उत्तर- श्रद्धा, कुमार एवं मनु का सुखद मिलन होता है।

(iii) किसका मधुर स्वर संगीत बन गया?

उत्तर-श्रद्धा का मधुर स्वर संगीत बन गया।

 

UP Board Solution of Class 9 Hindi Padya Chapter 5 – Panchavati – पंचवटी (मैथिलीशरण गुप्त) Jivan Parichay, Padyansh Adharit Prashn Uttar Summary – Copy

 

 

 

 

 

 

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