UP Board Solution of Class 9 Hindi Padya Chapter 5 – Panchavati – पंचवटी (मैथिलीशरण गुप्त) Jivan Parichay, Padyansh Adharit Prashn Uttar Summary

UP Board Solution of Class 9 Hindi Padya Chapter 5- Panchavati – पंचवटी (मैथिलीशरण गुप्त) Jivan Parichay, Padyansh Adharit Prashn Uttar Summary

Dear Students! यहाँ पर हम आपको कक्षा 9 हिंदी पद्य खण्ड के पाठ 5  पंचवटी  का सम्पूर्ण हल प्रदान कर रहे हैं। यहाँ पर पंचवटी सम्पूर्ण पाठ के साथ मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय एवं कृतियाँ,द्यांश आधारित प्रश्नोत्तर अर्थात पद्यांशो का हल, अभ्यास प्रश्न का हल दिया जा रहा है।

Dear students! Here we are providing you complete solution of Class 9 Hindi  Poetry Section Chapter Panchavati. Here the complete text, biography and works of Maithili Sharan Gupt  along with solution of Poetry based quiz i.e. Poetry and practice questions are being given.

UP Board Solution of Class 9 Hindi Gadya Chapter 1 - Baat - बात (प्रतापनारायण मिश्र) Jivan Parichay, Gadyansh Adharit Prashn Uttar Summary

Chapter Name Panchavati – पंचवटी (मैथिलीशरण गुप्त) Maithili Sharan Gupt
Class 9th
Board Nam UP Board (UPMSP)
Topic Name जीवन परिचय,पद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर,पद्यांशो का हल (Jivan Parichay, Padyansh Adharit Prashn Uttar Summary)

जीवन-परिचय

मैथिलीशरण गुप्त

स्मरणीय तथ्य

जन्म-सन् 1886 ई०, चिरगाँव जिला झाँसी, (उ० प्र०)।
मृत्यु सन् 1964 ई०।

 काव्यगत विशेषताएँ

वर्ण्य-विषय राष्ट्रप्रेम, आर्य संस्कृति से प्रेम’, ‘प्रकृति प्रेम’, ‘मानव हृदय चित्र’, ‘नारी महत्त्व’।
भाषा शुद्ध तथा परिष्कृत खड़ीबोली।
शैली प्रबन्धात्मक, उपदेशात्मक, गीतिनाट्य तथा भावात्मक।
रस तथा अलंकार प्रायः सभी। विप्रलम्भ श्रृंगार में विशेष सफलता मिली है।

 जीवन-परिचय

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म चिरगाँव जिला झाँसी में सन् 1886 ई० में हुआ था। गुप्तजी के पिता का नाम सेठ रामचरण जी था जो अत्यन्त ही सहृदय और काव्यानुरागी व्यक्ति थे। पिता के संस्कार पुत्र की पूर्णतः प्राप्त थे। इनकी शिक्षा-दीक्षा प्रायः घर पर ही हुई थी। हिन्दी के अतिरिक्त इन्होंने संस्कृत, बंगला, मराठी आदि भाषाओं का अध्ययन किया था। आचार्य पं० महावीरप्रसाद द्विवेदी जी के सम्पर्क में आने से इनकी रचनाएँ सरस्वती में प्रकाशित होने लगीं। द्विवेदीजी की प्रेरणा से ही इनके काव्य में गम्भीरता एवं उत्कृष्टता का विकास हुआ। इनके काव्य में राष्ट्रीयता की छाप है। गाँधी दर्शन से आप विशेष प्रभावित हैं। इन्होंने असहयोग आन्दोलन में जेल यात्रा भी की है। आगरा विश्वविद्यालय ने इनकी हिन्दी सेवा पर सन् 1948 ई० में डी० लिट्० को सम्मानित उपाधि से विभूषित किया। ‘साकेत’ नामक प्रबन्ध काव्य पर इनको मंगलाप्रसाद पारितोषिक भी मिल चुका है। आप स्वतन्त्र भारत के राज्यसभा में सर्वप्रथम सदस्य मनोनीत किये गये थे। आपकी मृत्यु सन् 1964 ई० में हो गयी।

रचनाएँ

गुप्तजी की रचनाएँ दो प्रकार की हैं-

(1) मौलिक

(2) अनूदित।

(1) मौलिक जयद्रथ वध, भारत-भारती, पंचवटी, नहुष आदि।

(2) अनूदित रचनाएँ- मेघनाद वध, वीरांगना, स्वप्नवासवदत्ता आदि। ‘साकेत’ आधुनिक युग का प्रसिद्ध महाकाव्य है। इसमें रामकथा को एक नये परिवेश में चित्रित कर उपेक्षित उर्मिला के चरित्र को उभारा गया है। यशोधरा में बुद्ध के चरित्र का चित्रण हुआ है। यह एक चम्पू काव्य है जिसमें गद्य और पद्म दोनों में रचना की गयी है। भारत-भारती गुप्त जी को सर्वप्रथम खड़ीबोली की राष्ट्रीय रचना है जिसमें देश की अधोगति का बड़ा ही मार्मिक एवं हृदयस्पर्शी चित्रण किया गया है।

(3) अन्य रचनाएँ-‘भारत भारती’, ‘जयद्रथ वध’, ‘पंचवटी’, ‘साकेत’, ‘यशोधरा’, ‘द्वापर’, ‘सिद्धराज’ आदि। अनूदित- ‘मेघनाद-वध’, ‘वीरांगना’, ‘विरहिणी ब्रजांगना’, ‘प्लासी का युद्ध’, ‘रुबाइयाँ’, ‘उमर-खैयाम’।

भाषा- शैली- शुद्ध तथा परिष्कृत खड़ीबोली।

पंचवटी

चारु चन्द्र की चंचल किरणें खेल रही हैं जल-थल में,

स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बर-तल में।

पुलक प्रकट करती है धरती हरित तृणों की नोकों से.

मानो झूम रहे हैं तरु भी मन्द पवन के झोंकों से। (1)

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद हिन्दी काव्य में संकलित एवं मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित खण्डकाव्य पंचवटी से लिया गया है।

व्याख्या – गुप्त जी कहते हैं कि सुन्दर चन्द्रमा की किरणें जल और थल में फैली हुई हैं। पृथ्वी और आकाश में स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है। हरी-हरी घास की नोकें ऐसी लगती हैं मानो वे पृथ्वी के सुख से रोमांचित हो रही हैं। वहाँ के सभी वृक्ष मन्द मन्द वायु के झोंकों से झूमते प्रतीत होते हैं।

काव्यगत सौन्दर्य

भाषा-खड़ी बोली।

अलंकार- अनुप्रास, उत्प्रेक्षा एवं मानवीकरण अलंकार है।

रस-श्रृंगार ।

गुण- माधुर्य।

 

पंचवटी की छाया में है सुन्दर पर्ण-कुटीर बना,

उसके सम्मुख स्वच्छ शिला पर धीर वीर निर्भीक मना,

जाग रहा यह कौन धनुर्धर जब कि भुवन-भर सोता है?

भोगी कुसुमायुध योगी-सा बना दृष्टिगत होता है।।(2)

सन्दर्भ- पूर्ववत्

व्याख्या- कवि कहता है कि पंचवटी की घनी छाया में एक सुन्दर पत्तों की कुटिया बनी हुई है। उस कुटिया के सामने एक स्वच्छ विशाल पत्थर पड़ा हुआ है और उस पत्थर के ऊपर धैर्यशाली, निर्भय मनवाला वीर पुरुष बैठा हुआ है। सारा संसार सो रहा है परन्तु यह धनुषधारी इस समय भी जाग रहा है। यह वीर ऐसा दिखायी पड़ता है जैसे भोग करनेवाला कामदेव यहाँ योगी बनकर आ बैठा हो।

काव्यगत सौन्दर्य

भाषा- खड़ी बोली।

रस-शान्त।

अलंकारअनुप्रास अलंकार की छटा है, उपमा अलंकार की सुन्दर योजना है।

भाषा गुण युक्त सरल साहित्यिक खड़ीबोली भाषा है।

गुण-प्रसाद ।

 

किस व्रत में है व्रती वीर यह निद्रा का यों त्याग किए,

राजभोग के योग्य विपिन में बैठा आज विराग लिए।

बना हुआ है प्रहरी जिसका उस कुटीर में क्या धन है,

जिसकी रक्षा में रत इसका तन है, मन है, जीवन है।। (3)

सन्दर्भ- पूर्ववत्

व्याख्या – इस वीर पुरुष ने यह कौन सा व्रत धारण किया है, जिसके कारण इस प्रकार नींद का त्याग कर दिया है। यह तो राज्य के सुखों को भोगने योग्य है परन्तु किस कारण से यह वन में वैराग्य ग्रहण किये हुए बैठा है। पता नहीं इस कुटिया में ऐसा कौन सा अमूल्य धन रखा हुआ है, जिसकी रक्षा में तन-मन और जीवन लगाते हुए लक्ष्मण प्रहरी बना हुआ है।

काव्यगत सौन्दर्य

 भाषा- सरस व शुद्ध खड़ीबोली।

शैली वर्णनात्मक।

अलंकार अनुप्रास।

गुण ओज

रस- अद्भुत ।

 

मर्त्यलोक-मालिन्य मेटने स्वामि-संग जो आयी है.

तीन लोक की लक्ष्मी ने यह कुटी आज अपनायी है।

वीर वंश की लाज यही है फिर क्यों वीर न हो प्रहरी?

विजन देश है. निशा शेष है, निशाचरी माया ठहरी। (4)

सन्दर्भ- पूर्ववत्

व्याख्या- वास्तव में इस कुटी के अन्दर ऐसा अनुपम धन है, जिसकी रक्षा एक वीर पुरुष ही कर सकता है। तीनों लोकों की साक्षात् लक्ष्मी सीताजी इस कुटी के अन्दर विद्यमान हैं। वे अपने पति राम के साथ इस कुटी में रह रही हैं। मनुष्य लोक की बुराइयों को दूर करने के लिए वे अपने पति राम के साथ आयी हैं। अतः इस कुटी में तीनों लोकों की लक्ष्मी स्वरूप सीताजी विराजमान हैं। वे वीरों के वंश की प्रतिष्ठा हैं। रघुवंश वीरों का वंश है। उनकी रक्षा से ही रघुवंश की प्रतिष्ठा हो सकती है। यदि सीताजी की प्रतिष्ठा में कोई आँच आती है तो रघुकुल की प्रतिष्ठा में धब्बा लगता है। इसीलिए लक्ष्मण जैसे प्रहरी को यहाँ नियुक्त किया गया है। वीर लक्ष्मण इस कुटी में उपस्थित सीताजी की रक्षा में अपना तन, मन और जीवन समर्पित किये हुए हैं।

यह वन निर्जन है। रात्रि काफी शेष है। यहाँ पर राक्षस लोग चारों ओर घूम रहे हैं। वे किसी माया के जाल में फैसाकर विपत्ति त्ति खड़ी कर सकते हैं। । अतः रात्रि के समय निर्जन प्रदेश में राक्षसों की माया से बचने के लिए लक्ष्मण जैसा वीर ही उपयुक्त पहरेदार है।

काव्यगत सौन्दर्य

भाषा साहित्यिक खड़ीबोली।

शैली- चित्रात्मक एवं गीत।

रस शान्त।

छन्द- मांत्रिक।

अलंकार अनुप्रास, रूपक।

गुण- माधुर्य।

 

क्या ही स्वच्छ चाँदनी है यह, है क्या ही निस्तब्ध निशा; है

स्वच्छंद-सुमंद गंध वह, निरानंद है कौन दिशा?

बंद नहीं, अब भी चलते हैं नियति-नटी के कार्य-कलाप,

पर कितने एकान्त भाव से कितने शान्त और चुपचाप।(5)

सन्दर्भ- पूर्ववत्

व्याख्या – पंचवटी में जो दूर-दूर तक चाँदनी फैली हुई है, वह बहुत ही साफ दिखायी दे रही है और रात सन्नाटे से भरी है। कोई शब्द नहीं हो रहा है। वायु स्वच्छन्द गति से, अपनी स्वतन्त्र चाल से मन्द मन्द बह रही है। इस समय उत्तर-पश्चिम आदि सभी दिशाओं में आनन्द-ही-आनन्द व्याप्त है। कोई भी दिशा आनन्द-शून्य नहीं है। ऐसे समय में भी नियति नामक शक्ति-विशेष के समस्त कार्य सम्पन्न हो रहे हैं। कहीं कोई रुकावट नहीं। नियति-नटी अपने क्रिया-कलापों को बहुत ही शान्ति से सम्पन्न कर रही है। वह एकान्त भाव से अर्थात् अकेले अकेले और चुपचाप अपने कर्तव्यों का निर्वाह किये जा रही है।

काव्यगत सौन्दर्य

भाषा- साहित्यिक खड़ीबोली।

छन्द- मात्रिक।

अलंकार- अनुप्रास, रूपक ।

रस- शान्त

शैली- भावात्मक।

 

है बिखेर देती वसुन्धरा मोती, सबके सोने पर,

रवि बटोर लेता है उनको सदा सबेरा होने पर।

और विरामदायिनी अपनी संध्या को दे जाता है.

शून्य श्याम तनु जिससे उसका नया रूप झलकाता है।(6)

सन्दर्भ- पूर्ववत्

व्याख्या- यह पृथ्वी सबके सो जाने पर नित्यप्रति आकाश में नक्षत्ररूपी मोतियों को फैला देती है और सूर्य सदा ही प्रातःकाल हो जाने पर उनको बटोरकर रख लेता है। वह सूर्य भी नक्षत्ररूपी मोतियों को संध्यारूपी सुन्दरी को देकर अपने लोक चला जाता है। अतः नक्षत्ररूपी मोतियों को धारण करके उस सन्ध्यारूपी सुन्दरी का शून्य-सा श्यामल रूप झिलमिल करता हुआ अति दीप्त हो जाता है।

काव्यगत सौन्दर्य

अलंकार अतिशयोक्ति अलंकार।

भाषा-शुद्ध परिमार्जित खड़ीबोली।

गुण-प्रसाद गुण युक्त,

शैली-वर्णनात्मक शैली का प्रयोग।

छन्द-मात्रिक।

 

सरल तरल जिन तुहिन कणों से हँसती हर्षित होती है,

अति आत्मीया प्रकृति हमारे साथ उन्हीं से रोती है।

अनजानी भूलों पर भी वह अदय दण्ड तो देती है,

पर बूढ़ों को भी बच्चों-सा सदय भाव से सेती है।(7)

सन्दर्भ- पूर्ववत्

व्याख्या- कभी तो प्रकृति पृथ्वी पर जिन ओस के कणों से हँसती और प्रसन्न होती-सी प्रतीत होती है उन्हीं ओस के कणों के माध्यम से वह हमारे अत्यन्त ही निकट और आत्मीय हो कष्टों से व्यथित होकर रुदन करती-सी प्रतीत होती है। अर्थात् कभी ओस की बूँदें मोती-सी चमकदार प्रकृति की प्रसन्नता को व्यक्त करती हैं और कभी आँख के आँसुओं के रूप में हमारे दुःखों से दुःखित हो रोती हुई-सी प्रतीत होती हैं। कभी तो यह इतनी निर्दय और निष्ठुर हो जाती हैं कि वह अनजाने में हमारे द्वारा की गयी भूलों के कारण हमें कठोर से कठोर दण्ड तक दे सकती हैं; जैसे- भूकम्प, अतिवृष्टि, बाढ़ आदि। कभी इतनी दयालु हो जाती हैं कि बूढ़ों की भी बच्चों की भाँति दया भाव से सेवा करती हैं।

काव्यगत सौन्दर्य

अलंकार अनुप्रास

छन्द- मात्रिक।

भाषा- साहित्यिक खड़ीबोली।

रस- श्रृंगार।

गुण- माधुर्य।

 

तेरह वर्ष व्यतीत हो चुके, पर हैं मानो कल की बात,

वन को आते देख हमें जब आर्त, अचेत हुए थे तात।

अब वह समय निकट ही है जब अवधि पूर्ण होगी वन की।

किन्तु प्राप्ति होगी इस जन को इससे बढ़कर किस धन की? (8)

सन्दर्भ- पूर्ववत्

व्याख्या- वनवास के समय यद्यपि तेरह वर्ष व्यतीत हो चुके हैं परन्तु सम्पूर्ण बात कल की बात की तरह हृदय पटल पर अंकित है, जबकि पिताजी हमको वन में आते देख दुःख से अचेत हो गये थे। वनवास की अवधि की समाप्ति निकट हैं परन्तु मुझे इस वनवास से बढ़कर और किस धन की प्राप्ति हो सकती है।

काव्यगत सौन्दर्य

भाषा- साहित्यिक खड़ीबोली।

रस शान्त।

गुण प्रसाद।

छन्द मात्रिक

अलंकार- उत्प्रेक्षा, रूपक।

 

और आर्य को? राज्य-भार तो वे प्रजार्थ ही धारेंगे,

व्यस्त रहेंगे, हम सबको भी मानो विवश बिसारेंगे।

कर विचार लोकोपकार का हमें न इससे होगा शोक,

पर अपना हित आप नहीं क्या कर सकता है यह नरलोक? (9)

सन्दर्भ- पूर्ववत्

व्याख्या – आर्य राम को इससे अधिक सुख और क्या हो सकता है? रामचन्द्र जी सिहासन पर बैठकर प्रजा के सुख के लिए राज्य करेंगे। उस कार्य में व्यस्त होकर हमको भी भुला देने को विवश हो जायेंगे। परन्तु संसार की भलाई के विचार से हमको इसमें तनिक भी दुःख नहीं होगा, किन्तु क्या यह मनुष्य समाज राजा का आश्रय न लेकर अपनी भलाई स्वयं नहीं कर सकता।

काव्यगत सौन्दर्य

भाषा- खड़ीबोली

रस-शान्त।

गुण-माधुर्य।

छन्द-मात्रिक।

अलंकार-उत्प्रेक्षा ।

(‘पंचवटी’ से)

 

  • निम्नलिखित पद्यांशों पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
  • चारु चंद्र की चंचल किरणें

खेल रही हैं जल-थल में,

स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है

अवनि और अम्बर-तल में।

पुलक प्रकट करती है धरती

हरित तृणों की नोकों से,

मानों झूम रहे हैं तरु भी

मंद पवन के झोंकों से।।

प्रश्न- (i) उपर्युक्त पंक्तियों में किसके प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन किया गया है?

उत्तर- उपर्युक्त पंक्तियों में पंचवटी के प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन है।

(ii) चन्द्रमा की किरणें कहाँ फैली हुई हैं?

उत्तर- चन्द्रमा की किरणें जल एवं थल में फैली हुई हैं।

(iii) ‘चारु चन्द्र की चंचल किरणें’ में कौन-सा अलंकार है?

उत्तर- ‘चारु चन्द्र की चंचल किरणें’ में अनुप्रास अलंकार है।

(iv) प्रस्तुत पंक्तियों में कवि द्वारा किसका वर्णन किया गया है?

उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि द्वारा चाँदनी रात मे प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन किया गया है

 

  • पंचवटी की छाया में है

सुंदर पर्ण-कुटीर बना,

उसके सम्मुख स्वच्छ शिला पर

धीर वीर निर्भीक मना,

जाग रहा यह कौन धनुर्धर,

जबकि भुवन-भर सोता है?

भोगी कुसुमायुध योगी-सा

बना दृष्टिगत होता है।।

प्रश्न- (i) प्रहरी के रूप में किसे चिह्नित किया गया है?

उत्तर- प्रहरी के रूप में लक्ष्मण को चित्रित किया गया है।

(ii) शिलाखण्ड पर बैठे हुए लक्ष्मण को किस रूप में दर्शाया गया है?

उत्तर- शिलाखण्ड पर बैठे लक्ष्मण जी ऐसे मालूम पड़ रहे हैं जैसे भोग करने वाला कामदेव यहाँ योगी बनकर आ बैठा हो।

(iii) प्रस्तुत पद्यांश के कवि एवं कविता का नाम लिखें।

उत्तर- पद्यांश के कवि मैथिलीशरण गुप्त जी हैं एवं कविता का नाम ‘पंचवटी’ है।

 

  • है स्वच्छेद-सुमंद गंध वह,

निरानंद है कौन दिशा?

बंद नहीं, अब भी चलते हैं

नियति-नटी के कार्य-कलाप,

पर कितने एकांत भाव से

प्रश्न- (i) ‘पंचवटी’ में किसका सौन्दर्य चारों तरफ फैला हुआ है?

उत्तर- पंचवटी में दूर-दूर तक चाँदनी का सौन्दर्य फैला हुआ है।

(ii) वायु का चित्रण किस रूप में हुआ है?

उत्तर- वायु स्वच्छन्द गति से, अपनी स्वतंत्र चाल से मन्द-मन्द बह रही है।

(iii) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में कौन-सा रस प्रयुक्त हुआ है?

उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियों में शान्त रस है।

 

  • हैं बिखेर देती वसुंधरा,

मोती सबके सोने पर,

रवि बटोर लेता है उनको

सदा सबेरा होने पर।

और विरामदायिनी अपनी

संध्या को दे जाता है,

शून्य श्याम तनु जिससे उसका

नया रूप झलकाता है।।

प्रश्न- (i) प्रस्तुत पंक्तियों का सन्दर्भ लिखिए।

उत्तर- प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों के रचनाकार मैथिलीशरण गुप्त जी हैं एवं कविता का नाम पंचवटी है।

(ii) प्रातःकाल होने पर मोतियों को कौन बटोरकर रख लेता है?

उत्तर- प्रातःकाल होने पर सूर्य मोतियों को बटोर लेता है।

(iii) प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है?

उत्तर- उपरोक्त पंक्तियों में अतिशयोक्ति अलंकार है।

 

  • तेरह वर्ष व्यतीत हो चुके,

पर हैं मानो कल की बात,

वन को आते देख हमें जब

आर्त, अचेत हुए थे तात।

अब वह समय निकट ही है जब

अवधि पूर्ण होगी वन की।

किन्तु प्राप्ति होगी इस जन की

इससे बढ़कर किस धन की ?

प्रश्न- (i) प्रस्तुत पद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।

उत्तर- प्रस्तुत पद्यांश के कवि मैथिलीशरण गुप्त हैं और कविता का नाम पंचवटी है।

(ii) पद्यांश के अनुसार वनवास के कितने वर्ष व्यतीत हो चुके हैं?

उत्तर- पद्यांश के अनुसार वनवास के तेरह वर्ष व्यतीत हो चुके हैं।

(iii) वनवास जाते समय राम, सीता एवं लक्ष्मण को देखकर दशरथ की क्या दशा हो गयी थी?

उत्तर- वनवास जाने के समय राजा दशरथ राम, सीता एवं लक्ष्मण को देखकर अचेत हो गये थे।

 

 

 

UP Board Solution of Class 9 Hindi Padya Chapter 4 – Prem-Madhuri – प्रेम-माधुरी (भारतेन्दु हरिश्चन्द्र) Jivan Parichay, Padyansh Adharit Prashn Uttar Summary – Copy

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