UP Board Solution of Class 10 Social Science (History) Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय (Europe me Rashtravaad ka Uday) Notes

UP Board Solution of Class 10 Social Science [सामाजिक विज्ञान] History [इतिहास] Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय (Europe me Rashtravaad ka Uday) लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Notes

प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 10वीं की सामाजिक विज्ञान ईकाई 1 इतिहास भारत और समकालीन विश्व-2  खण्ड-1 घटनायें और प्रक्रियायें के अंतर्गत चैप्टर 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय पाठ के लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। जो की UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करेंगे।

Subject Social Science [Class- 10th]
Chapter Name यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय
Part 3  इतिहास (History)
Board Name UP Board (UPMSP)
Topic Name घटनायें और प्रक्रियायें

यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय (Europe me Rashtravaad ka Uday)

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. यूरोप मेंराष्ट्रके विचार के निर्माण में संस्कृति ने किस प्रकार महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

उत्तर यूरोप में राष्ट्र के विचार के निर्माण में संस्कृति ने निम्नलिखित भूमिका निभाई-

(i) यूरोप में कला, काव्य, कहानियों, किस्सों और संगीत ने राष्ट्रवादी भावनाओं को निर्मित करने और उन्हें व्यक्त करने में काफी सहयोग दिया। जर्मनी इसका सर्वोत्तम उदाहरण है।

(ii) रूमानी कलाकारों और कवियों ने एक साझा संस्कृति तथा साझा सामूहिक विरासत की अनुभूति को राष्ट्र का आधार बनाया। ग्रीक इसका एक अच्छा उदाहरण है।

(iii) राष्ट्रीय संदेश को अधिकाधिक लोगों तक पहुँचाने के लिए स्थानीय बोलियों पर बल दिया गया और स्थानीय लोक साहित्य को एकत्र किया गया। उदाहरण- पोलैंड व जर्मनी आदि।

(iv) राष्ट्रवाद की भावना को जिंदा रखने के लिए संगीत का उपयोग किया गया। भाषा ने इसमें विशेष योगदान दिया।

प्रश्न 2. “ज्युसेपे मेत्सिनी और कावूर ने इटली के एकीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की।इस कथन की समीक्षा कीजिए।

उत्तर1830 के दशक में ज्युसेपे मेत्सिनी ने एकीकृत इतालवी गणराज्य के लिए एक सुविचारित कार्यक्रम प्रस्तुत करने की कोशिश की थी। उसने अपने उद्देश्यों के प्रसार के लिए यंग इटली नामक एक गुप्त संगठन भी बनाया था। 1831 से 1848 तक क्रांतिकारी विद्रोह हुए लेकिन इसे असफलता हाथ लगी। सार्डिनिया पीडमॉण्ट के राजा विक्टर इमेनुएल द्वितीय के मंत्री प्रमुख कावूर ने इटली के एकीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उसने इटली के प्रदेशों को एकीकृत करने वाले आंदोलन का नेतृत्व किया न तो वह एक क्रांतिकारी था और न ही जनतंत्र में विश्वास रखने वाला। इतालवी अभिजात वर्ग के तमाम अमीर और शिक्षित सदस्यों की तरह वह इतालवी भाषा से कहीं बेहतर फ्रेंच बोलता था। फ्रांस से सार्डिनिया-पीडमॉण्ट की एक चतुर कूटनीतिक संधि, जिसके पीछे कावूर का हाथ था, से वह 1859 में ऑस्ट्रिया को हराने में कामयाब रहा।

प्रश्न 3. “नेपोलियन ने निःसंदेह फ्रांस में लोकतंत्र को नष्ट किया था, परंतु प्रशासनिक क्षेत्र में उसने क्रांतिकारी सिद्धांतों का समावेश किया था, ताकि पूरी व्यवस्था अधिक तर्कसंगत और कुशल बन सके।इस कथन की पुष्टि कीजिए।

उत्तर नेपोलियन ने निःसंदेह फ्रांस में लोकतंत्र को नष्ट किया था परंतु प्रशासनिक क्षेत्र में उसने क्रांतिकारी सिद्धांतों का समावेश किया था ताकि पूरी व्यवस्था अधिक तर्कसंगत और कुशल बन सके। 1804 ई. की नागरिक संहिता (जिसे आमतौर पर नेपोलियन की संहिता के नाम से जाना जाता है), के तहत निम्नलिखित परिवर्तन किए गए थे-

(i) जन्म पर आधारित विशेषाधिकार समाप्त कर दिए गए थे।

(ii) उसने कानून के समक्ष बराबरी और संपत्ति के अधिकार को सुरक्षित बनाया।

(iii) डच गणतंत्र, स्विट्जरलैंड, इटली और जर्मनी में नेपोलियन ने प्रशासनिक विभाजनों को सरल बनाया। सामंती व्यवस्था को खत्म किया।

(iv) किसानों को भू-दासत्व और जागीरदारी शुल्कों से मुक्ति दिलाई।

(v) शहरों में भी कारीगरों के श्रेणी संघों के नियंत्रणों को हटा दिया गया।

(vi) यातायात और संचार व्यवस्थाओं को सुधारा गया।

प्रश्न 4. 1848 की उदारवादियों की क्रांति में किन विचारों को आगे बढ़ाया गया?

उत्तर 1848 में जब अनेक यूरोपीय देशों में किसान और मज़दूर विद्रोह कर रहे थे तब वहाँ पढ़े-लिखे मध्य वर्गों की एक क्रांति भी हो रही थी। इस क्रांति से राजा को गद्दी छोड़नी पड़ी थी और एक गणतंत्र की घोषणा की गई जो सभी पुरुषों के सार्विक मताधिकार पर आधारित थी। यूरोप के अन्य भागों में जहाँ अभी तक स्वतंत्र राष्ट्र अस्तित्व में नहीं आए थे; जैसे- जर्मनी, इटली, पोलैंड। वहाँ के उदारवादी मध्यम वर्गों ने संविधानवाद की माँग को राष्ट्रीय एकीकरण की माँग से जोड़ दिया। उन्होंने बढ़ते जन-असंतोष का फायदा उठाया और एक राष्ट्र राज्य के निर्माण की माँगों को आगे बढ़ाया। यह राष्ट्र राज्य संविधान, प्रेस की स्वतंत्रता और संगठन बनाने की आजादी जैसे संसदीय सिद्धांतों पर आधारित था।

प्रश्न 5. 1848 की उदारवादी क्रांति का क्या परिणाम हुआ?

उत्तर रूढ़िवादी शक्तियाँ 1848 में उदारवादी आंदोलनों को दबा पाने में कामयाब हुईं किंतु वे पुरानी व्यवस्था बहाल नहीं कर पाईं। राजाओं को यह समझ में आना शुरू हो गया था कि उदारवादी राष्ट्रवादी क्रांतिकारियों को रियायतें देकर ही क्रांति को समाप्त किया जा सकता था। अतः 1848 के बाद के वर्षों में मध्य और पूर्वी यूरोप की निरंकुश राजशाहियों ने उन परिवर्तनों को प्रारंभ किया जो पश्चिमी यूरोप में 1815 से पहले हो चुके थे। इस प्रकार हैब्सबर्ग अधिकार वाले क्षेत्रों और रूस से भू-दासत्व और बँधुआ मज़दूरी समाप्त कर दी गई। हैब्सबर्ग शासकों ने हंगरी के लोगों को ज्यादा स्वायत्तता प्रदान की हालाँकि इससे निरंकुश मैग्यारों के प्रभुत्व का रास्ता ही साफ हुआ।

प्रश्न 6. उदारवाद की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर उदारवाद लैटिन भाषा के शब्द ‘लिबर’ से बना है, जिसका अर्थ है- आजाद। नए मध्यम वर्गों के लिए उदारवाद का अर्थ था- व्यक्ति के लिए आज़ादी और कानून के समक्ष बराबरी। इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं-

(i) उदारवाद एक ऐसी सरकार पर जोर देता था जो सहमति से बनी हो।

(ii) उदारवाद निरंकुश शासक और पादरी वर्ग के विशेषाधिकारों की समाप्ति, संविधान तथा संसदीय प्रतिनिधि सरकार का पक्षधर था।

(iii) 19वीं सदी के उदारवादी निजी संपत्ति के स्वामित्व की अनिवार्यता पर भी बल देते थे।

(iv) आर्थिक क्षेत्र में उदारवाद, बाजारों की मुक्ति और चीजों तथा पूँजी के आवागमन पर राज्य द्वारा लगाए गए नियंत्रणों को खत्म करने के पक्ष में था। ये एक ऐसे एकीकृत आर्थिक क्षेत्र में निर्माण के पक्ष में थे जहाँ वस्तुओं, लोगों और पूँजी का आवागमन बाधारहित हो।

प्रश्न 7. नेपोलियन द्वारा किए गए सुधारों का वर्णन कीजिए।

या नेपोलियन कौन था? उसके सुधार क्या थे? उसके सुधारों का क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर नेपोलियन बोनापार्ट विश्व के महानतम व्यक्तियों में से एक था। उसके असाधारण कार्यों और आश्चर्यजनक विजयों ने 1799 ई. से 1815 ई. तक सम्पूर्ण यूरोप को प्रभावित किया। उसके प्रमुख सुधार निम्नलिखित हैं-

  1. शासन सम्बन्धी सुधार नेपोलियन की शासन-व्यवस्था प्रतिभा, व्यापकता और कार्यक्षमता के सिद्धान्तों पर आधारित थी। देश की अराजकता को समाप्त करने के लिए उसने शासन का केन्द्रीकरण कर दिया।
  2. आर्थिक सुधार नेपोलियन ने पेरिस में बैंक ऑफ फ्रांस की स्थापना कराई। मादक द्रव्यों, नमक आदि पर कर लगाया, मजदूरों का वेतन निश्चित किया, चोरबाजारी, सट्टेबाजी, मुनाफाखोरी को समाप्त किया।
  3. धार्मिक सुधार- नेपोलियन ने अपने देशवासियों को धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान करने का प्रयत्न किया। राज्य की ओर से सभी को अपने धर्म का आचरण करने की स्वतन्त्रता प्रदान की गई थी।
  4. न्याय सम्बन्धी सुधार नेपोलियन ने फ्रांस के लिए विधि संहिताओं का निर्माण करवाया। इसे ‘नेपोलियन कोड’ के नाम से भी जाना गया। नेपोलियन का यह कार्य फ्रांस को एक स्थायी देन थी।
  5. शिक्षा सम्बन्धी सुधार – नेपोलियन ने शिक्षा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण सुधार किए। उसने फ्रांस में राष्ट्रीय शिक्षा की नींव डाली और पेरिस में एक विश्वविद्यालय की स्थापना भी की।
  6. सार्वजनिक सुधार – नेपोलियन ने सार्वजनिक हित के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण सुधार किए। उसने बेरोजगारी को दूर किया। आवागमन को सुगम बनाने के लिए 229 पक्की सड़कों का निर्माण कराया।

नेपोलियन द्वारा किए गए सुधारों के प्रभाव नेपोलियन द्वारा किए गए सुधारों के निम्नलिखित प्रभाव पड़े-

(i) यूरोप के अन्य हिस्सों में सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक समानता के सिद्धान्तों पर बल दिया जाने लगा।

(ii) यूरोप के अन्य हिस्सों में लोग मानवीय अधिकारों की माँग करने लगे।

(iii) यूरोप के अन्य हिस्सों में समान कर प्रणाली लागू की जाने लगी।

(iv) यूरोप के अन्य हिस्सों में भी सामन्ती व्यवस्था का अन्त होने लगा तथा किसानों को भू-दासत्व और जागीरदारी शुल्कों से मुक्त किया जाने लगा।

प्रश्न 8. यूरोप में राष्ट्रवाद के विकास में संस्कृति का क्या योगदान था?

या यूरोप में राष्ट्रवाद के विकास में संस्कृति के योगदान को दर्शाने के लिए तीन उदाहरण दें।

उत्तर यूरोप में राष्ट्रवाद के विकास में संस्कृति के योगदान को निम्नलिखित उदाहरणों से समझा जा सकता है-

प्रथम उदाहरण के रूप में हम रूमानीवाद नामक सांस्कृतिक आन्दोलन को ले सकते हैं। रूमानीवाद एक ऐसा सांस्कृतिक आन्दोलन था जो विशिष्ट प्रकार की राष्ट्रीय भावना का विकास करना चाहता था।

द्वितीय उदाहरण के रूप में हम क्षेत्रीय बोलियों को ले सकते हैं। क्षेत्रीय बोलियाँ राष्ट्र-निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती थीं, क्योंकि यही यथार्थ रूप में आधुनिक राष्ट्रवादियों के सन्देश को अधिक-से-अधिक लोगों तक पहुँचाती थीं जो अधिकांशतः निरक्षर थे।

तृतीय उदाहरण के रूप में हम संगीत को ले सकते हैं। कैरोल कुर्पिस्की, एक पोलिश नागरिक, ने राष्ट्रीय संघर्ष का अपने ऑपेरा में संगीत के रूप में गुणगान किया और पोलेनेस और माजुरला जैसे लोकनृत्यों को राष्ट्रीय प्रतीकों में बदल दिया।

प्रश्न 9. रेनन की समझ के अनुसार एक राष्ट्र की विशेषताओं का संक्षिप्त विवरण दें। उसके मतानुसार राष्ट्र क्यों महत्त्वपूर्ण है?

उत्तर रेनन की समझ के अनुसार एक राष्ट्र की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(i) रेनन के अनुसार एक राष्ट्र तब बनता है जब वहाँ के लोगों द्वारा लंबे प्रयास और निष्ठा से इसके लिए काम किया जाता है।

(ii) अतीत में समान गौरव का होना, वर्तमान में समान इच्छा संकल्प का होना, साथ मिलकर महान काम करना और आगे ऐसे काम और करने की इच्छा एक जनसमूह होने की यह सब ज़रूरी शर्तें हैं।

(iii) राष्ट्र एक बड़ी और व्यापक एकता है। उसका अस्तित्व रोज़ होने वाला जनमत संग्रह है…। प्रांत उसके निवासी हैं; अगर सलाह लिए जाने का किसी को अधिकार है तो वह निवासी ही है, किसी देश का विलय करने या किसी देश पर उसकी इच्छा के विरुद्ध कब्जा जमाए रखने में एक राष्ट्र की वास्तव में कोई दिलचस्पी होती नहीं है।

(iv) राष्ट्रों का अस्तित्व में होना एक अच्छी बात ही नहीं है, बल्कि यह एक ज़रूरत भी है। उनका होना स्वतंत्रता की गारंटी है और अगर दुनिया में केवल एक कानून और उसका केवल एक मालिक होगा तो स्वतंत्रता का लोप हो जाएगा।

प्रश्न 10. जर्मन एकीकरण की प्रक्रिया का संक्षेप में पता लगाएँ।

या जर्मनी का एकीकरण कब और कैसे हुआ?

या जर्मनी के एकीकरण की प्रक्रिया के बारे में एक संक्षिप्त लेख लिखिए।

या जर्मनी का एकीकरण कैसे हुआ?

उत्तर राष्ट्रवादी भावनाएँ मध्यमवर्गीय जर्मन लोगों में काफी व्याप्त थीं। उन्होंने 1848 में जर्मन महासंघ के विभिन्न इलाकों को जोड़कर एक निर्वाचित संसद द्वारा शासित राष्ट्र-राज्य बनाने का प्रयास किया था। मगर इस पहल को राजशाही और फौज की ताकत ने मिलकर दबा दिया। उनका प्रशा के बड़े भू-स्वामियों ने भी समर्थन किया। उसके बाद प्रशा ने राष्ट्रीय एकीकरण के आंदोलन का नेतृत्व सँभाल लिया। उसका मुख्य मंत्री ऑटो वॉन बिस्मार्क इस प्रक्रिया का जनक था, जिसने प्रशा की सेना और नौकरशाही की मदद ली। 7 वर्ष के दौरान ऑस्ट्रिया, डेनमार्क और फ्रांस से तीन युद्धों में प्रशा की जीत हुई और एकीकरण की प्रक्रिया पूरी हुई। जनवरी 1871 में वर्साय में हुए एक समारोह में प्रशा के राजा विलियम प्रथम को जर्मनी का सम्राट घोषित किया गया। इस तरह 1871 में जर्मनी का एकीकरण हुआ।

प्रश्न 11. फ्रांसीसी लोगों के बीच सामूहिक पहचान का भाव पैदा करने के लिए फ्रांसीसी क्रांतिकारियों ने क्या कदम उठाए?

उत्तरप्रारंभ से ही फ्रांसीसी क्रांतिकारियों ने ऐसे अनेक कदम उठाए, जिनसे फ्रांसीसी लोगों में एक सामूहिक पहचान की भावना उत्पन्न हो सकती थी। ये कदम निम्नलिखित थे-

(i) पितृभूमि और नागरिक जैसे विचारों ने एक संयुक्त समुदाय के विचार पर बल दिया, जिसे एक संविधान के अंतर्गत समान अधिकार प्राप्त थे।

(ii) एक नया फ्रांसीसी झंडा चुना गया, जिसने पहले के राष्ट्रध्वज की जगह ले ली।

(iii) इस्टेट जनरल का चुनाव सक्रिय नागरिकों के समूह द्वारा किया जाने लगा और उसका नाम बदलकर नेशनल एसेंबली कर दिया गया।

(iv) नई स्तुतियाँ रची गईं, शपथें ली गईं, शहीदों का गुणगान हुआ और यह सब राष्ट्र के नाम पर हुआ।

(v) एक केंद्रीय प्रशासनिक व्यवस्था लागू की गई, जिसने अपने भू-भाग में रहने वाले सभी नागरिकों के लिए समान कानून बनाए।

(vi) आंतरिक आयात-निर्यात शुल्क समाप्त कर दिए गए और भार तथा नापने की एक समान व्यवस्था लागू की गई।

(vii) क्षेत्रिय बोलियों को हतोत्साहित किया गया और पेरिस में फ्रेंच जैसी बोली और लिखी जाती थी, वही राष्ट्र की साझा भाषा बन गई।

प्रश्न 12. मारीआन और जर्मेनिया कौन थे? जिस तरह उन्हें चित्रित किया गया उसका क्या महत्त्व था?

उत्तर फ्रांसीसी क्रांति के समय कलाकारों ने स्वतंत्रता, न्याय और गणतंत्र जैसे विचारों को व्यक्त करने के लिए नारी प्रतीकों का सहारा लिया। इनमें मारीआन और जर्मेनिया अत्यधिक प्रसिद्ध हैं।

मारीआन यह लोकप्रिय ईसाई नाम है। अतः फ्रांस ने अपने स्वतंत्रता के नारी प्रतीक को यही नाम दिया। यह छवि जन राष्ट्र के विचार का प्रतीक थी। इसके चिह्न स्वतंत्रता व गणतंत्र के प्रतीक लाल टोपी, तिरंगा और कलगी थे। मारीआन की प्रतिमाएँ सार्वजनिक चौराहों और अन्य महत्त्वपूर्ण स्थानों पर लगाई गई ताकि जनता को राष्ट्रीय एकता के राष्ट्रीय प्रतीक की याद आती रहे और वह उससे अपना तादात्मय (तालमेल) स्थापित कर सके। मारीआन की छवि सिक्कों व डाक टिकटों पर अंकित की गई थी।

जर्मेनिया यह जर्मन राष्ट्र की नारी रूपक थी। चाक्षुष अभिव्यक्तियों में वह बलूत वृक्ष के पत्तों का मुकुट पहनती है क्योंकि जर्मनी में बलूत वीरता का प्रतीक है, उसने हाथ में जो तलवार पकड़ी हुई थी उस पर यह लिखा हुआ है “जर्मन तलवार जर्मन राइन की रक्षा करती है।” इस प्रकार जर्मेनिया, जर्मनी में स्वतंत्रता, न्याय और गणतंत्र की प्रतीक बनकर उभरी एक नारी छवि थी।

प्रश्न 13. बाल्कन प्रदेशों में राष्ट्रवादी तनाव क्यों पनपा?

उत्तर 1871 ई. के बाद यूरोप में बाल्कन क्षेत्र (प्रदेश) गंभीर राष्ट्रवादी तनाव का क्षेत्र बन गया। इस राष्ट्रवादी तनाव के निम्नलिखित कारण थे-

(i) इस क्षेत्र की अपनी भौगोलिक व जातीय भिन्नता थी।

(ii) इस क्षेत्र में आधुनिक यूनान, रोमानिया, बुल्गेरिया, अल्वेरिया, मेसिडोनिया, क्रोएशिया, बोस्निया – हर्जेगोविना, स्लोवेनिया, सर्बिया, मॉन्टिनिग्रो आदि देश थे जहाँ पर स्लाव भाषा बोलने वाले लोग रहते थे। ये सभी तुर्कों से भिन्न थे।

(iii) तुर्कों और इन ईसाई प्रजातियों के बीच मतभेदों के कारण यहाँ पर हालात भयंकर हो गए।

(iv) जब स्लाव राष्ट्रीय समूहों में स्वतंत्रता व राष्ट्रवाद का विकास हुआ तो तनाव की स्थिति और भी भयंकर हो गई।

(v) इस कारण इन राज्यों में आपसी प्रतिस्पर्धा और हथियारों की होड़ लग गई। इसने स्थिति को और गंभीर बना दिया।

(vi) यूरोपीय देश (रूस, जर्मनी, इंग्लैंड, ऑस्ट्रिया, हंगरी) भी इन क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण स्थापित करना चाहते थे ताकि काला सागर से होने वाले व्यापार और व्यापारिक मार्ग पर उनका नियंत्रण हो।

उपर्युक्त कारणों से इस क्षेत्र में यूरोपीय देशों और इन राज्यों में आपस में कई युद्ध हुए, जिसका अंतिम परिणाम प्रथम विश्वयुद्ध के रूप में सामने आया।

प्रश्न 14. ऑटो वॉन बिस्मार्क कौन था? वह क्यों प्रसिद्ध है?

या ऑटो वॉन बिस्मार्क कौन था? जर्मनी के एकीकरण में उसकी भूमिका का वर्णन करें।

या ऑटो वॉन बिस्मार्क को जर्मनी के एकीकरण का जनक क्यों कहा जाता है? दो कारण लिखिए।

उत्तर ऑटो वॉन बिस्मार्क प्रशा का प्रमुख मंत्री था। नेशनल असेम्बली भंग होने के बाद जर्मनी में प्रशा के ऑटो वॉन बिस्मार्क द्वारा जर्मनी के एकीकरण का नेतृत्व सम्भाला गया। बिस्मार्क के नेतृत्व में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क और फ्रांस से हुए युद्धों में प्रशा की जीत हुई और जर्मनी का एकीकरण पूरा हुआ। इसके बाद 1871 ई. में वर्साय में हुए एक समारोह में प्रशा के राजा विलियम प्रथम को जर्मनी का सम्राट घोषित किया गया। 18 जनवरी, 1871 को वर्साय के महल के अत्यधिक ठंडे शीशमहल (हॉल ऑफ मिरर्स) में जर्मन राज्यों के राजकुमारों, सेना के प्रतिनिधियों और प्रमुख मंत्री ऑटो वॉन बिस्मार्क सहित प्रशा के महत्त्वपूर्ण मंत्रियों की एक बैठक हुई। इस सभा में प्रशा के काइजर विलियम प्रथम के नेतृत्व में नए जर्मन साम्राज्य की घोषणा की गयी।

इस प्रकार, बिस्मार्क के नेतृत्व में प्रशा ने राष्ट्रीय एकीकरण के आन्दोलन का नेतृत्व सम्भाल लिया और अन्ततः जर्मनी का एकीकरण करने में सफलता प्राप्त की। वस्तुतः बिस्मार्क ही जर्मनी में एकीकरण की प्रक्रिया का जनक था। उसने प्रशा की सेना और नौकरशाही की सहायता से अपने एकीकरण के लक्ष्य को प्राप्त किया।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. वियना संधि क्या थी? इस संधि के प्रमुख उद्देश्य एवं व्यवस्थाओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर ब्रिटेन, रूस, प्रशा और ऑस्ट्रिया आदि यूरोपीय शक्तियों ने सन् 1815 ई. में सम्मिलित रूप से नेपोलियन को पराजित किया था। इन विजेता देशों के प्रतिनिधि युद्धोपरान्त व्यवस्था को बहाल करने के लिए एक समझौता तैयार करने के उद्देश्य से वियना में मिले। इस सम्मेलन की मेजबानी ऑस्ट्रिया के चांसलर ड्यूक मैटरनिख ने की। इसमें प्रतिनिधियों ने 1815 ई. की वियना संधि तैयार की, जिसका उद्देश्य उन सारे बदलावों को खत्म करना था जो नेपोलियन युद्धों के दौरान हुए थे। इस संधि की मुख्य व्यवस्थाएं इस प्रकार थीं-

(i) फ्रांसीसी क्रान्ति के दौरान हटाए गए बूर्बो वंश को सत्ता में बहाल किया गया और फ्रांस ने उन इलाकों को खो दिया जिन पर कब्जा उसने नेपोलियन के अधीन किया थी।

(ii) फ्रांस की सीमाओं पर कई राज्य कायम कर दिए गए ताकि भविष्य में फ्रांस विस्तार न कर सके।

(iii) फ्रांस के उत्तर में नीदरलैंड्स का राज्य स्थापित किया गया, जिसमें बेल्जियम शामिल था और दक्षिण में पीडमॉण्ट में जेनेवा जोड़ दिया गया।

(iv) प्रशा को उसकी पश्चिमी सीमाओं पर महत्त्वपूर्ण नए इलाके दिए गए जबकि ऑस्ट्रिया को उत्तरी इटली का नियंत्रण सौंपा गया।

(v) नेपोलियन ने 39 राज्यों का जो जर्मन महासंघ स्थापित किया था, उसे बरकरार रखा गया।

(vi) पूर्व में रूस को पोलैंड का एक हिस्सा दिया गया जबकि प्रशा को मैक्सनी का एक हिस्सा प्रदान किया गया।

(vii) इन सबका मुख्य उद्देश्य उन राजतंत्रों की बहाली था जिन्हें नेपोलियन ने बर्खास्त कर दिया था। साथ ही यूरोप में एक नयी रूढ़िवादी व्यवस्था कायम करने का लक्ष्य भी था।

प्रश्न 2. इटली के एकीकरण में आने वाली प्रमुख बाधाओं का ‘वर्णन कीजिए।

उत्तर – इटली के एकीकरण में उपस्थित प्रमुख बाधाओं का वर्णन इस प्रकार है-

  1. वियना की कांग्रेस नेपोलियन ने सारे इटली को जीतकर वहाँ एकता का संचार किया था किन्तु उसकी हार के बाद यूरोप में जो वियना की संधि हुई थी उसने फिर से इटली के टुकड़े-टुकड़े कर दिए थे और वहाँ पुराने रूढ़िवादी शासकों को गद्दी पर बैठा दिया गया। इस प्रकार इटली में एक बार फिर राजनीतिक विखण्डन हो गया जो इटली के एकीकरण के मार्ग में एक बड़ी रुकावट थी।
  2. अनुदारवादी शासक नेपोलियन के पतन के बाद इटली में रूढ़िवादी शासकों को पुनः शासन सौंप दिया गया। ये शासक निरंकुश थे। ये आलोचना और असहमति सहन नहीं करते थे। इन शासकों ने राष्ट्रवादी भावनाओं को रोकने के लिए सेंसरशिप के नियम बनाए जिनका उद्देश्य अखबारों, किताबों, नाटकों तथा गीतों में व्यक्त उन भावनाओं पर नियंत्रण करना था जो फ्रांसीसी क्रान्ति से जुड़ी थीं। इन शासकों का यह अनुदारवादी दृष्टिकोण इटली के एकीकरण में एक बड़ी बाधा सिद्ध हुआ।
  3. राजनीतिक विखण्डन का लंबा इतिहास जर्मनी की तरह इटली में भी राजनीतिक विखंडन का लंबा इतिहास था। इटली अनेक वंशानुगत राज्यों तथा बहुराष्ट्रीय हैब्सबर्ग साम्राज्य में बिखरा हुआ था। वे सभी राज्य अपने-अपने स्वार्थों में लिप्त थे। सदा एक-दूसरे से लड़ते रहते थे और इनमें राष्ट्रीयता नाम की कोई चीज नहीं थी।
  4. विदेशी शक्तियों का आधिपत्य इटली के विभिन्न भागों पर विदेशी शक्तियों ने अधिकार जमा लिया था। उत्तरी भाग आस्ट्रियाई हैब्सबर्गों के अधीन था, मध्य इलाकों पर पोप का शासन था और दक्षिणी क्षेत्र स्पेन के बूर्बो राजाओं के अधीन थे। इस प्रकार बिखरे साम्राज्य का एकीकरण करना एक कठिन कार्य था।
  5. पोप का शासन इटली के मध्य के बहुत बड़े इलाकों पर पोप ने कब्जा कर रखा था। वह अपने आपको ईसाई जगत का नेता समझता था। वह अपने निजी हितों के कारण इटली के एकीकरण के पक्ष में नहीं था। उसने बाहर से फ्रांस की सेनायें बुलाकर रोम में तैनात कर रखी थीं ताकि इटली के राष्ट्रवादी उससे रोम न छीन पायें।

प्रश्न 3. इटली के एकीकरण पर प्रकाश डालिए।

अथवा इटली के एकीकरण की प्रक्रिया को संक्षेप में लिखिए।

उत्तर इटली के एकीकरण की प्रक्रिया 19वीं शताब्दी में शुरू हुई। इस प्रक्रिया का विवरण इस प्रकार था-

(i) इस समय इटली अनेक वंशानुगत राज्यों व बहराष्ट्रीय हेब्सबर्ग साम्राज्य में बिखरा हुआ था।

(ii) इतालवी भाषा सम्पूर्ण इटली में नहीं बोली जाती थी। अनेक स्थानों पर इसके अनेक रूप प्रचलित थे।

(iii) 1830 ई. के दशक में ज्यूसेपे मेत्सिनी ने इटली को एकीकृत करने के लिए सबसे ज्यादा प्रयास किया और उसने ‘यंग इटली’ नामक गुप्त संगठन स्थापित किया।

(iv) 1831 ई. और 1848 ई. में जो क्रान्तिकारी विद्रोह असफल हुए उनके कारण इतालवी राज्यों में एक बिखराव आ गया जिन्हें संगठित करने के लिए सार्डिनिया-पीडमॉण्ट के शासक विक्टर इमैनुएल द्वितीय आगे आया।

(v) साडिीनेया-पीडमॉण्ट के प्रधानमंत्री कावूर ने इटली के राज्यों को संगठित करने के लिए प्रारम्भ हुए आन्दोलनों को नेतृत्व प्रदान किया और फ्रांस व सार्डिनिया- पीडमॉण्ट के बीच एक कूटनीतिक सन्धि की।

(vi) 1859 ई. में सार्डिनिया-पीडमॉण्ट ने ऑस्ट्रिया को पराजित किया। इस युद्ध में गैरीबॉल्डी के नेतृत्व में अनेक सैनिकों ने भी भाग लिया।

(vii) 1860 ई. में दक्षिणी इटली व दो सिसलियों के राज्यों में सार्डिनिया-पीडमॉण्ट के सैनिकों ने प्रवेश किया। यहाँ पर स्थानीय किसानों की मदद से वे स्पेन को पराजित कर सके।

(viii) 1861 ई. में विक्टर इमैनुएल द्वितीय को एकीकृत इटली का राजा घोषित किया और 1870 ई. में यह एकीकरण पूर्ण हुआ।

प्रश्न 4. फ्रांसीसी लोगों के बीच सामूहिक पहचान का भाव पैदा करने के लिए फ्रांसीसी क्रान्तिकारियों ने क्या कदम उठाए?

उत्तर 1789 ई. में घटित फ्रांसीसी क्रान्ति के साथ राष्ट्रवाद की प्रथम स्पष्ट अभिव्यक्ति हुई। प्रारंभ से ही फ्रांसीसी क्रान्तिकारियों ने ऐसे अनेक कदम उठाए, जिनसे फ्रांसीसी लोगों में सामूहिक पहचान की भावना बलवती हो सकती थी। ये कदम इस प्रकार थे- पितृभूमि

  1. (La patrie) और नागरिक (Le citoyen) जैसे विचारों ने एक संयुक्त समुदाय के विचार पर जोर दिया, जिसे एक संविधान के अंतर्गत समान अधिकार प्राप्त थे।
  2. एक नया फ्रांसीसी झंडा चुना गया, जिसने पहले के राष्ट्रध्वज की जगह लेली।
  3. इस्टेट जनरल का चुनाव सक्रिय नागरिकों के समूह द्वारा किया जाने लगा और उसका नाम बदलकर नेशनल एसेंबली कर दिया गया।
  4. नई स्तुतियाँ रची गईं, शपथें ली गईं, शहीदों का गुणगान हुआ और यह सब राष्ट्र के नाम पर हुआ।
  5. एक केन्द्रीय प्रशासनिक व्यवस्था लागू की गई, जिसने अपने भू-भाग में रहनेवाले सभी नागरिकों के लिए समान कानून बनाए।
  6. आंतरिक आयात-निर्यात शुल्क समाप्त कर दिए गए।
  7. तौलने और नापने के लिए एक तरह की व्यवस्था लागू की गई।
  8. क्षेत्रीय बोलियों के स्थान पर पेरिस की फ्रेंच भाषा ही राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित हुई।

प्रश्न 5. मारीआन और जर्मेनिया कौन थे? किस तरह उन्हें चित्रित किया गया और उसका क्या महत्त्व था?

उत्तर फ्रांस की क्रान्ति के समय कलाकारों ने स्वतंत्रता, न्याय और गणतंत्र जैसे विचारों को प्रकट करने के लिए नारी प्रतीकों का आश्रय लिया। इन चित्रकारों में मारीआन और जर्मेनिया प्रमुख थे। इन दोनों की छवि राष्ट्र रूपक की बन गयी।

मारीआन 19वीं शताब्दी में नारी रूपकों का आविष्कार कलाकारों ने किया। मारीआन एक लोकप्रिय ईसाई नाम है। अतः फ्रांस ने अपने स्वतंत्रता के नारी प्रतीक को यही नाम दिया। यह छवि जन-राष्ट्र के विचार का प्रतीक थी। उसके चिन्ह भी स्वतंत्रता और गणतंत्र के थे- लाल टोपी, तिरंगा और कलगी।

मारीआन की प्रतिमाएँ सार्वजनिक चौराहे पर लगाई गईं ताकि जनता को एकता के राष्ट्रीय प्रतीक की याद आती रहे और लोगों का विश्वास बना रहे। मारीआन की छवि सिक्कों और डाक टिकटों पर भी अंकित की गई। मारीआन की ये तस्वीरें फ्रांसीसी गणराज्य का प्रतिनिधित्व करती हैं।

जर्मेनिया जर्मेनिया, जर्मन राष्ट्र का रूपक बन गई। चाक्षुष अभिव्यक्तियों में जर्मेनिया बलूत वृक्ष के पत्तों का मुकुट पहनती है क्योंकि जर्मन बलूत वीरता का प्रतीक है। जर्मेनिया की तलवार पर ‘जर्मन तलवार जर्मन राइन की रक्षा करती है’ अंकित है। यह तस्वीर स्वतंत्रता, न्याय और गणतंत्र जैसे विचारों को प्रतीकात्मक रूप से व्यक्त करती है।

प्रश्न 6. जर्मन एकीकरण की प्रक्रिया के बारे में एक संक्षिप्त लेख लिखिए।

उत्तर जर्मनी के एकीकरण के प्रमुख चरण इस प्रकार हैं-

  1. प्रेस की आजादी और संगठन बनाने की स्वतंत्रता – जर्मन एकीकरण की माँग के दौरान संविधान, प्रेस की आजादी और संगठन बनाने की स्वतंत्रता जैसे सिद्धान्तों का विकास हुआ।
  2. संसदीय व्यवस्था स्थापित करना संसदीय व्यवस्था स्थापित करने की पृष्ठभूमि तैयार की जाने लगी।
  3. राष्ट्रीयता की भावना जाग्रत करना जर्मन लोगों में 1848 ई. के पहले ही राष्ट्रीयता की भावना जाग्रत हो चुकी थी। राष्ट्रीयता की भावना मध्यमवर्गीय जर्मन लोगों में बहुत अधिक थी।
  4. राष्ट्रराज्य बनाने का प्रयास -1848 ई. में जर्मन महासंघ के विभिन्न इलाकों को जोड़कर एक निर्वाचित संसद द्वारा शासित राष्ट्र राज्य बनाने का प्रयास किया गया था।
  5. उदारवादी विचारधारा का उद्भव राष्ट्र-निर्माण की इस उदारवादी विचारधारा को राजशाही और फौजी ताकतों के विरुद्ध कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा।
  6. भू-स्वामियों का समर्थन – उनका प्रशा के बड़े भू-स्वामियों (Junkers) ने भी समर्थन किया।
  7. प्रशा ने राष्ट्रीय एकीकरण के आंदोलन का नेतृत्व सँभाला और इसे एक नई दिशा प्रदान की।
  8. प्रशा का प्रधानमंत्री ऑटो वॉन बिस्मार्क इस प्रक्रिया का जनक था जिसने प्रशा की सेना और नौकरशाही की मदद ली।
  9. सात वर्ष में आस्ट्रिया, डेनमार्क और फ्रांस से तीन युद्धों में प्रशा की जीत हुई। इस तरह जर्मनी के एकीकरण की प्रक्रिया पूरी हुई।

10. 18 जनवरी, 1871 ई. में वर्साय में प्रशा के राजा काइजर विलियम प्रथम को जर्मनी का सम्राट घोषित किया गया।

  1. जर्मन राज्यों के राजकुमारों, सेना के प्रतिनिधियों और प्रमुख मंत्री ऑटो वॉन बिस्मार्क समेत प्रशा के महत्त्वपूर्ण मंत्रियों की एक बैठक वर्साय के महल के बेहद ठंडे शीशमहल (हॉल ऑफ मिरर्स) में हुई। इस सभा में प्रशा के काइजर विलियम प्रथम के नेतृत्व में नए जर्मन साम्राज्य की घोषणा की गई।
  2. इस प्रकार जर्मन राष्ट्र का एकीकरण हुआ।
  3. इस प्रक्रिया में प्रशा राज्य एक प्रमुख शक्ति केन्द्र के रूप में प्रकट हुआ।

प्रश्न 7. यूरोप में राष्ट्रवाद के विकास में संस्कृति के योगदान को दर्शाने के लिए तीन उदाहरण दें।

उत्तरयूरोप में राष्ट्रवाद के विकास में नवीन परिस्थितियों जैसे कि युद्ध, क्षेत्रीय विस्तार, शिक्षा आदि का जितना योगदान रहा है उतना ही योगदान संस्कृति का भी रहा है। कलाकारों, साहित्यकारों, संगीतकारों आदि ने राष्ट्र प्रेम की भावना का विकास किया। इसके अनेक उदाहरण हमें फ्रांस, इटली, यूनान, जर्मनी में देखने को मिले। इनमें तीन प्रमुख उदाहरण इस प्रकार हैं-

१. फ्रेडरिक सॉरयू का यूटोपिया फ्रांसीसी कलाकार फ्रेडरिक सॉरयू ने सन् 1848 ई. में चार चित्रों की एक श्रृंखला का सृजन किया। इन चित्रों के द्वारा विश्वव्यापी, प्रजातांत्रिक और सामाजिक गणराज्यों के स्वप्न को साकार रूप देने का प्रयास किया गया। सॉरयू के कल्पनादर्श (यूटोपिया) में एक आदर्श समाज की कल्पना की गई। इस चित्र में सभी वर्ग एवं सभी उम्र के स्त्री-पुरुष स्वतंत्रता की प्रतिमा की वंदना करते हुए जा रहे हैं। सभी के हाथ में मशाल और मानव के अधिकारों का घोषणापत्र है। राष्ट्र जो समूह में बँटे हुए हैं, उन्हें राष्ट्रीय पोशाक, तिरंगे झंडे, भाषा और राष्ट्रगान के द्वारा एक राष्ट्र राज्य का रूप दिया। इस प्रकार 19वीं शताब्दी में यूरोप में राष्ट्रीयता के विकास में सॉरयू की यूटोपिया ने प्रेरणा का काम किया।

  1. कार्ल कैस्पर फ्रिट्ज का स्वतंत्रता के वृक्ष का रोपण जर्मन चित्रकार कार्ल कैस्पर फ्रिट्ज ने स्वतंत्रता के वृक्ष का रोपण करते हुए एक चित्र बनाया है। इस चित्र की पृष्ठभूमि में फ्रांसीसी सेनाओं को ज्वेब्रेकन राज्य पर कब्जा करते हुए दिखाया गया है। इसमें फ्रांसीसी सैनिकों को दमनकारी के रूप में रेखांकित किया गया है। इसमें किसान की गाड़ी छीनते हुए कुछ युवा महिलाओं को परेशान कर रहे हैं। वहीं एक किसान को घुटने टेकने पर विवश किया जा रहा है। इस चित्र के बीच में चित्रकार ने स्वतंत्रता के वृक्ष का रोपण को दर्शाया है। इस वृक्ष पर एक तख़्ती लगी हुई है जिस पर जर्मन में लिखा हुआ है- “हमसे आजादी और समानता ले लो- यह मानवता का आदर्श रूप है।” यह फ्रांसीसियों के इस दावे पर व्यंग्य है कि वे जिन इलाकों में जाते थे वहाँ राजतंत्र का विरोध कर मुक्तिदाता बन जाते थे।
  2. यूजीन देलाक्रोआ की मसैकर ऐट किऑस– फ्रांसीसी चिंत्रकार देलाक्रोआ तत्कालीन फ्रांस के महत्त्वपूर्ण रूमानी चित्रकारों में शामिल है। ‘द मसैकर ऐट किऑस’ नामक यह विशाल चित्र एक घटना को चित्रित करता है जिसमें किऑस द्वीप पर कहा जाता है कि तुर्कों ने 20 हजार यूनानियों को मार डाला। देलाक़ोआ ने अपने चित्र के द्वारा महिलाओं और बच्चों की पीड़ा को केन्द्रबिन्दु बनाते हुए चटख रंगों का प्रयोग करके देखने वालों की भावनाएँ उभार करके यूनानियों के लिए सहानुभूति जगाने की कोशिश की।

इस प्रकार राष्ट्रवाद का विकास करने में संस्कृति ने अहम् भूमिका निभाई। कला, काव्य, कहानियों, कथाओं और संगीत ने राष्ट्रवादी भावनाओं के निर्माण और विकास में सहयोग दिया।

प्रश्न 8. किन्हीं दो देशों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए बताएँ कि उन्नीसवीं सदी में राष्ट्र किस प्रकार विकसित हुए?

उत्तर -19वीं शताब्दी में लगभग समस्त यूरोप में राष्ट्रीयता का विकास हुआ जिस कारण राष्ट्र-राज्यों का उदय हुआ। इनमें बेल्जियम एवं पोलैंड भी ऐसे ही देश थे। नेपोलियन की पराजय (1815 ई.) के बाद वियना संधि द्वारा बेल्जियम और पोलैंड को मनमाने तरीके से अन्य देशों के साथ जोड़ दिया गया। इस मनमानेपन का आधार यूरोपीय सरकारों की यह रूढ़िवादी विचारधारा थी कि राज्य व समाज भी स्थापित पारंपरिक संस्थाएँ, यथा- राजतंत्र, चर्च, सामाजिक रूप से उच्च व निम्न वर्ग और परिवार बने रहने चाहिए। बेल्जियम व पोलैंड ने इस रूढ़िवादी विचारधारा का विरोध किया। इन दोनों देशों ने स्वयं को स्वतंत्र राष्ट्र राज्य के रूप में स्थापित किया। इन देशों का विकास इस प्रकार हुआ-

  1. प्रोलैंड वियना संधि द्वारा ही पोलैंड को दो भागों में बाँटा गया और इसका बड़ा भाग रूस को ईनाम के तौर पर दे दिया गया। परंतु जब वहाँ के लोगों में राष्ट्रीय भावना का विकास हुआ तो 1848 ई. में पोलैंड और वारसा में क्रांति आरंभ हुई। इसे रूसी सेनाओं ने कठोरता से दबा दिया। परंतु राष्ट्रवादियों ने हार नहीं मानी और दुबारा विद्रोह किया जिसमें उन्हें सफलता मिली।
  2. बेल्जियमवियना कांग्रेस द्वारा बेल्जियम को हॉलैंड के साथ मिला दिया गया। परंतु दोनों देशों में ईसाई धर्म के कट्टर विरोधी मतानुयायी रहते थे। जहाँ बेल्जियम में कैथोलिक थे वहाँ हॉलैंड में प्रोटेस्टेंट। हॉलैंड का शासक भी हॉलैंडवासियों को बेल्जियमवासियों से श्रेष्ठ मानता था। अतः इस श्रेष्ठता को बनाए रखने के लिए उसने सभी स्कूलों में प्रोटेस्टेंट धर्म की शिक्षा देने की राजाज्ञा जारी की। इसका बेल्जियमवासियों ने कड़ा विरोध किया, इसमें इंग्लैंड ने भी उनका साथ दिया जिस कारण हॉलैंड को बेल्जियम को 1830 में स्वतंत्र करना पड़ा। बाद में यहाँ पर इंग्लैण्ड जैसी संवैधानिक व्यवस्था कायम हुई।

प्रश्न 9. यूरोप में राष्ट्रवाद के उत्थान हेतु उत्तरदायी कारणों का विस्तारपूर्वक विवेचन कीजिए।

अथवा राष्ट्रवाद से क्या तात्पर्य है? यूरोप में राष्ट्रवाद के उदय होने में कौनसी परिस्थितियाँ सहायक हुईं?

उत्तर राष्ट्र-राज्यों का उदय 18वीं शताब्दी के मध्य तक नहीं हुआ था। विभिन्न देश अनेक भागों, भाषाओं और कैंटनों में विभाजित थे। लेकिन 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ तक राष्ट्रवादी भावनाओं का प्रसार होने लगा था। यूरोप में राष्ट्रवादी भावनाओं के प्रसार हेतु उत्तरदायी प्रमुख कारण निम्नवत् हैं-

  1. संस्कृति की भूमिका राष्ट्रवाद के विकास में युद्धों व क्रांतियों के साथ-साथ संस्कृति की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। कला, काव्य, कहानियों और संगीत ने राष्ट्रवादी भावनाओं को विकसित करने तथा व्यक्त करने में सहयोग दिया। राष्ट्र की सच्ची आत्मा लोकगीतों, जन-काव्य और लोक नृत्यों से प्रकट होती थी। स्थानीय बोलियों पर बल और लोक साहित्य को एकत्र करने का उद्देश्य राष्ट्रीय भावना को फैलाना था। जैसे- पोलैंड अब स्वतंत्र भू-क्षेत्र नहीं था किन्तु संगीत और भाषा के माध्यम से राष्ट्रीय संघर्ष का गुणगान किया गया तथा विभिन्न लोक नृत्यों को राष्ट्रीय प्रतीकों में बदल दिया गया।
  2. भाषा भाषा ने राष्ट्रीय भावनाओं के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। रूसी कब्जे के बाद पोलैंड में रूसी भाषा को लाद दिया गया। इसके सदस्यों ने राष्ट्रवादी विरोध के लिए भाषा को हथियार बनाया। चर्च के आयोजनों में पोलिस का प्रयोग हुआ। परिणामस्वरूप पादरियों और बिशपों को जेल में डाल दिया गया। पोलिस भाषा रूसी प्रभुत्व के विरुद्ध संघर्ष के प्रतीक के रूप में देखी जाने लगी।
  3. जन विद्रोह 1830 ई. के दशक में यूरोप में जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई। यूरोप के उन इलाकों में जहाँ कुलीन वर्ग अभी भी सत्ता में था, कृषक कर्ज के बोझ तले दबे थे। शहरों और गाँवों में कई कारणों से गरीबी थी। बेरोजगारी तथा खाद्यान्न की कमी के कारण लोगों ने विद्रोह करने शुरू कर दिये। इन विद्रोहों के कारण रूढ़िवादी सरकारें कमजोर पड़ने लगीं तथा राष्ट्रवादी भावनाएँ विकसित होने लगीं।
  4. मध्यम वर्ग का उदय – 18वीं सदी तक यूरोप के विभिन्न देशों में दो प्रमुख वर्ग थे- कुलीन वर्ग तथा दास या कृषक वर्ग। औद्योगीकरण के कारण नए सामाजिक समूह श्रमिक वर्ग तथा मध्यम वर्ग अस्तित्व में आए जो उद्योगपतियों, व्यापारियों और सेवा क्षेत्र के लोगों से बने थे। इस वर्ग ने कुलीन विशेषाधिकारों की समाप्ति तथा शिक्षित और उदारवादी मध्यम वर्गों के बीच राष्ट्रीय एकता के विचारों को बढ़ाया।
  5. उदारवादी विचारधारा का प्रारम्भ 19वीं शताब्दी में यूरोप में एक नई विचारधारा पनपने लगी- उदारवाद। नए मध्य वर्गों के लिए इसका अर्थ था व्यक्ति के लिए आजादी और कानून के समक्ष सबकी बराबरी। उदारवाद एक ऐसी सरकार पर जोर देता था जो आपसी सहमति से बनी हो। आर्थिक क्षेत्र में उदारवाद, बाजारों की मुक्ति और चीजों तथा पूँजी के आवागमन पर राज्य द्वारा लगाए गए नियंत्रणों को समाप्त करने के पक्ष में था। नया व्यापारी वर्ग एक ऐसी आर्थिक नीति का पक्षधर था जहाँ वस्तुओं, लोगों, पूँजी का आवागमन बाधा रहित हो। इस विचारधारा ने राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा दिया।
  6. यूनान का स्वतन्त्रता संग्रास यूनान के स्वतन्त्रता संग्राम ने पूरे यूरोप में राष्ट्रीय भावनाओं का संचार किया। यूनानियों का आजादी के लिए संघर्ष 1821 ई. में प्रारम्भ हुआ। 1832 ई. की कुस्तुन्तुनिया की संधि ने यूनान को एक स्वतन्त्र राष्ट्र की मान्यता दी। इस स्वतन्त्रता संग्राम ने यूरोप के अन्य देशों को भी एकीकरण करने के लिए प्रेरित किया।

प्रश्न 10. 1789 . में फ्रांस की क्रान्ति के क्या कारण थे?

टिप्पणीफ्रांस की क्रांति कब शुरू हुई? उसका मुख्य कारण क्या था?

उत्तर1789 ई. की फ्रांस की क्रान्ति यूरोप के इतिहास की एक युगान्तकारी घटना थी। इस क्रान्ति के कारण लुई XVIवें का वंशानुगत शासन फ्रांस से समाप्त हो गया। फ्रांस में लोकतंत्र (जनता का शासन) का आरम्भ हुआ। फ्रांस की क्रान्ति के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारणों का विवरण इस प्रकार है-

(i) स्वतन्त्रता पर प्रतिबंध फ्रांस के लोगों को किसी भी तरह की स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं थी। धार्मिक स्वतन्त्रता पर भी प्रतिबंध था। फ्रांस में प्रोटेस्टेंट धर्म वालों पर अत्याचार किया जाता था। न्याय और स्वतन्त्रता की पूरी तरह से अवहेलना हो रही थी। ‘लेत्र द काशे’ (बिना कारण बनाए कैद के आदेश-पत्र) का प्रयोग व्यक्ति की स्वतन्त्रता के लिए खतरा था। अतः जनता के असंतोष ने क्रान्ति का रूप ले लिया।

(ii) मध्यम वर्ग (बुर्जुआ वर्ग) – औद्योगिक क्रान्ति के बाद मध्यम वर्ग का उदय हुआ। इस वर्ग में व्यापारी, उद्योगपति, वकील, डाक्टर, लेखक, पत्रकार, शिक्षाविद् और निम्न सरकारी पदाधिकारी आदि थे। फ्रांस का मध्यम वर्ग महत्त्वाकांक्षी था और कुलीन वर्ग को अपना शत्रु मानता था। नेपोलियन ने ठीक ही कहा था कि “फ्रांसीसी क्रान्ति का वास्तविक कारण कुलीनों का घमंड था, स्वाधीनता तो महज एक बहाना था।” अतः फ्रांसीसी क्रान्ति का एक प्रमुख कारण यह भी था कि वहाँ का मध्यम वर्ग सामाजिक एवं राजनीतिक समानता चाहता था और इसके लिए विद्रोह का सामना करने के लिए तैयार था।

(iii) अयोग्य शासक क्रान्ति के समय फ्रांस का शासक लुई XVIवाँ था। वह एक अयोग्य शासक था। क्योंकि उसने शासन में सुधार लाने का प्रयास नहीं किया। उसकी पत्नी का प्रभाव शासन पर अधिक था। लुई XVIवें के राज्यारोहण के समय जनता को बहुत आशा थी। लेकिन उसकी अदूरदर्शिता और कर्त्तव्यहीनता के कारण जनता को विद्रोह के मार्ग का सहारा लेना पड़ा।

(iv) दार्शनिकों का प्रभावफ्रांस के दार्शनिकों ने प्रशासन की दुर्दशा, न्याय-व्यवस्था की त्रुटियों तथा फ्रांसीसी समाज की बुराइयों से लोगों को परिचित कराया। रूसो, मांटेस्क्यू, वोल्टेयर तथा अन्य लेखकों के विचारों ने फ्रांस के क्रान्तिकारियों को प्रभावित किया। फ्रांस के लोग दार्शनिकों के विचारों से प्रभावित होकर क्रान्ति के मार्ग को अपनाने को तैयार हो गए।

प्रश्न 11. यूरोप में राष्ट्रवाद के उदय में जर्मनी एवं इटली के एकीकरण का योगदान बताइए।

उत्तर19वीं शताब्दी में यूरोपीय महाद्वीप में राष्ट्रवाद की एक लहर चली जिसने यूरोपीय देशों का कायाकल्प कर दिया। जर्मनी, इटली, रोमानिया आदि नवनिर्मित देश कई क्षेत्रीय राज्यों को मिलाकर बने जिनकी राष्ट्रीय पहचान ‘समान’ थी। यूनान, पोलैण्ड, वल्गारिया आदि स्वतन्त्र होकर राष्ट्र बन गये। राष्ट्रवादी चेतना का उदय यूरोप में पुनर्जागरण काल से ही शुरू हो चुका था, परन्तु 1789 ई. के फ्रान्सीसी क्रांति में यह सशक्त रूप लेकर प्रकट हुआ।

18वीं सदी में कई देश जैसे जर्मनी, इटली तथा स्विट्जरलैंड आदि उस रूप में नहीं थे जैसा कि आज हम इन्हें देखते हैं। अठारहवीं सदी के मध्य जर्मनी, इटली और स्विट्‌जरलैंड राजशाहियों, डचों और कैंटनों में बँटे हुए थे, जिनके शासकों के स्वायत्त क्षेत्र थे। इसी प्रकार, पूर्वी और मध्य यूरोप निरंकुश राजतन्त्रों के अधीन थे और इन क्षेत्रों में तरह-तरह के लोग रहते थे। वे अपने आप को एक सामूहिक पहचान या किसी ‘समान संस्कृति’ का भागीदार नहीं मानते थे। ऐसी स्थिति राजनीतिक एकता को आसानी से वढ़ावा देने वाली नहीं थी। इन तरह-तरह के समूहों को आपस में बाँधने वाला तत्त्व, केवल सम्म्राट के प्रति सबकी निष्ठा थी।

फ्रांसीसी क्रान्ति से पहले फ्रांस एक ऐसा राज्य था जिनके सम्पूर्ण भूभाग पर एक निरंकुश राजा का शासन था। फ्रांसीसी क्रांति का नारा ‘स्वतंत्रता, समानता और विश्वबंधुत्व’ ने राजनीति को अभिजात्यवर्गीय परिवेश से बाहर कर उसे अखबारों, सड़कों और सर्वसाधारण की वस्तु बना दिया। 19वीं शताब्दी तक आते-आते परिणाम युगान्तकारी सिद्ध हुए। नेपोलियन की संहिता 1804 में लागू किया गया। इसने जन्म पर आधारित विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया। इसने न केवल न्याय के समक्ष समानता स्थापित की बल्कि सम्पत्ति के अधिकार को भी सुरक्षित किया।

18वीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में नेपोलियन के आक्रमणों ने यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना के प्रसार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इटली, पोलैण्ड, जर्मनी और स्पेन में नेपोलियन ने ही ‘नवयुग’ का संदेश पहुँचाया। नेपोलियन के आक्रमण से इटली और जर्मनी में एक नया अध्याय आरम्भ हुआ। उसने समस्त देश में एक संगठित एवं एकरूप शासन स्थापित किया। इससे वहाँ राष्ट्रीयता के विचार उत्पन्न हुए। इसी राष्ट्रीयता की भावना ने जर्मनी और इटली को मात्र भौगोलिक अभिव्यक्ति की सीमा से बाहर निकालकर उसे वास्तविक एवं राजनैतिक रूप प्रदान किया जिससे इटली और जर्मनी के एकीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ।

यूरोप में राष्ट्रवाद के प्रमुख बिन्दु इस प्रकार हैं-

(1) यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना के विकास के कारण यूरोपीय राज्यों का एकीकरण हुआ। इसके कारण कई बड़े तथा छोटे राष्ट्रों का उदय हुआ।

(2) ग्रह यूरोपीय राष्ट्रवाद का परिणाम था कि 19वीं शताब्दी के अन्तिम उत्तरार्ध में ‘संकीर्ण राष्ट्रवाद’ का जन्म हुआ। संकीर्ण राष्ट्रवाद के कारण प्रत्येक राष्ट्र की जनता और शासक के लिए उनका राष्ट्र ही सब कुछ हो गया। इसके लिए वे किसी भी सीमा तक जाने के लिए तैयार थे। बाल्कन प्रदेश के छोटे-छोटे राज्यों एवं विभिन्न जातीय समूहों में भी यह भावना जोर पकड़ने लगी।

(3) यूरोपीय राष्ट्रवाद के प्रभाव के कारण जर्मनी, इटली जैसे राष्ट्रों में साम्राज्यवादी प्रवृत्तियों का उदय हुआ। इस प्रवृत्ति ने एशियाई एवं अफ्रीकी देशों को अपना निशाना बनाया जहाँ यूरोपीय देशों ने उपनिवेश स्थापित किये। इन्हीं उपनिवेशों के शोषण पर ही औद्योगिक क्रांति की आधारशिला टिकी थी। इसी साम्राज्यवादी प्रवृत्ति के कारण ‘ऑटोमन’ साम्राज्य का पतन हुआ।

(4) यूरोपीय राष्ट्रवाद का प्रभाव अफ्रीका एवं एशियाई उपनिवेशों पर भी पड़ा। इन उपनिवेशों में विदेशी शासन से मुक्ति के लिए स्वतन्त्रता आन्दोलन प्रारम्भ हो गए।

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