UP Board Solution of Class 9 Social Science [सामाजिक विज्ञान] History [इतिहास] Chapter- 1 फ्रांसीसी क्रान्ति (Francisi Kranti) लघु उत्तरीय प्रश्न Laghu Uttariy Prashn
प्रिय छात्र ! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 9वीं की सामाजिक विज्ञान इकाई-1: इतिहास भारत और समकालीन विश्व-1 खण्ड-1 घटनायें और प्रक्रियायें के अंतर्गत चैप्टर-1 फ्रांसीसी क्रान्ति (Francisi Kranti) पाठ के लघु उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। जो की UP Board आधारित प्रश्न हैं। आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करेंगे।
Subject | Social Science [Class- 9th] |
Chapter Name | फ्रांसीसी क्रान्ति (Francisi Kranti) |
Part 3 | History [इतिहास] |
Board Name | UP Board (UPMSP) |
Topic Name | भारत और समकालीन विश्व-1 |
फ्रांसीसी क्रान्ति (Francisi Kranti)
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. जैकोबिन क्लब से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- जैकोबिन क्लब की शुरुआत क्रान्ति के आरम्भिक समय में ही हो चुकी थी। प्रारम्भ में जैकोबिन के अनुयायी उदार तथा सुधारवादी ही थे। लेकिन धीरे-धीरे उसकी नीति उग्र होती गयी, फलस्वरूप मिराबो लाफाएत जैसे नरम विचार वाले सदस्य उससे पृथक् ही हो गए। परिणाम यह हुआ कि क्लब पर रोब्सपियरे जैसे उग्र विचारक का नियंत्रण हो गया। इस क्लब का नाम पेरिस के भूतपूर्व कान्वेंट ऑफ सेंट जैकब के नाम पर पड़ा। इस क्लब का प्रधान स्थान पेरिस था। इस क्लब के सदस्य लम्बी धारीदार पतलून पहनते थे इसलिए इन्हें ‘सौं कुलॉत’ भी कहा जाता था। इसकी 400 के लगभग शाखाएँ थीं जो सारे देश में फैली हुई थीं। धीरे-धीरे यह क्लब अधिक शक्तिशाली हो गया और उसका प्रभाव इतना बढ़ गया कि फ्रांसीसी क्रांति के बाद फ्रांस की सत्ता पर जैकोबिनों का नियन्त्रण स्थापित हो गया।
प्रश्न 2. फ्रांस के 1791 ई. के संविधान की विशेषता बताइए।
उत्तर- 1. सन् 1791 के संविधान ने कानून बनाने की शक्ति राष्ट्रीय सभा को दे दी जो कि अप्रत्यक्ष रूप से चुनी जाती थी अर्थात् नागरिक किसी चुनने वाले समूह को वोट देते तथा वह समूह फिर सभा को चुनता।
2. निर्वाचक की योग्यता पाने के लिए और पुनः सभा का सदस्य बनने के लिए लोगों को उच्च श्रेणी का करदाता होना जरूरी था।
3. सभी नागरिकों को वोट देने का अधिकार नहीं था। केवल 25 वर्ष से अधिक आयु के पुरुष जो कि कम-से-कम एक मजदूर की 3 दिन की मजदूरी के समान कर अदा करते थे उन्हें ही सक्रिय नागरिक का दर्जा प्रदान किया गया अर्थात् उन्हें ही वोट देने का अधिकार था। बचे हुए सभी पुरुषों तथा सभी महिलाओं को निष्क्रिय नागरिक का दर्जा दिया गया था।
प्रश्न 3. फ्रांस में दास प्रथा का उन्मूलन किस प्रकार हुआ?
उत्तर- फ्रांस में दास प्रथा का उन्मूलन निम्न प्रकार हुआ-
- सन् 1848 में फ्रांसीसी उपनिवेशों में दास-प्रथा का पूरी तरह उन्मूलन कर दिया गया।
- फ्रांस में दास प्रथा की ज्यादा आलोचना 18वीं सदी में नहीं हुई। नेशनल असेंबली में लम्बी बहस के पश्चात् भी यह निर्धारित नहीं किया जा सका कि समस्त फ्रांसीसी प्रजा को समान अधिकार प्रदान किया जाए या नहीं। किन्तु दास-व्यापार पर निर्भर व्यापारियों के विरोध के भय के फलस्वरूप नेशनल असेंबली कोई कानून पारित नहीं कर सकी।
- सन् 1794 के कन्वेंशन ने फ्रांसीसी उपनिवेशों में स्थित दासों को मुक्त करने सम्बन्धी कानून पारित कर दिया। यह कानून मात्र 10 वर्ष तक लागू रहा। दस वर्ष बाद नेपोलियन ने दास-प्रथा पुनः शुरू कर दी। अब फ्रांस में सक्रिय बागान मालिकों को अपने आर्थिक हित साधने के लिए अफ्रीकी नीग्रो लोगों को गुलाम बनाने की स्वतंत्रता मिल गयी।
प्रश्न 4. फ्रांस में जीविका संकट किन परिस्थितियों में उत्पन्न हुआ?
उत्तर- फ्रांस की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हो रही थी। फ्रांस की जनंसख्या सन् 1715 में 2 करोड़ 30 लाख से बढ़कर 1789 ई. में 2 करोड़ 80 लाख हो गयी। फलस्वरूप इससे खाद्यान्न की माँग बहुत तेजी से बढ़ी। इसलिए पावरोटी की कीमत भी तेजी से बढ़ी क्योंकि यह आम आदमी का भोजन थी। बहुत से कामगार कारखानों में मजदूर का काम करते थे जिनके मालिक उनकी मजदूरी निर्धारित करते थे। किन्तु उनकी मजदूरी बढ़ती कीमतों के हिसाब से नहीं बढ़ रही थी। इसलिए अमीर और गरीब के बीच की दूरी बढ़ गई। जब कभी अकाल पड़ता या ओलावृष्टि होती तो फसल कम होने से स्थिति और बिगड़ जाती। इससे जीविका संकट पैदा हुआ।
प्रश्न 5. फ्रांस की क्रान्तिकारी महिला ओलम्प दे गूज (1748-1793) के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर- फ्रांस की क्रान्तिकालीन राजनीति में सक्रिय ओलम्प सबसे महत्त्वपूर्ण महिला थी। उन्होंने फ्रांस के संविधान तथा ‘पुरुष एवं नागरिक अधिकार घोषणापत्र’ का विरोध किया क्योंकि उनमें महिलाओं को मानव मात्र के मूलभूत अधिकारों से वंचित किया गया था। इसलिए उन्होंने सन् 1791 में ‘महिला एवं नागरिक अधिकार घोषणापत्र’ तैयार किया जिसे महारानी एवं नेशनल असेंबली के सदस्यों पर यह माँग करते हुए भेजा गया था कि वे इस पर कार्यवाही करें। सन् 1793 में ओलम्प ने महिला क्लबों को जबरन बंद करने के लिए जैकोबिन सरकार की आलोचना की। उन पर नेशनल कन्वेंशन द्वारा मुकदमा चलाया गया तथा फाँसी पर लटका दिया गया।
प्रश्न 6. फ्रांसीसी क्रान्ति में दार्शनिकों का योगदान बताइए।
उत्तर- फ्रांसीसी क्रान्ति में दार्शनिकों की भूमिका को हम निम्न प्रकार से स्पष्ट कर सकते हैं-
- जॉन लॉक ने राजा के दैवीय एवं स्वेच्छाचारी सिद्धान्त को नकार दिया।
- फ्रांसीसी दार्शनिकों ने क्रांतिकारी विचार प्रदान किए एवं फ्रांस के लोगों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने हेतु प्रेरित किया। उन्होंने सम्राट की अक्षमता की सफलतापूर्वक कलई खोली और लोगों को उसे चुनौती देने के लिए उकसाया।
- रूसो ने लोगों एवं उनके प्रतिनिधियों के बीच एक सामाजिक करार पर आधारित सरकार का विचार सामने रखा।
- इन दार्शनिकों के इन विचारों पर सैलून एवं कॉफी-घरों में गहन चर्चा हुई और ये विचार पुस्तकों एवं अखबारों के द्वारा जनसाधारण के बीच फैल गए। इसने सन् 1789 में होने वाली क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया।