UP Board Solution of Class 9 Hindi Padya Chapter 8 – Unhe Pranam- उन्हें प्रणाम(सोहनलाल द्विवेदी) Jivan Parichay, Padyansh Adharit Prashn Uttar Summary
Dear Students! यहाँ पर हम आपको कक्षा 9 हिंदी पद्य खण्ड के पाठ 8 उन्हें प्रणाम का सम्पूर्ण हल प्रदान कर रहे हैं। यहाँ पर उन्हें प्रणाम सम्पूर्ण पाठ के साथ सोहनलाल द्विवेदी का जीवन परिचय एवं कृतियाँ, पद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर अर्थात पद्यांशो का हल, अभ्यास प्रश्न का हल दिया जा रहा है।
Dear students! Here we are providing you complete solution of Class 9 Hindi Poetry Section Chapter Unhe Pranam. Here the complete text, biography and works of Sohan Lal Dwivedi along with solution of Poetry based quiz i.e. Poetry and practice questions are being given.
Chapter Name | Unhe Pranam- उन्हें प्रणाम(सोहनलाल द्विवेदी) Sohan Lal Dwivedi |
Class | 9th |
Board Nam | UP Board (UPMSP) |
Topic Name | जीवन परिचय,पद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर,पद्यांशो का हल (Jivan Parichay, Padyansh Adharit Prashn Uttar Summary) |
जीवन–परिचय
सोहनलाल द्विवेदी
स्मरणीय तथ्य
जन्म | सन् 1906 ई०, बिन्दकी, जिला फतेहपुर, (उ० प्र०) । |
पिता का नाम – | विन्दाप्रसाद द्विवेदी। |
मृत्यु | सन् 1988 ई० ।
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रचनाएँ | ‘भैरवी’, ‘वासवदत्ता’, ‘कुणाल’, ‘विषपान’, ‘पूजा’, ‘वासन्ती’। |
काव्यगत विशेषताएँ
वर्ण्य-विषय | राष्ट्रीय-साहित्य, बाल-साहित्य, सांस्कृतिक-साहित्य और सम्पादित-साहित्य रचना, प्रकृति-चित्रण। |
भाषा | संस्कृत के तत्सम शब्दों से युक्त। ,व्यावहारिक तथा मुहावरा युक्त भाषा। |
शैली | इतिवृत्तात्मक प्रभावपूर्ण शैली, ओजपूर्ण , शैली,गीतात्मक शैली।
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अलंकार | उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, मानवीकरण, अनुप्रास तथा वीप्सा अलंकार आदि। |
छन्द | गीतात्मक छन्द । |
जीवन–परिचय
सोहनलाल द्विवेदी का जन्म सन् 1906 ई० में फतेहपुर जिले के बिन्दकी नामक कस्बे में एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम पं० बिन्दाप्रसाद द्विवेदी था। इन्होंने हाईस्कूल तक शिक्षा फतेहपुर में और उच्च शिक्षा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्राप्त की। एम० ए०, एल-एल० बी० पास करके कुछ दिनों तक आपने वकालत भी की थी, किन्तु महामना मालवीय जी के सम्पर्क में रहने के कारण महात्मा गाँधी से प्रभावित होकर ये स्वाधीनता आन्दोलन में सक्रिय रूप से सम्मिलित हो गये।
इन्हें प्रारम्भ से ही कविता करने में रुचि थी किन्तु काव्य-रचना के साथ-साथ ये राजनीति में भी भाग लेते रहे हैं। आपका शरीरान्त 1988 ई० में हो गया।
रचनाएँ
भैरवी, पूजा-गीत, प्रभाती, चेतना और वासन्ती (काव्य-संग्रह), बाल साहित्य – दूध-बताशा, शिशुभारती, बालभारती, आख्यान काव्य- कुणाल, वासवदत्ता, विषपान।
उन्हें प्रणाम
भेद गया है दीन-अश्रु से जिनका मर्म,
मुहताजों के साथ न जिनको आती शर्म,
किसी देश में किसी वेश में करते कर्म,
मानवता का संस्थापन ही है जिनका धर्म।
ज्ञात नहीं है जिनके नाम।
उन्हें प्रणाम! सतत प्रणाम !
सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संगृहीत ‘उन्हें प्रणाम’ नामक शीर्षक प्रस कविता से उद्धृत किया गया है। इसके रचयिता पं० सोहनलाल द्विवेदी हैं। पाठ्य-पुस्तक में प्रस्तुत रचनाह ‘जय भारत जय’ काव्य संग्रह से उद्धृत की गयी है।
व्याख्या- पं० सोहनलाल द्विवेदी कहते हैं कि वे महापुरुष जिनका हृदय निर्धनों के दुःख से बिंध गया है, जिनको निर्धन-दलितों के साथ रहते हुए भी लज्जा अनुभव नहीं होती, वे चाहे जिस देश में रहें और चाहे जिस वेश में, हमेशा कर्मरत रहते हैं तथा मानवता की स्थापना को ही अपना सच्चा धर्म समझते हैं, ऐसे अज्ञात नामवाले महापुरुषों को मेरा निरन्तर नमन है, नमन है।
काव्यगत सौन्दर्य
भाषा- शुद्ध साहित्यिक खड़ीबोली
शैली- भावात्मक
छन्द- 24 मात्राओं का मात्रिक छन्द।
रस- शान्त।
गुण- प्रसाद ।
अलंकार- अनुप्रास एवं पुनरुक्तिप्रकाश।
शब्द-शक्ति- अभिधा।
कोटि-कोटि नंगों, भिखमंगों के जो साथ,
खड़े हुए हैं कंधा जोड़े, उन्नत माथ,
शोषित जन के, पीड़ित जन के, कर को थाम,
बढ़े जा रहे उधर जिधर है मुक्ति प्रकाम!
ज्ञात और अज्ञात मात्र ही जिनके नाम!
वन्दनीय उन सत्पुरुषों को सतत प्रणाम !
सन्दर्भ- पूर्ववत्
व्याख्या- कवि कहता है कि वे सत्पुरुष जो करोड़ों नंगे और भिखमंगे अर्थात् समाज द्वारा दलित-
पीड़ित लोगों का साथ देते हैं तथा उन्नत मस्तक कर उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते हैं- ऐसे दलितों के साथ रहकर लज्जा न अनुभव करनेवाले सत्पुरुषों को मेरा नमस्कार है।
जो शोषित और सताये हुए लोगों के हाथों को पकड़कर उन्हें उधर लिये आ रहे हैं जिधर पूर्ण स्वच्छता और स्वतन्त्रता है ऐसे ज्ञात और अज्ञात नामवाले आदरणीय उन सत्पुरुषों को मैं निरन्तर प्रणाम करता हूँ।
काव्यगत सौन्दर्य
भाषा – सरल साहित्यिक खड़ीबोली जिसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों का भी प्रयोग किया गया है।
शैली– ओजपूर्ण ।
रस- वीर।
गुण- ओज।
अलंकार- अनुप्रास एवं पुनरुक्तिप्रकाश।
शब्द- शक्ति- अभिधा।
जिनके गीतों के पढ़ने से मिलती शान्ति,
जिनकी तानों के सुनने से झिलती भान्ति,
छा जाती मुखमण्डल पर यौवन की कान्ति,
जिनकी टेकों पर टिकने से टिकती क्रान्ति।
मरण मधुर बन जाता है जैसे वरदान,
अधरों पर खिल जाती है मादक मुस्कान,
नहीं देख सकते जग में अन्याय वितान,
प्राण उच्छ्वसित होते, होने को बलिदान।
सन्दर्भ- पूर्ववत्
व्याख्या – जिन गीतकारों के गीत मन को शान्ति प्रदान करते हैं, जिनके गीतों की तानें भ्रम को नष्ट कर देती हैं, जिनके स्वर मुरझाये मुखों पर जवानी की चमक उत्पन्न कर देते हैं और जिनके गीतों की टेक (स्थायी पंक्ति) मन में क्रान्ति-भावना को स्थायी बना देती है अथवा जिनके दृढ़ संकल्पों का आश्रय लेने से क्रान्तियाँ स्थायी हुआ करती हैं।
जो मृत्यु का भी एक मधुर वरदान के समान स्वागत करते हैं, मृत्यु को सामने देख जो भयभीत नहीं होते अपितु मनमोहिनी मुस्कराहट लिये चलने को प्रस्तुत रहते हैं, जो संसार में अन्याय का विस्तार होते नहीं देख सकते, जिनके प्राण सदैव बलिदान होने को उमगते रहते हैं।
काव्यगत सौन्दर्य
(1) कवि ने महापुरुषों के अनेक गुणों का परिचय कराया है।
(2) कवि ने समाज के पीड़ित व्यक्तियों की सेवा करने का सन्देश भी दिया है।
(3) भाषा में व्यावहारिक तथा तत्सम शब्दावली का सामंजस्य हुआ है।
(4) शैली भावात्मक तथा विवरणात्मक है।
(5) अनुप्रास अलंकार है।
जो घावों पर मरहम का कर देते काम!
उन सहृदय हृदयों को मेरे कोटि प्रणाम!
उन्हें जिन्हें है नहीं जगत में अपना काम,
राजा से बन गये भिखारी तज आराम,
दर-दर भीख माँगते सहते वर्षा घाम
दो सूखी मधुकरियाँ दे देती विश्राम!
जिनकी आत्मा सदा सत्य का करती शोध,
जिनको है अपनी गौरव गरिमा का बोध,
जिन्हें दुखी पर दया, क्रूर पर आता क्रोध
अत्याचारों का अभीष्ट जिनको प्रतिशोध!
उन्हें प्रणाम ! सतत प्रणाम!
जो निर्धन के धन निर्बल के बल अविराम!
उन नेताओं के चरणों में कोटि प्रणाम।
सन्दर्भ- पूर्ववत्
व्याख्या- कवि कहता है- जो दुःखियों के हृदयों को सांत्वना देकर उसी प्रकार सुखी बनाया करते हैं जिस प्रकार घाव पर मरहम लगाने से पीड़ित व्यक्ति को चैन मिला करता है, ऐसे संवेदनशील पुरुषों को कवि करोड़ों बार प्रणाम करता है। जिन जन-नायकों को संसार में अपने लिए कोई भी काम नहीं करना होता, जो सदा दूसरों ही के लिए काम किया करते हैं, जन-सेवा के लिए जिन्होंने आराम त्याग दिया है और अपना सब कुछ दान करके भिखारी जैसा जीवन अपना लिया है, जो दूसरों के लिए द्वार-द्वार भिक्षा माँगा करते हैं, वर्षा और धूप की भी चिन्ता नहीं करते, केवल दो सूखी रोटियों पर ही जो सन्तोष कर लेते हैं, जो निरन्तर सत्य की खोज में लगे रहते हैं, जो अपने देश और अपनी महान् संस्कृति के गौरव को सदा ध्यान में रखते हैं, जो दुःखियों पर दया करते हैं और निर्दयी तथा कठोर हृदय के लोगों पर क्रोध प्रदर्शित किया करते हैं, जो अत्याचारों का बदला लेना उचित समझते हैं, ऐसे महापुरुषों को प्रणाम है, निरन्तर प्रणाम है।
जो निर्धनों के लिए धन और निर्बलों के लिए बल बनकर निरन्तर सेवारत हैं, ऐसे सच्चे नेताओं के चरणों में मैं सैकड़ों बार प्रणाम करता हूँ।
काव्यगत सौन्दर्य
(1) सच्चे जनसेवकों के लोकोत्तर गुणों का परिचय कराया गया है।
(2) दीन-दुःखियों की सेवा तथा अन्याय के प्रतिकार हेतु प्रेरणा दी गयी है।
(3) भाषा सरल, साहित्यिक खड़ीबोली है।
(4) अनुप्रास, पुनरुक्तिप्रकाश तथा मानवीकरण अलंकार है।
(5) शैली भावात्मक है।
मातृभूमि का जगा जिन्हें ऐसा अनुराग!
यौवन में ही लिया जिन्होंने है वैराग,
नगर-नगर की ग्राम-ग्राम की छानी धूल
समझे जिससे सोई जनता अपनी भूल!
जिनको रोटी नमक न होता कभी नसीब,
जिनको युग ने बना रखा है सदा गरीब,
उन मूखौँ को विद्वानों को जो दिन-रात,
इन्हें जगाने को फेरी देते हैं प्रात;
जगा रहे जो सोए गौरव को अभिराम।
उस स्वदेश के स्वाभिमान को कोटि प्रणाम!
सन्दर्भ- पूर्ववत्
व्याख्या- पं० सोहनलाल द्विवेदी कहते हैं कि ऐसे देशभक्तों को मेरा प्रणाम है जिनके हृदय में मातृभक्ति का ऐसा प्रेम जागृत हुआ कि जिसके कारण युवावस्था में ही जिन्होंने संन्यास ले लिया। इन राष्ट्रभक्तों ने अज्ञान में पड़ी हुई जनता को उसकी भूल का अनुभव कराने के लिए प्रत्येक नगर और गाँव की धूल छान मारी अर्थात् अनेक बार प्रत्येक नगर और गाँव में चेतना जागृत करने के लिए घूमे।
ऐसे व्यक्तियों जिनको सामान्य भोजन रोटी और नमक तक उपलब्ध नहीं होता तथा युगीन समाज ने शोषण करके जिनको सदैव निर्धन बनाये रखा है, ऐसे लोगों को जगाने के लिए अपने ध्येय की मूर्खता तक पहुँचे हुए लोगों एवं विद्वानों को जो इन्हें जगाने के लिए दिन-रात एवं प्रातः ही फेरी लगाते हैं- उन्हें प्रणाम है।
जो देश के सोए हुए गौरव को निरन्तर जगा रहे हैं ऐसे स्वदेश के स्वाभिमानी महापुरुषों को मेरा करोड़ों बार प्रणाम है।
काव्यगत सौन्दर्य
कवि ने देशभक्तों एवं क्रान्तिकारियों के प्रति भावात्मक श्रद्धा सुमन अर्पित किये हैं।
भाषा – साहित्यिक खड़ीबोली।
रस- अन्तिम पंक्तियों में वीर तथा शेष में शान्त रस है।
गुण- प्रसाद।
अलंकार- ‘नगर-नगर’ तथा ‘ग्राम-ग्राम’ में पुनरुक्तिप्रकाश शेष में अनुप्रास दर्शनीय है।
शब्द-शक्ति – लक्षणा एवं व्यंजना।
जंजीरों में कसे हुए सीकचों के पार
जन्मभूमि जननी की करते जय-जयकार
सही कठिन, हथकड़ियों की बेतों की मार
आजादी की कभी न छोड़ी टेक पुकार !
स्वार्थ, लोभ, यश कभी सका है जिन्हें न जीत
जो अपनी धुन के मतवाले मन के मीत
ढाने को साम्राज्यवाद की दृढ़ दीवार
बार-बार बलिदान चढ़े प्राणों को वार !
बंद सीकचों में जो हैं अपने सरनाम
धीर, वीर उन सत्पुरुषों को कोटि प्रणाम!
उन्हीं कर्मठों, ध्रुव धीरों को है प्रतियाम !
कोटि प्रणाम !
सन्दर्भ- पूर्ववत्
व्याख्या – प्रस्तुत पद्यांश में पं० सोहनलाल द्विवेदी ने उन स्वतन्त्रता सेनानियों को प्रणाम निवेदित किया है जो अनेक कष्ट आने पर भी अपनी टेक नहीं छोड़ते थे, जो अपने विचार के पक्के थे। कवि कहता है कि स्वतन्त्रता के दीवाने जंजीरों में कसे हुए और जेल के सींखचों के भीतर अर्थात् जेल में पड़े हुए भी भारतमाता- अपनी जन्मभूमि की जय-जयकार करते रहते थे। उनके हाथ-पैरों में कठोर हथकड़ियाँ पहनायी जाती थीं, उन्हें बेंतों से मारा जाता था। इन सबको सहते हुए उन्होंने कभी भी आजादी के संकल्प और नारे को नहीं त्यागा। ऐसे उन वीरों को मेरा कोटि-कोटि प्रणाम है।
इन लोगों को स्वार्थ, लोभ एवं यश की चाह कभी भी जीत नहीं सकी। वे इनसे कभी विचलित नहीं हुए। अपने मन के अनुसार कार्य करनेवाले ये लोग धुन के पक्के थे अर्थात् जो बात मन में ठान लेते थे वही करते थे। उनकी अपनी एक ही धुन थी कि हमारा देश स्वतन्त्र हो।
अंग्रेजी साम्राज्यवाद की दीवार को ढहाने के लिए अर्थात् अंग्रेजी साम्राज्य को उखाड़ फेंकने के लिए ये लोग प्राणों को न्योछावर करके बलिदानी बने। इनका एक ही संकल्प था कि इन दीवारों को तोड़कर फेंक दिया जाय। निरन्तर सीखचों में बन्द रहनेवाले इन वीरों का यश आज भी फैला हुआ है। ऐसे धीर, वीर उन महापुरुषों को मैं करोड़ों बार प्रणाम करता हूँ। ऐसे ही कर्मशील, दृढ़ निश्चयी एवं धैर्यशाली वीरों को हर समय मेरा करोड़ों बार प्रणाम स्वीकार हो।
काव्यगत सौन्दर्य
भाषा- मुहावरेदार एवं प्रवाहपूर्ण साहित्यिक खड़ीबोली।
शैली- ओजपूर्ण, संस्मरणपरक।
रस- वीर।
गुण– ओज।
अलंकार – अनुप्रास और रूपक ।
शब्द-शक्ति- लक्षणा।
भावसाम्य – एक कवि ने लिखा है-
जो फाँसी के तख्तों पर जाते हैं झूम,
जो हँसते-हँसते शूली को लेते चूम,
दीवारों में चुन जाते हैं जो मासूम,
टेक न तजते, पी जाते हैं विष का धूम !
उस आगत को जो कि अनागत दिव्य भविष्य
जिनकी पावन ज्वाला में सब पाप हविष्य !
सब स्वतन्त्र, सब सुखी जहाँ पर सुख विश्राम
नवयुग के उस नव प्रभात की किरण ललाम।
उस मंगलमय दिन को मेरे कोटि प्रणाम !
सर्वोदय हँस रहा जहाँ, सुख-शान्ति प्रकाम !
(‘जय भारत जय’ से)
सन्दर्भ- पूर्ववत्
व्याख्या – पं० सोहनलाल द्विवेदी कहते हैं कि वे स्वतन्त्रता सेनानी जो देश की आजादी के लिए फाँसी के फंदे पर झूल गये, जिन्होंने हँसते-हँसते इस शूली को चूमा-ऐसे उन वीरों को मेरा प्रणाम है। गुरुगोविन्द सिंह के वे दोनों मासूम वीर बालक जिन्हें औरंगजेब ने दीवार में चिनवा दिया, फिर भी अपनी प्रतिज्ञा पर दृढ़ रहे और विष का धुआँ चुपचाप पी गये अर्थात् मृत्यु को गले लगा लिया- उन दोनों वीर बालकों को भी मेरा प्रणाम है।
उन स्वतन्त्रता सेनानियों के कारण ही यह सुखद वर्तमान है तथा अलौकिक एवं सुखद भविष्य भी आयेगा। इन वीरों के बलिदान की पवित्र ज्वाला में सारे पाप जल जायेंगे। सभी लोग स्वतन्त्र होंगे, सभी सुखी होंगे और इस पृथ्वी पर सुख और चैन होगा। नये युग के प्रातःकाल की सुन्दर किरण भी इन्हीं के कारण होगी। चारों ओर जो प्रगति और सुख का प्रकाश होगा, वह इन्हीं वीर सेनानियों के बलिदानों के कारण ही होगा।
सभी मंगल और सुख को लानेवाले उस दिन को मेरा कोटि-कोटि प्रणाम है जो इन वीरों के बलिदान का परिणाम होगा। सभी की उन्नति, सुख और अत्यधिक शान्ति भारत में विहंस रही होगी। यह सब इन वीरों के कारण ही होगी। अतः इस मंगलमय दिन और इन वीरों को मेरा कोटि-कोटि प्रणाम स्वीकार हो।
काव्यगत सौन्दर्य
भाषा – सरल साहित्यिक खड़ीबोली।
शैली – ओजपूर्ण ।
रस- वीर एवं शान्त।
गुण – ओज एवं प्रसाद।
अलंकार – यमक, रूपक, पुनरुक्तिप्रकाश, अनुप्रास एवं मानवीकरण ।
शब्द-शक्ति- लक्षणा एवं व्यंजना।
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निम्नांकित पद्यांशों पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
- भेद गया है दीन-अश्रु से जिनका मर्म,
मुहताजों के साथ न जिनको आती शर्म,
किसी देश में किसी वेश में करते कर्म,
मानवता का संस्थापन ही है जिनका धर्म।
ज्ञात नहीं है जिनके नाम।
उन्हें प्रणाम! सतत प्रणाम !
प्रश्न- (i) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने किस प्रकार के पुरुषों को प्रणाम किया है?
उत्तर- कवि ऐसे अज्ञात नाम वाले महापुरुषों को प्रणाम किया है, जो सदैव दीन-दुःखियों के सहयोगी बन मानवता के उपासक रहे हैं।
(ii) मानवता की स्थापना को कौन अपना सच्चा धर्म समझता है?
उत्तर- वे महापुरुष जो निरन्तर दीन-दुःखियों के साथ रहते हैं। निर्धन दलितों के साथ रहते तनिक भी लज्जा का अनुभव नहीं करते एवं सदैव कर्म में लीन रहते हैं, ऐसे महापुरुष मानवता को ही अपना धर्म समझते हैं।
(iii) प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियों में अनुप्रास एवं पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
(iv) किन मानवीय गुणों की स्थापना करना महापुरुषों का लक्ष्य रहता है?
उत्तर- दया, प्रेम, सहानुभूति आदि मानवीय गुणों की स्थापना करना महापुरुषों का लक्ष्य रहता है।
- कोटि-कोटि नंगों, भिखमंगों के जो साथ,
खड़े हुए हैं कंधा जोड़े, उन्नत माथ,
शोषित जन के, पीड़ित जन के, कर को थाम,
बढ़े जा रहे उधर जिधर है मुक्ति प्रकाम !
ज्ञात और अज्ञात मात्र ही जिनके नाम !
वन्दनीय उन सत्पुरुषों को सतत प्रणाम !
प्रश्न- (i) प्रस्तुत कविता का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर- प्रस्तुत पद्यांश सोहनलाल द्विवेदी द्वारा रचित ‘उन्हें प्रणाम’ शीर्षक कविता से उधृत है।
(ii) कवि किस प्रकार के सद्पुरुषों को नमन कर रहा है?
उत्तर- जो शोषित और सताए हुए लोगों के हाथों को पकड़कर स्वच्छता एवं स्वतंत्रता की तरफ लाते हैं ऐसे ज्ञात एवं अज्ञात नाम वाले सत्पुरुष को मेरा प्रणाम है।
(iii) दलितों के साथ रहकर लज्जा का अनुभव कौन नहीं करता है?
उत्तर- जो सत्पुरुष लोग हैं वे दलितों के साथ रहकर लज्जा का अनुभव नहीं करते हैं।
(iv) ‘शोषित जन के, पीड़ित जन के, कर को थाम’ पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए?
उत्तर- आशय-कवि कहता है कि संसार के करोड़ों नंगे-भूखों को सहारा देने वाले लोग समाज के शोषित और दीन-दुःखी लोगों का हाथ पकड़कर उस मार्ग पर अग्रसर होते हैं जहाँ पहुँचकर उन्हें दुखों से पूर्ण छुटकारा मिल जाता है।
(v) उपर्युक्त पद्यांश में कैसे लोगों को वन्दनीय कहा गया है?
उत्तर- जो लोग दीन-दुःखियों के बीच में रहकर उनकी सेवा करते हैं, वे वन्दनीय होते हैं।
- जिनके गीतों के पढ़ने से मिलती शान्ति,
जिनकी तानों के सुनने से झिलती भ्रान्ति,
छा जाती मुखमण्डल पर यौवन की कान्ति,
जिनकी टेकों पर टिकने से टिकती क्रान्ति।
मरण मधुर बन जाता है जैसे वरदान,
अधरों पर खिल जाती है मादक मुस्कान,
नहीं देख सकते जग में अन्याय वितान,
प्राण उच्छ्वसित होते, हौने को बलिदान।
जो धावों पर मरहम का कर देते काम !
उन सहृदय हृदयों को मेरे कोटि प्रणाम !
प्रश्न- (i) द्विवेदी जी किस प्रकार के गीतकारों की प्रशंसा कर रहे हैं?
उत्तर- कवि उन गीतकारों की प्रशंसा कर रहा है जिनके गीत जनसाधारण के हृदयों को शान्ति, उत्साह एवं बलिदानी भावना प्रदान करते हैं।
(ii) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में कवि ने क्या संदेश दिया है?
उत्तर- कवि ने समाज के पीड़ित व्यक्तियों की सेवा करने का सन्देश भी दिया है।
(iii) प्रस्तुत पद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर-प्रस्तुत पद्यांश सोहनलाल द्विवेदी द्वारा रचित ‘उन्हें प्रणाम’ शीर्षक कविता से उद्धृत है।
- उन्हें जिन्हें है नहीं जगत में अपना काम,
राजा से बन गये भिखारी तज आराम,
दर-दर भीख माँगते सहते वर्षा घाम
दो सूखी मधुकरियाँ दे देतीं विश्राम !
जिनकी आत्मा सदा सत्य का करती शोध,
जिनको है अपनी गौरव गरिमा का बोध,
जिन्हें दुखी पर दया, क्रूर पर आता क्रोध
अत्याचारों का अभीष्ट जिनको प्रतिशोध !
उन्हें प्रणाम! सतत प्रणाम !
प्रश्न- (i) दुःखियों के हृदयों को सांत्वना देकर कौन सुखी बनाता है?
उत्तर – दुःखियों के हृदयों को सांत्वना देकर सच्चे जनसेवक उन्हें सुखी बनाते हैं।
(ii) देश में जो अज्ञात महापुरुष हैं, उनकी प्रमुख विशेषता क्या है?
उत्तर – देश में अज्ञात नाम वाले महापुरुष हैं वे दीन-दुःखियों के घाव पर मरहम लगाने का कार्य करते हैं जो दीन- दुःखियों की सेवा में निरन्तर लगे रहते हैं।
(iii) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में किसके लिए प्रेरणा दी गयी है?
उत्तर –प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में दीन-दुःखियों की सेवा तथा अन्याय के प्रतिकार हेतु प्रेरणा दी गयी है।
- मातृभूमि का जगा जिन्हें ऐसा अनुराग !
यौवन में ही लिया जिन्होंने है वैराग,
नगर-नगर की ग्राम-ग्राम की छानी धूल
समझे जिससे सोई जनता अपनी भूल !
जिनको रोटी नमक न होता कभी नसीब,
जिनको युग ने बना रखा है सदा गरीब,
उन मूर्खी को विद्वानों को जो दिन-रात,
इन्हें जगाने को फेरी देते हैं प्रात;
जगा रहे जो सोए गौरव को अभिराम।
प्रश्न- (i) प्रस्तुत कविता का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर- प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ सोहनलाल द्विवेदी द्वारा रचित ‘उन्हें प्रणाम’ शीर्षक कविता से उद्धृत है।
(ii) कवि किस प्रकार के महापुरुषों को नमन कर रहा है?
उत्तर- कवि ने देशभक्तों एवं क्रान्तिकारियों को नमन किया है।
(iii) जनता को जगाने के लिए किस प्रकार के लोग नगर और गाँव की धूल छान मारी?
उत्तर- राष्ट्रभक्तों ने अज्ञान में पड़ी हुई जनता को उसकी भूल का अनुभव कराने के लिए प्रत्येक नगर और गाँव की धूल छान मारी अर्थात् प्रत्येक गाँव और नगर में चेतना जागृत करने के लिए घूमे।
- जंजीरों में कसे हुए सीकचों के पार
जन्मभूमि जननी की करते जय-जयकार
सही कठिन, हथकड़ियों की बेतों की मार
आजादी की कभी न छोड़ी टेक पुकार !
स्वार्थ, लोभ, यश कभी सका है जिन्हें न जीत
जो अपनी धुन के मतवाले मन’ के मीत
ढाने को साम्राज्यवाद की दृढ़ दीवार
बार-बार बलिदान चढ़े प्राणों को वार!
बंद सीकचों में जो हैं अपने सरनाम
धीर, वीर उन सत्पुरुषों को कोटि प्रणाम !
उन्हीं कर्मठों, ध्रुव धीरों को है प्रतियाम !
कोटि प्रणाम !
प्रश्न- (i) प्रस्तुत कविता का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर – प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ सोहनलाल द्विवेदी द्वारा रचित ‘स्वदेश प्रेम’ कविता से उद्धृत हैं।
(ii) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने किन्हें नमन किया है?
उत्तर – सोहनलाल द्विवेदी जी ने जेल की यातनाएँ सहकर भी अपने लक्ष्य से न भटकने वाले धीर वीरों को नमन किया है।
(iii) स्वतन्त्रता सेनानियों की असली धुन क्या थी?
उत्तर – स्वतन्त्रता सेनानियों की केवल एक ही धुन थी कि हमारा देश स्वतन्त्र हो।
- जो फाँसी के तख्तों पर जाते हैं झूम,
जो हँसते-हँसते शूली को लेते चूम,
दीवारों में चुन जाते हैं जो मासूम,
टेक न तजते, पी जाते हैं विष का धूम !
उस आगत को जो कि अनागत दिव्य भविष्य
जिनकी पावन ज्वाला में सब पाप हविष्य !
सब स्वतन्त्र, सब सुखी जहाँ पर सुख विश्राम
नवयुग के उस नव प्रभात की किरण ललाम।
उस मंगलमय दिन को मेरे कोटि प्रणाम !
सर्वोदय हँस रहा जहाँ, सुख-शान्ति प्रकाम !
प्रश्न- (i) गुरु गोविन्द सिंह के दोनों मासूम वीर बालकों को किसने दीवार में चिनवा दिया था?
उत्तर- गुरु गोविन्द सिंह के वे दोनों मासूम वीर बालक को औरंगजेब ने दीवार में चिनवा दिया था।
(ii) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में कवि किस प्रकार के स्वतंत्रता सेनानियों को नमन कर रहा है।
उत्तर- प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने देश में सुख-चैन लाने वाले वीर बलिदानी सेनानियों को नमन किया है।
(iii) स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानियों के बलिदान का क्या परिणाम होगा?
उत्तर- स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानियों के बलिदान का परिणाम यह हुआ कि लोगों का कल्याण हुआ और लोग सुखपूर्वक रहने लगे।